‘‘स्ट्रीट डांसर 3D: अति घटिया फिल्म’’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः टीसीरीज और लेजली डिसूजा

निर्देशकः रेमो डिसूजा

कलाकारः वरूण धवन, श्रृद्धा कपूर, राघव जुआल, नोरा फतेही, प्रभूदेवा, मुरली शर्मा, अपराशक्ति खुराना व अन्य. 

अवधिः दो घंटे तीस मिनट

नृत्य पर आधारित सफल फिल्म ‘‘एबीसीडी’’की तीसरी फ्रेंंचाइजी ‘‘स्ट्रीट डांसर थ्री डी’’ में नृत्य जरुर है, मगर फिल्म से रूह गायब है. फिल्म में न कहानी है और न ही ऐेसे नृत्य जिन पर आप थिरकना चाहे. यह तो नृत्य के नाम उलजलूल उछलकूद और कुछ जिम के कदम हैं. इस फिल्म से दूर रहने में ही भलाई है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी लंदन की है, जहां पर सहज अपने माता पिता व बड़े भाई के साथ रहता है. सहज का बड़ा भाई (राघव जुआल) मशहूर डांसर है, मगर एक नृत्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेते समय ऐसा चोटिल हुए कि अभी भी इलाज चल रहा है. सहज लंदन से पंजाब एक शादी में आता है. अपनी दादी से मिलता है. छाबड़ा (मनोज पाहवा) से भी मुलाकात होती है, छाबड़ा के कहने पर सहज पंजाब से वापस लंदन वापस जाते समय उनसे बहुत बड़ी रकम लेकर चार पंजाबी ढोलक बजाने वालों को भी ले जाता है और उन्हें लंदन एअरपोर्ट पर छोड़ देता है, जो कि बाद में रिफ्यूजी की तरह लंदन पुलिस से भागते हुए नारकीय जिंदगी जीते हैंं.

मगर इन ढोलक बजाने वालों से मिली रकम से सहज लंदन में जमीन खरीदकर एक आलीशान डांस स्टूडियो बनाता है, जहां वह और उसके बड़े भाई लड़को को नृत्य  की शिक्षा देते हैं. अब सहज का सपना अपने बड़े भाई के सपने को पूरा करना है. इसके लिए वह पुनः अपने भाई के नृत्य ग्रुप ‘स्ट्रीट डांसर’ के सभी लड़कों को इकट्ठा करके डांस की प्रैक्टिस शुरू करता है. इसमें एक लड़की नोरा फतेही भी है. उधर ‘स्ट्रीट डांसर’ ग्रुप का विरोधी ग्रुप है- ‘‘रूल्स ब्रेकर’’. जिसकी मुखिया पाकिस्तानी परिवार की लड़की इनायत (श्रृद्धा कपूर) है, जो कि अपने माता पिता को बिना बताए सड़कों पर नृत्य करती रहती है.

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यह दोनो ग्रुप एक क्लब में भारत व पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच देखने जाते हैं और आपस में वहां भिड़ते रहते हैं. यह सब क्लब का मालिक रामप्रसाद (प्रभू देवा) देखता रहता है, कभी वह पुलिस अफसर (मुरली शर्मा) को बुला लेता है और कभी बीच बचाव करता है. एक दिन इनायत को पता चल जाता है कि राम प्रसाद ने तीन हजार रिफ्यूजियों को शरण दे रखी है और उन्हे दो वक्त का भोजन भी दे रहा है.

तथा वह चाहते हैं कि किसी तरह यह सभी अपने अपने वतन लौट जाएं. इनायत यह जानकर राम प्रसाद के साथ हो जाती है और चाहती है कि वह ‘जीरो गांउंड’ प्रतियोगिता का हिस्सा बनकर हजार पौंड की रकम जीतकर रिफ्यूजियो को उनके वतन जाने में मदद करे. अब पता चलता है कि राम प्रसाद भी बहुत बड़े डांंसर हैं. रामप्रसाद चाहते है कि सहज उनके साथ मिल जाए, पर पहले वह तैयार नहीं होता. पर अंततः इंटरवल के बाद सहज, रामप्रसाद व इनायत एक हो जाते हैं और फिल्म का अंत सुखद होता है.

लेखन व निर्देशनः

अति घटिया पटकथा व अति घटिया संवादों के चलते फिल्म कहीं से भी दर्शनीय नहीं है. 15 मिनट की कहानी को पटकथा लेखक तुशार हीरानंदानी ने बेतरीब तरीके से ढाई घंटे की फिल्म में खींचा है. इसे एडीटिंग टेबल पर कस कर डेढ़ घंटे के अंदर समेटना चाहिए था. कम से कम तुशार हीरानंदानी से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती. फिल्म में ग्यारह बड़े नृत्य है, जिनका कहानी से कोई जुड़ाव नहीं है और एक भी नृत्य ऐसा नही है, जिस पर आम इंसान थिरकना चाहे.

निर्देशक के तौर पर रेमो डिसूजा बुरी तरह से विफल रहे हैंं.फिल्म देखकर ऐसा लगता है कि उन्होेने अपने सभी चेलों को इस फिल्म का हिस्सा बनाकर उनकी जेबें गरम करवाने का प्रयास किया है. पूरे विश्व में रह रहे रिफ्यूजियो का मुद्दा अतिसंवेदनशील और अति संजीदा मुद्दा है. मगर अफसोस की बात यह है कि तुशार हीरानंदानी औैर रेमो डिसूजा ने रिफ्यूजियों के मुद्दे को बहुत ही सतही व हास्यास्पद बना दिया है. कहीं भी इनका दुःख, दर्द ,बेबसी नहीं उभरती. कहींं इनके आंसू नजर नहीं आते. महज मेलोड्रामा पैदा करने के लिए इनके वतन वापसी की लालसा का एक सीन है. रिफ्यूजी का यह मुद्दा फिल्म में गैर जरूरी पैबंद सा है. इसी तरह बेवजह भारत व पाक के बीच क्रिकेट मैच का भी सीन दिया गया है. इन सभी दृश्यों से फिल्म की लंबाई तो बढी़, साथ ही साथ निर्देशक ने दर्शंकों के सब्र की परीक्षा लेने का काम किया है. फिल्म में इमोशंस का भी घो अभाव है.

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इतना ही नही अंत में देशभक्ति का मुद्दा डालने के लिए फिल्म के क्लायमेक्स में ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ गाने पर एक डांस रखा गया है, इस गाने पर भारतीय व पाकिस्तानी दोनो नृत्य कर रहे है, नृत्य करते समय यह जो रंग विखेरते हैं, उससे भारतीय तिरंगा बनता हुआ नजर आता है, अब इसे क्या कहा जाए?

अभिनयः

जहां तक अभिनय की बात है तो यह फिल्म देखकर लगता है कि वरूण धवन और श्रृद्धा कपूर भी अभिनय भूल चुके हैं. इसमें काफी गलती पटकथा लेखक व निर्देशक की भी है. पर अभिनय में श्रृद्धा कपूर के मुकाबले नोरा फतेही ने बाजी मार ली है. अपराशक्ति खुराना भी असफल रहे.

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