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सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शैलेंद्र कुमार ‘शैल’ 

40 वर्षीय अनरजीत मूलरूप से गोरखपुर के गुलरिहा थानाक्षेत्र के जैनपुर टोला मोहम्मद बरवा का रहने वाला था. उस के परिवार में मांबाप के अलावा पत्नी संगीता और 2 बेटे थे. अनरजीत ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन मेहनती बहुत था. एक साथ वह कई काम करता था. उस का मुख्य काम रसोई गैस सप्लाई का था. वह गुलरिहा स्थित एक गैस एजेंसी का सब से विश्वासपात्र डिलिवरीमैन था.

वह दिन भर में करीब 10-12 गाड़ी यानी करीब 450 सिलेंडर डिलीवर कर लेता था. शाम तक उस के पास करीब 3 लाख रुपए से ज्यादा की रकम जमा हो जाती थी. यह अनरजीत का रोज का काम था.

इस के साथ ही उस ने अपने घर पर किराने की दुकान भी खोल रखी थी. दुकान उस की पत्नी संगीता चलाती थी. इसी आमदनी से उस ने काफी रुपए बैंक बैलेंस कर लिए थे. वह दोनों बेटों की अच्छी शिक्षा पर पैसे खर्च करता था. बाद के दिनों में उस ने किराए पर चलाने के लिए एक सवारी गाड़ी खरीद ली थी. उस से भी उसे अच्छा मुनाफा हो जाया करता था. कुल मिला कर अनरजीत के घर में रुपयों की कोई कमी नहीं थी. उस का एक ही सपना था कि दोनों बेटे पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो जाएं.

पता नहीं उस की गृहस्थी को किस की बुरी नजर लगी कि सब कुछ चिंदीचिंदी बिखर गया. एक पत्नी के जीवित रहते हुए उस ने शान में आ कर दूसरी शादी कर ली. दूसरी शादी करते ही पहली पत्नी संगीता और अनरजीत के बीच में झगड़ा शुरू हो गया.

संगीता अपनी सौतन रीमा को साथ रखने के लिए कतई तैयार नहीं थी. उस ने पति से साफ कह दिया था कि इसे जहां मन हो, ले जा कर रखो. लेकिन मैं इसे अपने घर में नहीं रहने दूंगी. हार मान कर अनरजीत ने रीमा के मायके शंकर टोला गांव के बाहर जमीन खरीद कर 2 कमरों वाला टिन का मकान बनवा कर रीमा के साथ रहना शुरू कर दिया.

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