सास और बहू की शानदार दोस्ती

दीपा की शादी जब प्रताप के साथ हुई थी, तब वह बीएड की पढ़ाई कर रही थी. शादी के बाद दीपा ने टीचर की नौकरी के लिए कई बार इम्तिहान दिया, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. इस बात से दीपा का हौसला टूट रहा था. उस ने नौकरी की उम्मीद छोड़ कर इवैंट मैनेंजमैंट का काम शुरू कर दिया.

दीपा का पति एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता था. घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी, क्योंकि प्रताप के मातापिता यानी दीपा के सासससुर भी सरकारी नौकरी में थे.

दीपा की सास रंजना लखनऊ के एक महिला कालेज में नौकरी करती थीं, जबकि ससुर रमेश बैंक में नौकरी करते थे. दीपा उन की एकलौती बहू थी.

दीपा की सास चाहती थीं कि बहू खुश रहे और वह भी नौकरी करे. उन्होंने दीपा को नैट के इम्तिहान की तैयारी करने को कहा. उन के अपने अनुभव और मार्गदर्शन के चलते दीपा ने नैट क्वालिफाई कर लिया.

इस के एक साल के बाद इंटर कालेज में वेकैंसी निकली, तो दीपा ने भी नौकरी का फार्म भरा. इस बार उसे कामयाबी हाथ लग गई.

दीपा भी सरकारी कालेज में टीचर की नौकरी करने लगी. इस बीच दीपा को बेटा हुआ. दीपा की सास जैसे अपने स्कूल के बच्चों और स्टाफ को मैनेज करती थीं, वैसे ही घर को भी मैनेज करती थीं. दीपा भी सास के साथ मिल कर अपना घर और नौकरी संभाल रही थी.

दीपा जैसी कहानी रेखा की भी है. रेखा शादी के बाद ससुराल आई, तो उस की सास भी बैंक में नौकरी करती थीं. रेखा का पति बाहर नौकरी करता था.

रेखा की सास ने उसे टीचर बनने के लिए कहना शुरू किया. उन का सोचना था कि टीचर बन कर बहू अपने घर पर रहेगी और फिर बेटा भी वापस घर आ जाएगा.

सास की कोशिश ने रेखा को आगे बढ़ने के लिए तैयार किया. उसे भी स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई. रेखा के ससुर भी टीचर थे. सास बैंक में थीं और बेटा प्राइवेट दवा कंपनी में मुंबई में नौकरी करता था.

रेखा की सास कहती हैं, ‘‘बेटा बाहर नौकरी करने जाता है, तो वह वापस घर आ जाता है. जब बहू साथ जाती है, तो उन के घर वापस लौटने की उम्मीद कम हो जाती है. इस वजह से मैं सोचती थी कि जैसे मैं अपने शहर में रह कर नौकरी करती हूं, वैसे ही मेरी बहू भी करे.’’

सासबहू में ?ि?ाक नहीं

जब घर की औरतें अपने पैरों पर खड़ी होती हैं, तो उन के बीच आपस में कई तरह के ?ागड़े नहीं होते हैं. घर के फैसले मिलबांट कर ले लिए जाते हैं.

दीपा कहती है, ‘‘मेरे घर के फैसले लेने में मेरे पति या ससुर अपनी राय देते हैं. बाकी वे कह देते हैं कि जैसा करना है, तुम दोनों सोच लो.

‘‘जब मैं जिस जिम में जाती हूं,

तो अपनी सास को भी ले जाती हूं. हम दोनों ब्यूटीपार्लर भी साथ जाती हैं और कोशिश करती हैं कि एक के साथ एक मुफ्त वाला कोई औफर मिल जाए.

‘‘बाहर कोई भी हमें देख कर यह सम?ा ही नहीं पाता कि हम सासबहू हैं. कई बार हम दोस्तों की तरह हंसीमजाक करने में भी कोई परहेज नहीं करती हैं.

‘‘मेरे लिए मेरी सास गाइड भी हैं और मेरी ताकत भी हैं. मुझे लगता है

कि जिस तरह से सासबहू के रिश्ते बदल रहे हैं, वह समाज के लिए एक शानदार पहल है.’’

सुखदुख की साथी

रेखा कहती है, ‘‘मेरी सास को छाती में गांठ थी. एक दिन उन्होंने मु?ो वह गांठ दिखाई. उस में दर्द नहीं था. इस वजह से उन्हें कोई चिंता नहीं थी.

‘‘मैं ने जब देखा तो उन्हें सम?ाया कि हम लोग माहिर डाक्टर से मिल लेते हैं, तो पहले तो वे तैयार नहीं हो रही थीं, फिर मैं ने उन्हें डाक्टर के ब्रैस्ट केयर को ले कर कुछ वीडियो दिखाए, तब जा कर वे तैयार हुईं.

‘‘डाक्टर ने देखा, कुछ जांचें कराईं, तो पता चला कि वह कैंसर वाली गांठ थी. हम लोग बिना देरी किए उन्हें मुंबई के टाटा अस्पताल ले गए. 3 महीने का समय लगा. हम ने छुट्टी ले ली थी. वहां इलाज चला. वे अब पूरी तरह से ठीक हैं. हम समयसमय पर चैकअप के लिए जाते हैं.

‘‘डाक्टर ने मेरी सास से कहा कि अगर आप 2-3 महीने की और देर करतीं, तो आप की ब्रैस्ट निकाल देनी पड़ती. जल्दी आने से केवल छोटा सा आपरेशन कर के काम चल गया.

‘‘मेरी सास ने तारीफ करते हुए कहा कि यह मेरी बहू की वजह से हुआ. मु?ो तो तब तक नहीं पता चलता, जब तक

दर्द नहीं शुरू होता. ऐसे में मु?ो दिक्कत हो जाती.

‘‘इस तरह केवल मैं ही नहीं, बल्कि वे भी मेरा खयाल रखती हैं. मेरा बच्चा देर से हुआ तो मेरी सास ही डाक्टर के पास ले गई थीं. डाक्टर की 3 महीने तक दवा चली, तब मेरे पेट में बच्चा आया.’’

साथ जाती हैं घूमने

कविता और टीना सासबहू हैं. टीना कहती है, ‘‘हम दोनों को छुट्टियों में दूसरे शहर देखना ज्यादा पसंद है. हमें या तो ऐतिहासिक इमारतों वाले शहर देखने पसंद हैं या फिर पहाड़ी शहर. कई बार हमारे पति साथ नहीं जाते, वे टालमटोल करते हैं. ऐसे में हम सासबहू अकेले ही चल देती हैं. वहां मेरी सास मेरे से ज्यादा फैशनेबल बन कर रहती हैं.

‘‘मैं तो शौर्ट कपड़े पहनने से

बचती हूं, लेकिन मेरी सास मौडर्न स्टाइल वाले कपड़े पहनती हैं. वे मु?ो भी कहती हैं कि पहनो तो मैं थोड़ा परहेज करती हूं. एक बार हम लोगों के फोटो ससुरजी ने देखे तो वे बोले कि जिस को पूरे कपड़े पहनने चाहिए, वह आधे पहने हुए है.

‘‘मैं फ्लाइट या ट्रेन के टिकट बुक कराने, होटल, पैकेज, शहर वाला सारा काम कर लेती हूं. सारा खर्च मेरी सास खुद उठाती हैं. हम लोगों के बीच कभी भी पैसे को ले कर कोई विवाद नहीं हुआ.

‘‘नौकरी करने वाली सास न केवल कामकाजी बहू की दिक्कतों को सम?ाती हैं, बल्कि उस की मदद भी करती हैं. मु?ो लगता है कि यह सास की नौकरी से ज्यादा उन के बरताव के चलते होता है. जहां अच्छा बरताव है, वहां रिश्ते बेहतर होते हैं.’’

अपने तरीके से जीने दें बेटे की पत्नी को

भारत के विक्रांत सिंह चंदेल ने रूस की ओल्गा एफिमेनाकोवा से शादी की. शादी के बाद वे गोवा में रहने लगे. कारोबार में नुकसान होने के बाद ओल्गा पति के साथ उस के घर आगरा रहने आ गई. लेकिन विक्रांत की मां ने ओल्गा को घर में आने देने से साफ मना कर दिया. कारण एक तो यह शादी उस की मरजी के खिलाफ हुई थी, दूसरा सास को विदेशी बहू का रहनसहन पसंद नहीं था. सुलह का कोई रास्ता न निकलता देख ओल्गा को अपने पति के साथ घर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा. ओल्गा का कहना था कि उस की सास दहेज न लाने और उस के विदेशी होने के कारण उसे सदा ताने देती रही है.

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को हस्तक्षेप करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री से विदेशी बहू की मदद करने के लिए कहना पड़ा. उस के बाद सास और ननद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए. तब जा कर सास ने बहू को घर में रहने की इजाजत दी और कहा कि अब वह उसे कभी तंग नहीं करेगी.

नहीं देती प्राइवेसी

सासबहू के रिश्ते को ले कर न जाने कितने ही किस्से हमें देखने और सुनने को मिलते हैं. सास को बहू एक खतरे या प्रतिद्वंद्वी के रूप में ही ज्यादा देखती है. इस की सब से बड़ी वजह है सास का अपने बेटे को ले कर पजैसिव होना और बहू को अपनी मनमरजी से जीने न देना. सास का हस्तक्षेप ऐसा मुद्दा है जिस का सामना बेटाबहू दोनों ही नहीं कर पाते हैं. वे नहीं समझ पाते कि पजैसिव मां को अपनी प्राइवेसी में दखल देने से कैसे रोकें कि संबंधों में कटुता किसी ओर से भी न आए.

अधिकांश बहुओं की यही शिकायत होती है कि सास प्राइवेसी और बहू को आजादी देने की बात को समझती ही नहीं हैं. उन्हें अगर इस बात को समझाना चाहो तो वे फौरन कह देती हैं कि तुम जबान चला रही हो या हमारी सास ने भी हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार किया था, पर हम ने उन्हें कभी पलट कर जवाब नहीं दिया.

आन्या की जब शादी हुई तो उसे इस बात की खुशी थी कि उस के पति की नौकरी दूसरे शहर में है और इसलिए उसे अपनी सास के साथ नहीं रहना पड़ेगा. वह नहीं चाहती थी कि नईनई शादी में किसी तरह का व्यवधान पड़े. वह बहुत सारे ऐसे किस्से सुन चुकी थी और देख भी चुकी थी जहां सास की वजह से बेटेबहू के रिश्तों में दरार आ गई थी.

शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए होता है और उस समय अगर सास की दखलंदाजी बनी रहे तो मतभेदों का सिलसिला न सिर्फ नवयुगल के बीच श्ुरू हो जाता है बल्कि सासबहू में भी तनातनी होने लगती है.

आन्या अपने तरीके से रोहन के साथ गृहस्थी बसाना, उसे सजानासंवारना चाहती थी. उस की सास बेशक दूसरे शहर में रहती थी पर वह हर 2 महीने बाद एक महीने के लिए उन के पास रहने चली आती थी क्योंकि उसे हमेशा यह डर लगा रहता था कि उस की नौकरीपेशा बहू उस के बेटे का खयाल रख भी पा रही होगी या नहीं.

आन्या व्यंग्य कसते हुए कहती है कि आखिर अपने नाजों से पाले बेटे की चिंता मां न करे तो कौन करेगा. लेकिन समस्या तो यह है मेरी सास को हददरजे तक हस्तक्षेप करने की आदत है, वे सुबह जल्दी जाग जातीं और किचन में घुसी रहतीं. कभी कोई काम तो कभी कोई काम करती ही रहतीं.

मुझे अपने और रोहन के लिए नाश्ता व लंच पैक करना होता था पर मैं कर ही नहीं पाती थी क्योंकि पूरे किचन में वे एक तरह से अपना नियंत्रण  रखती थीं. यही नहीं, वे लगातार मुझे निर्देश देती रहतीं कि मुझे क्या बनाना चाहिए, कैसे बनाना चाहिए और उन के बेटे को क्या पसंद है व क्या नापसंद है.

सुबहसुबह उन का लगातार टोकना मुझे इतना परेशान कर देता कि मेरा सारा दिन बरबाद हो जाता. यहां तक कि गुस्से में मैं रोहन से भी नाराज हो जाती और बात करना बंद कर देती. मुझे लगता कि रोहन अपनी मां को ऐसा करने से रोकते क्यों नहीं हैं?

सब से ज्यादा उलझन मुझे इस बात से होती थी कि जब भी मौका मिलता वे यह सवाल करने लगतीं कि हम उन्हें उन के पोते का मुंह कब दिखाएंगे? हमें जल्दी ही अपना परिवार शुरू कर लेना चाहिए. जो भी उन से मिलता, यही कहतीं, ‘मेरी बहू को समझाओ कि मुझे जल्दी से पोते का मुंह दिखा दे.’ रोहन को भी वे अकसर सलाह देती रहतीं. प्राइवेसी नाम की कोई चीज ही नहीं बची थी.

रोहन का कहना था कि  हर रोज आन्या को मेरी मां से कोई न कोई शिकायत रहती थी. तब मुझे लगता कि मां हमारे पास न आएं तो ज्यादा बेहतर होगा. मैं उस की परेशानी समझ रहा था पर मां को क्या कहता. वे तो तूफान ही खड़ा कर देतीं कि बेटा, शादी के बाद बदल गया और अब बहू की ही बात सुनता है.

मैं खुद उन दोनों के बीच पिस रहा था और हार कर मैं ने अपना ट्रांसफर बहुत

दूर नए शहर में करा लिया ताकि मां जल्दीजल्दी न आ सकें. मुझे बुरा लगा था अपनी सोच पर, पर आन्या के साथ वक्त गुजारने और उसे एक आरामदायक जिंदगी देने के लिए ऐसा करना आवश्यक था.

परिपक्व हैं आज की बहुएं

मनोवैज्ञानिक विजयालक्ष्मी राय मानती हैं कि ज्यादातर विवाह इसलिए बिखर जाते हैं क्योंकि पति अपनी मां को समझा नहीं पाता कि उस की बहू को नए घर में ऐडजस्ट होने के लिए समय चाहिए और वह उन के अनुसार नहीं बल्कि अपने तरीके से जीना चाहती है ताकि उसे लगे कि वह भी खुल कर नए परिवेश में सांस ले रही है, उस के निर्णय भी मान्य हैं तभी तो उस की बात को सुना व सराहा जाता है.

बहू के आते ही अगर सास उस पर अपने विचार थोपने लगे या रोकटोक करने लगे तो कभी भी वह अपनेपन की महक से सराबोर नहीं हो सकती.

बेटेबहू की जिंदगी की डोर अगर सास के हाथ में रहती है तो वे कभी भी खुश नहीं रह पाते हैं. सास को समझना चाहिए कि बहू एक परिपक्व इंसान है, शिक्षित है, नौकरी भी करती है और वह जानती है कि अपनी गृहस्थी कैसे संभालनी है. वह अगर उसे गाइड करे तो अलग बात है पर यह उम्मीद रखे कि बहू उस के हिसाब से जागेसोए या खाना बनाए या फिर हर उस नियम का पालन करे जो उस ने तय कर रखे हैं तो तकरार स्वाभाविक ही है.

आज की बहू कोई 14 साल की बच्ची नहीं होती, वह हर तरह से परिपक्व और बड़ी उम्र की होती है. कैरियर को ले कर सजग आज की लड़की जानती है कि उसे शादी के बाद अपने जीवन को कैसे चलाना है.

फैमिली ब्रेकर बहू

आर्थिक तौर पर संपन्न होने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए एक टारगेट सैट करने वाली बहू पर अगर सास हावी होना चाहेगी तो या तो उन के बीच दरार आ जाएगी या फिर पतिपत्नी के बीच भी स्वस्थ वैवाहिक संबंध नहीं बन पाएंगे.

एक टीवी धारावाहिक में यही दिखाया जा रहा है कि मां अपने बेटे को ले कर इतनी पजैसिव है कि वह उसे उस की पत्नी के साथ बांटना ही नहीं चाहती थी. बेटे का खयाल वह आज तक रखती आई है और बहू के आने के बाद भी रखना चाहती है, जिस की वजह से पतिपत्नी के बीच अकसर गलतफहमी पैदा हो जाती है.

फिर ऐसी स्थिति में जब बहू परिवार से अलग होने का फैसला लेती है तो उसे फैमिली यानी घर तोड़ने वाली ब्रेकर कहा जाता है. सास अकसर यह भूल जाती है कि बहू को भी खुश रहने का अधिकार है.

विडंबना तो यह है कि बेटा इन दोनों के बीच पिसता है. वह जिस का भी पक्ष लेता है, दोषी ही पाया जाता है. मां की न सुने तो वह कहती है कि जिस बेटे को इतने अरमानों से पाला, वह आज की नई लड़की की वजह से बदल गया है और पत्नी कहती है कि जब मुझ से शादी की है तो मुझे भी अधिकार मिलने चाहिए. मेरा भी तो तुम पर हक है. बेटे और पति पर हक की इस लड़ाई में बेटा ही परेशान रहता है और वह अपने मातापिता से अलग ही अपनी दुनिया बसा लेता है.

शादी किसी लड़की के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व नया अध्याय होता है. पति के साथ वह आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेती है, पर सास को बहू में पहले ही दिन से कमियां नजर आने लगती हैं. उसे लगता है कि बेटे को किसी तरह की दिक्कत न हो, इस के लिए बहू को सुघड़ बनाना जरूरी है. और वह इस काम में लग जाती है बिना इस बात को समझे कि वह बेटे की गृहस्थी और उस की खुशियों में ही सेंध लगा रही हैं.

इस का एक और पहलू यह है कि बेटे के मन में मां इतना जहर भर देती है कि  उसे यकीन हो जाता है कि उस की पत्नी ही सारी परेशानियों की वजह है और वह नहीं चाहती कि वह अपने परिवार वालों का खयाल रखे या उन के साथ रहे.

जरूरी है कि सास बेटे की पत्नी को खुल कर जीने का मौका दें और उसे खुद ही निर्णय लेने दें कि वह कैसे अपनी जिंदगी संवारना व अपने पति के साथ जीना चाहती है. सास अगर हिदायतें व रोकटोक करने के बजाय बहू का मार्गदर्शन करती है तो यह रिश्ता तो मधुर होगा ही साथ ही, पतिपत्नी के संबंधों में भी मधुरता बनी रहेगी.

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