अमीरों की ऐसी हरकत ने करा डाली बेइज्जती

पूरा देश गांव वालों और गरीबों को कोसता रहता है कि वे जहां चाहे पैंट खोल कर पेशाब कर देते हैं. गनीमत है कि अब अमीरों की पोल खोल रही है. एक शंकर मिश्राजी बिजनैस क्लास का महंगा टिकट ले कर न्यूयौर्क से 26 नवंबर को दिल्ली एयर इंडिया की फ्लाइट में आ रहे थे. उन्होंने इतनी पी रखी थी कि उन्हें होश नहीं था कि क्या कर रहे हैं. उन के बराबर बैठी एक महिला को शायद उन्होंने गली की दीवार सम?ा कर उस पर पैंट खोल कर पेशाब कर दिया. ऐसा काम जो अगर गरीब या गांव वाले कर देते तो तुरंत उन की मारकुटाई शुरू हो जाती. पर ये ठहरे मिश्राजी, इन्हें कौन कुछ कहेगा.

जब मामला जनवरी के पहले सप्ताह में शिकायत करने पर सामने आया तो इस महान उच्च कोटि में जन्म लेने वाले, एक विदेशी कंपनी में काम करने वाले की खोज हुई वरना एयरलाइंस ने इस मामले को रफादफा कर दिया क्योंकि इस से जगदगुरु भारत की और एयर इंडिया कंपनी की बेइज्जती होती.

मामला खुलने के कई दिन बाद तक इस मिश्राजी को पकड़ा नहीं जा सका. उस के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने दिल्ली में कुछ मामले दर्ज किए हैं पर पक्का है कि गवाहों के अभाव में वह कुछ साल में छूट जाएगा और देश की दीवारों पर गरीबों के लिए लिखता रहेगा कि यहां पेशाब करना मना है, जुर्म है.

मरजी से जहां भी पेशाब करना और जहां भी जितना भी पीना शायद यह भी उच्च कोटि में जन्म लेने से मिलने वाले हकों में से एक है. घरों की दीवारों पर कोई निचली जाति का पेशाब तो छोडि़ए थूक भी दे तो हंगामे खड़े हो जाते हैं पर ऊंचे लोग जो भी चाहे कर लें, उन के लिए अलग कानून हैं. ये अलग कानून किताबों में नहीं लिखे, संविधान में नहीं हैं पर हर पुलिस वाले के मन में हैं, हर बेचारी औरत के मन में हैं और जजों के मन में लिखे हुए हैं.

गरीबों के मकान ढहा दो, गांवों की जमीन सस्ते में सरकार खरीद ले, सरकार किसान से ट्रैक्टर, खाद, डीजल पर जम कर टैक्स ले पर उस की फसल की उसे सही कीमत न दे या ऐसा माहौल बना दे कि प्राइवेट व्यापारी भी न दे, यह मंजूर है.

भारत की गंदगी के लिए ऊंची जातियां ज्यादा जिम्मेदार हैं क्योंकि जब वे घरों या फैक्टरियों से कूड़ा निकालती हैं तो चिंता नहीं करतीं कि कौन कैसे इन्हें निबटाएगा और उस का हाल क्या होगा. उन के लिए तो सफाई वाले दलित, किसान, मजदूर और हर जाति की औरतें एक बराबर हैं. शंकर मिश्रा को तलब लगी होती तो भी वह किसी पुरुष पर पेशाब नहीं करता. एक प्रौढ़ औरत को उस की दबीछिपी ऊंची भावना ने नीच मान रखा है और उस पर पेशाब कर डाला.

अब देश की सारी दीवारों से ‘यहां पेशाब करना मना है’ मिटा देना चाहिए और अगर लगाना है तो एयर इंडिया की फ्लाइटों में लगाएं और औरत पैसेंजरों को पेशाब प्रूफ किट दें जैसे कोविड के दिनों में दी गई थीं. ऊंची जाति वालों का राज आज जोरों पर है. ऐसे मामले और कहां हो रहे होंगे, पर खबर नहीं बन रहे, क्या पता. यह भी तो डेढ़ महीने बाद सामने आया.

 

सरकार की नीति: रोजगार एक अहम मुद्दा

गूगल पर बेरोजगारों के फोटो खंगालते हुए बहुत से फोटो दिखे जिन में बेरोजगार प्रदर्शन के समय तखतियां लिए हुए थे जिन पर लिखा था ‘मोदी रोजी दो वरना गद्दी छोड़ो’, ‘शिक्षा मंत्री रोजी दो वरना त्यागपत्र छोड़ो’, ‘रोजीरोटी जो न दे वह सरकार निकम्मी हैं.’

ये नारे दिखने में अच्छे लगते हैं. बेरोजगारों का गुस्सा भी दर्शाते हैं पर क्या किसी काम के हैं. रोजगार देना अब सरकारों का काम हो गया. अमेरिका के राष्ट्रपति हो या जापान के प्रधानमंत्री हर समय बेरोजगारी के आंकड़ों पर उसी तरह नजर रखते हैं जैसे शेयर होल्डर अडानी के शेयरों के दामों पर. पर न तो यह नजर रखना नौकरियां पैदा करती है और न शेयरों के दामों को ऊंचानीचा करती है.

रोजगार पैदा करने के लिए के लिए जनता खुद जिम्मेदार है. सरकार तो बस थोड़ा इशारा करती है. सरकार उस ट्रैफिक पुलिसमैन की तरह होती है जो ट्रैफिक उस दिशा में भेजता है जहां सडक़ खाली है. पर ट्रैफिक के घटतेबढऩे में पुलिसमैन की कोई भी वेल्यू नहीं है. सरकारें भी नौकरियां नहीं दे सकतीं, हां सरकारें टैक्स इस तरह लगा सकती हैं, नियमकानून बना सकती हैं कि रोजगार पैदा करने का माहौल पैदा हो.

हमारे देश में सरकारें इस काम को इस घटिया तरीके से करती हैं कि वे रोजगार देती हैं तो केवल टीचर्स को, हर ऐसे टीचर्स जो रोजगार पैदा करने लायक स्टूडेंट बना सकें.

ट्रैफिक का उदाहरण लेते हुए कहा जा सकता है कि ट्रैफिक कांस्टेबल को वेतन और रिश्वत का काम किया जाता है. खराब सडक़ें बनाई जाती हैं जिन पर ट्रैफिक धीरेधीरे चले, सडक़ों पर कब्जे होने दिए जाते हैं ताकि सडक़ें छोटी हो जाए और दुकानोंघरों से वसूली हो सके.

ऐसे ही पढ़ाई में हो रहा है. टीचर्स एपायंट करना, स्कूल बनवाने, बुक बनवाने, एक्जाम करने में सरकार आगे पर नौकरी लगा पढ़ाने में कोई नहीं. सरकार जानबूझ कर माहौल पैदा करती है कि बच्चे पढ़ें ही नहीं, खासतौर पर किसानों, मजदूरों, मैकेनिकों, सफाई करने वालों को तो पढ़ाते ही नहीं है. वे सिर्फ मोबाइलों पर फिल्में देखना जानते हैं. ट्रैफिक पुलिसमैन बनी सरकार अपनी जेब भर रही है.

मोदी सरकार अगर इस्तीफा दे देगी तो जो नई सरकार आएगी वह भी उसी ढांचे में ढली होगी क्योंकि यहां पढ़ाने का मतलब होता है पौराणिक पढ़ाई जिस में पढ़ाने वाला गुरू होता है जो मंत्रों को रटवाता है और उस के बदले दान, दक्षिणा, खाना, गाय, औरतें, घर पाना है और गॢमयों में पंखों के नीचे और सॢदयों में धूप में सुस्ताना है, कोङ्क्षचग में वह सिर्फ पेपर लीक करवा कर पास कराने का ठेका लेता है.

जब असली काम की नौबत आती है, पढ़ालिखा सीरिया और तुर्की के मकानों की तरह भूकंप में छह जाता है. अब जब भूकंप के लिए…..एरडोगन और इरशाद जिम्मेदार नहीं तो मोदी क्यों. इसलिए चुप रहो, शोर न मचाओ.

छत्तीसगढ़: राज भवन का राज हट

कभी राज हट, बाल हट और स्त्री हट के बारे में कहा जाता था कि इन्हें शांत करना बहुत कठिन होता है . आजकल आदिवासी राज्य छत्तीसगढ़ में राजभवन का राज हट चर्चा का विषय बना हुआ है. यहां राज्यपाल के रूप में अनुसूचित जनजाति से अनुसुइया उईके राज्यपाल की भूमिका का निर्वहन कर रही है और आरक्षण के मसले पर उनका हट चर्चा में है. छत्तीसगढ़ में सरकार और राजभवन में एक ऐसी खींचतान चल रही है जिसकी मिसाल शायद देश में नहीं मिल सकती. ऐसा लगता है मानो सविधान का कोई सम्मान राजभवन नहीं करना चाहता और एक हेटी के चक्कर में आरक्षण का मुद्दा एक दावानल की तरह प्रदेश की फिजाओं में धड़क रहा है. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है इसीलिए यहां अक्सर छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग जोर पकड़ती रही है अगर हम कथित रूप से प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी को छोड़ दें तो विगत 22 वर्षों में छत्तीसगढ़ को आदिवासी मुख्यमंत्री तो नहीं मिला है आरक्षण का जो अधिकार था उस पर भी ग्रहण लगा हुआ है.

हद तो तब हो गई है, जब विधानसभा में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण हेतु विशेष सत्र 2 और 3 दिसंबर 20220 को बुलाकर आरक्षण का विधेयक पास कर दिया. मगर अब राज्यपाल अनुसुइया उइके ने प्रश्नों की झड़ी लगा कर के एक ऐसी हठधर्मिता देश को दिखाई है जो आज तक किसी राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ में कम से कम नहीं दिखाई थी. इस मसले को लेकर के एक तरह से सरकार और राज्य भवन में ठन गई है इसमें न तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कोई पहल कर रही है और ना ही देश की उच्चतम न्यायालय ने अभी तक कोई संज्ञान लिया है. परिणाम स्वरूप 30 दिन से ज्यादा हो जाने के बावजूद राजभवन में आरक्षण विधेयक धूल खा रहा है और प्रदेश में आदिवासी समाज में इसको लेकर के राज्यपाल अनुसुइया उइके के विरोध में अब आवाजें उठने लगी हैं और राजभवन को घेरने भी घटना भी घटित हो चुकी है.

सरकार और राजभवन अब खुलकर आमने- सामने

विधानसभा के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही शुरू होते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्यपाल अनुसूईया उइके पर खुलकर हमला किया. आरक्षण विधेयक पर मचे घमासान के बीच उन्होंने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री ने लिखा-“अगर ये तुम्हारी चुनौती है तो मुझे स्वीकार है, लेकिन तुम्हारे लड़ने के तरीके पर धिक्कार है.”

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल यहीं नहीं रुके. उन्होंने लिखा-” सनद रहे ! – भले ‘संस्थान’ तुम्हारा हथियार हैं, लड़कर जीतेंगे! वो भीख नहीं आधिकार है। फिर भी एक निवेदन स्वीकार करो-कायरों की तरह न तुम छिपकर वार करो, राज्यपाल पद की गरिमा मत तार-तार करो.” ‌ एक दिन पहले कांग्रेस ने रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में जन अधिकार महारैली का आयोजन किया जिसमें पचास हजार से ज्यादा कांग्रेसियों ने भागीदारी की और यह संदेश दिया कि राजभवन और भारतीय जनता पार्टी जो कर रही है वह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा-, छत्तीसगढ़ में दो-चार बंधुआ लोगों को छोड़कर सभी लोग आरक्षण विधेयक का समर्थन कर रहे हैं. राज्यपाल ने उस विधेयक को रोक रखा है.” मुख्यमंत्री ने आगे कहा, -”

मैने पहले भी आग्रह किया है, फिर कर रहा हूं कि राज्यपाल हठधर्मिता छोड़ें. या तो वे विधेयक पर दस्तखत करें या फिर उसे विधानसभा को लौटा दें. राज्यपाल न विधेयकों पर दस्तखत कर रही हैं और न विधानसभा को लौटा रही हैं, सवाल सरकार से कर रही हैं. मुख्यमंत्री ने रैली में कहा था, उच्च न्यायालय के एक फैसले की वजह से छत्तीसगढ़ में आरक्षण खत्म हो चुका है. भाजपा का आरक्षण विरोधी चरित्र है वह नहीं चाहती है कि अनुसूचित जनजाति को आरक्षण मिले. इसी वजह से केंद्र सरकार 14 लाख पद खाली होने के बाद भी नई भर्ती नहीं कर रही है. सार्वजनिक उपक्रमों को बेचा जा रहा है ताकि आरक्षण का लाभ न देना पड़े. छत्तीसगढ़ सरकार लोगों को नौकरी देना चाहती है.”
यहां यह भी बताते चलें कि अनुसुइया उइके स्वयं अनुसूचित जनजाति से हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री बघेल के समक्ष पहले पहल की थी कि अगर आरक्षण पर विधेयक सरकार लाएगी तो वह तत्काल हस्ताक्षर कर देंगी .
इस संपूर्ण वाद विवाद में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि राज्यपाल अनुसूया सरकार से लगातार प्रश्न कर रही है आरक्षण के परीक्षण की बात कर रही हैं जबकि विधि विशेषज्ञों का मानना है कि या उनके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है.
मुख्यमंत्री ने जन अधिकार महारैली में कहा था, मंत्रिमंडल राज्यपाल को सलाह देने के लिए होता है. लेकिन विधानसभा उन्हें सलाह देने के लिए नही है. मंत्रिमंडल सलाह देगी, जो जानकारी मांगेंगी वह देंगे, लेकिन जो संपत्ति विधानसभा की है उसका है जवाब सरकार नहीं देती. इसकी वजह है कि विधायिका का काम अलग है, कार्यपालिका का काम अलग है. कुल मिलाकर के आने वाले समय में यह मामला और भी गर्माहट भरा होगा.

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