आपकी सेक्स लाइफ बिगाड़ रहा है स्मार्टफोन

आजकल शायद ही कोई घर ऐसा होगा जिसमें स्मार्टफोन ना हो. इतना ही नहीं,  लोगों का ज्यादातर समय स्मार्टफोन पर ही बीतता है, लेकिन शायद आप में से कम लोग जानते हैं कि आजकल विवाहित पुरुषों को संभोग से ज्यादा स्मार्टफोन भा रहा है और वे फोन पर ज्यादा समय बिताते हैं. यह बात एक ताजा सर्वे में सामने आई है.

इस सर्वेक्षण में साफ-साफ कहा गया है कि आजकल पुरुषों को अपनी पत्नी से ज्यादा गैजेट्स रास आ रहे हैं. यह शोध कंडोम बनाने वाली मशहूर कंपनी ड्यूरेक्स ने कराया था और इसे ब्रिटेन में कराया गया है, जिसमें 40 प्रतिशत पत्नियों ने कहा कि रात को उनके पति अपना समय अपने स्मार्टफोन को दे देते हैं जो कि उन्हें देना चाहिए जिसके कारण उन्हें सेक्स में बाधा उत्पन्न होती है.

इस शोध में 30 प्रतिशत दम्पत्तियों ने माना कि अक्सर प्रेम के क्षणों में स्मार्टफोन बाधा बन जाता है और 30 प्रतिशत पत्नियों ने कहा कि जब सेक्स के वक्त फोन और उनमें से उनके पति को किसी एक को चुनना होता है तो उनके पति स्मार्ट फोन को चुनते हैं. उनका कहना होता है कि फोन पर लोगों को उत्तर देना सेक्स से ज्यादा जरूरी है.

शोध में यह भी खुलासा हुआ कि एक चौथाई जोड़े सेक्स के दौरान गैजेट्स का उपयोग यौन क्रिया को फिल्माने के लिए करते हैं, जबकि 40 फीसदी लोग तस्वीरें क्लिक करते हैं, हालांकि शोध में साफ कहा गया है कि पति-पत्नी को बेडरूम में गैजेट्स नहीं ले जाना चाहिए. कभी-कभी इस तरह के प्रयोग घर में अप्रिय विवाद को जन्म देने के लिए पर्याप्त होते हैं.

सैक्स एजुकेशन : इशारों में बात करने का समय नहीं रहा

हिंदी फिल्म ‘पति, पत्नी और वो’ के एक सीन में हीरो कार्तिक आर्यन बोलता है, ‘‘बीवी से सैक्स मांग लें तो हम भिखारी. बीवी को सैक्स के लिए मना कर दें तो हम अत्याचारी. और किसी तरह जुगाड़ लगा के उस से सैक्स हासिल कर लें तो बलात्कारी भी हम हैं.’’

इस संवाद पर बवाल हुआ था और बहुत से लोगों को यह एतराज था कि इस तरह के संवाद मैरिटल रेप (शादी के बाद पत्नी के साथ जबरदस्ती या बहलाफुसला कर सैक्स करना) को बढ़ावा देता है और मर्दों की घटिया सोच को भी दिखाता है. कोई भी मर्द सैक्स पाने के लिए भिखारी, अत्याचारी और यहां तक कि बलात्कारी भी बन सकता है.

क्या वाकई ऐसा है? क्या जब कोई लड़की ‘नो मींस नो’ बोलती है, तो मर्द को सम?ा जाना चाहिए कि उसे अपनी हद नहीं पार करनी चाहिए? लेकिन क्या लड़कियों, खासकर भारतीय समाज में जहां लड़की को मर्दवादी सोच के चलते दोयम दर्जे का सम?ा जाता है, को इतनी सम?ा भी है कि वे सैक्स के लिए कब हां करनी और कब मना करना है, पर अपनी राय मजबूती के साथ रख सकें?

शायद नहीं, तभी तो भारत में सैक्स को ले कर आज भी उतनी गंभीरता से बहस नहीं होती है, जितनी पश्चिमी देशों में. यही वजह है कि जब पतिपत्नी या कोई और जोड़ा बिस्तर पर होते हैं, तो वे सैक्स पर अपनी बात कहने से घबराते हैं.

लड़की को लगता है कि अगर कहीं वह ज्यादा खुल गई, तो उसे धंधे वाली या सैक्स के लिए उतावली सम?ा लिया जाएगा. लड़का भी यही सोच कर चुप्पी साध लेता है कि अगर कहीं लड़की ने बोल दिया कि उसे मजा नहीं आया, तो वह अपना मुंह कैसे उसे दिखा पाएगा.

भारत में अमूमन घरों में भी औरतें या मर्द आपस में ऐसे जुमले बोलते हैं कि सैक्स को ले कर बात भी हो जाती है और किसी को भनक तक नहीं लगती है. बड़ी औरतें नई ब्याही लड़की से जब पूछती हैं कि पति से ‘सही’ निभ रही है न, तो इस ‘सही’ का मतलब यही होता है कि सैक्स लाइफ में कोई दिक्कत तो नहीं है.

सुहागरात पर ‘बिल्ली मारना’ मुहावरा भी यही बात कहता है कि पति को पहली रात को ही अपनी मर्दानगी का नमूना दिखा देना चाहिए, ताकि पत्नी उम्रभर उस के काबू में रहे. ‘सुहागरात पर दूध का असर हुआ या नहीं’, ‘मैं ने तो हनीमून पर छत और पंखा ही देखा’, ‘पलंग सहीसलामत है न’, ‘पति ने छतरी का इस्तेमाल किया या नहीं’ जैसे बहुत से वाक्य हैं, जो सैक्स लाइफ को ही कोडवर्ड में बयां करते हैं.

दरअसल, भारत में सैक्स ऐजूकेशन की कमी के चलते ऐसा है. बच्चों को जो जानकारी परिवार के बड़े लोगों से आसान भाषा में सहज रूप से मिलनी चाहिए, वह नदारद है. परिवार में सैक्स पर बात करना अच्छा नहीं माना जाता है.

लेकिन बच्चे अपनी जिज्ञासा के चलते कहीं से तो जानकारी लेंगे ही, फिर वे उन के दोस्त हों या सोशल मीडिया, अधकचरी जानकारी को ही वे सही मान लेते हैं. इस का नतीजा भयावह भी हो सकता है.

उदाहरण के तौर पर, हमारे समाज में यह सोच बनी हुई है कि अगर सुहागरात पर सैक्स करने के दौरान अगर लड़की के खून नहीं आया तो वह कुंआरी नहीं है, बल्कि खेलीखाई है. पर हकीकत इस से अलग भी हो सकती है, क्योंकि लड़की के अंग की ?िल्ली तो किसी और वजह जैसे खेलकूद या साइकिल चलाने से भी टूट सकती है.

इसी तरह अगर कोई लड़का शादी की पहली रात को अपने साथी को सैक्स का पूरा सुख नहीं दे पाया या वह सैक्स करने में ही नाकाम रहा, तो वह खुद को नामर्द मान लेता है और फिर तनाव में जीने लगता है, जबकि इन दोनों समस्याओं का समाधान उस जोड़े की आपसी बातचीत से ही निकल सकता है.

हाल के सालों में टैलीविजन के इश्तिहारों में माहवारी और कंडोम को ले कर जो खुलापन दिख रहा है, पहले वैसा नहीं था. यहां तक कि ब्रा और पैंटी के इश्तिहार भी छिपेछिपाए से होते थे. इश्तिहार तो बदल गए, पर समाज की सोच अभी भी पुरानी ही है.

मांबाप को आज भी यह लगता है कि अगर उन के बच्चों को कम उम्र में ही सैक्स की जानकारी मिल गई, तो वे उसे अपनी नादानी में आजमाना चाहेंगे, पर ऐसा नहीं है. अगर उन्हें अपने मांबाप से ही सटीक जानकारी मिलने लगेगी तो उन की सैक्स को ले कर फैंटेसी से भी परदा हटने लगेगा. सरकार जो खर्चा एड्स जैसी बीमारियों से जागरूक बनाने के लिए कर रही है, उसे अगर सैक्स ऐजूकेशन पर खर्च करे तो ऐसी बीमारियां बहुत कम पनपेंगी.

लिहाजा, इशारों की भाषा में सैक्स को  सम?ाने के दिनों को अब भूल जाना चाहिए और साफ और सरल अंदाज में बच्चों को इस की तालीम देनी चाहिए. यह परिवार और सरकार दोनों की बराबर की जिम्मेदारी है. फिर किसी मर्द को भिखारी, अत्याचारी या बलात्कारी बनने की नौबत ही नहीं आएगी.

सैक्स और ताकत की दवा, जरा संभल कर करें इस्तेमाल

“भैया, आप से एक बात करनी है,” 25 साल के मदन ने अपने बड़े भाई जैसे दोस्त जितेंद्र से एक दिन अचानक कहा.

“बोलो, क्या बात है?” जितेंद्र बोला.

“भैया, आप शादीशुदा हैं, इसलिए जरूर समझेंगे. यह थोड़ी निजी समस्या है. आप इसे गंभीरता से लेना,” मदन धीरे से बोला.

जितेंद्र ने कहा, “ज्यादा पहेली न बुझाओ. गर्लफ्रैंड का चक्कर है क्या?”

मदन बोला, “हां, पर समस्या गर्लफ्रैंड से नहीं है. वहां तो सब सही है, लेकिन मैं जब भी सैक्स करता हूं तो बिना ताकत की दवा के मजा ही नहीं आता है. बिना उस के तो मैं जल्दी पस्त हो जाता हूं, पर दवा लेते ही घोड़ा बन जाता हूं.”

“तो समस्या क्या है?” जितेंद्र ने पूछा.

“कहीं मुझे ताकत की दवा लेने की लत तो नहीं लग गई है?” मदन ने अपने दिल की बात रखी.

“अच्छा, तो यह बात है. देखो मदन, मुझे लगता है कि तुम मन से यह मान चुके हो कि बिना ताकत की दवा के सैक्स का पूरा मजा ले ही नहीं सकते हो. अपनी गर्लफ्रैंड पर मर्दानगी जताने के लिए तुम ऐसा कर रहे हो. तुम्हें लगता है कि अगर गर्लफ्रैंड प्यासी रह जाएगी, तो वह तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी,” जितेंद्र ने कहा.

“यही बात मुझे खाए जा रही है भैया. मैं अब इस जंजाल से निकलना चाहता हूं. मेरा खुद पर से यकीन कम होता जा रहा है. मुझे इन दवाओं से छुटकारा दिखाओ,” मदन असली मुद्दे पर आया.

“एक दोस्त होने के नाते मैं तुम्हें यही सलाह दूंगा कि इस तरह की ताकत की दवाएं तुम किसी माहिर डाक्टर की सलाह पर ही लेना. मुझे लगता है कि सैक्स को ले कर तुम में आत्मविश्वास की कमी है. हर किसी के साथ ऐसा हो सकता है कि उस में सैक्स करने की नाकामी का डर बैठ जाए,” जितेंद्र ने अपनी सलाह दी.

यह समस्या अकेले मदन की नहीं है, बल्कि बहुत से नौजवान, यहां तक कि अधेड़ और बूढ़े भी अपनी मर्दानगी बढ़ाने, लंबे समय तक सैक्स का मजा लेने और अपने पार्टनर के सामने शर्मिंदा न हों, इस डर से सैक्स की ताकत बढ़ाने की दवा का इस्तेमाल बिना किसी डाक्टरी सलाह के करते हैं.

आमतौर पर सैक्स की ताकत बढ़ाने वाली दवाएं अपना काम कर देती हैं, लेकिन इन का असर सभी पर एक जैसा पड़े, यह जरूरी नहीं है. होता क्या है कि ऐसी दवाएं शरीर में नाइट्रिक औक्साइड की मात्रा बढ़ा देती हैं, जिस से नसें मोटी हो जाती हैं और शरीर में खून का दौरा बढ़ जाता है. इस से अंग में तनाव में पैदा हो जाता है.

लेकिन बहुत से लोगों में ऐसी दवाओं के सेवन के बाद साइड इफैक्ट भी देखे गए हैं, जैसे सिरदर्द होना, चक्कर आना, देखने में कमी आना, गरमी लगना, नाक का बंद होना, जी मिचलाना वगैरह.

पर ये सामान्य लक्षण होते हैं. कई बार समस्या गंभीर भी हो जाती है, जिस में सीने में दर्द, दिखना बंद होना, सांस लेने में दिक्कत, घुटन महसूस होना, चेहरे पर सूजन की समस्या पैदा हो जाती है.

लिहाजा, जिन लोगों को सीने में दर्द की समस्या रहती है, तो उन्हें इस तरह की दवाओं का सेवन करने से बचना चाहिए. अगर किसी को हार्ट अटैक या फिर स्ट्रोक हो चुका है, तो वह ऐसी दवा का इस्तेमाल न करे.

अगर कोई ब्लड प्रैशर की दवा ले रहा है या किसी को डाइबिटीज है, तो भी इस का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. किडनी की परेशानी है, तो बिना डाक्टरी सलाह के इस का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

प्लास्टिक, कौस्मैटिक सर्जन और एंड्रोलौजिस्ट डाक्टर अनूप धीर ने बताया, “इस तरह की हर दवा का अपना फायदा और नुकसान होता है. लिहाजा, डाक्टर की सलाह पर ही दवा का सेवन करना चाहिए, क्योंकि वह बेहतर जानता है कि कौन सी दवा कितने समय तक लेनी चाहिए.

“डाक्टर ने जितने समय के लिए ऐसी दवा लेने की सलाह दी है, उस के बाद सेवन नहीं करना चाहिए. एक और बात कि इन दवाओं की लत नहीं लगती है, पर कुछ लोग इन के आदी हो जाते हैं, जो सही नहीं है.”

भारत जैसे देश में तो यह समस्या और ज्यादा गंभीर हो जाती है, जहां सैक्स जैसे मुद्दे पर खुल कर बातें नहीं होती हैं, तभी तो लोग ऐसी दवाओं का इस्तेमाल बिना सोचेसमझे करते हैं.

बहुत से लोग तो कैमिस्ट के पास जा कर भी दवा नहीं मांग पाते हैं, तो वे ऐसी दवाएं औनलाइन खरीद लेते हैं, जहां पता ही नहीं चल पाता है कि औनलाइन कंपनी सही है या नहीं. फिर बिना डाक्टरी सलाह के बहुत से लोग अपनी डोज बढ़ा देते हैं, जो कई बार जानलेवा साबित हो सकती है.

बहुत से लोग तो सड़कछाप नीमहकीम की शिलाजीत के नाम पर खरीदी गई चटनी, नीलीपीली गोलियों और मर्दाना तेल को ही सैक्स की ताकत बढ़ाने का फार्मूला मान लेते हैं और पैसे व सेहत से लुट जाते हैं.

चैटिंग से सैक्सटिंग तक काम आएंगे ये इमोजी

सैक्ंिस्टग का अपना मजा होता है. ऊपर से इमोजी इसे दोगुना कर देते हैं पर तभी जब अपने इमोशन के लिए सही इमोजी का यूज करना आता हो. जानें ऐसे ही इमोजी के बारे में. कहते हैं परफैक्ट पिक्चर वही है जो आप के हजारों शब्दों को बयां कर दे.

सोशल मीडिया ने कम्युनिकेशन के तमाम रास्ते खोले हैं. अब गलीमहल्ले के दायरों से दूर सोशल मीडिया पर प्यार के कई रास्ते खुल गए हैं. इन्हीं पर चलते हुए लव रिलेशनशिप बने हैं, पके हैं और कुछ तनातनी के बाद टूट भी गए हैं. रिलेशनशिप के बनने और टूटने के बीच एक समय ऐसा भी होता है जब प्यार सातवें आसमान पर रहता है.

चांद सा मुखड़ा, सोलहसत्रह सितारे तोड़ने के वादे के बाद जिस्म की खुशबू और गरमी के एहसास की इच्छा करती है, यानी इंटिमेसी हाई रहती है.  हर बात डबल मीनिंग सी महसूस होती है, बात पैरों की पायल और हाथ के कंगन से ऊपर बढ़ जाने की होती है. इन बातों में जिस्म के उतारचढ़ाव का जिक्र होने लगता है, एक हद पार कर जाने का मन करने लगता है, यानी सैक्ंिस्टग करने का मन करता है. सैक्ंिस्टग यानी ऐसी चैटिंग जिस में सैक्स टौक हो.  पर समस्या यह है कि सोशल मीडिया पर चैट करते हुए अपनी बातों को कैसे सामने रखा जाए कि वल्गर भी न लगे और बात इजिली कन्वे हो जाए, वह भी बिना लागलपेट के.

अच्छी बात यह है कि आज चैटिंग करते हुए तमाम सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स ऐसे ‘इमोजी’ के औप्शंस साथ में देते हैं जिस से आप अपने इमोशन को दिखा सकते हैं. गूगल वैब के अनुसार, ‘इमोजी’ का मतलब एक छोटी डिजिटल छवि या आइकन, जिस का यूज किसी इमोशन को व्यक्त करने के लिए किया जाता है. ‘इमोजी’ शब्द जापानी भाषा से आया है. जैपनीज में ‘इ’ का अर्थ होता है ‘चित्र’ और ‘मोजी’ का अर्थ होता है वर्ड. व्हाट्सऐप में देखेंगे तो चैट करते हुए यह बाईं तरफ होता है.

आजकल इसे अपडेट कर लिया गया है तो साथ में जीआईएफ इमेज का भी औप्शन दिखाई देता है. वहीं, अगर इंस्टाग्राम की बात करें तो यह मैसेज करते हुए दाईं तरफ स्पीकर व पिक्चर की साइड में होता है. यहां इमोजी पहले से एडवांस हो गए हैं. अब स्टीकर इमोजी भी देखने को मिल जाते हैं. पर खास बात यह है कि हर बात को एक्सप्रैस करने का एक तरीका होता है.

आप अगर अपने पार्टनर से सैक्सटिंग कर रहे हैं तो सही इमोजी भेजना जरूरी है वरना हीट एंड हौट कन्वर्सेशन में इमोशन दबे रह जाते हैं. मस्क्ल्युलिन इमोजी सैक्सटिंग कपल के बीच प्राइवेट कन्वर्सेशन होती है. बहुत बार चैट करते हुए इमोजीबौक्स में दिखाए गए इमोजी समझ से बाहर हो सकते हैं कि इन का काम क्या है. लेकिन यदि कपल अच्छे मूड में हैं तो कुछ इमोजी हैं जिन का इस्तेमाल वे अपने कन्वर्सेशन में कर सकते हैं.

मेल पेनिस के रिप्रेजेंटेशन करने के लिए किसी भी लंबे, फौलिक साइज वाले इमोजी का यूज किया जा सकता है. इस के लिए वे चीजें भी यूज की जा सकती हैं जो खाने की होती हैं. जैसे, बैगन, हौट डौग, केला, ब्रैड का लंबा टुकड़ा, गाजर, मक्का, सांप, मुरगा. फिमाइन इमोजी चैट करते हुए ऐसी कई इमोजी हैं जो इनडायरैक्ट फीमेल जेनेटल को रिप्रेजेंट करती हैं. इन सब का इस्तेमाल वैसे तो किसी भी तरह से किया जा सकता है पर बात जब सैक्ंिस्टग की आती है तो ये इमोशन को सीधे कन्वे कर देते हैं. जैसे ट्यूलिप, पीस सिंबल, टाको, शहद का पौट, सुशी, कुकीज, बिल्ली.

अन्य हिस्सों को ले कर शरीर के दूसरे हिस्सों के लिए अधिकांश ऐसी ढेर सारी इमोजी हैं जो होती तो अलग हैं लेकिन उन्हें सैक्ंिस्टग करते हुए बराबर यूज किया जा सकता है. जो कपल के रोमांच को बढ़ाने का ही काम करते हैं, जैसे आड़ू से ले कर नाशपाती और सेब तक के आकारों का यूज किया जा सकता है. जैसे पीच, सेब, नाशपाती, चेरी, ओके सिंबल, डोनट. प्ले बौल एमोजी बहुत सारी बातें ऐसी होती हैं जिन पर शुरुआत करते हैं तो हिचकिचाहट हो सकती है.

ऐसे में सिंबल का यूज किया जा सकता है जिस से बात कन्वे भी हो जाए और सामने पार्टनर को आक्वर्ड भी न लगे. जैसे, ब्रैस्ट के बारे में बात करते हुए ऐसे सिंबल के बारे जिक्र किया जा सकता है जिस से इमोशन समझ आ जाए. जैसे चेरीज, 2 तरबूजों का जोड़ा, शौकर बौल, बास्केट बौल. एक्सप्लोसिव इमोजी, दे सेम फील जब क्लाइमैक्स की बात आती है तो हिंदी में ऐसे वर्ड नहीं हैं जो सही हों और कहते हुए ठीक लगें.

इस के लिए ऐसे इमोजी का यूज किया जा सकता है जो चैट में भेजते हुए आप के इमोशन को बयां कर सकें, जैसे, फायरवर्क्स, एक्सप्लोजन, बौम्ब, रौकेट शिप, पोपिंग शैंपेन बौटल, माइंड ब्लोइंग फेस, पानी की बूंदें. अन्य इमोजी कुछ ऐसी इमोजी हैं जो सैक्ंिस्टग करते हुए जरूर काम का सकती हैं. इन के मीनिंग तभी सटीक बैठेंगे जब सही जगह इस्तेमाल किए जाएं. जैसे जीभ, लौलीपौप, स्पैकिंग, शौवर सैक्स, रैसिप्रोकल ओरल सैक्स.

डिजिटल ऐरा में डेटिंग ऐप्स एंड रिलेशनशिप

भारतीय युवाओं के लिए डेटिंग ऐप्स किसी डेटिंग क्रांति से कम नहीं हैं. यहां अपने लिए पार्टनर आसानी से ढूंढ़े जा सकते हैं. ये ऐप्स युवाओं के लिए कन्वीनिएंट हैं पर तभी जब सिर्फ पार्टनर ढूंढ़ने का माध्यम समझा जाए, सही पार्टनर ढूंढ़ना आप की अंडरस्टैंडिंग पर निर्भर करेगा. वक्त बदल रहा है, दुनिया बदल रही है और उस के साथ बदल रहे हैं प्यार ढूढ़ने के तरीके. इंटरनैट और सोशल मीडिया के इस दौर में यंगस्टर्स अपने सराउंडिंग से कटते जा रहे हैं.

घर की चारदीवारी से बाहर निकलना बड़ा एक्सपैंसिव हो गया है. ऐसे में उन के लिए गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड ढूंढ़ना मुश्किल होता जा रहा है. रिश्तों की तलाश के दायरे बढ़ते जा रहे हैं. गलीमहल्ले से निकल कर यंगस्टर्स दुनियाभर में अपने कुछ वक्त या लाइफटाइम के लिए पार्टनर की तलाश कर रहे हैं.

यही वजह है कि यंगस्टर्स अब सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स का सहारा ले रहे हैं. यह एक अच्छा माध्यम है दुनियाभर के लोगों से जुड़ने का. टिंडर, बंबल, मिंगल और हिंगे जैसे डेटिंग ऐप्स प्यार और रोमांस के पारंपरिक तरीके से हट कर नए मौके दे रहे हैं. भारत में डेटिंग ऐप्स पिछले कुछ सालों से ज्यादा ऐक्टिव हुए हैं, खासकर कोरोना के वक्त से जब लोगों का घर से बाहर निकलना नामुमकिन था.

उस वक्त यंगस्टर्स अपनी बोरियत दूर करने के लिए लोगों को औनलाइन तलाश कर रहे थे. कोरोना महामारी ने यंगस्टर्स की आदतों को भी हमेशा के लिए बदल दिया है. अधिक से अधिक भारतीय युवा, यहां तक कि छोटे शहरोंकसबों के भी, प्यार और साथ पाने के लिए डेटिंग ऐप्स पर भरोसा कर रहे हैं. एकदूसरे को जानने के लिए पर्सनली मिलने के बजाय वीडियो कौल को चूज कर रहे हैं और फिर लोगों से मिल रहे हैं.

जैसेजैसे भारत में डेटिंग कल्चर बढ़ा, वैसेवैसे ही डेटिंग ऐप्स की लोकप्रियता भी बढ़ी. लोग नए मौके तलाश रहे हैं. वे स्कूलकालेजों से निकल कर नैशनल और इंटरनैशनली डेटिंग के अनुभव तलाश रहे हैं. सोशल ऐक्सेप्टेंस से बदलता नजरिया डेटिंग ऐप्स अब भारतीय सोसाइटी का एक हिस्सा बन गए हैं.

यंगस्टर्स, एडल्ट, नौकरीपेशा भी कैजुअल डेटिंग या लाइफपार्टनर ढूंढ़ने के लिए इन प्लेटफौर्मों का इस्तेमाल कर रहे हैं और वे कामयाब भी हो रहे हैं. अपने मनपसंद पार्टनर, जिन से उन के विचार मिलते हों, पाने के लिए वे इन प्लेटफौर्मों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं. एक वक्त था जब आप के मम्मीपापा जिद पर अड़ जाते थे कि आप का लाइफपार्टनर वे ही ढूंढ़ेंगे.

बदलते वक्त के साथ अब मांबाप इस की जिम्मेदारी बच्चों पर छोड़ने लगे हैं, इस के लिए वे खुद यंगस्टर्स को डायरैक्टइनडायरैक्ट डेटिंग ऐप्स का हिंट कर देते हैं. इस से यह दिखता है कि सोसाइटी भी इसे ऐक्सैप्ट करने लगी है. टिंडर ने जिस तरह डेटिंग ऐप्स की एक नकारात्मक छवि सोसाइटी में तैयार की थी, अब वह बदल गई है. टिंडर वैस्टर्न डेटिंग तौरतरीकों के लिए ज्यादातर फेमस था.

विदेश में इस ने खूब कामयाबी पाई. हालांकि इस का इस्तेमाल करने वाले भारत में भी रहे. इस में ओवरएक्सपोजर और वल्गैरिटी भी थी. लेकिन भारत में आने वाले बंबल, हिंगे, ट्रूली मैडली और मिंगल जैसे ऐप्स लगातार इस छवि को सुधारने में लगे हैं और डेटिंग ऐप्स को एक मींटिगरूम बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिस में ये कामयाब भी रहे हैं.

क्यों इस्तेमाल करें डेटिंग ऐप्स अब बात आती है कि क्यो करें डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल? भारत में कितने ही लोग अब औनलाइन डेटिंग ऐप्स की दुनिया में कदम रख रहे हैं. 27 साल की सुधा मिंगल पर ऐक्टिव है, वह कहती है कि असल जिंदगी में आप के पास औप्शन कम होते हैं. आजकल सब की अपनीअपनी प्रायोरिटी होती है. अपनीअपनी पार्टनर प्रेफरैंस होती है जिसे ढूंढ़ पाना आसान नहीं होता. इसलिए डेटिंग ऐप्स का सहारा लेना कन्वीनिएंट लगता है.

औनलाइन डेटिंग ऐप्स आप को कामयाबी मिलने की गारंटी नहीं देता क्योंकि ऐप्स सिर्फ एक मुलाकात का जरिया है. इस के अलावा कुछ नहीं. वैसे भी, यह पूरी तरह आप पर ही निर्भर करता है. भारत में इस का विरोध करने वालों की भी कमी नहीं है. उन के अनुसार डेटिंग का मतलब सैक्स या शादी. अकसर इसीलिए इस का विरोध होता आया है लेकिन वक्त के साथसाथ ये धारणाएं भी बदल रही हैं और भारत में डेटिंग ऐप्स के यूजर्स लगातार बढ़ रहे हैं.

भारत में डेटिंग ऐप यूजर भारत दुनिया का 5वां सब से तेजी से बढ़ने वाला डेटिंग ऐप बाजार है. यहां इसे इस्तेमाल करने वाले हर साल लाखों खर्च करते हैं, जो कि वैश्विक औसत 12 फीसदी की सालदरसाल वृद्धि से कहीं अधिक है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय कंजूमर ने डेटिंग और फ्रैंडशिप ऐप्स पर दिसंबर 2022 तक 9.9 मिलियन डौलर खर्च किए.

यह 2021 की तुलना में दोगुने से भी अधिक था. यंगस्टर्स ज्यादा स्वाइप या परफैक्ट मैच पाने के लिए और अपनी प्रोफाइल की रीच बढ़ाने के लिए इन ऐप्स की सर्विस खरीदने के लिए पैसे खर्च करते हैं. यह नंबर लगातार बढ़ता जा रहा है और भविष्य में इस के और बढ़ने की पौसिबिलिटी है. इस्टेटिस्टा डौट कौम ने भारत में औनलाइन डेटिंग का कारोबार 2021 में 454 मिलियन डौलर से बढ़ कर 2024 तक 783 मिलियन डौलर तक पहुंचने की उम्मीद जताई थी.

फिलहाल डेटिंग ऐप्स भारत की कुल आबादी के 2.2 फीसदी तक पहुंचते हैं, जिस के 2024 तक 3.6 फीसदी होने का अनुमान है. 5 वर्षों पहले तक लगभग 20 मिलियन भारतीय डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते थे और अब यह आंकड़ा 293 फीसदी की भारी वृद्धि के साथ 2023 में 82.4 मिलियन तक पहुंच गया. डेटिंग ऐप्स के इस्तेमाल में वृद्धि विशेष रूप से मैट्रो शहरों के बाहर काफी ज्यादा हो रही है जहां अब टिंडर, बंबल और ट्रूली मैडली जैसे डेटिंग ऐप्स के 70 फीसदी उपयोगकर्ता हैं और यह नंबर लगातार बढ़ रहा है. सावधानी भी जरूरी आज देश में डेटिंग को ले कर माहौल बदल रहा है.

डेटिंग का डिजिटलाइजेशन होने की वजह से उस में धोखाधड़ी भी उतनी ही व्यापक है जितनी कि सामान्य दुनिया में. इसलिए सावधानी के साथ इस का इस्तेमाल करते हुए बदलती दुनिया के साथ तालमेल बैठाना चाहिए. भारतीय युवाओं के लिए डेटिंग ऐप्स किसी डेटिंग क्रांति से कम नहीं हैं जहां लड़केलड़कियों को एकसाथ दिख भर जाने से सवाल खड़े होते हैं. ऐसे में इन ऐप्स का इस्तेमाल युवा पीढ़ी को बड़ा कन्वीनिएंट लगता है, लेकिन हां. सावधान रहने की जरूरत है.

मनगढ़ंत बातों के जाल में फंसा सैक्स

हाल में कहीं पढ़ा था कि इनसान के पूर्वज माने जाने वाले चिंपांजी जब आपस में मिलते थे, तब वे सैक्स कर के एकदूसरे का स्वागत करते थे. इस बात से समझा जा सकता है कि सैक्स किसी भी जीव के बहुत जरूरी होता है और इस से मिलने वाली खुशी और मजे को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.

यह भी दावा किया जाता है कि हफ्ते में 2 से 3 बार सैक्स करने से इनसान की बीमारी से लड़ने की ताकत बढ़ जाती है. अच्छी नींद के लिए सैक्स बहुत अच्छी दवा माना जाता है. अगर वर्तमान की बात करें तो अभी इसी पल में दुनिया के 25 फीसदी लोग सैक्स के बारे में सोच रहे होंगे.

पर इसी सैक्स को ले कर बहुत सी मनगढ़ंत बातें भी इधर से उधर तैरती रहती हैं. पर क्या है इन की हकीकत, जानते हैं :

हस्तमैथुन का हौआ

हस्तमैथुन यानी मास्टरबेशन सैक्स का ही एक रूप माना जाता है, पर बहुत से लोग हस्तमैथुन को बहुत ज्यादा गंदा काम मानते हैं. उन्हें यह भरम होता है कि हस्तमैथुन करने से इनसान कमजोर हो जाता है. वह नामर्द भी हो सकता है. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि इस से लोग अंधे तक हो जाते हैं. अगर कोई औरत हस्तमैथुन के लिए वाइब्रेटर का इस्तेमाल करती है, तो वह उस की आदी हो जाती है. लेकिन विज्ञान की नजर में ऐसा कुछ नहीं होता है.

मर्दाना अंग का आकार

दुनियाभर में बहुत से मर्द अपने अंग के लंबे, मोटे और कड़े न होने के भरम में जी रहे होते हैं. उन्हें लगता है कि किसी औरत को असली मजा अंग की लंबाई से मिलता है. यही वजह है लोग अपने अंग को किसी भी तरह बढ़ाने की दवा खाने को उतावले रहते हैं और भारत में तो नीमहकीम इसी बात का फायदा उठा कर अपनी जेब भरते हैं.

एक इंटरनैट सर्वे के मुताबिक, 45 फीसदी मर्द अपने अंग के आकार से संतुष्ट नहीं हैं. बाजार इसी चीज का फायदा उठा रहा है और अंग बड़ा करने की क्रीम, इंजैक्शन, गोलीकैप्सूल और भी न जाने क्याक्या बेच रहा है. अमीर लोग तो सर्जरी करा कर अपना अंग बढ़वाने से भी नहीं झिझकते हैं.

पर एक रिसर्च के मुताबिक, 85 फीसदी औरतें रिलेशनशिप में मर्दाना अंग के आकार को ले कर संतुष्ट रहती हैं. उन्हें आकार या मोटाई से उतना फर्क नहीं पड़ता है, बल्कि अपनी संतुष्टि ज्यादा जरूरी होती है. अगर कोई मर्द अपनी पार्टनर को सैक्स में संतुष्ट कर रहा है, तो फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस के अंग का आकार क्या है.

औरत के बड़े उभार और सैक्स

दुनियाभर में इस बात को ले कर बहस चलती रहती है कि मर्द को सैक्स के दौरान बड़े उभार यानी बड़ी छाती वाली औरतें ही पसंद आती हैं, जबकि औरतों के उभार हर तरह के डीलडौल और आकार के होते हैं. वे बड़े, छोटे, चुस्त और ढीले, हर तरह के हो सकते हैं और यह भी जरूरी नहीं कि दोनों उभार एकसमान हों.

कई तरह के सर्वे में यह सामने आया है कि औरत के उभार के मामले में हर मर्द की पसंद अलग हो सकती है. किसी को बड़े तो किसी को छोटे उभार अच्छे लग सकते हैं. हां, यह जरूर कह सकते हैं कि तकरीबन हर मर्द को औरत के कसे और चुस्त उभार जरूर पसंद आते हैं.

कंडोम से बिगड़े मजा

बहुत से लोग यह मानते हैं कि कंडोम लगा कर सैक्स करने से मजा किरकिरा हो जाता है. पूरी तरह जोश नहीं आ पाता है और औरत भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती है. यह कुछ ऐसा है जैसे कपड़े पहन कर नहाना.

लेकिन कई तरह की स्टडी में पाया गया है कि यह बात सच नहीं है. लोगों को इस का इस्तेमाल करने पर भी उतना ही मजा आता है, जितना इस के बिना. अब तो कुछ कंडोम इस तरह डिजाइन किए जाते हैं जिस से चरम सुख तक पहुंचने में देरी हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि इस से सैक्स का मजा कम हो जाता है.

स्वप्नदोष से कमजोर होते स्पर्म

स्वप्नदोष का मतलब है रात को सोते हुए सैक्स से जुड़ा कोई सपना देखने के बाद सीमन का निकल जाना. बहुत से जवान होते लड़के इसे बीमारी समझ कर इलाज ढूंढ़ने के लिए यहांवहां भटकते हैं और फिर खुद को चूना लगवा लेते हैं. उन्हें लगता है स्वप्नदोष से उन के चेहरे की चमक कम हो रही है और साथ ही सीमन के स्पर्म भी कमजोर हो रहे है. वे नामर्द तक हो सकते हैं.

पर हकीकत इस से उलट है. स्वप्नदोष एक कुदरती चीज है और इस का किसी तरह की कमजोरी से कोई लेनादेना नहीं है. न तो इस से स्पर्म की संख्या घटती है और न ही अंग सिकुड़ने की समस्या आती है. यह किसी भी उम्र में हो सकता है और चढ़ती जवानी की गलती से इस का कोई सरोकार नहीं है.

क्या सैक्स का मजा बिगाड़ देता है दर्द

अपनी सैक्स लाइफ को ऐंजौय करने के लिए यह जानना आप के लिए बेहद जरूरी है. सैक्स पतिपत्नी के बीच प्यार का ही एक हिस्सा है. सैक्स सचमुच आनंददायक होता है. इस के तमाम शारीरिक और मानसिक लाभ हैं. इस से तनाव तो दूर होता ही है, साथ ही मूड भी अच्छा रहता है. मगर कभी सैक्स मजे के बजाय सजा लगने लगता है खासकर महिलाओं को. इस का मुख्य कारण सैक्स के दौरान या बाद में होने वाला दर्द या खिंचाव होता है.

एक सर्वे के अनुसार लगभग 75% महिलाएं अपनी जिंदगी में कभी न कभी इस समस्या का अनुभव जरूर करती हैं. इस का परिणाम यह होता है कि दर्द और खिंचाव के कारण महिलाओं में सैक्स के प्रति अरुचि हो जाती है. उन्हें सैक्स से डर लगने लगता है और सैक्स के लिए पार्टनर को मना भी कर देती हैं.

सैक्स के दौरान या बाद में कोमल अंगों में होने वाले खिंचाव या दर्द के अनेक कारण हैं. इन कारणों को जान कर उन्हें दूर करने की कोशिश की जाए तो सैक्स की सजा को मजे में बदला जा सकता है.

वैजाइनल इन्फैक्शन

वैजाइनल इन्फैक्शन बहुत ही कौमन समस्या है. इस में यीस्ट इन्फैक्शन का भी समावेश होता है. किसी न किसी प्रकार का वैजाइनल इन्फैक्शन महिलाओं को उन की जिंदगी में होता रहता है, जिस में व्हाइट डिस्चार्ज का भी समावेश होता है. सामान्य रूप से वैक्टेरियल, यीस्ट अथवा यौन संचारित इन्फैक्शन से सैक्स के दौरान दर्द या खिंचाव हो सकता है. सामान्य रूप से इस का मुख्य लक्षण तरल का वैजाइना में से डिस्चार्ज होना है.

वैजिनिस्मस

वैजिनिस्मस एक ऐसी स्थिति होती है, जिस में योनि की मांसपेशियों में खिंचाव होता है. ऐसा होने के पीछे का मुख्य कारण चोट होता है. इन में जब सैक्स किया जाता है तो वैजिनिस्मस के कारण दर्द हो सकता है. अनेक तरह की थेरैपी ले कर इसे दूर किया जा सकता है.

गर्भाशय की समस्या

गर्भाशय की समस्याओं में फाइब्रौयड्स का समावेश होता है, जो डीप सैक्स के कारण दर्द का कारण बन सकता है. ऐसा ही कुछ ग्रीवा का भी है. डीप और अधिक पेनीट्रेशन के कारण ग्रीवा की समस्या या दर्द हो सकता है.

ऐंडोमिट्रिओसिस

सैक्स के दौरान या बाद में खिंचाव होने के अनेक कारणों में से एक कारण ऐंडोमिट्रिओसिस भी है. वास्तव में यह वह स्थिति है जब ऐंडोमिट्रिओसिस गर्भाशय के बाहर विकसित होता है. ऐंडोमिट्रिओसिस गर्भाशय का टिशू होता है. जिन महिलाओं को यह समस्या होती है वे मासिकधर्म में भी इस समस्या का अनुभव करती हैं और सैक्स के समय भी.

सैक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफैक्शन

सैक्सुअली ट्रांसमिशन इन्फैक्शन को संक्षेप में एसटीआई के रूप में जाना जाता है. इस इन्फैक्शन में गुप्तांगों में मसा, दाद, चोट अथवा अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं, जो बाद में दर्द की वजह बनती हैं.

दवाओं का सेवन

ऐसी तमाम दवाएं हैं, जो सैक्सुअल इच्छा को कम कर सकती हैं. इन में बर्थ कंट्रोल पिल्स का भी समावेश होता है. इसी के साथ पेनकिलर दवाएं भी सैक्स की इच्छा को कम करती हैं. मैडिकल और सर्जिकल स्थिति में भी इसे प्रभावित कर सकती हैं जैसेकि डायबिटीज, थायराइड और कैंसर आदि. इन से भी आप को सैक्स के दौरान दर्द और खिंचाव हो सकता है.

पार्टनर की सैक्सुअल समस्या

अगर पार्टनर को किसी तरह की सैक्सुअल समस्या होती है तो आप को सैक्स को ले कर चिंता हो सकती है. अगर पार्टनर इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की दवाएं ले रहा होता है तो उसे और्गेज्म में देर लग सकती है. इस से सैक्स तकलीफ भरा हो सकता है. कभी पार्टनर के साथ कोई समस्या हो या तनाव हो तो सैक्स के दौरान या बाद में दर्द या खिंचाव हो सकता है.

अंडाशय की समस्या

इस समस्या में ओवेरियन सिस्ट का समावेश होता है, जो सैक्स के दौरान अथवा बाद में दर्द और खिंचाव का कारण बनता है.

पेल्विक इंफ्लैमेटरी डिजीज

इस समस्या में अंदर के टिश्यूज बहुत ही बुरी तरह फूल जाते हैं और सैक्स के दौरान दबाव के कारण बहुत तेज दर्द का अनुभव कराते हैं.

चिंता या तनाव

अगर आप के दिमाग में किसी तरह का डर, चिंता, शर्म-संकोच या अन्य कोई मुश्किल हो तो आप को सैक्स के दौरान या बाद में दर्द हो सकता है. जब आप का मन शांत न हो तो इस का परिणाम दर्द या खिंचाव हो सकता है. इस के साथ तनाव या थकान सैक्स की इच्छा पर अपना प्रभाव डाल सकता है.

दर्द या खिंचाव दूर करने के उपाय

लुब्रिकेंट्स का उपयोग: अगर सैक्स के दौरान वजाइना में जलन या दर्द हो रहा है तो पानी में घुल जाने वाले लुब्रिकेंट्स का प्रयोग कर सकती हैं. सिलिकौन वाला लुब्रिकेंट्स भी एक अच्छा विकल्प है, परंतु कंडोम के साथ पैट्रोलियम जेली, बेबी औयल आदि का प्रयोग न करें.

सैक्स का उचित समय

सैक्स के दौरान और बाद में होने वाला

दर्द या खिंचाव दूर करने के लिए सैक्स के

लिए उचित समय तय करें. सैक्स के लिए ऐसा समय पसंद करें, जब आप और आप का

पार्टनर थका और तनाव में न हो. इसी के साथ पार्टनर के साथ बातें करें कि आप को कहां खिंचाव और दर्द होता है. इसी के साथ आप को जो शारीरिक गतिविधियां आनंद देती हों, उस के बारे में बताएं.

डाक्टर की सलाह ले: तनाव, चिंता या अवसाद की स्थिति में भी ऐसी समस्या हो सकती है. अगर आप किसी तरह की दवा ले रही हैं तो इस समस्या का शिकार बन सकती हैं. दवा तो अचानक बंद नहीं की जा सकती, इसलिए डाक्टर की सलाह अवश्य लें.

 

Valentine’s Day 2024: हो सकता है प्यार, कभी भी कहीं भी

Sex News in Hindi: गीतकार संतोष आनंद ने साल 1982 में आई सामाजिक फिल्म ‘प्रेम रोग’ में एक गाने से सवाल उठाया था कि ‘मोहब्बत है क्या चीज हम को बताओ, ये किस ने शुरू की हमें भी सुनाओ…’ पर आज तक इस सवाल का जवाब किसी को नहीं मिला है, तभी तो कई बार शादी के बाद भी इनसान किसी तीसरे के प्यार में पड़ जाता है. यह प्यार अचानक या किसी मकसद से या सोचसमझ कर नहीं होता. आज की मसरूफ लाइफ में वैसे भी इस तरह किसी तीसरे का मिलना आसान नहीं, मगर जब अनजाने ही कोई आंखों को भाने लगे तो दिल में कुछ उथलपुथल होने लग जाती है. इनसान धीरेधीरे अपनी जिंदगी में उस तीसरे का भी आदी होने लगता है. मगर जब यह सचाई जीवनसाथी के सामने आ जाए, तो मामला उलझ सकता है.

तभी तो 18वीं सदी के मशहूर शायर मीर तकी मीर ने फरमाया था, ‘इश्क इक ‘मीर’ भारी पत्थर है…’

मीर ने इश्क को भारी पत्थर कहा, तो 20वीं सदी के एक और शायर अकबर इलाहाबादी ने इसे कुछ ऐसे बयां किया… ‘इश्क नाजुक मिजाज है बेहद, अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता…’

जाहिर है कि यह प्यार किसी को भारी पत्थर लगा है, तो किसी को नाजुकमिजाज. किसी ने मुहब्बत में खुदा देखा, तो किसी को दुश्मन नजर आया. मगर प्यार की हकीकत केवल शायराना अंदाज से नहीं सम?ा जा सकती. इस प्यार या इश्क के जज्बातों के पीछे कहीं न कहीं साइंस भी काम कर रहा है.

दरअसल, किसी के प्रति यह आकर्षण आप के दिमाग का कैमिकल लोचा भर है, इसलिए इसे ले कर ज्यादा तनाव नहीं लेना चाहिए. मुहब्बत होती है तो खुद से हो जाती है और न होनी हो तो लाख कोशिशें करते रहिए, आप को छू कर भी न गुजरेगी. तभी तो गालिब कह गए हैं, ‘इश्क पर जोर नहीं है, ये वो आतिश है ‘गालिब’ के लगाए न लगे और बुझाए न बुझे.’

जब होता है प्यार

जब आप किसी के प्यार में पड़ते हैं, तो दिमाग न्यूरो कैमिकल प्रोसैस से गुजरता हुआ शरीर में एड्रेनल, डोपामाइन, सैरोटोनिन, टैस्टोस्टैरोन और एस्ट्रोजन रिलीज करता है. प्यार में पड़ने पर इन की रिलीजिंग स्पीड बढ़ जाती है. यही वजह है कि जब इनसान अपने किसी प्यारे के साथ होता है? तो वह अलग तरह का माहौल महसूस करता है.

इस मामले में न्यूरोपैप्टाइड औक्सीटोसिन नाम का कैमिकल भी प्यार का एहसास कराने में अहम साबित होता है, क्योंकि इस को बौंडिंग हार्मोन कहा जाता है. यह आप के मन में दूसरों से जुड़ाव पैदा करता है.

सताती है उस की याद

ऐसा कोई भी शख्स नहीं होगा, जिसे कभी किसी इनसान की याद ने सताया न हो. भले ही वह इनसान शादीशुदा ही क्यों न हो, मगर इस के बावजूद वह किसी तीसरे से दिल से जुड़ जाता है. ऐसे में उस शख्स के दूर होने पर उसे मिसिंग की फीलिंग आती है और इस से वह दुखी महसूस करता है.

इस की वजह से आप अपने जीवनसाथी के प्रति उदासीन से हो जाते हैं और उसे इस बात का अहसास होने लगता है कि आप की जिंदगी में कोई और भी है. ऐसे में हालात मुश्किल होने लगते हैं, मगर फिर भी आप उस तीसरे का मोह नहीं त्याग पाते, क्योंकि वह तीसरा इनसान आप की जिंदगी में एक अलग तरह का रोमांच और खुशियां ले कर आता है. उस की कुछ खासीयतें आप को अपनी तरफ खींचती हैं.

आप अपने जीवनसाथी को धोखा देना नहीं चाहते, मगर फिर भी उस तीसरे की यादों से अलग भी नहीं हो पाते. आप यह जुगत भिड़ाने में लगे रहते हैं कि उस तीसरे से बारबार आप का सामना हो.

नई रिलेशनशिप में आती है ज्यादा मुश्किल

एक स्टडी में यह भी सामने आया है कि पुरानी रिलेशनशिप में किसी से दूरी उतनी इफैक्ट नहीं करती, मगर किसी नए रिश्ते में दूरी बढ़ने पर उदासी काफी हावी होती है. मतलब, यह कि शादीशुदा इनसान जब अपने पार्टनर से कुछ समय के लिए दूर होता है, तो उस के मन पर खास असर नहीं होता, मगर जिस से हालफिलहाल रिश्ता जुड़ा है, उस का दूर जाना आप को ज्यादा इफैक्ट करता है. यह आप के चेहरे से नजर आने लगता है. आप परेशान रहने लगते हैं.

इस जुनून से बचें

जब प्यार का यह जुनून ‘मानसिक बीमारी’ बन जाए, तो ऐसा प्यार जानलेवा होता है. जैसा कि फिल्म ‘डर’ में शाहरुख खान का किरदार था. इस में हीरोइन पर जबरदस्ती का प्यार थोपा जा रहा था, ‘तू हां कर या न कर, तू है मेरी किरन’. ऐसे प्यार को आप ‘इश्किया बीमारी’ कह सकते हैं.

एक अमेरिकी हैल्थ वैबसाइट ‘हैल्थलाइन’ के मुताबिक, ‘औब्सैसिव लव डिसऔर्डर एक तरह की ‘साइकोलौजिकल कंडीशन’ है, जिस में लोग किसी एक शख्स पर असामान्य रूप से मुग्ध हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वे उस से प्यार करते हैं.

उन्हें ऐसा लगने लगता है कि उस शख्स पर सिर्फ उन का हक है और उसे भी बदले में उन से प्यार करना चाहिए. अगर दूसरा शख्स शादीशुदा है या उन

से प्यार नहीं करता तो वे इसे स्वीकार नहीं कर पाते. वे दूसरे शख्स और उस की भावनाओं पर पूरी तरह काबू पाना चाहते हैं.

असल जिंदगी में भी ऐसे लोग प्यार में ठुकराया जाना स्वीकार नहीं कर पाते और न कहे जाने के बाद अजीबोगरीब हरकतें करने लगते हैं. बहुत से जुनूनी आशिक तथाकथित प्रेमिका को यह कह कर धमकाते हैं कि ‘ठुकरा के मेरा प्यार तू मेरी मोहब्बत का इंतकाम देखेगी’.

किसी शादीशुदा से इस तरह जुनून भरा प्यार करने का नतीजा हिंसा, हत्या या आत्महत्या के रूप में नजर आता है. इसे ‘औब्सैसिव लव डिसऔर्डर’ कहते हैं. ऐसे प्यार करने वाले शख्स से हमेशा बच कर रहें, क्योंकि ऐसा प्यार न सिर्फ आप की शादीशुदा जिंदगी बरबाद करेगा, बल्कि आप की जिंदगी पर भी बन सकती है.

हग एंड किस, डोंट मिस: पर रखें इन बातों का ध्यान

पब्लिक प्लेस में कपल्स को हग या किस करते यानी गले लगाते और चूमते देखकर कई लोग नाकमुंह सिकोड़ लेते हैं. इसे मोरली खराब माना जाता है और अश्लीलता की कैटेगरी में डाल दिया जाता है. यंग जेनरेशन इस सिचुएशन को किस तरह हैंडल करती है, जानिए.

कपल के लिए हग और किस करना प्यार जताने का एक तरीका है. यह उन के लिए बहुत नौर्मल बात है. लेकिन पब्लिक प्लेस में हग और किस करना इंडिया में अभी नौर्मल बात नहीं है. हालांकि मैट्रो सिटीज में यह धीरेधीरे नौर्मल होता जा रहा है. इस का कारण यह है कि मैट्रो सिटीज में रहने वाले ज्यादातर लोग यंग हैं.

पब्लिक प्लेस में कपल का हग करना फैमिली के साथ आए लोगों को असहज कर देता है. ऐसा कंजरवेटिवथिंकिंग से ग्रसित लोगों का कहना है. लेकिन सच तो यह है कि वे अपनेआप को बदलना ही नहीं चाहते. उन का यह कहना है कि ये सब वैस्टर्न कल्चर की देन है. हमारे कल्चर में यह सब नहीं होता.

हमारे देश में पब्लिक प्लेस पर हग या किस करना अकसर सांस्कृतिक और पारंपरिक मापदंडों के कारण गलत माना जाता है. इंडियन सोसाइटी में पब्लिकली गले मिलना या कहें हग करना स्वीकार नहीं किया जाता है क्योंकि इसे बेहद गुप्त में होने वाली क्रिया माना जाता है. इसे प्यार जताने से ज्यादा गुप्त यौन क्रिया मान कर इसे पब्लिकली करने से खारिज कर दिया जाता है.

लेकिन बात करें अगर वैस्टर्न कंट्रीज की तो कपल का हग और किस करना बहुत ही नौर्मल है. लंदन की सड़कों पर कपल अकसर किस करते हुए दिख जाते हैं. न तो वह इमोरल दिखता है न ही भद्दा लगता है. बल्कि बहुत बार तो बहुत प्यारा लगता है और यह वहां बहुत ही नौर्मल है. लेकिन इंडिया में जहां 5000 साल पुरानी वेदपुराणों वाली पंरपराओं को सबकुछ मान कर चलने से बहुत रोकटोक इंसान अपनी जिंदगी में लगाता है या जो उसे इन ग्रंथों के मुताबिक चलने को कहता है वह चुपचाप बिना सवाल किए चलने लगता है.

हमारे देश में हमें सांस्कृतिक मापदंडों का ध्यान रखने और उन का सम्मान करने का पाठ बचपन से ही पढ़ाया जाता है. बिना यह जाने कि यूथ यह पाठ पढ़ना चाहते भी हैं या नहीं. बस हमें संस्कृतियों के जाल में फंसा दिया जाता है और मरते दम तक हम इसी जाल में फंसे रहते हैं.

पब्लिक प्लेस में हग और किस करना सही है या गलत. इस बात पर सब का नजरिया अलगअलग है. पुरानी जेनेरेशन जहां इसे असभ्य तो नहीं इसे सामान्य व्यवहार में गिनती है. इस विषय पर शारदा यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली यामिनी मेहता कहती है, ‘‘मेरे फ्रैंड्स सर्कल में लड़के और लड़कियां दोनों हैं. हम लोग साथ में चिलआउट करते हैं. क्लब जाते हैं. कई बार कालेज के बाद हम सभी कालेज के आसपास ही घूमने निकल जाते हैं.

‘‘मेरी आदत है कि मैं जब भी अपने दोस्तों से मिलती हूं तो उन्हें साइड हग जरूर करती हूं. वहीं जब मैं अपने पार्टनर से मिलती हूं तो मेरा हग करने का तरीका बदल जाता है. मैं अपने पार्टनर को एक वार्म हग करती हूं और कभीकभी मेरा पार्टनर और मैं एकदूसरे को किस भी कर देते हैं. हमारे लिए यह बहुत नौर्मल है.

‘‘लेकिन कई बार जब मैं पब्लिक प्लेस में अपने पार्टनर को हग करती हूं तो उस वक्त वहां के लोग हमें घूरघूर कर देखने लगते हैं जैसे हम ने कोई अपराध किया हो. ऐसा नहीं है कि इन में सिर्फ मर्द ही शामिल हों. बल्कि महिलाएं भी हमें आंखें दिखाने लगती हैं. उस समय अटपटा लगता है. ये लोग तब तो घूरघूर कर नहीं देखते जब इन की बहूबेटियों को इन के घर के मर्द पीटते और मांबहन की गंदीगंदी गालीगलौच करते हैं. संस्कृति और परंपरा तब क्यों नहीं आती?’’

यामिनी आगे कहती है, ‘‘मुझे नहीं लगता कि हग और किस अश्लीलता की श्रेणी में आते हैं. ‘हग’ केयर का ही एक पार्ट होता है और हम अपने चाहने वालों की केयर तो करते ही हैं. ऐसे में यही केयर हम अपने पार्टनर की भी करते हैं, जिस में हग कुछ देर ज्यादा और वार्म होता है. हां, इस में केयर के तौर पर बौडी को थोड़ी देर सहलाना शामिल है. हम अपनी फीलिंग्स अपने पार्टनर से शेयर कर रहे हैं तो इस में कुछ भी गलत नहीं है. यह सिर्फ अपना प्यार जताने का एक तरीका है.

‘‘जिन लोगों को लगता है कि पब्लिक प्लेस में कपल का हग करना सही नहीं है तो वह गलत है. वे लोग गलत मानसिकता के शिकार हैं. वे अभी भी पुरानी सोच पर टिके हुए हैं. उन्हें अपनी इस मानसिकता को बदल कर लिबरल होना होगा.’’

यामिनी हमारी इंडियन सोसाइटी पर सवाल करते हुए कहती है, ‘‘इंडिया में लोग पब्लिक प्लेस में एकदूसरे को किस क्यों नहीं कर सकते? जब प्यार सार्वभौमिक है तो उस के जताने के तरीकों को यहां विदेशी क्यों माना जाता है? हमारा समाज बदलाव को अपनाना क्यों नहीं चाहता? क्यों यह बदलाव से इतना डरा हुआ है?’’

कभीकभी ऐसा भी होता है कि आप जिस व्यक्ति को हग करना चाहते हैं वह तो ओपन माइंडेड होता है लेकिन आप के आसपास के लोग ओपन माइंडेड नहीं होते. वह वही दकियानूसी सोच लिए हुए बैठे होते हैं जो सालों से चली आ रही है. इन्हें पब्लिक प्लेस में चिपकाचिपकी पसंद नहीं आती. ये चाहते हैं कि कपल्स को जो भी करना है वे अपने घर में करें. हमारी सोसाइटी में गंदगी न फैलाएं. इन सब चीजों से हमारे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है इसलिए वे चाहते हैं कि ये पब्लिक प्लेस में अपनी मर्यादा में बने रहें.

इंडियन सोसाइटी में हग करने को पैरा-रोमांटिक चीज माना जाता है. तभी इतना हौव्वा होता है. लेकिन पश्चिमी शहरों में ऐसा नहीं है. वहां सड़कों पर किस भी बहुत नौर्मल है. इस का एक कारण यह भी है कि वहां प्यार करने की आजादी है, सैक्स करना पाप नहीं माना जाता, दोस्ती करना अच्छे नेचर की निशानी मानी जाती है. जबकि इस के ठीक उलट यहां है.

दूसरी तरफ अगर बात करें एक फ्रैंडशिप में हमारे मन में ऐसा डर बैठा दिया है कि अपोजिट सैक्स वालों को हम नमस्ते या सिर्फ ‘हाय’ के साथ ही मिलते हैं. ऐसा गलत नहीं है लेकिन सिर्फ गले मिलना गलत क्यों? मैट्रो सिटीज में हग करना अब मेल नहीं चाहते कि वे अपनी तरफ से पहल करें और नमस्ते करना एक सेफ चौइस है. वहीं आज की लड़कियों को हग करने में कोई परेशानी नहीं होती. वे हग करने में सहज हैं लेकिन वे सोसाइटी की दकियानूसी बातों के पचड़े में नहीं पड़ना चाहतीं.

140 करोड़ से अधिक की आबादी के बावजूद हम इंडियन सैक्स के टौपिक पर पब्लिक प्लेस में खुल कर बात नहीं कर सकते हैं. हम सैक्स को सैक्स कहने से कतराते हैं. पब्लिक प्लेस में किस को अपराध करने जैसा माना जाता है और पब्लिक प्लेस में सैक्स के बारे में बात करना सही नहीं माना जाता है. एक कमरे के अंदर आप हर दिन सैक्स कर सकते हैं और 10 बच्चे पैदा कर सकते हैं लेकिन बाहर जनसंख्या नियंत्रण के लिए सैक्स एजुकेशन भी नहीं दे सकते.

असल में, हमारे विचारों और दिमाग में रूढि़वाद अपनी गहरी जड़ें जमा चुका है, जिसे आसानी से तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक कि हमारा समाज खुद को बदलने की पहल न करे. इस दिशा में फिल्मी कलाकर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अपनी भूमिका निभा सकते हैं, क्योंकि इन का सोसाइटी पर बहुत बड़ा इंपैक्ट पड़ता है, लेकिन ऐसा तभी होगा जब उन में सोसाइटी के नौर्म्स से टकराने की हिम्मत होगी.

हौलीवुड फिल्मों में मेल या फीमेल कैरेक्टर पूरी तरह से न्यूड हो जाते हैं, इस से भी उन की औडियंस को कोई परेशानी नहीं होती है. लेकिन बौलीवुड में 2 मिनट के स्मूच सीन से हायतौबा मच जाती है, जबकि इंटरनैट के जमाने में 18 साल का लड़का क्या कुछ देखपढ़ रहा है इस पर संस्कृति चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती.

पुलिस और लोग हमारे अस्पष्ट कानूनों का नकारात्मक लाभ उठाते हैं. सब से बड़ा दोष यह परिभाषित न करना है कि अश्लील क्या है. उन पुलिस अधिकारियों द्वारा कानून को नियंत्रणीय बनाना जिन की अश्लीलता की परिभाषा अलग है, अब तक की सब से मूर्खतापूर्ण बात है. मूलरूप से इस का मतलब यह है कि हम सोचते हैं कि हर पुलिसवाले का फैसला हमेशा सही होता है जो सच नहीं है. यह मूलरूप से हमारे संविधान की एक मूर्खता है, जिस में व्यापक और अस्पष्ट कानून हैं जिन्हें आसानी से मोड़ा जा सकता है.

क्या कहता है कानून

भारतीय दंड संहिता की धारा 294 कहती है, ‘‘सार्वजनिक रूप से अश्लीलता एक आपराधिक अपराध है, लेकिन सार्वजनिक रूप से किस या हग करने के बारे में विशेष रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है इसलिए यह कोई अपराध नहीं कहा जा सकता है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को चिढ़ाने के इरादे से किसी भी पब्लिक प्लेस पर कोई भी अश्लील हरकत करता है या किसी भी सार्वजनिक स्थान या उस के आसपास कोई अश्लील गाना या शब्द गाता है या बोलता है तो उसे सजा दी जा सकती है. आईपीसी की धारा 294 का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को अधिकतम 3 महीने की जेल या आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जा सकता है.

कानूनी नजरिए से अश्लीलता एक क्राइम है और इस के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 292, 293 और 294 के तहत सजा का प्रावधान है. हालांकि इस में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि आश्लीलता है क्या और इस का दायरा क्या है.

कानूनी जानकारों की मानें तो अगर कोई शख्स ऐसी अभद्र सामग्री, किताब या अन्य आपत्तिनजनक सामान बेचे या सर्कुलेट करे जिस से दूसरों को नैतिक रूप से परेशानी हो तो उस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

इस मामले में दोषी पाए जाने पर आरोपी को 2 साल की सजा और 2000 रुपए जुर्माना देना पड़ सकता है. अगर दूसरी बार वह ऐसे ही मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल की जेल और 5000 रुपए जुर्माना देना होगा. इस के अलावा भी कई और धाराएं अश्लीलता को ले कर बनी हैं.

भारत में अश्लीलता पर कानून तो बना है लेकिन इसे स्पष्टरूप से परिभाषित नहीं किया गया है. आईपीसी धारा 292 और आईटी एक्ट 67 में उन सामग्री को अश्लील बताया गया है जो सैक्सुअल या सैक्सुअलिटी पैदा करती है या फिर इसे देखने, पढ़ने और सुनने से सैक्सुअलिटी पैदा होती हो. लेकिन कानून में सैक्सुअल और सैक्सुअलिटी किसे माना जाए इस को ले कर स्पष्ट नहीं किया गया है. इस की व्याख्या करने का अधिकार कोर्ट पर छोड़ दिया गया है.

पब्लिक प्लेस में हग और किस करना नैतिक है या अनैतिक, इस बात का जवाब बस इतना है कि यह आप की पर्सनल चौइस है. अगर आप कंफर्टेबल हैं तो किस हग करने में कोई हर्ज नहीं है. यह पूरी तरह से आप पर डिपैंड करता है.

‘डबल इनकम नो सैक्स’ के चक्कर में आप भी तो नहीं

Sex New in Hindi: पति पत्नी का रिश्ता हर रिश्ते से खास होता है. वैसे तो हर रिश्ते में संवेदनाएं, इच्छाएं और अपेक्षाएं निहित हैं, पर इस रिश्ते का खास पहलू है सैक्स. इस के बिना यह रिश्ता दरकने लगता है. लेकिन आज के प्रतिस्पर्धा के युग में आगे बढ़ने की चाहत में युवा दंपतियों को अपने अंतरंग संबंधों की सुध नहीं रहती है. इसीलिए तो पहले ‘डबल इनकम नो किड्स’ का चलन शुरू हुआ और अब ‘डबल इनकम नो सैक्स’ का ट्रैंड बढ़ता जा रहा है.

मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत शैलेश और शुचि सुबह 8 बजे घर से औफिस निकल जाते हैं, पर घर वापसी का समय तय नहीं है. घर लौटने में रात के 9 भी बज जाते हैं. शुचि कहती है कि काम के कारण इतना थक जाते हैं कि जब आपस में बातचीत करने का भी मन नहीं करता तो सैक्स करना तो दूर की बात है. विवाह को 2 वर्ष हो गए हैं. पहला काम तो अपनी जौब को सुरक्षित रखना है और इस के लिए अच्छा आउटपुट देना जरूरी है वरना पता नहीं कब नौकरी से निकाल दिया जाए. इसलिए हमेशा वर्कस्ट्रैस बना रहता है.

इसी तरह मेघा की बात करें तो उस के विवाह को मात्र 1 साल हुआ है. वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करती है और पति एक अन्य प्राइवेट कंपनी में. मेघा का औफिस घर से दूर है. वहां पहुंचने में उसे 1 घंटा लग जाता है. वह कहती है कि 2 घंटे आनेजाने के और 8 घंटे की ड्यूटी यानी 10 घंटे घर से बाहर रहना, फिर घर आ कर तुरंत किचन में घुसना, क्योंकि वृद्ध ससुर साथ में हैं. उन के लिए खाना तैयार करना होता है. पति रात 11 बजे तक घर में घुसते हैं. हम इतना थक जाते हैं कि कई सप्ताह तक एकदूसरे से शारीरिक रूप से नहीं मिल पाते. कभी एक तैयार है तो दूसरा थका हुआ. अब तो मानो सैक्स में रुचि ही नहीं है.

सवाल यह है कि वर्किंग कपल्स के बढ़ते चलन का सीधा असर उन की सैक्स लाइफ पर पड़ रहा है. पोर्न साइटों और फेसबुक पर सैक्स तलाशा जाता है, पर बगल में लेटे साथी को देख ठंडे पड़ जाते हैं.

नोएडा के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और सैक्सोलौजिस्ट डा. सुनील अवाना कहते हैं कि सैक्स तो पतिपत्नी के आपसी संबंधों की रीढ़ है. यह तो उन के रिश्ते को मजबूत बनाता है. मगर आजकल मेरे क्लीनिक में कई ऐसे दंपती आ रहे हैं जिन की सैक्स में रुचि समाप्त होती जा रही है. इस के कई कारण हैं. पर मुख्य रूप से देखा जाए तो काम के प्रति बढ़ता रुझान और उस से उत्पन्न स्ट्रैस इस का प्रमुख कारण है. आइए जानें कि सैक्स के प्रति घटती रुचि के क्याक्या कारण हैं:

ईगो: शादीशुदा जिंदगी में सैक्स गायब होने का मुख्य कारण है दोनों का ईगो. पहले पति जो भी कहता था पत्नी सिर झुका कर चुपचाप सुन लेती थी, पर अब वह भी कामकाजी हो गई है, इसलिए आरोपप्रत्यारोपों की झड़ी में उस का ईगो भी सामने आ जाता है. जब पतिपत्नी के रिश्तों में अहं की दीवार बढ़ती जाती है, तो हारजीत, आशानिराशा के बीच मन और शरीर की जरूरतें शिथिल पड़ने लगती हैं और फिर धीरेधीरे सैक्स गायब होने लगता है.

महत्त्वाकांक्षी होना: आज का युवावर्ग बहुत ज्यादा महत्त्वाकांक्षी हो गया है. शादी तो करते हैं पर कुछ महीनों बाद यह सोच कर कि अभी तो जवान हैं खूब पैसा कमा लें, खुद को काम में इतना डुबो लेते हैं कि बाकी सब कुछ भूल जाते हैं. पैसा कमाना गलत बात नहीं है, पर अपने स्वास्थ्य और शारीरिक जरूरतों को नजरअंदाज करना गलत है. आज के युवा दंपती चाहते हैं कि उन के पास सभी सुखसुविधाएं हों. महंगी गाड़ी, बड़ा सा फ्लैट आदि. यही महत्त्वाकांक्षा उन्हें काम में पूरी तरह डुबो देती है, जिस का नतीजा सैक्स में घटती रुचि के रूप में सामने आ रहा है.

तनाव: कई युवा दंपती जो ज्यादातर मल्टीनैशनल कंपनियों में कार्यरत हैं उन्हें अपनी जौब को सुरक्षित रखने के लिए काम का तनाव बना रहता है. जब सफलता नहीं मिलती तो परेशान हो जाते हैं. डा. अवाना कहते हैं कि स्ट्रैस का असर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से युवा दंपती को शिथिल कर देता है. पति या पत्नी दोनों में से यदि एक भी तनाव में हो तो उस का सीधा असर सैक्स लाइफ पर पड़ता है. दोनों के बीच शारीरिक दूरी बढ़ जाती है, परिणामस्वरूप कामोत्तेजना कम होने लगती है.

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: पहले जो बीमारियां बढ़ती उम्र में होती थीं. वे अब भरी जवानी में होने लगी हैं जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, वैस्क्यूलर रोग, डिप्रैशन, मोटापा, थायराइड, हारमोन में असंतुलन आदि. उच्च रक्तचाप हो जाए तो पुरुषों में कई बार इरैक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या आ जाती है. ये सब बीमारियां सैक्स लाइफ को प्रभावित करती हैं.

खानपान: सैक्स लाइफ गलत खानपान की आदत से बहुत प्रभावित होती है. जंकफूड, असमय या जब भी भूख लगी कुछ खा लेना, थके होने पर खाना खा कर तुरंत सो जाने आदि से सैक्स लाइफ पर असर पड़ता है. अपच की समस्या भी सैक्स में रुचि घटा देती है.

डा. अवाना के अनुसार युवा दंपतियों को अपनी सैक्स लाइफ को रीचार्ज करने के लिए निम्न बातों को अपनाना चाहिए:

एकदूसरे को वक्त दें: दोनों लोग साथ बैठ कर शांत मन से सोचें कि कैसे एकदूसरे के लिए समय निकाला जा सकता है. हर समस्या का समाधान होता है. युवा दंपती प्रयास करें तो वे अपने व्यस्त जीवन में से सैक्स का पूर्ण आनंद लेने के लिए समझदारी से थोड़ा समय निकाल ही सकते हैं. जिस तरह जिंदा रहने के लिए खाना जरूरी है इसी तरह मैरिज लाइफ को सफल बनाने के लिए सैक्स भी जरूरी है.

विश्वास करना सीखें: विश्वास के बिना कोई रिश्ता नहीं टिक सकता. किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले पार्टनर को एक मौका दें. उस से खुल कर बात करें.

रिस्पैक्ट करें: पतिपत्नी को हमेशा एकदूसरे की रिस्पैक्ट करनी चाहिए. जिस व्यक्ति का आप सम्मान ही नहीं करोगे उस से प्यार कैसे करोगे.

ईगो से बचें: अहंकार और स्वाभिमान में बहुत फर्क होता है. इस फर्क को समझ कर अपने रिश्ते को बचाएं. अहं की तुष्टि के लिए रिश्ते को खत्म करने की कोशिश न करें. आरोप लगाने से कभी किसी रिश्ते में मजबूती नहीं आती है. वह मात्र आप के ईगो को संतुष्ट कर सकता है. कोई एक झुक जाए या माफी मांग ले तो इस में बुराई नहीं है.

कम्यूनिकेट करें: आपस में संवाद बनाए रखें. चाहत की गरमी बरकरार रखना दोनों के हाथ में है. औफिस में 5 मिनट का समय निकाल कर एकदूसरे को कौल कर के प्यार भरी बातें करें. सैक्स की शुरुआत मस्तिष्क से होती है, इसलिए इस के बारे में सोचें, बातें करें. वीकैंड पर औफिस को भूल जाएं, मूवी देखें, रोमांटिक मूड में रहें. रात को रिलैक्स हो कर एकदूसरे को पूरा समय दें.

फिटनैस पर ध्यान दें: व्यायाम की मदद से मूड को फ्रैश बनाए रखने की कोशिश करें. भावनात्मक संतुलन के लिए भी फिजिकल फिटनैस जरूरी है. सिर्फ कैरियर ही नहीं निजी जीवन में भी फिटनैस का अहम रोल है. विशेषज्ञों का मानना है कि सुबह हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज जरूर करें. यदि सुबह यह संभव न हो तो शाम को समय निकालें. ऐसा करने पर डिप्रैशन व स्ट्रैस से दूर रहा जा सकता है.

हर वीकैंड हनीमून: यदि दोनों का बिजी शैड्यूल रहता हो तो वीकैंड पर ऐसा कुछ करें कि हफ्ते भर का स्ट्रैस दूर हो जाए. एक रिसर्च से साबित हुआ है कि लंबे हनीमून के बजाय छोटेछोटे कई हनीमून आप की रिलेशनशिप के लिए बेहतर हैं. आसपास कहीं घूमने निकल जाएं. फिल्म और कैंडल लाइट डिनर का प्रोग्राम बना लें या फिर छुट्टी ले कर कहीं बाहर चले जाएं.

यदि फिर भी कुछ ठीक न हो तो मैरिज काउंसलर की मदद लें. वे मैरिटल थेरैपी के द्वारा दोनों को आमनेसामने बैठा कर, समस्याओं को सुन कर समाधान दे कर पैचअप कराते हैं.

– वरिष्ठ मनोचिकित्सक और सैक्सोलौजिस्ट डा. सुनील अवाना से नीरा कुमार द्वारा बातचीत पर आधारित.

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