वर्मा मलिक : दो सरनेम वाला एक शानदार गीतकार

आप ने ‘राष्ट्रीय गान’ के बारे में तो खूब सुना होगा, पर अगर आप से ‘बरात गान’ के बारे में पूछा जाए कि वह कौन सा गाना है, जो हर बरात में जरूर बजता है, तो यकीनन आप सिर खुजाते हुए कहेंगे कि गाने तो बहुत से हैं, लेकिन शायद ही ऐसी कोई बरात होगी, जिस में ‘आज मेरे यार की शादी है…’ गाना न बजा हो. बराती फरमाइश कर के बैंड वालों से इस गाने की धुन बजवाते हैं और फिर जम कर नाचते हैं.

इस ‘बरात गान’ को लिखा किस ने था? यह हमारा दूसरा सवाल है. दरअसल, आज हम आप को ऐसी शख्सीयत से मिलवा रहे हैं, जिन के 2 गाने हर शादीब्याह में जरूर बजते हैं. पहला गाना फिल्म ‘आदमी सड़क का’ से ‘आज मेरे यार की शादी…’ है और दूसरा गाना फिल्म ‘जानी दुश्मन’ से ‘चलो रे डोली उठाओ कहार’ है. गीतकार का नाम है वर्मा मलिक. पर यह अजीब सा उन का असली नाम नहीं है.

वर्मा मलिक 13 अप्रैल, 1925 को भारत के उस फिरोजपुर हिस्से में जनमे थे जो आज का पाकिस्तान है. इन के मांबाप ने नाम रखा था बरकत राय. और इस पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे थे, क्योंकि इन्होंने छोटी सी उम्र में ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं.

चूंकि तब भारत आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तो बरकत राय कांग्रेस के सदस्य बन गए थे. स्कूल में पढ़ाई के दिनों वे अंगरेजों के खिलाफ कांग्रेस के जलसों और सभाओं में देशभक्ति के गीत गाते थे. इस दौरान उन्हें जेल भी हुई थी, लेकिन उम्र कम होने की वजह से वे रिहा कर दिए गए थे.

साल 1947 में जब भारत 2 हिस्सों में बंटा तो बरकत राय दंगों के दौरान जख्मी भी हुए थे और अपने परिवार के साथ जान बचा कर किसी तरह दिल्ली पहुंचे थे. दिल्ली में संगीतकार हंसराज बहल के भाई बरकत राय के काफी नजदीकी दोस्त थे. उन्होंने ही बरकत राय को मुंबई जाने की सलाह दी थी.

बरकत राय ने इस सलाह पर अमल किया और उन्हें फिल्मों में पहला मौका संगीतकार हंसराज बहल ने पंजाबी फिल्म ‘चकोरी’ में दिया था. जब बरकत राय का नाम पंजाबी फिल्मों में चमकने लगा तो उन्होंने कुछ दोस्तों की सलाह पर अपना नाम बरकत राय से बदल कर वर्मा मलिक रख लिया था.

वर्मा मलिक ने तकरीबन 40 पंजाबी फिल्मों में गीत और 3 फिल्मों में संवाद लिखे थे. उन्होंने कुछ फिल्मों का डायरैक्शन भी किया था. पर 60 के दशक में पंजाबी फिल्में बननी कम हो गईं तो वर्मा मलिक को काम मिलना बंद हो गया था.

मनोज कुमार का उपकार

बेरोजगारी के दिनों में जब वर्मा मलिक मनोज कुमार से मिले, तब मनोज कुमार ने अपनी फिल्म ‘उपकार’ के लिए उन से एक गाना ‘एक तारा बोले…’ लिखवाया, पर पूरी फिल्म में उस गाने की सिचुएशन नहीं बन पाई तो वे उसे इस्तेमाल नहीं कर पाए, पर उन्होंने उस गाने को संभाल कर रख लिया था.

इस के बाद मनोज कुमार ने फिल्म ‘यादगार’ बनाई, तो उन्होंने इस गाने को कुछ बदलाव के बाद फिल्म में इस्तेमाल किया. ‘बातें लंबी मतलब गोल, खोल न दे कहीं सब की पोल, तो फिर उस के बाद इकतारा बोले तुनतुन…’ नामक यह गीत सुपरहिट साबित हुआ.

इस कामयाबी के बाद वर्मा मलिक ने भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक उन की कई फिल्मों के गाने सुपरहिट हुए. ‘पहचान’, ‘बेईमान’, ‘अनहोनी’, ‘धर्मा’, ‘कसौटी’, ‘विक्टोरिया नंबर 203’, ‘नागिन’, ‘चोरी मेरा काम’, ‘हमतुम और वो’, ‘जानी दुश्मन’, ‘शक’, ‘दो उस्ताद’, ‘कर्तव्य’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘संतान’, ‘बेरहम’, ‘हुकूमत’, ‘एक से बढ़ कर एक’ जैसी कई फिल्मों में वर्मा मलिक ने हिट गाने लिखे.

वर्मा मलिक को 2 बार ‘फिल्मफेयर अवार्ड’ मिला था. पहली बार फिल्म ‘पहचान’ के गीत ‘सब से बड़ा नादान वही हैं…’ के लिए और फिर फिल्म ‘बेईमान’ के गीत ‘जय बोलो बेईमान की…’ के लिए.

वर्मा मलिक ने अपने फिल्मी कैरियर में शंकरजयकिशन, कल्याणजीआनंदजी, लक्ष्मीकांतप्यारेलाल, सोनिकओमी, जयदेव, आरडी बर्मन, बप्पी लाहिरी, चित्रगुप्त और राम लक्ष्मण जैसे संगीतकारों की धुनों पर शानदार गीत लिखे थे. संगीतकार सोनिकओमी के साथ उन की जोड़ी खूब जमी थी. उन्होंने तकरीबन 35 फिल्मों में एक साथ काम किया था.

साल 1976 में आई फिल्म ‘नागिन’ और साल 1979 में आई फिल्म ‘जानी दुश्मन’ और ‘कर्तव्य’ में लिखे वर्मा मलिक के गाने जैसे ‘तेरे संग प्यार मैं नहीं तोड़ना’, ‘तेरे इश्का का मुझ पे हुआ ये असर’, ‘तेरे हाथों में पहना के चूड़ियां’, ‘ले मैं तेरे वास्ते सब छोड़ के’, ‘कोई आएगा, लाएगा दिल का चैन’, ‘चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा’ ने लोगों के दिलों में जगह बना ली थी.

15 मार्च, 2009 में जुहू, मुंबई में 84 साल की उम्र में बरकत राय उर्फ वर्मा मलिक यह दुनिया छोड़ कर चले गए थे..

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