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उस कमरे में 3 लोग थे, मनमोहन, श्याम और विक्रम. मनमोहन मोटा जरूर था, लेकिन उस का दिमाग बहुत तेज था. वैसे उस का मोटापा एक तरह से उस की पर्सनैलिटी पर भी सूट करता था और पेशे पर भी. वह आपराधिक कामों की पेशगी ले कर काम कराता था, लेकिन छोटेमोटे नहीं, बड़ेबड़े. हालांकि खूंखार दिखने वाला मनमोहन खुद कोई अपराध नहीं करता था.

श्याम उस का सहयोगी भी था और ड्राइवर भी. हाल ही में मनमोहन ने छोटे शहर मडप के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित से 2 करोड़ की डील की थी. काम था बंद पड़ी एक पुरानी इमारत को इस तरह आग लगाने का कि सब कुछ जल कर खाक हो जाए.

इस काम के लिए उस ने विक्रम को चुना था. वह ऐसे कामों का मास्टर था. दोनों के बीच इस काम का सौदा 50 लाख रुपए में तय हुआ था. 10 लाख उसे दे भी दिए गए थे. लेकिन किन्हीं कारणों से विक्रम यह काम नहीं कर पाया था, उस का पहला प्रयास ही विफल रहा था.

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फिलहाल विक्रम मनमोहन के सामने बैठा था. हाथ में रिवौल्वर थामे मनमोहन उसे गालियां देते हुए लानतमलामत कर रहा था, जबकि विक्रम सफाई देते हुए कह रहा था कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह किसी काम में हाथ डाले और वह न हो. वह कभी फेल नहीं होता. जबकि मनमोहन बता रहा था कि पुलिस अफसर मोहित का फोन आया था. उस ने बताया कि बिल्डिंग जस की तस खड़ी है.

काफी जद्दोजहद के बाद तय हुआ कि मौके पर जा कर बिल्डिंग को देखा जाए. मनमोहन, श्याम और विक्रम कार से मडप के लिए रवाना हो गए. कार श्याम चला रहा था. चलने से पहले मनमोहन ने मोहित को फोन कर के रास्ते में मिलने को कह दिया था.

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