मोहब्बत से नफरत

धर्म के नाम पर प्रेम का गला किस तरह घोंटा जा रहा है, उस का एक एक्जांपल दिल्ली के पास नोएडा में मिला. एक युवती की दोस्ती जिम मालिक से हुई और दोनों में प्रेम पनपने लगा. लड़की की शिकायत है कि उस ने अपना नाम ऐसा बताया जिस से धर्म का पता नहीं चलता था पर वह सच बोल रही है, यह मुश्किल है. जिस से प्रेम होता है उस की बहुत सी बातें पता चल जाती हैं खासतौर पर जब उस के घर तक जाना हो जाए.

अगर युवतियां इतनी अंधी हों कि जिस के फ्लैट में अकेले जा रही हैं, उस का आगापीछा उन्हें नहीं मालूम तो उस से कोई हमदर्दी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में युवती ने बाद में जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश और शादी का ?ांसा दे कर रेप करने का चार्ज लगा कर लड़के को गिरफ्तार करा दिया.

पूरा मामला संदेह के घेरे में लगता है. यह तो हो ही सकता है कि जब लड़की के घरवालों को पता चले कि लड़का पैसे वाला जिम मालिक है पर मुसलमान है तो उन्हें बिरादरी से आपत्तियां मिलने लगें. जिस तरह का हिंदूमुसलिम माहौल आज बना दिया गया है, उस से लड़केलड़कियों को चाहे फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन दोनों के रिश्तेदारों को अवश्य पड़ता है.

आजकल कानून भी ऐसे बना दिए गए हैं कि हिंदूमुसलिम की शादी, जो सिर्फ स्पैशल मैरिज एक्ट में हो सकती है, में मजिस्ट्रेट ही हजार औब्जैक्शन लगा देता है. लड़केलड़की को कई अवसरों में नो औब्जैक्शन सर्टिफिकेट लाने पड़ेंगे जो बिना परिवार की सहायता से मिलने असंभव हैं.

उत्तर प्रदेश तो हिंदूमुसलिम विवाह पर बहुत ही नाकभौं चढ़ाता है. मुसलिम मौलवी भी इस तरह की शादी नहीं  चाहते क्योंकि वे भी चाहते हैं कि शादी में उन का कमीशन  बना रहे.

नए युवा समाज, परिवार व कानून के दबाव को नहीं ?ोल पाते. दोनों के रिश्तेदारों को धमकियां दी जाने लगती हैं. पुलिस दोनों तरफ के रिश्तेदारों को गिरफ्तार करने की बात करने लगती है. बुलडोजर तो है ही जो शादी के सपनों को एक ही ?ापट्टे में तोड़ सकता है.

प्रेम हिंदूमुसलिम दोनों के धर्मों के ठेकेदारों को नहीं भाता. वे चाहते हैं कि शादियां तो धर्म के बिचौलियों से ही तय हों ताकि जिंदगीभर उन्हें घर से कुछ न कुछ मिलता रहे. स्पैशल मैरिज एक्ट में हुई शादी के बच्चों का कोई धर्म नहीं रह जाता है और यह धर्म को कैसे मंजूर होगा. इसलिए वे प्रेम ही नहीं चाहते और शादी पर धर्मांतरण का शिगूफा छेड़ देते हैं.

गरीब का होता है शिकार, अमीर का नहीं

पूरा देश गांव वालों और गरीबों को कोसता रहता है कि वे जहां चाहे पैंट खोल कर पेशाब कर देते हैं. गनीमत है कि अब अमीरों की पोल खोल रही है. एक शंकर मिश्रा जी बिजनैस क्लास का मंहगा टिकट लेकर न्यूयौर्क से 26 नवंबर को दिल्ली एयर इंडिया की फ्लाइट में आ रहे थे. उन्होंने इतनी पी रखी थी कि उन्हें होश नहीं था कि क्या कर रहे हैं. उन के बराबर बैठी एक महिला को शायद उन्होंने गली की टीकर समझ कर उस पर पैंट खोल कर मूत दिया. ऐसा काम जो अगर गरीब या गांव वाले कर देते तो तुरंत उस की मारपिटाई शुरू हो जाती पर ये ठहरे मिश्रा जी, इन्हें कौन कुछ कहेगा.

जब मामला जनवरी के पहले सप्ताह में शिकायत करने पर सामने आया तो इस महान उच्चकोटि में जन्म लेने वाले, एक विदेशी कंपनी में काम करने वाले की खोज हुई. वरना एयरलाइंस ने इस मामले को रफादफा कर दिया क्योंकि इस से जगदगुरू भारत की और एयर इंडिया कंपनी की बेइज्जती होती.

मामला खुलने के कई दिन बाद तक इस मिश्रा जी को पकड़ा नहीं जा सका. उस के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने दिल्ली में कुछ मामले दर्ज किए हैं पर पक्का है कि गवाहों के अभाव में वह कुछ साल में छूट जाएंगे और देश की दीवारों पर गरीबों के लिए लिखता रहेगा कि यहां पेशाब करना मना है, जुर्म है.

मर्जी से जहां भी पेशाब करना और जहां भी जितना भी मीना शायद यह भी उच्चकोटि में जन्म लेने से मिलने वाले देशों में से एक है. घरों की दीवारों पर कोई भंगी पेशाब तो छोडि़ए थूक भी दे हंगामें खड़े हो जाते हैं पर ऊंचे लोग जो भी चाहे कर ले, उन के लिए अलग कानून हैं. ये अलग कानून किताबों में नहीं लिखे, संविधान में नहीं है पर हर पुलिस वाले के मन में है, हर बेचारी औरत के मन में हैं, पुलिस वालों के मन में हैं और जजों के मन में लिखे हुए हैं.

गरीबों के मकान ढहा दो, गांवों की जमीन सस्ते में सरकार खरीद ले, सरकार किसान से ट्रेक्टर, खाद, डीजल पर जम कर टैक्स ले पर उस की फसल का उसे सही कीमत न दे या ऐसा माहौल बना दे कि प्राइवेट व्यापारी भी न दे. यह मंजूर है.

भारत की गंदगी के लिए ऊंची जातियां ज्यादा जिम्मेदार है क्योंकि जब वे कूड़ा घरों या फैक्ट्रियों से निकालती है तो ङ्क्षचता नहीं करती कि कौन कैसे उन्हें निपटाएगा और उस का हाल क्या होगा. उन ेे लिए तो सफाई वाले दलित, किसान, मजदूर और हर जाति की औरतें एक बराबर है. शंकर मिश्रा को तलब लगी होती तो भी वह किसी पुरुष पर पेशाब नहीं करते. एक प्रौढ़ औरत को उन के छिपीदबी ऊंची भावना ने नीच मान रखा है और उस पर पेशाब कर डाला.

अब देश की सारी दीवारों से यहां पेशाब करना मना है. मिटा देना चाहिए और अगर लगता है तो एयर इंडिया की फ्लाइटों में लगाएं और औरत पैसेंजरों को पेशाब…..मिट दें जैसे कोविड के दिनों में दिया गया था. ऊंची जातियों वाला का राज आज जोरों पर है. ऐसे मामले और कहां हो रहे होंगे पर खबर नहीं बन रहे क्या पता. यह भी तो डेढ़ महीने बाद सामने आया.

राजनीति में अकेली ताकतवर नहीं मोदी सरकार

गुजरात व हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं केदिल्ली की म्यूनिसिपल कमेटी केउत्तर प्रदेशबिहार व ओडिशा के उपचुनावों से एक बात साफ है कि न तो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कोई बड़ा माहौल बना है और न ही भारतीय जनता पार्टी इस देश की अकेली राजनीतिक ताकत है. जो सोचते हैं कि मोदी है तो जहां है वे भी गलत हैं और जो सोचते हैं कि धर्म से ज्यादा महंगाईबेरोजगारीहिंदूमुसलिम खाई से जनता परेशान हैवे भी गलत हैं.

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सीटें बढ़ा लीं क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में वोट बंट गए. गुजरात की जनता का बड़ा हिस्सा अगर भाजपा से नाराज है तो भी उसे सुस्त कांग्रेस औैर बड़बोली आम आदमी पार्टी में पूरी तरह भरोसा नहीं हुआ. गुजरात में वोट बंटने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को जम कर हुआ और उम्मीद करनी चाहिए कि नरेंद्र मोदी की दिल्ली की सरकार अब तोहफे की शक्ल में अरविंद केजरीवाल को दिल्ली राज्य सरकार और म्यूनिसिपल कमेटी चलाने में रोकटोक कम कर देगी. उपराज्यपाल के मारफत केंद्र सरकार लगातार अरविंद केजरीवाल को कीलें चुभाती रहती है.

कांग्रेस का कुछ होगायह नहीं कहा जा सकता. गुजरात में हार धक्का है पर हिमाचल प्रदेश की अच्छी जीत एक मैडल है. हांयह जरूर लग रहा है कि जो लोग भारत को धर्मजाति और बोली पर तोड़ने में लगे हैंवे अभी चुप नहीं हुए हैं और राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा’ में मिलते प्यार और साथ से उन्हें कोईर् फर्क नहीं पड़ता.

देशों को चलाने के लिए आज ऐसे लोग चाहिए जो हर जने को सही मौका दें और हर नागरिक को बराबर का सम?ों. जो सरकार हर काम में भेदभाव करे और हर फैसले में धर्म या जाति का पहलू छिपा होवह चुनाव भले जीत जाएअपने लोगों का भला नहीं कर सकती. धर्म पर टिकी सरकारें मंदिरोंचर्चों को बनवा सकती हैं पर नौकरियां नहीं दे सकतीं. आज भारत के लाखों युवा पढ़ने और नौकरी करने दूसरे देशों में जा रहे हैं और विश्वगुरु का दावा करने वाली सरकार के दौरान यह गिनती बढ़ती जा रही है. यहां विश्वगुरु नहींविश्वसेवक बनाए जा रहे हैं. भारतीय युवा दूसरे देशों में जा कर वे काम करते हैं जो यहां करने पर उन्हें धर्म और जाति से बाहर निकाल दिया जाए.

अफसोस यह है कि भाजपा सरकार का यह चुनावी मुद्दा था ही नहीं. सरकार तो मानअपमानधर्मजातिमंदिर की बात करती रही और कम से कम गुजरात में तो जीत गई.

देश में तरक्की हो रही है तो उन मेहनती लोगों की वजह से जो खेतों और कारखानों में काम कर रहे हैं और गंदी बस्तियों में जानवरों की तरह रह रहे हैं. देश में किसानों के मकान और जीवन स्तर हो या मजदूरों का उस की चिंता किसी को नहींक्योंकि ऐसी सरकारें चुनी जा रही हैं जो इन बातों को नजरअंदाज कर के धर्म का ढोल पीट कर वोट पा जाती हैं.

ये चुनाव आगे सरकारों को कोई सबक सिखाएंगेइस की कोई उम्मीद न करें. हर पार्टी अपनी सरकार वैसे ही चलाएगीजैसी उस से चलती है. मुश्किल है कि आम आदमी को सरकार पर कुछ ज्यादा भरोसा है कि वह अपने टूटफूट के फैसलों से सब ठीक कर देगी. उसे लगता है कि तोड़जोड़ कर बनाई गई महाराष्ट्रकर्नाटकगोवामध्य प्रदेश जैसी सरकारें भी ठीक हैं. चुनावों में तोड़फोड़ की कोई सजा पार्टी को नहीं मिलती. नतीजा साफ है. जनता को सुनहरे दिनों को भूल जाना चाहिए. यहां तो हमेशा धुंधला माहौल रहेगा.

अंधविश्वास की राजनीति आखिर कबतक

देसी चुनावों में जीत पा जाना कोई कमाल की बात नहीं है खासतौर पर जब यह पैसा देने को भी तैयार हो और भक्तों का चलाया जा रहा मीडिया लोगों को पाखंडी और अंधविश्वासी के साथ राज्य की भक्ति भी सिखा रहा. नेता की ताकत तो तब दिखती है जब दूसरे देश उस की सुनते हों, उसे नाराज करने की हिम्मत न करते हों.

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होने की वजह से बारीबारी से मिलने वाली जी-20, बड़े 20 देशों की संस्था के अध्यक्ष बने हैं पर उन के अध्यक्ष की कुर्सी लेने के कुछ दिन बाद ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ शुरू कर दी यही नहीं, मुसलिम देशों के संगठन औगैंनाइजेशन औफ इस्लामिक कंट्रीज के महासचिव ने भारत के कश्मीर के उस हिस्से का दौरा कर लिया जो पाकिस्तान ने 1947 से जबरन दबोच रखा है.

अच्छा नेता वह होता है जिस का खौफ न हो तो कम से कम इज्जत हो कि उसे अपने देश में नीचा देखने की जरूरत न पड़े. पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर घूमने जाने से या अरुणाचल प्रदेश में घुस जाने से भारत टूटने नहीं वाला, न उसे…..है पर यह सवाल जरूर कर सकता है कि जब केंद्र में दिल्ली में बैठी सरकार इतनी मजबूत है तो ऐसा हो ही क्यों रहा है.

अपने देश में अपने बलबूते पर चुनाव जीतना किसी देश के नेता के लिए काफी नहीं है. हर देश का नेता चुनाव जीत कर या लड़ कर जीत कर ही नेता बनता है. बड़ा नेता वह होता है जिस की सब की इज्जत करें. जवाहरलाल नेहरू ने 1962 में धोखा खाया था. उन्हें लगा कि महात्मा गांधी के शिष्य होने की वजह से उन्हें दुनिया भर में इज्जत मिलेगी और चाहे चुनाव उन्होंने जीते हो, बेहद लोकप्रिय रहे हो. कानून मानने वाले रहे हों, माओ त्से तुंग के चीन ने. 1862 में हमला कर के मोहभंग कर दिया.

आज भारत ऐसे मोड़ पर बैठा है जहां अपनी गिनती की वजह से, सस्ती मजदूरी की वजह से, बड़ा देश होने की वजह से, सडक़ों, हवाई अड्डों, रेलों के जाल की वजह से वह दुनिया के किसी भी देश से बढ़ कर बन सकता है. पर हो क्या हो रहा है. एक चीन और इस्लामिक देश अपने तेवर दिखा रहे है और दूसरी तरफ भारतीय मजदूर कोठियों में नौकरियां करने के लिए खुद को गुलाम बना कर दुनिया भर में घटिया काम करने के लिए जा रहे हैं. हमारा हाल तो यह है कि हमारे पढ़ेलिखे ही पढऩे के लिए बाहर जा रहे हैं. देश में अमनचैन की बात की जाती है पर हर साल 2 लाख ङ्क्षहदुस्तानी अपनी नागरिकता छोड़ कर दूसरे देश की नागरिकता अपना लेते हैं.

देश को चलाने के बैलेट या बुलेट की नहीं, सही बैल्ट वाली नीतियों की जरूरत है जो हमारी खिसकती फटी पैंट को रोक सके. देश बाहरी खतरों से ज्यादा तो अदरुनी खतरों से परेशान है और इसीलिए बाहर वाले शेर हो रहे हैं.

कांग्रेसी एकजुटता के सुरीले सुर

यह दर्द था हिमाचल प्रदेश के एक आम आदमी और प्रतिभा सिंह खेमे के कार्यकर्ता का. पर सवाल उठता है कि आखिर जिन वीरभद्र सिंह के नाम पर कांग्रेस ने खूब चुनाव प्रसार किया, उन के परिवार में से किसी को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया?

कांग्रेस के लिहाज से हिमाचल प्रदेश में सत्ता पर काबिज होना देश की राजनीति के लिए सुखद संकेत है. भले ही हम राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का फिलहाल कोई सीधा असर नहीं देख रहे हैं, पर उन की मेहनत अब कदम दर कदम रफ्तार पकड़ रही है. साथ ही, कांग्रेस अब एकजुट होती दिखाई दे रही है.

यही वजह है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू के हिमाचल प्रदेश के नए मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सचिन पायलट, राजीव शुक्ला समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता शामिल हुए.

इस एकता के कई सियासी माने हैं, जैसे कांग्रेस पहले की तुलना में भले ही कमजोर दिखती है, पर जनता ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सिरे से खारिज कर के बता दिया है कि कांग्रेसी तिलों में अभी काफी तेल बाकी है.

इसी एकता का नतीजा है कि दिल्ली कांग्रेस इकाई के उपाध्यक्ष अली मेहंदी, जो हाल ही में 2 नवनिर्वाचित पार्षदों के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे, कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस से माफी मांगते हुए वापस पार्टी में शामिल होने की जानकारी दी.

अली मेहंदी ने इस दौरान कहा, ‘‘मैं कांग्रेस में था, कांग्रेस में हूं और रहूंगा… मैं हमेशा राहुल गांधी का कार्यकर्ता बन कर रहूंगा.’’

दूसरी ओर अगर हिमाचल प्रदेश के कांग्रेसी घमासान पर नजर डालें, तो प्रदेश के 6 बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह और उन के समर्थकों द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए होहल्ला मचाने के बावजूद अगर आलाकमान ने अपना कड़ा रुख बनाए रखा, तो इस की सब से बड़ी वजह यह रही कि कांग्रेस परिवारवाद के आरोप से उबरना चाहती है.

प्रतिभा सिंह के पति वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे. उन के बेटे भी विधायक हैं और खुद प्रतिभा सिंह सांसद हैं. ऐसे में अगर प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री या विक्रमादित्य को उपमुख्यमंत्री बनाया जाता तो एक बार फिर से कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता. पर मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी

ने सख्ती दिखाई और प्रतिभा सिंह के बागी तेवरों के बावजूद उन की दाल नहीं गलने दी.

अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो मैनपुरी लोकसभा सीट पर पिछले दिनों हुए उपचुनाव में पार्टी की उम्मीदवार डिंपल यादव ने अपने भारतीय जनता पार्टी के रघुराज सिंह शाक्य को 2 लाख, 88 हजार, 461 वोटों के फर्क से हरा दिया था. जब डिंपल यादव ने लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ ली, तब उन्होंने सोनिया गांधी के पैर छू कर आशीर्वाद लिया.

इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उसी दौरान पत्रकारों से बात करते हुए इशारा किया कि साल 2024 के चुनाव के लिए विपक्ष एकजुट होगा. विपक्षी दल साल 2024 से पहले साथ आएंगे. नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर सभी इस की कोशिश कर रहे हैं. विपक्ष की एकता और डिंपल यादव का सोनिया गांधी के पैर छूना भारतीय राजनीति के लिए नया संकेत है.

हाल के दिनों में कांग्रेस की बांछें खिलने की एक अहम वजह यह भी है कि इन दिनों पार्टी सोशल प्लेटफार्म पर बदलीबदली नजर आ रही है. राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के ट्वीट और हैशटैग चुटीले हो चले हैं और अकसर ट्रैंड भी करते हैं. इस का असर पार्टी और राहुल गांधी के फौलोअर्स की तादाद पर भी साफ देखा जा सकता है.

अगर ऐसा ही रहा, तो साल 2023 में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की एकजुटता को नया बल मिल सकता है और यह भारतीय जनता पार्टी के साथसाथ तमाम छोटे क्षेत्रीय दलों के लिए खतरे की घंटी है.

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