क्या इस खुलासे के बाद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं?

विरोधियों के निशाने पर रहने वाले केजरीवाल ने यों तो दिल्ली में कई साहसिक घोषणाएं की हैं और उसे लागू भी कराया है. स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली और पानी की मुफ्त योजनाओं को लागू कर वाहवाही बटोरने वाली केजरीवाल सरकार अब अपने ही स्वास्थ्य मंत्री द्वारा जारी एक रिपोर्ट में घिरती नजर आ रही है.
दरअसल, मुख्य विपक्षी पार्टी के एक विधायक ने केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री से एक रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी. इस रिपोर्ट के अनुसार जो हकीकत सामने आया है वह काफी चौंकाने वाला है.

सिर्फ घोषणा ही बन कर रह गई

दरअसल, 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के वाद केजरीवाल ने घोषणा की थी कि दिल्ली के अस्पतालों में बेड की क्षमता 10 हजार से बढा कर 20 हजार करेंगे. मगर रिपोर्ट के अनुसार केजरीवाल सरकार इस लक्ष्य को पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रही है.
दिल्ली विधानसभा में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सत्ता में आने से पहले दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में 10,969 स्वीकृत बेड थे जबकि 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में 11,353 बेड ही सरकारी अस्पतालों में हैं. यानी इस दौरान महज 394 बेड ही सरकार बढा पाई.

वैंटिलेटर्स भी पर्याप्त नहीं

एक सवाल का जवाब देते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने दिल्ली में वैंटिलेटर की वर्तमान स्थिति पर भी स्थिति साफ की और कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में 440 वैंटिलेटर्स हैं जिन में से मात्र 396 वैंटिलेटर्स ही ऐक्टिव हैं. आश्चर्य की बात तो यह कि पूरी दिल्ली में सिर्फ लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में ही एमआरआई की सुविधा है.

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घिरती नजर आ रही है सरकार

दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के इस खुलासे से दिल्ली सरकार खुद ही घिरती नजर आ रही है.
प्रमुख विपक्षी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की स्वास्थ्य योजनाओं को जनता के साथ छलावा बताया और कहा कि जिस सरकार की महात्वाकांक्षी योजना स्वास्थ्य सेवाओं को ले कर थी और जिन्होंने स्वास्थ्य सेवा को ले कर बङीबङी घोषणाएं की थीं, उस का पोल खुद सरकार के मंत्री ने खोल दी हैं.

नए प्रोजैक्ट की रफ्तार भी बेहद धीमी

उधर, दिल्ली सरकार द्वारा 3 नए सरकारी अस्पतालों के निर्माण की वर्तमान स्थिति पर भी सरकार ने जो रिपोर्ट दी है वह भी काफी निराशाजनक है. दिल्ली सरकार ने जानकारी दी कि दिल्ली में 3 नए सरकारी अस्पतालों के प्रोजैक्ट पर काम चल रहा है.
जबकि हकीकत तो यह है कि अंबेडकर नगर अस्पताल का निर्माण कार्य फरवरी, 2019 में होना था, जिस का लक्ष्य अब नवंबर, 2019 रखा गया है.
बुराङी अस्पताल प्रोजैक्ट पूरा होने का समय मार्च, 2019 था जो नवंबर, 2019 कर दिया गया है.
इंदिरा गांधी अस्पताल का प्रोजैक्ट तो इतना सुस्त है कि इसे मार्च 2019 में ही पूरा होना था, जिसे बढा कर मार्च, 2020 कर दिया गया है.
जाहिर है, इस मुद्दे को ले कर अब विपक्षी पार्टियां केजरीवाल सरकार को घेरने का काम करेगी जिस का जवाब खुद दिल्ली सरकार को देना भी भारी पङेगा.

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वाहवाही बटोर चुकी है सरकार

मगर सचाई यह भी है कि कुछ योजनाओं को लागू कर दिल्ली सरकार ने न सिर्फ दिल्ली में बल्कि विदेशों में भी वाहवाही बटोर चुकी है. सरकार की महात्वाकांक्षी योजनाएं मोहल्ला क्लीनिक और महिलाओं को मुफ्त मैट्रो में यात्रा कराने को ले कर सरकार की प्रशंसा पहले ही की जा चुकी है.

 

अजीत-माया गठबंधन: अगर “हम साथ साथ” होते!

छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के रूप में उभर कर राज्य की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का टूट कर बिखर चुका है . प्रदेश की राजनीति को अपनी उंगलियों पर कठपुतली की भांति नचाने का गुरूर अजीत जोगी की आंखों में, बौडी लैंग्वेज में अब दिखाई नहीं देता…इन दिनों आप प्रदेश की राजनीति मैं हाशिए पर है .

मगर जब अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आलाकमान के सामने खम ठोंक कर जनता कांग्रेस ( जे ) का गठन किया था तब उनके पंख आकाश की ऊंचाई को छूने बेताब थे . यही कारण है कि अजीत जोगी के विशाल कद को देखकर बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने उनसे हाथ मिलाया और कांग्रेस के खिलाफ दोनों ने मिलकर छत्तीसगढ़ में अपनी अलग जमीन तैयार करने की कोशिश की जो असफल हो गई . अजीत जोगी के सामने 2018 का विधानसभा चुनाव नई आशा की किरणों को लेकर आया था . राजनीतिक प्रेक्षक यह मानने से गुरेज नहीं करते की अजीत जोगी जहां से खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से प्रारंभ होती है . मगर विधानसभा चुनाव के परिणामों ने अजीत जोगी और मायावती दोनों पर मानो “पाला” गिरा दिया. दोनों चुनाव परिणाम से सन्न, भौचक रह गए और अंततः यह गठबंधन आज टूट कर बिखर गया है .

अजीत जोगी : अकेले हम अकेले तुम
विधानसभा चुनाव के परिणाम के पश्चात अजीत जोगी और मायावती की राह जुदा हो गई . यह तो होना ही था क्योंकि अजीत जोगी और मायावती दोनों ही अति महत्वाकांक्षी राजनीतिज्ञ हैं . साथ ही जमीन पर पुख्ताई से पांव रखकर आगे बढ़ने वाले राजनेता भी माने जाते हैं. विधानसभा चुनाव में इलेक्शन गेम में अजीत जोगी ने कोई कमी नहीं की थी. यह आज विरोधी भी मानते हैं उन्होंने अपने फ्रंट को तीसरी ताकत बनाया उन्होंने जनता के नब्ज पर हाथ भी रखा था . संपूर्ण कयास यही लगाए जा रहे थे कि अजीत जोगी के बगैर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हवाओं में पत्ते भी नहीं हिलेंगे.
अगर कांग्रेस को दो चार सीटें कम पड़े तो अजीत जोगी साथ देंगे अगर भाजपा को दो चार सीटे कम मिली तो अजीत जोगी कठिन डगर में साथ देंने हाजिर हो जाएंगे . मगर प्रारब्ध किसको पता है ? छत्तीसगढ़ में अनुमानों को तोड़ते ढहाते हुए छत्तीसगढ़ की आवाम ने कांग्रेस को ऐतिहासिक 68 सीटों पर विजय दिलाई और सारे सारे ख्वाब, सारे मंसूबे चाहे वे अजीत जोगी के हो या मायावती के ध्वस्त हो गए .

अगर “हम साथ साथ होते” !
मायावती ने निसंदेह जल्दी बाजी की और छत्तीसगढ़ की राजनीति में अजीत जोगी और अपनी पार्टी के लिए स्वयं गड्ढा खोदा . विधानसभा चुनाव के अनुभव अगरचे मायावती और अजीत जोगी देश की 17 वीं लोकसभा समर में साथ होते तो कम से कम दो सीटें प्राप्त कर सकते थे . विधानसभा चुनाव में बिलासपुर संभाग की तीन लोकसभा सीटों पर इस गठबंधन को बेहतरीन प्रतिसाद साथ मिला था . और यह माना जा रहा था कि बिलासपुर और कोरबा लोकसभा सीट पर बसपा और जोगी कांग्रेस कब्जा कर सकते हैं . इसके अलावा तीसरी सीट जांजगीर लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक के साथ अच्छी बढ़त मिली जिससे यह माना जा रहा था कि यह गठबंधन बड़ी आसानी से यह लोकसभा सीट पर पताका फहरा सकता है . मगर बहन मायावती ने भाई अजीत जोगी जैसे मजबूत खंबे पर विश्वास नहीं किया और अपने प्रत्याशियों को मैदान-ए-जंग में उतारा . अजीत जोगी मन मसोस कर रह गए .

लोकसभा में दोनों की साख बढ़ती
यहां यह बताना आवश्यक है कि अजीत जोगी और मायावती की पार्टियों को विधानसभा चुनाव में आशा के अनुरूप भले ही परिणाम नहीं मिले मगर यह मोर्चा तीसरे मोर्चे के विरुद्ध समर्पित हो गया अजीत जोगी को 5 सीटें मिली और मायावती को सिर्फ दो विधान सभा क्षेत्रों मैं सफलता मिली . संभवत: इसी परिणाम से मायावती नाराज हो गई . क्योंकि छत्तीसगढ़ में बसपा को 2 से 3 सीटों पर तो विजयश्री मिलती ही रही है . ऐसे में यह आकलन की अजीत जोगी से गठबंधन का कोई लाभ नहीं मिला तो सौ फीसदी सही है मगर इसके कारणों का भी पार्टी को चिंतन करना चाहिए था जो नहीं किया गया और लोकसभा में अपनी-अपनी अलग डगर पकड़ ली गई जो भाजपा और कांग्रेस के लिए मुफीद रही .
लोकसभा समर में बसपा को कभी भी एक सीट भी नहीं मिली है अगरचे यह गठबंधन मैदान में होता तो बसपा आसानी से एक सीट पर विजय होती . यह क्षेत्र है जांजगीर लोकसभा का . मगर बसपा ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली भाजपा के नये चेहरे की राह आसान कर दी . दूसरी तरफ जोगी और उनकी पार्टी का भविष्य भी अंधकारमय हो चला .

नगरीय-निकाय चुनाव में क्या होगा ?
अजीत जोगी ने विधानसभा चुनाव में हाशिए पर जाते ही पार्टी की कमान अपने सुपुत्र अमित ऐश्वर्य जोगी को सौंप दी है . प्रदेश में वे अपना मोर्चा खोलकर आए दिन रूपेश सरकार की नाक में दम किए हुए हैं . अपने हौसले की उड़ान से अमित जोगी ने यह संदेश दिया है कि वे आने वाले समय में एक बड़ी चुनौती भाजपा और कांग्रेस के लिए बनेंगे . उन्होंने अकेले दम पर नगरीय चुनाव पंचायती चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है . इधर बीएसपी ने भी अपने बूते चुनाव लड़ने की घोषणा की है मगर बीएसपी नगरीय चुनाव में कभी भी अपना एक भी महापौर जीता पाने में सफलीभूत नहीं हुई है .

यह तथ्य समझने लायक है कि अजीत जोगी और मायावती की युती छत्तीसगढ़ में बड़े गुल खिला सकती थी. अजीत जोगी की रणनीति और घोषणा पत्र को कांग्रेस ने कापी करना शुरू किया और अपने बड़े संगठनिक ढांचे के कारण कांग्रेस आगे निकल गई अन्यथा अजीत जोगी के 2500 रुपए क्विंटल धान खरीदी और बिजली बिल हाफ फार्मूला को अगर कांग्रेस नहीं चुराती तो जोगी और बसपा की स्थिति आश्चर्यजनक गुल खिला सकती थी . राजनीति में संभावनाओं के द्वार खुले रहते हैं ऐसे में भविष्य में क्या होगा यह आप अनुमान लगा सकते हैं.

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