मुझ से दूर रहो : कैसा था मूलक का जीवन

तकरीबन 10 साल गांव से दूर रहने के बाद मूलक दोबारा लौटा था. जब वह यहां से गया था, तब यह गांव 20-30 झोंपड़ियों वाला एक छोटा सा डेरा था.

गांव के ज्यादातर मर्द कोयले और लोहे की खदानों में काम करते थे. दिनभर बदनतोड़ मेहनत के बाद कोई ताड़ी तो कोई कच्ची शराब पी कर नमकभात खा कर पड़ जाते थे. किसीकिसी परिवार की औरतें भी खदानों में काम करती थीं.

यह गांव मध्य प्रदेश के उस इलाके में था, जो अब छत्तीसगढ़ में आता है. जब मूलक गांव वापस लौटा, तब छत्तीसगढ़ बन चुका था. ज्यादातर गांव अभी भी मुख्य शहरों से बस कच्ची सड़कों से ही जुड़े थे. चारों ओर वही जंगली घास और बीहड़ थे.

गांव के कच्चे रास्तों पर सवारी के साधनों की अभी भी पूरी तरह कमी थी. संचार के साधन भी अभी तक केवल अमीरों को ही सुलभ थे. गरीब तो आज भी चिट्ठीपत्री के ही भरोसे पर थे.

भिलाई से गांव पहुंचतेपहुंचते मूलक को अच्छीखासी रात हो चुकी थी. दीए बुझ चुके थे और चारों तरफ घनघोर अंधेरा पसरा हुआ था. कहींकहीं एकाध जुगनू झिलमिल कर के मूलक को यहां की पगडंडी दिखा देता था.

यह पगडंडी बिलकुल भी नहीं बदली थी. एकदम वैसी ही एकडेढ़ गज चौड़ी, दोनों ओर जंगली बेर की कंटीली झाडि़यां और भुलावा की बेल…

‘अरे, यहां तो भुलना की बेल होती हैं. अगर उन पर मेरा पैर पड़ गया, तो मैं सब भूल जाऊंगा,’ अचानक चलतेचलते मूलक को बचपन में सुनी हुई बात याद आई और उस के कदम ठिठक गए.

‘‘भुलना की बेल… भला बेल भी किसी को रास्ता भुला सकती है?’’ मूलक ने खुद से कहा और तेजी से चलने लगा. अब सामने घना जंगल था और उस जंगल के उस पार नदी किनारे पर उस का गांव.

अभी मूलक मुश्किल से 20-30 कदम ही चला होगा कि अचानक उसे किसी चीज से ठोकर लगी और वह मुंह के बल झाडि़यों के ऊपर गिर पड़ा. उस के गिरते ही जंगली घास की उस झाड़ी से किसी औरत के चीखने की बहुत तेज आवाज आई, ‘‘आह… दूर रहो मुझ से.’’

औरत की आवाज सुन कर मूलक की जैसे सांस अटक गई. वह डर से सूखे गले को थूक निगल कर तर करने की कोशिश करते हुए मिमिया कर बोला, ‘‘कौन…? कौन हो तुम…?’’

 

‘‘चुड़ैल हूं मैं. दूर रहो मुझ से, नहीं तो तुम्हारा भी खून पी जाऊंगी,’’ वह औरत उसे डराने की कोशिश करतेहुए चीखी.

अब तक मूलक उठ कर खड़ा हो चुका था और गिरने और उठने के बीच वह यह जान चुका था कि यह कोई जवान औरत है. उस के हाथ उस जिस्म को महसूस कर चुके थे, लेकिन ऐसे अचानक इस अंधकार में इस झाड़ी में औरत के होने की कल्पना तो कोई सपने में भी नहीं कर सकता था, ऊपर से उस ने कहा था. ‘चुड़ैल…’

मूलक डर से कांप उठा, लेकिन फिर भी वह हिम्मत जुटा कर खड़ा हुआ.‘‘उठो यहां से, यहां झाड़ी में छिपी क्या कर रही हो तुम?’’ मूलक उसे पकड़ कर झकझोरते हुए बोला.‘‘भाग जा यहां से, कह तो दिया चुड़ैल हूं. जा, चला जा इस से पहले कि तुझ पर मेरा साया पड़ जाए, जान बचा ले अपनी,’’ वह औरत उसे डराने की कोशिश करते हुए बोली, पर उस की इस धमकी के बीच उस औरत की आवाजमें दर्दभरी सिसकी मूलक ने साफ सुन ली थी.

इस सिसकी ने न जाने क्यों मूलक के दिल की धड़कन बढ़ा दी थी. उसे न जाने क्यों इस सिसकी में किसी अपने का दर्द महसूस हुआ

मूलक ने उस औरत का हाथ पकड़ कर ऊपर उठाया और खींचते हुए उसे उठाने लगा, ‘‘चलो, उठो यहां से और उधर चल कर बताओ कि कौन हो तुम और तुम्हारे साथ क्या हुआ है?’’

वह गांव के बाहर एक उजाड़ ढाबे की ओर इशारा करते हुए बोला, जो इस जंगल के अंदर ही नदी के इस पार बना हुआ था.

‘‘आह… छोड़ो मुझे. तुम्हें समझ नहीं आता, दूर रहो तुम मुझ से. उधर ले जा कर तुम भी सब की तरह मुझे चुड़ैल होने की सजा दोगे.

‘‘तुम भी सब की तरह मुझ पर जुल्म करोगे. मेरी इज्जत से खेलोगे… अब मेरे पैरों में खड़े होने की ताकत नहीं बची और न ही जिस्म में किसी से जिस्मानी होने की ताकत.

‘‘जाओ, छोड़ दो मुझे. मैं मान तो रही हूं कि मैं चुड़ैल हूं. चले जाओ यहां से,’’ वह औरत घबरा कर हाथ जोड़ते हुए बोली.

उस औरत के उठने और हाथ जोड़ने के बीच मूलक यह जान चुका था कि उस के पैर घायल हैं और वह बहुत घबराई हुई है.

मूलक ने न जाने किस प्रेरणा से आगे बढ़ कर उसे उठा कर अपने कंधे पर डाल लिया और उसे ले कर ढाबे की ओर चल दिया. वह औरत निढाल हो कर उस के कंधे पर ऐसे लुढ़की हुई थी, मानो कोई बेजान लाश हो.

उस के मुंह से बारबार बस यही निकल रहा था, ‘‘दूर रहो मुझ से, मैं चुड़ैल हूं. मुझे सजा मत दो, मैं अब किसी का खून नहीं पीऊंगी. मेरे जिस्म से मत खेलो, मेरी इज्जत मत लूटो.’’

मूलक उस औरत को ले कर ढाबे में आ गया. वहां उस ने इधरउधर से कुछ लकडि़यां जमा कीं और फिर अपनी जेब से माचिस निकाल कर आग जला दी.

आग जलने से वहां उजाला फैल चुका था. अब मूलक ने उस औरत को ध्यान से देखा. वह बहुत कमजोर, काली सी, बिलकुल हड्डियों का ढांचा भर थी. उस के शरीर पर कपड़े के नाम पर थोड़े से पुराने चिथड़े थे, जिन से बड़ी मुश्किल से उस का एकचौथाई बदन ढक पा रहा था. उस के शरीर पर धूलमिट्टी की ऐसी मोटी परत चढ़ी हुई थी, मानो कई साल से वह नहाई न हो.

मूलक उसे देख कर दया से भर गया और बोला, ‘‘डरो मत तुम. मुझे बताओ कि तुम कौन हो और तुम्हारे साथ क्या हुआ है? तुम्हें कोई सजा नहीं देगा. डरो मत.’’

‘‘मैं चुड़ैल हूं, मुझ से दूर रहो. मैं तुम्हें लग जाऊंगी. तुम्हारा खून पी जाऊंगी, फिर तुम मर जाओगे. मैं चुड़ैल हूं, मुझ से दूर रहो,’’ उस औरत ने रटारटाया रिकौर्ड सा बजाया.

‘‘भूख लगी है तुम्हें? तुम कुछ खाओगी?’’ मूलक ने अपने थैले से केले निकाल कर उस की ओर बढ़ाते हुए धीरे से प्यारभरी आवाज में कहा.‘‘मैं चुड़ैल हूं, खून पीती हूं, मुझ से दूर रहो, मैं चुड़ैल हूं,’’ वह औरत सहमी सी बस यही दोहराती रही.

‘‘अच्छा, डरो मत. ये केले खाओ, मैं पानी ले कर आता हूं,’’ मूलक ने केले उस औरत के हाथ में पकड़ाते हुए कहा और ढाबे से एक पुरानी बालटी उठा कर नदी की ओर पानी लेने के लिए बढ़ गया.

जब मूलक पानी ले कर लौटा तो देखा कि वह औरत 2 केले खा कर आग के पास बैठी थी.

‘‘इधर आओ… लो, मुंह धो लो. इस से तुम्हें अच्छा लगेगा,’’ मूलक ने बालटी ढाबे के चबूतरे पर रखते हुए कहा.

लेकिन, वह औरत अपनी जगह से जरा भी नहीं हिली.

मूलक ने फिर उसे सहारा दे कर उठाया, लेकिन उस औरत के पैरों में तो जैसे जान ही नहीं थी. मूलक ने ध्यान से देखा कि उस औरत के दोनों पैर नीचे से ऊपर तक बुरी तरह घायल थे. पैर ही क्या उस के सारे बदन पर चोटों के नएपुराने न जाने कितने ही घाव थे.

मूलक ने उसे चबूतरे के पास बिठा कर उस के बदन से उस के चिथड़े हटाए और हाथ से पानी डाल कर उसे नहलाने लगा.

‘‘रहने दो मुझे सड़ा. मैं चुड़ैल हूं, मुझ से दूर रहो,’’ चिथड़े हटते ही वह औरत फिर से कांप उठी और सिसकने लगी.

मूलक ने जैसे ही उस औरत के मुंह को धोया, उस का काला रंग उतरने लगा. दूर जल रही आग के उजाले में उस का लाल गेहुंआ रंग दमकने लगा.

जैसेजैसे उस औरत का असली चेहरा नजर आ रहा था, मूलक के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी.

जैसे ही पूरा मुंह धुलने के बाद मूलक ने आग के उजाले में उस का चेहरा देखा, उस के मुंह से तेज चीख निकल गई, ‘‘मनका… यह तुम हो मनका… क्या हो गया?’’ वह आंसुओं से रोने लगा, ‘‘मनका, इधर देख… मैं मूलक… तेरा अपना मूलक… देख मुझे मनका… पहचान मुझे.’’

‘‘मुझ से दूर रहो, मुझे छोड़ दो, मैं चुड़ैल हूं.’’ वह अभी भी यही शब्द दोहरा रही थी.‘‘होश में आ मनका और बता मुझे कि क्या हुआ तेरे साथ?’’ कहते हुए मूलक ने बालटी का सारा पानी उस के ऊपर डाल दिया और जल्दी से और पानी भर लाया.

मूलक ने कुछ देर अच्छे से मलमल कर मनका को नहलाया और फिर अपने थैले में से निकाल कर उसे अपना कुरता पहनाया. अपनी जींस भी दी. उसे उठा कर फिर आग के पास ले आया और उसे घास पर लिटा कर उस का सिर अपनी गोद में रख कर उस के बाल सहलाते हुए प्यार से बोला, ‘‘मनका, पहचान मुझे. और बता कि क्या हुआ तेरे साथ? कैसे हुई तेरी यह हालत? अरे भूल गई तू, ब्याह हुआ था हमारा 10 साल पहले.

‘‘और जब हमारा मुन्ना हुआ, तो खर्चे की फिक्र और मुन्ने को अच्छी जिंदगी देने की लालसा में मैं रुपए कमाने शहर चला गया था…

‘‘और मुन्ना…? अरे, मुन्ना कहां है मनका? बोल मनका, मुन्ना कहां है हमारा?’’ मूलक उसे झकझोरते हुए बोला.

‘‘मुन्ना… चुड़ैल खा गई. उसे, मैं उस का खून पी गई. मैं चुड़ैल हूं न, मुझ से दूर रहो. मैं अपने मुन्ना को खा गई, खून पी गई उस का,’’ मनका खोखली हंसी हंसने की कोशिश करतेकरते रोने लगी.

‘‘होश में आ मनका. बता मुझे यहां यह सब क्या हुआ है? क्या हुआ हमारे मुन्ना को? उन सारे रुपयों का क्या हुआ, जो मैं ने तुम्हें भेजे थे? और मेरी चिट्ठी? कहां हैं सब मनका?’’ मूलक रोते हुए मनका को झकझोर रहा था.

‘‘मैं चुड़ैल हूं, मुझे छोड़ दो, मैं सब को खा गई,’’ मनका जैसे इस के अलावा कुछ बोलना जानती ही नहीं थी.

‘‘होश में आओ मनका. मैं मूलक हूं तुम्हारा पति, तुम्हारे मुन्ना का पिता. बताओ क्या हुआ है यहां?’’ मूलक ने एक जोरदार तमाचा अपनी मनका के गाल पर मारा, जिस से उसे जोर का झटका लगा और वह रोने लगी.

मूलक ने उसे गले लगा लिया और प्यार से सहलाते हुए बोला, ‘‘होश में आजा मनका, देख मैं तेरा मूलक हूं.’’न्ना के बापू… कहां चले गए थे तुम… तुम्हारे पीछे तुम्हारे बड़े भाई और भाभी ने मुझ पर बहुत जुल्म किए, मेरा खानापानी बंद कर दिया और हमारे मुन्ना को न जाने क्या खिला कर मार डाला. उन्होंने लोगों से कहा कि मैं चुड़ैल हूं और अपने बेटे को खा गई.

‘‘उन्होंने मुझे तुम्हारा भेजा कोई पैसा कभी नहीं दिया. जब मैं ने उन से मनीऔर्डर के बारे में पूछा, तो उन्होंने पंचायत बुला कर मुझे चुड़ैल कह कर मारपीट कर गांव से निकाल दिया.

‘‘अब तो 2-3 साल हो गए मुन्ना के बापू, मैं यहीं जंगल में अपने दिन पूरे कर रही हूं. दिन में मैं जंगली झाडि़यों में छिपी रहती हूं और रात को निकल कर जंगली फलों से अपना पेट भरती हूं.

‘‘रात में जब कभी कोई मर्द मुझे पकड़ लेता है, तो चुड़ैल की सजा के नाम पर मेरे साथ…’’ मनका अब मूलक के गले लग कर रो रही थी.

‘‘ओह… यह सब क्या हो गया. अच्छा मनका, तुम ये बिसकुट खाओ और पानी पी कर आराम करो. हमें आधी रात के बाद बहुत दूर निकलना है,’’ इतना कह कर मूलक नदी की ओर बढ़ गया.

इधर मनका बदले की आग में सुलग रही थी. उसे रहरह कर अपने मुन्ना की याद आ रही थी. तभी अचानक वह उठी और एक जलती हुई लकड़ी उठा कर गांव की तरफ चल दी.

जब तक मूलक वापस आया, तब तक मनका भी लौट आई थी. मूलक को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस के पीछे से मनका ने क्या कांड कर दिया है. मूलक तो बस अपनी मनका को कंधे पर उठा कर बड़ी सड़क की ओर बढ़ गया.

अगले दिन अखबारों में छपा था, ‘एक चुड़ैल ने रात को एक पूरे परिवार समेत 20 लोगों को जला कर मार डाला. यह चुड़ैल बहुत दिन से गांव के बाहर जंगल में रह रही थी. घटना के बाद से चुड़ैल को किसी ने नहीं देखा. सरकार ने जंगल को खतरनाक मानते हुए लोगों को दूसरी जगह बसाने का फैसला लिया है और यह रास्ता बंद कर दिया है’

मजाक: वर्मा साहब गए पानी में

इसी महीने की 30 तारीख को अपने महल्ले के वर्मा साहब रिटायर हो कर गले में अपने भार से ज्यादा भारी फूलों की मालाएं लादे साहब के बगल में पसरे गाड़ी में आए, तो पूरे महल्ले ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. गले में फूलों की मालाएं डाले उस वक्त उन के बगल में उन के साहब उन के पद वाले लग रहे थे, तो वे अपने साहब के पद वाले.

तब उन्होंने अपने गले की मालाएं बड़ी कस कर पकड़ी हुई थीं.वर्मा साहब को उस वक्त चिंता थी तो बस यही कि कहीं उन के साहब उन के गले से माला निकाल कर अपने गले में न डाल लें. जब उन के साहब उन की गले की माला ठीक करने लगते, तो उन्हें लगता जैसे वे उन के गले से माला छीनने की कोशिश कर रहे हों.बहुत शातिर हैं वर्मा साहब के साहब.

सभी के फायदे को यों डकार जाते हैं कि किसी को उस की हवा भी नहीं लगने देते. जितने को हवा लगती है, उतने का साहब हाथ साफ करने के बाद धो भी चुके होते हैं. ये मालाओं का मोह होता ही ऐसा है कमबख्त. जिस के गले में एक बार जैसेकैसे पड़ गईं, उस के बाद उन्हें बचाना बहुत मुश्किल होता है.तब महल्ले वाले वर्मा साहब के गले में उन के भार से ज्यादा भारी मालाएं देख कर इशारों ही इशारों में एकदूसरे से बातें करने लगे,

‘अरे, हम तो वर्मा साहब को यों ही समझते थे कि वे औफिस में क्लास थ्री हैं, पर ये तो इस वक्त साहब के भी बाप लग रहे हैं. हम ने तो सोचा था कि ये रिटायरमैंट वाले दिन भी रोज की तरह पैदल ही घर आएंगे, जैसे रोज आया करते थे,

पर…’महल्ले वाले उन को महल्ले की दाल समझते हों तो समझते रहें, पर वे पकौड़े से कम नहीं, वह भी बेसन वाले नहीं, पनीर वाले. ये तो अपने वर्मा साहब का भला हो कि… जो बाहर को कोई उन के पद जितना ऊंचा मुलाजिम होता,

तो सारे महल्ले को नाकों चने चबवाया करता दिन में 10-10 बार.जैसे ही वर्मा साहब अपने घर के बाहर सड़क पर अपने दफ्तर की गाड़ी से अपनी परवाह किए बिना अपने गले की मालाओं को संभालते उतरे, तो उन की बीवी ने उन की आरती यों उतारी जैसे बलि के बकरे की बलि देने से पहले पुजारी उस की आरती उतारता है.उस के बाद बड़ी देर तक वर्मा साहब के घर में चहलपहल रही.

कुछ देर बाद उन के औफिस वाले खापी कर उन को हाथ जोड़ उन के आगे की बची जिंदगी को शुभकामनाओं में लपेट कर हमदर्दी देते दुम दबाए चलते बने. उस के बाद भी बड़ी देर तक उन के यहां खूब पार्टी उड़ती रही. महल्ले वालों ने डट कर खाया.

उन्होंने भी जो 30 साल तक औफिस में डट कर अपने हिस्से का खाया था, उस में से दिल खोल कर महल्ले वालों को डट कर खिलाया, ताकि औफिस में खाए के पाप को महल्ले वालों के सिर पर भी थोड़ाबहुत डाला जा सके.बड़ी देर तक वर्मा साहब दिल खोल कर अपने औफिस के वे किस्से भी अपने साथ बैठों को कौफी पीते सुनाते रहे, जो उन्होंने बौस के डर के मारे आज तक खुद को भी न सुनाए थे.

मुझे पता था कि कल तक जो ऊंट औफिस में हर काम करवाने वाले को अपने नीचे ले कर ही रखता था, कल से वही ऊंट पहाड़ के नीचे आने वाला नहीं, जब तक जिंदा रहेगा, अब तब तक पहाड़ के नीचे ही रहेगा.आखिरकार जब पार्टी खत्म हुई, तो वर्मा साहब के सब यारदोस्त खापी कर अपनेअपने घर निकल गए, तब उन की बीवी ने उन को समझाते हुए कहा,

‘‘देखोजी, अब ध्यान से सुनो. कान खोल कर सुनो. अब तुम रिटायर पति हो, औफिस वाले पति नहीं…’’‘‘तो क्या हो गया? पति तो हूं न?’’‘‘तो अब हो यह गया कि अपने गले से सारी मालाएं निकाल कर अपनी सामने वाली तसवीर पर डाल दो और यह पकड़ो लिस्ट…’’

‘‘काहे की लिस्ट? तुम्हें पता नहीं कि मैं लिस्ट लेता नहीं, लिस्ट देता रहा हूं…’’‘‘डियर पति, घर के कामों की. लिस्ट देने वाले दिन बीत गए अब. बहुत धमाचौकड़ी कर ली औफिस में.

अब से तुम्हारा औफिस यह होगा और ड्यूटी टाइम 11 से 4 नहीं, बल्कि सुबह 5 बजे से रात को 10 बजे तक रहेगा. जिस दिन काम ज्यादा हुआ, उस दिन रात के 12 भी बज सकते हैं.’’

‘‘मतलब कि ओवर टाइम?’’ वर्मा साहब को काटो तो खून नहीं.‘‘जी हां, ओवर टाइम. पर उस की न छुट्टी, न अलग से पैमेंट. अब तुम्हें कल से ये सारे काम करने हैं. लिस्ट गले में डाल लो, ताकि याद करने में आसानी रहे.’’बीवी ने उन्हें 2 फुट लंबी घर के कामों की लिस्ट थमाई,

तो उन्हें उन के पैर के नीचे से उन्हीं के नाम की रजिस्ट्री हुई जमीन सरकती लगी.‘‘कुछ देर आराम कर लो. दोस्तों से गपें मार कर थक गए होंगे. 30 साल तक बहुत करवा ली सब से अपनी सेवा, अब कल से तुम मेरी सेवा करोगे. पता नहीं फिर अगले जन्म में मुझे तुम से अपनी सेवा करवाने का मौका मिले या न मिले,’’ वर्मा साहब की बीवी ने कहा और सोने चली गई.

तब वर्मा साहब कभी अपने हाथ में बीवी द्वारा थमाई गई कामों की लिस्ट देखते, तो कभी अपनी तसवीर पर अपने गले से उतार कर चढ़ाई गई फूलों की मालाएं. जब उन का रोना निकल आया, तो वे अपनेआप से बोले, ‘‘जरा इन फूलों की खुशबू तो खत्म होने देती,’’

पर उन के सिवा उन की सुनने वाला वहां था ही कौन, जो ऐसा होने देता.सुबह ज्यों ही वर्मा साहब की बीवी ने बांग दी तो वे उछल कर नहीं, छल कर जागे.

फटाफट घर के कामों की लिस्ट देखी. सब से ऊपर वाला काम बीवी के बांग देते ही होना था, सो बेचारे अधजगे ही करने लगे.10 बजे के आसपास मैं ने भी सोचा, ‘चलो, वर्मा साहब के दर्शन कर लेते हैं. बेचारे औफिस जाने को फड़फड़ा रहे होंगे…’मैं उन के घर गया उन की रिटायरमैंट के बाद की जिंदगी का लाइव देखने. उस वक्त वे कमरे में झाड़ू लगा रहे थे. उन्होंने मुझे देखा, तो वे झाड़ू कोने की ओर फेंकते हुए ठिठके तो मैं ने उन से हंसते हुए कहा,

‘‘शरमाओ मत वर्मा साहब. यही होना है अब तो जब तक जिंदा हैं. इसी बहाने अब थोड़ीबहुत एक्सरसाइज भी हो जाया करेगी… और रिटायरमैंट के बाद हर मर्द को देरसवेर कुशल गृहिणी होना ही पड़ता है.’’‘‘पर यार…’’ वे कोने से झाड़ू उठा कर मुझे पकड़ाने की कोशिश करने लगे, तो मैं ने कहा,

‘‘मैं अपने घर में कर के आ गया हूं वर्मा साहब. सोचा, अब आप का भी हालचाल पूछ आऊं. इस बहाने मुझे जरा आराम भी मिल जाएगा. उस के बाद तो…’’‘‘रिटायरमैंट के बाद क्या यह सब के साथ होता है यार?’’ वर्मा साहब ने रुंधे गले पूछा, तो मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, अपने महल्ले में तो तकरीबन हर क्लास वन से ले कर क्लास फोर रिटायरी के साथ यही हो रहा है…’’‘‘मतलब…?’’‘‘सब समझ जाओगे वर्मा साहब. 2-4 दिन और ठहरो,’’ मैं ने कहा, तो उन्होंने चैन की इतनी लंबी सांस ली कि उस वक्त वे मेरे नाक की सारी हवा भी खींच ले गए जालिम कहीं के

मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी- भाग 3 : विधवा रितुल की कैसे बदली जिंदगी

रितुल के काम की सभी ने सराहना की थी पर प्रोमोशन अनंत को मिल गया जो रितुल को बस सहायता ही कर रहा था. रितुल ने जब यह सुना तो उसे अनंत के लिए खुशी तो हो रही थी पर उसे समझ नहीं आया कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?

यश अनंत के प्रोमोशन पर बहुत खुश था. यह सब कियाधरा आखिर उस का ही था. यश को रितुल का हर समय मुसकराते रहना बहुत अखरता था. उसे लगता था कि रितुल बहुत ड्रामा करती है. पर आज भी उस ने देखा कि रितुल अनंत के साथ मजे से लंच कर रही थी.

यश को न जानें क्यों रितुल की मुसकराहट से चिढ़ थी. उस का बननासंवरना सबकुछ उसे अखरता था. धीरेधीरे यह बात रितुल को भी समझ आ गई थी कि यश उसे पसंद नहीं करता है पर फिलहाल उस के पास इस समस्या का कोई हल नहीं था.

कंपनी अपना नया प्रोजैक्ट बैंगलुरू में लगाने जा रही थी. इसी कारण से यश और रितुल को 4 दिन के लिए बैंगलुरू भेजा जा रहा था. यश ने पुरजोर कोशिश की कि उसे रितुल के साथ न जाना पड़े पर कुछ हो नहीं पाया. एअरपोर्ट पर भी यश ने रितुल से एक सम्मानजनक दूरी बना रखी थी. रितुल ने 1-2 बार बात करने की कोशिश भी की पर वह नाकाम ही रही. रितुल के टौप का खुला गला, स्किनफिटिंग की जींस सबकुछ यश को परेशान कर रहा था. यश मन ही मन सोच रहा था कि जरूर वह उसे फंसाने की कोशिश करेगी. पूरी यात्रा के दौरान दोनों चुप ही रहे.

रात को डिनर के समय रितुल ने यश का दरवाजा खटखटाया तो न चाहते हुए भी यश को उठना पड़ा. सफेद सूट में रितुल इतनी प्यारी लग रही थी कि यश के मुंह से अचानक निकल गया,”रितुल, तुम बेहद खूबसूरत और शांत लग रही हो.”

डिनर के समय यश ने अनुभव किया कि रितुल ऐसी भी नहीं है जैसा वह समझता था. वह अपनी बेटी और मम्मीपापा का बहुत खयाल रखती है.

रितुल ने सूप पीते हुए पूछा,”सर, आप के परिवार में कौनकौन हैं?”

यश बोला,”मैं और मम्मी. अगर पूछना चाहती हो कि अब तक शादी क्यों नहीं करी तो बता देता हूं… की थी, मगर मेरी बीवी 5 साल पहले मुझे उल्लू बना कर भाग गई,” रितुल यश को चुपचाप सुनती रही.

“मेरी जिंदगी की खुशी, रंग और रौनक सब को पैरों तले रौंद कर चली गई…”

रितुल बोली,”आप गलत बोल रहे हो, वह बस आप की जिंदगी से गई है. आप ने अपनी खुशियों की बागडोर उस के हाथों में दे दी थी.”

यश तल्खी से बोला,”तुम्हारे और मेरी सिचुएशन में फर्क है.”

रितुल मुसकराते हुए बोली,”क्या फर्क, बस यही कि मैं एक विधवा हो कर भी एक रंगीन जिंदगी जीती हूं और आप की बीवी के जाने से आप का पौरूष इतना आहत हो उठा कि आप ने जीना छोड़ दिया है. आप को क्या लगता है कि मेरी जिंदगी इतनी आसान है… क्या मुझे नहीं पता है कि आप के फीडबैक के कारण ही मुझे प्रोमोशन नहीं मिला है.

“सर, मुझे रोते हुए जिंदगी गुजारना पसंद नहीं है. मेरे पति की जिंदगी खत्म हुई है पर उन के साथ मैं अपनी जिंदगी खत्म नहीं कर सकती हूं…”

तभी फोन की घंटी बजी और रितुल फोन में खो गई थी. फोन नलिन का था. जब रितुल ने फोन रख दिया तो यश बोला,”थकती नहीं हो तुम इस तरह से? क्या मजा मिलता है तुम्हें ऐसे?

रितुल बोली,”जिंदगी जीने के टौनिक हैं मेरे दोस्त.”

अगले दिन तक रितुल से यश काफी खुल गया था. मन ही मन वह सोच रहा था कि वह कितना गलत था रितुल के बारे में.

अगली रात यश और रितुल ने एकसाथ गुजारी थी और अगले दिन यश रितुल को देख कर झेंप उठा और बोला,”आई एम सौरी रितुल.”

रितुल बोली,”अरे यश, वे हम दोनों के साझे पल थे. मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं है तो तुम्हें क्यों है?”

इस औफिसियल ट्रिप ने यश का जिंदगी जीने का नजरिया ही बदल दिया था. उसे समझ आ गया था कि दुखों को गले लगा कर जिंदगी जी नहीं जा सकती है.

अब रितुल के पुरुष मित्रों में यश भी शामिल था. रितुल को अपने पुरुष मित्रों से किसी भी प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी. वे बस मिलते थे और अच्छा समय बिताते थे.

धीरेधीरे यश का मन रितुल की तरफ खींचने लगा था. रितुल को देख कर उसे जीने की प्रेरणा मिलती थी. वह उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहता था. आज रितुल ने अपने प्रोमोशन मिलने की खुशी में एक छोटी सी पार्टी आयोजित की थी. उस में उस ने अपने सभी महिला और पुरुष मित्र आमंत्रित किए थे. यश, सचिन और नलिन तीनों ही बहुत खुश थे. तीनों को रितुल पर नाज था.

पार्टी जोरशोर से चल रही थी कि तभी यश रितुल के पास आ कर बोला, “रितुल, मेरी जिंदगी का हिस्सा बनोगी?”

रितुल हंसते हुए बोली,”यह क्या कह रहे हो तुम?”

यश बोला,”सीधी बात है, तुम्हें हमसफर बनाना चाहता हूं.”

रितुल प्यार से बोली,”यश, इस रिश्ते को दोस्ती तक ही रखो, किसी नाम में बांधने की कोशिश मत करो.”

यश आहत हो कर बोला,”आखिर क्यों?”

रितुल बोली,”क्योंकि मैं अभी तैयार नही हूं.”

यश व्यंग्य कसते हुए बोला,”हां, रोज नएनए स्वाद चखने की आदत जो पड़ गई है.”

रितुल बोली,”यश, मुझे पता था तुम्हारे अंदर अहम बहुत ज्यादा है. इसी कारण से मैं तुम्हारे साथ किसी रिश्ते में बंधना नहीं चाहती हूं. मेरी न ने तुम्हारा असली चेहरा उजागर कर दिया है. मैं लता की तरह किसी पुरुषरूपी वट से लिपटना नहीं चाहती हूं.

“मैं हूं, मैं थी और मैं रहूंगी, हर रिश्ते से ऊपर,” यह कह कर रितुल साङी लहराती नलिन की तरफ चली गई. यश को मलाल आ रहा था कि अपनी सोच के कारण उस ने एक अच्छे दोस्त के साथसाथ खूबसूरत रिश्ते का गला भी घोंट दिया है.

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