सौजन्य- सत्यकथा

12 जून, 2021 को दोनों ने घर से भागने का पूरा प्लान तैयार किया और काशीपुर से ट्रेन पकड़ कर घर वालों की चोरीछिपे मुरादाबाद जा पहुंचे. मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर पहुंचते ही दोनों जीआरपी की निगाहों में संदिग्ध के रूप में चढ़ गए.

जीआरपी ने उन से पूछताछ की तो मंजीत ने साफसाफ बता दिया कि वह उस की चाची है. हम दोनों किसी बीमार रिश्तेदार को देखने के लिए आए हुए हैं. लेकिन पुलिस को उन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने परिवार वालों से बात कराने को कहा.

तब मंजीत ने अपनी बुआ की नातिन से जीआरपी वालों की बात करा दी. जिस के बाद पुलिस वालों ने उन्हें सीधे घर जाने की हिदायत देते हुए छोड़ दिया.

रेलवे पुलिस से छूटने के बाद भी मंजीत बुरी तरह से घबराया हुआ था. उसे पता था कि इस वक्त देश बुरे हालात से गुजर रहा है. घर से जाने के बाद न तो उन्हें कहीं भी इतनी आसानी से नौकरी ही मिलने वाली है और न ही उस के बाद उस के घर वाले उसे शरण देने वाले हैं.

यह सब मन में विचार उठते ही सविता ने मंजीत के सामने एक प्रश्न किया, ‘‘मंजीत, मैं तेरी खातिर अपना घरबार, बच्चों तक को छोड़ आई. लेकिन तेरे अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं कि तू अपने ताऊ को सबक सिखा सके. उस ने ही हम दोनों का जीना हराम कर रखा है. अगर वह न हो तो हमें घर से भागने की जरूरत भी नहीं होती.’’

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