प्राइवेट पार्ट की इस तरह रखें साफ सफाई

– एम. कुमार मनोज

पूरे बदन की साफसफाई के प्रति लापरवाही न बरतने वाले मर्द भी अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई पर खास ध्यान नहीं देते हैं, जिस की वजह से वे कई तरह के खतरनाक इंफैक्शन के शिकार हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि प्राइवेट पार्ट की साफसफाई कैसे की जाती है और उस से होने वाले फायदों के बारे में:

बालों की छंटाई करें

प्राइवेट पार्ट के आसपास के अनचाहे बालों की समयसमय पर सफाई करनी चाहिए, वरना बाल बड़े हो जाते हैं. इस की वजह से ज्यादा गरमी पैदा होती है और इन बालों की वजह से ज्यादा पसीना निकलने लगता है. बदबू भी आने लगती है. बैक्टीरिया पैदा होने से इंफैक्शन फैल जाता है. इस वजह से चमड़ी खराब हो जाती है. खुजली, दाद वगैरह की समस्या पैदा हो जाती है.

देखा गया है कि अनचाहे बाल लंबे व घने हो जाने से उन में जुएं भी हो जाती हैं, इसलिए उन्हें समयसमय पर साफ करते रहना चाहिए. प्राइवेट पार्ट के अनचाहे बालों की सफाई के लिए कैंची से छंटाई करना अच्छा उपाय है. इस के अलावा ब्लेड  या हेयर रिमूवर क्रीम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

सावधानी

प्राइवेट पार्ट के अनचाहे बालों की सफाई जल्दबाजी, हड़बड़ी या डर कर न करें.

छंटाई के लिए छोटी धारदार कैंची का इस्तेमाल करें. अनचाहे बालों को अगर रेजर से साफ करना चाहते हैं, तो नए ब्लेड का इस्तेमाल करें.

पहले इस्तेमाल किए ब्लेड से बाल ठीक तरह से नहीं कटते हैं. उलटा ब्लेड कभी न चलाएं, इस से चमड़ी पर फोड़ेफुंसी होने का डर रहता है.

हेयर रिमूवर क्रीम का इस्तेमाल करने से पहले एक बार टैस्ट जरूर कर लें. अगर उस से एलर्जी होती है, तो इस्तेमाल न करें.

अंग दिखेगा बड़ा

प्राइवेट पार्ट के एरिया में बाल बड़े हो जाने से अंग उन में छिप जाता है, जिस से उस का आकार छोटा दिखाई देने लगता है. अनचाहे बालों को साफ करने से अंग का आकार बड़ा दिखने लगता है. इसे देख कर आप की पार्टनर ज्यादा मोहित होती है. प्यार के पलों के समय वह ज्यादा सहज महसूस करती है.

सेहतमंद महसूस करेंगे

प्राइवेट पार्ट के एरिया को साफ रखने से अंग सेहतमंद दिखाई देता है. आप भी संतुष्ट महसूस करते हैं, क्योंकि आप निश्चिंत हो जाते हैं कि अब आप को किसी तरह का इंफैक्शन नहीं है.

यह भी करें

अंग की नियमित सफाई करें. अंग के ऊपर की त्वचा को सावधानी के साथ पीछे की ओर ले जाएं. वहां सफेदपीला क्रीमनुमा चीज जमा होती है. यह पूरी तरह से कुदरती होती है. इस की नियमित सफाई न करने से बदबू आने या इंफैक्शन फैलने का डर बना रहता है. रोजाना नहाते समय कुनकुने पानी से इसे साफ करना चाहिए.

पेशाब करने के बाद अंग को अच्छी तरह से हिला कर अंदर रुके पेशाब को जरूर निकाल दें. इसे अपनी आदत में शुमार करें, क्योंकि अंग के अंदर रुका हुआ पेशाब बुढ़ापे में प्रोटैस्ट कैंसर के रूप में सामने आ सकता है.

माहिर डाक्टरों का कहना है कि अगर अंग के अंदर का पेशाब अच्छी तरह से निकाल दिया जाए, तो प्रोटैस्ट कैंसर का डर खत्म हो जाता है.

अंडरगारमैंट्स पर ध्यान दें

रोजाना नहाने के तुरंत बाद ही अपने अंडरगारमैंट्स को  बदलें. कई दिनों तक इस्तेमाल किए गए अंडरगारमैंट्स पहनने से प्राइवेट पार्ट के एरिया में इंफैक्शन फैलने का डर बढ़ जाता है. दूसरों के अंडरगारमैंट्स, साबुन वगैरह इस्तेमाल न करें. इस से भी इंफैक्शन फैलने का डर रहता है.

नहाने के बाद इस एरिया को तौलिए से अच्छी तरह से सुखा लें. हमेशा सूती अंडरगारमैंट्स पहनें. नायलौन के अंडरगारमैंट्स कतई न पहनें, क्योंकि उन में से हवा पास नहीं हो पाती है. इस वजह से प्राइवेट पार्ट के एरिया को भी अच्छी तरह से हवा नहीं मिल पाती है, जिस से कई तरह की बीमारियां पैदा हो सकती हैं.

सैक्स संबंध बनाने के बाद

सैक्स संबंध बनाने के बाद अंग को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए, क्योंकि सैक्स के समय व बाद में इस के अंदर कई तरह के स्राव बनते हैं. इन्हें साफ न करने पर इंफैक्शन हो सकता है. इस एरिया को पानी से साफ करें. सफाई करने के बाद अंग को अच्छी तरह से पोंछ कर सुखा लें.

मिडलाइफ में सैक्स को बनाना चाहते है रोमांच तो है जाने ये टौप सीक्रेट्स

मिड एज आते-आते सेक्स लाइफ थोडी सी बोरिंग और नीरस होने लग जाती है. जिससे रिश्तों में दरार आने लगती है. कई बार एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होने लग जाते हैं या मामला डिवोर्स तक पहुंच जाता है, या फिर इसी नीरसता के साथ जिंदगी उलझती हुई चलने लग जाती है.

हालांकि, कोई भी व्यक्ति अपनी सैक्स लाइफ को खत्म करना नहीं चाहता है. क्योकि इससे आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों ही लाइफ बहुत अच्छी रहती है. अब सवाल उठता है कि इस बोरियत और नीरसता को कैसे दूर किया जाए? तो इसके कुछ टिप्स जो कि टौप सीक्रेट्स है.

नई चीजों के साथ करें एक्सपेरिमेंट

नए एक्सपेरिमेंट में आप टच को फील कर सकते है. इसमें शरीर में सबसे सेंसेटिव पार्ट्स को टच करने के बारें में बताया गया है. जैसे कि रिप्रोडक्टिव ऑर्गेन के अलावा निपल्स, मुंह और होंठ, कान, गर्दन की नस, भीतरी जांघ, पीठ के निचले हिस्से आदि शामिल हैं. इनके टच का आप एक्सपेरिमेंट कर सकते है.

पुरुषों और महिलाओं को इन संवेदनशील स्पौट को टच करने भर से ही टर्न औन किया जा सकता है, इसलिए टच के साथ नए प्रयोग करना बुरा विचार नहीं होगा. इसे आप जरूर ट्राई करें. खासतौर पर, जब आपकी सैक्स लाइफ आपको थोड़ी बोरिंग लगने लगे.

सेक्स के बाद इसके बारे में करें बातें

सैक्स करने का हम जितना आनंद उठाते है. उससे कहीं ज्यादा उसे करने के बाद बातों का भी आनंज उठाना चाहिए. अब आप मिडल लाइफ में है और सैक्स के बारे में अपने पार्टनर से बात करेंगी. तो ये सेक्स लाइफ का रोमांचक बनाने में मदद करेगा. इस बारे में सेक्सोलोजिस्ट भी कहते है. कि सैक्स करने के बाद आप आप उसके बारे में बात जरूर करे.

इस समय में आप उन चीजों पर चर्चा करें जिन्हें आप पसंद करते हैं और उन चीजों पर भी चर्चा करें जिन्हें आप अगली बार नहीं करना चाहेंगे. इसके साथ ही ईमानदारी से यह भी बताना जरूरी है कि आपको क्या अच्छा नहीं लगा.

सैक्स टौय का करें इस्तेमाल

सेक्सोलॉजिस्ट ऐसा सुझाव देते है कि आप अपने पार्टनर के साथ मिलकर सैक्स टौय जैसे नए प्रोडक्ट खरीदें और इसका इस्तेमाल करें. सैक्स टौय आपके सैक्स लाइफ के लिए एक बहुत ही बढ़िया एक्सेसरीज है. अगर आप अपने या अपने पार्टनर के लिए कुछ बढ़िया काम करने वाला प्रोडक्ट की तलाश कर रहे हैं तो सैक्स टौय एक बेहतर चुनाव है. इसमें वाइब्रेटर, बट प्लग, मसाज औइल या बौडी पेंट आदि हो सकता है.

अलग-अलग सैक्स पोजीशन करें ट्राई

एक ही पार्टनर के साथ लंबे समय बिताने के बाद बोरियत हो जाती है. इसे आप अपने रिश्ते में भी महसूस कर सकते हैं. यह कभी भी एक हेल्दी सैक्स लाइफ की पहचान नहीं हो सकती है. इसलिए अपने सैक्स लाइफ को थोड़ा मजेदार बनाए.

आपके पार्टनर के साथ भी हर बार एक ही तरह के दो या तीन सैक्स पोजीशन हो रहे हैं, तो इससे आपको भी एक तरह की उबाऊपन महसूस हो सकता है. इसके साथ इस दौरान मिलने वाले सुख में भी कमी महसूस हो सकती है. इसलिए, यह बेहद जरूरी है कि आप अलग-अलग पोजीशन को ट्राई करें. इसके साथ ही आप दिन के अलग-अलग समय में भी आप ट्राई कर सकते हैं.

जब गांव की लड़की को हुई पहली माहवारी, फिर हुआ ये

पहली माहवारी हर लड़की के लिए बड़ी उलझन और मुश्किल भरी होती है. किसी के लिए दर्द बरदाश्त से बाहर होता है तो कोई इस से पूरी तरह से अनजान इस बात से डरी होती है कि कहीं उसे किसी तरह की चोट या बीमारी तो नहीं हो गई जो उस के साथ यह सब हो रहा है.

यह वह सोच है, जो माहवारी से जुड़ी हुई है और जो अकसर स्कूल की किताबों में बच्चे कैसे पैदा होते हैं वाले पाठ में लिखी मिलती है. गैरसरकारी संस्था वाले जब कोई जानकारी देने आते हैं, तो वे कुछ इसी तरह से बच्चों को माहवारी के बारे में समझाते हैं.

लेकिन, माहवारी की यह परिभाषा असल में जगह और संसाधनों या कहें सुखसुविधाओं की तर्ज पर दी जाए तो बेहतर रहेगा. पर क्यों? क्योंकि जिन लड़कियों को सैनेटरी पैड या एक साफ कपड़ा भी नहीं मिल पाता, उन के लिए महीने के वे 5 दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं होते.

लेकिन अगर सुविधाएं हों और तब भी बहुत सी लड़कियों का मुंह बंद रख कर परेशानियों को झेलते रहना भी यह सोचने पर मजबूर करता है.

84 फीसदी लड़कियों को पहली माहवारी होती है तो पता नहीं होता कि क्या हो रहा है. 15 फीसदी लड़कियां ही सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं.

माहवारी को धर्म से भी जोड़ा जा चुका है. कहा जाता है कि जब इंद्र देवता ने ब्राह्मणों को मारा था और इंद्र का पाप औरतों ने अपने सिर ले लिया जो हर महीने आता है.

इस बेसिरपैर की कहानी की वजह से औरतों को माहवारी के दिनों में अछूत मान लिया जाता है.

पंडेपुजारी यह भी बता देते हैं कि गलत सोच के चलते हर महीने खून की शक्ल में निकलती है. इस तरह की बातें सुनसुन कर लड़कियां अपनेआप को पापिन समझती हैं.

माहवारी, जिसे अकसर लोग पीरियड्स, महीना या डेट कह कर पुकारते हैं, असल में वह मुद्दा है, जिस पर बात तो की जाने लगी है, लेकिन बात असल में किस तरह की और क्या बात होनी चाहिए, इस पर शायद ही कोई ध्यान देता है.

गांव और कसबों की लड़कियां शहरी लड़कियों से इस मामले में बहुत अलग हैं. हर लड़की ही इस मामले में बहुत अलग है, यह कहना ज्यादा बेहतर रहेगा. पहली माहवारी का दर्द, घबराहट, चिंता जैसी परेशानियां भी सब की एकजैसी नहीं होती हैं.

नाम दिया ‘लीच’ अलीगढ़ की रहने वाली खुशबू

16 साल की है. उस से यह सवाल पूछने पर कि जब उसे पहली बार माहवारी आई थी, तो उस ने क्या किया था, तो वह हंसते हुए कहती है, ‘‘इस में बताने वाला क्या है. सब के साथ एकजैसा ही होता है.’’

खुशबू पर थोड़ा जोर डाल कर पूछने पर उस ने आगे बताया, ‘‘दीदी, मुझे तो स्कूल में बता दिया गया था कि कैसे क्या होता है, तो मुझे तो सब पता था. मम्मी ने भी कहा था कि यह दिक्कत होती है लड़कियों को.

‘‘दिक्कत…?’’ मैं ने पूछा.

खुशबू फिर जोर से हंस कर कहने लगी और बोली, ‘‘हां, मतलब वही.

‘‘तुम पीरियड्स को क्या कहती हो?’’

‘‘दीदी, मैं अपनी सहेली को बुलाती हूं. वह आप को बता देगी अच्छे से,’’ कह कर खुशबू बगल के घर से अपनी सहेली रोली को बुला लाई.

‘‘हां, क्या बताना है?’’ रोली ने खुशबू की ही तरह हंसते हुए पूछा.

‘‘पहली माहवारी आई थी, तो क्या हुआ था?’’

यह सुनते ही रोली खिलखिला कर हंसने लगी, ‘‘मुझे तो मेरी चाची ने बताया था कि यह हो तो क्या होता है.’’

‘‘यह मतलब?’’ मैं ने एक बार फिर सवाल किया.

‘‘हां, मतलब यही,’’ कह कर वह हंस पड़ी.

‘‘तुम माहवारी को क्या कहती हो?’’

‘‘कहते तो हम लीच यानी जोंक हैं,’’ रोली ने कहा और यह बताए बिना कि असल में पहली बार माहवारी आई थी तो क्या हुआ था, खुशबू को देख हंसने दी.

इस के बाद वे सिर्फ हंस रही थीं और माहवारी के बारे में बात करने से कतरा रही थीं. यह कतराना, हंसना, मजाक बनाना वह समस्या है, जिस पर बात करने की जरूरत है. क्यों? क्योंकि इस हंसी के पीछे माहवारी लड़कियों के लिए माहमारी बन जाती है और इसी हंसी के पीछे दब कर रह जाती है.

चुप रहना पड़ा महंगा 8 महीने पहले इसी गांव की रहने वाली सुनीता को अनियमित माहवारी की समस्या हुई थी. उसे 2 महीने तक 13 दिन माहवारी हुई. उस ने अपनी मां को बताया तो उन्होंने समझाया कि शुरूशुरू में ऐसा होता है. पर कोई दिक्कत नहीं.

13 दिन पीरियड्स होने पर सुनीता ने सैनेटरी पैड का इस्तेमाल किया था, लेकिन बारबार ले कर कौन आता, इस उलझन में वह एक ही पैड पूरा दिन इस्तेमाल करती. इस वजह से उस की जांघों पर दाने निकल आए. उस ने मां से दानों का जिक्र किया तो उन्होंने उसे क्रीम लगा लेने के लिए कहा.

माहवारी तो नियमित हो गई, लेकिन दाने बढ़ते गए. एक जांघ से शुरू हुए दाने अब दोनों पर फैलने लगे. सुनीता और उस की मां दोनों को ही समझ नहीं आया कि जांघें दिखा कर तो दवा ले नहीं सकते और बोलने में भी उन्हें शर्म आ रही थी, तो सुनीता की मां ने अपने पति से कह कर फैल रहे दानों की दवा मंगाई. जांघ पर हुए ये दाने अब बड़ेबड़े निशान बनने लगे और सुनीता की जांघों की चमड़ी ढीली पड़ने लगी.

अगले महीने जब पीरियड आया, तो पैड या कपड़ा कुछ भी लगाने पर वह जांघों पर बुरी तरह चुभने लगा. इस के चलते ढीली पड़ी जांघ की चमड़ी पर गहरा कट लग गया. अब न सुनीता उठ पा रही थी, न चल पा रही थी. आखिरकार सुनीता ने भाई से फोन मांग कर जांघों का फोटो खींचा और डाक्टर के पास गई.

डाक्टर ने देखते ही बताया कि सुनीता की जांघों पर दाद हुआ है और जांघों की ढीली हुई चमड़ी जिस पर खिंचाव के निशान आ गए हैं, अब कभी ठीक नहीं होगी, ये निशान कभी नहीं जाएंगे.

जाहिर तौर पर दाद की वजह से सुनीता का माहवारी के समय सफाई न रखने पर इंफैक्शन की चपेट में आना था, जिस ने बाद में दाद का रूप ले लिया.

साफतौर पर लड़कियों के लिए बहुत जरूरी है कि वे इस बात को समझें कि पहली माहवारी के बारे में सीख लेना या जान लेना ही काफी नहीं है, बल्कि तीसरी, चौथी, 5वीं और हर एक माहवारी में यह ध्यान रखना जरूरी है कि साफसफाई जरूरी है.

पैड हो या कपड़ा समय पर बदलना जरूरी है. जिस तरह से खीखी और हंसीठिठोली में इस बारे में बात होती है, उसी तरह माहवारी से हो रही तमाम बीमारियों के बारे में खुल कर बोलना भी जरूरी है.

स्पाइनल इंजरी का सेक्सुअल लाइफ पर प्रभाव

स्पाइनल इंजरी किसी के भी जीवन की त्रासदपूर्ण घटना हो सकती है. इस से व्यक्ति एक तरह से लकवाग्रस्त हो सकता है. इंजरी जब गरदन में हो तो इस से टेट्राप्लेजिया हो सकता है. यदि इंजरी गरदन के नीचे हो तो इस से पाराप्लेजिया यानी दोनों टांगों और इंजरी से निचले धड़ में लकवा हो सकता है. केंद्रीय स्नायुतंत्र का हिस्सा होने के कारण स्पाइनल कौर्ड की सेहत पर ही पूरे शरीर की सेहत निर्भर करती है. इंजरी से यौन सक्रियता भी प्रभावित हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी ऊंचाई से गिरने, सड़क दुर्घटना, हिंसक या खेल की घटनाओं के कारण हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी के नौनट्रोमेटिक कारणों में स्पाइन और ट्यूमर के टीबी जैसे संक्रमण शामिल हैं.

यौन सक्रियता जरूरी

स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति को यथासंभव आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश होनी चाहिए. भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में यौन स्वास्थ्य पर चर्चा करना हमेशा वर्जित विषय माना जाता रहा है, इसलिए इस विषय पर बात करने से लोग कतराते हैं और मरीज खामोशी से इसे सहता रहता है. शिक्षा, ज्ञान और जागरूकता के अभाव में लोग ऐसे मरीजों के बारे में यह समझने लगते हैं कि वे यौनेच्छा एवं यौन उत्कंठा से पीडि़त हैं. लेकिन सच यह है कि सामान्य व्यक्ति की तरह ही स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति के लिए भी यौन सक्रियता उतनी ही जरूरी है.

पार्टनर का अभाव

दरअसल, स्पाइन इंजरी इच्छाशक्ति का स्तर तो प्रभावित नहीं करती, लेकिन किसी व्यक्ति की यौन गतिविधि प्रभावित जरूर हो जाती हैं. कई बार ऐसा पार्टनर के अभाव में भी होता है. अन्य मामलों में यह मांसपेशियों पर नियंत्रण रखने वाले व्यायाम की कमजोर क्षमता के कारण भी हो सकता है. यौन अनिच्छा लिंग के आधार पर भी अलगअलग हो सकती है. पुरुष जहां उत्तेजना के अभाव के कारण प्रभावित होते हैं, वहीं महिलाएं आमतौर पर शिथिल पार्टनर होने के कारण इस से कम प्रभावित होती हैं खासकर भारतीय समाज में. लेकिन स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन अनिच्छा को सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम और निरंतर अभ्यास से बहुत हद तक दूर किया जा सकता है.

समस्या की अनदेखी

ऐसे मरीजों में आत्मविश्वास जगाना और यौन स्वास्थ्य के बारे में उन से खुल कर बात करना बहुत जरूरी होता है. इस में तंबाकू पूरी तरह से निषेध होना चाहिए. शारीरिक गतिविधियों के अभाव और दर्द के अलावा एससीआई मरीज आकर्षण, संबंधों और प्रजनन की क्षमता जैसे अन्य कारकों को ले कर भी चिंतित रहते हैं. समय के साथ जहां मरीज अपने नवजात शिशु के साथ जीना सीख जाते हैं और परिवर्तित जिंदगी अपना लेते हैं, वहीं वे अपने यौन स्वास्थ्य को ले कर अकसर अनजान रहते हैं. मरीज के शरीर की कुछ खोई गतिविधियां बहाल करने के लिए व्यापक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के दौरान भी यौन समस्या की अनदेखी ही की जाती है.

खुद पहल नहीं करतीं

एससीआई के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अकसर सैक्सुअल पार्टनर बनना ज्यादा आसान होता है जो न सिर्फ शारीरिक रचना के कारण, बल्कि सक्रियता के स्तर पर भी संभव होता है. भारत जैसे रूढिवादी समाज में महिलाओं से यौनइच्छा की उम्मीद करना मुश्किल है. भारत की 80% महिलाएं ऐसी पैसिव सैक्सुअल पार्टनर होती हैं जो खुद पहल नहीं करतीं. इसलिए पुरुषों की तुलना में उन के लिए यौन स्वास्थ्य वापस पाना ज्यादा आसान होता है और उन का मुख्य लक्ष्य यौन सक्रियता वापस पाना तथा संभोग करने की क्षमता हासिल करना होता है.

समस्या का समाधान

पुरुषों के मामले में समस्याएं उत्तेजना में कमी और स्खलन से ही जुड़ी होती हैं. उन की उत्तेजना क्षमता और स्खलन में बदलाव आने के अलावा कामोत्तेजना की यौन संतुष्टि भी एक ऐसा क्षेत्र है जो एससीआई पीडि़त पुरुषों के लिए चिंता का कारण होता है. एक अन्य चिंता स्पर्म की क्वालिटी पर होने वाले प्रभाव और स्पर्म काउंट को ले कर होती है. ज्यादातर स्पाइनल इंजरी के मामले में वियाग्रा जैसी दवा से उत्तेजना की समस्या दूर की जा सकती है. कुछ मामलों में वैक्यूम ट्यूमेसेंस कंस्ट्रक्शन थेरैपी (वीटीसीटी) या पैनाइल प्रोस्थेसिस जैसे उपकरण की भी जरूरत पड़ सकती है.

गलत धारणा की वजह

सैक्सुअल काउंसलिंग और मैनेजमैंट विकासशील देशों में एससीआई के सब से उपेक्षित पहलुओं में से एक है. लेखकों के एक अध्ययन से पाया गया है कि एससीआई से पीडि़त 60% मरीजों और उन के 57% पार्टनरों ने पर्याप्त रूप से सैक्सुअल काउंसलिंग नहीं ली. जिन फैक्टर्स पर बहुत कम जोर दिया जाता है, उन में से एक है जागरूकता और सांस्कृतिक बदलाव. पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का मकसद सिर्फ बच्चे पैदा करना ही माना जाता है. सेक्स के बारे में बातचीत को खराब माना जाता है.

यौन समस्याएं न सिर्फ आम हो गई हैं, बल्कि सेक्स की अनदेखी, सेक्स के बारे में गलत धारणाओं और नकारात्मक सोच भी इस के मुख्य कारण माने जाते हैं. पारंपरिक वर्जना भी इस में अहम भूमिका निभाती है. सैक्सुअलिटी को प्रभावित करने वाले अन्य सामाजिक, पारंपरिक फैक्टर्स में यौन संबंधी सोच, मातापिता के प्रति सम्मान तथा अन्य ऐसे कारण शामिल हैं, जिन में सेक्स को खराब माना जाता है और पुरुषों तथा महिलाओं के लिए बरताव के दोहरे मानदंड अपनाए जाते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति बदतर होती है.

आत्मविश्वास में कमी

एक अध्ययन के अनुसार, विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे देश में स्पाइनल कौर्ड इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन गतिविधि की बारंबारता कम रहती है. ज्यादातर मरीज इंजरी से पहले की तुलना में मौजूदा स्तर पर अपने सेक्स जीवन को कमतर आंकते हैं. यह शायद एससीआई की समस्याओं, इंजरी के बाद पार्टनर की असंतुष्टि, यौनक्रिया के दौरान पार्टनर से कम सहयोग, आत्मविश्वास में कमी तथा अपर्यात सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के कारण भी हो सकता है.

पश्चिमी देशों के मामलों की तरह बहुत कम पार्टनर संतुष्ट होते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाएं यौन संतुष्टि के अभाव की शिकायतें ज्यादा करती हैं. इस के पीछे प्रचलित सांस्कृतिक मान्यता है कि किसी बीमार महिला के साथ यौन संबंध बनाना नैतिकता के विरुद्ध है और इस से पुरुष पार्टनर में भी रोग संचारित हो सकता है. भारतीय समाज में महिलाओं की कमतर स्थिति, पार्टनर की भिन्न सोच, पाचनतंत्र आदि की गड़बड़ी और निजता का अभाव भी इस के कुछ अन्य संभावित कारण हो सकते हैं.

यौनजीवन का अंत नहीं

निष्कर्षतया स्पाइनल इंजरी को यौनजीवन का अंत नहीं मान लेना चाहिए. इस से इंजरी पीडि़त व्यक्ति को अपने नए शरीर में यौन सुख स्वीकार करने में मदद की जरूरत पड़ती है और कई बार उस के लिए अलग तरीके से सोचने की जरूरत होती है. परिवर्तित संवेदनशीलता, शारीरिक प्रतिबंध की स्वीकृति या उन्नत मसल कंट्रोल जैसे फैक्टर्स को समझने से स्पाइनल इंजरी मरीज को स्वस्थ यौनजीवन बहाल करने में मदद मिल सकती है. उस के सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के लिए मैडिकल प्रोफैशनल्स की मदद की जरूरत होती है. इस संबंध में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है खासकर भारतीय समाज तथा प्रोफैशनल्स के बीच.

सेक्स में तन के साथ जरूरी है मन की तंदुरुस्ती

सेक्स पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाता है, यह हम सभी जानते हैं. मगर सफल सेक्स के लिए स्वस्थ शरीर के साथसाथ मन का स्वस्थ होना भी बहुत जरूरी है. आज हम आपको बताऐंगे सेक्स में कब कब नाकामी मिलती है, और सेक्स में नाकामी मिलना एक पुरुष के लिए काफी गंभीर बात हो सकती है.

  • शिथिलता : सेक्स की इच्छा होने पर पुरुष इंद्रिय की ओर रक्तसंचार का प्रभाव बढ़ता है, जिस से इंद्रिय में उत्थान और कठोरता आती है. यदि आप का पार्टनर भय, चिंता, तनाव से परेशान हो तो इंद्रिय की कठोरता समाप्त या फिर कम हो जाती है. ऐसे पतियों को मानसिक रूप से नपुंसक कहा जाता है.
  • मानसिक तनाव : सेक्स में नाकामी का एक कारण मानसिक भी है. इंद्रिय उत्थान नर्वस स्टिम्युलेशन पर आधारित होता है. जब संवेदना नहीं मिलती है तब उत्थान का अभाव होता है. सेक्स की प्रबल इच्छा होते हुए भी पति इंद्रिय शिथिलता के कारण सेक्स करने में असमर्थ होता है.
  • तीखे, गरम, खट्टे का अधिक सेवन : तीखी, खट्टीमीठी, गरम चीजों का अधिक सेवन करने से वीर्य विकृत हो जाता है. परिणामस्वरूप पतिपत्नी सेक्स का पूरी तरह से आनंद नहीं उठा पाते हैं.
  • प्रजनन अंग में रोग : प्रजनन अंग का रोग भी इंद्रिय उत्थान क्रिया में बाधा डालता है, जिस से पतिपत्नी दोनों ही सेक्स को ऐंजौय नहीं कर पाते हैं. कई बार पति के अंग में चोट लगने से भी उत्थान नहीं हो पाता है. इस के अलावा कई बार मन और शरीर दोनों का कामावेग से उत्तेजित होने पर सहवास क्रिया में प्रवृत्त होने पर पति अतिशीघ्र स्खलित हो जाता है.
  • पत्नी के सहयोग का अभाव : यदि पत्नी सहवास के दौरान पति को पूर्णरूप से सहयोग नहीं करती है या फिर अपने सजनेसंवरने अथवा शरीर की साफसफाई का ध्यान नहीं रखती है तो इस से भी पति के मन में सेक्स के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है.
  • गैरजरूरी नियम बनाना : कई बार संबंध बनाने के दौरान पत्नी कुछ गैरजरूरी नियम बना लेती है जैसे लाइट औफ न करना, नए तरीके आजमाने के लिए मना करना, जल्दी करो की रट लगाना आदि से भी संबंध बनाने में नाकामी का सामना करना पड़ता है.
  • कभी पहल न करना : परिणय संबंध के लिए पत्नी द्वारा हमेशा पति की ही बाट जोहना, खुद कभी पहल न करना भी पति को अच्छा नहीं लगता है. पति भी चाहता है कि पत्नी भी पहल करे.
  • उत्साह की कमी : सहवास के दौरान पतिपत्नी दोनों को उत्साह के साथ हंसतेबोलते, चुहलबाजी करते हुए सहयोग करना चाहिए. यदि पत्नी ऐसा नहीं करती, तो पति को लगता है कि पत्नी केवल औपचारिकता निभा रही है.
  • और्गेज्म की परवाह न करना : जिस तरह पत्नी चाहती है कि वह सेक्स में पति को पूरी तरह संतुष्ट कर सके, ठीक उसी तरह पति भी चाहता है कि वह पत्नी को पूर्णरूप से संतुष्ट कर सके, मगर यह तभी संभव हो सकता है जब दोनों ही मानसिक व शारीरिक रूप से एकदूसरे से जुड़ कर सेक्स का आनंद लें.
  • इम्युनिटी बढ़ाता है : सेक्स पूरे शरीर को प्रभावित करता है. यह दिलदिमाग के साथसाथ रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है.
  • जकड़न से छुटकारा : यदि पति या पत्नी स्टिफनेस की समस्या से परेशान रहते हों तो सहवास क्रिया उन की मदद करेगी. दरअसल, यह एक ऐसी क्रिया है, जिस से शरीर की सभी मसल्स की एक्सरसाइज हो जाती है, स्टिफनेस जैसी तकलीफ से भी छुटकारा मिलता है. कोलेस्टेराल नियंत्रित रहता है, रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, सर्दीजुकाम की समस्या कम होती है.
  • पेनकिलर है : शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द हो तो सेक्स से परहेज न करें, क्योंकि सेक्स करने से दर्द से राहत मिलेगी. यह तनाव भी दूर करता है.
  • खूबसूरती : यदि पतिपत्नी दोनों ही खुल कर सेक्स सुख को अपनाते हैं, तो इस से उन की खूबसूरती ही नहीं बढ़ती, अपितु उम्र भी बढ़ती है.

सेक्स की कमजोरी में टेस्टोस्टेरान का प्रयोग किया जाता है. यानी पुरुष हारमोन से इलाज किया जाता है. यह उन रोगियों के लिए ही उपयोगी सिद्ध होता है, जिन के शरीर में सचमुच कामोत्तेजना की कमी होती है. इस तरह सेक्स की नाकामी को दूर कर के सुखद सेक्स जिंदगी जीना आज की भागमभाग वाली जिंदगी के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

यौन रोग के शुरुआती लक्षण

यौन रोग पतिपत्नी के संबंधों में बाधक बन जाते हैं. यौन रोग के डर से लोग संबंध बनाने से डरने लगते हैं. कई बार यौन रोगों से अंदरूनी अंग से बदबू आने लगती है, जिस की वजह से सेक्स संबंधों से रुचि खत्म हो जाती है. ऐसे में पतिपत्नी एक दूसरे से दूर जा कर कहीं और संबंध बनाने लगते हैं.

क्या है यौन रोग

यौन रोग शरीर के अदरूनी अंगों में होने वाली बीमारियों को कहा जाता है. यह एक पुरुष और औरत के साथ संपर्क करने से भी हो सकता है और बहुतों के साथ संबंध रखने से भी हो सकता है. यौन रोग से ग्रस्त मां से पैदा होने वाले बच्चे को भी यह रोग हो सकता है. ऐसे में अगर मां को कोई यौन रोग है, तो बच्चे का जन्म डाक्टर की सलाह से औपरेशन के जरीए कराना चाहिए. इस से बच्चा योनि के संपर्क में नहीं आता और यौन रोग से बच जाता है.

कभीकभी यौन रोग इतना मामूली होता है कि उस के लक्षण नजर ही नहीं आते हैं. इस के बाद भी इस के परिणाम खतरनाक हो सकते हैं. इसलिए यौन रोग के मामूली लक्षण को भी नजरअंदाज न करें. मामूली यौन रोग कभीकभी अपनेआप ठीक हो जाते हैं, पर इन के बैक्टीरिया शरीर में रह जाते हैं, जो कुछ समय बाद शरीर में तेजी से हमला करते हैं. यौन रोग शरीर की खुली और छिली जगह वाली त्वचा से ही फैलते हैं.

यौन रोग का घाव इतना छोटा होता है कि उस का पता ही नहीं चलता है. पति या पत्नी को भी इस का पता नहीं चलता है. यौन रोगों का प्रभाव 2 से 20 सप्ताह के बीच कभी भी सामने आ सकता है. इस के चलते औरतों को माहवारी बीच में ही आ जाती है. यौन रोग योनि, गुदा और मुंह के द्वारा शरीर में फैलते हैं. यौन रोग कई तरह के होते हैं. इन के बारे में जानकारी होने पर इन का इलाज आसानी से हो सकता है.

हार्पीज: हार्पीज बहुत ही आम यौन रोग है. इस रोग में पेशाब करते समय जलन होती है. पेशाब के साथ कई बार मवाद भी आता है. बारबार पेशाब जाने को मन करता है. बुखार भी हो जाता है. टौयलेट जाने में भी परेशानी होने लगती है.  जिसे हार्पीज होता है उस के मुंह और योनि में छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. शुरुआत में ये अपनेआप ठीक भी हो जाते हैं. अगर ये दोबारा हों तो इलाज जरूर कराएं.

व्हाट्स: व्हाट्स में शरीर के तमाम हिस्सों में छोटीछोटी फूलनुमा गांठें पड़ जाती हैं. व्हाट्स एचपीवी वायरस यानी ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के चलते फैलता है. यह 70 प्रकार का होता है. अगर ये गांठें अगर शरीर के बाहर हों और 10 मिलीमीटर के अंदर हों तो इन्हें जलाया जा सकता है. 10 मिलीमीटर से बड़ा होने पर औपरेशन के जरीए हटाया जाता है.

योनि में फैलने वाले वायरस को जैनरेटल व्हाट्स कहते हैं. यह योनि में बच्चेदानी के मुख पर हो जाता है. अगर समय पर इलाज न हो तो यह घाव कैंसर का रूप ले लेता है. अगर यह हो तो 35 साल की उम्र के बाद एचपीवी का कल्चर जरूर करा लें. इस से घाव का पूरा पता चल जाता है

गनेरिया: इस रोग में पेशाब की नली में घाव हो जाता है, जिस से पेशाब की नली में जलन होने लगती है. कई बार खून और मवाद भी आने लगता है. इस का इलाज ऐंटीबायोटिक दवाओं के जरीए किया जाता है. अगर यह बारबार होता है तो इस का घाव पेशाब की नली को बंद कर देता है, जिसे बाद में औपरेशन के द्वारा ठीक किया जाता है.

गनेरिया को साधारण बोली में सुजाक भी कहा जाता है. इस के होने पर तेज बुखार भी आता है. इस के बैक्टीरिया की जांच के लिए मवाद की फिल्म बनाई जाती है. अगर यह बीमारी शुरू में ही पकड़ में आ जाए तो इलाज आसानी से हो जाता है. बाद में इलाज कराने में मुश्किल आती है.

सिफलिस: यह यौन रोग भी बैक्टीरिया के कारण फैलता है. यह यौन संबंध के कारण ही होता है. इस रोग के चलते पुरुषों के अंग के ऊपर गांठ सी बन जाती है. कुछ समय के बाद यह ठीक भी हो जाती है. इस गांठ को शैंकर भी कहा जाता है. शैंकर से पानी ले कर माइक्रोस्कोप द्वारा ही बैक्टीरिया को देखा जाता है. इस बीमारी की दूसरी स्टेज पर शरीर में लाल दाने से पड़ जाते हैं. यह कुछ समय के बाद शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करने लगता है. इस बीमारी का इलाज तीसरी स्टेज के बाद मुमकिन नहीं होता है. खराब हालत में यह शरीर की धमनियों को प्रभावित करता है. धमनियां फट भी जाती हैं. यह रोग आदमी और औरत दोनों को हो सकता है. इस का इलाज दवा और इंजैक्शन से होता है.

क्लैमाइडिया: इस बीमारी में औरतों को योनि में हलका सा संक्रमण होता है. यह योनि के द्वारा बच्चेदानी तक फैल जाता है. यह बांझपन का सब से बड़ा कारण होता है. यह बच्चेदानी को खराब कर देता है. बीमारी की शुरुआत में ही इलाज हो जाए तो ठीक रहता है. क्लैमाइडिया के चलते औरतों को पेशाब करते समय जलन, पेट दर्द, माहवारी में दर्द, टौयलेट के समय दर्द, बुखार आदि परेशानियां पैदा होने लगती हैं.

जानें महिला और पुरुष कब करना चाहते है सैक्स

महिलाओं और पुरुषों में यौनक्रीड़ा की इच्छा का समय अलग-अलग होता है. एक सर्वेक्षण से यह बात और स्पष्ट हो गई है कि महिलाओं में सोने से पहले रात के 11.21 बजे यौन संबंध बनाने की इच्छा होती है. वहीं पुरुषों में सुबह के 7.54 बजे यौन संबंध बनाने की इच्छा होती है.

सर्वेक्षण के शोध में पता चला है कि महिलाओं में रात के 11 बजे से दो बजे तक यौनसंबंध बनाने की इच्छा चरम पर होती है, जबकि पुरुषों में सुबह पांच बजे से नौ बजे तक यौन संबंध बनाने की इच्छा प्रबल होती है.

एक अखबार के मुताबिक, लवहनी के सहसंस्थापक रिचर्ड लांगहर्स्ट ने कहा, “पुरुष नाश्ते के पहले यौनसंबंध बनाने के लिए तैयार रहते हैं, जबकि महिलाएं रात के समय यौनसंबंध बनाना चाहती हैं.”

ब्रिटेन में 2,300 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण में यह भी निष्कर्ष निकला है कि लोग उस साथी के साथ घर बसाना चाहते हैं जिनमें यौन संबंध बनाने की समान प्रवृत्ति हो.

सेक्सटॉयज बनाने वाली कंपनी लवहनी द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण में पता चला है कि 68 फीसदी महिलाओं और 63 फीसदी पुरुषों ने किसी ऐसे व्यक्ति से प्रेम संबंध बनाए हैं जिसकी यौन रुचि स्वयं की यौन रुचि से अलग थी.

सर्वेक्षण में पता चला है कि पुरुषों में सुबह के समय यौनसंबंध बनाने की इच्छा प्रबल होती है, लेकिन इस दौरान मात्र 11 फीसदी महिलाओं में ही यौनसंबंधों की इच्छा होती है. वहीं सोने से पहले केवल 16 फीसदी पुरुष ही यौन संबंध बनाने के इच्छुक होते हैं.

इस Valentines Day जानिए आखिर क्या है मेल पिल्स

मेल कौंट्रासैप्टिव पिल्स के अनुसंधान की शुरुआत हालांकि 7वें दशक के प्रारंभ में हो गई थी किंतु सफलता नहीं मिल पाने के पीछे वैज्ञानिकों की अपनी मजबूरी थी. इस की राह में पुरुषों के प्रजनन अंगों की रचना और फिजियोलौजी की जटिलताएं बारबार आड़े आती रहीं. महिलाओं में ओव्यूलेशन से ले कर फर्टिलाइजेशन और भू्रण को गर्भाशय के अंदर इंप्लांटेशन को रोक कर गर्भधारण को बाधित करना अपेक्षाकृत आसान है. पुरुषों के साथ ऐसी बात नहीं है.

महिला की एक ओवरी से पूरे महीने में मात्र एक ही अंडा निकलता है जिस को नियंत्रित करने में वैज्ञानिकों को विशेष परेशानी नहीं हुई. ओव्यूलेशन के लिए जिम्मेदार हार्मोंस की मात्रा को बाधित कर देने पर न तो अंडे का निर्माण संभव है और न ही ओव्यूलेशन. इसलिए फीमेल पिल्स की ईजाद में चिकित्सा वैज्ञानिकों को विशेष परेशानी नहीं हुई, लेकिन पुरुषों में न तो कभी वीर्य का निर्माण और न ही स्खलन बाधित होता है.

इतना ही नहीं, प्रत्येक स्खलन के दौरान वीर्य के प्रति मिलीलिटर में लगभग 100 मिलियन से भी अधिक शुक्राणु होते हैं. जहां तक प्रैग्नैंसी की बात है, इस के लिए मात्र एक ही शुक्राणु काफी होता है और वह शुक्राणु कोई भी हो सकता है. ऐसी स्थिति में, एकसाथ इतने शुक्राणुओं को नियंत्रित करना वैज्ञानिकों के लिए आसान बात नहीं थी, फिर भी इसी को आधार बना कर शुरुआती दिनों में गोसिपोल नामक गोली के निर्माण में वैज्ञानिकों को आंशिक सफलता मिली. लेकिन ऐसा देखा गया कि इस से शुक्राणुओं की संख्या में तेजी से कमी आती है और 10 फीसदी पुरुष स्थायी रूप से संतानोत्पत्ति में असमर्थ पाए गए. सो, इस के प्रयोग को तुरंत बंद कर दिया गया.

शुरुआती दौर में गोसिपोल का प्रयोग असफल साबित हुआ, किंतु इतना तो स्पष्ट हो गया कि मेल पिल्स के निर्माण में सैक्स हार्मोंस द्वारा ही सफलता मिल सकती है. अर्थात इस की विभिन्न मात्रा का प्रयोग कर ऐसी गोलियां बनाई जा सकती हैं जो शुक्राणुओं के निर्माण को न तो स्थायी रूप से बाधित करें और न ही प्रैग्नैंसी की संभावनाओं को स्थायी रूप से खत्म करें. इस के साथसाथ, वैज्ञानिकों ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्लैंड नामक विशेष ग्रंथि को भी नियंत्रण में रखा जाए तो शुक्राणुओं के निर्माण को नियंत्रण में रखा जा सकता है.

वैज्ञानिक इस बात पर ध्यान केंद्रित करने लगे कि शुक्राणुओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्लैंड द्वारा स्राव को बाधित कर दिया जाए तो बिना किसी साइड इफैक्ट या सैक्स की क्रियाशीलता को बाधित किए शुक्राणुओं की संख्या में कमी ला कर प्रैग्नैंसी को नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन अनुसंधान के क्रम में शीघ्र ही एक नए सैक्स हार्मोन टेस्टोस्टेरोन का पता चला जो अंडकोष से स्रावित होता है.

शोध से यह भी पता चला कि टेस्टोस्टेरोन नामक यह हार्मोन शुक्राणुओं के निर्माण से ले कर मैच्योर होने के लिए जिम्मेदार है. इतना ही नहीं, वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि यह पुरुषार्थ के साथसाथ मांसपेशियों के विकास तथा दाढ़ीमूंछ के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाता है.

अब वैज्ञानिकों का सारा ध्यान इसी हार्मोन पर था. वे अपने अनुसंधान से यह पता लगाने में लग गए कि किस तरह इस हार्माेन के स्राव को नियंत्रित किया जाए. जैसेजैसे अनुसंधान आगे बढ़ता गया, इस रहस्य से परदा उठने लगा और शीघ्र ही पता चल गया कि शुक्राणुओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार अंडकोष से स्रावित होने वाले टेस्टोस्टेरोन का तार पिट्यूटरी ग्लैंड से जुड़ा है.

इस दौरान यह भी पता चला कि जब इस की मात्रा रक्त में सामान्य से ज्यादा हो जाती है या फिर बाहर से इस का समावेश किया जाता है तो शुक्राणु का निर्माण पूरी तरह बाधित हो जाता है. लेकिन इस से कई दूसरे अवांछित साइड इफैक्ट भी देखने को मिलने लगे. चेहरे पर कीलमुंहासे, वजन में बढ़ोत्तरी के साथसाथ पौरुषग्रंथि में वृद्धि होने की शिकायतें आने लगीं.

इस के बाद वैज्ञानिकों ने एक दूसरा रास्ता निकाला. टेस्टोस्टेरोन के साथ एक दूसरा सैक्स हार्मोन प्रोजेस्टेरोन की एक निश्चित मात्रा मिला कर प्रयोग करने पर विचार किया गया. इस के पीछे वैज्ञानिकों का तर्क था कि यह हार्मोन पुरुष और महिला दोनों में रिप्रौडक्टिव हार्मोन सिस्टम के स्राव को कम कर देता है. ऐसा करने में वैज्ञानिकों को आशातीत सफलता मिली.

लंबे अनुसंधान के बाद यह तय हो गया है कि मेल पिल्स में प्रोजेस्टेरोन तथा टेस्टोस्टेरोन दोनों तरह के हार्मोन का मिश्रण जरूरी है. इस के साथ यह समस्या आने लगी कि प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन से निर्मित पिल्स के खाने के बाद आंत में जा कर पाचक रस और विभिन्न एंजाइम्स के प्रभाव से विच्छेदित हो जाता है, जिस से इस की क्रियाशीलता तथा प्रभाव दोनों कम हो जाते हैं. इसलिए शोधकर्ता अब इन दोनों हार्मोंस के मिश्रण को त्वचा में इंप्लांट करने के लिए इस के माइक्रो कैप्सूल तथा इंजैक्शन विकसित कर रहे हैं, ताकि टेस्टोस्टेरोन की क्रियाशीलता प्रभावित न हो. दुनिया के कई देशों में माइक्रो पिल्स, इंजैक्शन क्रीम, जैल आदि का निर्माण करने पर विचार किया गया.

परीक्षण अब अंतिम चरण में

पिल्स का परीक्षण दुनिया के कई देशों में अब अंतिम दौर में है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वह दिन दूर नहीं जब महिलाओं की तरह पुरुष भी मैडिकल शौप से बर्थ कंट्रोल की गोलियां, क्रीम, जैल की शीशियां खरीदते, अस्पतालों में इस का इंजैक्शन लेते और परिवार नियोजन केंद्रों पर इस के सेवन के तरीकों पर चर्चा करते नजर आएंगे.

हाल ही में लगभग 1 हजार पुरुषों पर इस के इंजैक्शन का परीक्षण किया जा चुका है और 99 फीसदी कारगर भी साबित हुआ है. यह अस्थायी तौर पर रिप्रौडक्टिव हार्माेनल सिस्टम को या तो कम कर देता है या उसे पूरी तरह से रोक देता है. खास बात यह है कि यह पूरी तरह रिवर्सिबल है और इस का सेवन छोड़ देने पर 67 फीसदी पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या 6 माह के भीतर सामान्य हो जाती है. शतप्रतिशत सामान्य होने में लगभग 1 साल का समय लगता है. इस में किसी तरह के साइड इफैक्ट देखने को नहीं मिले.

यूनाइटेड नैशन वर्ल्ड और्गेनाइजेशन यूनिवर्सिटीज औफ कैलिफोर्निया, लौस एंजेल्स तथा यूनिवर्सिटीज औफ सिडनी में भी इस का परीक्षण पूरा किया जा चुका है. पौरुष को मैंटेन रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस हार्मोन के सेवन से बिना किसी परेशानी के स्पर्म काउंट में कमी तो आई लेकिन बांझपन, उत्तेजना या इच्छा में कमी जैसे विकार देखने को नहीं मिले. यूनिवर्सिटीज औफ वाशिंगटन के पौपुलेशन सैंटर फौर रिसर्च इन रिप्रौडक्शन के विशेषज्ञ डा. एंड्रियू कोवियेलो के शब्दों में, ‘‘पुरुष कौंट्रोसैप्टिव के लिए यदि टेस्टोस्टेरोन का प्रयोग किया जाता है तो 3 महीने के बाद तक इस का स्राव होता रहता है. यानी इस का प्रयोग 3 महीने बाद तक सुरक्षित माना जा सकता है. फलस्वरूप इस के माइक्रो कैप्सूल विकसित करने की कोशिश की जा रही है जिस में गाढ़े तरल पदार्थ के रूप में हार्मोन होगा और जिसे हथेली तथा बांह की त्वचा के नीचे इंप्लांट करने की सुविधा होगी.’’

आस्टे्रलिया के शोधकर्ताओं ने पुरुषों के लिए जैब नामक नौन बैरियर कौंट्रासैप्टिव मैथड के अंतर्गत इंजैक्शन के निर्माण में सफलता पा ली है. इसे प्रोजेस्टेरोन तथा टेस्टोस्टेरोन के मिश्रण से बनाया गया है और इसे 2 से 3 माह के अंतराल में लगाने की जरूरत होती है.

यह वीर्य का निर्माण नहीं होने देता और इस का प्रभाव स्थायी भी नहीं होता है. एनजेक रिसर्च इंस्टिट्यूट यूनिवर्सिटी औफ सिडनी तथा कोनकार्ड हौस्पिटल ने 18 से 51 वर्ष के लगभग 1756 पुरुषों के बीच इस का परीक्षण करने के बाद पाया कि यह इंजैक्शन काफी तेज और प्रभावी है.

इस परीक्षण में शामिल एसोसिएट प्रोफैसर पीटर लिउ के अनुसार, ‘‘आज इस की काफी जरूरत है क्योंकि कई महिलाएं पिल्स का सेवन करना नहीं चाहतीं या फिर इसे किसी कारणवश टौलरेट नहीं कर पातीं. उसी तरह कई पुरुष ऐसे होते हैं जो अपने बंध्याकरण को देर से कराना चाहते हैं या फिर कराना नहीं चाहते.’’

परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार जैब इंजैक्शन बंध्याकरण की तरह उतना ही इफैक्टिव है जितना महिलाओं के द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली पिल्स. इस के सेवन के बाद न तो सर्जरी और न ही दूसरी वजह से स्पर्म के निर्माण को पूरी तरह बंद करने की जरूरत होगी.

अभी मेल पिल्स मार्केट में आई भी नहीं, पर इस को ले कर तरहतरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल तब भी उठे थे जब फीमेल पिल्स पहली बार मार्केट में आई थी. तब यह बात उठी थी कि इस से मां के नैसर्गिक अधिकार का अतिक्रमण होगा. समाज में विकृतियां आएंगी. नैतिक, सामाजिक, वैचारिक मूल्यों में गिरावट आएगी. यौनशोषण को बढ़ावा मिलेगा. अब, लगभग 60 वर्षों के बाद जब मेल पिल्स मार्केट में आने वाली है तब भी कुछ इसी तरह के सवाल उठने लगे हैं. कहा जाने लगा है कि इस से सामाजिक तानाबाना छिन्नभिन्न हो जाएगा. पतिपत्नी और दांपत्य में दरार आएगी, तलाक में इजाफा होगा. सामाजिक कटुता और वैमनस्य बढ़ेंगे आदि.

दुनिया के मशहूर जर्नल फैमिली प्लानिंग ऐंड रिप्रौडक्टिव हैल्थकेयर में यूएसए के यूनिवर्सिटीज औफ सोशल फ्यूचर इंस्टिट्यूट के प्रो. जुडिथ इबरहार्डथ ने लगभग 140 पुरुषों और 240 महिलाओं के बीच बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि आम लोग इस के सेवन के प्रति कितना सहज, सतर्क तथा ईमानदार होंगे.

स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि मल्टी सैक्सुअल पार्टनर तथा लिव इन रिलेशनशिप पर विश्वास करने वाले पुरुषों के बीच यदि कंडोम का प्रयोग कम हुआ तो एड्स तथा गुप्त रोग फैलने की संभावना काफी बढ़ जाएगी.

एक बात और, ऐसी महिलाएं जो प्रैग्नैंसी के बाद पुरुष को जबरदस्ती शादी करने के लिए बाध्य करती हैं, वैसे पुरुषों के लिए यह पिल्स वरदान साबित हो सकती है. साथ ही वे पुरुष जो कंडोम का इस्तेमाल करते हैं, इस पिल्स को इस्तेमाल जरूर करेंगे.

निखारना चाहते हैं अपनी खूबसूरती तो ऐसे करें सेक्स

Sex News in Hindi: क्या सेक्स का सुंदरता से संबंध है? सुनने में भले ही अटपटा लगे पर है सोलह आने सच.आप अपनी खूबसूरती बढ़ाने व निखारने के लिए भले ही कई तरह के ब्यूटी प्रोड्क्ट्स व जिम में अपना पैसा बहाएं. मगर हम आप से यह कहें कि खूबसूरती बढ़ाने के लिए सेक्स सब से असरकारक है तो गलत नहीं होगा. दरअसल यह बात हम नहीं कह रहे हैं शोध से साबित हुआ है कि सेक्स करने से हारमोन निकलते हैं जिन से त्वचा को लाभ पहुंचता है, रक्त प्रवाह बढ़ता है, जिस से शरीर में निखार आता है, सुंदरता बढ़ती है, पर इसे असरकारक तब माना गया है जब सेक्स को कुदरती तरीके से किया गया हो.

सेक्स: जीवन की गहराई तक जुड़ा है

स्कौटलैंड के रौयल एडिनबर्ग हौस्पीटल के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा नुस्खा बताया है जो मानवीय जीवन का एक अहम हिस्सा है. शोधकर्ताओं ने इस बारे में कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं. वे हैं प्रेमपूर्वक सेक्स यानि सिर्फ पति पत्नी के साथ ही सेक्स करने से मनचाहा परिणाम मिलता है. क्योंकि अनसेफ सेक्स से न सिर्फ तमाम तरह की बीमारियों का खतरा रहता है बल्कि स्ट्रैस भी बढ़ता है. इस से मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है, नतीजतन एगिंग की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है.

बढ़ती उम्र घटाए खूबसूरती बढ़ाए

सेक्स कुदरती रूप से आनंद और उत्साह का संचार करता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कम अंतराल में सेक्स करने से (हफ्ते में कम से कम 3 बार) आदमी की उम्र उस की असली उम्र की तुलना में कम दिखती है, सैक्सुअल एक्टीविटी किसी एक्सरसाइज से कम नहीं है. इस से स्किन को यंग बनोन वोल और खुशी बढ़ाने वाले हार्मोन्स रिलीज होते हैं. इस से आप का चेहरा ग्लो करने लगता है और स्किन में कसाव आता है.

जानिए क्याक्या हैं फायदे

  • सेक्स इंसान की सेहत बनाए रखने में मदद करता है.
  • यह कैलोरी बर्न करने का काम करता है साथ ही दिल और दिमाग को सेहतमंद बनाए रखता है.
  • सेक्स कुदरती रूप से खूबसूरती में इजाफा करता है.
  • यह खूबसूरती बढ़ाने वाले प्रोडक्ट्स और स्टाइल के मुकाबले 20 (बीस) ही नजर आता है.
  • सेक्स कर के अपनी त्वचा की उम्र को 4 साल तक कम कर सकते हैं.
  • सेक्स एक कुदरती उपाय जो खूबसूरती बढ़ाए
  • सेक्स के यह कुदरती उपाय आप के चेहरे की शाइन बढ़ा सकते हैं.

खुशी का एहसास

सेक्स उन एक्टीविटीज में से है. जिस में दिमाग एकसाथ एक्साइट और रिलैक्स होता है. सेक्स के दौरान शरीर में औक्सीजन की मात्रा बढ़ती है और इस से कोशिकाओं को नई एनर्जी मिलती है. इस से आप का मूड बेहतर रहता है.

स्वस्थ बाल

सेक्स के दौरान ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है. इस से बालों को एक नेचुरल मौइश्चराइजर मिलता है. इस से आप के बाल चमकदार बनते हैं.

त्वचा को रखें कोमल और स्थिर

जो महिलाएं नियमित सेक्स करती हैं उन की त्वचा में अहम किरदार निभाने वाले हार्मोन एस्ट्रोजेन का स्राव अधिक होता है. इस के साथ ही त्वचा को कुदरती रूप से कोमल और स्थिर बनाने वाले हार्मोन कोलेजन का स्राव भी अधिक होता है.

झुर्रियों से बचाएं

भले ही आप सूरज की हानिकारक किरणों से दूर रहें लेकिन फिर भी आप को झुर्रियां हो सकती हैं. ये झुर्रियां आप के हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों को हो सकती हैं. इस से दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. दिल और चेहरे पर झुर्रियां पड़ने की प्रक्रिया समान है. सेक्स से आप के शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है जिस से चेहरे पर कुदरती चमक आ जाती है.

स्तनों का आकार बढ़ाएं

स्तनों को महिलाओं की खूबसूरती का अहम हिस्सा माना जाता है. सेक्स के दौरान स्तनों का आकार 25 फीसदी तक बढ़ जाता है इसलिए जानकार मानते हैं कि जो महिलाएं अपनी सेक्स लाइफ से अधिक संतुष्ट होती हैं उन का शरीर अधिक सुडौल होता है.

पेट की चर्बी हटाएं

शरीर में अगर कौलेस्ट्रौल का स्तर अधिक हो जाए, तो इस का सीधा असर हमारे पेट पर पड़ता है. यहां अतिरिक्त वसा इकट्ठा होने लगती है. औक्सीटोसिन इस से निजात दिलाता है यानि और्गेज्म से आप के शरीर पर जमा अतिरिक्त चर्बी दूर होती है.

तनाव दूर करें

तनाव से आप के चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं. और्गेज्म के दौरान शरीर में बड़ी मात्रा में औक्सीटोसिन का स्राव होता है. यह तनाव के काफी उत्तरदायी माने जाने वाले कौरटिसोल हार्मोन को दूर करता है.

आत्मविश्वास में करें इजाफा

जिन लोगों को अपने जीवन का लक्ष्य पता होता है, वे अधिक आकर्षक होते हैं सेक्स और व्यायाम मस्तिष्क के समान क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हैं आप अपने आसपास की दुनिया के बारे में अच्छा महसूस करते. आप मानसिक रूप से अधिक शांति एकाग्र, शक्तीमान और सामर्थ्यवान महसूस करते.

इन उपायों को अपना कर अपनी सेक्स लाइफ को बेहतर बनाने की कोशिश कीजिए इस से सेहतमंद तो होगी ही साथ ही खूबसूरती भी निखर जाएगी.

अगर आप भी करते हैं सेक्स करना अवौएड, तो सकते हैं ये नुकसान

हमारे देश में सेक्स को ले कर इतनी हायतोबा मचाई जाती है मानो इस की बात करने पर प्रतिबंध हो. पोंगापंथी और धर्म के ठेकेदार सेक्स को गंदा काम बताते फिरते हैं. यह अलग बात है कि कई मुल्लामौलवी, बाबा और पादरी सैक्सुअल हैरासमैंट और रेप के मामलों में पकड़े जा चुके हैं.

सच यह है कि सेक्स एक शारीरिक जरूरत है, जो बेहद स्वाभाविक और प्राकृतिक है. लेकिन धर्म के ठेकेदारों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों और नकली बाबाओं द्वारा दिए गए उलटेसीधे प्रवचनों से प्रभावित हो कर भारतीय महिलाएं सेक्स को एक अधार्मिक क्रिया समझने लगती हैं और खुलेमन से इस का आनंद उठाने के बजाय इस से कतराने लगती हैं.

पति के लाख मनाने और समझाने के बावजूद वे उस का साथ देने और सेक्स का आनंद उठाने के लिए तैयार नहीं होतीं. कभी व्रतत्योहार का बहाना बना कर, तो कभी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर ये महिलाएं ‘अपवित्र’ होने से बचती रहती हैं. लेकिन चिकित्सक, मनोविज्ञानी, व्यवहार विशेषज्ञ और समाजशास्त्री इस प्रवृत्ति को तन और मन की सेहत के लिए नुकसानदायक मानते हैं.

पीरियड्स में बढ़ सकता है दर्द : आमतौर पर महिलाओं के मैन्सट्रुअल साइकिल के दौरान पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है. लेकिन जो महिलाएं सैक्सुअल लाइफ को एंजौय नहीं करतीं उन में यह दर्द ज्यादा हो सकता है.

सेक्स ऐक्सपर्ट डा. लारेज स्ट्रीचर का कहना है कि पीरियड्स के दौरान सेक्स करने से मैन्स्ट्रुअल क्रैंप में काफी कमी आ सकती है. यूट्रस एक मांसपेशी है जिस में सेक्स और्गेज्म के दौरान सिकुड़न होती है. इस से रक्तस्राव बेहद आसानी से हो जाता है और स्राव के समय होने वाले दर्द से महिलाओं को काफी हद तक छुटकारा मिल सकता है. इस के साथ ही, यौन आनंद से एंडौर्फिन का स्राव होता है जो दर्द को कम करने में सहायक होता है.

वैजाइना की दीवार हो सकती है कमजोर : सेक्स थेरैपिस्ट सारी कूपर बताती हैं, ‘‘खुद को सेक्स से वंचित रखने वाली महिलाओं में वैजाइना की वाल धीरेधीरे कमजोर यानी पतली होने लगती है. विशेषरूप से मीनोपौज की उम्र में पहुंच चुकी महिलाएं जब सेक्स से दूरी बढ़ाती हैं तो उन में यह समस्या अधिक होती है.’’

वे कहती हैं, ‘‘नियमित सेक्स करते रहने से वैजाइना की वाल लचीली रहती है और ज्यादा दर्द महसूस नहीं होता जबकि कभीकभी सेक्स करने में यह दर्द काफी ज्यादा महसूस हो सकता है. नौर्थ अमेरिकन मीनोपौज सोसायटी ने भी मीनोपौज के दौर से गुजरने वाली महिलाओं को नियमित पैनेट्रेटिव सेक्स करने की सलाह दी है.

बढ़ सकता है स्ट्रैस : जगजाहिर है कि सेक्स से तन और मन में आनंद की अनुभूति होती है. इस से दिमाग में खुशी के हार्मोन एंडौर्फिन व औक्सीटोसीन उत्सर्जित होते हैं. स्कौटलैंड के शोधकर्ताओं ने पाया है कि  सेक्स से दूर रहने वाले लोेग पब्लिक स्पीकिंग या ऐसी दूसरी स्टै्रसफुल सिचुएशन को आसानी से हैंडल नहीं कर पाते, जबकि महीने में कम से कम 2 बार सेक्स करने वाले लोग इस में आसानी महसूस करते हैं. नियमित सेक्स करने की आदत को हैल्थ ऐक्सपर्ट स्ट्रैस बस्टर मानते हैं, सेक्स न करने वाले लोगों का ब्लडप्रैशर स्ट्रैस की सिचुएशन में काफी बढ़ जाता है.

पुरुषों में बढ़ सकती है प्रोस्टैट कैंसर की संभावना : हैल्थ ऐक्सपर्ट का मानना है कि जो पुरुष नियमित रूप से सेक्स नहीं करते उन में प्रोस्टैट कैंसर की संभावना बढ़ सकती है. सेक्स करने से प्रोस्टैट को सुरक्षा देने वाले कैमिकल्स रिलीज होते हैं. अमेरिकन यूरोलौजिकल एसोसिएशन द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि नियमित रूप से यौनसंबंध बनाने वाले पुरुषों में प्रोस्टैट कैंसर होने की संभावना 20 फीसदी तक कम हो जाती है क्योंकि समयसमय पर वीर्य स्खलन होने से प्रोस्टैट में मौजूद हानिकारक तत्त्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं.

संबंधों के प्रति आ सकता है असुरक्षा का भाव : जिन पतिपत्नी में सैक्सुअल संबंध लगभग खत्म हो जाते हैं उन में आपसी नजदीकी, माधुर्य और अपनापन भी कम होने लगता है. साथ ही, पति और पत्नी के मन में एकदूसरे के प्रति अविश्वास की भावना भी आ सकती है जिस से रिलेशनशिप में इनसिक्योरिटी का भाव आता है.

‘सेविंग योर मैरिज बिफोर इट स्टार्ट्स’ की लेखिका एवं मनोविज्ञानी लेस पैरोट कहती हैं, ‘‘सेक्स न करने से शरीर में औक्सीटोसिन व दूसरे बौंडिंग हार्मोन का लैवल कम होने लगता है. पति और पत्नी के मन में अपराधबोध की भावना आती है, सैल्फ एस्टीम में कमी आती है. साथ ही, मन में हमेशा संदेह रहता है कि कहीं आप अपनी सेक्स की जरूरत के लिए किसी दूसरे के संपर्क में तो नहीं. हालांकि, इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि बिना सेक्स के पतिपत्नी खुश रह ही नहीं सकते. उन्हें आपस में चुंबन लेना, हाथ पकड़ना, एकदूसरे को सहलाना आदि जारी रखने चाहिए.

बढ़ता है सर्दीजुकाम का खतरा : पैनसिलवानिया की विलकेस बौरे यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने अपने शोध में पाया कि जो लोग हफ्ते में एक या दो बार सेक्स करते हैं, उन में एंटीबौडीज का उत्पादन 30 फीसदी तक बढ़ जाता है. ये एंटीबौडीज तरहतरह के वायरस आदि के खिलाफ लड़ने में हमारे शरीर के डिफैंस सिस्टम की मदद करते हैं. सेक्स को इम्यूनिटी सिस्टम इंप्रूव करने वाला भी माना गया है.

यौनेच्छा में कमी आने लगती है : जब आप सेक्स से कतराने लगते हैं या इस की आदत धीरेधीरे छूटती जाती है तो आप की यौनेच्छा खुदबखुद कम होने लगती है. सेक्स थेरैपिस्ट सारी कूपर कहती हैं, ‘‘एक वक्त ऐसा आता है जब आप सेक्स करना चाह कर भी सेक्स नहीं कर पाते. सेक्स शारीरिक प्रक्रिया से ज्यादा एक मानसिक प्रक्रिया है. आदत छूटने या नियमित इस का उपभोग न करने पर आप का मन सेक्स के लिए तैयार नहीं हो पाता. जब तक मन तैयार नहीं होता, तो तन का साथ देने का सवाल ही नही.

पुरुषों में इरैक्टाइल डिसफंक्शन : उपरोक्त कारण की वजह से पुरुषों में यौनांग सेक्स के लिए तैयार नहीं हो पाता, यानी यौनांग में कठोरता नहीं आ पाती जिसे हैल्थ ऐक्सपर्ट इरैक्टाइल डिसफंक्शन कहते हैं.

अमेरिकी मैडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पुरुषों का यौनांग एक मांसपेशी है. जैसे हमारे शरीर की अन्य मांसपेशियों को नियमित ऐक्सरसाइज की जरूरत है, ठीक उसी तरह इस का भी नियमित इस्तेमाल जरूरी है, वरना इस में शिथिलता आने लगती है. कुछ वैज्ञानिकों ने सरल भाषा में इसे ‘यूज इट आर लूज इट’ कह कर समझाया है.

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