Crime News In Hindi: बिहार की धरती पर अपराध का एक नया और खतरनाक चेहरा उभर रहा है. हत्या अब गुस्से का नतीजा नहीं, बल्कि ठेके पर मिलने वाली ‘सेवा’ बन चुकी है. हालिया पुलिस आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 7 महीनों में 1,436 हत्याएं हुईं और इन में से हर तीसरी हत्या सुपारी दे कर कराई गई.

यह आंकड़ा सिर्फ अपराध का नहीं, बल्कि समाज में गहरे तक फैल चुके अपराधीकरण का सुबूत भी है. हत्या कराने वाला सोचता है कि इस में तो मेरा सिर्फ पैसा लग रहा है. हम आसानी से अपने दुश्मन की हत्या भी करवा देंगे और खुद सेफ रहेंगे.

सनसनीखेज हत्याएं

पटना में एडवोकेट जितेंद्र मेहता की हत्या उन की बेटी के प्रेमी मोहम्मद शोएब ने कराई. डेढ़ लाख रुपए में सौदा तय हुआ. पुलिस ने 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया.

गोपाल खेमका नामक कारोबारी की हत्या कारोबारी दुश्मनी के चलते सुपारी शूटरों के जरीए कराई गई.

गैंगस्टर चंदन मिश्रा को मारने के लिए हर शूटर को 4 लाख रुपए देने की डील हुई.

औरंगाबाद में एक औरत ने अपने फूफा के साथ मिल कर सुहागरात के दिन ही पति को मरवा दिया.

इन घटनाओं से साफ है कि हत्या अब पैसों का सौदा बन चुकी है, चाहे वजह प्यार हो, पैसा हो या सत्ता की लड़ाई.

सुपारी किलिंग की दरें

यह जान कर ताज्जुब होता है कि महज 2,000 रुपए एडवांस ले कर अपराधी किसी की हत्या कर देता है. ज्यादातर हत्या का रेट 2 लाख से 10 लाख रुपए के बीच तय किया जाता है.

हत्या करने वाले अपराधी, जिन्हें बिहार में ‘शूटर’ के नाम से जानते हैं, की उम्र 18 से 30 साल के बीच होती है. ज्यादातर बिना आपराधिक रिकौर्ड के होते हैं.

हत्या की अहम वजहों में जमीन विवाद, प्रेम संबंध, राजनीतिक दुश्मनी, कारोबारी रंजिश माना जाता है.

अपराध का उद्योग सुपारी किलिंग

यह अपराध अब यूनिट आधारित संगठित नैटवर्क में बदल चुका है. कौन्ट्रैक्ट फिक्सिंग में एडवांस पैसे ले कर डील पक्की की जाती है. प्रोफैशनल किलर्स या अपराधमुक्त नौजवानों को चुना जाता है. लोकेशन, समय और बचाव की रणनीति तैयार होती है. अपराध के बाद शूटरों को महफूज ठिकाने दिए जाते हैं.

पुलिस की नई पहल ‘किलर सैल’

लगातार बढ़ती घटनाओं को देखते हुए बिहार पुलिस ने ‘किलर सैल नामक एक खास यूनिट बनाई है. इस का मकसद है सुपारी गिरोहों की पहचान करना, वित्तीय स्रोतों का पता लगाना और शूटर नैटवर्क को खत्म करना.

पुलिस अफसरों का कहना है कि यह सैल ‘क्राइम नैटवर्क की रीढ़ तोड़ने’ की दिशा में काम करेगा.

जब कानून व्यवस्था भी हांफने लगे

हर तीसरी हत्या सुपारी दे कर होना केवल अपराध नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था की नाकामी और समाज के लिए बीमारी है. पुलिस के लिए शूटरों की पहचान करना मुश्किल होता है, क्योंकि ज्यादातर का कोई पुराना रिकौर्ड नहीं होता है. अपराध के बाद फरारी और सुबूत मिटाने करने की रणनीति. राजनीतिक संरक्षण और स्थानीय नैटवर्क का समर्थन भी पुलिस की राह में रोड़ा बनता है.

इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कड़े कानून बनाने की जरूरत है. फास्ट ट्रायल और कड़ी सजा. खुफिया तंत्र को मजबूत करना होगा. गिरोहों की शुरुआती गतिविधियां

पकड़ने के लिए हाईटैक मौनिटरिंग करने पड़ेगी. विवाद सुल झाने में कानूनी रास्तों को प्राथमिकता देनी होगी. अपराध और राजनीति के गठजोड़ को खत्म करना होगा.

राजनीतिक दल के रसूखदार नेता अपराधियों की पैरवी करने लगते हैं, जिस से अपराधियों को मदद मिल जाती है और उन का मनोबल बढ़ जाता है. बहुत से नेताओं का गठजोड़ भी इन शूटर अपराधियों से होता है.

सुपारी किलिंग सिर्फ अपराध नहीं है, बल्कि सरकार की नैतिक और सामाजिक नाकामी है. जब हत्या एक ‘सेवा’ बन जाए और जान की कीमत तय होने लगे, तो यह पूरे समाज की हार है. अब समय है कि पुलिस, कानून और समाज मिल कर इस अपराध उद्योग को जड़ से खत्म करें, वरना वह दिन दूर नहीं जब ‘जान लेना’ बिहार में ‘आम धंधा’ बन जाएगा. Crime News In Hindi

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