क्या काँग्रेस अपना परचम फिर लहरा पाएगी

गुजरात व हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के, दिल्ली की म्युनिसिपल कमेटी के, उत्तर प्रदेश, बिहार व उड़ीसा के उपचुनावों से एक बात साफ है कि न तो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कोई बड़ा माहौल बना है और न ही भारतीय जनता पार्टी इस देश की अकेली राजनीतिक ताकत है. जो सोचते हैं कि मोदी है तो जहां है वे भी गलत हैं और जो सोचते हैं कि धर्म से ज्यादा महंगाई बीरोजगारी, ङ्क्षहदूमुसलिम खाई से जनता परेशान है, वे भी गलत है.

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सीटें बढ़ा ली क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में बोट बंट गई. गुजरात की जनता का बड़ा हिस्सा अगर भाजपा से नाराज है तो भी उसे सुस्त कांग्रेस औैर बडबोली आम आदमी पार्टी में पूरी तरह भरोसा नहीं हुआ. गुजरात में वोट बंटने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को जम कर हुआ और उम्मीद करनी चाहिए कि नरेंद्र मोदी की दिल्ली की सरकार अब तोहफे की शक्ल में अरङ्क्षवद केजरीवाल को दिल्ली राज्य सरकार और म्यूनिसिपल कमेटी चलाने में रोकटोक कम कर देंगे. उपराज्यपाल के भाषण केंद्र सरकार लगाकर अरङ्क्षवद केजरीवाल को कीलें चुभाती  रहती है.

कांग्रेस का कुछ होगा, यह नहीं कहा जा सकता. गुजरात में हार धक्का है पर हिमाचल की अच्छी जीत एक मैडल है. हां यह जरूर लग रहा है कि जो लोग भारत को धर्म, जाति और बोली पर तोडऩे में लगे है, वे अभी चुप नहीं हुए है और राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा में मिलते प्यार और साथ से उन्हें कोर्ई फर्क नहीं पड़ता.

देशों को चलाने के लिए आज ऐसे लोग चाहिए जो हर जने को सही मौका दे और हर नागरिक को बराबर का समझें. जो सरकार हर काम में भेदभाव करे और हर फैसले में धर्म या जाति का पहलू छिपा हो, वह चुनाव भले जीत जाए, अपने लोगों का भला नहीं कर सकती. धर्म पर टिकी सरकारें मंदिरों, चर्चों का बनवा सकती हैं पर नौकरियां नहीं दे सकीं. आज भारत के लाखों युवा पढऩे और नौकरी करने दूसरे देशों में जा रहे हैं और विश्वगुरू का दावा करने वाली सरकार के दौरान यह गिनती बढ़ती जा रही है. यहां विश्व गुरू नहीं, विश्व सेवक बनाए जा रहे हैं. भारतीय युवा दूसरे देशों में जा कर वे काम करते हैं जो यहां करने पर उन्हें धर्म और जाति से बाहर निकाल दिया जाए.

अफसोस यह है कि भाजपा सरकार का यह चुनावी मुद्दा था ही नहीं. सरकार तो मान अपमान, धर्म, जाति, मंदिर की बात करती रही और कम से कम गुजरात में तो जीत गई.

देश में तरक्की हो रही है तो उन मेहनती लोगों की वजह से जो खेतों और कारखानों में काम कर रहे हैं और गंदी बस्तियों में जानवरों की तरह रह रहे हैं. देश में किसानों के मकान और जीवन स्तर हो या मजदूरों का उस की ङ्क्षचता किसी को नहीं क्योंकि ऐसी सरकारें चुनी जा रही है जो इन बातों को नजरअंदाज कर के धर्म का ढोल पीट कर वोट पा जाते हैं.

ये चुनाव आगे सरकारों को कोई सबक सिखाएंगे, इस की कोई उम्मीद न करें. हर पार्टी अपनी सरकार वैसे ही चलाएगी. जैसी उस से चलती है. मुश्किल है कि आम आदमी को सरकार पर कुछ ज्यादा भरोसा है कि वह अपने टूटफूट के फैसलों से सब ठीक कर देगी. उसे लगता है तोडज़ोड़ कर बनाई गई महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, मध्यप्रदेश जैसी सरकारें भी ठीक हैं. चुनावों में तोडफ़ोड़ की कोई सजा पार्टी को नहीं मिलती. नतीजा साफ है जनता को सुनहरे दिनों को भूल जाना चाहिए. यहां तो हमेशा धुंधला माहौल रहेगा.

उत्तर प्रदेश: लोकतंत्र में विरोध के स्वर को दबाने के लिए मारी गोली

– शैलेंद्र सिंह  

लोकतंत्र में विरोध करने का संविधान में अधिकार दिया गया है. समय के साथसाथ तानाशाही सरकारों को यह पसंद नहीं आ रहा है. विरोध के स्वर को दबाने के लिए अब सरकारें किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गई हैं. केवल विपक्षी दलों की आवाज को ही नहीं, बल्कि मीडिया के स्वर को भी दबाया जा रहा है.

राजनीतिक पत्रिका ‘कारवां’ ने जब किसान आंदोलन और अलगअलग मुद्दों पर निष्पक्ष लेखों को छापा, तो राष्ट्रद्रोह जैसे मुकदमे लगा कर आवाज को दबाने का काम किया गया. कई तरह की धमकियां भी मिलीं.

सुलतानपुर की रहने वाली रीता यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काले झंडे दिखाए, तो जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद बदमाशों ने उन की बोलैरो जीप को रोक कर पैर पर गोली मार दी.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब मुख्यमंत्री बनने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में गए, तो समाजवादी पार्टी की नेता पूजा शुक्ला ने उन्हें काले झंडे दिखाए, जिस के बाद पूजा को न केवल जेल भेजा गया, बल्कि उन का उत्पीड़न भी किया गया.

प्रधानमंत्री को काला झंडा दिखाने वाली 35 साल की रीता यादव संतोष यादव की पत्नी हैं. वे सुलतानपुर जिले के चांदा क्षेत्र के लालू का पूरा सोनावा गांव की रहने वाली हैं.

16 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘पूर्वांचल ऐक्सप्रैसवे’ का लोकार्पण करने के लिए सुलतानपुर पहुंचे थे. सुलतानपुर जिले के अरवलकीरी में रीता यादव ने प्रधानमंत्री को काला झंडा दिखाया. रीता यादव उस समय समाजवादी पार्टी में थीं.

प्रधानमंत्री को काला झंडा दिखाने के आरोप में पुलिस ने रीता यादव को जेल भेज दिया था. कुछ दिन जेल में रहने के बाद रीता यादव को जमानत पर रिहाई मिल गई थी. जेल से रिहा होने के बाद रीता यादव को समाजवादी पार्टी में कोई खास तवज्जुह नहीं मिली.

17 दिसंबर, 2021 को रीता यादव ने लखनऊ में कांग्रेस जिलाध्यक्ष अभिषेक सिंह राणा से मुलाकात की और कांग्रेस जौइन कर ली. कांग्रेस में उन की मुलाकात प्रियंका गांधी से भी हुई.

रीता यादव ने साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सुलतानपुर की चांदा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी. इस की तैयारी के सिलसिले में वे पोस्टरबैनर छपवाने सुलतानपुर गई थीं. सोमवार, 3 जनवरी, 2022 को वे अपनी बोलैरो जीप से गांव लौट रही थीं. शाम के तकरीबन साढ़े 6 बजे का समय था. रास्ते में बाइक सवार 3 लोगों ने जीप को ओवरटेक कर के रोक लिया.

रीता यादव का कहना है, ‘‘मैं पोस्टरबैनर बनवाने गई थी. वहां से घर जा रही थी. रास्ते में हाईवे पर लंभुआ के पास 3 लोगों ने ओवरटेक कर के मेरी गाड़ी को रोका और गाली देते हुए जान से मारने की धमकी दी.

‘‘मेरे ड्राइवर की कनपटी पर पिस्टल लगा दी. मैं ने जब उन्हें तमाचा मारा, तो उन्होंने मेरे पैर पर गोली मार दी और भाग निकले.’’

कांग्रेस ने लगाया आरोप

इस घटना के बाद रीता को लंभुआ सीएचसी अस्पताल पहुंचाया गया. सूचना मिलते ही सीओ सतीश चंद्र शुक्ल सीएचसी पहुंचे और घायल रीता और उन के चालक से पूछताछ की. वहां से रीता यादव को सुलतानपुर जिला अस्पताल पहुंचा दिया गया.

कांग्रेस ने इस मामले को ले कर भाजपा को घेरा है. कांग्रेस ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को ट्विटर पर टैग करते हुए लिखा कि ‘लड़कियों को लड़ने से आप की पार्टी के जंगलराज में भाड़े के गुंडे रोक रहे हैं. महिलाओं की साड़ी खींचने वाले कायरों से इसी कायरता की उम्मीद है. बेटियों की एकजुटता से डरे कायर अब उन पर गुंडे छोड़ रहे हैं’.

सुलतानपुर पुलिस इस मामले को पूरी तरह से संदिग्ध मान रही है. पुलिस अधिकारी विपुल कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि मामले की जांच चल रही है. रीता यादव पुलिस के कुछ सवालों के जवाब नहीं दे पा रही हैं.

पुलिस का कहना है कि किसी बोलैरो जीप को बाइक सवार कैसे रोक सकते हैं? अगर उन की कोई दुश्मनी थी, तो रीता यादव को पैर पर गोली क्यों मारते?

रीता यादव का मामला आगे किस करवट बैठेगा, यह देखने वाली बात होगी, पर यह बात सच है कि विरोध के स्वर को दबाने के लिए अलगअलग तरह से कोशिश की जा रही है.

कई बार राजनीतिक दलों के अंधभक्त समर्थक भी खुद से ऐसे काम करते हैं. ‘हिदुत्व’ व ‘गौरक्षा’ के नाम पर तमाम मौब लिंचिंग की घटनाएं भी हुई हैं.

एक तरफ ‘धर्म संसद’ में भड़काने वाले बयान दिए जाते हैं और सरकार किसी भी तरह की कानूनी कार्यवाही नहीं करती है, वहीं दूसरी तरफ सामान्य विरोध पर गोली मारने जैसी घटनाएं घट रही हैं, जो सरकार के माथे पर कलंक जैसी हैं.

प्रधानमंत्री सुरक्षा और फ़िल्मी कहानियां

सुरेशचंद्र रोहरा

नरेंद्र दामोदरदास मोदी प जब पंजाब गए  और वहां मौसम खराब होने के बाद जिस तरह उन्होंने रैली स्थल पर पहुंचने का प्रयास किया. इस बीच जो नौटंकी हुई वह सारे देश ने देखी है.

अब सवाल है सिर्फ प्रधानमंत्री की सुरक्षा के कथित हवाओं में उठे सवाल का, इसका जवाब शायद देश के उच्चतम न्यायालय के पास ही होगा या फिर देश की जनता के पास.

लाख टके का सवाल यह है  कि क्या वाकई हमारे देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा पंजाब में खतरे में पड़ गई थी. या फिर यह सब एक चुनावी ड्रामा मात्र है.

दरअसल, आज देश में  बड़े लोग बड़ी नौटंकियां खेलते हैं.हर छोटी-बड़ी बात को नाटकीयता के साथ प्रदर्शित करना क्या देश हित में है ? और शोध का विषय यह है कि जब से नरेंद्र दामोदरदास मोदी राजनीति के केंद्र में आए हैं ऐसा बारम बार कैसे हो जाता है. हमें यह भी याद रखना है कि 5 जनवरी के घटना क्रम के सप्ताह भर के भीतर ही चुनाव आयोग ने पंजाब सहित पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा कर दी है. इससे चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत और भी सजीव होकर हमारे सामने हैं.  आज देश की हर राजनीतिक पार्टी की  निगाह इन चुनावों पर है. और यह भी तथ्य सार्वजनिक है कि पांच राज्यों में चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी लगभग 50% महत्वपूर्ण राजनीतिक जगहों पर अपनी पहुंच दिखा और सभाएं ले चुके थे.

यह सबसे बड़ी हास्यास्पद स्थिति है कि कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री पर पाकिस्तान की तोपें चल जाती तो . जब पाकिस्तान वैसे ही छप्पन इंच से घबराया हुआ है तो भला वह क्या तोप चलाता और इस तरह का कायराना हमला पाकिस्तान या कोई भी देश भला क्यों करेगा.

कुल मिलाकर फिल्मों में जिस तरह कहानियां बनती हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सुरक्षा को लेकर भी कहानियां बुनी गई  हैं जो देश की राजनीति उबाल का बयास‌ बन गई है.

चुनाव रैली और यू टर्न

निसंदेह यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी बात का बतंगड़ बनाने में और बिगड़ी बात को बनाने में महारथी है.

चाणक्य ने जो जो कहा है शायद प्रधानमंत्री  ने उसे पूरी तरीके से घोट करके पी लिया है.

इसीलिए 5 जनवरी को जब सड़क मार्ग से भी आगे बढ़ रहे थे और किसानों ने रास्ता रोका हुआ था तो उन्होंने जो कुछ कहा और किया उससे देश की राजनीति में एक जलजला सा आ गया. अगरचे  प्रधानमंत्री  कुछ भी नहीं करते और शालीनता पूर्वक वापस आ जाते तो शायद पंजाब और देश की पांच राज्यों के मतदाताओं पर ज्यादा गहरा असर पड़ता  उन्होंने अपनी यात्रा को सुरक्षा से जोड़कर जो यू-टर्न लिया उससे राजनीति में तो उबाल आ गया है मगर अब मतदाताओं के बीच सकारात्मक संदेश नहीं गया.

अखबारों और टीवी पर चाहे यह मामला कितना ही सुर्खियां बटोरता रहे मगर आम मतदाता तो यह मानने को तैयार नहीं की प्रधानमंत्री की सुरक्षा में कोई सेंध लग गई.

उनके सड़क मार्ग से जाने, और जब गंतव्य स्थल तक नहीं पहुंच पाए तो राजनीति शुरू हो गई . अगर आप रैली में पहुंच जाते हैं तो कोई राजनीति नहीं होती! यह प्रश्न कोई नहीं उठाता की प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगी है. अपने ही देश की धरती में अपने ही किसानों जनता के बीच सुरक्षा का यह सवाल खड़ा करना बहतों की समझ से परे है. शायद यही कारण है कि आज प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मामला देश की सर्वोच्च अदालत उच्चतम न्यायालय  की देहरी तक पहुंच चुका है.

चुनाव और नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की भाजपा के लिए एक खासियत या फिर कहें लोक तंत्र के लिए सबसे बड़ी कमी यह है कि आप प्रधानमंत्री रहते हुए भी एक साधारण भाजपा कार्यकर्ता की तरह पार्टी के लिए वोट जुटाना चाहते हैं.जबकि यह भूल जाते हैं कि आप आज इस देश के प्रधानमंत्री हैं और एक गरिमामय पद पर हैं.

यही कारण है कि पंजाब सहित पांच राज्यों के महत्वपूर्ण चुनाव में प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी एक स्टार प्रचारक की भांति भारतीय जनता पार्टी का प्रचार अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. और ऐसे में पंजाब में जो कुछ ड्रामा हुआ उसका सीधा संबंध चुनाव से है जिस तरह संवेदनशील मुद्दा बना दिया गया कल को जब इस गुब्बारे से हवा निकलेगी तो क्या होगा?

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