फिल्म मिली के प्रचार के लिए आम इंसानों की जिंदगी से खिलवाड़..?

2019 में मलयालम फिल्मकार मथुकुट्टी झेवियर की मलयालम भाषा की रोमाचंक फिल्म ‘‘हेलन’’ने जबरस्त सफलता हासिल की थी. इस फिल्म को देखने के बाद फिल्म निर्माता बोनी कपूर ने अपनी बेटी व अभिनेत्री जान्हवी कपूर के अभिनय कैरियर को संवारने के लिए  ‘हेलन’ का हिंदी रीमेक ‘‘मिली’’ के बनाने का निर्णय कर मथुकुट्टी झेवियर से संपर्क किया.

उसके बाद मथुकुट्टी झेवियर ने ही हिंदी फिल्म ‘‘मिली’’ का निर्देशन किया. 4 नवंबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘मिली’’ में शीर्ष भूमिका जान्हवी कपूर ने निभायी है.इसके अलावा सनी कौशल व मनोज पाहवा के भी अहम किरदार हैं.फिल्म ‘मिली’ की कहानी के अनुसार 24 वर्षीय मिली नर्सिंग की स्टूडेंट है.एक दिन उसे साजिशन फ्रीजर में बंद कर दिया जाता है. अब मिली का जीवित रहने का संघर्ष शुरू होता है.

 

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फिल्म की कहानी के इसी थीम पर फिल्म के प्रचार के लिए निर्माता ने मंुबई में अंधेरी के सिटी माल स्थित पीवीआर ई सी एक्स मल्टीप्लैक्स के प्रांगण में एक फ्रीजर रखा है.उनके लोग आम दर्शक से उस फ्रीजर के अंदर कुछ समय बंद रहकर रोमांच का अनुभव करने के लिए कहते हैं.जब कोई दर्शक तैयार हो जाता है,तो उससे एक कागज पर हस्ताक्षर कराते हैं,जिसके अनुसार वह अपनी मर्जी से ऐसा कर रहा है.फिर पांच सात मिनट बाद उस इंसान को फ्रीजर से बाहर निकाला जाता है और उसके अनुभव का वीडियो बनाया जाता है.

वहां मौजूद लोगों के अनुसार उन्हे नही पता था कि इस तरह जो वीडियो तैयार किए जा रहे हैं,उनका किस तरह उपयोग होगा.पर उनका मानना था कि इससे फिल्म का प्रचार हो रहा है.जो दर्शक फ्रीजर पर इस तरह का अनुभव ले रहे हैं,वह अपने रिश्तेदारों व दोस्तों को बताकर उनसे फिल्म देखने के लिए अवश्य कहेंगे.

मगर तमाम लोग इस तरह के प्रचार को आम इंसान की जिंदगी के संग खिलवाड़ बता रहे हैं.कईयों का मानना है कि फिल्म के प्रचार के लिए किसी भी निर्माता या फिल्मकार को दर्शक यानी कि आम इंसान की जिंदगी को संकट मंें डालने का हक नही बनता.लोगों की बात में दम है.क्योंकि हर इंसान के ठंड सहन करने की अलग अलग क्षमता होती है.

नाक में ठंड जाने के बाद कई तरह की बीमारियों व कई तरह के अन्य रोग उभर सकने की संभावना रहती है.ऐसे में यह रिस्क ही कहा जाएगा.इस बात से निर्माता पूरी तरह से वाकिफ हैं.तभी तो बगल में ही एम्बूलेंस भी खड़ी कर रही है.

 

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यहां अहम सवाल यह है कि फिल्म मंे दिखाए जाने वाले हर दृश्य का हकीकत मानने वाले आम इंसान को पता नही होता कि वह दृश्य कितना नकली या वीएफएक्स व अन्य तकनीक से परदे पर गढ़ा गया है.ऐसे में फिल्म प्रचार के इस हथकंडे को मान्यता नही दी जा सकती.
मगर इन दिनों हर फिल्मकार व कलाकार अपनी फिल्म के प्रचार के लिए इसी तरह के अलग अलग हथकंडे अपना रहा है.किसी भी कलाकार या निर्देशक के पास अपनी फिल्म के संदर्भ में पत्रकारों से बात करने के लिए वक्त ही नही है.फिल्म ‘‘मिली’’ के कलाकारों ने सिर्फ दो या तीन पत्रकारों से बात की.अन्यथा वह ‘भूसे में सुई की तरह गायब ही है.

सनी कौशल तो फिल्म के ट्ेलर लांच के अवसर पर भी मौजूद नही थे.मनोज पाहवा ने भी इस फिल्म के संदर्भ मंे किसी पत्रकार से बात नहीं की.फिल्म की नायिका और निर्माता की बेटी जान्हवी कपूर देश के कई षहरों के कालेजांे में जाकर ठुमके ेलगाकर फिल्म का प्रचार करती रही.

इतना ही नही जान्हवी कपूर तो दिल्ली जाकर सिनेमाघर के अंदर पत्रकारों को अपने हाथ से पाॅपकाॅर्न खरीदकर देती रही…क्या इससे फिल्म का प्रचार होता है,क्या इससे दर्शक के मन में फिल्म देखने की उत्सुकता जागृत होती है? इसका सही जवाब तो फिल्म के निर्माता,कलाकार व फिल्म के प्रचारक के पास ही है…????

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