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सौजन्य- सत्यकथा

‘‘और तुम?’’ सरिता ने आंखें नचाते हुए पूछा.

‘‘मुझे सचमुच तुम्हारी कद्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं तुम्हारी खैरखबर लेने आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, करूंगा.’’ दलबीर सिंह ने सरिता की चिरौरी सी की.

दलबीर सिंह की यह बात सुन कर सरिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तुम आराम से चारपाई पर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में सरिता 2 कप चाय ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के दिलोदिमाग में हलचल सी मची हुई थी. सच तो यह था कि सरिता दलबीर पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, दलबीर सिंह भी सरिता का दीवाना बन गया था.

दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद दलबीर सिंह अकसर सरिता से मिलने आने लगा. सरिता को दलबीर सिंह का आना अच्छा लगता था.

जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा. सरिता चाहती थी कि पहल दलबीर सिंह करे, जबकि दलबीर चाहता था कि जिस्म की भूखी सरिता स्वयं उसे उकसाए.

आखिर जब सरिता से नहीं रहा गया तो एक रोज रात में उस ने दलबीर सिंह को अपने घर रोक लिया. फिर तो उस रात दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. हर रिश्ता टूट कर बिखर गया और एक नए रिश्ते ने जन्म लिया, जिस का नाम है अवैध संबंधों का रिश्ता.

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उस दिन के बाद सरिता और दलबीर सिंह अकसर एकांत में मिलने लगे. लेकिन यह सच है कि ऐसे संबंध ज्यादा दिनों तक छिपते नहीं हैं. उन का भांडा एक न एक दिन फूट ही जाता है. सरिता और दलबीर के साथ भी ऐसा ही हुआ.

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