सौजन्य- सत्यकथा
नोएडा के ककराला गांव की पुस्ता कालोनी में रात के ढाई बजे सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एक घर के बाहर जमा कालोनी के लोगों की भीड़ इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि वहां कोई अनहोनी हुई है. दरअसल, 7 मई 2021 की दरमियानी रात को पुस्ता कालोनी में रामचंद्र सिंह के मकान में किराए पर रहने वाले 52 वर्षीय संतराम की घर में घुस कर कुछ बदमाशों ने हत्या कर दी थी.
जिस वक्त ये वारदात हुई, रात के करीब एक बजे का वक्त था. पुलिस घटनास्थल पर सूचना मिलने के बाद करीब ढाई बजे पहुंची. ककराला गांव गौतमबुद्ध नगर कमिश्नरेट के फेज-2 थानाक्षेत्र के अंर्तगत आता है.
फेज-2 थाने के प्रभारी सुजीत कुमार उपाध्याय उस समय कुछ सिपाहियों के साथ गश्त कर रहे थे. जब कंट्रोलरूम ने उन्हें ककराला में रहने वाले संतराम की उस के घर में हुई हत्या की खबर दी.
थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय अगले कुछ ही मिनटों में बताए गए घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर तब तक मकान में रहने वाले कुछ दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. संतराम की हत्या उस के सिर व चेहरे पर ईंटों के वार कर के की गई थी. पास ही खून से लथपथ एक ईंट इस बात की पुष्टि कर रही थी. कमरे का सारा सामान इधरउधर फैला पड़ा था.
मृतक की पत्नी सुशीला जिस की उम्र करीब 55 साल थी, पति के शव के साथ लिपटलिपट कर रो रही थी. किसी तरह पुलिस ने सुशीला को दिलासा दी तो उस ने सुबकते हुए बताया कि रात करीब साढे़ 12 बजे किसी ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया.
मैं ने जैसे ही दरवाजा खोला तो 3 लोग जबरदस्ती कमरे में घुस आए. कमरे में घुसते ही उन्होंने मुझे दबोच लिया और पूछा घर में कितने लोग हैं, जेवर और नकदी कहां रखे हैं. पूछताछ करते हुए उन्होंने मुझे एक के बाद एक साथ 3-4 थप्पड़ मारे और लातघूंसों की बारिश करते हुए मुझे जोर से जमीन पर धक्का दे दिया.
दीवार से सिर टकराने के कारण मैं उसी वक्त बेहोश हो गई. इस के बाद बदमाशों ने क्या किया, मुझे नहीं मालूम. जब कुछ देर बाद मुझे होश आया तो मैं ने अपने पति का शव इसी अवस्था में देखा जैसा इस समय आप देख रहे हैं.
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इस के बाद मैं ने शोर मचा कर अपने मकान के दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों को एकत्र किया. बाद में अपने जेठ लालूराम को फोन किया. वह गौतमबुद्ध नगर के गांव धूममानिकपुर में रहता था. वह भी एक घंटे में सूचना पा कर आ गया.
थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को घटना का निरीक्षण करने और सुशीला के बयान से साफ लग रहा था कि संभवत: कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में घुसे होंगे.
घटना का जो खाका तैयार हुआ था उस की पुष्टि के लिए थानाप्रभारी उपाध्याय ने एकएक कर उस मकान में रहने वाले सभी किराएदारों, आसपड़ोस के लोगों और संतराम के बड़े भाई लालूराम से पूछताछ की तो पता चला कि संतराम घरों का निर्माण करने वाला छोटामोटा ठेकेदार था. ठेकेदारी में वह राजमिस्त्रियों की टीम ले कर निर्माण का काम करता था.
इस काम में वहीं आसपास रहने वाले उस के जानकार उस की टीम में शामिल होते थे. संतराम के बारे में एक अहम जानकारी यह मिली कि वह बेहद सरल स्वभाव का इंसान था. आज तक उस का किसी से झगड़ा या दुश्मनी की बात भी किसी को पता नहीं चली थी.
पुलिस को पूछताछ में किसी से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जिस से हत्याकांड के बारे में तत्काल कोई सुराग मिल पाता.
सुशीला इस घटना की एकमात्र चश्मदीद थी, लेकिन उस ने पूछताछ में बताया कि उस ने आज से पहले कभी उन हमलावरों को नहीं देखा था, वह उन के चेहरे और हुलिए के बारे में भी कोई खास जानकारी नहीं दे सकी. अलबत्ता उस ने यह जरूर कहा कि अगर वे लोग दोबारा उस के सामने आए तो वह उन्हें पहचान सकती है.
चूंकि जिस तरह बदमाशों ने घर में घुसते ही सुशीला के ऊपर हमला किया था, उस से जाहिर तौर पर कोई भी इंसान इतना घबरा जाता है कि वह किसी के चेहरेमोहरे को देखने की जगह पहले अपना बचाव और जान बचाने की कोशिश करता है.
लेकिन 2 ऐसी बातें थीं जो अब तक की जांच व पूछताछ में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को परेशान कर रही थीं. एक तो यह बात कि सुशीला के शरीर के सभी हिस्सों का निरीक्षण करने के बाद भी उन्हें ऐसी कोई गुम या खुली हुई चोट नहीं मिली, जिस से साबित हो कि वह बेहोश हो गई थी. मतलब उस के शरीर पर खरोंच तक के निशान नहीं थे. दूसरे वह पुलिस को घर में लूटपाट होने वाले सामान की जानकारी नहीं दे सकी.
दरअसल, जिन बदमाशों ने घर में घुस कर एक आदमी की विरोध करने पर हत्या कर दी हो, क्या वह बिना कोई लूटपाट किए चले गए होंगे. दूसरे संतराम जिस हैसियत का इंसान था और किराए के मकान में जिस तरह का सामान मौजूद था, उसे देख कर कहीं से भी नहीं लग रहा था कि उस घर में लूटपाट करने के लिए बदमाश किसी की हत्या भी कर सकते हैं.
ऐसे तमाम सवाल थे जिन के कारण सुशीला पुलिस की निगाहों में संदिग्ध हो चुकी थी. लेकिन उस के पति की हत्या हुई थी इसलिए तत्काल उस से पूछताछ करना उपाध्याय ने उचित नहीं समझा.
इस वारदात की सूचना मध्य क्षेत्र के डीसीपी हरीश चंदर व एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल व इलाके के एसीपी योगेंद्र सिंह को भी लग चुकी थी. सूचना मिलने के बाद वे भी मौके पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन व फोरैंसिक टीम के अफसर भी मौके पर पहुंच गए थे.
घटनास्थल से जरूरी साक्ष्य एकत्र किए गए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.
मृतक संतराम के भाई लालूराम जो धूममानिकपुर थाना बादलपुर जिला गौतमबुद्ध नगर में रहता है, की शिकायत पर पुलिस ने 7 मई की सुबह भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया, जिस की जांच का जिम्मा खुद थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय ने अपने हाथों में ले लिया.
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डीसीपी हरीश चंदर ने एसीपी योगेंद्र सिंह की निगरानी में हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय के साथ एसएसआई राजकुमार चौहान, एसआई रामचंद्र सिंह, नीरज शर्मा, हैडकांस्टेबल फिरोज, कांस्टेबल आकाश, जुबैर, विकुल तोमर, गौरव कुमार तथा महिला कांस्टेबल नीलम को शामिल किया गया. पूरे केस में पुलिस काररवाई पर नजर रखने के लिए एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल को जिम्मेदारी सौंपी गई.
हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने सब से पहले संतराम के शव का पोस्टमार्टम कर शव को उस के परिजनों को सौंपा, जिन्होंने उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इस दौरान दिल्ली व आसपास रहने वाले संतराम के काफी रिश्तेदार उस के घर पहुंच चुके थे.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो चुकी थी कि संतराम की मौत उस के सिर व चेहरे पर लगी चोटों के कारण हुई थी.
पुलिस टीम ने सभी बिंदुओं को ध्यान में रख क र अपनी जांच शुरू कर दी. टीम ने सुशीला, उस के पति मृतक संतराम और उन के परिवार की कुंडली को खंगालना शुरू कर दिया.
इतना ही नहीं, पुलिस ने वारदात वाली रात को घटनास्थल के आसपास सक्रिय रहे मोबाइल नंबरों का डंप डाटा भी उठा लिया और उन सभी मोबाइल नंबरों की जांचपड़ताल शुरू की जाने लगी, जो वहां सक्रिय थे.
पुलिस ने संतराम व सुशीला के फोन नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली. इस के अलावा गांव में अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया.
संतराम पुत्र शंकर राम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के कस्बा व थाना रोजा का रहने वाला था. उस के परिवार में एक भाई लालू राम के अलावा 4 बहनें थी.
यह बात करीब 18-19 साल पहले की है. उन दिनों संतराम अपने गांव व आसपास के इलाकों में राजमिस्त्री का काम करता था. उम्र बढ़ रही थी और उस ने शादी की नहीं थी, इसलिए जो भी कमाता उसे अपने ऊपर खर्च करता था. इंसान के ऊपर जिम्मेदारियां न हों तो शराब ही अधिकांश लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन जाती है.
उसी के गांव में बालकराम भी रहता था, जो उसी की बिरादरी का होने के साथ पेशे से राजमिस्त्री का ही काम करता था. यही कारण था कि संतराम की बालकराम से खासी गहरी दोस्ती थी. संतराम का उस के घर भी आनाजाना था. बालकराम विवाहित था परिवार में पत्नी सुशीला और 5 बच्चे थे. 3 बेटे व 2 बेटियों में सब से बड़ा बेटा था.
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संतराम बालकराम के साथ उस के घर में बैठ कर शराब भी पीता था. बालकराम की पत्नी सुशीला 5 बच्चे होने के बाद भी गेहुएं रंग और छरहरे बदन की इतनी आकर्षक महिला थी कि पहली ही नजर में कोई भी उस की तरफ आकर्षित हो जाता था. सुशीला थोड़ा चंचल स्वभाव की महिला थी.
अगले भाग में पढ़ें- संतराम व सुशीला की खुली पोल