गुरुजी का नया बखेड़ा

झारखंड मुक्ति मोरचा के सुप्रीमो शिबू सोरेन उर्फ गुरुजी ने राज्य में स्थानीय नीति यानी डोमिसाइल नीति को ले कर एक बार फिर बखेड़ा खड़ा कर दिया है.

उन्होंने यह कह कर नया सियासी बवाल मचा दिया है कि पिछली रघुवर दास सरकार की डोमिसाइल नीति आदिवासी विरोधी है. इस के बाद राज्य में एक नई बहस छिड़ गई है और आदिवासी आंदोलन नए सिरे से गोलबंद होता दिखाई देने लगा है.

इस पर शिबू सोरेन का कहना है कि स्थानीय नीति का आधार साल 1932 का खतियान होना चाहिए. गौरतलब है कि रघुवर दास सरकार ने डोमिसाइल नीति 1985 को कट औफ डेट रखा था.

हिंसक आंदोलनों के बाद साल 2015 में झारखंड की डोमिसाइल नीति जमीन पर उतरी थी. साल 2000 से इस मसले को ले कर भड़की आग ने कई सरकारों की लुटिया डुबो दी थी.

इस के पहले राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी हुए थे. शिबू सोरेन के सुर में सुर मिला कर झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि 1985 के आधार पर स्थानीय नीति जायज नहीं है. अब इस नीति को ले कर नए सिरे से विचार किया जाएगा.

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साल 2015 में लागू की गई डोमिसाइल नीति के तहत 30 साल से झारखंड में रहने वाले अब झारखंडी (स्थानीय) करार दिए गए. इस के तहत झारखंड सरकार द्वारा संचालित व मान्यताप्राप्त संस्थानों, निगमों में बहाल या काम कर रहे मुलाजिमों, पदाधिकारियों और उन के परिवार को स्थानीय माना गया है.

झारखंड राज्य और केंद्र सरकार के मुलाजिमों को स्थानीयता का विकल्प चुनने की सुविधा दी गई है. अगर वे झारखंड राज्य को चुनेंगे तो उन्हें और उन की संतानों को स्थानीय नागरिक माना जाएगा.

इस के बाद वे अपने पहले के गृह राज्य में स्थानीयता का फायदा नहीं उठा सकेंगे, वहीं झारखंड को नहीं चुनने की हालत में वे अपने गृह राज्य में स्थानीयता का लाभ ले सकेंगे.

भौगोलिक सीमा में निवास करने वाले वैसे सभी लोग, जिन का खुद या पुरखों का नाम पिछले सर्वे खतियान में दर्ज हो व मूल निवासी, जो भूमिहीन हों, उन के संबंध में उन की प्रचलित भाषा, संस्कृति और परंपरा के आधार पर ग्राम सभा द्वारा पहचान किए जाने पर उन्हें स्थानीय माना गया है.

इस के साथ ही वैसे लोगों को भी स्थानीय माना गया है, जो कारोबार और दूसरी वजहों से पिछले 30 साल या उस से ज्यादा समय से झारखंड में रह रहे हों और अचल संपत्ति बना ली हो. ऐसे लोगों की बीवी, पति और संतानें स्थानीय मानी गई हैं.

गौरतलब है कि राज्य में आदिवासियों की आबादी 26 फीसदी ही है और 74 फीसदी गैरआदिवासी हैं. झारखंड मुक्ति मोरचा के विधायक नलिन सोरेन कहते हैं कि उन की पार्टी शुरू से ही साल 1932 को आधार मान कर स्थानीय नीति बनाने की मांग करती रही है. नई डोमिसाइल नीति से आदिवासियों का हक मारा गया है. इस नीति में आदिवासियों की अनदेखी कर गैरआदिवासियों का ध्यान रखा गया है.

गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने 22 सितंबर, 2001 को बिहार के नियम को अपनाया था. संकल्प संख्या-5, विविध-09/2001, दिनांक 22 सितंबर, 2001 द्वारा बिहार के श्रम, नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग के सर्कुलर 3/स्थानीय नीति 5044/81806, दिनांक 3 मार्च, 1982 को आधार बनाया गया. इसी आधार पर खतियान (पिछला सर्वे रिकौर्ड औफ राइट्स) को स्थानीयता का आधार माना गया है.

साल 2000 में बिहार से अलग हो कर नया झारखंड राज्य बनने के बाद राज्य में डोमिसाइल नीति को ले कर आंदोलन चल रहा था. नया झारखंड राज्य बनने के बाद से 2015 तक 10 बार मुख्यमंत्रियों की अदलाबदली हुई, पर हर किसी ने डोमिसाइल नीति पर टालमटोल वाला रवैया ही अपनाया.

बहरहाल, शिबू सोरेन राजनीतिक फायदे को देख कर पाला बदलने और गुलाटी मारने के माहिर खिलाड़ी रहे हैं.

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साल 1980 में वे पहली बार जब सांसद बने, तो उस समय कांग्रेस के साथ थे. 1983 में जनता दल बना तो उन्होंने कांग्रेस को ठेंगा दिखा कर जनता दल का दामन थाम लिया.

2 साल बाद उन्हें लगा कि वहां उन की दाल नहीं गल रही है तो फिर कांग्रेस की गोद में जा बैठे और 1985 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ा. 1990 आतेआते कांग्रेस से उन का मन भर गया और उन्होंने फिर से जनता दल का झंडा उठा लिया.

जनता दल के घटक दल के रूप में उन्होंने चुनाव लड़ा. उन की पार्टी झामुमो के 6 उम्मीदवार जीत कर संसद पहुंच गए.

साल 1993 में शिबू सोरेन का माथा फिर घूमा और वे अपने 6 सांसदों के साथ कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव के पक्ष में खड़े हो गए, जिस के लिए वे 3 करोड़ रुपए से ज्यादा की घूस लेने के आरोप में भी फंसे हुए हैं.

इस के कुछ समय बाद ही उन का कांग्रेस से मन उचट गया और वे भाजपा के साथ मिल कर नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम में लग गए.

साल 1996 में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बने, पर सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए और जनता दल टूट गया. तब गुरुजी शिबू सोरेन लालू प्रसाद यादव के साथ खड़े हो गए.

साल 2000 में जब अलग झारखंड राज्य बना, तो वे मुख्यमंत्री बनने के लोभ में भाजपा की अगुआई वाले राजग में शामिल हो गए. जब भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बना दिया तो शिबू बिदक कर कांग्रेसराजद गठबंधन की छत के नीचे जा बैठे.

साल 2007 में मधु कोड़ा को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाने में उन्होंने मदद की और साल 2008 में खुद मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में कोड़ा की सरकार को गिरा दिया था. अब अपनी पार्टी और बेटे की सरकार में वे उलटपुलट बयान दे कर उन के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं.

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14 मार्च, 2020 को एक पत्रकार ने पूछा कि अब झारखंड में आप की सरकार है, तो क्या राज्य का विकास होगा? इस के जवाब में शिबू सोरेन ने कहा, ‘हम विकास का ठेका लिए हुए हैं क्या?’

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