जो लोग अपने जुनून को ही काम बना लेते हैं, उन्हें आनंद सिंह कहते हैं. इन्हें तीसरे ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में ‘फैमिली वैल्यूज मूवी’ कैटेगिरी में बैस्ट डायरैक्टर का अवार्ड मिला, तो इस बात की जिज्ञासा बढ़ी कि आज जब भोजपुरी फिल्मों पर अश्लीलता बढ़ाने के आरोप लगते हैं, तब पारिवारिक फिल्में बनाने का जोखिम उठाने की हिम्मत इस शख्स ने कैसे दिखाई. फिर आनंद सिंह से उन के फिल्मी सफर पर बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :
आप अपने बारे में कुछ बताएं?
मैं वाराणसी का रहने वाला हूं. मैं ने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की है और मेरी शादी हो चुकी है. मेरी पत्नी ने मेरा बहुत सपोर्ट किया है. मेरी एक 8 साल की बेटी है. मेरे 2 छोटे भाई हैं. एक का अपना कारोबार है और दूसरा सरकारी नौकरी में है. मेरे पिताजी, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, ने भी मुझे इस क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद की थी.
क्या आप ने फिल्म डायरैक्शन सीखा है?
हां, मैं ने फिल्म डायरैक्शन सीखा है. दूरदर्शन के कई सीरियल जैसे ‘नैंसी’, ‘कहीं देर न हो जाए’ के अलावा मैं बहुत सी भोजपुरी फिल्मों का भी असिस्टैंट डायरैक्टर रहा हूं. मुझे इस क्षेत्र में तकरीबन 14 साल हो गए हैं. अभी तक मैं ने 8 फिल्में डायरैक्ट की हैं.
आप भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से कैसे जुड़े?
मैं शुरू से ही क्रिएटिव चीजों से जुड़ा रहा हूं. बचपन में जब मैं कोई भी फिल्म देखता था, तो उस की समीक्षा लिखा करता था. जब मैं ने हिंदी फिल्म ‘सदमा’ देखी थी, तब पहली बार मैं ने किसी हीरो का नाम जाना था कमल हासन. तब ऐसा लगा था कि काश, मैं कमल हासन से मिल लेता और बोल देता कि क्लाइमैक्स में हीरो और हीरोइन को मिला दो. तब से मेरे मन में बैठ गया था कि फिल्म में जोकुछ भी करता है, वह डायरैक्टर करता है.