रेटिंग: एक स्टार
निर्माताः धर्मा प्रोडक्षंस, कैप आफ गुड फिल्मस, पृथ्वीराज सुकुमारन, सुप्रिया मेनन व लिस्टिन स्टीफन
लेखक: रिशभ शर्मा
निर्देशकः राज मेहता
कलाकारः अक्षय कुमार, इमरान हाशमी, डायना पेंटी, नुसरत भरुचा, महेश ठाकुर, अभिमन्यू सिंह, फहीम फाजिल, टिस्का चोपड़ा, कुषा कपिला, राहुल देव, मेघना मलिक, पारितोश त्रिपाठी, अभिषेक चोकसी, वरूण सूद, मृणाल ठाकुर व यो यो हनी सिंह
अवधिः दो घंटे 23 मिनट
हम बचपन से सुनते आए हैं कि हर इंसान को अपने आत्म सम्मान को बिकने नही देना चाहिए. मगर 24 फरवरी को सिनेमाघरों पहुॅची अक्षय कुमार की फिल्म कहती है- ‘‘आत्मसम्मान जब दिल पर आ जाए तो दिमाग खराब हो जाता है. ’’
फिल्म सेल्फी में अंततः इंसान मान लेता है कि उससे अपने आत्म सम्मान को बचाने के चक्कर मे ही गलतियां हुई और वह एक सुपर स्टार कलाकार से माफी तक मांगता है. जब इंसान की सोच ही सही न हो तो वह एक अच्छी फिल्म कैसे बना सकता है. यही वजह है कि अक्षय कुमार लगतार ‘बच्चन पांडे’, ‘सम्राट पृथ्वीराज’, ‘रक्षा बंधन’ और ‘रामसेतु’ जैसी मेगा बजट असफल फिल्में दे चुके हैं. उनकी दो फिल्मों ‘अतरंगी रे’ और ‘कठपुतली’ को फिल्म वितरक ही नहीं मिले, इसलिए निर्माताओं ने इन दोनों फिल्मों को अपने प्रभाव का उपयोग कर ओटीटी पर स्ट्ीम कर अपनी लाज बचा ली. 2019 में प्रदर्षित पृथ्वीराज सुकुमारन के अभिनय से सजी मलयालम फिल्म ‘ड्राइविंग लाइसेंस’ ने अपनी लागत का साढ़े चार गुना कमायी की थी. अब उसी की हिंदी रीमेक फिल्म ‘‘सेल्फी’’ का निर्देशन राज मेहता ने किया है और उन्होने अक्षय कुमार के साथ मिलकर इस फिल्म का बर्बाद करने में अपनी तरफ से कोई कसर नही छोड़ी है. निर्माता करण जोहर के पसंदीदा निर्देशक माने जाते हैं राज मेहता. राज मेहता ने अब तक ‘सेल्फी’ सहित जिन फिल्मों का निर्देशन किया, उन सभी का निर्माण करण जोहर करते रहे हैं. ‘गुड न्यूज’ के अलावा राज मेहता निर्देशित फिल्में असफल ही रही हैं.
कहानीः
फिल्म की कहानी षुरू होती है भोपाल से जहां, बौलीवुड के सुपरस्टार विजय कुमार (अक्षय कुमार ), निर्माता धीरज की फिल्म की षूटिंग के लिए अपनी पत्नी नेहा (डायना पेंटी ) संग पहुॅचते हैं. धीरज चाहते हैं कि विजय कुमार उनकी फिल्म के क्लायमैक्स की षूटिंग करने के बाद छुट्टियां मनाने अमरीका जाएं. पर विजय कुमार इंकार कर देते हैं. निर्माता धीरज को भी पता नही है कि विजय कुमार व उनकी पत्नी नेहा पांच साल बाद अब सरोगसी से माता पिता बनने वाले हैं, इसलिए बच्चे के जन्म के समय वह पत्नी संग अमरीका मंे रहना चाहते हैं. खैर, धीरज, विजय कुमार से कहते हैं कि क्लायमैक्स मिलिट्ी क्षेत्र में फिल्माया जाना है, जहां विजय कुमार के ड्ाइविंग लायसेंस की जरुरत है. पर विजय कुमार का ड्ाइविंग लायसेंस खो चुका है. स्थानीय पार्षद विमला तिवारी (मेघना मलिक) की मदद से विजय कुमार ड्ाइविंग लाइसेंस का आवेदन भोपाल आरटीओ में करते हैं. आरटीओ इंस्पेक्टर ओमप्रकाश अग्रवाल (इमरान हाशमी ), विजय कुमार के फैन हैं. वह चाहते है कि विजय कुमार दफ्तर आकर ओमप्रकाश अग्रवाल व उनके बेटे गप्पू के संग सेल्फी ख्ंिाचवा लें और वह दो दिन के अंदर ही ड्ाइविंग लायसेंस दे देंगे. विजय कुमार सुबह सात बजे आरटीओ आफिस अपने दल बल के साथ पहुॅचते हैं, पर वहां पर मीडिया की मौजूदगी से उन्हे गुस्सा आ जाता है और वह ओमप्रकाश अग्रवाल के बेटे और वरिष्ठ अधिकारियों के सामने ही ओमप्रकाश के आत्मसम्मन पर चोट करते हुए अपमानित करते हैं. सभी वरिष् ठ अधिकारी फिर भी विजय कुमार के सामने नतमस्तक रहते हैं. तब अपने आत्मसम्मान की खातिर आरटीओ इंस्पेक्टर अग्रवाल मीडिया के सामने कह देते है कि जब विजय कुमार ड्ाइविंग टेस्ट में पास होंगें, तभी उन्हें डाइविंग लायसेंस मिलेगा. यहां से दोनों के बीच एक दूसरे को नीचा दिखाने की षुरूआत होती है, जिसका फायदा सफलता के लिए संघर्ष कर रहे अभिनेता सूरज (अभिन्यू सिंह ) उठाते हैं. सूरज, विजय को अपने कद तक लाने की उम्मीद में एक टैरो कार्ड रीडर (कुशा कपिला) की मदद भी लेते हैं. कभी विजय कुमार, सूरज के साथ ही सूरज के कमरे में रहा करते थे. उधर विजय कुमार भी फोन पर आरटीओ इंस्पेक्टर अग्रवाल को धमकाते हैं. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः विजय कुमार को ड्ाइविंग लायसेंस मिल जाता है.
लेखन व निर्देशनः
फिल्म ‘‘सेल्फी’’ कहानी विहीन रबर की तरह खींची गयी व धीमी गति से चलने वाली फिल्म है, जिसमें इमोषंस व मनोरंजन का घोर अभाव है. फिल्म के पटकथा व संवाद लेखक रिशभ शर्मा को तो भारतीय मानसिकता व भावनाआंे का भी अता पता नही है. तभी तो उन्होनें ‘‘आत्मसम्मान जब दिल पर आ जाए तो दिमाग खराब हो जाता है. ’’, ‘अच्छे इंसान बनो फिल्म अपने आप चलेगी’ व ‘एक बेटे का हीरो उसका बाप होता है और एक बेटा अपने हीरो को हारता हुआ नहीं देख सकता है’ जैसे सतही संवाद लिखे हैं. कितनी अजीब बात है कि अक्षय कुमार से लेकर पूरा बौलीवुड जिस सोशल मीडिया के बल पर खुद को महान बताता रहता है, उसी सोशल मीडिया की पोल खोलने की थोड़ी कोषिश जरुर की गयी है. अक्षय कुमार की पिछली दो तीन फिल्मों की ही तर्ज पर ‘सेल्फी’ में भी ‘गोदी मीडिया’ के एंकरो का कैरीकेचर पेशकर जमकर मजाक उड़ाया गया है, मगर मीडिया की हिम्मत नही है कि वह इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर सकें, क्योंकि फिल्म के नायक व सह निर्माता अक्षय कुमार जो हैं. लेखक को एक इंसान के लिए बेटे को लेकर क्या भावनाएं होती हैं, यही नहीं पता. फिल्म में आरटीओ इंस्पेक्टर के अहम को चोट इसलिए लगती है कि विजय कुमार उसके बेटे के सामने उनके आत्म सम्मान पर चोट करते हैं. फिर एक दृष्य में जब अग्रवाल के घर पर हुई पत्थर बाजी में उनका बेटा घायल होता है, तब वह जिस तरह से अस्पताल भागते हैं. तो क्या इससे यह बात नहीं उभरती कि अग्रवाल पारिवारिक इंसान हंैं और उनके अंदर संतान को लेकर भावनाएं हैं. ऐसे में जब विजय कुमार बताते हैं कि वह पंाच साल बाद सरोगसी से माता पिता बन रहे है, इसलिए बच्चे के जन्म के समय पत्नी के पास रहने के लिए अमरीका जा रहे हैं, तब आरटीओ इंस्पेक्टर अग्रवाल कैसे भावनाषून्य रह सकता है?तो यहां पर लेखक बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिल्म‘ सेल्फी’ पूरी तरह से आत्ममुग्ध अक्षय कुमार की फिल्म है. पूरी फिल्म में अक्षय कुमार का किरदार ख्ुाद की महिमा का बखन करता नजर आता ळे कि वह कितने बड़े सुपर स्टार हैं. साल में चारफिल्में, दो ओटीटी के लिए फिल्में, सत्रह विज्ञापन फिल्में, दो रियालिटी षो वगैरह करते हैं. काा अक्षय कुमार अपने डूबते कैरियर को बचाने के लिए अच्छी कहानी का चयन करने के साथ ही अपनी परफार्मेंस को सुधारने पर ध्यान देतेे. बतौर निर्देशक राज मेहता भी मात खा गए हैं. उनका सारा ध्यान तकनीक का उपयोग कर विज्युअल इफेक्ट्स पर रहा है.
अभिनयः
सुपर स्टार विजय कुमार के किरदार में अभिनेता अक्षय कुमार सर्वाधिक निराश करते हैं. अहं में चूर सुपर स्टार विजय कुमार के साथ वह न्याय करने में विफल रहे हैं. वह कई जगह अभिनेता की बजाय जोकर नजर आते हैं. यहां तक कि इस फिल्म को देखते समय इस बात का अहसास होता है कि उन्हे किरदार को निभाने में रूचि नही बल्कि कम समय में सारा काम निपटना है.
इसी वजह से परदे पर भी दिखता है कि वह संवाद भूल जाने पर किसी चीज पर अटकाए गए कागज को देखकर संवाद पढ़ रहे हैं. वह भूल गए कि इंसान की आंखों की पुतलियां सब जाहिर कर देती हैं. जब इंसान का सारा ध्यान संवाद को देखकर पढ़ने पर होगा, तो स्वाभाविक तौर पर चेहरे के भाव पर उसका असर नजर आ ता है.
आरटीओ इंस्पेक्टर ओमप्रकाश अग्रवाल के किरदार में इमरान हाशमी का अभिनय अक्षय कुमार के मुकाबले काफी बेहतर है, यह अलग बात है कि उन्हे पटकथा से खास मदद नही मिलती है. इसके अलावा इस किरदार में इमरान हायामी का चयन भी गलत है.
महेश ठाकुर, नुसरत भरुचा व डायना पेंटी के हिस्से करने को कुछ खास रहा ही नहीं.
सूरज के किरदार में अभिमन्यु सिंह का अभिनय सामान्य है. नगर पार्षद की छोटी सी भूमिका में मेघना मालिक जरूर दर्शको का ध्यान खींचने में सफल रहती हैं.