Relationship Advice: आपसी कलह की नुमाइश न लगाएं

Relationship Advice: कुछ दिन पहले की बात है. दिल्ली मैट्रो में एक जोड़ा चढ़ा. लड़का और लड़की दोनों की उम्र 24-25 साल के आसपास रही होगी. दोनों ही कमाऊ लग रहे थे. लड़की खूबसूरत थी और लड़का हैंडसम. दोनों ने कपड़े भी अच्छे ब्रांडेड पहने हुए थे.

पर थोड़ी देर के बाद उन दोनों में ऐसा कुछ हुआ कि बाकी सवारियों के कान उन की बातों पर लग गए.

लड़की ने लड़के से पूछा, ‘‘क्या आप शुक्रवार की शाम को अपने दोस्तों के साथ बैठे थे?’’

लड़का बोला, ‘‘हां, बैठा था. तो क्या हुआ?’’

‘‘तुम सब ने ड्रिंक भी की थी न?’’ लड़की ने जैसे उस लड़के की पोल खोलते हुए कहा.

‘‘हां, की थी. तुम मुद्दे की बात करो न कि क्या पूछना चाहती हो?’’ लड़के की आवाज में थोड़ी कड़वाहट आ गई थी.

‘‘वहां तुम सब ने बकवास भी की थी…’’ लड़की ने तेज आवाज में कहा.

‘‘जब लड़के पीने बैठते हैं, तो बकवास ही करते हैं. पर तुम मेरी जासूसी क्यों कर रही हो?’’ लड़का अब और तेज आवाज में बोला.

लड़की कुछ बोलती उस से पहले ही लड़के ने उस का हाथ ?ाटक कर कहा, ‘‘तुम्हें यह सब किस ने बताया?’’

लड़की ने जबान नहीं खोली, जबकि लड़का उस पर हावी हो गया. वह गुस्से में तमतमाते हुए बोला, ‘‘कौन है, नाम बता? मुझे गुस्सा मत दिला. जब इतना कुछ जानती है, तो नाम भी बता दे. अब डर क्यों रही है?’’

लड़की ने पहले तो अपना हाथ छुड़ाया और बड़बड़ाते हुए एक खाली सीट पर जा कर ‘धम्म’ से बैठ गई.

उन दोनों की यह आपसी लड़ाई सब ने सुनी और अनसुना भी कर दिया. पर यहां एक सवाल जरूर मन में उठा कि लोग अपनी पर्सनल बातों में इतने ज्यादा क्यों खो जाते हैं, जो अनजान लोगों के सामने अपनी भड़ास निकाल देते हैं और ऐसा जताते हैं कि कोई सुने तो सुने उन की बला से?

मजे की बात तो यह है कि यह वही पीढ़ी है, जो अपने घर में मां, बूआ, मौसी, चाचा, चाची जैसी अपने से बड़ी पीढ़ी को इस बात पर कोसती है कि वे लोग पीठ पीछे एकदूसरे की बुराई क्यों करते हैं या पड़ोस में क्या चल रहा है, इस पर मजे ले कर बातें क्यों करते हैं?

मैट्रो या बस जैसी सार्वजनिक सवारियों में यह आम हो गया है कि लोग आमनेसामने या फिर फोन पर चुगलखोरी करते दिखाई देते हैं. सास अपनी बहू की पोल खोलती दिख जाती है, तो बहू अपनी ननद के किस्से अपनी मां को सुनाती नजर आती है.

मर्द और लड़के भी इस सब में पीछे नहीं हैं. कोई औफिस में बौस की बखिया उधेड़ रहा होता है, तो कोई अपनी प्रेमिका को ब्लौक करने के किस्से सुना रहा होता है.

ऐसा होता क्यों है? क्यों हम अनजान लोगों के सामने अपने घरकुनबे का पुराण बांचने लग जाते हैं? इस की वजह यह है कि हमें यह सीख देने वाला शायद कोई बचा ही नहीं है कि सार्वजनिक जगह पर हमें कैसे बरताव करना है. और जब से सोशल मीडिया में ‘रीलरील’ खेलने का दौर चला है, तब से ऐसा लगने लगा कि हर कोई ‘गौसिप गैंग’ का हिस्सा बन गया है.

यहां सीख देने वाला कौन है? दरअसल, कुदरत ने हमें सुनने और बोलने की सैंस (इंद्रियां) तो दे दी है, पर कब और कितना बोलना है और कितना सुनना है, यह जो ‘व्यावहारिक बुद्धि’, जिसे इंगलिश में ‘कौमन सैंस’ कहते हैं, को इस्तेमाल करना हम भूलते जा रहे हैं.

पहले टीचर, परिवार और आसपड़ोस के बड़ेबूढ़े नई पीढ़ी को बता दिया करते थे कि इस ‘कौमन सैंस’ का कैसे इस्तेमाल करना है, पर अब तो स्कूलों में ऐसी बातें सिखाना गुजरे जमाने की बात हो गई है और अपनों की सुनता ही कौन है.

कभीकभार इस के नतीजे बहुत बुरे भी होते हैं, जो सार्वजनिक जगहों पर अमूमन दिखाई दे जाते हैं. जैसे क्रिकेट एक खेल है, जो मनोरंजन के लिए खेला जाता है, पर नासमझी की वजह से यह खेल का मैदान खूनी लड़ाई में बदलते देर नहीं लगती है.

18 फरवरी, 2025 को आकाश नाम का एक लड़का शाम को अपने दोस्तों के साथ फरीदाबाद के अगवानपुर चौक के पास बने दुर्गा बिल्डर के खाली प्लाट में क्रिकेट खेल रहा था. खेल के दौरान गेंद वहां मौजूद एक लड़के को लग गई, जिस से झगड़ा हो गया.

आसपास के लोगों ने उस समय मामला शांत करा दिया, लेकिन तकरीबन 15 मिनट बाद वही लड़का 5-6 साथियों के साथ लाठीडंडे और हौकी ले कर लौटा और आकाश पर हमला कर दिया. उन लोगों ने आकाश को इतना पीटा कि एक महीने अस्पताल में रहने के बाद उस की मौत हो गई.

इस वारदात में एक की जान गई और बाकी कोर्टकचहरी के चक्कर में फंसेंगे. पर ऐसी वारदात से एक सीख लेनी चाहिए कि कोई भी विवाद छोटी सी बात से शुरू होता है और हमारा अहम उसे इतना ज्यादा तूल दे देता है कि खेल का मनोरंजन मौत के मातम में बदल जाता है.

ऐसा ही कुछ घरेलू समस्याओं को सार्वजनिक जगह पर जाहिर करने से होता है. बहुत बार मैट्रो या बस वगैरह में 2 जानपहचान वालों की चुगलखोरी हाथापाई तक में बदलते देर नहीं लगाती है.

एक बार एक जोड़ा इस बात पर बहस करने लगा कि लड़की का पहना हुआ टौप कितने का होगा. लड़की ने ज्यादा कीमत बताई तो लड़के ने कहा कि सस्ता माल है. इसी बात पर उन दोनों ने अपने रिश्ते को सब के सामने उघाड़ना शुरू कर दिया. आखिर में लड़की ने लड़के को चांटा जड़ दिया और मैट्रो से उतर गई.

दिक्कत यह है कि हम आपसी गपशप और चुगलखोरी के साथ निजी बातों को सार्वजनिक करने के फर्क को समझ गए हैं. पहले गांवदेहात में लोग गपशप ज्यादा किया करते थे. उसी में बीच में चुगलखोरी और निजी बातों का तड़का लगा दिया जाता था और बात आईगई हो जाती थी.

पर अब चूंकि बातें करने की जगह और समय की कमी से हम मोबाइल फोन पर या कहीं भी आमनेसामने निजी बातों का पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं. वहीं सारी गड़बड़ होती है. भीड़ में लोग आप की बातों को अनुसना करते हुए भी बड़े ध्यान से सुनते हैं और अनचाहे में ऐसी बातों के राजदार बन जाते हैं, जो बेहद निजी होती हैं.

नई पीढ़ी को इस सामाजिक बुराई से बचने के लिए अपने घरपरिवार वालों पर ध्यान देना चाहिए. उन के साथ समय बिताना चाहिए और घर की बातों को घर पर ही सुलझाना चाहिए. इस आदत से आप अपने रिश्ते बचा सकते हैं और कभी बात लड़ाई तक पहुंच भी जाए तो ठंडे दिमाग से उसे सुलझाने की कोशिश कर सकते हैं. सैंस के साथसाथ कौमन सैंस का भी इस्तेमाल करें. Relationship Advice

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