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सौजन्य- मनोहर कहानियां

परिवार में मानो तूफान आ गया था. मातापिता अपने बच्चों को हमेशा अच्छी नजर से देखते हैं और उन्हें प्यार भी करते हैं, इसलिए जल्द शक नहीं कर पाते. यह अच्छी बात है, लेकिन बच्चों की संगत को भी नजरंदाज कर दिया जाए, यह लापरवाही है.

निधि का परिवार भी यह गलती कर चुका था. निधि अपने परिवार की इकलौती बेटी थी. मातापिता ने उसे समझाया. एकदो दिन तो वह घर पर ही रही, लेकिन फिर बाहर घूमने की जिद करने लगी. उस का स्वभाव भी बदल चुका था. वास्तव में नशे की तलब उसे बेचैन कर रही थी.

दरअसल, निधि ड्रग्स की बुरी तरह आदी हो चुकी थी. वह पहले जैसी कतई नहीं रही थी. पढ़ाई का रिजल्ट आया तो उस में भी वह फेल थी. एक समय ऐसा भी आया जब वह अपनी तलब पूरी करने को पैसे मांगती और न देने पर झगड़ा करती.

घर के हालात तनावपूर्ण थे. मातापिता की रातों की नींद उड़ चुकी थी, क्योंकि वह बेटी को समझा कर थक चुके थे, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी. बेटी के भविष्य को बचाना उन के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया. वह हर सूरत में निधि को बुरी लत से निकालना चाहते थे.

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उन लोगों के सामने अब एक ही रास्ता था कि बेटी को किसी नशा मुक्ति केंद्र में छोड़ दिया जाए. देहरादून में ऐसे कई नशा मुक्ति केंद्र थे. ऐसे ही एक अच्छे सेंटर के बारे में नवीन को पता चला.

उस का नाम था ‘वाक एंड विन सोबर लिविंग होम एंड काउंसलिंग सेंटर’. यह नशा मुक्ति केंद्र थाना क्लेमेनटाउन के अंतर्गत टर्नर रोड पर प्रकृति विहार में स्थित था. एक आवासीय कोठी को नशा मुक्ति केंद्र का रूप दिया गया था.

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