नई चिकित्सा ने जहां लोगों की आकस्मिक मृत्यु को रोक दिया है, वहीं बढ़ते बुढ़ापे ने एक समस्या खड़ी कर दी है जो दिनोंदिन विकराल होती जा रही है. दिल्ली के निकट गुरुग्राम में 77 साल के एक वृद्ध का पत्नी के साथ वसीयत करना, आत्महत्या का पत्र लिखना और फिर पत्नी का गला रेतने के बाद अपनी नसें काट लेना उसी समस्या का मात्र एक उदाहरण है.
ऐसा देश के कोनेकोने में हो रहा है. और भारत में ही नहीं, विदेशों में भी ऐसी घटनाएं घट रही हैं. रिटायरमैंट के बाद कुछ साल तो निकल जाते हैं पर जैसेजैसे बच्चे, अगर हैं, अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त होने लगते हैं, तो जिंदगी में एक खालीपन छाने लगता है और जीवन बेकार सा महसूस होने लगता है. संपत्ति होते हुए भी नकदी कम होने लगती है, बीमारियों पर खर्च बढ़ने लगता है.
ये ऐसे तनाव हैं जिन के उदाहरण या नियम कम हैं. इन से कैसे निबटें, यह न बच्चे जानते हैं न पड़ोसी और न डाक्टर. ऊपर से इन वृद्धों को लूटने वाले चारों और बिखरे रहते हैं. कोई घर का नौकर बन कर आता है तो कोई बैंक मैनेजर. गुरुग्राम वाले इस दंपती ने अपना 40 लाख रुपया एक आटा मिल वाले को दे रखा था जो हाल में लापता हो गया था.
अच्छे घरों और अच्छे पदों पर रहने वाले लोगों के लिए बुढ़ापा एक आफत बन कर आ रहा है, खासतौर पर जब दोनों में से एक साथ छोड़ जाए.
अब समाज में ऐसा भी होने लगा है जब पतिपत्नी अपनेआप में इतने व्यस्त और संतुष्ट रहते हैं कि वे बच्चे चाहते ही नहीं हैं और पूरे तर्क सहित सोचविचार कर बच्चे न पैदा करने का निर्णय लेते हैं.
25-30 वर्ष की आयु में लिए गए इस निर्णय का असर 60-70 की आयु में दिखता है जब कोई उन की संपत्ति को लेने वाला नहीं बचता कि जो बदले में साधारण देखभाल भी प्यार समेत दे दे. हां, लूटने वाले बहुत आ जाते हैं. इन वृद्धों का हाल उन से ज्यादा बुरा नहीं है जिन के बच्चे विदेशों में जा कर बस गए हैं.
इस समस्या का हल वृद्धाश्रम से ज्यादा आसान एक ही घर में 4-5 वृद्धों का रहना होगा. बिल्डरों को ऐसे सुविधाजनक घर बनाने चाहिए जिन्हें वे केवल प्रौढ़ों और वृद्धों को बेचें और उन की बनावट ऐसी हो कि वृद्ध उन्हें खुद मैनेज कर लें और कमजोर होने पर भी उन्हें संभाल सकें. सरकारों से उम्मीद
तो नहीं की जा सकती कि वे उन्हें सहायता देंगी पर वे कम से कम ऐसे मकानों, जो 70 साल से ऊपर वालों के हैं, करमुक्त, मुफ्त बिजलीपानी के कर दें ताकि बुजुर्गों को बिलों का भुगतान न करना पड़े.
गुरुग्राम के बुजुर्ग दंपती गुरमीत कौर और हरमीक सिंह ढिल्लों ने अगर आत्महत्या करने का फैसला किया तो बहुत गलत न था, क्योंकि वे अब ऐसे माहौल में पहुंच गए थे जहां चारों ओर मगरमच्छ ही मगरमच्छ थे.