सुप्रीम कोर्ट ने दलितों को जगाया

भारतीय जनता पार्टी बहुत कोशिश कर रही है कि देश में राजनीति पर बात हिंदूमुसलिम को ले कर हो पर उस के वार बेकार जा रहे हैं और बात बारबार जाति पर आ जाती है. जब से सुप्रीम कोर्ट ने शैड्यूल कास्ट और शैड्यूल ट्राइब्स में क्रीमी लेयर बनाने और उन को आपसी कोटे में कोटे का फैसला दिया है, बात जाति पर होने लगी है और वक्फ ऐक्ट हो या सैक्यूलर यूनिफौर्म सिविल कोड पर बात का दही जम ही नहीं रहा.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना सरकारों, खासतौर पर भाजपा सरकारों के लिए मुश्किल होगा. शैड्यूल कास्टों को डिवाइड करना एक टेढ़ी खीर है. हालांकि हरेक को अपनी जातिउपजाति पता है पर सिर्फ सरकारी नौकरी के लिए अपने को किसी और से कमतर मानने के लिए उस उपजाति के सभी लोग मान जाएंगे, यह नामुमकिन है. इस पर खूब जूते चलेंगे.

आजकल जाति का सर्टिफिकेट लेना आसान हो गया है. 75 सालों से चले आ रहे सिस्टम की खराबियां काफी दूर हो चुकी हैं. कुछ बातें ढकी हुई हैं. ऊंचनीच का भेद मालूम नहीं है और अगर मालूम है तो भी शादी तक ही रह जाता है. अब तहसीलदार को सर्टिफिकेट देना होगा कि कौन किस उपजाति का है. इस से पहले सरकार को तय करना होगा कि कौम की उपजाति दूसरी उपजाति से अलग है.

हमारे यहां कोई इतिहास तो है नहीं जिस में लिखा हो कि कौन ऊंचा, कौन नीचा. पौराणिक ग्रंथ तो एससीएसटी की बात करते तक नहीं हैं. वे शूद्रों की बात करते हैं और यही माना जाता है कि ये शूद्र अछूत नहीं थे और आज की अदर बैकवर्ड क्लासें हैं. कानूनों को सुबूत चाहिए होंगे, जिन की चर्चा न पुराणों में है. न बाद के लिए संस्कृत ग्रंथों में, न मुसलिम इतिहासकारों की किताबों में, उन्हें कैसे परखा जाए?

अंगरेजों ने जनगणना में जाति का नाम लिखा पर कौन ऊंचा, कौन नीचा और नीचों में कौन ज्यादा नीचा इस से उन्हें मतलब नहीं था क्योंकि उन्हें नौकरियां थोड़े ही देनी थीं. अब नौकरियों का सवाल है, ऐसी नौकरियां जो पक्की हैं और जिन में ऊपरी कमाई भरपूर हो. ऊंची जातियों की पहले ही इन नौकरियों पर नजर हैं चाहे वे चपरासी की क्यों न हों. शैड्यूल कास्टों को यह भी डर है कि बिल्ली बिल्ली की लड़ाई में बंदर ही सारा माल हड़प न ले.

कहने को ऊंची जातियां कहती रहें कि जाति है ही कहां जब केंद्रीय मंत्री राहुल गांधी को जाति जनगणना पर जवाब दें कि, ‘जिन्हें अपनी जाति का पता नहीं वे जाति जनगणना की बात कैसे कर सकते हैं.’ तो साफ है कि उन के दिमाग में जाति भरी है. शैड्यूल कास्ट वोटर उसे समझ नहीं पा रहे हों, यह भूल जाएं.

उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोकसभा चुनावों ने साफ कर दिया कि जाति का सवाल अभी भी अहम है. इन दोनों राज्यों के ऊंची जातियों के मुख्यमंत्रियों ने भाजपा के सपनों की नाव को डुबाया है क्योंकि वे जाति के नाम पर नाव में खुद चूहे छोड़ रहे थे जो नाव को कुतर रहे थे.

अब सुप्रीम कोर्ट ने सोए दलितों को जगा दिया है. वे अपनी जाति की पोटली संभालने लगेंगे तो ऊंची जातियों में यह बीमारी फैलेगी. ओबीसी भी कोटे में कोटा मांगेंगे. धर्म की देन जाति ने 2000 साल से ज्यादा धर्म को संभाला है. अब यह हाथी डायनासोर न बन जाए.

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