नवजात के ग्रोथ चार्ट की इस सरल परिभाषा के अपने अलग माने हैं, जिस से यह भी पता चलता है कि नवजात की दूसरी बालसुलभ या उम्रजनित क्रियाएं भी स्वाभाविक और ठीकठाक हैं या नहीं. मसलन, पाचन, रंगों और वस्तुओं को पहचानना, उलटनापुलटना और प्रतिक्रियाएं देना इत्यादि.
इस में कोई शक नहीं कि अपने बच्चे को रोज बढ़ते देखने का अपना एक अलग सुख और आनंद है, जिसे सभी मांबाप ऐंजौय करते हैं. जिंदगी के इस अद्भुत सुख का सटीक वर्णन शायद ही कोई मांबाप कर पाए, क्योंकि जैसेजैसे बच्चा बड़ा होता जाता है वैसेवैसे वे गुजरे दिनों को भूलते जाते हैं.
इस में भी कोई शक नहीं कि नए दौर के मांबाप जागरूक हो रहे हैं और उन की अधिकतम कोशिश यह होती है कि वे नवजात की ग्रोथ के बारे में सबकुछ जानें. लेकिन दिक्कत अभी भी यह है कि ज्यादातर पेरैंट्स यह मानते हैं कि अगर बच्चा मोटा, गोलमटोल और वजनदार है तो इस का मतलब उस की ग्रोथ ठीक हो रही है और अगर बच्चा दुबलापतला हो तो वे चिंतित हो उठते हैं कि उस की ग्रोथ दूसरे बच्चों के मुकाबले कम हो रही है, जबकि ऐसा नहीं है.
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वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन यानी डब्ल्यूएचओ नवजातों की ग्रोथ को पर्सेंटाइल में दर्शाता है, जिस के माने अकसर भारतीय मांबाप को समझ नहीं आते. भोपाल के एक वरिष्ठ बालरोग चिकित्सक ए. एस. चावला की मानें तो डब्ल्यूएचओ के ग्रोथ चार्ट के अपने अलग मायने हैं और उस का ग्रोथ चार्ट दुनियाभर के लगभग 100 देशों में प्रयोग किया जाता है जबकि भारत में अधिकांश बालरोग विशेषज्ञ अपने बनाए चार्ट का इस्तेमाल करते हैं.
चार्ट से समझें ग्रोथ
दरअसल हमारे देश में इस्तेमाल किया जाने वाला चार्ट देश के प्रमुख बड़े शहरों में संपन्न परिवारों के नवजातों के विकास स्वरूप पर अध्ययन के आधार पर तैयार किया जाता है. चूंकि इस ग्रोथ चार्ट के आंकड़ों में केवल भारतीय नवजातों पर किए गए अध्ययनों को ही शामिल किया जाता है, इसलिए अधिकतर विशेषज्ञ इसे ही इस्तेमाल करना पसंद करते हैं.
मगर इन को ले कर शक या भ्रम की जरूरत नहीं. डाक्टर ए. एस. चावला बताते हैं कि दोनों ही अपनी जगह ठीक हैं और उन में कोई खास फर्क नहीं है. उन के मुताबिक अगर नवजात की ग्रोथ चार्ट के मुताबिक हो रही हो तो अभिभावकों को चिंता नहीं करनी चाहिए. चिंता की बात इस स्थिति में भी नहीं जब चार्ट के मुताबिक बच्चे की ग्रोथ में थोड़ाबहुत या मामूली अंतर आ रहा हो. चिंता तब करनी चाहिए जब यह अंतर ज्यादा हो.
उदाहरण के लिए चार्ट के मुताबिक 10 महीने की उम्र की लड़की का वजन 8.8 किलोग्राम और लंबाई 71.6 सैंमी. होनी चाहिए. ऐसे में अगर बच्ची का वजन 7 किलोग्राम से कम और लंबाई भी 65 सैंमी. से कम है तो विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए.
डब्ल्यूएचओ इस स्थिति को पर्सेंटाइल में दर्शाता है. मसलन उस के चार्ट के मानकों के मुताबिक आप के बच्चे का वजन 30वीं पर्सेंटाइल पर है तो उस का मतलब होता है कि आप के बच्चे की उम्र और लिंग के 29% बच्चों का वजन आप के बच्चे से कम है और 70% बच्चों का वजन उस से ज्यादा है.
पर्सेंटाइल के मामले में जरूरी नहीं कि वह वजन और लंबाई के मामले में हर बार बराबर ही हो. मिसाल के तौर पर वही बच्चा जो वजन के मामले में 30वीं पर्सेंटाइल पर है. लंबाई के मामले में 40वीं पर्सेंटाइल पर भी हो सकता है, जिस का मतलब यह निकलता है कि लंबाई के मामले में आप के बच्चे की उम्र और लिंग के 39% बच्चे उस से छोटे और 60% उस से लंबे हैं.
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चूंकि यह स्थिति डब्ल्यूएचओ ग्राफ के जरीए प्रदर्शित करता है, इसलिए मांबाप का गड़बड़ा जाना स्वाभाविक है. ऐसे में भारतीय डाक्टरों का चार्ट इस भ्रम को दूर करता है. इसे अपनाने में हरज नहीं.
चार्ट के हिसाब से उम्र के आधार पर बच्चे के वजन और लंबाई में मामूली अंतर है तो यह चिंता व्यर्थ है, इसलिए घबराना नहीं चाहिए. लेकिन अंतर ज्यादा है तो खुद डाक्टर पहल कर इन कमियों को चिकित्सकीय पैमाने पर परखते हुए इलाज करते हैं.
इसे यों समझा जा सकता है
अगर 12 महीने यानी 1 साल के लड़के का वजन 8 किलोग्राम से कम है जो चार्ट के मुताबिक 9.6 किलोग्राम होना चाहिए तो डाक्टर बच्चे की डाइट में बदलाव करने की सलाह दे सकते हैं. वे कहेंगे कि बच्चे को ज्यादा पौष्टिक भोजन दिया जाए. नवजात की फीडिंग पर भी वे गौर करेंगे जो अगर गलत तरीके से हो रही है तो उसे सुधारने को कहेंगे. यही बात लंबाई की कमी के मामले में लागू होती है.
यहां यह बात और भी अहम है कि ग्रोथ चार्ट से किसी समस्या या बीमारी का पता नहीं चलता. डा. चावला यह सलाह भी देते हैं कि अगर चार्ट या पर्सेंटाइल के मुताबिक अभिभावक कमी पाते हैं तो नवजात को दी जाने वाली डाइट में अपने मन से बदलाव न करें, बल्कि डाक्टर से सलाह लें.
अगर बच्चा प्रीमैच्योर है तो जाहिर है उस की ग्रोथ इन ग्रोथ चार्टों और पर्सेंटाइल से मेल नहीं खाएगी, क्योंकि जन्म के पहले से ही उस की ग्रोथ कम है. ऐसे बच्चों के लिए डाक्टर अलग से कई एहतियात बताते हैं और डाइट के बारे में भी सलाह देते हैं. निष्कर्ष यह है कि प्रीमैच्योर बच्चों की तुलना औसत वजन और लंबाई वाले बच्चों से ग्रोथ के मामले में नहीं की जानी चाहिए. नवजात पर आनुवंशिक कारक भी प्रभाव डालते हैं.
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नवजात की ग्रोथ में वक्तवक्त पर फर्क आता है और वह पूरी तरह 3 साल की उम्र के वक्त समझ आता है. ग्रोथ चार्ट की अहमियत इतनी भर है कि उस के अनुसार बच्चे की लंबाई और वजन को नाप कर फर्क देखा जाता है. अगर कोई बड़ी असामान्यता नजर आए तभी डाक्टर के पास जाएं.