कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सौजन्य- सत्यकथा

रेशमा की बात सुन कर सचिन को इस बात का एहसास हो गया कि रेशमा को भी उस से लगाव हो गया है. वह भी उस के सान्निध्य में आना चाहती है. उस ने देर न करते हुए रेशमा को बांहों में भर लिया. रेशमा ने कोई विरोध नहीं किया, बल्कि मंदमंद मुसकराने लगी. क्योंकि वह भी यही चाहती थी.

दरअसल, जब से उस ने सचिन को देखा था तब से वह उस के मन को भा गया था. संजय से मिलने वाले सुख की उसे कमी नहीं थी, लेकिन वह उतना उसे पसंद नहीं था जितना सचिन. सचिन के आगे संजय कहीं नहीं ठहरता था.

जब आंखें किसी को देखना पसंद करने लगें तो दिल भी उसे चाहने लगता है. दिल की चाहत में वह बहकती चली गई और सचिन ने भी अपना हाथ बढ़ा कर उसे पाना चाहा तो वह उस के आगोश में जाने से अपने आप को रोक न सकी.

सचिन ने उसे गोद में उठा कर बैड पर लिटाया और उस के दिल के अरमानों को हवा देनी शुरू कर दी. थोड़ी ही देर में दोनों के निर्वस्त्र शरीर एकदूसरे से गुंथे हुए थे.

उस दिन रेशमा ने मानमर्यादा की सारी सीमाएं तोड़ कर नाजायज रिश्तों के दलदल में पैर डाले तो उस में धंसती चली गई. अब हर रोज संजय की गैरमौजूदगी में सचिन उस के घर में ही पड़ा रहता और रेशमा भी उस की बांहों का हार बनी रहती.

इस की जानकारी कालोनी के लोगों को भी हो गई. वे तरहतरह की बातें करने लगे. जल्द ही यह बात संजय के कानों तक भी पहुंच गई.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...