- रेटिंगः दो स्टार
- निर्माताः नमह पिक्चर्स और जी स्टूडियो
- लेखकःश्यामल सेन गुप्ता
- संवाद लेखकः रितेश शाह
- निर्देशकः अनिरुद्ध रौय चैधरी
- कलाकारः यामी गौतम धर,नील भूपालन,तुशार पांडे,पंकज कपूर,कौशिक सेन,जोगी मलंग,राहुल खन्ना व अन्य.
- अवधि: दो घंटे दस मिनट
- ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5
कोई भी आईडियोलाॅजी /विचार धारा हो,लेकिन जैसे ही उसमें हिंसा का समावेश हो जाता है,वह विचारधारा अपने आप खत्म हो जाती है.फिर जिस चीज से आप नफरत करते हैं,आप स्वयं वही बन जाते हो.इसी मूल संदेश के इर्द घूमने वाली पोलीटिकल थ्रिलर फिल्म ‘‘लाॅस्ट’’ लेकर आए हैं फिल्म ‘पिंक’ फेम फिल्मकार अनिरुद्ध रौय चैधरी.जो कि 16 फरवरी से ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर स्ट्ीम हो रही है.इतना ही नही यह फिल्म दलित व अल्प संख्यकों की आवाज को संवैधानिक व असंवैधानिक सहित हर तरीके से दबाने को भी रेखांकित करती है.मगर सब कुछ अधपका सा है.
कहानीः
फिल्म की कहानी शुरू होती है कलकत्ता,पश्चिम बंगाल में नमिता द्वारा अपने पति अमन के साथ पुलिस स्टेशन में अपने भाई ईशान भारती के गुम होने की रिपोर्ट लिखाने से.ईशान भारती (तुशार पांडे) दलित युवक और नुक्कड़ नाटक करने वाला रंगकर्मी हैं.नमिता की बात मशहूर अपराध जगत की पत्रकार विधि (यामी गौतम) कहानी सुन लेती है,जो कि आपने माता पिता की बजाय अपने नाना व अवकाश प्राप्त प्रोफेसर श्रीवास्तव के साथ रहती है.विधि को लगता है कि इसमें रोचक कहानी है.पुलिस को ईशान की तलाश करने मंे कोई रूचि नही है.बल्कि उल्टे पुलिस इशान की बहन नमिता,बहनोई अमन व अपाहिज मां को ही परेशान करने पर आमादा नजर आती है.विधि सहानी अपने अंदाज में ईशान भारती के गायब होने का सच सामने लाने के लिए कार्य शुरू करती है.इस प्रक्रिया में पुलिस अफसरों,पुलिस कमिश्नर,मंत्री बर्मन (राहुल खन्ना),विपक्षी नेता मुखर्जी से लेकर माओवादी नेता भीष्म राणा तक षक के घेरे में आते हैं.ईशान भारती की प्रेमिका अंकिता चैहाण (पिया बाजपेयी) की चुप्पी का अपना अलग योगदान है.
लेखन व निर्देशनः
कहानीकार व निर्देशक ने इस बात को बाखूबी चित्रित किया है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में एक पत्रकार की प्रतिस्पर्धा व दुश्मनी दूसरे अखबार से नही बल्कि अपने ही सहकर्मी से होती है.इस बात को विधि साहनी के किरदार से समझा जा सकता है. फिल्मकार अनिरूद्ध रौय चैधरी ने विषय अच्छा चुना.इस तरह के विषयों पर खुलकर बात करनी चाहिए,पर वह बहुत जल्द भटक गए और सब कुछ डर डर कर ही पेश किया.
फिल्म की गति धीमी होने के साथ ही इसकी कमजोर कड़ी एडीटर व मिक्सिंग हैं.कई जगह पर फिल्म के दृश्य के परदे पर आने से पहले ही संवाद आते हैं.फिल्म की दूसरी कमजोर कड़ी यह है कि निर्देशक ने कहानी के केंद्र में पत्रकार विधि को न सिर्फ रखा है,बल्कि कहानी उसी के इर्द गिर्द घूमती रहती है,जिसके चलते दूसरे किरदारो के साथ न्याय करने में वह विफल रहे हैं.अफसोस फिल्म की नायिका घर से जिन कपड़ांे को पहनकर निकलती है,सड़क पर पहुॅचते ही उसके कपड़े बदल जाते हैं.वाह क्या बात है.
कथानक के कुछ सब प्लाॅट बेवजह कहानी को भटकाते हैं.विधि द्वारा कुटिल राजनेता बर्मन का इंटरव्यू लेना भी अजीब सा लगता है. फिल्मकार ने सब कुछ बहुत सतही स्तर पर ही पेश किया है.फिल्म में चरम पंथियों,राजनीति व मीडिया के आपराधिक गंठजोड,राजनीति व औद्योगिक घरानों ़के गंठजोड़ से लेकर मानवाधिकारों पर यह फिल्म महज अपरोक्ष रूप से ईशारा कर चुप्पी साध लेती है.तो क्या फिल्मकार ने डर की वजह से सच को फिल्म में नही पिरोया? फिल्म देखते समय कई बार लगता है कि क्या यामी गौतम के लिए ही इस फिल्म को गढ़ा गया है?
इस फिल्म की कमजोर कड़ीमंे संवाद लेखक रितेश शाह के साथ ही इसका गीत संगीत भी है.
अभिनयः
युवा क्राइम पत्रकार विधि साहनी के किरदार में यामी गौतम कई जगह चूक गयी हैं.उनके अब तक के कैरियर की यह सबसे अच्छी परफार्मेंस वाली फिल्म बनते बनते रह गयी.घटनाक्रम व परिस्थितियों के अनुरूप उनके चेहरे के भाव नहीं बदलते. वह क्राइम रिपोर्टर की बौडी लैंगवेज को भी पकड़ नही पायी.विधि के नाना व अवकाशप्राप्त प्रोफेसर के किरदार में अति अनुभवी अभिनेता पंकज कपूर हैं,जिनकी अभिनय क्षमता पर सवालिया निशान लग ही नही सकता.उन्हे परदे पर देखकर इस बात का अहसास ही नही होता कि वह अभिनय कर रहे हैं.फिल्म का जो संदेश है,वह पंकज कपूर के किरदार से ही सामने आता है.ईशान भारती के छोटे किरदार में तुशार पांडे बहुत ज्यादा प्रभावित नही करते.बल्कि उनके अभिनय में दोहराव ज्यादा नजर आता है.तुशार पांडे को अपने अभिनय को सुधारने पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है.वैसे वह एक एक्टिंग स्कूल में अभिनय भी सिखाते हैं.इशान की प्रेमिका रही अंकिता चैहाण के छोटे किरदार में पिया बाजपेयी ने ठीक ठाक अभिनय किया है.धूर्त व कुटिल राजनेता बर्मन के किरदार में राहुल खन्ना हैं,जो कि अभिनेता अक्षय खन्ना के बड़े भाई व अभिनेता स्व.विनोेद खन्ना के बेटे हैं.एक भ्रष्ट और कुटिल राजनेता के किरदार में वह अपने अभिनय से छा जाते हैं.अन्य किरदार ठीक ठाक हैं.पूरी फिल्म तो पंकज कपूर की ही है.