9 नवंबर, 2016 को पवन कुमार अपने औफिस में था, तभी उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया. वह दिल्ली के रोहिणी सैक्टर-15 स्थित ईएसआई अस्पताल में असिस्टैंट था. वह दिल्ली से सटे हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव खेड़ी मानाजात का रहने वाला था. पवन ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से किसी लड़की ने कहा, ‘‘मेरा नाम प्रिया है, मैं रोहित से बात करना चाहती हूं.’’

‘‘रोहित, यहां तो कोई रोहित नहीं है और न ही मैं किसी रोहित को जानता हूं.’’ पवन ने कहा.

‘‘सौरी, रौंग नंबर लग गया.’’ कह कर प्रिया ने फोन काट दिया.

पवन ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, उस ने सोचा गलती से फोन लग गया होगा.  लेकिन 2-3 दिन बाद प्रिया का फोन फिर आया तो आवाज पहचान कर पवन ने कहा, ‘‘मैडम, मैं ने तो उसी दिन बता दिया था कि यहां कोई रोहित नहीं है.’’

‘‘कोई बात नहीं सर, आप तो हैं. क्या मैं आप से बात नहीं कर सकती?’’ प्रिया ने कहा.

‘‘मुझ से..?’’ पवन ने हैरान हो कर कहा, ‘‘मेरी तो आप से कोई जानपहचान भी नहीं है, फिर आप मुझ से क्यों बात करेंगी?’’

‘‘बात करने के लिए जानपहचान जरूरी है क्या? पहले तो सभी अपरिचित होते हैं, बातचीत के बाद ही जानपहचान होती है.’’ प्रिया ने कहा.

‘‘शायद आप ठीक कह रही हैं. बताइए, आप क्या चाहती हैं मुझ से?’’ पवन ने पूछा.

‘‘मैं ने तो आप को अपना नाम बता ही दिया है. मैं दिल्ली में उत्तमनगर में रहती हूं. वैसे रहने वाली यूपी के शाहजहांपुर की हूं. आप अपने बारे में बताइए.’’ प्रिया ने अपने बारे में बता कर पवन के बारे में पूछा.

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