शादी से पहले बेहद जरूरी हैं ये 8 हेल्थ टैस्ट

कई फिल्मों में शादी के लिए कुंडली मिलान बहुत जरूरी बताया जाता है और कुंडली न मिलने पर पक्का रिश्ता भी टूट जाता है, लेकिन अधिकतर देखा गया है कि कुंडली मिला कर की गई शादियों में भी तलाक की दर बहुत अधिक है, इसलिए अब लोगों की सोच बदलने लगी है और उन्हें लगता है कि शादी के लिए कुंडली से ज्यादा जरूरी है कि दोनों एकदूसरे के लायक हों और शारीरिक रूप से फिट हों ताकि शादी के बाद किसी तरह की कोई परेशानी न आए.

शादी से पहले युवकयुवती को एकदूसरे के बारे में सबकुछ पता हो तो आगे चल कर सिचुएशन हैंडिल करने में काफी आसानी रहती है और दोनों एकदूसरे को उस की कमियों के साथ स्वीकारने की हिम्मत रखते हैं तो ऐसा रिश्ता काफी मजबूत बनता है. इसलिए दूल्हादुलहन शादी से पहले कई तरह के मैडिकल टैस्ट कराने से भी नहीं हिचकिचाते. आइए जानें, ये मैडिकल टैस्ट कौन से हैं और कराने क्यों जरूरी हैं :

1. एचआईवी टैस्ट

यदि युवक या युवती में से किसी एक को भी एचआईवी संक्रमण हो तो दूसरे की जिंदगी पूरी तरह से बरबाद हो जाती है. इसलिए शादी से पहले यह टैस्ट करवाना बहुत जरूरी है.  इस में आप की सजगता और समझदारी है.

2. उम्र का परीक्षण

कई बार शादी करने में काफी देर हो जाती है और उम्र अधिक होने के कारण युवतियों में अंडाणु बनने कम हो जाते हैं तथा बच्चे होने में परेशानी आ सकती है. इसलिए यदि बढ़ती उम्र में शादी कर रहे हैं तो टैस्ट जरूर कराएं.

3. प्रजनन क्षमता की जांच जरूरी

जिन कपल्स को शादी के बाद बच्चे पैदा करने में समस्या आती है, उन्हें प्रजनन क्षमता का टैस्ट जरूर कराना चाहिए ताकि पता चल सके कि कमी युवक में है या युवती में. वैसे तो यह टैस्ट शादी से पहले ही होना चाहिए, जिस से पता चल सके कि वे दोनों संतान पैदा करने योग्य हैं भी या नहीं.

4. ओवरी टैस्ट

इस टैस्ट को युवतियां कराती हैं ताकि पता चल सके कि उन्हें मां बनने में कोई मुश्किल तो नहीं है. कई युवतियां इस टैस्ट को कराने में हिचकिचाती हैं कि यदि कोईर् कमी पाई गई तो उन का रिश्ता होना मुश्किल हो जाएगा, जबकि ऐसा नहीं है. आज तो मैडिकल साइंस में हर चीज का इलाज है. अच्छा तो यह है कि समय रहते आप को प्रौब्लम के बारे में पता चल जाएगा. यदि टैस्ट सही आया तो आप को वैवाहिक जीवन में कोई तकलीफ नहीं होगी.

5. सीमन टैस्ट

इस टैस्ट में युवकों के वीर्य की जांच होती है कि वह बच्चा पैदा करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है या नहीं और अगर कोई प्रौब्लम है तो उस का इलाज करवा कर पूरी तरह स्वस्थ हुआ जा सकता है. यह टैस्ट इसलिए करवाया जाता है ताकि पहले ही परेशानी के बारे में पता चल जाए और उसी के हिसाब से इलाज करवा कर बंदा शादी के लिए पूरी तरह से परफैक्ट हो जाए.

6. यौन परीक्षण

कुछ बीमारियां संक्रमित होती हैं, जो शारीरिक संपर्क के दौरान बढ़ती हैं. इन बीमारियों को सैक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियां कहा जाता है और ये संभोग के बाद पार्टनर को भी बड़ी आसानी से लग जाती हैं. इसलिए ऐसी किसी भी बीमारी से बचने के लिए शादी से पहले ही यह जांच करवा लें ताकि भविष्य में किसी गंभीर बीमारी से पार्टनर और आप दोनों ही बच सकें.

7. ब्लड टैस्ट

ब्लड टैस्ट कराने से पता चल जाता है कि कहीं ब्लड में कोई ऐसी प्रौब्लम तो नहीं है, जिस का सीधा असर होने वाले बच्चे पर पड़ेगा. हीमोफीलिया या थैलेसीमिया ऐसे खतरनाक रोगों में से एक हैं जिन में बच्चा पैदा होते ही मर जाता है. इस में दोनों के ब्लड की जांच कराना आवश्यक है जिस से आर एच फैक्टर की सकारात्मकता व नकारात्मकता का पता चल सके. यह टैस्ट शादी से पहले कराना अतिआवश्यक है.

8. जैनेटिक टैस्ट

इस तरह के टैस्ट को परिवार की मैडिकल हिस्ट्री भी कहा जाता है. इस से जीन के विषय में पता चल जाता है कि आप को जैनेटिक डिजीज है भी या नहीं. इस टैस्ट से आनुवंशिक बीमारियों के बारे में भी पता चल जाता है जो पार्टनर को कभी भी हो सकती हैं.

अगर आप भी करते हैं ईयरफोन का इस्तेमाल तो, जरुर पढ़ें ये 4 टिप्स

हमारे जीवन में बढ़ती टेक्नालजी की आवश्यकता अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लेकर आती है. इन्हीं में शामिल हैं ईयरफोन या हेडफोन, जिसके ज्यादा देर तक इस्तेमाल से आपको अपने कानों से सम्बन्धित समस्या का सामना करना पड़ सकता है. एक रिसर्च के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटे से अधिक वक्त तक 80 डेसीबेल्स से अधिक तेज आवाज में संगीत सुनता है, तो उसे सुनने में संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है या फिर वह स्थायी रूप से बहरा हो सकता है.

अगर आप भी ईयरफोन का ज्यादा देर तक इस्तेमाल करती हैं तो समय रहते संभल जाइये क्योंकि ये ना केवल आपके कानों को नुकसान पहुंचाता है बल्कि आपके शरीर को भी कई और तरह से नुकसान पहुंचाता है. आज हम आपको ईयरफोन का ज्यादा इस्तेमाल करने से होने वाले 4 बड़े नुकसान के बारे में बता रहें है.

1. कम सुनाई देना

लगभग हर ईयरफोन में हाई डेसीबल वेव्स होते हैं. इसका इस्तेमाल करने से आप हमेशा के लिए अपनी सुनने की क्षमता खो सकते हैं. इसके लगातार प्रयोग से सुनने की क्षमता 40 से 50 डेसीबेल तक कम हो जाती है. कान का पर्दा वाइब्रेट होने लगता है. दूर की आवाज सुनने में परेशानी होने लगती है. यहां तक कि इससे बहरापन भी हो सकता है. इसलिए 90 डेसीबल से अधिक आवाज में गाने न सुनें और ईयरफोन से गाने सुनने के दौरान समय-समय पर ब्रेक भी लेते रहें.

2. दिमाग पर बुरा प्रभाव

इसके लगातार इस्तमाल से दिमाग पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. ईयरफोन से निकलने वाली विद्युत चुंबकीय तरंगे दिमाग के सेल्स को काफी क्षति पहुंचाती हैं. ईयरफोन्स के अत्यधिक प्रयोग से कान में दर्द, सिर दर्द या नींद न आने जैसी सामान्य समस्याएं हो सकती हैं. आज लगभग पचास प्रतिशत युवाओं में कान की समस्या का कारण ईयरफोन्स का अत्यधिक प्रयोग है.

3. कान का संक्रमण

ईयरफोन से लंबे समय तक गाना सुनने से कान में इंफेक्शन भी हो सकता है. जब भी किसी के साथ ईयरफोन शेयर करें तो उसे सेनिटाइजर से साफ करना न भूलें. बता दें कि आमतौर पर कान 65 डेसिबल की ध्वनि को ही सहन कर सकता है. लेकिन ईयरफोन पर अगर 90 डेसिबल की ध्वनि 40 घंटे से ज्यादा सुनी जाए तो कान की नसें पूरी तरह डेड हो जाती है.

4. कान सुन्न होना

लंबे समय तक ईयरफोन से गाना सुनने से कान सुन्न हो जाता है जिससे धीरे-धीरे सुनने की क्षमता कम हो सकती है. तेज आवाज में संगीत सुनने से मानसिक समस्याएं तो पैदा होती ही है साथ ही हृदय रोग और कैंसर का भी खतरा बढ़ जाता है़. उम्र बढ़ने के साथ बीमारियां सामने आने लगती है़ यह बाहरी भाग के कान के परदे को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ अंदरूनी हेयरसेल्स को भी तकलीफ पहुंचाता है़. डाक्टरों के अनुसार इनके ज्यादा उपयोग लेने से कानों में अनेक प्रकार की समस्या हो सकती है जिनमें कान में छन-छन की आवाज आना, चक्कर आना, सनसनाहट, नींद न आना, सिर और कान में दर्द आदि मुख्य है.

इससे बचने के लिए ईयरफोन का इस्तेमाल कम से कम करने की आदत डालें. अच्छी क्वालिटी के ही हेडफोन्स या ईयरफोन्स का प्रयोग करें और ईयरफोन की बजाय हेडफोन का प्रयोग करें क्योंकि यह बाहरी कान में लगे होते हैं. अगर आपको घंटों ईयरफोन लगाकर काम करना है, तो हर एक घंटे पर कम से कम 5 मिनट का ब्रेक लें.

अगर आप भी करते हैं तंबाकू का सेवन तो हो जाइए सावधान

तंबाकू से बनी बीड़ी व सिगरेट में कार्बन मोनोऔक्साइड, थायोसाइनेट, हाइड्रोजन साइनाइड व निकोटिन जैसे खतरनाक तत्त्व पाए जाते हैं, जो न केवल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को जन्म देते हैं, बल्कि शरीर को भी कई खतरनाक बीमारियों की तरफ धकेलते हैं. जो लोग तंबाकू या तंबाकू से बनी चीजों का सेवन नहीं करते हैं, वे भी तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों खासकर बीड़ीसिगरेट पीने वालों की संगत में बैठ कर यह बीमारी मोल ले लेते हैं. इसे अंगरेजी भाषा में ‘पैसिव स्मोकिंग’ कहते हैं.

नुकसान ही नुकसान

तंबाकू के सेवन में न केवल लोगों की कमाई का ज्यादातर हिस्सा बरबाद होता है, बल्कि इस से उन की सेहत पर भी कई तरह के गलत असर देखने को मिलते हैं, जो बाद में कैंसर के साथसाथ फेफड़े, लिवर व सांस की नली से जुड़ी कई बीमारियों को जन्म देने की वजह बनते हैं. तंबाकू या सिगरेट का इस्तेमाल करने से सांस में बदबू रहती है व दांत गंदे हो जाते हैं. इस में पाए जाने वाला निकोटिन शरीर की काम करने की ताकत को कम कर देता है और दिल से जुड़ी तमाम बीमारियों के साथसाथ ब्लड प्रैशर की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है.

पहचानें कैंसर को

डाक्टर वीके वर्मा का कहना है कि पूरी दुनिया में जितनी तादाद में मौतें होती हैं, उन में से 20 फीसदी मौतों की वजह सिर्फ कैंसर है. गाल, तालू, जीभ, होंठ व फेफड़े में कैंसर की एकमात्र वजह तंबाकू, पान, बीड़ीसिगरेट का सेवन है. अगर कोई शख्स तंबाकू या उस से बनी चीजों का इस्तेमाल कर रहा है, तो उसे नियमित तौर पर अपने शरीर के कुछ अंगों पर खास ध्यान देना चाहिए.

अगर आप पान या तंबाकू का सेवन करते हैं, तो यह देखते रहें कि जिस जगह पर आप पान या तंबाकू ज्यादातर रखते हैं, वहां पर कोई बदलाव तो नहीं दिखाई पड़ रहा है. इन बदलावों में मुंह में छाले, घाव या जीभ पर किसी तरह का जमाव, तालू पर दाने, मुंह का कम खुलना, लार का ज्यादा बनना, बेस्वाद होना, मुंह का ज्यादा सूखना जैसे लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, तो तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जा कर अपनी जांच कराएं. बताए गए सभी लक्षण कैंसर की शुरुआती दशा में दिखाई पड़ते हैं.

बढ़ती तंबाकू की लत

अकसर स्कूलकालेज जाने वाले किशोरों व नौजवानों को शौक में सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते देखा जा सकता है. यह आदत वे अपने से बड़ों से सीखते हैं. सरकार व कोर्ट द्वारा सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करने पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है और अगर ऐसा करते हुए किसी को पाया जाता है, तो उस पर जुर्माना भी लगाए जाने का कानून है, लेकिन यह आदेश सिर्फ आदेश बन कर ही रह गया है. हम गुटका खा कर जहांतहां थूक कर साफसुथरी जगहों को भी गंदा कर बैठते हैं, जो कई तरह की संक्रामक बीमारियों की वजह बनता है.

पा सकते हैं छुटकारा

एक सर्वे का आंकड़ा बताता है कि 73 फीसदी लोग तंबाकू खाना छोड़ना चाहते हैं, लेकिन इस का आदी होने की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते हैं. अगर आप में खुद पर पक्का यकीन है, तो आप तंबाकू की बुरी लत से न केवल छुटकारा पा सकते हैं, बल्कि तंबाकू को छोड़ कर दूसरों के लिए भी रोल मौडल बन सकते हैं.

तंबाकू या उस से बनी चीजों का सेवन करने वाला शख्स अगर कुछ देर इन चीजों को न पाए, तो वह अजीब तरह की उलझन यानी तलब का शिकार हो जाता है, क्योंकि उस का शरीर निकोटिन का आदी बन चुका होता है. ऐसे में लोग तंबाकू के द्वारा निकोटिन की मात्रा को ले कर राहत महसूस करते हैं, लेकिन यही राहत आगे चल कर जानलेवा लत भी बन सकती है.

इन सुझावों को अपना कर भी तंबाकू की लत से छुटकारा पाया जा सकता है:

* तंबाकू की लत को छोड़ने के लिए अपने किसी खास के जन्मदिन, शादी की सालगिरह या किसी दूसरे खास दिन को चुनें और आदत छोड़ने के लिए इस दिन को अपने सभी जानने वालों को जरूर बताएं.

* कुछ समय के लिए ऐसी जगह पर जाने से बचें, जहां तंबाकू उपयोग करने वालों की तादाद ज्यादा हो, क्योंकि ये लोग आप को फिर से तंबाकू के सेवन के लिए उकसा सकते हैं.

* तंबाकू, सिगरेट, माचिस, लाइटर, गुटका, पीकदान जैसी चीजों को घर से बाहर फेंक दें.

* तंबाकू या उस से बनी चीजों के उपयोग के लिए जो पैसा आप द्वारा खर्च किया जा रहा था, उस पैसे को बचा कर अपने किसी खास के लिए उपहार खरीदें. इस से आप को अलग तरह की खुशी मिलेगी.

* तंबाकू की तलब होने के बाद मुंह का जायका सुधारने के लिए दिन में 2 से 3 बार ब्रश करें. माउथवाश से कुल्ला कर के भी तलब को कम कर सकते हैं.

* हमेशा ऐसे लोगों के साथ बैठें, जो तंबाकू या सिगरेट का सेवन नहीं करते हैं और उन से इस बात की चर्चा करते रहें कि वे किस तरह से इन बुरी आदतों से बचे रहे हैं.

* बीड़ीसिगरेट पीने की तलब महसूस होने पर आप अपनेआप को किसी काम में बिजी करना न भूलें. पेंटिंग, फोटोग्राफी, लेखन जैसे शौक पाल कर तंबाकू की लत से छुटकारा पा सकते हैं.

इस मुद्दे पर डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि अकसर उन के पास ऐसे मरीज आते रहते हैं, जो किसी न किसी वजह से नशे का शिकार होते हैं और वे अपने नशे को छोड़ना चाहते हैं. लेकिन नशे के छोड़ने की वजह से उन को तमाम तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है, जिस में तंबाकू या सिगरेट छोड़ने के बाद लोगों में दिन में नींद आने की शिकायत बढ़ जाती है और रात को नींद कम आती है.

सिगरेट छोड़ने वाले को मीठा व तेल वाला भोजन करने की ज्यादा इच्छा होती है. इस के अलावा मुंह सूखने का एहसास होना, गले, मसूढ़ों व जीभ में दर्द होना, कब्ज, डायरिया या जी मिचलाने जैसी समस्या भी देखने को मिलती है. इस की वजह से वह मनोवैज्ञानिक रूप से मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाता है.

ऐसी हालत में तंबाकू की लत के शिकार लोगों को एकदम से इसे छोड़ने की सलाह दी जाती है, क्योंकि धीरेधीरे छोड़ने वाले अकसर फिर से तंबाकू की लत का शिकार होते पाए गए हैं. तंबाकू छोड़ने के बाद अकसर कोई शख्स हताशा का शिकार हो जाता है. इस हालत में उसे चाहिए कि वह समयसमय पर किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह लेना न भूले.

समय रहते पहचानें कैंसर के लक्षण, कहीं हो ना जाए देर

एक अनुमान के मुताबिक पुरुषों में कैंसर से होने वाली मृत्यु; 31 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर, 10 प्रतिशत प्रोस्टेट, 8 प्रतिशत कोलोरेक्टल, 6 प्रतिशत पैंक्रिएटिक और 4 प्रतिशत लिवर कैंसर से होती हैं. अगर आप इस समस्या से बचना चाहते हैं तो इसके शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें. जिससे आप इस समस्या से बच सकते है. जानिए इन लक्षणों के बारें में.

फीवर आना

फीवर कैंसर का एक सामान्य लक्षण होता है. कैंसर के कारण शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिसके कारण शरीर बीमारियों से खुद की रक्षा नहीं कर पाता और अक्सर बुखार की शिकायत होती है. इससे आपको ब्लड कैंसर, ल्यूकीमिया आदि लक्षण नजर आते हैं.

पीठ में दर्द

अधिक देर तक कुर्सी  पर बैठे रहने आदि से दर्द होना नार्मल है लेकिन आपको बराबर पीठ का दर्द सताता है तो आपको कोलोरेक्‍टल या प्रोस्‍टेट कैंसर हो सकता है. इसके अलावा आपकी कमर की मसल्स में भी दर्द रहता हैं.

आंत में हो किसी प्रकार की समस्या

आंतो में नार्मल प्राब्लम होना कोई बड़ी बात नहीं हैं,  लेकिन अगर बराबर आंतो में समस्या हो रही हो तो यह कैंसर के स्टार्ट का लक्षण हो सकता है. यह कोलेन या कोलोरेक्‍टल कैंसर हो सकता है. इस प्राब्लम में आपको पेट संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं.

यूरिन में बदलाव

जब आप वॉशरुम जाते हो तो आपको यूरिन करने में अधिक दर्द होता है या फिर ब्लड आए तो ये प्रोस्टेट कैंसर अथवा डिम्बग्रंथि कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

टेस्टिकल्‍स में चेंजमेंट

टेस्टिकल्‍स का बदलना टेस्टिकुलर कैंसर संकेत हो सकता है. अगर आपके टेस्टिकल्‍स का आकार बढ़ रहा है तो इसे नजरअंदाज न करें. टेस्टिकुलर कैंसर ज्‍यादातर 20 से 39 साल की उम्र में होता है.

लगातार ब्लड का निकलना

अगर आपके शरीर से लगातार ब्लड गिर रहा हौ तो यह भी कैंसर का एक लक्षण हो सकता है. यह कोलेन कैंसर हो सकता है, लेकिन यह कैंसर 50 साल की उम्र की बाद होता है. इस समस्या में आपको मलाशय के साथ खून आता है. लेकिन आज के सम में ये किसी भी उम्र में हो सकता हैं.

लगातार वेट कम होना

आज के समय में वजन कम करने के लिए कई उपाय करते हैं, लेकिन अगर आपका वजन बिना कोई उपाय कम हो रहा है तो आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है. अगर आपका वजन 10 पौंड से ज्यादा कम हो जाए,तो यह कैंसर के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं.

जल्द थक जाना

बेवजह लगातार थका-थका महसूस करना कैंसर का शुरुआती लक्षण है. कैंसर की शिकायत होने पर मरीज बिना वजह थका-थका महसूस करता है. कभी-कभी तो वह हाथ पांव से काम करने लायक भी नहीं रहता.

अधिक खांसी आना

अगर आपको सर्दी-जुकाम में खांसी आए तो कई बात नहीं. अगर आपको बिना किसी कारण खांसी आए तो आपको लंग कैसंर की समस्या हो सकती है. अगर खांसी के साथ आपके मुंह से खून आ जाए तो आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए.

स्किन में बदलाव

अगर आपकी स्किन एक दम से बदलाव आए तो यह कैंसर के शुरुआती लक्षण हो सकते है. इससे आपकी स्किन सांवली या काली या फिर पीला होना भी कैंसर का होने का एक लक्षण हैं.

हेल्दी नाश्ता करना है शरीर के लिए बेहद जरूरी

प्रोटीन हमारे शरीर की ग्रोथ के लिए महत्त्वपूर्ण है. इस के लिए अंकुरित दालें  विविध प्रकार के पोषक अनाज लिए जा सकते है. ऐंटीऔक्सीडैंट पदार्थों का सही मात्रा में सेवन करें. इस के लिए ग्रीन टी जरूर नाश्ते में शामिल करें. प्रतिदिन मौसमी जैसे फलों को अपने ब्रेकफास्ट में लेना न भूलें. जूस और शेक को नाश्ते की लिस्ट में जरूर रखें. पैक्ड जूस की जगह ताजे जूस का प्रयोग करें. नाश्ते में कार्बोहाइड्रेट्स और प्रोटीन, फैट और मिनरल्स का होना जरूरी है.

सुबह सुबह की भागादौड़ी में अधिकतर महिलाएं अपने नाश्ते को ले कर लापरवाही करती हैं. या तो वे टालमटोल करती रहती हैं या नाश्ता करना भूल ही जाती हैं. ऐसा करना महिलाओं की सेहत के लिए बेहद हानिकारक है. सुबह का नाश्ता स्वस्थ शरीर के लिए बेहद मायने रखता है. यह नाश्ता ही होता है, जो पूरे दिन हमारी पाचन क्रिया को सक्रिय बनाए रखता है. एक मैडिकल सैंटर के संचालक का कहना है, ‘‘यह धारणा बिलकुल गलत है कि सुबह नाश्ता न करने से मोटापा कम होता है. मोटापे को कम करने के लिए सही समय पर संतुलित आहार लेना चाहिए.’’

सुबह के नाश्ते की महत्ता बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘हमारी डाइजेशन की क्रिया सुबह के वक्त सब से बेहतर होती है. जिस तरह सुबह सुबह कोई अच्छी बात सुनने से हमारा पूरा दिन अच्छा बीतता है, हमारे भीतर सकारात्मकता का संचार होता है, उसी तरह सुबह स्वस्थ नाश्ता करने से पूरे दिन हमारे शरीर में ताजगी बनी रहती है.’’

नाश्ता न करने पर

  1. डाक्टरों का मानना है कि सुबह नाश्ता न करने से चेहरे पर उम्र बढ़ने का प्रभाव जल्दी ही दिखाई पड़ने लगता है.
  2. हमारी पाचनक्रिया असंतुलित हो जाती है, जिस से तरह तरह की बीमारियां होने लगती हैं.
  3. गौरतलब है कि स्वस्थ नाश्ता न करने से हमें आलस बहुत जल्द आने लगता है. साथ ही साथ हम भारीपन सा महसूस करते हैं.

कौन सी चीजें जरूरी

  1. सुबह का नाश्ता चूंकि हमारी पाचन क्रिया की शुरुआत करता है, इसलिए उस में कुछ मूल तत्त्वों का समावेश करना बेहद जरूरी है.

2. महिलाओं को प्राय: ऐसा लगता है कि वसायुक्त पदार्थ खाने से हमारी चरबी बढ़ जाएगी. लेकिन नाश्ते में सही मात्रा में वासयुक्त पदार्थों का होना भी बेहद जरूरी है. इस के लिए दुग्ध पदार्थों, देशी घी, मक्खन इत्यादि उचित अनुपात में खाएं.

3. जरा सोचिए, सुबहसुबह खाली पेट जब अपने आराध्य को याद करने में परेशानी होती है, तो भूखे पेट हमारे काम सुचारु रूप से कैसे होंगे.

भोजन से जुड़ी अच्छी आदतें

भोजन करना हमारी बुनियादी जरूरत है. इस के बगैर काम करने की हमारी ताकत पर बुरा असर पड़ता है. ज्यादा दिनों तक भूखा रहने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है. क्या आप जानते हैं कि भोजन करना भी एक कला है और उस से जुड़ी कुछ आदतें ऐसी हैं, जो आप की सेहत बना सकती हैं:

1. भोजन करने से पहले अगर शौच की हाजत लगी है, तो उसे कर के ही भोजन करने बैठें. अगर पेशाब करने की इच्छा हो तो उसे कर लें.

2. भोजन करने से पहले साबुन से हाथ धोना बेहद जरूरी है.

3. भोजन तभी करें, जब जोरों की भूख लगी हो.

4.  भोजन को ठीक से चबा कर खाना चाहिए. जल्दबाजी में भोजन को निगल लेने से वह ठीक से पचेगा नहीं. यही नहीं, दांतों का काम आंतों को करना होगा. एक ग्रास को कम से कम 25 से 30 बार चबाना चाहिए.

5. भोजन के ग्रास छोटेछोटे लें, ताकि उन्हें खाने, चबाने में सुविधा रहे. बड़ेबड़े ग्रास ले कर खाना बेहूदगी है.

6. भोजन के पहले या भोजन के दौरान और भोजन के तुरंत बाद ढेर सारा पानी न पीएं. इस से भोजन को पचाने में दिक्कत होती है. जरूरत पड़ने पर भोजन के दौरान 1-2 घूंट पानी ले सकते हैं, वरना भोजन के एक घंटा बाद ही पानी पीना चाहिए.

7. भोजन को शांत मन से करना चाहिए. जब आप दुखी हों, गुस्से या तनाव में हों, तब भोजन करने नहीं बैठना चाहिए. इस से न तो भोजन का स्वाद आएगा और न ही आप भरपेट भोजन कर सकेंगे.

8. एक ही बार में ठूंसठूंस कर खाने के बजाय हर 4 घंटे बाद थोड़ाथोड़ा खा लेना चाहिए. इस से पाचन सही रहता है और हर समय ऊर्जा बनी रहती है. डायबिटीज के मरीजों के लिए तो टुकड़ेटुकड़े में भोजन करना बेहद जरूरी है. इस से उन की शुगर सामान्य स्तर पर बनी रह सकती है.

9.  अपने भोजन में सभी चीजों को शामिल करें. किसी पसंदीदा चीज को खाना व दूसरी चीजों को चखना तक मंजूर न होना, यह आदत ठीक नहीं. घर में जोकुछ बना हो, खाना चाहिए. इस से आप का भोजन पौष्टिक व संतुलित होगा.

10. शादीब्याह या पार्टी में जाएं तो व्यंजन को देख कर ललचाएं नहीं. स्वाद के बजाय सेहत पर ध्यान दें. उतना ही खाएं, जिसे आप पचा सकें.

11. भोजन करें तो उन चीजों से परहेज करें जो आप के लिए मना है. अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं तो मीठे से तोबा करें. अगर हाई ब्लडप्रैशर है तो नमक कम खाएं. दालसब्जियों में ऊपर से नमक न डालें. अगर दिल की बीमारी है तो ज्यादा वसा यानी फैट वाला भोजन न लें. इस के अलावा भी अगर फूड एलर्जी है तो ऐसी चीजों के सेवन से बचें.

12. भोजन एकांत में नहीं परिवार वालों के साथ करें, तो उस का मजा ही अलग है. टैलीविजन के सामने बैठ कर भोजन न करें.

13. भोजन हमेशा ताजा, पचने वाला करना चाहिए.

14. भोजन की थाली से बीच में उठ कर जाना ठीक नहीं. अगर कोई काम है तो पहले उसे निबटा लें.

15. भोजन चाहे घर में करें या बाहर, उतना ही थाली में लें, जितना खा सकें.

16. कोशिश करें कि रोजाना तय समय पर ही भोजन करें.

17. भोजन के ठीक पहले या तुरंत बाद चायकौफी, आइसक्रीम व कोल्ड ड्रिंक का सेवन नहीं करना चाहिए. इस से पाचन क्रिया पर बुरा असर होता है.

18. भोजन हमेशा बैठ कर खाना चाहिए. खड़ेखड़े खाने की आदत ठीक नहीं है.

19. जहां तक मुमकिन हो, बाजार के खाने से बचें. मेले, ठेलों पर बिकने वाले चाटपकौड़ी या दूसरी चीजों का सेवन न करें, तो ही अच्छा है.

20. भोजन जैसा भी बना हो, उसे मन से खाएं. उस में मीनमेख न निकालें.

21. भोजन को इतमीनान से करें. उसे करने में 20 से 30 मिनट का समय लगना चाहिए. 5 मिनट में फटाफट खाने की आदत ठीक नहीं है.

22.  अगर भोजन करते समय खांसी आने लगे या ठसका लग जाए, तो वहां से उठ जाएं. राहत मिलने पर दोबारा भोजन शुरू करें.

23.  भूख से हमेशा थोड़ा कम खाएं, तो बेहतर रहेंगे. डट कर खाने से सुस्ती, आलस, घबराहट, बेचैनी वगैरह की शिकायत होगी.

24. अगर आप को एसिडिटी की शिकायत है, तो ज्यादा समय खाली पेट न रहें. नाश्ता जरूर लें. इस से एसिडिटी नहीं होगी.

25. भोजन करें तो 2 बेमेल चीजें एकसाथ न लें, जैसे खीर के साथ दही, अचार वगैरह का सेवन न करें.

26. अगर भोजन के पहले या उस के बाद कोई दवा लेना जरूरी है, तो उसे जरूर लें, खासतौर पर डायबिटीज के मरीज.

27. भोजन के बाद प्लेट या थाली में हाथ न धोएं. घर हो या बाहर, हर जगह इस बात का ध्यान रखना चाहिए.

28.  भोजन करने के फौरन बाद कड़ी मेहनत वाला काम नहीं करना चाहिए. भोजन के तुरंत बाद दौड़ना, तेज चलना, सीढि़यां चढ़ना, कसरत करना, जिस्मानी संबंध बनाना वगैरह काम नहीं करना चाहिए. इसी तरह भोजन के बाद मालिश करना, नहाना जैसे काम भी नहीं करने चाहिए.

29. भोजन करते ही सो जाना ठीक नहीं. दोपहर के भोजन के आधा घंटे बाद 20 मिनट की  झपकी ली जा सकती है. रात का भोजन करने के 2 घंटे बाद ही सोना चाहिए.

30.  भोजन के बाद ठीक से कुल्ला करना जरूरी है, ताकि दांतों में फंसे भोजन के कण बाहर निकल जाएं और बदबू पैदा न करें. रात के भोजन के बाद ब्रश कर के ही सोना चाहिए.

8 टिप्स: सेक्स पावर बढ़ाने की दवाइयों से रहें दूर, हो सकते हैं ये नुकसान

आप ने ऐसे कई विज्ञापन देखे होंगे जिन में सेक्स समस्याओं को खत्म करने और सेक्स पावर बढ़ाने की दवाओं के बारे में बताया जाता है. यों तो सेक्स पावर बढ़ाने का दावा कई दवा कंपनियां करती हैं, लेकिन सवाल है कि इन पर कितना विश्वास किया जाए. इस पर विचार करें. लेकिन आंखें बंद कर के भरोसा न करें. आप को ऐसे विज्ञापनों से सावधान रहने  की जरूरत है.

1.  बौडी पर बुरा प्रभाव :

ऐसी दवाएं किसी मान्यताप्राप्त लैब में नहीं, बल्कि झोलाछाप नीमहकीमों द्वारा बनाई जाती हैं, जिन्हें दवा बनाने की कोई साइंटिफिक जानकारी नहीं होती. इधरउधर, गांव के बुजुर्गों से मिले अधकचरे ज्ञान के आधार पर वे इन्हें तैयार करते हैं. दवा में किस चीज की मात्रा कितनी होनी चाहिए और कौन सी 2 चीजें एक ही दवाई में होने पर रिएैक्ट करेंगी, इस बारे में भी इन लोगों को कोई जानकारी नहीं होती है.

ये दवाएं सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त भी नहीं होती हैं. यही वजह है कि जब इन का सेवन किया जाता है तो ये शरीर पर गलत असर डालती हैं. कई बार तो इन के सेवन से धीरेधीरे शरीर के अंग भी काम करना बंद कर देते हैं. इसलिए वही दवाएं लें जो आप की समस्या के अनुसार मान्यताप्राप्त डाक्टर द्वारा दी गई हों.

2.  डोज का सही होना जरूरी

परेशानी चाहे तन से जुड़ी हो या मन से, उस का निवारण तभी हो सकता है जब उस की काट के लिए दवा सही मात्रा में ली जाए. इस के लिए जरूरी है कि सही डाक्टर से उचित देखरेख में ही यह काम किया जाए. लेकिन झोलाछाप, ओझा आदि पैसे बनाने के लिए और अधिक से अधिक दवा की बिक्री के लिए ज्यादा डोज लेने को कहते देते हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इस से मरीज की सेहत पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. इन चक्करों में पड़ने से बचें.

3. दवा के साइड इफैक्ट्स

कामोत्तेजना बढ़ाने वाली वियाग्रा जैसी कई दवाओं के भ्रामक विज्ञापन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं और युवा पीढ़ी इस ओर जल्द आकर्षित होती है और इन दवाओं का सेवन शुरू करती है. थोड़ा सा असर दिखने पर युवाओं को यह एक नशे के जैसा लगने लगता है और वे खुद ही इस की मात्रा बढ़ा देते हैं ताकि और मजे लिए जा सकें. मजे का तो पता  नहीं लेकिन इन दवाओं का साइड इफैक्ट होने लगते हैं और मरीज को थकान व कमजोरी जैसी समस्याएं महसूस होने लगती हैं. ऐसी कोई भी दवा लेने से बचें और अगर ले रहे हैं तो उन दवाओं के बारे में इंटरनैट पर पूरी जानकारी लें और फिर सोचविचार के बाद ही उन्हें खरीदने के बारे में सोचें.

4. अति हर चीज की बुरी

सेक्स पावर बढ़ाने जैसी कई दवाओं के विज्ञापन आएदिन छपते रहते हैं, लेकिन ये सभी सही नहीं होते हैं. सेक्स की हर व्यक्ति की अपनी इच्छा और क्षमता होती है. इसे किसी दूसरे से कंपैरिजन नहीं किया जा सकता है. इसलिए कहीं  पढ़ कर ऐसा न सोचें कि आप भी ये दवाएं खा कर हृष्टपुष्ट हो जाएंगे.

यदि अगर वास्तव में कोई दिक्कत है तो अपने डाक्टर से कंसल्ट करें और अपने अच्छे खानपान और पूरी नींद जैसी बातों पर ध्यान दें. इन विज्ञापनों के बारे में सोच कर ज्यादा ऐक्साइटेड न हों क्योंकि अति हर चीज की बुरी होती है. अगर आप की सेक्सलाइफ बिना कुछ किए ही अच्छी चल रही है तो फिर इन दवाओं का सेवन करना बेकार है.

5. गर्भ निरोधक गोलियां

गर्भ रोकने वाली दवाओं को बारबार लेने के घातक परिणाम हो सकते हैं. स्त्रियों के प्रजन्न अंगों पर इन का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. उपयोग करने के इच्छुकों को चाहिए कि वे डाक्टर से दवाओं के साइड इफैक्ट, उन के असफल होने की आशंकाएं और गर्भाशय से बाहर गर्भधारण की संभावनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें. यदि अगला मासिकधर्म न आए या मासिकधर्म के समय बहुत अधिक खून बहने लगे, तो हकीमों के पास जाने के बजाय तुरंत डाक्टर से जांच करवाएं.

डाक्टर से जांच करवा कर यह सुनिश्चित कर लें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार महिला इस दवा को लेने के लिए सक्षम है या नहीं. आपात गर्भनिरोधक गोलियों का विज्ञापन जिस तरह से किया जा रहा है उस से समाज में और विशेषरूप से युवावर्ग में यह भ्रांति फैल रही है कि बिना किसी डर के यौन संबंध बनाओ, गोली है न. लेकिन ऐसा नहीं है. युवाओं को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि इन गोलियों की जरूरत ही न पड़े.

ऐसा न हो कि आपात गोली आफत की गोली बन जाए. इसलिए डाक्टर से मिलें और किसकिस तरह के प्रोटैक्शन होते हैं और आप दोनों में से कौन सा प्रोटैक्शन लेना ज्यादा बेहतर होगा, आदि के बारे में बात कर के ही कोई प्रोटैक्शन यूज करें. सिर्फ इन विज्ञापनों में दी गई गोली का नाम पढ़ कर ही लेना शुरू न करें.

6. वियाग्रा का इस्तेमाल न करें

प्रिस्क्रिप्शन पर दी गई परफौर्मेंस बढ़ाने वाली दवाओं जैसे वियाग्रा का उपयोग कभी न करें, क्योंकि इन्हें पहले से ब्लडप्रैशर जैसी कंडीशन होने पर, लेना सुरक्षित नहीं होता, साथ ही, अगर आप शुगर की बीमारी से पीडि़त हैं तो भी यह दवा लेना सही नहीं है. यह आप के डाक्टर का काम है कि आप के लिए ऐसी दवा लिखें जो आप के लिए सुरक्षित हों और आप को बताएं कि आप को कितनी डोज से इन्हें लेने की शुरुआत करनी चाहिए. विशेषरूप से जब आप पहले से आप द्वारा ली जाने वाली दवाओं के साथ इन्हें लेने का प्लान बना रहे हों.

7. हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बनी दवाओं से सावधान

आप सेक्स की इच्छा बढ़ाने का दावा करने वाली हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बच कर रहें. इन में से कुछ के कारण असुविधाजनक इरैक्शन हो सकता है जो घंटों तक वापस नहीं आता और योहिम्बे जैसी हर्ब आप के हृदय की गति को बढ़ा कर कार्डियक अरैस्ट  की आशंका को बढ़ा देती है. इसलिए इन्हें लेने से पहले हमेशा अपने डाक्टर की सलाह लें.

8. स्टैरौयड न लें

गैरकानूनी स्टैरौयड आप की सेक्स इच्छा बढ़ा तो सकते हैं लेकिन बाद में आप को इस की महंगी कीमत चुकानी पड़ती है. ये आप के हृदय को नुकसान पहुंचा सकते हैं और शरीर में ऐसे अपरिविर्तनीय बदलाव ला सकते हैं जिन से आप कभी भी पूरी तरह से नहीं उबर नहीं सकते. बजाय इस के ऐसे प्राकृतिक और कानूनी रूप से वैध सप्लीमैंट का उपयोग करें जो स्टैरौयड के समान ही प्रभाव रखते हैं और आप को स्थायी रूप से कोई हानि भी नहीं पहुंचाते.

जानें पुरुषों में कम स्पर्म काउंट की वजह और उसका इलाज

भारत में यदि संतान के इच्छुक किसी दंपती को साल 2 साल में बच्चा नहीं होता, तो इस का जिम्मेदार केवल महिला को ठहराया जाता है, जबकि महिला को मां बनाने में नाकाम होना पुरुष की मर्दानगी पर सवाल होता है. पुरुष भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं और दोनों ही स्थितियों के स्पष्ट शारीरिक कारण हैं. पर अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है.

आज बच्चा पैदा करने में अपनी नाकामी की बात स्वीकार करने का साहस पुरुष भी दिखा रहे हैं. वे इस की जिम्मेदारी ले रहे हैं और इलाज के लिए आगे आ रहे हैं.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बच्चा पैदा करने की अक्षमता के लगभग एकतिहाई मामलों की जड़ पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी है, जबकि अन्य एकतिहाई के लिए महिलाओं की प्रजनन को जिम्मेदार माना जाता है. बाकी मामलों के कारण अभी ज्ञात नहीं हैं.

कारण

पुरुषों की प्रजनन अक्षमता के मुख्य कारण हैं- शुक्राणुओं की संख्या में कमी, उन की गति में कमी और टेस्टोस्टेरौन की कमी. शुक्राणुओं की संख्या में कमी से फर्टिलाइजेशन (निशेचन) की संभावना में बहुत कमी आती है, जबकि उन की गति धीमी पड़ने से शुक्राणु तेजी से तैर कर एग (अंडाणु) तक पहुंच कर उसे फर्टिलाइज करने में नाकाम रहता है. टेस्टोस्टेरौन एक हारमोन है, जिस की शुक्राणु पैदा करने में बड़ी भूमिका होती है. समस्या के ये कारण बदलते रहते हैं और इन में 1 या अधिक की मौजूदगी से पुरुष की प्रजनन क्षमता छिन सकती है.

शुक्राणुओं की संख्या या गुणवत्ता में कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे आनुवंशिक कारण, टेस्टिक्युलर (अंडकोश) की समस्या, क्रोनिक प्रौस्टेट का संक्रमण, स्क्रोटम की नसों का फूला होना और अंडकोश का सही से नीचे नहीं आना.

शुक्राणु बनने में बाधक कुछ अन्य कारण हैं कुछ खास रसायनों, धातुओं व विषैले तत्त्वों का अधिक प्रकोप और कैंसर का इलाज, जिस में रेडिएशन या कीमोथेरैपी शामिल है.

कुछ आम जोखिम भी हैं जैसे तंबाकू का सेवन, शराब पीना, जिस से पुरुषों के लिंग में पर्याप्त उत्तेजना नहीं होती और शुक्राणुओं की संख्या घट जाती है.

मोटापा भी एक कारण है, जिस के परिणामस्वरूप शुक्राणुओं की संख्या और टेस्टोस्टेरौन का स्तर गिर जाता है. इन सब के अलावा व्यायाम न करना या कम करना भी एक बड़ा कारण है.

काम की जगह जैसे फैक्टरी में अत्यधिक तापमान होना भी इस समस्या को जन्म देता है. इस से अंडकोश का तापमान बढ़ जाता है और शुक्राणु बनने की प्रक्रिया बाधित होती है.

बहुत से पुरुषों को उन के नपुंसक होने का तब तक सच नहीं पता चलता जब तक दोनों पतिपत्नी संतान का सपना सच करने का प्रयास शुरू नहीं करते. ऐसे में पतिपत्नी को चाहिए कि स्वाभाविक रूप से गर्भधारण के लिए 1 साल का समय दें और उस के बाद चिकित्सक से सलाह लें. यदि पत्नी 35 वर्ष से अधिक की हो तो 6 माह के प्रयास के बाद ही उस की उर्वरता की जांच जरूरी है. पुरुषों की प्रजनन क्षमता की जांच में शामिल है वीर्य का विश्लेषण, खून जांच, अल्ट्रासाउंड और जेनेटिक टैस्ट. समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए चिकित्सक 1 या अधिक जांचें करवा सकते हैं.

इलाज

आज इलाज के कई विकल्प मौजूद हैं. इन में एक कृत्रिम निशेचन है, जिस में उपचारित शुक्राणु को सीधे गर्भाशय में डाल दिया जाता है. दूसरा, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) है, जिस में महिला का अंडाणु बाहर निकाल कर उसे एक लैब में पुरुष से प्राप्त शुक्राणु से निशेचित कर वापस गर्भाशय में डाल दिया जाता है. एक अन्य इलाज है इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) जो शुक्राणुओं की संख्या नगण्य (या शून्य) या शुक्राणु के विकृत आकार में होने पर प्रभावी है. इस में केवल एक शुक्राणु को ले कर लैब के अंदर सीधे अंडाणु में डाल दिया जाता है ताकि भ्रूण बन जाए. इस का अर्थ यह है कि प्रचलित आईवीएफ से अलग इस में शुक्राणु को तैर कर अंडाणु तक जाने या अंडाणु की बाहरी परत को तोड़ कर अंदर घुसने की जरूरत नहीं रहती. परिणामस्वरूप निशेचन आसान हो जाता है. इन तकनीकों की मदद से नपुंसकता की समस्या होने के बावजूद पुरुष जैविक रूप से अपनी संतान का पिता बन सकता है.

कुछ मामलों में पतिपत्नी दोनों बच्चा पैदा करने में अक्षम होते हैं या उन में कुछ आनुवंशिक बीमारियों का पता चलता है, जो वे चाहते हैं कि उन की संतान तक नहीं पहुंचें. शुक्राणुओं की गुणवत्ता में अत्यधिक कमी के ऐसे मामलों में डोनर शुक्राणु का लाभ लिया जा सकता है. इस के अलावा, आज डोनर इंब्रायो का भी विकल्प है जो ऐसे दंपती दे सकते हैं, जिन्हें गर्भधारण में सफलता मिल गई है और उन के बचे निशेचित अंडाणु अब उन के किसी काम के नहीं हैं.

आज सैरोगेसी भी एक विकल्प है. इस में सैरोगेट महिला कृत्रिम रूप से निशेचित भ्रूण को स्वीकार कर संतान के इच्छुक दंपती के लिए गर्भधारण करती है.

भारत में अब अनुर्वरता के लिए विश्वस्तरीय उपचार केंद्र हैं. कुशल चिकित्सकों की मदद से हजारों नि:संतान दंपतियों के घर किलकारियों से गूंज रहे हैं. अनुर्वरता के उपचार के लिए आने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसलिए अब यह झुंझलाहट छोड़ें कि अनुर्वर कौन पति या पत्नी? बेहतर होगा, सीधे योग्य चिकित्सक से संपर्क कर अनुर्वरता के उपचार की आधुनिक तकनीकों का लाभ लें.

वीर्यपात में शुक्राणु नहीं होने पर इस समस्या को ऐजुस्पर्मिया कहते हैं. यह 2 प्रकार

की होती है:

औब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु बनता तो है पर इसे ले जाने वाली नली के बंद रहने से यह वीर्य के साथ नहीं निकलता. ऐसे मरीज के टेस्टिस की सर्जरी कर शुक्राणु निकाल फिर आईवीएफ का उपचार किया जा सकता है.

नौनऔब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु नहीं बनता है. चिकित्सा और आधुनिक उपचार से गर्भधारण हो सकता है पर इस की संभावना कम होती है.

पुरुष नपुंसकता के संभावित कारण

– हारमोन असंतुलन.

– संक्रमण जैसे कि ऐपिडिडिमिस या टेस्टिकल्स में सूजन अथवा यौन संबंध में कुछ संक्रमण.

– इम्यूनिटी की समस्याएं या बीमारियां.

– वीर्यपात की समस्याएं.

– सैलियक डिजीज जो ग्लूटेन के प्रति हाइपर सैंसिटिव है. ग्लूटेन फ्री आहार अपनाने से सुधार हो सकता है.

– वैरिकोसेले जो स्क्रोटम में नसों का बड़ा होना है. सर्जरी से सही हो सकता है.

– कैंसर और नौनमैलिग्नैंट ट्यूमर.

दवा से उपचार: टेस्टोस्टेरौन बदलने का उपचार, लंबे समय तक ऐनाबोलिक स्टेराइड का प्रयोग, कैंसर की दवाओं, ऐंटीफंगल दवाओं और अल्सर की दवाओं का प्रयोग.

गलत शीजवनशैली: मोटापा, पर्यावरण की विषाक्तता, औद्योगिक रसायन, हवा की गुणवत्ता में गिरावट, सिगरेट पीने, लंबे समय तक तनाव से पुरुषों में नपुंसकता की समस्या बढ़ती है.

नपुंसकता की जांच

– चिकित्सा का इतिहास: पारिवारिक इतिहास ताकि मरीज की चिकित्सा समस्या, पहले हुई सर्जरी और दवाइयों का रिकौर्ड रखा जा सके.

– शारीरिक परीक्षण: शारीरिक विषंगतियों की जांच.

– खून जांच: टेस्टोस्टेरौन और फौलिकल स्टिम्यूलेटिंग हारमोन (एफएसएच) के स्तर की जांच.

मानक वीर्य विश्लेषण: निम्नलिखित मूल्यांकन के लिए:

– गाढ़ापन वीर्य के प्राप्त नमूने में स्पर्माटाजोआ की संख्या.

– गतिशीलता: स्पर्माटाजोआ के चलने की गति

– संरचना: शुक्राणु की संरचनात्मक विकृति का आकलन.

यदि शुक्राणु बिलकुल नहीं हों तो वीर्य की अतिरिक्त जांच होती है, जिसे पैलेट ऐनालिसिस कहते हैं.

अगर आप भी घिरे रहते हैं गैजेट्स से, तो हो जाइए सावधान

किशोरों की सुबह मोबाइल अलार्म से शुरू हो कर आईपैड व वीडियो गेम्स, कंप्यूटर और वीडियो चैट, मूवी, लैपटौप आदि के इर्दगिर्द गुजरती है. दिनभर वे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप जैसी सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर बिजी रहते हैं. इन्हें नएनए गैजेट्स अपने जीवन में सब से अहम लगते हैं. इन की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन अगर इन का उपयोग जरूरत से ज्यादा होने लगे तो यह एक संकेत है कि आप अपनी सेहत के साथ खुद ही खिलवाड़ कर रहे हैं.

कैलाश हौस्पिटल, नोएडा के डाक्टर संदीप सहाय का कहना है कि देर रात तक स्मार्टफोन, टैब या लैपटौप का इस्तेमाल करने से नींद पर असर पड़ सकता है. इस से न सिर्फ गहरी नींद में खलल पड़ेगा बल्कि अगली सुबह थकावट का एहसास भी होगा. यदि हम एकदो रात अच्छी तरह से न सोएं तो थकावट का एहसास होने लगता है और चुस्ती कम हो जाती है. यह बात सही है कि इस से हमें शारीरिक या मानसिक तौर पर कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन यदि कईर् रातों तक नींद उड़ी रहे तो न सिर्फ शरीर पर थकान हावी रहेगी बल्कि एकाग्रता और सोचने की क्षमता पर भी असर पड़ेगा. लंबे समय में इस से उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

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गरदन में दर्द : लैपटौप में स्क्रीन और कीबोर्ड काफी नजदीक होते हैं. इस कारण इस पर काम करने वाले को झुकना पड़ता है. इसे गोद में रख कर इस्तेमाल करने पर गरदन को झुकाने की आवश्यकता पड़ती है. इस से गरदन में खिंचाव पैदा होता है, जिस से दर्द होता है. कभी कभी तो डिस्क भी अपनी जगह से खिसक जाती है. लैपटौप पर ज्यादा समय तक काम करने से शरीर का पौश्चर बिगड़ जाता है. लैपटौप में कीबोर्ड कम जगह में बनाया जाता है. इसलिए इस में उंगलियों को अलग स्थितियों में काम करना पड़ता है. इस से उंगलियों में दर्द होता है. चमकती स्क्रीन देखने पर आंखों में चुभन हो सकती है. आंखें लाल होना, उन में खुजली होना और धुंधला दिखाई देना सामान्य समस्याएं हैं.

स्पाइन, नर्व व मांसपेशियों में दिक्कत : दिन का अधिकतर समय लैपटौप पर बिताने से स्पाइन मुड़ जाती है. इस से स्प्रिंग की तरह काम करने की गरदन की जो कार्यप्रणाली है वह भी प्रभावित होती है. इस से तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त भी हो सकती हैं. अधिकतर लोग लैपटौप को पैरों पर रख कर काम करते हैं. इस से भी मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है.

ज्यादा टीवी देखना भी है हानिकारक : ब्रिटिश जर्नल औफ मैडिसन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार 25 या उस से अधिक उम्र के लोगों द्वारा हर घंटे देखे गए टीवी से उन का जीवनकाल 22 सैकंड कम हो जाता है. हर भारतीय एक सप्ताह में औसतन 15-20 घंटे टीवी देखता है. कई शोधों से यह बात भी सामने आई है कि हर घंटे देखे गए टीवी से उन का जीवनकाल 22 सैकंड कम हो जाता है. रोज 2 घंटे टीवी केसामने बिताने से टाइप 2 डायबिटीज और दिल की बीमारियों का खतरा 20त्न बढ़ जाता है.

पढ़ाई से ध्यान हटना :  जो युवा अपना अधिकतर समय कंप्यूटर व गैजेट्स के सामने बिताते हैं उन की पढ़ने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है और धीरेधीरे उन का मन पढ़ाई में कम और गैजेट्स में ज्यादा लगने लगता है. उन को घंटों बैठ कर पढ़ाई करने से ज्यादा अच्छा गेम खेलना लगता है. वे अगर किताबें ले कर बैठ भी जाते हैं तो भी उन का सारा ध्यान कंप्यूटर पर ही टिका रहता है, जो उन की पर्सनैलिटी को नैगेटिव बनाने के साथसाथ उन का कैरियर तक चौपट कर देता है.

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असामाजिक होना : वर्चुअल दुनिया का साथ मिलने पर युवा अकसर असामाजिक होने लगते हैं, क्योंकि वे उस दुनिया में अपनी मनमानी करते हैं. वहां उन्हें कोई रोकने वाला नहीं होता है.

लड़कों में नपुंसकता बढ़ती है : देश की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में किए जा रहे अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन और उस के टावर्स से निकलने वाली रेडिएशन पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर असर डालने के अलावा शरीर की कोशिकाओं के डिफैंस मैकेनिज्म को नुकसान पहुंचाती हैं.

क्यों होता है सेहत को नुकसान : एक शोध के अनुसार इलैक्ट्रौनिक उपकरणों के प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. ये उपकरण इलैक्ट्रोमैग्नैटिक रेडिएशन छोड़ते हैं, जिन में मोबाइल फोन, लैपटौप, टैबलेर्ट्स वाईफाई वायरलैस उपकरण शामिल हैं.

शोध के मुताबिक वायरलैस उपकरणों के ज्यादा उपयोग से इलैक्ट्रोमैग्नैटिक हाईपरसैंसेटिविटी की शिकायत हो जाती है, जिसे गैजेट एलर्जी भी कहा जा सकता है.

डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मोबाइल फोन की रेडियो फ्रीक्वैंसी फील्ड शरीर के ऊतकों को प्रभावित करती है. हालांकि शरीर का ऐनर्जी कंट्रोल मैकेनिज्म आरएफ ऐनर्जी के कारण पैदा गरमी को बाहर निकालता है, पर शोध साबित करते हैं कि यह फालतू ऐनर्जी ही अनेक बीमारियों की जड़ है. हम जिस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं उस के नुकसान को अनदेखा करते हैं. मोबाइल फोन, लैपटौप, एयरकंडीशनर, ब्लूटूथ, कंप्यूटर, एमपी3 प्लेयर आदि की रेडिएशंस से नुकसान होता है.

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ईएनटी विशेषज्ञ का कहना है कि नुकसान करने वाली रेडिएशंस हमारे स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ करती हैं और हमारी कार्यक्षमता को कम करती हैं. हम पूरे दिन लगभग 500 बार इलैक्ट्रोमैग्नैटिक रेडिएशंस से प्रभावित होते हैं. ये हमारी एकाग्रता को प्रभावित करती हैं. हमें चिड़चिड़ा बनाती हैं और थके होने का एहसास कराती हैं. हमारी स्मरणशक्ति को कमजोर करती हैं, प्रतिरोधक क्षमता को कम करती हैं और सिरदर्द जैसी समस्या पैदा करती हैं.

यही स्थिति मोबाइल की भी है अधिकांश लोग कम से कम 30 मिनट तक मोबाइल पर बात करते हैं. इस तरह एक साल में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले को 11 हजार मिनट का रेडिएशन ऐक्सपोजर का सामना करना पड़ता है. मोबाइल फोन के रेडिएशन के खतरे बढ़ते जा रहे हैं.

क्या कहती है रिसर्च

एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो किशोर कंप्यूटर या टीवी के सामने ज्यादा वक्त बिताते हैं उन किशोरों की हड्डियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिस की वजह से वे गंभीर स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहे हैं. नौर्वे में हुई एक रिसर्च में कहा गया है कि किशोरों में हड्डियों की समस्या बढ़ती जा रही है, जिस की वजह कंप्यूटर पर देर तक बैठ कर काम करना है.

अमेरिकन एकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स ने कंप्यूटर के इस्तेमाल का समय भी बताया. आर्कटिक विश्वविद्यालय औफ नौर्वे की एनी विंथर ने स्थानीय जर्नल में एक रिपोर्ट प्रकाशित कराई है, जिस में कंप्यूटर के सामने बैठने की वजह से शारीरिक नुकसान का आकलन किया गया है. इस रिपोर्ट के साथ ही अमेरिकन एकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स ने किशोरों के लिए कंप्यूटर के इस्तेमाल का समय भी बताया है.

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मोबाइल फोन, लैपटौप आदि के ज्यादा इस्तेमाल से आप की उम्र तेजी से बढ़ रही है, जिस से आप जल्दी बूढ़े हो सकते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक इस स्थिति को टैकनैक कहते हैं. इस में इंसान की त्वचा ढीली हो जाती है. गाल लटक जाते हैं और झुर्रियां पड़ जाती हैं. इन सब के कारण इंसान का चेहरा उम्र से पहले ही बूढ़ा लगने लगता है. इस के अलावा आंखों के नीचे काले घेरे बनने लगते हैं और गरदन व माथे पर उम्र से पहले ही गहरी लकीरें दिखने लगती हैं.

मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल के कौस्मैटिक सर्जन विनोद विज ने बताया कि मोबाइल फोन का लंबे वक्त तक झुक कर इस्तेमाल करने से गरदन, पीठ और कंधे का दर्द हो सकता है. इस के अलावा सिरदर्द, सुन्न, ऊपरी अंग में झुनझुनी के साथ आप को हाथ, बांह, कुहनी और कलाई में दर्द हो सकता है.

ऐसे बचें गैजेट्स की लत से

इंटरनैट और मोबाइल एसोसिएशन औफ इंडिया की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में 37 करोड़ 10 लाख मोबाइल इंटरनैट यूजर्स होने का अनुमान है, जिन में 40 फीसदी मोबाइल इंटरनैट यूजर्स 19 से 30 वर्ष के हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स का इस्तेमाल करने के लिए कई बार आगे की ओर झुकने से रीढ़ की हड्डी, मांसपेशियों और हड्डियों की प्रकृति में बदलाव होने लगता है.

कौस्मैटिक सर्जरी इंस्टिट्यूट के सीनियर कौस्मैटिक सर्जन मोहन थामस कहते हैं कि लोगों को अभी इस बात का एहसास नहीं है कि उन की त्वचा गरदन और रीढ़ की हड्डी को कितना नुकसान पहुंच रहा है. तकनीक के इस्तेमाल के आदी लोगों को इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स की लत से बचने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण गरदन की मांसपेशियां छोटी हो जाती हैं. इस के अलावा त्वचा का गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव भी बढ़ जाता है. इस के कारण त्वचा का ढीलापन, दोहरी ठुड्डी और जबड़ों के लटकने की समस्या हो जाती है.

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फ्रांस में अदालत का खटखटाया दरवाजा

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के नए आंकड़ों के मुताबिक भारत की 125 करोड़ की आबादी के पास 98 करोड़ मोबाइल कनैक्शन हैं. हाल ही में फ्रांस की एक अदालत ने इएचएस से पीडि़त एक महिला को विकलांगता भत्ता दे कर वाईफाई और इंटरनैट की पहुंच से दूर शहर छोड़ गांव में रहने का आदेश दिया. हालांकि ऐसा मामला अब तक भारत में नहीं आया, लेकिन अगर आप को भी शारीरिक कमजोरी हो तो डाक्टर को दिखाने के साथसाथ आप भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

19 दिन 19 टिप्स: अंडकोश के दर्द को ना करें इग्नोर, हो सकता है कैंसर

अंडकोश के कैंसर पर नई खोज करने वाले अमेरिका के आर्मी मैडिकल सैंटर के यूरोलौजी औंकोलौजिस्ट विभाग के प्रमुख डा. का कहना है कि पुरुष अंडकोश के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. कैंसर विशेषज्ञ का कहना है कि अधिकतर भारतीय पुरुष अंडकोश के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोश में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं.

जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं. हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोश में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोश में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोश के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोश पर गांठ, अंडकोश का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

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अंडकोश कैंसर के कारण

किसी भी व्यक्ति के अंडकोश में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म : यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोश शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोश कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोश को बाहर कर देते हैं.

आनुवंशिकता : यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोश के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोश की जांच करते रहना चाहिए.

बचपन की चोट : बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोश में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोश के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोश में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.

हर्निया : हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोश में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.

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हाइड्रोसील : हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोश की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोश में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोश प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोश का कैंसर हो सकता है.

इंपोटैंसी : नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोश के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोश कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.

अंडकोश का इलाज : अंडकोश में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोश का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोश में चोट न लगे.

तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोश को चोट लग सकती है.

किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.

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क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोश का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोश पर अधिक दबाव पड़ता है.

सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोश को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोश को गरमी पहुंचाता है.

हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोश को हवा लग सके.

अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोश को तेज गरमी से बचाएं.

अंडकोश पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोश में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोश की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

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