अगर आपको भी है सिगरेट पीने की आदत तो इस खबर को जरूर पढ़ें

Lifestyle tips in Hindi: स्मोकिंग (Smoking) करने वाले लोग अक्सर ऐसा सोचते हैं कि वह सिर्फ खुद को हानी पहुंचा रहें है परंतु उन्हे ये नहीं पता कि वे अपने साथ साथ पूरे समाज को नुकसान दे रहें हैं. सिगरेट का धुंआ एक्टिव स्मोकर से ज्यादा पैसिव स्मोकर के लिए हानिकारक (Harmful) होता है और सिगरेट पीने से समाज में बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. स्मोकिंग करने वाले लोग शारिरिक बिमारियों (Physical Disease) के साथ साथ मानसिक बिमीरियों (Mental Disease) का भी शिकार होते चले जाते हैं.

कैसे करता है निकोटिन दिमाग पर असर –

सिगरेट में मिले निकोटिन का असर सीधा हमारे दिमाग पर होता है. आमतौर पर हर व्यक्ति स्मोकिंग करने की शुरूआत सिर्फ शौक के तौर पर करता है और वो ये सोचता है कि उसे इसकी आदत नहीं लग सकती पर कब वे स्मोकिंग करने का आदी बन जाता है उसे खुद पता नहीं चलता. नियमित रूप से सिगरेट पीने से हमारे अंदर कई सारे बदलाव आते है जैसे कि सिगरेट ना मिलने पर हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है , स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है और सिगरेट की तलब के कारण स्मोकर जो अपने साथ साथ दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

एसा नहीं है कि स्मोकर सिगरेट छोड़ने की कोशिश ही नहीं करता, वे कोशिश तो करता है परंतु नाकामयाब रहता है क्यूंकि सिगरेट में मिला निकोटिन उसके दिमाग पर इतना असर कर चुका होता है कि वे चाह कर भी स्मोकिंग करना नहीं छोड़ पाता. सिगरेट में मिला निकोटिन तय करता है कि स्मोकिंग आपके दिमाग पर किस प्रकार असर करेगी. जिस प्रकार निकोटिन की मात्रा हमारे दिमाग पर असर करेगी उसी प्रकार स्मोकिंग का असर शरीर और मन पर होगा.

स्मोकिंग करते समय निकोटिन का एक डोज़ 10 सेकेंड के अंदर दिमाग तक पहुंच जाता है और मसल्स को रिलेक्स कर देता है. निकोटिन का दिमाग तक पहुंचना हमारा मूड अच्छा करने के साथ साथ भूख भी मिटा देता है. जब भी निकोटिन की सप्लाई हमारे दिमाग में कम होती है, तभी हमें ईसकी ज़रूरत महसूस होने लगती है और फिर से स्मोकिंग करते ही सब अच्छा लगने लगता है.

युवाओं में फैलता सिगरेट का ट्रेंड-

आजकल हमारे समाज के युवा बहुत कम उम्र में ही ये सब शुरू कर देते हैं और इसका कारण है उनकी सोसाइटी. जब वे अपनी उम्र के लोगों को स्मोकिंग करते देखते है तो उनके मन में भी इसे ट्राई करने की इच्छा जाग उठती है. कई युवा अपनी मेच्योरिटी दिखाने के लिए भी स्मोकिंग करना शुरू कर देते हैं.

सिगरेट पीने वाले लोग यह साचते हैं कि स्मोकिंग करने से उनका दिमाग शांत हो जाता है व तनाव कम हो जाता है और तनाव से पीछा छुड़ाने के लिए ही अक्सर वे स्मोकिंग करते हैं परंतु ऐसा होता नहीं है क्यूंकि रिलेक्स होने की फीलिंग जल्द ही खत्म हो जाती है और फिर से स्मोकिंग करने को दिल मचलने लगता है.

घर या ऑफिस से उन्हें अनचाहा तनाव मिलते ही हल निकालने की बजाए वे स्मोकिंग करने लग जाते हैं जिससे की तनाव घटना नहीं बल्की और ज्यादा बढ़ जाता है.

कैसे छोड़ें सिगरेट-

अपना ज्यादा से ज्यादा समय परिवार और दोस्तों के साथ बिताएं और उन्हे अपनी इस आदत के बारे में बताएं जिससे की वे सब आपकी मदद कर पाएंगे.

कोशिश करें की आप सिगरेट पीने वाले लोगों के साथ भी न बैठें जिन्हे देख के आपका मन सिगरेट की ओर आकर्शित हो.

अगर आप भी करते हैं तंबाकू का सेवन तो हो जाइए सावधान

तंबाकू से बनी बीड़ी व सिगरेट में कार्बन मोनोऔक्साइड, थायोसाइनेट, हाइड्रोजन साइनाइड व निकोटिन जैसे खतरनाक तत्त्व पाए जाते हैं, जो न केवल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को जन्म देते हैं, बल्कि शरीर को भी कई खतरनाक बीमारियों की तरफ धकेलते हैं. जो लोग तंबाकू या तंबाकू से बनी चीजों का सेवन नहीं करते हैं, वे भी तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों खासकर बीड़ीसिगरेट पीने वालों की संगत में बैठ कर यह बीमारी मोल ले लेते हैं. इसे अंगरेजी भाषा में ‘पैसिव स्मोकिंग’ कहते हैं.

नुकसान ही नुकसान

तंबाकू के सेवन में न केवल लोगों की कमाई का ज्यादातर हिस्सा बरबाद होता है, बल्कि इस से उन की सेहत पर भी कई तरह के गलत असर देखने को मिलते हैं, जो बाद में कैंसर के साथसाथ फेफड़े, लिवर व सांस की नली से जुड़ी कई बीमारियों को जन्म देने की वजह बनते हैं. तंबाकू या सिगरेट का इस्तेमाल करने से सांस में बदबू रहती है व दांत गंदे हो जाते हैं. इस में पाए जाने वाला निकोटिन शरीर की काम करने की ताकत को कम कर देता है और दिल से जुड़ी तमाम बीमारियों के साथसाथ ब्लड प्रैशर की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है.

पहचानें कैंसर को

डाक्टर वीके वर्मा का कहना है कि पूरी दुनिया में जितनी तादाद में मौतें होती हैं, उन में से 20 फीसदी मौतों की वजह सिर्फ कैंसर है. गाल, तालू, जीभ, होंठ व फेफड़े में कैंसर की एकमात्र वजह तंबाकू, पान, बीड़ीसिगरेट का सेवन है. अगर कोई शख्स तंबाकू या उस से बनी चीजों का इस्तेमाल कर रहा है, तो उसे नियमित तौर पर अपने शरीर के कुछ अंगों पर खास ध्यान देना चाहिए.

अगर आप पान या तंबाकू का सेवन करते हैं, तो यह देखते रहें कि जिस जगह पर आप पान या तंबाकू ज्यादातर रखते हैं, वहां पर कोई बदलाव तो नहीं दिखाई पड़ रहा है. इन बदलावों में मुंह में छाले, घाव या जीभ पर किसी तरह का जमाव, तालू पर दाने, मुंह का कम खुलना, लार का ज्यादा बनना, बेस्वाद होना, मुंह का ज्यादा सूखना जैसे लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, तो तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जा कर अपनी जांच कराएं. बताए गए सभी लक्षण कैंसर की शुरुआती दशा में दिखाई पड़ते हैं.

बढ़ती तंबाकू की लत

अकसर स्कूलकालेज जाने वाले किशोरों व नौजवानों को शौक में सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते देखा जा सकता है. यह आदत वे अपने से बड़ों से सीखते हैं. सरकार व कोर्ट द्वारा सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करने पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है और अगर ऐसा करते हुए किसी को पाया जाता है, तो उस पर जुर्माना भी लगाए जाने का कानून है, लेकिन यह आदेश सिर्फ आदेश बन कर ही रह गया है. हम गुटका खा कर जहांतहां थूक कर साफसुथरी जगहों को भी गंदा कर बैठते हैं, जो कई तरह की संक्रामक बीमारियों की वजह बनता है.

पा सकते हैं छुटकारा

एक सर्वे का आंकड़ा बताता है कि 73 फीसदी लोग तंबाकू खाना छोड़ना चाहते हैं, लेकिन इस का आदी होने की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते हैं. अगर आप में खुद पर पक्का यकीन है, तो आप तंबाकू की बुरी लत से न केवल छुटकारा पा सकते हैं, बल्कि तंबाकू को छोड़ कर दूसरों के लिए भी रोल मौडल बन सकते हैं.

तंबाकू या उस से बनी चीजों का सेवन करने वाला शख्स अगर कुछ देर इन चीजों को न पाए, तो वह अजीब तरह की उलझन यानी तलब का शिकार हो जाता है, क्योंकि उस का शरीर निकोटिन का आदी बन चुका होता है. ऐसे में लोग तंबाकू के द्वारा निकोटिन की मात्रा को ले कर राहत महसूस करते हैं, लेकिन यही राहत आगे चल कर जानलेवा लत भी बन सकती है.

इन सुझावों को अपना कर भी तंबाकू की लत से छुटकारा पाया जा सकता है:

* तंबाकू की लत को छोड़ने के लिए अपने किसी खास के जन्मदिन, शादी की सालगिरह या किसी दूसरे खास दिन को चुनें और आदत छोड़ने के लिए इस दिन को अपने सभी जानने वालों को जरूर बताएं.

* कुछ समय के लिए ऐसी जगह पर जाने से बचें, जहां तंबाकू उपयोग करने वालों की तादाद ज्यादा हो, क्योंकि ये लोग आप को फिर से तंबाकू के सेवन के लिए उकसा सकते हैं.

* तंबाकू, सिगरेट, माचिस, लाइटर, गुटका, पीकदान जैसी चीजों को घर से बाहर फेंक दें.

* तंबाकू या उस से बनी चीजों के उपयोग के लिए जो पैसा आप द्वारा खर्च किया जा रहा था, उस पैसे को बचा कर अपने किसी खास के लिए उपहार खरीदें. इस से आप को अलग तरह की खुशी मिलेगी.

* तंबाकू की तलब होने के बाद मुंह का जायका सुधारने के लिए दिन में 2 से 3 बार ब्रश करें. माउथवाश से कुल्ला कर के भी तलब को कम कर सकते हैं.

* हमेशा ऐसे लोगों के साथ बैठें, जो तंबाकू या सिगरेट का सेवन नहीं करते हैं और उन से इस बात की चर्चा करते रहें कि वे किस तरह से इन बुरी आदतों से बचे रहे हैं.

* बीड़ीसिगरेट पीने की तलब महसूस होने पर आप अपनेआप को किसी काम में बिजी करना न भूलें. पेंटिंग, फोटोग्राफी, लेखन जैसे शौक पाल कर तंबाकू की लत से छुटकारा पा सकते हैं.

इस मुद्दे पर डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि अकसर उन के पास ऐसे मरीज आते रहते हैं, जो किसी न किसी वजह से नशे का शिकार होते हैं और वे अपने नशे को छोड़ना चाहते हैं. लेकिन नशे के छोड़ने की वजह से उन को तमाम तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है, जिस में तंबाकू या सिगरेट छोड़ने के बाद लोगों में दिन में नींद आने की शिकायत बढ़ जाती है और रात को नींद कम आती है.

सिगरेट छोड़ने वाले को मीठा व तेल वाला भोजन करने की ज्यादा इच्छा होती है. इस के अलावा मुंह सूखने का एहसास होना, गले, मसूढ़ों व जीभ में दर्द होना, कब्ज, डायरिया या जी मिचलाने जैसी समस्या भी देखने को मिलती है. इस की वजह से वह मनोवैज्ञानिक रूप से मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाता है.

ऐसी हालत में तंबाकू की लत के शिकार लोगों को एकदम से इसे छोड़ने की सलाह दी जाती है, क्योंकि धीरेधीरे छोड़ने वाले अकसर फिर से तंबाकू की लत का शिकार होते पाए गए हैं. तंबाकू छोड़ने के बाद अकसर कोई शख्स हताशा का शिकार हो जाता है. इस हालत में उसे चाहिए कि वह समयसमय पर किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह लेना न भूले.

अगर आप भी हैं सिगरेट पीने की आदत से परेशान, तो जरूर फौलौ करें ये टिप्स

युवा ये जानते हैं कि सिगरेट पीना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है लेकिन चाह कर भी उन्हें इस लत से छुटकारा नहीं मिल पाता. लेकिन ये संभव है. आज हम आपकों बताएंगे ऐसे उपाय जिनके इस्तेमाल से आप इस जानलेवा लत से छुटकारा पा सकते हैं.

  • जेब में सिगरेट की बजाय मुलेठी रखें. स्मोकिंग की इच्छा होने पर मुलेठी चबाएं. सिगरेट पीने की तलब कम हो जाएगी.
  • स्मोकिंग की तलब होने पर च्युइंगम चबाएं. इससे आपका मुंह भी बिजी हो जाएगा और सिगरेट पीने की तरफ से आपका ध्यान हट जाएगा.
  • अपनी डाइट में ओट्स को शामिल करें. ओट्स शरीर के टौक्सिन्स को बाहर निकालता है और स्मोकिंग की इच्छा को कम करता है.
  • आंवले के टुकड़ों में नमक मिलाकर सुखा लें. स्मोकिंग होने पर इनको चूस लें. इसमें मौजूद विटामिन सी निकोटिन लेने की इच्छा को कम करता है.
  • सिगरेट पीने की इच्छा हो तो दालचीनी चबाएं या इसका टुकड़ा मुंह में रखें. इसका स्वाद निकोटिन की इच्छा को कम करता है.
  • दिन भर में 6 से 8 गिलास पानी पीएं. इससे आपकी बॉडी हाइड्रेट रहती है साथ ही खतरनाक टौक्सिन भी बौडी से निकल जाते हैं.
  • बेकिंग सोडा बौडी में पीएच लेवल को मेंटेन करता है. जिससे निकोटिन लेने की इच्छा में भी कमी आती है. दिन में दो-तीन बार पानी में बेकिंग सोडा घोलकर पीएं.
  • जब सिगरेट पीने की तलब लगे तो एक चम्मच शहद चाट लें. ये स्मोकिंग से हुए नुकसान को ठीक करते हैं.

नामर्द भी बना सकता है तंबाकू

तंबाकू सभी जानते हैं कि हमारे देश में नौजवानों की आबादी ज्यादा है, पर आज के मौडर्न लाइफस्टाइल और बेफिक्रे स्वभाव का उन पर बहुत ज्यादा असर दिखता है. ऐसे में उन में तंबाकू का सेवन और बीड़ीसिगरेट पीने का चलन ज्यादा दिखता है. इस की लत इतनी ज्यादा खराब होती है कि चाह कर भी इस के चंगुल से बाहर निकल पाना मुश्किल होता है. इस से इन का शरीर और घरपरिवार धीरेधीरे सब खत्म हो जाता है. इस बारे में एसआरवी हौस्पिटल, चैंबूर, मुंबई की हैड और नैकओरल औंकोसर्जन डाक्टर खोजेमा फतेही कहते हैं कि तंबाकू के लगातार सेवन से कैंसर जैसी बीमारी होने के साथसाथ इनसान नामर्द भी बन सकता है,

क्योंकि तंबाकू के सेवन से दिमाग और नर्वस सिस्टम कमजोर हो जाता है. इस से इनसान के दिमाग से ले कर उस की सैक्स लाइफ पर बुरा असर पड़ता है. अगर इन बीमारियों से बचना है, तो इस की लत छोड़ने की जरूरत है. मुंह के कैंसर में बढ़ोतरी एक सर्वे में यह पाया गया है कि भारत में तंबाकू के सेवन से मुंह के कैंसर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिस में 90 फीसदी फेफड़ों के कैंसर और दूसरे कैंसर की वजह बीड़ीसिगरेट पीना ही है. दरअसल, ज्यादा बीड़ीसिगरेट पीने से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि ऐसा करने के चलते ब्लड प्रैशर में अचानक बढ़ोतरी होने से दिल को खून की सप्लाई में कमी हो जाती है. इस से दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है. इस के अलावा तंबाकू और बीड़ीसिगरेट के सेवन की वजह से औरतों और लड़कियों में पेट गिरने का खतरा बढ़ जाता है,

जबकि मर्दों में यह सब नामर्दी की वजह बनता है. तंबाकू है क्या दरअसल, तंबाकू में 4,000 से ज्यादा रसायन होते हैं. इन रसायनों में निकोटिन एक ऐसा रसायन है, जो इनसान को थोड़ी देर के लिए अच्छा महसूस करवाता है, इसलिए इनसान तंबाकू का सेवन करता है. निकोटिन के अलावा फिनाइल, नाइटोअमाइड, कार्बनमोनोऔक्साइड, डेनजिन वगैरह भी होते हैं, जिन का इनसान के शरीर पर बुरा असर पड़ता है, जिस में मुंह, होंठ, जबड़े, फेफड़े, गले, पेट, गुरदे और मूत्राशय का कैंसर होने का डर बना रहता है. खतरनाक होते हैं रसायन डाक्टर खोजेमा फतेही आगे कहते हैं कि तंबाकू एक ऐसा पदार्थ है, जिस में कई ऐसे रसायन हैं, जिन का इनसान की सेहत पर बुरा असर पड़ता है और जो उन्हें कई बीमारियों का शिकार बनाने के अलावा नामर्दी की ओर धकेलते हैं, खासकर नौजवान तबके को इस से बचना होगा, क्योंकि 80 फीसदी नौजवान तबका इस दलदल में फंस चुका है.

होता है बांझपन तंबाकू का सेवन करने वालों को इस का सेवन न करने वालों की तुलना में ज्यादा बांझपन का सामना करना पड़ता है. तंबाकू की वजह से अंडे और शुक्राणु का डीएनए खराब हो जाता है. प्रजनन समस्याओं का सामना करने वाले मर्दों के अलावा नशे की लत वाली औरतों और लड़कियों में भी पेट से होने की उम्मीद कम हो जाती है, क्योंकि अंडे के खराब होने के पीछे निकोटिन, कार्बनमोनोऔक्साइड और साइनाइड खास वजह होते हैं. शीघ्रपतन की समस्या ज्यादा बीड़ीसिगरेट पीने या तंबाकू के सेवन के चलते मर्दों में नामर्दी बढ़ती है. साथ ही, उन की सैक्सुअल लाइफ पर बुरा असर पड़ता है. उन में शीघ्रपतन की समस्या भी शुरू हो जाती है. ज्यादा मात्रा में तंबाकू का सेवन करने से धीरेधीरे उन की सैक्स ताकत में कमी आ जाती है. इलाज करें ऐसे इस तरह के नशे से खुद को छुड़ाने के लिए किसी संस्था या डाक्टर की सलाह लेना जरूरी है. किसी भी तरह के झाड़फूंक और पूजापाठ से बचें, ताकि आप को सही सलाह मिले और आप इस बुराई से दूर रह सकें.

पान मसाला : कम कीमत का जहर

लोग जितनी कीमत का पान मसाला रोज खा जाते हैं उस से कम खर्च में अपने घर की औरतों के लिए माहवारी में इस्तेमाल होने वाले सैनेटरी पैड खरीद सकते हैं.

पान मसाला खाने से सेहत को नुकसान होता है, जबकि सैनेटरी पैड का इस्तेमाल कर के घर की औरतों को अंदरूनी बीमारियों से बचाया जा सकता है. पान मसाले का प्रचार इस के सेवन को बढ़ाने का काम करता है.

दिल्ली प्रैस एक ऐसा प्रकाशन समूह है जो अपनी किसी भी पत्रिका में पान मसाले का प्रचार नहीं करता है. जब देश में तंबाकू मिले पान मसालों का प्रचार धड़ल्ले से होता था, तब भी दिल्ली प्रैस समूह पान मसाले का बिलकुल प्रचार नहीं करता था.

कोर्ट के बहुत सारे फैसले और बैन भी पान मसाले को बिकने से नहीं रोक पाए हैं. इस की सब से बड़ी वजह पान मसाले का होने वाला प्रचार है. सैरोगेट इश्तिहारों के जरीए समाज में इन का धड़ल्ले से प्रचार हो रहा है.

सब से बड़ी बात यह है कि समाज के हीरोहीरोइन समझे जाने वाले चेहरे और समाज को सही राह दिखाने वाला चौथा स्तंभ मीडिया भी इस प्रचार में बराबर का कुसूरवार है.

कानून ने तंबाकू मिले पान मसालों के प्रचार पर रोक लगाई है. अब पान मसाले का प्रचार करने वाले एक जगह छोटा सा ‘तंबाकू रहित’ लिख कर उसी पाउच का प्रचार करते हैं जिस में तंबाकू मिला पान मसाला बेचा जाता है.

कानून से बचने के लिए सैरोगेट इश्तिहार का सहारा केवल पान मसाले के प्रचार में ही नहीं, बल्कि शराब के इश्तिहार में भी दिखता है.

साल 1983 के आसपास की बात है. पान मसाला पाउच के रूप में बिकने के लिए बाजार में उतारा गया था. कम कीमत में लोगों तक पहुंचाने की होड़ में सभी एकदूसरे को पछाड़ने के लिए मैदान में उतर आए थे. उस समय इस की कीमत रिटेल बाजार में 50 पैसे प्रति पाउच से ले कर एक रुपए तक रखी गई थी. इसी कीमत में पान मसाला बनाने वाली कंपनी, छोटीछोटी दुकानों तक पान मसाला पहुंचाने वाले डीलरों और पान की दुकान वालों का फायदा भी शामिल होता है.

इस के अलावा बाजार में अपने सामान को सब से ज्यादा बेचने के लिए प्रचारप्रसार का खर्च भी करना पड़ता है. पान मसाला, सुपारी, कत्था, इलायची, केसर और तंबाकू को मिला कर बनाया जाता है. अगर साल 1983 और साल 2018 में इन सामानों की कीमत को देखा जाए तो यह अब तकरीबन कई गुना बढ़ चुकी है.

सरकार ने शुरुआत में इस कारोबार को हर तरह के टैक्स से भी अलग रखा था. पान मसाला कारोबार की तरक्की देख कर सरकार को लगा कि इस पर टैक्स लगा कर कमाई की जा सकती है.

इस के बाद गुटका और पान मसाला कारोबार पर टैक्स भी लगा दिया गया, पर इस के बाद भी गुटका और पान मसाला बनाने वालों ने इस की कीमत को बढ़ाने का जोखिम नहीं लिया था. उन को लगता था कि अगर गुटका और पान मसाला के दाम बढ़ जाएंगे तो लोग इस को खाना कम कर सकते हैं. कम कीमत के बावजूद भी यह उद्योग दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से तरक्की करता रहा.

आज के समय में सब से कम कीमत का पान मसाला 3 रुपए और सब से ज्यादा कीमत वाला पान मसाला 15 रुपए से ऊपर प्रति पाउच तक हो सकता है.

कम कीमत का राज

देश में पान मसाला और गुटका के 2,500 से ज्यादा ब्रांड बिकते हैं. यह कारोबार अब 500 अरब रुपए से भी ज्यादा का हो गया है.

सवाल उठता है कि जब गुटका और पान मसाला में डाली जाने वाली हर चीज के दाम बढ़ गए हैं तो इस की कीमत कम कैसे रखी जा रही है?

दरअसल, यही बात साबित करती है कि गुटका को सस्ती कीमत का जहर क्यों कहा जाता है. जानकारी के हिसाब से गुटका बनाने में 15 से 30 रुपए किलो मिलने वाली सुपारी और कत्था की जगह पर कम कीमत के गैंबियर का इस्तेमाल किया जाता है.

यह सामान मलयेशिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड से मंगाया जाता है. इन देशों में सुपारी को इतना खराब माना जाता है कि इस को सड़क बनाने में भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

गैंबियर एक किस्म का पत्थर होता है, जिस का इस्तेमाल चमड़ा उद्योग में चमड़े को रंगने में किया जाता है. गैंबियर चमड़े में खिंचाव पैदा करता है. जो गैंबियर चमड़े में खिंचाव पैदा कर सकता है, वह खाने वाले के मुंह का क्या हाल करता होगा, इस को आसानी से समझा जा सकता है.

इस उद्योग पर सरकार कुछ इस तरह से मेहरबान है कि इस के लिए कोई नियमकानून नहीं बनाया है. गैंबियर से कत्थे के पेस्ट को बनाने का काम भी किया जा रहा है जिस का इस्तेमाल पान की दुकान चलाने वाले भी पान लगाने में करते हैं.

पान मसाले को बनाने का काम कानपुर और गाजियाबाद में गलत तरीके से किया जा रहा है. पनवाड़ी महंगे कत्थे की जगह इस में सस्ते किस्म का कत्था पेस्ट इस्तेमाल करते हैं.

सेहत के लिए जहर

अमेरिका के हौकिंस इंस्टीट्यूट ने कानपुर के रीजनल कैंसर सैंटर और तिरुअनंतपुरम के डाक्टरों द्वारा देश के कुछ प्रीमियम पान मसालों और गुटकों की जांच कराई थी. जांच में इन सभी में कुछ न कुछ कैंसर बढ़ाने वाली वजहें पाई गई थीं. जांच में इन में गैंबियर भी पाया गया.

कैंसर इंस्टीट्यूट के डाक्टरों की रिपोर्ट भी यही कहती है कि गैंबियर ‘बकल म्यूकोसा’ को बढ़ाता है. इस से धीरेधीरे मुंह का खुलना बंद हो जाता है. मुंह के अंदर भूरे और सफेद रंग के चकत्ते पड़ जाते हैं. इस को खाने वाला ‘सबम्यूकस फाइब्रोसिस’ का शिकार हो जाता है. यही आगे चल कर कैंसर में बदल जाता है.

गैंबियर का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि यह मुंह के अंदर ज्यादा लार बनाता है. खतरनाक बात यह है कि गैंबियर का लंबे समय तक सेवन करने के चलते इस को छोड़ना आसान नहीं होता है.

पान मसाले और गुटके की लत मर्दों और औरतों में खतरनाक ढंग से फैल चुकी है. बच्चे और किशोरों के साथसाथ नौजवान भी इस की चपेट में आ चुके हैं. यही वजह है कि मुंह के कैंसर के मरीजों की तादाद 15 सालों में दोगुनी हो चुकी है. इन में बड़ी तादाद नौजवानों की है.

पान मसाला और गुटका बेचने वाले कई तरह की दूसरी बंदिशों का भी पालन नहीं करते हैं. कत्था पेस्ट तो बिना किसी तरह की जानकारी के बेचा जा रहा है.

कत्था पेस्ट के इन डब्बों और पाउचों पर बनाने वाली कंपनी का नाम, पता और कीमत तक नहीं लिखी रहती है. इस को किस चीज से बनाया गया है, इस में यह भी नहीं लिखा जाता है.

बेफिक्र सरकार

पान मसाला और गुटका कारोबार में तमाम तरह की गड़बडि़यों से सरकार बेफिक्र नजर आती है. पीने के पानी और दूसरी चीजों के लिए तमाम तरह के मानक तय किए गए हैं. सरकार ने गुटका कारोबार के लिए किसी तरह का मानक तय नहीं किया है. इस के चलते इस का कारोबार करने वाले कई तरह का खराब सामान इस में मिला देते हैं.

उत्तर प्रदेश में जब मायावती की सरकार थी, उस समय गुटका और पान मसाला के कारोबार को बंद करने का फैसला किया गया था.

मायावती सरकार अपने फैसले को अमल में लाती, इस के पहले उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था.

इस के बाद दूसरी सरकारों ने गुटका कारोबार पर पाबंदी लगाने के बारे में कोई नियमकानून नहीं बनाया. अगर पान और गुटका बनाने वाले इसी तरह खराब चीजों को इस में मिलाते रहे तो लोगों की जान जाती रहेगी.

पान मसाला के पाउच पर चेतावनी लिखने के बाद भी खाने वालों की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है. इस की वजह यह है कि गुटका और पान मसालों का प्रचार बहुत ही शानदार तरीके से किया जाता है.

कई इश्तिहारों में तो पान मसाला खाने को शान की बात बताई जाती है. इस को कामयाबी से भी जोड़ा जाता है. वहीं दूसरी ओर मीडिया में इस का प्रचार बहुत होता है. देश में बड़ीबड़ी जगहों पर भी इस का प्रचारप्रसार होता है.

जेब पर भारी कहने के लिए पान मसाला और गुटका की कीमत औसतन 3 रुपए से 5 रुपए प्रति पाउच होती है, पर यह नशा जेब पर भारी पड़ता है. दिनेश नामक एक लड़का बताता है, ‘‘मैं दिन में 25 पाउच गुटका खा जाता हूं. कुछ लोग तो एकसाथ 2-2 पाउच खाते हैं. इस तरह वे दिन में 75 से 100 रुपए के पाउच खा जाते हैं. यानी एक आदमी तकरीबन 100 रुपए का पान मसाला रोज खा जाता है.’’

गुटका खाने वाले गरीब और मिडिल क्लास परिवार के लोग होते हैं. उन के लिए 50 रुपए रोज का गुटका जेब पर भारी पड़ता है. महीने में कम से 1,500 से 3,000 रुपए का गुटका ये लोग खा जाते हैं. बहुत दिन गुटका खाने से बीमारियां भी हो जाती हैं. उन के इलाज में भी काफी रुपए खर्च हो जाते हैं.

अगर किसी को कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो जाती है तो उस का इलाज कराने के लिए घर और जमीन तक बेचने के हालात बन जाते हैं. इस तरह का नशा करने वाले अपनी सेहत के साथसाथ सामाजिक हालत को भी खराब करते हैं. इस को छोड़ना आसान होता है, केवल यह तय करना होता है कि इस का आदी शख्स इस नशे को छोड़ना चाहता है.

नशे को पूरी तरह से छोड़ने की कोई दवा नहीं होती है. नशा छोड़ने के बाद शरीर में कुछ बदलाव होता?है. शरीर पर इस के बुरे असर को दूर करने के लिए दवा दी जाती है.

पान मसाला से ज्यादा जरूरी है सैनेटरी पैड

‘नई रोशनी’ संस्था को चलाने वाली सोनिया सिंह कम कीमत पर माहवारी में इस्तेमाल होने वाले सैनेटरी पैड तैयार कर के जरूरतमंद औरतों को देती हैं. पान मसाला और सैनेटरी पैड की तुलना को ले कर उन से 3 सवाल :

लोगों को आप कैसे समझाती हैं?

हम ने अपनी संस्था की लड़कियों का एक नाटक तैयार किया है. हम उस को जगहजगह दिखाते हैं. इस के जरीए सैनेटरी पैड की जरूरत को समझाते हैं. इन का इस्तेमाल न करने से किस तरह की बीमारियों का खतरा होता?है, यह बताते हैं.

लोगों पर क्या असर पड़ता है?

पान मसाला एक तरह का नशा होता है. हमारे बताने पर लोग सहमत तो होते हैं, पर यह बात उन को ज्यादा समय तक याद नहीं रहती है. आदमी ही नहीं, बल्कि औरतों को भी यह याद नहीं रहता कि उन के लिए सैनेटरी पैड पान मसाला खाने से ज्यादा जरूरी है.

खर्च की तुलना करें तो कितना फर्क आता है?

पान मसाला खाना वाले लोग कम से कम 50 रुपए से 100 रुपए हर रोज खर्च करते हैं जबकि सैनेटरी पैड में यह खर्च पूरे महीने का होता है. हम यही बात सब को समझाते हैं. बारबार समझाने से इस का अच्छा असर पड़ रहा है.

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