वहशी प्रेमी से बचें

पूर्वी अफ्रीका का देश केन्या अपनी जंगल सफारी के लिए जाना जाता है. यहां के मशहूर केन्या पर्वत पर ही इस देश का नाम पड़ा है, पर हालिया कुछ घटनाओं ने इस देश को शर्मसार कर दिया है. दरअसल, यहां पर पिछले कुछ समय से लड़कियों और औरतों के प्रति जिस तरह से हिंसा के मामले बढ़े हैं, वे चिंता की बात है.

केन्या के ब्यूरो औफ नैशनल स्टैटिस्टिक्स में साल 2023 के जनवरी महीने में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि केन्या में लड़कियों और औरतों के खिलाफ हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ी है. 15 साल की उम्र से ही वे शारीरिक हिंसा की शिकार होती हैं.

हाल में एक और दर्दनाक मामला इस काली लिस्ट में शामिल हो गया है. हैवानियत की शिकार कोई और नहीं, बल्कि पैरिस ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली एथलीट रेबेका चेपटेगई थीं, जिन्हें उन के बौयफ्रैंड ने आग लगा कर जला दिया था.

वैसे तो रेबेका चेपटेगई मूल रूप से युगांडा की थीं, पर फिलहाल वे केन्या में रहती थीं.

रेबेका चेपटेगई वैस्टर्न नजोए काउंटी इलाके में रहती थीं और वारदात के समय अपने घर में थीं. आसपास के लोगों ने बताया कि रविवार, 1 सितंबर, 2024 को उन का अपने बौयफ्रैंड डिकसन डिमा के बीच ?ागड़ा हो रहा था. जिस जमीन पर वह घर बना है, उसी को ले कर बहस

हो रही थी. दोनों का ?ागड़ा इतना गंभीर था कि उन की आवाजें घर से बाहर आ रही थीं.

इसी बीच गुस्साए प्रेमी ने रेबेका पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी, जिस से वे बुरी तरह झूलस गई. इस वारदात के 3 दिन बाद इलाज के दौरान रेबेका की मौत हो गई.

अब जरा भारत के आशिकों का वहशीपन भी देख लें. मामला उत्तर प्रदेश के उन्नाव का है. बेहटा मुजावर थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली 20 साल की एक लड़की की शादी 19 मार्च, 2024 को होनी थी. पर उस लड़की का प्रेम संबंध अपने ही गांव के रहने वाले एक लड़के से चल रहा था.

पुलिस के मुताबिक, प्रेमिका की शादी तय होने से प्रेमी बेहद नाराज था. उस ने अपनी प्रेमिका को मिलने के

लिए खेत पर बुलाया. प्रेमिका खेत पर पहुंची, जहां उन दोनों में झगड़ा हो गया. गुस्साए प्रेमी ने अपनी प्रेमिका का हाथ (पंजा) धारदार खुरपी से काट कर अलग कर दिया.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के अयोध्या के गोसाईंगंज इलाके के रेलवे स्टेशन के पास एक खंडहर में प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर उस की लाश पर कैमिकल डाल कर जला दिया था.

यह मामला अगस्त, 2024 का है. पुलिस ने प्रेमी को पकड़ लिया था. आरोपी प्रेमी ने पूछताछ में बताया कि वह और उस की प्रेमिका दोनों एकसाथ मुंबई गए थे. बाद में लड़की किसी और लड़के से बात करने लगी थी, जो आरोपी को पसंद नहीं आ रहा था. इसी वजह से उन दोनों का झगड़ा होता था.

आरोपी ने पुलिस को आगे बताया कि उस ने अपनी प्रेमिका को पहले पत्थर से सिर कुचल कर मार डाला, फिर उस की लाश को कैमिकल डाल कर जलाने की कोशिश की, ताकि लाश जल्दी गल जाए और हत्या का सुबूत मिट जाए.

साल 2022 के मई महीने में हुआ श्रद्धा हत्याकांड ऐसा ही एक और मामला था, जिस ने पूरे देश को झकझोर दिया था. शादी का दबाव बनाने के लिए और प्रेमिका पर शक होने के चलते आफताब पूनावाला ने दिल्ली में श्रद्धा वालकर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद उस ने श्रद्धा की लाश के 35 टुकड़े किए थे और उन्हें फ्रिज में रख दिया था. फिर इन टुकड़ों को वह धीरेधीरे अगले कुछ महीनों में महरौली के जंगलों में फेंकता रहा था.

दिल्ली में ही साहिल नाम के एक प्रेमी (बाद में खुलासा हुआ कि पति था) ने अपनी प्रेमिका निक्की की कार के अंदर हत्या कर दी थी और फिर उस  की लाश अपने रैस्टोरैंट के फ्रिज में रख दी थी.

दरअसल, साहिल ने किसी दूसरी लड़की के साथ सगाई कर ली थी और  फिर वह निक्की से मिलने उस के फ्लैट पर गया था. इस दौरान उस की शादी को ले कर कहासुनी हुई, जिस के बाद उसे गुस्सा आ गया और उस ने मोबाइल के केबल से पीडि़ता का गला घोंट दिया था.

पूरी दुनिया में ऐसे मामलों की भरमार है, जहां गुस्साए किसी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका पर जानलेवा हमला किया और अपने प्यार को ही शर्मसार कर दिया.

भारत में तो हमेशा से लड़की को दोयम दर्जे का समझ जाता है. वे घर के बाहर ही क्या, भीतर भी खुद को महफूज नहीं मानती हैं और जब उन का प्रेमी ही वहशीपन पर उतर आए तो फिर वे किस से गुहार लगाएं, क्योंकि प्रेमी के साथ

तो वे अच्छी जिंदगी बिताने के सपने देखती हैं.

पर गुस्सैल प्रेमी का क्या किया जाए और उसे कैसे कंट्रोल में रखा जाए, यह बहुत बड़ा सवाल बन जाता है, जबकि गुस्से का जवाब गुस्सा तो बिलकुल नहीं होता है और यहीं से हर मुसीबत की शुरुआत होती है.

अमूमन तो यही कहा जाता है कि अगर प्यार में तकरार न हो तो फिर कैसा प्यार, पर यही तकरार जब गुस्से में बदल जाता है, तो प्रेमी का असली रूप सामने आ जाता है और फिर केन्या हो या भारत, वह वही वहशीपन दिखाता है, जो किसी मासूम लड़की की जान आफत में डाल देता है.

फिर भी कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन पर अमल करने से प्रेमीप्रेमिका के बीच की तल्खी को कम किया जा सकता है, जैसे :

* जब भी लड़की को यह लगे कि उस का प्रेमी अब गुस्से में फट पड़ने वाला है, तो वह सब्र से काम ले. उस की बात का तुरंत जवाब न दे और कड़वे शब्द तो बिलकुल न कहें.

* अगर आप का प्रेमी सच में आप से प्यार करता है, लेकिन गुस्सैल भी है, तो उस की दुखती रग पर हाथ न रखें और माहौल को हलका बनाने के लिए बात को नया रुख दे दें.

* अगर आप को शक है कि प्रेमी किसी तरह की बेवफाई कर रहा है, तो बिना किसी ठोस वजह के नतीजे पर न पहुंचें. अपनी बात को उस के सामने रखें और उस के नजरिए को भी समझे.

* अगर आप को यह डर लगता है कि प्रेमी गुस्से में कुछ भी कर सकता है, तो अकेले में मिलने से बचें और धीरेधीरे उस से दूरी बना लें.

* अगर बात बहुत ज्यादा बिगड़ रही है, तो किसी अपने से मन की बात कहें. ज्यादा ही गंभीर मसला है, तो पुलिस की मदद लेने से भी न झिझकें.

भगत सिंह का लव कन्फैशन

भ गत सिंह लाहौर के नैशनल कालेज के स्टूडैंट थे. तब भारतपाकिस्तान वाली सरहदें न थीं. उम्र कोई 20-21 साल. जवान और बेतहाशा खूबसूरत. औसत ऊंचाई, पतला व लंबा चेहरा, चेहरे पर हलके से चकत्ते, झानी दाढ़ी और छोटी सी मूंछ. उम्र की इस नाजुक दहलीज में विचारों की धार पैनी थी.

उस दौरान एक सुंदर सी लड़की कालेज में उन्हें देख कर मुसकरा दिया करती थी. चर्चा थी कि वह लड़की भगत सिंह को पसंद करती थी और उन्हीं की वजह से वह क्रांतिकारी दल के करीब आ गई थी. वही क्रांतिकारी दल जिस का नाम रूसी क्रांति से प्रेरित हो कर भगत सिंह ने फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन कर दिया था.

इस दल के बीच जब असैंबली में बम फेंकने की योजना बन रही थी तो भगत सिंह को दल की जरूरत बता कर साथियों ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपने से इनकार कर दिया. भगत सिंह के खास दोस्त सुखदेव ने उन्हें ताना मारा कि ‘भगत, तुम मरने से डरते हो और ऐसा उस लड़की की वजह से है.’

इस आरोप से भगत सिंह उदास हो गए और उन्होंने दोबारा दल की मीटिंग बुलाई और असैंबली में बम फेंकने का जिम्मा जोर दे कर अपने नाम करवाया. यह वही परिघटना है जिस पर आगे जा कर वामपंथी विचारकों में बड़ी बहस भी हुई कि भगत सिंह का खुद आगे आ कर बम फेंकने का निर्णय कितना सही था, जबकि बम फेंकने के बाद हश्र क्या होगा, यह सब को मालूम था.

8 अप्रैल, 1929 को असैंबली में बम फेंकने की योजना थी. लेकिन इस से पहले वे प्रेम को ले कर अपनी भावनाओं को अपने प्रिय दोस्त सुखदेव को बता देना चाहते थे. वे बता देना चाहते थे कि प्यार कभी बाधा नहीं बनता, बल्कि वह तो सहयोगी होता है लक्ष्य की प्राप्ति में.

5 अप्रैल को दिल्ली के सीताराम बाजार के एक घर में भगत सिंह ने सुखदेव को पत्र लिखा, जिसे दल के एक अन्य सदस्य शिव वर्मा ने उन तक पहुंचाया. शिव वर्मा, जो आगे जा कर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए थे.

पत्र 13 अप्रैल को सुखदेव की गिरफ्तारी के वक्त उन के पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सुबूत के तौर पर पेश किया गया. भगत सिंह ने इस पत्र में एक हिस्सा प्रेम को ले कर अपनी समझदारी को ले कर कहा.

उन्होंने कहा, ‘‘प्रिय सुखदेव, जैसे ही यह पत्र तुम्हें मिलेगा, मैं जा चुका होऊंगा, दूर एक मंजिल की तरफ. मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज बहुत खुश हूं. हमेशा से ज्यादा. मैं यात्रा के लिए तैयार हूं, अनेकानेक मधुर स्मृतियों के होते और अपने जीवन की सब खुशियों के होते भी. एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि, मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझ और मुझे पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए कमजोरी के.

‘‘आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं. पहले से कहीं अधिक. आज मैं महसूस करता हूं कि वह बात कुछ भी नहीं थी, एक गलतफहमी थी. मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन सम?ा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी. मैं कमजोर नहीं हूं. अपनों में से किसी से भी कमजोर नहीं.’’

वे आगे लिखते हैं, ‘‘किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बातचीत करते हुए एक बात सोचनी चाहिए कि क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के लिए सहायक सिद्ध हुआ है? मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देता हूं : हां, यह मेजिनी (इटली के राष्ट्रवादी आंदोलनकारी) था. तुम ने अवश्य ही पढ़ा होगा कि अपनी पहली विद्रोही असफलता, मन को कुचल डालने वाली हार, मरे हुए साथियों की याद वह बरदाश्त नहीं कर सकता था. वह पागल हो जाता या आत्महत्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका के एक ही पत्र से वह मजबूत हो गया, बल्कि सब से अधिक मजबूत हो गया.

‘‘जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं यह कह सकता हूं कि यह अपने में कुछ नहीं है सिवा एक आवेग के, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यंत मधुर भावना है. प्यार अपनेआप में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है. प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाता है. सच्चा प्यार कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता. वह अपने ही मार्ग से आता है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि कब?’’

वे पत्र में आगे कहते हैं, ‘‘हां, मैं यह कह सकता हूं कि एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाए रख सकते हैं.’’

प्रेम को ले कर इतनी स्पष्टता हैरान करती है कि उस दौरान भगत सिंह महज 21 साल के थे और 2 साल बाद वे 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ा दिए गए. इतनी गहरी समझ रखने वाले भगत सिंह को आज घंटों इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप और 16 सैकंड की रील्स देखने वाली जेनरेशन कितना समझ पाएगी, यह कहना मुश्किल है, पर अपने समय के वे असल इन्फ्लुएंसर जरूर थे. क्या आज यह उम्मीद लगाई जा सकती है कि युवा इस तरह के पत्र, लिखना तो दूर, लिखने की सोच भी सकता है?

6 इंच के स्क्रीन में फंसा युवा अपनी मानवीय भावनाएं खोता जा रहा है. युवाओं के पास प्रेम का सही अर्थ नहीं है. गर्लफ्रैंड/बौयफ्रैंड तो है पर प्यार नहीं है. युवा कुंठित है. डरा हुआ है. भविष्य निश्चित नहीं. लिखना तक नहीं आता. न अपनी बातों को साफ शब्दों में रखना आता है. जाहिर है, युवा को इस तरह के पत्र लिखने या अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सब से पहले 6 इंच की आभासी दुनिया से विराम लेने की सख्त जरूरत है, पर क्या वह करेगा? बिलकुल नहीं.

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