गणेश एक कारखाने में स्टोरकीपर का काम करता है. वह जिम्मेदार आदमी माना जाता है. कुछ महीनों से वह अलग दिखने लगा है. उस ने बहुत ज्यादा बातें करनी शुरू कर दी हैं.
पहले गणेश खुद तक ही सीमित रहता था, अब वह कारखाने में सभी तरफ जाता है और अलगअलग मुद्दों पर सभी से बातें करता है. सभी को अपनी सलाह देता है. कभी वह कहता है कि उस के पास कोविड की देशी दवा का अचूक फार्मूला है, तो कभी कहता है कि रूसी भारत पर हमला कर देंगे.
गणेश यह घोषणा भी करता है कि 3 महीने के भीतर वह एक कारखाना खोलने जा रहा है. उस कारखाने में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को दोगुनी तनख्वाह, रहने के लिए फ्री क्वार्टर और गाड़ी भी देगा.
वह यह भी कहता है कि वह मुख्यमंत्री को अच्छी तरह से जानता है. सिर्फ एक फोन लगाने पर ही वे उसे कारखाना शुरू करने के लिए जरूरी पैसा मुहैया करवा देंगे.
गणेश बेहद खुश रहता है. हालांकि वह दूसरों के लिए हंसी का पात्र बन गया है. वह बहुत उदार भी हो गया है. दूसरों के मनोरंजन के लिए काफी पैसा खर्च करने लगा है. घर में वह परिवार के लिए मुसीबत बन गया है. वह देर रात तक सोता नहीं है. रेडियो बजा कर दूसरों को भी सोने नहीं देता है. उसे दिए जाने वाले भोजन से वह संतुष्ट नहीं है. उसे ज्यादा मिठाइयां व देशी घी से बनी चीजें चाहिए, जिस के लिए वह घर वालों से मांग करता रहता है.
गणेश परिवार के कामों में भी दखलअंदाजी करता रहता है. अगर वे उसे इस तरह के बरताव के लिए कुछ कहते हैं, तो वह गुस्सा हो जाता है और उन सभी पर चिल्लाने लगता है. वह आसपड़ोस, महल्ले में घूमता है, लोगों से कहता है कि उन्हें जो भी सुविधाएं चाहिए, वह दिलवाएगा, क्योंकि वह बहुत मंत्रियों को जानता है.
गणेश का कहना है कि वह बहुत होशियार है और बुद्धिमान भी. जब तक वह है, लोगों को कोई भी समस्या आनी नहीं चाहिए. उस के इस तरह के रवैए को देख कर व उस के साथ बातें करने से लोगों को मनोरंजन होता है. लेकिन वे डर गए हैं, जब उन्होंने उसे एक दुकानदार के साथ उस के द्वारा मांगी गई चीजों को तुरंत न देने पर ?ागड़ा करते हुए देखा. अब वह सोचते हैं कि वह खुद ही मानसिक रूप से बीमार हैं, लेकिन वे जानते नहीं हैं कि उसे किस तरह अस्पताल ले जाएं.
गणेश एक गंभीर मानसिक बीमारी मैनिक साइकोसिस से पीडि़त है. यह एक बेहद रसप्रद बीमारी है, जिस में पीडि़त असामान्य रूप से ज्यादा क्रियाशील, ज्यादा बातूनी हो जाता है. वह अपनी ताकत और सामाजिक लैवल के बारे बढ़ाचढ़ा कर बोलना शुरू कर देता है. वह एक ही समय में अनेक कामों को करने की कोशिश शुरू कर देता है, लेकिन उन में से किसी को भी पूरा नहीं कर पाता है. वह जल्दी ही विचलित भी हो जाता है. उस की रुचियां बदलती रहती हैं. उसे सौंपे हुए काम करना वह बंद कर देता है, घूमता रहता है.
हालांकि शुरूशुरू में लोग उस की बातों और बदलते मिजाज का मजा लेते हैं, लेकिन जल्द ही वे उसे उपद्रवी या परेशानी पैदा करने वाले इनसान की तरह जान जाते हैं. वह ?ागड़ालू, गुस्सैल व उग्र हो कर समस्याएं पैदा करता है और सब से बहस करता रहता है. परिवार वाले उसे संभालने में कठिनाई महसूस करते हैं. वह बहुत उदार हो जाता है. वह पैसे, चीजें सभी को बांटने लगता है.
इस बीमारी के बहुत ज्यादा असर में मरीज हिंसक हो जाता है. वह खुद के साथसाथ दूसरे के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है. वह खुद की सुरक्षा पर ध्यान नहीं देता है और मूलभूत जरूरतें जैसे नींद, खाना खाने के प्रति लापरवाह हो जाता है.
सामान्य तौर पर ‘मेनिया’ के लक्षण 3 से 4 महीनों तक रहते हैं. धीरेधीरे ये लक्षण कम हो जाते हैं और आदमी पूरी तरह से लक्षणों से मुक्त हो जाता है.
मानसिक पागलपन बीमारी में दोहराव होता है. बीमारी की तीव्रता हर पीडि़त के साथ बदलती रहती है. कुछ को साल में एक या 2 बार दौरे पड़ते हैं और कुछ को 2 या 3 साल में एक बार ही दौरा पड़ता है. वहीं कुछ मामलों में मरीज ‘मेनिया’ व ‘डिप्रैशन’ जैसी बीमारियों से बारबार पीडि़त होते रहते हैं.
‘डिप्रैशन’ में बीमारी के लक्षण ‘मेनिया’ से बिलकुल उलट होते हैं. आदमी किसी छोटी सी वजह को ले कर या बगैर किसी कारण के भी दुखी रहने लगता है. वह सुस्त रहता है. पहले वह जिन बातों में खुशी महसूस करता था, उन के प्रति वह उदासीन हो जाता है. वह आधी रात में उठ जाता है और खुद को दुखी महसूस करता है. वह अपने कामों व जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह हो जाता है. वह खुद को कोसता है और अपराधबोध से पीडि़त रहता है.
उसे जिंदगी में जीने की कोई दिलचस्पी नहीं रहती. उसे खुद को खत्म करने की इच्छा भी हो सकती है. वह खुदकुशी करने की कोशिश भी कर सकता है और उस में कामयाब भी हो सकता है. ‘डिप्रैसिव’ घटनाचक्र तकरीबन 4 महीनों का या और भी लंबा हो सकता है.
न्यूरोट्रांसमीटर
मेनिया में यह मानने के लिए काफी सुबूत हैं कि दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर यानी तंत्रिका संचारक में डोपामीन का बहुत ज्यादा स्राव होता है, जबकि डोपामीन पर्याप्त मात्रा में कम स्रावित होने पर डिप्रैशन की वजह बनता है.
डोपामीन एक उत्पाद है, जो ब्लड प्रैशर को बढ़ाने का काम करता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में तंत्रिका संचारक की तरह काम करता है.
मेनिया की वजह
वैज्ञानिक स्टडी बताती है कि मेनिया या डिप्रैशन होने का डर आनुवांशिक तौर पर उन बच्चों में होता है, जिन के मातापिता इस के शिकार रहे हों.
साफतौर पर कहा जाए, तो यह बीमारी वातावरण के कारकों पर निर्भर करती है. मेनिया के मरीज की औलाद में जरूरी नहीं कि उसे भी यह बीमारी हो. ऐसे मरीज की औलाद जिंदगीभर सेहतमंद रह सकती है. ‘मेनिया’ डायबिटीज व ब्लड प्रैशर की तरह एक जैविक बीमारी है.
इलाज
मेनिया का जितनी जल्दी इलाज शुरू किया जाएगा, समस्याएं उतनी ही जल्दी कम होंगी. जैसे क्लोरोप्रोमैजिन हैलोपीरियल, लिथियम जैसी बीमारी के लक्षणों को काबू में करने के लिए ऐंटीमेनिक दवाएं दी जाती हैं. दवाओं की मात्रा डाक्टर द्वारा तय की जाती है. दबाव के तहत कभीकभी मरीज को अस्पताल में भरती करना जरूरी हो जाता है.
जब दवाएं बीमारी को काबू करने में नाकाम हो जाती हैं, तो ईसीटी यानी शौक ट्रीटमैंट दिया जाता है. मरीज को डाक्टर की निगरानी में 4 से 6 महीनों तक दवाएं लेनी होती हैं.
ये बीमारियां उन लोगों में ज्यादा तेज हो जाती हैं, जो झाड़फूंक में भरोसा रखते हैं और तरहतरह के टोटके मरीज पर अपना कर उसे और ज्यादा बीमार कर देते हैं.
बकुला पारेख