परमानेंट दोस्त हैं जरूरी

‘आई लव यू माय लब्बू’ लिखा टैटू जब बौलीवुड अभिनेत्री जाहनवी कपूर ने सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस को दिखाया तो यह टैटू चर्चा का विषय बन गया. जिस समय जाहनवी ने यह टैटू अपने फ्रैंड्स को शेयर किया, उस समय वह छुटिट्यां मनाने गई थी. छुटिट्यों में भी जाहनवी अपनी मां को ही याद करती रही. ‘आई लव यू माय लब्बू’ लिखे टैटू का संबंध जाहनवी की मां श्रीदेवी से है.

जब श्रीदेवी जिंदा थीं, उस समय उन्होंने जाहनवी को लिखा था, ‘आई लव यू माय लब्बू’. श्रीदेवी के न रहने के बाद जाहनवी ने इस लाइन को ही अपना टैटू बनवा लिया. श्रीदेवी अपनी बेटी जाहनवी को प्यार से उस के निकनेम ‘लब्बू’ से ही बुलाती थीं. इस टैटू के जरिए जाहनवी कपूर अपनी मां को याद करती हैं. श्रीदेवी ने अपने जीवित रहते जाहनवी कपूर के लिए यह लिखा था, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं प्यारी लब्बू, तुम दुनिया की सब से अच्छी बच्ची हो.’’

जाहनवी कपूर का जन्म 7 मार्च, 1997 को हुआ था. उस की मां का नाम श्रीदेवी और पिता का नाम बोनी कपूर है. जाहनवी कपूर आज हिंदी फिल्मों की प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं. जाहनवी ने 2018 में पहली फिल्म ‘धड़क’ से अपने अभिनय की शुरुआत की थी. इस फिल्म के लिए जाहनवी को ‘बेस्ट डैब्यू अवार्ड’ दिया गया था.

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जाहनवी के परिवार में भाई अर्जुन कपूर फिल्मों में अभिनय करते हैं. इस के अलावा उस के चाचा अनिल कपूर और संजय कपूर भी फिल्मों में हैं. जाहनवी की पढ़ाई मुंबई के धीरूभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल से हुई. जाहनवी ने कैलिफोर्निया के ‘ली स्ट्रैसबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टिट्यूट’ में ऐक्ंिटग की पढ़ाई पूरी की थी.

जाहनवी कपूर हिंदी फिल्म ‘धड़क’, कौमेडी हौरर फिल्म में रूही अफजा, बायोपिक ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ में गुंजन सक्सेना की भूमिका में काम कर चुकी हैं. नैटफ्लिक्स एंथोलौजी फिल्म ‘घोस्ट स्टोरीज’ में जोया अख्तर के सेगमैंट में भी अभिनय किया है. इस के अलावा अब वे करण जौहर की फिल्म ‘तख्त’ में एक गुलाम लड़की का किरदार निभा रही हैं.

रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘दोस्ताना’ के सीक्वैंस में कार्तिक आर्यन और लक्ष्य लालवानी के साथ काम कर रही हैं. 24 साल की उम्र में जाहनवी कपूर ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. फिल्मी दुनिया में उन के बहुत सारे मित्र हैं. घरपरिवार भी है. इस के बाद भी उन्हें अपनी मां से अच्छा कोई और दोस्त मिला नहीं.

श्रीदेवी मां नहीं दोस्त

श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त, 1963 को हुआ था. श्रीदेवी ने 1975 में फिल्म ‘जूली’ से बाल अभिनेत्री के रूप में प्रवेश किया था. उन्होंने बाद में तमिल, मलयालम, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम किया. अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने 63 हिंदी, 62 तेलुगू, 58 तमिल, 21 मलयालम तथा कुछ कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया.

श्रीदेवी को फिल्मों की ‘लेडी सुपरस्टार’ कहा जाता है. उन्होंने 5 फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त किए. उन्हें लोकप्रिय अभिनेत्री माना जाता है. 2013 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया. उन की प्रमुख फिल्मों में ‘हिम्मतवाला’, ‘सदमा’, ‘नागिन’, ‘निगाहें’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘चालबाज’, ‘लम्हे’, ‘खुदागवाह’ और ‘जुदाई’ हैं. 24 फरवरी, 2018 को दुबई में श्रीदेवी का निधन हो गया.

श्रीदेवी अपने कैरियर की ही तरह से अपने परिवार का भी ध्यान रखती थीं. वे काफी समय परिवार और अपनी बेटियों को देती थीं. दुबई भी वे पति बोनी कपूर, बेटी खुशी और भतीजे मोहित के साथ शादी के एक समारोह में हिस्सा लेने गई थीं. उन की बड़ी बेटी जाहनवी उस समय उन के साथ नहीं थी. मां के न रहने के बाद जाहनवी अकेली पड़ गई. मां के साथ अंतिम समय न रहने का दर्द उसे था.

अब उस ने अपनी मां की याद में अपने हाथों से लिखा टैटू बनवा कर याद किया. युवाओं में अपने पेरैंट्स के साथ लगाव बढ़ता जा रहा है. इस की वजह यह है कि अब उन के पास परमानैंट दोस्तों की कमी होने लगी है. जाहनवी जैसे कई युवा अपने पेरैंट्स को खोने के बाद उन की याद में डूबे रहते हैं.

परमानैंट दोस्त की कमी

युवाओं के अकेले परमानैंट दोस्त अब पेरैंट्स ही रह गए हैं. पति, पत्नी और पेरैंट्स के अलावा जो दोस्त होते हैं, वे कुछ घंटों के लिए होते हैं. यही नहीं, ये सभी दोस्त अपने मतलब के लिए दोस्ती करते हैं. बच्चे भी उदार और सपोर्टिव पेरैंट्स के साथ चिपके रहना पंसद करते हैं.

श्रीदेवी ने कम उम्र में ही काम शुरू किया था. परिवार का कोई बहुत सहयोग नहीं था. इस के बाद भी श्रीदेवी ने न केवल फिल्मों में नाम कमाया, बल्कि अच्छी मां के रूप में भी पहचान बनाई. आज के युवा इस तरह की जिम्मेदारी उठाने से बचते हैं. उन के पास जो दोस्त होते हैं, वे उन के वर्किंगप्लेस के होते हैं. ये कोई परमानैंट दोस्त नहीं होते. परमानैंट दोस्तों की संख्या अब कम होती जा रही है. काम खत्म होते ही दोस्त बदल जाते हैं. इस वजह से जब किसी तरह का दुख हो, इमोशनल सहयोग की जरूरत हो तो दोस्त की कमी खलने लगती है.

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युवाओं के सब से पहले परमानैंट दोस्त उन के पेरैंट्स होते हैं. इस के बाद शादी होने के बाद पतिपत्नी के रूप में परमानैंट दोस्त मिलते हैं. यही वजह है कि पेरैंट्स एक तय समय पर बच्चों की शादी कर देना चाहते हैं. आज के दौर में बच्चे पहले कैरियर बनाना पसंद करते हैं. इस के बाद वे शादी की सोचते हैं. कैरियर में भी कंपीटिशन बढ़ गया है. ऐसे में उन को कैरियर बनाने में भी समय लगने लगा है.

इस बीच अगर पेरैंट्स के साथ कोई हादसा हो जाए, बच्चे अकेले पड़ जाते हैं. जिन को पतिपत्नी के रूप में परमानैंट दोस्त मिल जाते हैं उन को कम दिक्कत का सामना करना पड़ता है. अगर पतिपत्नी और पेरैंट्स में से कोई भी साथ न हो तो जीवन से परमानैंट दोस्त एकदम से खत्म हो जाते हैं, जिस की वजह से युवा दिक्कत में आ जाते हैं.

इसलिए, यह जरूरी हो गया है कि जीवन में परमानैंट दोस्त हों. ये कभी गलत सलाह नहीं देंगे. मुसीबत में साथ, हिम्मत और सहयोग देंगे. पेरैंट्स हमेशा नहीं रह सकते. युवाओं को शादी से दूर नहीं भागना चाहिए. पेरैंट्स के बाद पतिपत्नी आपस में एकदूसरे के परमानैंट दोस्त होते हैं, जो हर सुखदुख में साथ देते हैं.

वर्किंगप्लेस के दोस्त भी महज दोस्त ही होते हैं. इन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता. युवाओं को परमानैंट दोस्तों के साथ रहने की कोशिश करनी चाहिए. वही मुसीबतों से बाहर निकाल सकते हैं. अकेलापन दूर कर सकते हैं. परमानैंट दोस्तों की कमी कई तरह की मानसिक बीमारियां ले कर आती है. इन से बचने के लिए भी परमानैंट दोस्तों का जीवन में होना जरूरी होता है.       – शैलेंद्र सिंह द्य

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