बच्चों के मिड डे मील में नमक-रोटी

जी हां, मिर्जापुर के सरकारी स्कूलों का इस वक्त यही हाल है. शायद ये कोई अचरज की बात नहीं होगी, क्योंकि सरकारी स्कूल के शिक्षक शायद ऐसे ही गरीब बच्चों का पेट काटकर अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाते हैं. बच्चों को मीड डे मील में मिलती है नमक-रोटी. इस खबर ने सरकारी स्कूलों की पोल खोल दी हैं.

एक प्रिंट के पत्रकार को जब ये पता चला कि मिर्जापुर के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को नमक-रोटी दी जाती है तब उसने तुरन्त इस बात की सच्चाई को पता लगाने के लिए उस स्कूल का जायजा लिया और आखिरकार वही हुआ बच्चे नमक-रोटी खा रहे थें. मीरजापुर के जमालपुर प्रखंड का शिऊर प्राइमरी स्कूल दो तरफ से पहाड़ियों से घिरा है. अहरौरा से स्कूल की दूरी करीब चार किमी है.स्कूल तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही दिक्कतों भरा है. जरा सोचिए कि जिस स्कूल का रास्ता इतना दुर्गम है उस स्कूल में कुछ गरीब बच्चे सिर्फ इसलिए आते हैं कि पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें खाना भी मिल जाएगा लेकिन खाने का पैसा तो यहां शिक्षक हजम कर जाते हैं.

यहां कि पड़ताल के बाद पता चला कि यहां दो रसोइयां हैं रुक्मणी देवी और ममता. दोनों से बात करने पर पता चला कि स्कूल का ताला खोलने से लेकर बच्चों का खाना खिलाने तक का जिम्मा इन्हीं का है. उन्होंने बताया कि बच्चों को नमक-रोटी खिलाने की कहानी आज की नहीं बल्कि कई दिनों की है. उन्हें सामान ही नहीं मिलता कि वो बच्चों को अच्छा खाना खिला सकें और सिर्फ नमक-रोटी ही नहीं. कई बार तो बच्चों को चावल नमक भी दिया गया है जबकि सरकार ने इन सरकारी स्कूलों को मिड डे मील में खाना खिलाने की पूरी व्यवस्था की है. एक चार्ट बनाया है कि बच्चों को कब क्या देना है. लेकिन इस स्कूल के हालात तो कुछ और ही बयां कर रहे हैं.

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वहां पर बच्चों को एक दिन दूध भी दिया जाता है, लेकिन 95 बच्चों में मात्र 2 किग्रा ही दूध आता है और बच्चों को ऐसे दिया जाता है जैसे ऊंट के मुंह में जीरा दिया जा रहा हो. इतना ही नहीं अगर पढ़ाई की बात करें तो कुछ शिक्षिका ऐसी हैं जो सिर्फ वेतन लेने के लिए ही स्कूल में जाती हैं और बच्चों को पढ़ाई के नाम पर कुछ भी नहीं पढ़ाती. इस बात को लेकर पहले भी काफी बवाल हुआ है लेकिन स्थिति ज्यों कि त्यों बनी हुई है और आज भी सिर्फ वेतन लेने ही आती हैं मोहतरमा. वहां पर पढ़ाई के मामले में शायद ही किसी बच्चे को कुछ आता हो.

अब बात यही निकलकर सामने आती है कि बच्चों के भविष्य का क्या? इन स्कूलों को सरकार, बच्चों की पढ़ाई और खाने के लिए पैसा देती है लेकिन वो पैसा शायद स्कूल तक पहुंचता ही नहीं या फिर तो नेता या फिर तो शिक्षक उन पैसों को हजम कर जाते हैं. कुल मिलाकर निष्कर्ष यही सामने आता है कि बच्चों का भविष्य खतरे में है और खाने का जो हाल है वो तो बहुत ही बुरा है. सरकार को जल्द ही इस पर कोई एक्शन लेना होगा नहीं तो आने वाले दिनों में सरकारी स्कूलों के हाल और भी बद्तर हो जाएंगे.

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