सैक्स पर चर्चा : नीतीश कुमार के बयान पर ओछी राजनीति

Political News in Hindi: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) आज उम्र की जिस दहलीज पर हैं, उन के द्वारा औरतों के सिलसिले में सैक्स को ले कर जिस तरह का बयान बिहार विधानसभा में आया और फिर थोड़े ही समय में नीतीश कुमार ने जिस अदबी के साथ माफी मांगी तो फिर नैतिकता का तकाजा यह है कि मामला खत्म हो जाता है. मगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narender Modi) ने जैसे नीतीश कुमार के बयान को लपक लिया और बांहें खींच रहे हैं, वह यह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी और उस का नेतृत्व आज कैसी राजनीति कर रहा है और देश को गड्ढे की ओर ले जाने में रोल निभा रहा है.

आप कल्पना कीजिए कि देश में अगर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री होते तो क्या इस मामले को नरेंद्र मोदी की तरह तूल देते? आज देश में अगर पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री होते या फिर डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री होते, तो क्या इस तरह मामले को तूल दिया जाता? शायद कभी नहीं.

दरअसल, नरेंद्र मोदी की यह फितरत है कि वे अपने लोगों को तो हर अपराध के लिए माफ कर देते हैं, मगर गैरों को माफ नहीं करते. उन के पास बरताव करने के दूसरे तरीके हैं, जो कम से कम प्रधानमंत्री पद पर होते हुए उन्हें शोभा नहीं देता.

देश का आम आदमी भी जानता है कि किसी भी विधानसभा में दिया गया बयान रिकौर्ड से हटाया भी जाता है और उस पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती. मगर भाजपा जिस तरह नीतीश कुमार पर हमलावर है, वह बताता है कि उसे न तो संविधान से सरोकार है और न ही किसी नैतिकता से. किसी की छवि को खराब करना और किसी भी तरह सत्ता हासिल

करना ही आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा का मकसद बन कर रह गया है.

शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार, 8 नवंबर, 2023 को बिहार विधानसभा में महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी को ले कर बिना नाम लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना की और कहा, ‘‘महिलाओं का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए वह जो भी कर सकेंगे, करेंगे. महिलाओं का इतना अपमान होने के बावजूद विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’

के घटक दलों ने एक शब्द भी नहीं बोला है.’’

नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम लिए बगैर कहा, ‘‘कल ‘इंडिया’ गठबंधन के बड़े नेताओं में से एक, जो ब्लौक का झंडा ऊंचा रख रहे हैं और वर्तमान सरकार (केंद्र में) को हटाने के लिए तरहतरह के खेल खेल रहे हैं, उन्होंने माताओंबहनों की उपस्थिति में राज्य विधानसभा में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया, जिस के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता… उन्हें इस के लिए शर्म तक महसूस नहीं हुई. ऐसी दृष्टि रखने वाले आप का मानसम्मान कैसे रखेंगे? वे कितना नीचे गिरेंगे? देश के लिए कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.’’

जबकि यह कानून है कि विधानसभा में दिए गए बयान पर कोई कानूनी संज्ञान नहीं दिया जा सकता, इस के बावजूद भाजपा नेतृत्व में वह सब किया जा रहा है जो कानून के खिलाफ है. इस का सब से बड़ा उदाहरण है महिला आयोग द्वारा नीतीश कुमार के वक्तव्य पर संज्ञान लिया जाना.

राष्ट्रीय महिला आयोग ने बिहार विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को पत्र लिख कर यह आग्रह किया कि वे सदन के भीतर की गई अपमानजनक टिप्पणी के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करें.

पत्र में आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि हम जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा ऐसे बयानों की कड़ी निंदा करती हैं.

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब यह कहते हैं कि महिलाओं के सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करूंगा, तो हंसी आती है, क्योंकि देश ने देखा है कि किस तरह देश की बेटियों ने जंतरमंतर पर भाजपा के एक सांसद और महत्त्वपूर्ण पदाधिकारी के खिलाफ अनशन किया था, मगर आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाया है.

अगर सेक्स के दौरान होता है दर्द तो हो सकता है ये कारण

यदि आपने कभी संभोग के दौरान दर्द महसूस किया है तो घबराइए मत क्यूंकि आप अकेली नहीं हैं. डौक्टरों ने इस समस्या को ‘डिस्पेर्यूनिया’ का नाम दिया है और उनके अनुसार यह दो श्रेणियों में विभाजित है: एक में योनि में असहाय दर्द महसूस होता है, और दूसरी में योनि की ऊपरी सतह में पीड़ा का एहसास होता है. डौक्टरों का यह भी कहना है कि ऐसा होना बेहद आम है.

लेकिन कितना आम? और यह होता क्यों है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने देश भर में से 6500 से अधिक महिलाओं से बात की. शोधकर्ताओं ने महिलाओं से पूछा कि क्या पिछले साल सेक्स की वजह से उन्हें तीन या अधिक महीनों के लिए दर्द महसूस हुआ था और अगर हुआ था तो वो कितना बुरा था. महिलाओं को सेक्स सम्बंधित और मुद्दों के बारे में भी प्रश्न पूछे गए जैसे कि, क्या उन्हें उत्तेजित होने में कठिनाई होती है या सेक्स को लेकर किसी भी प्रकार की बेचैनी महसूस होती है.

शोधकर्ताओं ने जाना कि साढ़े सात प्रतिशत ब्रिटिश महिलाओं को सेक्स के दौरान दर्द का अनुभव हुआ था. सिर्फ दो प्रतिशत महिलायें ऐसी थी जिनके लिए दर्दनाक सेक्स एक गंभीर समस्या था: उन्हें कई महीनों तक दर्द रहता था, हर बार सेक्स के समय दर्द होता था और उसकी वजह से वे बेहद तनावग्रस्त भी रहती थी.

शोध से पता चला कि सेक्स के दौरान दर्द महसूस करना 16 से 24 वर्ष और 55 से 64 वर्ष की उम्र के बीच की महिलाओं में ज्यादा आम है. शोधकर्ताओं ने यह भी जाना कि डिस्पेर्यूनिया से पीड़ित महिलाएं चाहती थी कि काश उन्हें इस समस्या के बारे में तब और पता होता जब उन्होंने अपना कौमार्य खोया था. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह महत्त्वपूर्ण है कि यौन शिक्षक और स्वास्थ्य सलाहकार सेक्स के दौरान दर्द होने की संभावना के बारे में खुले तौर पर बात करें.

सेक्स के दौरान तालमेल

अध्ययन में बताया गया है कि सेक्स के दौरान पीड़ा भी उन बाकी समस्याओं की तरह ही है जो एक महिला को अपने साथी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने से हो सकती है. इसमें शायद कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वही महिलाएं ज्यादा दर्द महसूस करती हैं जो सेक्स को लेकर ज्यादा घबराई हुई रहती हैं और जिन्हें यही चिंता सताती रहती है कहीं उत्तेजना जरुरत से ज्यादा ना बढ़ जाए. वो ना तो यौन क्रिया का पूरी तरह आनंद उठा पाती हैं (क्यूंकि तनाव की वजह से उनकी योनि में नमी उत्पन्न नहीं हो पाती और वो सूखी रहती है) और ना ही अपने साथी की जरूरतों (सेक्स के दौरान) के प्रति जागरूक रह पाती हैं.

अगर सेक्स के मामले में आप अपने और अपने साथी के बीच तालमेल में कमी महसूस कर रही हैं जैसे कितना सेक्स करना है, या सेक्स के दौरान आप दोनों को क्या पसंद है और क्या नहीं या इस बारे में बात करने में झिझक महसूस करती हैं – इन सभी की वजह सेक्स के दौरान आपका दर्द महसूस करना हो सकता है.

अध्ययन ने यह भी दर्शाया कि कुछ स्वास्थ्य समस्याएं किसी महिला के यौन जीवन से संबंधित नहीं होती हैं, कम से कम एक स्पष्ट तरीके से तो नहीं. यह भी सेक्स के दौरान दर्द के अनुभव की वजह से हो सकती हैं. उदाहरण के लिए, कोई एक से अधिक पुरानी बीमारी होना या कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या जैसे निराशा (डिप्रेशन), के तार भी डिस्पेर्यूनिया से जुड़े हो सकते हैं.

फोरप्ले

यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि शोधकर्ता यह सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं कि इसका असली कारण क्या है. हालांकि उन्हें पता है कि यह अक्सर स्वास्थ्य संबंधी या एक रिश्ते में सेक्स सम्बंधित समस्याओं की वजह से ही होता है लेकिन किसकी वजह से क्या होता है, इस निष्कर्ष पर वो अभी तक नहीं पहुंच पाए हैं.

क्योंकि यह अभी भी एक रहस्य ही है और दर्दपूर्ण सेक्स के कई संभावित कारण हो सकते हैं, इसीलिए इस समस्या का कोई एक समाधान नहीं है. लेकिन फोरप्ले इसमें जरूर मदद कर सकता है. और सिर्फ फोरप्ले नहीं, खूब सारा फोरप्ले! जब एक महिला उत्तेजित होती है तो उसकी श्रोणी की मांसपेशियों को आराम पहुंचता है और योनि भी अच्छी तरह से चिकनाई युक्त हो जाती है. महिलाओं के लिए दर्द-मुक्त, और सुखद सेक्स की ओर यह पहला कदम है. तो धीमा और लंबा फोरप्ले इस दर्द से मुक्ति पाने का पहला उपचार है.

रकुल प्रीत ने सेक्स एजुकेशन पर कहीं ये बात, निभा चुकी है कंडोम टेस्टर का रोल

समाज में आजकल सेक्स एजुकेशन को लेकर बातें तेज हो रही है ये मुद्दा धीरे-धीरे सभी के बीच लोकप्रिय होता जा रहा है. हाल ही में कई ऐसी फिल्में भी आई जिनमें सेक्स एजुकेशन को लेकर बातें हुई है. जैसे की ओएमजी2, छतरीवाली, डॉक्टर जी, जनहित में जारी, हेलमैट ऐसी कई फिल्में है जिनमें सेक्स एजुकेशन का मुद्दा उठाया गया है अब हाल ही में बॉलीवुड एक्ट्रेस रकुल प्रीत ने इस पर अपनी राय साझा की है.

 

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आपको बता दें, कि हाल ही में रकुल प्रीत से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि बीते कुछ समय में आई ओएमजी 2, डॉक्टर जी (Doctor G) और छतरीवाली जैसी फिल्मों में सेक्स एजुकेशन पर जो बातें हुई हैं, उनके बारे में आपकी क्या राय हैॽ इस पर रकुल प्रीत सिंह ने कहा कि मेरा मानना है कि फिल्में बड़ी संख्या में लोगों को सिखा सकती हैं. हमारे समाज में हर कुछ किलोमीटर पर लोगों के सोचने का ढंग बदला हुआ मिलता है. दुनिया को लेकर सबका एक्सपोजर अलग-अलग है. ऐसे में सेक्स एजुकेशन हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है. रकुल ने कहा कि मेरा मानना है कि लोगों को अच्छी बातें सिखाने के लिए फिल्में बहुत काम आ सकती हैं. ओएमजी 2 ने यही किया है. अपनी फिल्म का जिक्र करते हुए रकुल प्रीत सिंह ने कहा कि हमने फिल्म छतरीवाली में भी यौन शिक्षा का जिक्र किया था.

 

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बताते चले कि छतरवाली में रकुल प्रीत सिंह ने एक कंडोम कंपनी कंडोम टेस्टर (Condom Tester) की भूमिका निभाई थी. एक्ट्रेस ने वह कारण भी गिनाए हैं, जिनकी वजह से इस मुद्दे पर बात करना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि देश में बलात्कार बढ़ रहे हैं. हमने चंद्रमा पर कदम रख दिए हैं, लेकिन हम ऐसी सभ्यता में रह रहे जहां बच्चों, किशोरियों, महिलाओं और यहां तक कि बूढ़ी महिलाओं का भी बलात्कार (Rape) होता है. शिक्षा ही लोगों को जागरूक करने का सबसे अच्छा तरीका है. उन्होंने कहा कि लोगों को बताने की जरूरी है कि स्त्री और पुरुष के शरीर अलग-अलग हैं. रकुल प्रीत सिंह ने कहा कि मेरा मानना है कि जितना अधिक हम इस बारे में बातचीत को सामान्य बनाएंगे, लोग सेक्स के मुद्दे पर उतने ही सहज हो पाएंगे.

युवाओं के लिए बेहद जरूरी है सेक्स एजुकेशन

आज जिस तेजी से युवाओं की सोच बदल रही है, उन में जो खुलापन आया है वह मानसिक विकास के लिए तो जरूरी है, लेकिन खुलापन शारीरिक स्तर तक बढ़ जाए, यह गलत है. गलत इसलिए है क्योंकि हर कार्य को करने का समय होता है. किसी काम को समय से पहले ही अंजाम दिया जाए, तो उस का परिणाम भी गलत ही होता है. आज युवाओं में सेक्स के प्रति बढ़ती रुचि का ही नतीजा है कि युवतियां प्रैग्नैंट हो जाती हैं और अपनी जान तक गंवा देती हैं.

किशोरों के शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ विकास के लिए सब से जरूरी है, उन्हें सेक्स से संबंधित हर तरह की जानकारी से अवगत कराया जाए. खासकर पेरैंट्स को अपने जवान होते बच्चों को सेक्स से संबंधित जानकारी देने में जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए, लेकिन अपने देश में बहुत कम ऐसे पेरैंट्स होते होंगे, जो अपने बच्चों को इस बारे में जागरूक और सचेत करने की पहल करते हों. यही कारण है कि हमारे देश में अधिकतर बच्चे सेक्स ऐजुकेशन से संबंधित जानकारी दोस्तों, किताबों, पत्रिकाओं, पौर्नोग्राफिक वैबसाइट्स और अन्य कई साधनों के जरिए चोरीछिपे हासिल करते हैं. उन्हें यह नहीं मालूम कि सेक्स से संबंधित ऐसी अधकचरी जानकारी मिलने से नुकसान भी होता है.

दरअसल, किशोर या युवा इन स्रोतों के जरिए सेक्स के प्रति अपने मन में गलत धारणाएं विकसित कर लेते हैं. उन्हें लगता है कि सेक्स मात्र ऐंजौय करने की चीज है, जिस से उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा.

एशिया के तमाम देशों जैसे भारत में सेक्स ऐजुकेशन को पाठ्यक्रम में शामिल करने के सफल प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह आज भी एक बहस का मुद्दा बना हुआ है. यदि ऐसा संभव हुआ तो सेक्स ऐजुकेशन के जरिए बच्चों को इस की पूरी जानकारी दी जा सकेगी, जिस से किशोरों का विकास सही रूप में हो सकेगा.

1. सेक्स ऐजुकेशन क्यों जरूरी

सेक्स के प्रति युवाओं की अधूरी जानकारी न केवल सेक्स के प्रति धारणाओं को बदल रही है बल्कि इन पर शारीरिक और मानसिक रूप से नकारात्मक असर को भी उन्हें झेलना पड़ता है.

साइकोलौजिस्ट अरुणा ब्रूटा कहती हैं, ‘‘सेक्स ऐजुकेशन किशोरों को सब से पहले घर से ही मिलनी चाहिए, लेकिन पेरैंट्स आज भी इस विषय पर बात करना पसंद नहीं करते. उन्हें इस बारे में बात करने पर शर्म महसूस होती है, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि युवाओं को सेक्स की पूरी जानकारी न होने से उन का भविष्य खराब भी हो सकता है.

‘‘आज बच्चे लैपटौप, टैलीफोन, कंप्यूटर आदि पर निर्भर हो गए हैं और इस का कहीं न कहीं वे गलत इस्तेमाल भी कर रहे हैं. मुझे याद है कि एक बार मेरे पास एक 8वीं कक्षा में पढ़ने वाले लड़के का केस आया था. वह लड़का प्रौस्टीट्यूट एरिया में पकड़ा गया था.

‘‘जब मैं ने उस से पूछताछ की कि तुम वहां कैसे पहुंचे, तो उस का कहना था कि वह 11वीं क्लास के एक छात्र के कहने पर वहां चला गया था. उस बच्चे का कहना था कि वह औरत का शरीर देखना चाहता था. इस तरह की जिज्ञासा किशोर में तभी संभव है, जब वह दोस्तों की गलत संगत में रह कर चोरीछिपे उन की बातें सुनता है.

‘‘यदि किशोर ऐसा करता है, तो युवा होतेहोते सेक्स के प्रति उस का ऐटीट्यूड वल्गर होता चला जाएगा. हालांकि सेक्स कोई वल्गर चीज नहीं है. यह एक नैचुरल प्रोसैस है, जो स्त्रीपुरुष के जीवन का एक अहम हिस्सा है.

‘‘यह सिर्फ मीडिया का ही नतीजा है कि बच्चे सेक्स को गलत रूप में लेते हैं. ऐसे में पेरैंट्स को चाहिए कि वे युवा होते बच्चों को सही और पूरी जानकारी दें. किशोरों को भी ऐसी वर्कशौप अटैंड करनी चाहिए, जिस में 10-15 किशोरों का समूह हो और जहां खुल कर सेक्स से संबंधित मुद्दों पर चर्चा होती हो. इस से बच्चे भी शांत माहौल में सब कुछ समझ सकेंगे.’’

‘‘किशोरावस्था के दौरान खासकर यौनांगों का विकास होता है और साथ ही शरीर में हारमोनल बदलाव भी होते हैं, जो किशोरों को यह जानने के लिए उत्तेजित करते हैं कि वे इन बदलावों को ऐक्सप्लोर कर सकें. जो उन्होंने मीडिया के जरिए ऐक्सपीरियंस किया है, उसे वे सही में ट्राई कर बैठते हैं. ऐसे किशोरों के बीच ‘सैक्सुअल ऐरेना’ हौट टौपिक होता है. सही जानकारी न होने से इस से किशोरों को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचता है.’’

2. पेरैंट्स की भूमिका

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सेक्स ऐजुकेशन उन सभी बच्चों को देनी चाहिए, जो 12 वर्ष और इस से ऊपर के हैं. खासकर जिस तरह से देश में टीनएज प्रैग्नैंसी और एचआईवी के मामले सामने आ रहे हैं, ऐसे में यह काफी गंभीर विषय बनता जा रहा है.

लगातार स्कूलों या आसपास के इलाकों में बलात्कार, यौन शोषण, स्कूली छात्रछात्राओं को डराधमका कर उन के साथ जबरदस्ती करना, उन्हें अश्लील वीडियो, पिक्चर्स देखने पर मजबूर किया जाता है. इसलिए पेरैंट्स की भूमिका काफी बढ़ जाती है कि वे अपनी युवा होती बेटी को उस के शरीर के बदलावों के बारे में समय रहते ही जानकारी दें ताकि वह खुद को सुरक्षित रख सके, अच्छेबुरे लोगों की पहचान कर सके, सेक्स और प्यार में फर्क समझ सके.

यह बताना भी जरूरी है कि सेक्स जैसे विषय पर शर्म नहीं बल्कि खुल कर बात करें. इस तरह की शर्म और भय को अपने मन से निकाल दें कि कहीं आप का युवा होता बच्चा असमय ही इस ज्ञान का अनुचित लाभ न उठा ले.

ऐसी स्थिति को पैदा ही न होने दें कि जब उस की शादी हो तो उसे अपने हसबैंड के पास जाने में घबराहट हो. मां की सही भूमिका निभाते हुए आप बेटेबेटियों को शरीर से संबंधित ज्ञान, विकास, काम से संबंधित थोड़ीबहुत जानकारी, प्रैग्नैंसी, कौंट्रासैप्टिव पिल्स, ऐबौर्शन आदि के नकारात्मक असर के बारे में जरूर बता दें. इस से वे जिंदगी में कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं. वह अपनी शारीरिक सुरक्षा और जीवन के सभी सुखों को प्राप्त कर सकते हैं.

3. स्कूलों में शामिल हो सेक्स ऐजुकेशन

कई अध्ययनों से पता चला है कि प्रभावकारी ढंग से जब किशोरों को सेक्स ऐजुकेशन के बारे में जानकारी दी गई, तो उन्होंने सही उम्र में ही सेक्स का आनंद लेना ठीक समझा. हालांकि देश में आज भी स्कूलों में सेक्स ऐजुकेशन को पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है. आज भी हमारी शिक्षा प्रणाली स्कूलों में सेक्स ऐजुकेशन से संबंधित वर्कशौप और प्रोग्राम्स आयोजित करने में असहमति दिखाती है. इस की मुख्य वजह पेरैंट्स, समाज के कुछ रूढि़वादी तत्त्वों और स्कूल के शिक्षकों का मानना है कि सेक्स ऐजुकेशन से किशोर लड़केलड़कियां और भी ज्यादा आजाद खयालों के हो जाएंगे, जिस से वे सैक्सुअल इंटरकोर्स में ज्यादा फ्री हो कर लिप्त होंगे.

4. सेक्स ऐजुकेशन का फायदा

द्य इस से टीनएज प्रैग्नैंसी में बहुत हद तक कमी आएगी. युवतियां हैल्थ, शिक्षा, भविष्य यहां तक कि गर्भ में पलने वाले भू्रण पर होने वाले अप्रत्यक्ष परिणामों से भी बच सकती हैं. उन में सेक्स के प्रति जागरूकता आएगी.

समय पर सेक्स ऐजुकेशन की जानकारी होने से आगे चल कर बहुत हद तक तनाव से बचा जा सकता है.

यहां तक कि यदि कोई किशोर सैक्सुअल इंटरकोर्स में शामिल होता है, तो भी कौंट्रासैप्टिव मैथड्स जैसे कंडोम का इस्तेमाल, कौंट्रासैप्टिव पिल्स की जानकारी होने पर सैक्सुअल ट्रांसमिटेड डिसीज और टीनएज प्रैग्नैंसी से बचा जा सकता है.

सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज जैसे गौनोरिया, पैल्विक इंफ्लैमैटरी डिसीज और सिफिलिस से बचाव होता है.

युवाओं और किशोरों में सेक्स ऐजुकेशन की जानकारी इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि उन्हें गर्भनिरोधक और मौर्निंग पिल्स, कंडोम और ऐबौर्शन के बारे में जानकारी मिल सकती है.

सहमति से बने संबंधों में आखिर बंदिशें क्यों

व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं में पत्नियों की किसी से प्रेम करने व यौन संबंध बनाने की स्वतंत्रता है या नहीं, यह अच्छी रोचक बहस का मामला है. भारतीय दंड विधान स्पष्ट कहता है कि किसी की पत्नी के साथ संबंध बनाने पर पुरुष को दंड दिया जा सकता है पर पत्नी किसी पर पुरुष से संबंध बनाए तो उसे दंड नहीं दिया जा सकता. ऐसे मामले में पति पत्नी को तलाक अवश्य दे सकता है. नौसेना ने ब्रिगेडियर रैंक के एक अफसर को इसलिए निकाला है क्योंकि उस ने अपने एक सहयोगी की पत्नी के साथ अपनी पत्नी की इच्छा के बिना संबंध बना लिए थे. पतिपत्नी के बीच क्या हुआ यह तो नहीं मालूम पर इस संबंध को अपराध या दुर्व्यवहार की संज्ञा देना गलत होगा. कहा यही जाता है कि विवाह के बाद पतिपत्नी को एकदूसरे के प्रति निष्ठा रखनी चाहिए और किसी तीसरे की ओर नजर नहीं डालनी चाहिए. पर यह सलाह है, कानूनी निर्देश नहीं. अगर दोनों में से कोई इस वादे को तोड़ता है तो उसे विवाह तोड़ने का हक कानून में है और उस का इस्तेमाल किया जा सकता है पर इस के लिए तीनों में से किसी को भी दंडित करना गलत होगा.

विवाह से पतिपत्नी को एकदूसरे पर बहुत से अधिकार मिलते हैं पर ये अधिकार आपसी समझौते और समझदारी के हैं. समाज का काम इन पर पहरेदारी करना नहीं है.

समाज ने इस बारे में सदा एकतरफा व्यवहार किया है. सदियों से औरतों को कुलटा कहकह कर इसलिए बदनाम और घर से बेदखल किया जाता है, क्योंकि उन को पति की संपत्ति का सा हक दे दिया गया है.

भारतीय दंड कानून के अंतर्गत कभी भी पति उस बिग्रेडियर के खिलाफ फौजदारी का मुकदमा कर सकता है और उसे जेल भेजवा सकता है जबकि उस ब्रिगेडियर ने सहमति व प्यार में दूसरे की पत्नी से संबंध बनाए थे.

कुछ लोगों को यह बात भले ही अनैतिकता फैलाने वाली लगे पर सच यह है कि इस कोरी नैतिकता के दंभ के कारण पौराणिक गाथाओं की सीता और अहिल्या ने दुख भोगे और द्रौपदी ने बारबार अपमान सहा. राजा दशरथ की 3 पत्नियों को तो सहज लिया जाता है पर औरतों पर बंदिशें लगाई जाती हैं.

विवाहिता अपने शरीर व दिल के सारे अधिकार पुरुष को सौंप दे और बदले में सिर्फ घर की छत, रोटी, कपड़ा और शायद डांट, मार, तनाव पाए यह गलत है. अगर पति की बेरुखी के कारण पत्नी को कोई और आकर्षित करे तो समाज, कानून और ऐंपलायर को हक नहीं कि वे नैतिकता के ठेकेदार बन जाएं.

पतिपत्नी का प्यार दोनों की आपसी लेनदेन पर निर्भर है. जैसे प्रेम करते हुए युवक को एक लड़की के अलावा कोई और नहीं दिखता, उसी तरह लड़की को भी प्रेमी के अलावा सब तुच्छ लगते हैं. इसी तरह का व्यवहार पतिपत्नी में अपनेआप होना चाहिए. वह थोपा हुआ न हो.

पत्नियां ही अपना मन मारें, किसी के प्रति चाहत पर अपराधभाव महसूस करें, यदि किसी से हंसबोल लें तो मार खाएं जबकि पति पूरी तरह छुट्टा घूमे यह न्याय कैसे है, नैतिक कैसे है?

गलती असल में धर्मों की है जिन्होंने औरतों पर तरहतरह की बंदिशें लगाईं. विडंबना यह है कि औरतें ही सब से ज्यादा अपना मन, धन और यहां तक कि तन भी धर्म के नाम पर निछावर करती हैं. उस धर्म पर जो औरतों के लिए अन्यायी है, अत्याचारी है, अनाचारी है, असहनशील है.

9 टिप्स: सैक्स लाइफ को ऐसे बनाएं बेहतर

ऐसा अकसर देखने में आता है कि पतिपत्नी सहवास के दौरान एकदूसरे की इच्छा और भावना को नहीं समझते. वे बस एक खानापूर्ति करते हैं. लेकिन वे यह बात भूल जाते हैं कि खानापूर्ति से सैक्सुअल लाइफ तो प्रभावित होती ही है, पतिपत्नी के संबंधों की गरमाहट भी धीरेधीरे कम होती जाती है. ऐसा न हो इस के लिए प्यार और भावनाओं को नजरअंदाज न करें. अपने दांपत्य जीवन में गरमाहट को बनाए रखने के लिए आगे बताए जा रहे टिप्स को जरूर आजमाएं.

पत्नी की इच्छाओं को समझें

सागरपुर में रहने वाली शीला की अकसर पति के साथ कहासुनी हो जाती है. शीला घर के कामकाज, बच्चों की देखभाल वगैरह से अकसर थक जाती है, लेकिन औफिस से आने के बाद शीला के पति देवेंद्र उसे सहवास के लिए तैयार किए बिना अकसर यौन संबंध बनाते हैं. वे यह नहीं देखते कि पत्नी का मन सहवास के लिए तैयार है या नहीं.

सैक्सोलौजिस्ट डा. कुंदरा के मुताबिक, ‘‘महिलाओं को अकसर इस बात की शिकायत रहती है कि पति उन की इच्छाओं को बिना समझे सहवास करने लगते हैं. लेकिन ऐसा कर के वे केवल खुद की इच्छापूर्ति करते हैं. पत्नी और्गेज्म तक नहीं पहुंच पाती. आगे चल कर इसी बात को ले कर आपसी संबंधों में कड़वाहट पैदा होती है.

‘‘पति को चाहिए कि सैक्स करने से पहले पत्नी की इच्छा को जाने. उसे सैक्स के लिए तैयार करे. तभी संबंधों में गरमाहट बरकरार रहती है.’’

करें प्यार भरी बातें

एक हैल्दी सैक्सुअल लाइफ के लिए बेहद जरूरी है कि यौन संबंध बनाने से पहले पत्नी से प्यार भरी बातें जरूर की जाएं. कोई समस्या हो तो उस का हल निकालें. पत्नी से बातोंबातों में पता करें कि वह सैक्स में क्या सहयोग, क्या नवीनता चाहती है.

जयपुर के संजय और रूपाली का विवाह 2007 में हुआ. शादी के कुछ सालों तक संजय रूपाली के साथ खुल कर यौन संबंध बनाते रहे. लेकिन इधर 1 साल से वे रूपाली के साथ सैक्स संबंध बनाने से कतराने लगे हैं. रूपाली कहती है कि संजय गाहेबगाहे शारीरिक संबंध बनाते तो हैं, लेकिन बाद में उस से अलग हो कर सोने लगते हैं.

दरअसल, संजय की नजरों में यौन संबंध केवल पुरुष की भूख है, इसलिए रूपाली चाह कर भी संजय को भरपूर सहयोग नहीं कर पाती है.

मनोचिकित्सक डा. दिनेश त्यागी का मानना है कि एक अच्छे सहवास सुख के लिए आवश्यक है कि पतिपत्नी आपस में सैक्स के दौरान प्यार भरी बातें करें. यदि ऐसा नहीं हो तो पत्नी को लगता है कि पति को केवल सैक्स की ही भूख है, प्यार की नहीं. इसलिए प्यार भरी बातों को नजरअंदाज न करें.

स्थान व समय को बदलें

दिल्ली के ही नवीन का कहना है कि यदि वे रोजरोज पत्नी के साथ यौन संबंध नहीं बनाएंगे तो दूसरे दिन औफिस में तरोताजा हो कर काम नहीं कर पाएंगे. लेकिन उन की पत्नी को कोई मजा नहीं आता है, क्योंकि यह रोज के ढर्रे जैसी बात बन गई है. उस में कोई भी नवीनता नहीं रहती.

डा. कुंदरा कहते हैं कि सहवास का भरपूर आनंद उठाने के लिए कभी सोफा, कभी फर्श, कभी कालीन तो कभी छत पर और अगर घर में झूला लगा हो तो झूले पर, नहीं तो लौन पर चटाई बिछा कर सैक्स का आनंद लिया जा सकता है. पत्नियां सैक्स को प्यार से जोड़ती हैं. प्यार के इस अनुभव को वे घर के अलगअलग स्थानों पर अलगअलग समय पर नएनए तरीके से करना चाहती हैं. लेकिन अकसर पति यह बात समझ कर भी नहीं समझते.

शुरुआत धीरे धीरे करें

डा. कुंदरा यह भी कहते हैं कि कई पत्नियों की यह शिकायत रहती है कि उन के पति सहवास की शुरुआत धीरेधीरे न कर के उन्हें बिना उत्तेजित किए जल्दीबाजी में करते हैं. जबकि सहवास की शुरुआत धीरेधीरे विभिन्न सैक्स मुद्राओं जैसे गालों को काटना, सैक्स के हिस्सों पर थप्पड़ लगाना आदि को अपना कर ही करनी चाहिए और उस के बाद ही सैक्स सुख का आनंद लेना चाहिए.

फोर प्ले का आनंद उठाएं

पति को चाहिए कि वह पत्नी के साथ चुंबन, आलिंगन, उसे सहलाना, केशों में उंगलियां फेरना, अंगों को स्पर्श करना वगैरह की अहमियत को समझे. ऐसा कर के वह पत्नी को उत्तेजित कर के मानसिक और शारीरिक रूप से सहवास के लिए तैयार करे. पत्नी का और्गेज्म तक पहुंचना जरूरी होता है. और्गेज्म तक नहीं पहुंच पाने के कारण घर में अकसर तनाव का माहौल पैदा हो जाता है, जो आपसी संबंधों में दिक्कतें भी पैदा करता है. एक सर्वे के मुताबिक 55% लोगों का मानना है कि सैक्स के दौरान जो आनंदमयी क्षण आते हैं, उन का अनुभव बेहद महत्त्वपूर्ण है.

बराबर का साथ दें

डा. कुंदरा के अनुसार, ‘‘सैक्सुअल लाइफ बेहद रोमांटिक तभी बन पाती है, जब पतिपत्नी सैक्स संबंध बनाते समय बराबर का साथ दें. सहवास के दौरान 70% महिलाएं बिस्तर पर चुपचाप ही पड़ी रहती हैं. पुरुष ऐसी महिलाओं को पसंद नहीं करते. सहवास के दौरान बराबर का साथ पति पसंद करते हैं. यदि पत्नी ऐसा करती है तो सैक्स का आनंद और भी ज्यादा बढ़ जाता है.’’

दिल्ली की जनकपुरी की रेशमा 48 साल की और उन के पति 54 साल के हो गए हैं, लेकिन हफ्ते में 1-2 बार दोनों खुल कर यौन संबंध बनाते हैं. एकदूसरे के लिए रोमांटिक बने रह कर वे खुल कर उस का आनंद उठाते हैं.

फालतू बातों को तूल न दें

मैरिज काउंसलर एन.के. सूद कहते हैं कि पतिपत्नी जब भी यौन संबंध बनाएं, पत्नी घर की समस्याओं या शिकायतों का पिटारा खोल कर न बैठे. सारिका जब भी रमेश के साथ सहवास करती थी, कोई न कोई शिकायत ले कर बातें शुरू कर देती थी. इस से रमेश असहज हो जाता था. आगे चल कर इन की समस्या इतनी बढ़ गई कि इन्हें आपसी संबंधों को सहज बनाने के लिए मैरिज काउंसलर की सहायता लेनी पड़ी.

संबंधों में गरमाहट बनी रहे इस के लिए ऐसी बातों को तूल न दे कर सैक्स लाइफ को ऐंजौय करें. पति का साथ दें, उन के साथ बिस्तर पर सक्रिय बनी रहें.

सैक्सी कपड़ों में लुभाएं

कोटा में रहने वाली राधा गोरी और खूबसूरत नैननक्श वाली है. लेकिन वह अपने पति महेंद्र के पास उन्हीं कपड़ों में जाती है, जो उस ने सुबह से पहने होते हैं. राधा को तरोताजा न देख कर महेंद्र सहवास में ढंग से सहयोग नहीं कर पाते हैं.

पति को लुभाने व उत्तेजित करने के लिए सैक्सी ड्रैस व हौट लुक में अपने पार्टनर को ऐसा सरप्राइज दें कि यौन संबंधों में नवीनता तो आए ही, सहवास सुखद भी बने. ऐसा होने से पतिपत्नी का आपसी विश्वास व प्यार भी बराकरार रहता है.

नए नए प्रयोग करें

डा. कुंदरा कहते हैं कि अकसर पुरुष सैक्स को ले कर ज्यादा ही उत्साहित होते हैं. वे नएनए आसनों का प्रयोग कर सहवास को सुखद बनाते हैं. लेकिन पत्नी यदि किसी तरीके को अनकंफर्टेबल महसूस करे तो पति को बताए जरूर.

बहुत सी महिलाएं यौन संबंध बनाते वक्त नएनए प्रयोगों से घबराती हैं. वे ऐसा न कर के पति के साथ सहवास में प्रयोग करें. उम्र कोई बाधा नहीं, दिलदिमाग और शरीर को स्वस्थ रखने और वैवाहिक जीवन को सफल बनाने में नए प्रयोग हमेशा मददगार ही साबित होते हैं.

‘आज मूड नहीं है’- पार्टनर को कैसे बताएं हाल ए दिल

आपके कौलेज का आखिरी सेमेस्टर है और कल सुबह की परीक्षा के बाद कौलेज खत्म हो जाएगा. यह सबसे कठिन विषय है और आप काफी समय से इसके लिए काफी मेहनत से पढ़ रहे हैं, और इसलिए इस समय सेक्स के खयाल आपके दिमाग के आस पास भी नहीं फटक रहे. फिर चाहे आपकी गर्लफ्रेंड आपके साथ बिस्तर पर निर्वस्त्र ही क्यूं ना हो. उसके इम्तिहान खत्म हो चुके हैं और उसके दिमाग में अब कोई दबाव नहीं है और शायद इसलिए वो सेक्स के बारे में सोच रही है. तो ऐसे में आप उसे सेक्स के लिए कैसे मना करेंगे और इससे क्या फर्क पड़ेगा?

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लेकिन सच ये है कि आपके मना करने के तरीके से दरअसल फर्क पड़ेगा. किसी भी रिश्ते में ऐसा समय आ सकता है जब एक साथी मूड में हो और दूसरा नहीं. इस स्थिति को सही तरीके से सम्भालना महत्वपूर्ण है क्यूंकि सेक्स को लेकर हुई असमर्थता से भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है.

काफी कुछ दांव पर

‘मेरे विचार में इसका सम्बन्ध भावनात्मक अति संवेदनशीलता से है’, कनेडीयन शोधकर्ता जेम्स किम ने 2016 की इंटर्नैशनल असोसीएशन फोर रेलेशन्शिप रीसर्च कॉन्फ़्रेन्स के दौरान बताया “एक रिश्ते में दो लोगों के बीच में कई बातों को लेकर मतभिन्नता हो सकती है, जैसे कि घर की सफाई, खाने में क्या बनाना है, बच्चो को किस स्कूल में डालना है वगैरह, वगैरह. लेकिन जहां तक सेक्स की जरूरतें हैं, उनके लिए आपकी अपेक्षाएं केवल आपके साथी से होती हैं. और ऐसे में अकसर काफी कुछ दांव पर लगा होता है, क्यूंकि अपने साथी से यह सुनना तकलीफदेह हो सकता है कि वो आपके साथ सेक्स करने के इच्छुक नहीं हैं.’

बातचीत में शामिल हों

किम ये पता लगाना चाहते थे कि लोग अपने साथी को सेक्स के लिए कैसे मना करते हैं. वो ये भी देखना चाहते थे कि रिश्तों और सेक्स की संतुष्टि के नजरिए से क्या ना कहने के कुछ तरीके दूसरे तरीकों से बेहतर थे?

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पहले, उन्होंने शोध में शामिल 1200 लोगों से पूछा कि वो सेक्स के लिए कैसे मना करते हैं. उन्होंने चार वर्गीकरण किए और हर एक का उदाहरण सामने रखा. प्रयोग के दूसरे चरण में उन्होंने ‘ना’ कहने के बेहतर तरीक़ों को बारीकी से देखा.

ना कहने के चार तरीके

किम ने ना कहने तरीकों को चार हिस्सों में बांटा

  1. ‘केवल चुंबन और आलिंगन करते हैं ना’

सकारात्मक से शुरू करते हैं. यदि आप सेक्स के मूड में नहीं हैं, तो अपने साथी को चुम्बन और आलिंगन करने के लिए कहें. इस तरह आपको उन्हें निराश नहीं करना पड़ेगा और उन्हें बुरा नहीं लगेगा. ये एक तरह से एक संदेश है, ‘कि मूड नहीं होने की वजह तुम नहीं हो, तुम से मुझे बेहद प्यार है और आकर्षण भी है.’

2.’उफ्फ, दूर हटो’

ये अगला वर्गीकरण जरा कटुतापूर्ण है. इसके फलस्वरूप आपके साथी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती है और इस तरीके का सम्बन्ध कमजोर और नाखुश रिश्तों और असंतुष्ट सेक्स जीवन से होता है.

3.’नहीं, मूड नहीं है’

ये ना कहने का एक निर्णयपूर्ण तरीका है जो बिना अपने साथी की भावनाओं की कद्र किए, बस सेक्स की पेशकश को खारिज करने जैसा है. जैसे कि, “नहीं, मेरा सेक्स करने का मूड नहीं है.”

  1. संकेत देना

और अंत में किम की रिसर्च में एक पहलू ड्रामेबाजी का भी सामने आया. यानि मुंह पर मना करने की बजाय सोने का नाटक करना या दूर रहने का शारीरिक संकेत देना.

सबसे बेहतर क्या?

तो सबसे सही और सबसे ख़राब तरीका कौनसा है? देखिए अगर आप सेक्स के मूड में नहीं हैं तो भी अपने साथी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना किसी भी लिहाज से सही नहीं है. सेक्स ना सही, आप कम से कम प्यार और पुनः आश्वासन तो दे ही सकते हैं, ताकि आपके साथी को ये महसूस हो सके कि आप उनसे प्यार करते हैं और यह रिश्ता और आप, दोनों ही, उनके लिए बहुत मायने रखता है.

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निर्णयपूर्ण ‘ना’ या बहाने बनाना कैसा है? हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन तरीकों का रिश्तों पर क्या असर पड़ता है, लेकिन यह सच है कि स्पष्ट ‘ना’ कहना उस समय बुरा अवश्य लग सकता है लेकिन लम्बे समय में यह स्पष्टवादिता रिश्ते के लिए अनुकूल सिद्ध हो सकती है.

ना कैसे कहें

इस भाव का शिकार होना आसान है कि ‘शायद मेरा साथी मेरे साथ सेक्स करना पसंद नहीं करता या शायद मैं उन्हें आकर्षक नहीं लगता/लगती.’

अपने साथी को विश्वास दिलाकर आप उन्हें इन नकारात्मक विचारों के चंगुल से मुक्त कर सकते हैं. आपको उन्हें अक्सर ये याद दिलाते रहना चाहिए कि वो आपको कितने आकर्षक लगते हैं और आज भले ही आपकी मनोदशा सेक्स करने की ना हो लेकिन इसका उनके प्रति आपके आकर्षण से कोई सम्बन्ध नहीं है.

इन 7 वजहों से लड़कियों को दी जानी चाहिए यौन शिक्षा

अमेरिका के सेंटर फौर डिसीज कंट्रोल के अनुसार हाल ही वर्षों में शेमिडिया, गोनोरिया और शिफलिस के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है. STD (यौन रोग) से सबसे ज़्यादा युवतियां प्रभावित होती हैं.

स्थिति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चार में से एक युवती यौन रोग से प्रभावित है. युवतियों में बढ़ते यौन रोग का प्रमुख कारण है यौन शिक्षा का अभाव. आज भी कई ऐसे देश हैं जहां स्कूल के पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा विषय नहीं है.

यौन शिक्षा के अभाव में 13 से 19 साल की युवतियां प्रभावित हो रही हैं. यहां हम आपको बताने जा रहे हैं 7 ऐसे कारण जिसकी वजह से युवतियों के लिये यौन शिक्षा जरूरी है.

  1. युवा महिलाओं में यौन रोग होने की अधिक संभावना

एक अध्ययन नो द फैक्ट्स के अनुसार पुरुष की तुलना में युवतियों के शरीर चूंकि कुछ कमजोर रहते हैं, इसलिये उन्हें यौन रोग लगने की ज्यादा संभावना रहती है. इस बारे में कई युवतियों को खबर भी नहीं रहती. इस समय 15 से 24 साल की उम्र के ग्रुप में 51 प्रतिशत युवतियां यौन रोग की शिकार हैं. पुरुषों के मामले में ये प्रतिशत 49 है.

  1. 19 की होने तक 60 फीसद युवतियां सेक्स कर चुकी होती हैं

नो द फैक्ट्स के अनुसार 15 साल पूरे करने तक 13 फीसद युवतियां सेक्स का अनुभव करने लगती हैं और 19 की होते तक 68 फीसद युवतियां पूरी तरह सेक्स करने लगती हैं. इस संख्या को देखकर ही यौन शिक्षा की जरुरत महसूस होती है.

  1. यौन रोग से अनजान रहती हैं युवतियां

ज्यादातर युवतियों को पता ही नहीं होता कि यौन रोग कैसे होता है. इनमें से कई युवतियों को लगता है कि टॉयलेट की सीट पर बैठने से यौन रोग हो जाता है.

  1. तीस लाख से ज्यादा युवतियां यौन रोग से ग्रस्त हैं

एक अध्ययन के अनुसार तीस लाख से ज्यादा युवतिया शेमिडिया, हरपीस और ट्रिख जैसे यौन रोग से ग्रस्त हैं. ये संख्या और अधिक हो सकती है क्योंकि अध्ययन में सिफलिस, HIV, गोनोरिया जैसे रोग को शामिल नहीं किया गया है.

  1. महिलाओं को अधिक होते हैं यौन रोग

पुरुष की तुलना में महिलाओं को यौन रोग होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है. महिलाओं में यौन रोग का इलाज न करने पर सरवाइकल कैंसर भी हो सकता है और गर्भधारण करने में भी मुश्किल हो सकती है.

  1. 10 फीसद से ज्यादा युवतियों को एक से ज्यादा यौन रोग होते हैं

कंडोम का प्रयोग न करने या ठीक से प्रयोग न करने से एक से ज्यादा यौन रोग हो सकते हैं. सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल के अनुसार 14 से 19 साल के बीच की 15 फीसद युवतियों को एक से ज्यादा यौन रोग होते हैं.

  1. तीन या इससे अधिक पुरुषों से संबंध बनाने वाली आधी से ज्यादा युवतियों को होता है यौन रोग

हालंकि अगर आप कंडोम इस्तेमाल करते हैं तो यौन रोग होने की संभावना कम ही रहती है भले ही आप कितनों के भी साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन सेंटर फौर डिसीज कंट्रोल के अनुसार युवतियों के मामले में ऐसा नहीं है. 50 फीसद से ज्यादा युवतियों में, जिन्होंने तीन या इससे अधिक पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं, यौन रोग पाए गए हैं.

युवाओं के लिए है बेहद जरूरी सैक्स एजुकेशन

दीपिका नयाल ‘विरेंद्र’

दिया की उम्र महज 20 साल है. वह अविवाहित है, लेकिन कैसे गर्भवती हो गई, दिया के मातापिता की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उन से कहां कमी रह गई? क्या दिया की परवरिश में कहीं कोई कमी रह गई थी? क्या वे अपनी जवान हो रही बेटी की हरकतों पर समय की कमी के चलते ध्यान नहीं दे पाए? दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक अच्छे कालेज में पढ़ने वाली दिया के मातापिता को जब उस के गर्भवती होने की बात पता चली तो वे सन्न रह गए. उन्होंने तुरंत सामान पैक किया और दिया को ले कर दिल्ली से बाहर दूसरे शहर चले गए, ताकि बात आसपड़ोस या फिर रिश्तेदारों में न फैले. शहर के बाहर उस के पिता ने किसी अच्छे डाक्टर से उस का गर्भपात कराया और कुछ समय तक वहीं होटल में रहे. बाद में उसे दिल्ली वापस ले आए.

यह उदाहरण सिर्फ  दिया का ही नहीं है, बदलते समय के साथसाथ यंगस्टर्स की सोच में काफी बदलाव आया है, पश्चिमी सभ्यता उन के सिर चढ़ कर बोल रही है. उम्र का यह दौर ऐसा होता है कि अगर मातापिता बच्चों को कुछ समझाएं तो उन्हें समझ नहीं आता. उन्हें पूरी दुनिया गलत नजर आती है.

एक अनुमान के मुताबिक, भारत की मैट्रो सिटीज से ले कर गांवों तक 25 से 30 फीसदी युवतियां किसी न किसी कारण गर्भपात कराती हैं. ये आंकड़े 25 साल से कम उम्र की युवतियों के हैं. अधकचरी जानकारी में टीनऐज में गर्भपात के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. सरकारी संस्था नैशनल सैंपल सर्वे औफिस के आंकड़ों पर गौर करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 20 साल से कम उम्र की युवतियों में गर्भपात का प्रतिशत मात्र 0.7 है, जबकि शहरों में यह 14त्न है.

युवती की बढ़ जाती हैं मुश्किलें

 अविवाहिता जब संबंध बनाती है तब क्या सही और क्या गलत है, इस का खयाल तक उस के दिमाग में नहीं आता. तब मन गहरे समंदर में प्यार के गोते लगाता है. इस के दुष्परिणाम तब सामने आते हैं जब कम उम्र में युवती गर्भवती हो जाती है. इस उम्र में न तो प्रेमी शादी के लिए तैयार होता है और न ही प्रेमिका. लिहाजा, दोनों के सामने बस एक ही रास्ता होता है और वह है गर्भपात.

जब यह बात घर वालों को पता चलती है तो पूरे घर में बवंडर आ जाता है जो लाजिमी है, लेकिन इस गलती का युवती को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. उसे न केवल गर्भपात जैसे जटिल दौर से गुजरना पड़ता है बल्कि कई तरह की मानसिक परेशानियों से भी दोचार होना पड़ता है. प्रेमी के बदलते रवैए और घर वालों के तानों से पीडि़ता डिप्रैशन में चली जाती है जबकि कई मामलों में युवती ऐसे हालात में मौत को भी गले लगा लेती है.

कौन है जिम्मेदार

देश में अब टीनऐजर्स के लिए गर्भपात कोई नई बात नहीं है. युवा पहले शादी फिर सैक्स जैसी बातों को अब दकियानूसी मानते हैं और इस की वजह है उन्हें आसानी से सबकुछ उपलब्ध हो जाना, ऐसे में वे क्यों शादी का इंतजार करें और जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाएं.

इस के पीछे मुख्य कारण एकल परिवार भी है, जहां मातापिता दोनों कामकाजी हैं. ऐसे में वे बच्चों पर ज्यादा निगरानी नहीं रख पाते. बच्चे अकेले टीवी पर क्या देख रहे हैं या फोन पर क्या डाउनलोड कर रहे हैं, ये सब देखने की उन्हें फुरसत ही नहीं है. आजकल टीवी और इंटरनैट के माध्यम से सब चीजें उपलब्ध हैं, जिस के दुष्परिणाम आगे चल कर हमारे सामने गर्भपात के रूप में आते हैं.

प्रेमी का व्यवहार भी है इस की वजह

 प्यार की शुरुआत में तो सबकुछ अच्छा लगता है और कई बार युवती इस उम्मीद में रिश्ता भी बना लेती है कि उस की प्रेमी से शादी हो जाएगी, लेकिन जब वह गर्भ ठहरने की बात प्रेमी को बताती है तो अधिकतर मामलों में वह प्रेमिका से पीछा छुड़वाने की भरपूर कोशिश करता है. वह न तो बच्चे को अपना नाम देना चाहता है और प्रेमिका से शादी करने से भी मना कर देता है, जिस के चलते युवती के पास सिवा गर्भपात के कोई उपाय नहीं बचता और फिर उसे कई तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ता है. इस से न केवल उस का स्वास्थ्य प्रभावित होता है बल्कि मानसिक रूप से भी उसे गहरा सदमा लगता है.

गर्भपात के बाद युवती खुद को अलगथलग महसूस करती है. बारबार उसे लगता है कि उस के साथ धोखा हुआ है. धीरेधीरे उस के व्यवहार पर भी इस का गहरा असर दिखाई देता है.

गलती दोनों की

 यदि शादी से पहले कोई युवती गर्भवती हो गईर् है तो इस में सिर्फ उस की ही गलती नहीं है, जितनी दोषी वह युवती है उतना ही दोष उस युवक का भी है. दोनों इस में बराबर के हकदार हैं. हमारा समाज शादी से पूर्व युवती के गर्भवती होने पर उसे कई तरह के ताने जैसे बदचलन, कुलटा, कलमुंही कह कर उस का तिरस्कार करता है, लेकिन उस युवक का क्या, जो गर्भ में पल रहे बच्चे का बाप है? क्या उस का कोई कुसूर नहीं? लिहाजा, किसी एक पर गलती का दोष न डाला जाए तो अच्छा है.

कैसे निबटें ऐसे हालात से

 अगर आप कामकाजी या हाउसवाइफ हैं तो जरूरी है कि अपने बढ़ते बच्चों का ध्यान रखें. वे क्या कर रहे हैं, कब कहां जा रहे हैं, किस से बात कर रहे हैं? इन सब बातों को नजरअंदाज न करें बल्कि बच्चे का खयाल रखें, उस के साथ दोस्त की तरह व्यवहार करें. ध्यान रखिए डराधमका कर वह आप को कभी कुछ नहीं बताएगा. यदि आप का बच्चे के साथ व्यवहार दोस्ताना रहेगा तो वह आप के साथ सारी बातें शेयर करेगा. उस का फोन और लैपटौप भी समयसमय पर चैक करते रहिए.

हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप जासूसी कीजिए, लेकिन यदि आप कभीकभार ये सब चीजें चैक करेंगे तो आप को पता चल जाएगा कि आप का बच्चा किस दिशा में जा रहा है.

सैक्स शिक्षा बच्चों के लिए आज काफी अहम हो गई है. स्कूलकालेजों में यदि सैक्स शिक्षा दी जाए तो बच्चों को इस के सही और गलत प्रभाव का पता चल जाएगा जिस से टीनऐज में गर्भपात के हालात से निबटा जा सकता है.

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