जवान जीवनसाथी की बेवक्त मौत के बाद पत्नी की स्थिति

नरायनपुर गांव का रहने वाले प्रताप दिल्ली में नौकरी करता था. गांव में उस का पूरा परिवार रहता था. प्रताप के परिवार में उस के पिता, भाई, पत्नी और बच्चे सभी लोग थे. जब से प्रताप दिल्ली में नौकरी कर रहा था, घर के माली हालात अच्छे हो गए थे. वह हर महीने 30,000 रुपए के आसपास घर भेजता था. हर 6 महीने में वह अपने गांव भी जाता था. कई बार उस की पत्नी नीलिमा उसे अपने साथ ले कर जाने को कहती थी. प्रताप उसे सम?ाता था कि दिल्ली बहुत महंगा शहर है. वहां परिवार रहने लगेगा, तो सारा पैसा उसी में खर्च हो जाएगा. जब वेतन कुछ बढ़ जाएगा, तो उसे साथ ले जाएगा. नीलिमा भी बात को सम?ा लेती थी.

कोविड के दिनों में प्रताप गांव आया था. उसी समय गांव में उस के परिवार में ही शादी थी. छोटी सी बरात पास के ही गांव में गई थी. प्रताप भी बरात में चला गया. अगले दिन जब बरात विदा हो कर वापस आ रही थी, तो प्रताप की गाड़ी एक ट्रक से टकरा गई. कार और ट्रक की टक्कर में प्रताप और कार में सवार  2 और दूसरे लोगों की मौत हो गई.

प्रताप की मौत की खबर जैसे ही उस के घर पहुंची, पूरे घर में कोहराम मच गया. प्रताप की मौत ने उस के पूरे परिवार को तहसनहस कर दिया.  सब से बड़ा सदमा प्रताप की पत्नी नीलिमा पर पड़ा. 25 साल की नीलिमा ने कभी सपने में भी यह कल्पना नहीं की थी कि उस के सामने ऐसा समय भी आएगा. प्रताप का पूरा परिवार एकजुट था. प्रताप के 2 बच्चे बारबार उस के बारे में सवाल कर रहे थे. ऐसे में नीलिमा कोई जवाब नहीं दे पाती और केवल रोती रहती.

नीलिमा के सामने एक तरफ प्रताप की मौत का गम था, तो वहीं दूसरी ओर रीतिरिवाजों के नाम पर उस का मानसिक शोषण हो रहा था. प्रताप के मरते ही नीलिमा के बदन से सुहाग का हर सामान उतार दिया गया था. उस को पहनने के लिए सफेद साड़ी दे दी गई थी. वह अंधेरे कमरे में अकेले बैठी रहती. न किसी से बोल पाती और न किसी से कोई बात कर पाती थी. नातेरिश्तेदार और गांव के लोेग जब शोक जाहिर करने आते, तो उसे सब के सामने रोना होता. कोई उसे शुभ काम में अपने घर नहीं बुलाता. सुबह वह किसी के आगे पड़ जाती है, तो लोग मुंह  बनाते हैं. वे उसे अपशकुन मानते हैं.

नीलिमा को लगने लगा कि प्रताप के साथ वह भी मर गई होती तो कितना अच्छा रहता. वह इस जुल्म से तो बच जाती. न आएं बहकावे में ऐसे हालात केवल नीलिमा के सामने ही नहीं आए. युवा जीवनसाथी की असमय मौत होने पर सभी के सामने ऐसे हालात आते हैं. यह मौत चाहे एक्सीडैंट में हुई हो या किसी बीमारी से. एक्सीडैंट में होने वाली मौत में हालात एकदम से सामने आते हैं और बीमारी में धीरेधीरे परेशानी सामने आती है.

कोविड के दिनों में बहुतों ने अपने जीवनसाथी को असमय और अचानक खोया है. जिन के पास पैसा है, अच्छी पढ़ाई है, उन में से तो पति या पत्नी जो भी बचा हो, अपनेआप को संभाल सकता है, पर जो न पढ़ा हुआ या महज हिंदी मीडियम से पढ़ा हुआ, जिसे ऊंचा समाज बेकार का सम?ाता है, अंधेरे में रह जाता है.

36 साल की गीता का पति प्रवेश सरकारी नौकरी करता था. उस को शराब पीने की बुरी आदत थी. इस के चलते प्रवेश का लिवर कब खराब हो गया, उसे पता ही नहीं चला. वह कमजोर रहने लगा. धीरेधीरे बीमारी ने उस के पूरे शरीर को जकड़ लिया. एक बार उसे तेज बुखार आया. बुखार ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था. ऐसे में प्रवेश को मैडिकल कालेज लाया गया, जहां डाक्टरों ने जांच के बाद पाया कि प्रवेश का लिवर काम नहीं कर रहा है और वह ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रह पाएगा. प्रवेश की बीमारी की जानकारी उस की पत्नी को लगी, तो वह बेहद परेशान हो गई. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या करे?

प्रवेश इस बात की जानकारी अपने परिवार को बताना चाहता था. प्रवेश की पत्नी गीता नहीं चाहती थी कि वह अपने परिवार को इस बातकी जानकारी दे. गीता ने प्रवेश की बीमारी की सूचना अपने मायके वालों को दी. मायके वालों ने गीता को सम?ाया कि वह इस बारे में किसी को कुछ न बताए. एक दिन अचानक प्रवेश की मौत  हो गई. गीता ने अपने मायके वालों के कहने पर प्रवेश के परिवार को दूर ही रखा. गीता के मायके वालों ने सोचा था कि प्रवेश के नाम पर ढेर सारा पैसा मिलेगा. गीता को सरकारी नौकरी मिल जाएगी. सबकुछ मायके वालों के प्रभाव में आ जाएगा.

जब प्रवेश के औफिस में संपर्क किया गया तो पता चला कि उस के पास बैंक में पैसे के नाम पर कुछ भी नहीं है. पीएफ और फंड जैसी रकम भी प्रवेश ने निकाल कर नशे में खर्च कर डाली थी. औफिस वालों ने यह भी बताया कि उस के परिवार में किसी को नौकरी नहीं मिलेगी, क्योंकि मरने वाले के परिवार के लोगों को नौकरी देने का नियम उन के यहां नहीं था. गीता के मायके वालों और उस के रिश्तेदारों को जब इस बात का पता चला, तो वह उस से दूर होने लगे. पति की असमय मौत ने गीता के सामने मुसीबत का पहाड़ खड़ा कर दिया था. उस के बच्चे भी इस लायक नहीं थे कि कुछ कर सकें.

गीता ने प्रवेश के परिवार के लोगों को पहले से ही अपने से दूर कर दिया था. परिवार वालों की नाराजगी यह थी कि उन्हें प्रवेश की मौत के बारे में बताया नहीं गया. गीता अपने मायके वालों के बहकावे में आ गई. अब वह पूरी तरह से अकेली हो गई है. वह खुद केवल 12वीं पास थी और वह भी हिंदी मीडियम से, जिस की कीमत न के बराबर होती है.

गीता जैसी गलती रूपा ने भी की. रूपा के पति विशाल की मौत भी एक्सीडैंट में हुई थी. रूपा की 2 साल की बेटी थी. जब पति की मौत हुई, तब रूपा की उम्र 26 साल थी. उस के 2 बहनें और एक भाई है. रूपा को पति की मौत के बाद जीवन बीमा और औफिस से कुल मिला कर 8 लाख रुपए मिले थे. मायके वालों ने रूपा को ससुराल में रहने नहीं दिया. उन लोगों ने रूपा से कहा कि अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? तुम्हारी दूसरी शादी कर देंगे.

रूपा मायके वालों की बातों में आ कर उन के साथ रहने लगी. ससुराल न जाने से वहां से उस की दूरी बढ़ती गई. मायके में कुछ दिन बाद सब ठीक हो गया. रूपा की शादी की बात मायके वाले भूल गए. उन के सामने 2 छोटी बहनों की भी समस्या थी. वे लोग चाहते थे कि रूपा अपना पैसा बहनों पर खर्च कर उन की शादी करे. इस बात को ले कर आपस में मनमुटाव भी बना. अब रूपा उन्हीं पैसों से मिलने वाले ब्याज से अपना गुजारा कर रही है. वह अपनी बेटी को पढ़ा भी रही है.

रूपा अब ससुराल भी जाने लगी है, पर उसे इस बात का अफसोस है कि उस ने मायके वालों की बात मानी थी.  रूपा कहती है, ‘‘अगर मैं पति की मौत के बाद ससुराल में रह रही होती, तो वे लोग हमारी और बेटी दोनों  की जिम्मेदारी ज्यादा बेहतर तरीके से निभाते.’’

हिम्मत से निभाएं जिम्मेदारी

30 साल की रुचि की शादी को 4 साल बीत गए थे. उस का पति फाइनैंस ले कर कर ठेकेदारी का काम करता था. ठेकेदारी में सतीश को कभी ज्यादा पैसा मिल जाता था, तो कभी नुकसान भी उठाना पड़ जाता था. कोविड के दिनों में उस का धंधा बंद हो गया, तो तनाव में आ कर  सतीश ने एक दिन गोली मार कर जान दे दी.  रुचि के सामने 2 रास्ते थे. या तो वह ससुराल में सतीश की विधवा के रूप में रहे या फिर मायके चली जाए. रुचि ने अपनेआप को हालात से लड़ने के लिए तैयार किया.

रुचि ने ससुराल वालों से अपने पैसे मांगे. ससुराल वालों ने रुचि को 3 लाख रुपए दे दिए. पैसे ले कर वह अपने मायके आई. उस को डिजाइनर कपड़ों की सिलाई करने का शौक पहले से था. मायके में एक दुकान किराए पर ले कर रुचि ने बुटीक खोला. कुछ दिनों की मेहनत के बाद उस का बुटीक चल निकला. अब उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं थी. उस का हुनर उस के काम आया.

रुचि कहती है, ‘‘दोबारा शादी करने में कोई बुराई नहीं है. अगर कोई मनपसंद साथी मिल गया तो शादी कर लूंगी. जब ऐसी मुसीबत आए तो कभी घबराना नहीं चाहिए. पत्नी की मौत के बाद पति को भी तो घर की सारी जिम्मेदारी निभानी चाहिए. ‘‘इस के लिए पूरी हिम्मत, मेहनत और लगन से काम करना चाहिए. समाज में छुईमुई बनने से फायदा नहीं होता, उलटे ऐसे लोगों का शोषण ज्यादा  होता है.’’

अच्छा उपाय दूसरी शादी

नेहा का पति विनय सेना में था. दुश्मनों से लड़ाई के दौरान वह शहीद हो गया. उस समय नेहा की शादी को  8 महीने ही हुए थे. सेना की ओर से पैसा और दूसरी सुविधाएं मिलती देख विनय के घर वालों के मन में मैल आ गया. वे लोग यह साबित करने में जुट गए कि नेहा और विनय की शादी ही नहीं हुई थी.  नेहा के घर वाले यह तो चाहते थे कि उस की दूसरी शादी हो जाए, पर वे विनय की जायदाद में हक भी चाहते थे. इस बात को ले कर दोनों परिवारों के बीच मुकदमेबाजी शुरू हुई.

कुछ ही दिनों में दोनों परिवारों को यह सम?ा में आ गया कि मुकदमेबाजी से कुछ नहीं होगा, तब दोनों परिवारों के बीच सम?ौता हुआ. नेहा अपना हिस्सा ले कर चली गई. अब नेहा ने दूसरी शादी कर ली है. वह अपने नए जीवनसाथी के साथ खुश है. नेहा कहती है, ‘‘पहले समाज में विधवा विवाह को सही नहीं माना जाता था, पर अब लोग इस को बुरा नहीं मानते. इस में कोई बुराई भी नहीं है. समाज का जो ढांचा बना है, उस में किसी कम उम्र की औरत को सारी जिंदगी बिना किसी साथी के गुजार देना आसान नहीं है. ऐसे में दूसरी शादी अच्छा उपाय है.’’

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