रेटिंग: डेढ़ स्टार
निर्माता: राम गोपाल वर्मा
निर्देशकः राम गोपाल वर्मा
कलाकारः पूजा भालेकर,पार्थ सूरी, अभिमन्यू सिंह, राजपाल यादव,तियान लोंग शी
अवधिः दो घंटे
13 मिनट वीडियो कैसेट की दुकान चलाते चलाते फिल्म निर्देशक बने राम गोपाल वर्मा की अपनी एक अलग पहचान रही है.उन्होने ‘‘सत्या’’,‘रंगीला’,‘शूल’,‘कौन’
कहानीः
फिल्म की कहानी एक रेस्टारेंट से शुरू होती है.जहां दो तीन लड़कियां छोटे कपड़े पहनकर बैठी हुई हैं.इनमें से एक पूजा (पूजा भालेकर) है,जो कि जीत कंुडो यानी कि जूड़ो कराटे में माहिर है.तो वहीं एक फोटोग्राफर नील (पार्थ सूरी ) भी बैठा हुआ है.कुछ गंुडे किस्म के लड़के उस रेस्टारेंट में आते हैं और लड़कियों के छोटे कपडों को लेकर फब्तियां कसते हैं.नील उन्हे ऐसा करने से मना करते हैं,तो वह लड़के नील की पिटायी कर देते हैं.यह देखकर पूजा उन लड़कों की अच्छे से ढुलाई कर देती है.यहीं से पूजा व नील दोस्त बन जाते हैं.पूजा बताती है कि वह मार्शल आर्ट के गुरू ब्रूसली की बहुत बड़ी फैन है और वह जीत कंुडो सीखती है.नील उसे लेकर चीन जाता है.इधर पूजा को जीत कंुडो सिखाने वाले गुरू(तियान लोंग षी) ,जो कि चीनी हैं, की हत्या हो जाती है और उनकी जमीन पर एक बिल्डर कब्जा कर लेता है.भारत वापस आने पर पूजा अपने गुरू के हत्यारांे से बदला लेनेे का निर्णय लेती है.पता चलता है कि इसके पीछे एम बी (अभिमन्यू सिंह) का हाथ है.जो कि कई तरह के अवैध ध्ंांधे चला रहा है.अब पूजा एमबी के खिलाफ लड़ाई शुरू करती है.अंत में जीत भले ही उसकी होती है,मगर उसे बहुत कुछ खोना पड़ता है.
लेखन व निर्देशनः
एक्शन प्रधान फिल्म‘‘लड़की द ड्ैगन गर्ल ’’में मार्शल आर्ट रूपी एक्शन से इतर कुछ भी नही है.फिल्म की कहानी,पटकथा व निर्देशन बहुत कमजोर है.फिल्मकार राम गोपाल वर्मा ने नारी सशक्तिकरण, जैसे कई मुद्दे बेवजह व बेतरतीब तरीके से ठूंसे हैं.अन्यथा बिल्डर का दूसरों की जमान पर कब्जा करने की कहानी पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं.फिल्म के एक दृश्य में नजर आता है कि एक कमरे में कुछ लड़कियों के हाथ पैर व मंुह बांधकर रखा गया है.नायिका वहां अपना बदला लेने के लिए गंुडो से मारा मारी करती है,मगर उन लड़कियों को छुड़ाने का काम नही करती.खलनायक के अवैध करनामों को भी यह फिल्म ठीक से चित्रित नही करती है.इतना ही नही रामू ने बेवजह क्लायमेक्स में हीरो के अपहरण व उसकी हत्या का भी चिरपरिचित फार्मूला ठॅूंस दिया.नारी पात्रों को पेश करने का उनका अपना अंदाज रहा है.वह नारी को ‘सेक्स’ से परे कभी देख ही नहीं पाए.इस फिल्म में भी उन्होने अपनी नायिका के बदन को ही दिखाने पर ज्यादा जोर दिया है.पूरी फिल्म में नायिका पूजा टू पीस बिकनी या छोटे स्कर्ट में ही नजर आती हैं. वर्तमान समय में हर लड़की /औरत का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व सशक्त होना अनिवार्य है.मगर यह फिल्म इस बाबत कुछ नहीं कहती.राम गोपाल वर्मा तो मार्शल आर्ट और नारी की शारीरिक आत्म निर्भरता की गलियों में भटकते हुए समुद्री बीच पर नारी की कामुकता का ही प्रदर्शन करते नजर आते हैं.वह इस फिल्म से संदेश दे सकते थे कि आत्मरक्षा के लिए हर लड़की का मार्शल आर्ट सीखना चाहिए.मगर ऐसा कुछ नही है.यह फिल्म इस संदेश को भी नहीं दे पाती कि लड़कियां सुरक्षा के मसले पर आत्मनिभर््ार हों.यहां तो नायिका मार्शल आर्ट व अपनी शारीरिक ताकत का उपयोग महज बदला लेने के लिए करती है,जिसमें अंततः वह अपने प्रेमी को खो देती है.इतना ही नही वह हर बार गुंडों की पिटायी करती है और जब गंुडे भागते हंै,तो वह भी कई मिनटों तक उनके पीछे भागती है.यह लेखक व निर्देशक की कमजोरी का परिणाम है.फिल्म के कई दृश्य तो राम गोपाल वर्मा की ही पुरानी फिल्मों की याद दिला देते हैं.
अभिनयः
निर्देशक के तौर पर राम गोपाल वर्मा की सबसे बड़ी हार हुई है.वह एक भी कलाकार से अच्छी परफार्मेंस नही करा पाए.फिल्म की नायिका पूजा का किरदार निभाने वाली अदाकारा पूजा भालेकर निजी जिंदगी में मार्शल आर्ट आर्टिस्ट हैं.इसलिए वह एक्शन दृश्यों में कमाल करते हुए नजर आती हैं.मगर अभिनय के मामले में वह शून्य है. नायक नील के किरदार में पार्थ सूरी कहीं से भी प्रभावित नहीं करते.वैसे भी उनके किरदार में करने के लिए उनके हिस्से कुछ खास आया ही नही.बस मार खाना ही उनके हिस्से आया.छोटे किरदार में राज पाल यादव बुरी तरह से निराश करते हैं.अभिमन्यु सिंह का अभिनय भी घटिया है.