राजस्थान के कंजर समुदाय के बारे में लोगों की राय अच्छी नहीं है. धारणा यह है कि कंजर आमतौर पर अपराधी होते हैं. इस जाति का हालांकि अपना एक अलग इतिहास है, पर उस से वास्ता न रखते हुए लोग यही मानते हैं कि अपराधी प्रवृत्ति के कंजर मेहनत के बजाय लूटपाट कर के गुजारा करते हैं. इस जाति के पुरुष नशे में धुत रहते हैं और औरतें बांछड़ा जाति की तरह देहव्यापार करती हैं. ये लोग असभ्य, अशिक्षित और जंगली हैं, इसलिए सभ्य समाज इन से दूर ही रहता है.
हालांकि यह पूरा सच नहीं है, लेकिन एक हद तक बात में दम इस लिहाज से है कि कंजरों को कभी आदमी समझा ही नहीं पाया और न ही इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कोई उल्लेखनीय कोशिश ही की गई.
राजस्थान के जिला बूंदी के एक गांव शंकरपुरा में जन्मी कंजर युवती पिंकी की दास्तान दुखद और फिल्मी सी है. पिंकी बेइंतहा खूबसूरत थी, पर उस की बदकिस्मती यह थी कि जब वह 15 साल की हुई तो मांबाप का साया सिर से उठ गया. लेकिन वह लावारिस कहलाने से इसलिए बच गई, क्योंकि उस के पिता ने 2 शादियां की थीं. जब सगे मांबाप की मौत हो गई तो सौतेली मां ने उसे सहारा दिया.
सौतेली मां के पास भी स्थाई आमदनी का कोई जरिया नहीं था, इसलिए वह पिंकी को साथ ले कर शंकरपुरा में ही रहने वाले अपने भाई राजा उर्फ ठेला के घर ले गई. इस तरह पिंकी को छत तो मिल गई, पर प्यार नहीं मिला. सौतेले मामा राजा के घर की भी माली हालत ठीक नहीं थी. जैसेतैसे खींचतान कर तीनों का गुजारा होता था. कई बार तो फांकों की भी नौबत आ जाती थी.
15 साल की पिंकी पर यौवन कुछ इस तरह मेहरबान हो गया था कि जो भी उसे देखता, बस देखता ही रह जाता. कंजरों में उस की जितनी खूबसूरत लड़कियां कम ही होती हैं. वह लोगों की चुभती निगाहों से नावाकिफ नहीं थी. हालांकि पिंकी कहने भर को पढ़ीलिखी थी, पर समझ उस में जमाने भर की आ गई थी.
सौतेले मामा के घर का माहौल पिंकी को रास नहीं आ रहा था, इसलिए अकसर उसे अपने मांबाप की याद आती रहती थी, जिन्होंने उसे ले कर ढेरों सपने संजोए थे. खुशी क्या होती है, यह पिंकी सौतेले मामा के घर आ कर भूल सी चुकी थी. जहां अभाव था, रोज की जरूरतों को ले कर मारामारी थी और उन्हें पूरा करने के लिए ढेर सारे समझौते करने पड़ते थे. एकलौती अच्छी बात यह थी कि सौतेली मां और मामा उस पर अत्याचार नहीं करते थे.
कुछ दिनों की तंगहाली के बाद पिंकी ने महसूस किया कि अब घर में पैसा आने लगा है. इस का मतलब यह नहीं था कि पैसा बरसने लगा था, बल्कि यह था कि अभाव कम हो चले थे और जरूरतें पूरी होने लगी थीं. अब किसी चीज के लिए तरसना नहीं पड़ता था.
पैसा कहां से और कैसे आ रहा है, यह पता करने के लिए पिंकी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. गांव और आसपास के कुछ रसूखदार पैसे वाले लोगों का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया था.
उन लोगों के आते ही सौतेली मां उन के साथ एक कमरे में बंद हो जाती और 4-6 घंटे बाद जब उन के जाने पर बाहर निकलती तो उस का जिस्म भले ही निढाल होता, पर चेहरे पर रौनक होती थी. यह रौनक उन पैसों की देन थी, जो उसे शरीर बेच कर मिलते थे. पिंकी अब पहले सी नासमझ और मासूम नहीं रह गई थी. वह इस सब का मतलब समझने लगी थी.
अब कभीकभी बड़ीबड़ी कारें भी सौतेली मां को लेने आती थीं. 3-4 दिन बाहर रह कर वह लौटती तो उस के पास नोटों की गड्डियां होती थीं. इस पर पिंकी को गुस्सा और तरस दोनों आता था कि क्या जरूरत है देह बेचने की, तीनों मिल कर मेहनतमजदूरी कर के इतना कमा सकते हैं कि इज्जत से गुजारा कर सकें. उसे इस माहौल में घुटन सी होने लगी थी. अब वह कोठेनुमा इस घर से आजाद होने की सोचने लगी थी. पर यह आसान काम नहीं था. शंकरपुरा के बाहर की दुनिया इस से जुदा नहीं होगी, यह भी पिंकी की समझ में आने लगा था. कहीं भाग जाना या चले जाना उस के वश की बात नहीं थी.
आनेजाने वाले ग्राहकों की नजरें पिंकी के खिलते यौवन पर पड़ने लगी थीं. इस से वह और घबरा जाती थी कि कहीं ऐसा न हो कि उसे भी देहधंधे की दलदल में धकेल दिया जाए. हालांकि अभी तक मां या मामा की तरफ से इस तरह की कोई बात नहीं की गई थी, पर उस का डर अपनी जगह स्वाभाविक था क्योंकि अकसर मामा खुद मां के लिए ग्राहक ढूंढ कर लाता था.
कोई 3 साल पहले एक दिन राजा ने बताया कि अब उसे ग्वालियर के रेशमपुर,जो बदरपुरा के नाम से जाना जाता है, में रहने वाले मौसा के यहां जाना है, जो उसे वहां कोई अच्छा काम दिला देंगे. मुद्दत से आजादी के लिए छटपटा रही पिंकी ने जब यह खबर सुनी तो खुशी से झूम उठी कि चलो अब जिंदगी रास्ते पर आ जाएगी. वह ग्वालियर में मेहनत कर के कमाएगी, इसलिए वह झट से राजी हो गई. जल्द ही मामा ने उसे मौसा के पास ग्वालियर पहुंचा दिया.
ग्वालियर में 4 दिन भी चैन से नहीं गुजरे थे कि मौसा, जिस का नाम पान सिंह उर्फ पप्पू था, ने अपना असली रूप दिखा दिया. अपनी बेटी समान पिंकी से यह कहते उसे कतई शरम नहीं आई कि अब उसे यहां रह कर धंधा करना होगा.
अब पिंकी को समझ में आया कि क्यों कुछ दिनों से मामा उस से नरमी से पेश आ रहा था. लेकिन जब धंधा ही करवाना था तो उसे यहां ला कर क्यों छोड़ा गया. यह काम तो वह गांव में भी करवा सकता था. यह बात पिंकी की समझ में तुरंत नहीं आई. चूंकि वह इस पेशे में नहीं आना चाहती थी, इसलिए वह पान सिंह के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाई कि उस से यह पाप न करवाया जाए.
उस के गिड़गिड़ाने का पान सिंह पर कोई असर नहीं हुआ, उलटे उस ने पिंकी को बताया कि उस का मामा उसे 9 लाख रुपए में बेच गया है. यह सुन कर पिंकी के होश फाख्ता हो गए. अब उस की समझ में आ गया कि सौतेली मां और मामा ने किस्तों में पैसा कमाने के बजाय एकमुश्त मोटी रकम कमा ली है. अपनी किस्मत पर वह खूब रोई.
भागने या बचने का कोई रास्ता उसे दिखाई नहीं दिया, इसलिए वह पान सिंह के इशारों पर नाचने लगी. रोज ग्राहक आते थे, जिन से पान सिंह अच्छे पैसे वसूल कर के उसे उन के साथ कमरे में बंद कर देता था. ग्राहक उसे तबीयत से नोचतेखसोटते थे और पूरी कीमत वसूल कर चलते बनते थे. धीरेधीरे पिंकी को पता चला कि उस इलाके के ज्यादातर मकानों में यही काम होता है.
पिंकी को अहसास हो गया कि उस की जिंदगी की यही नियति है. गांव में रहते वह सपने देखा करती थी कि उस की शादी हो गई है और उस का एक अच्छाखासा देवता समान पति है, जिस के लिए वह सुबहशाम खाना बनाती है, उस के कपड़े प्रैस करती है और उस का खूब ध्यान रखती है. वह भी उसे खूब प्यार करता है.
लेकिन यहां रोज एक नए मर्द से उस की शादी होती थी, जो प्यार के नाम पर 2-4 घंटे में अपनी जिस्मानी प्यास बुझा कर चलता बनता था. कभीकभी पिंकी को अपने जिस्म से घिन आती थी. शरीर ही नहीं, बल्कि उसे तो अपनी आत्मा से भी घिन आने लगी थी, पर वह कुछ कर नहीं सकती थी.
पान सिंह के लिए वह टकसाल या नोट छापने की मशीन थी, जो रोज हजारों रुपए उगलती थी. एवज में उसे अच्छा खानापानी, कपड़े और कौस्मेटिक का सामान मिलता था. वह एक ऐसी कठपुतली थी, जिस की डोर रिश्ते के इस मौसा पान सिंह की अंगुलियों में बंधी थी.
ग्वालियर में रहते पिंकी ने हजारों ग्राहकों को निपटाया. कुछ ही महीनों में वह एक माहिर कालगर्ल या वेश्या बन गई. उस के भीतर की भोलीभाली अल्हड़ लड़की वक्त से पहले ही एक तजुर्बेकार औरत में तब्दील हो गई. वह खुद इस बदलाव को महसूस कर रही थी, पर दिल की बात साझा करने के लिए कोई साथी नहीं था. एक ऐसे मर्द की चाहत उसे हमेशा रहती थी, जो ग्राहक न हो, शरीर से परे उसे एक औरत समझे. पर इस धंधे में आमतौर पर ऐसा नहीं होता इसलिए वह ऐसी बातें सोचने से भी घबराने लगी थी.
लेकिन पिंकी की यह गलतफहमी गलत साबित हुई कि 16-17 साल की उम्र में ही उस ने दुनिया देख ली है. एक दिन पान सिंह ने उसे नागपुर की 2 मशहूर तवायफों बंटी और परवीन के हाथों 15 लाख रुपए में बेच दिया. यह सौदा कब और कैसे हो गया, पिंकी को इस की हवा भी नहीं लगी. देहव्यापार के जिस धंधे की महज साल भर में ही वह खुद को प्रोफेसर समझने लगी थी, वह उस की नर्सरी क्लास था.
चूंकि पिंकी जवान थी और शरीर अभी तक कसा हुआ था, इसलिए परवीन ने ठोकबजा कर पान सिंह को 15 लाख रुपए दे दिए. पान सिंह ने उसे बेच कर 6 लाख रुपए का मुनाफा तो कमाया ही, इस से भी ज्यादा उस ने साल भर में उस से ग्राहकों के जरिए कमा लिए थे.
इस तरह पिंकी औरेंज सिटी के नाम से मशहूर नागपुर चली गई. ग्वालियर से नागपुर के रास्ते भर में उस की समझ में आ गया था कि एक तवायफ की जिंदगी में न कोई अहसास होता है न जज्बात. वह दलालों की जायदाद होती है, इस से आगे या ज्यादा कुछ नहीं.
नागपुर की गंगाजमुना गली देहव्यापार के लिए उसी तरह जानी जाती है, जैसे मुंबई का रेडलाइट इलाका कमाठीपुरा. परवीन वहां की जानीमानी तवायफ थी. उस की जानपहचान देश भर की देहमंडियों के कारोबारियों और दलालों से थी. इस गली में दाखिल होते ही पिंकी को अहसास हो गया कि उमराव जान जैसी फिल्मों में कुछ गलत नहीं दिखाया गया था. जो कुछ बदलाव आए हैं, वे लोगों को दिखते नहीं या लोग जानबूझ कर उन से वास्ता नहीं रखते. ये एक ही सिक्के के 2 पहलू हैं.
नागपुर आ कर पिंकी को लगा कि इस से बेहतर तो ग्वालियर ही था, क्योंकि परवीन की सरपरस्ती में उसे कई बार लगातार 20 ग्राहकों को निपटाना पड़ता था. परवीन जल्द से जल्द पान सिंह को दिए 15 लाख रुपए उस की चमड़ी से वसूल लेना चाहती थी. यहां की कालगर्ल्स के बीच भद्दे हंसीमजाक होते थे, जिन से शुरू में तो पिंकी परहेज करती रही, लेकिन बाद में उसे लगा कि एकाकीपन से बचने के लिए इसी माहौल का हिस्सा बन जाना बेहतर है.
परवीन की उम्र और जिस्म दोनों ढलान पर थे, फिर भी वह जितना हो सकता था, अपना शरीर बेचती थी. पर बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए वह अब लड़कियों की खरीदफरोख्त भी करने लगी थी. एक तरह से उस का रोल कोठों की मौसियों सरीखा था, जो लड़कियों से जरूरत के मुताबिक नरमी और सख्ती दोनों से पेश आना जानती हैं.
परवीन के यहां सुबह से ही ग्राहक आने लगते थे. यहां देश के हर इलाके के लोग आते थे, जिन में से कुछ शौकिया तो कुछ आदी थे. इन लोगों और दलालों की भाषा में पिंकी नया माल थी, इसलिए उस की पूछपरख और कीमत ज्यादा थी. वह एक मशीन की तरह उठती थी और बुत की तरह जब वक्त मिलता, सो जाती थी.
पिंकी की समझ में अच्छी तरह आ गया था कि उस की हालत जहाज के उस पंछी जैसी है, जो बीच समुद्र में है. जहाज से उड़ कर पंछी कितनी भी दूर चला जाए, कोई ठौरठिकाना न मिलने पर उसे झख मार कर जहाज पर ही वापस आना है.
अब सब कुछ उस के सामने खुली किताब की तरह था. जिस दिन परवीन अपने 15 के 50 लाख बना लेगी, उस दिन उसे 10-20 लाख रुपए में किसी और के हाथ बेच देगी. यह किस्मत की बात होगी कि तब वह कहां जाएगी, हैदराबाद, मुंबई, पुणे या फिर कोलकाता. जल्दी ही वह गंगाजमुना गली की ऐसी रौनक बन गई थी, जिस की खुद की जिंदगी स्याह थी.
भागने का खयाल भी इन बदनाम गलियों में किसी गुनाह से कम नहीं होता. इसलिए पिंकी आजादी के सपने नहीं देखती थी. पर उस का एक राजकुमार वाला सपना अभी भी टूटा नहीं था. शायद कालगर्ल्स की जिंदगी का सहारा यही सपना होता है, मकसद भी, जिस के बारे में वही बेहतर जानती हैं.
ऐसी फिल्मी और किताबी बातें सोचतेसोचते वे बूढ़ी हो जाती हैं और फिर खुद की जैसी दूसरी मजबूर और वक्त की मारी लड़कियों को इस दलदल में धकेल कर धंधा करवाने लगती हैं, जिस से बुढ़ापा चैनसुकून और आराम से कट सके. उन के इस लालच या स्वार्थ से कितनी लड़कियों का सुकून और चैन छिन जाता है, वे उस से कोई वास्ता नहीं रखतीं.
नागपुर आने के बाद पिंकी ने साफ महसूस किया था कि उस पर कई मर्दानी नजरों का सख्त पहरा रहता है. वे नजरें सीसीटीवी कैमरों की तरह हैं, जो खुद मुश्किल से दिखते हैं, पर उन की नजर दूर तक रहती है. वहां से भागने की कोशिश करने वाली लड़कियों का कितना बुरा हश्र हुआ, इस के किस्से इतने डरावने तरीके से सुनाए जाते थे कि कोई लड़की ऐसा सोच भी रही हो तो वह खयाल दिलोदिमाग से निकालने में ही अपनी भलाई समझे.
कुछ ही दिनों में पिंकी ने परवीन का इतना भरोसा जीत लिया था. अब उस की निगरानी पहले जैसी नहीं होती थी. उसे नियमित और भरोसेबंद ग्राहकों के साथ अकेला छोड़ा जाने लगा था. लेकिन ग्राहक के साथ कहीं बाहर जाने की इजाजत अभी भी उसे नहीं थी.
एक दिन विपिन पांडे नाम का ग्राहक उस के पास आया तो पिंकी को वह वही शख्स लगा, जिस के सपने वह ग्वालियर आने के पहले से देख रही थी. विपिन में कई बातें ऐसी थीं, जो पिंकी को भा गई थीं. वह आम ग्राहकों की तरह उस पर टूट नहीं पड़ा था. उस ने कोई जल्दबाजी भी नहीं दिखाई थी. पहली बार में ही दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई, जिस से पिंकी को लगा कि विपिन का औरतों को देखने का नजरिया दूसरों से अलग है. उस दिन पहली बार पिंकी का दिन किसी 22 साल की लड़की की तरह धड़का तो वह सिर से ले कर पांव तक सिहर उठी. उस की समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है.
विपिन जाने लगा तो पिंकी मायूस हो उठी. वह अपने मजबूर दिल को संभाल नहीं पाई. उस ने विपिन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘फिर आना.’’
पेशे से ड्राइवर विपिन छिंदवाड़ा के एक प्रतिष्ठित परिवार का बेटा था. छिंदवाड़ा से नागपुर तक का कोई 2 घंटे का रास्ता है, जिसे अब विपिन पिंकी के लिए नापने लगा था. वह अकसर पिंकी के पास जाने लगा तो पिंकी ने उसे अपनी जिंदगी की कहानी विस्तार से सुना दी, जो राजस्थान के बूंदी जिले के गांव शंकरपुरा से ग्वालियर होते हुए नागपुर के बदनाम इलाके गंगाजमुना गली के उस कोठे पर आ कर खत्म होती थी.
प्यार अकेली पिंकी को ही नहीं हुआ था, बल्कि विपिन भी उस से प्यार करने लगा था. यह प्यार ठीक वैसा ही था, जो सन 1991 में प्रदर्शित महेश भट्ट की देहव्यापार पर बनी फिल्म ‘सड़क’ में दिखाया गया था. इस फिल्म में नायक संजय दत्त टैक्सी ड्राइवर होता है और मजबूरी की मारी एक कालगर्ल पूजा भट्ट से प्यार कर बैठता है. इस फिल्म में महारानी वाली भूमिका सदाशिव अमरापुरकर ने निभाई थी,जो खूब चर्चित रही थी.
यहां तो कदमकदम पर महारानियां थीं, लेकिन प्यार भी कहां आसानी से हार मानता है. पिंकी और विपिन ने तय कर लिया था कि भाग कर शादी कर लेंगे और कहीं भी बस जाएंगे. अच्छी बात यह थी कि विपिन हिम्मत वाला युवक था, जो दूसरों की तरह बदनाम गलियों और इलाकों के गुंडों और दलालों से नहीं डरता था.
विपिन के प्यार में डूबी पिंकी भूल गई थी कि तवायफ को प्यार करने की इजाजत न बाजार देता है और न समाज. फिर किसी से शादी कर के गृहस्थी बसाना तो कालगर्ल्स के लिए ख्वाब जैसी बात होती है.
पिंकी जानती थी कि रसूख वाली परवीन के हाथ बहुत लंबे हैं और उस के संबंध कुछ रसूखदार लोगों से भी हैं. गुंडे और दलाल पालना तो कोठों की परंपरा है, जिन का काम यही होता है कि कोई लड़की कोठों की परंपरा को तोड़ कर भागने की कोशिश न करे और करे तो उस का इतना बुरा हाल करो कि वह दूसरी लड़कियों के लिए सबक बन कर रह जाए.
नागपुर में सालों से कोठा चला रही परवीन सिर्फ एक बार ही पीटा एक्ट के तहत गिरफ्तार हुई थी. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह इस कारोबार की कितनी सधी हुई खिलाड़ी थी. कई पुलिस वालों से उस के दोस्ताना संबंध थे.
एक दिन परवीन का सारा सयानापन और तजुरबा धरा रह गया, जब उस के पिंजरे से पिंकी नाम की एक मैना अपने तोते विपिन के साथ भाग निकली. वह 3 मार्च की दोपहर थी, जब हमेशा की तरह विपिन ग्राहक बन कर आया. वह समय परवीन के नहाने का होता था, इसलिए वह विपिन और पिंकी को कमरे में छोड़ कर नहाने चली गई.
दरअसल, भागने की योजना पिंकी और विपिन पहले ही बना चुके थे. पिंकी ने विपिन को बताया था कि गहमागहमी और दलालोंगुंडों की मौजूदगी के चलते रात में भागना कतई मुमकिन नहीं है, इसलिए दिन का समय इस के लिए ठीक रहेगा. उस समय बाजार के ज्यादातर लोग और लड़कियां सोई रहती हैं.
पिंकी भागी तो परवीन तिलमिला उठी. न केवल परवीन, बल्कि देहव्यापार से जुड़े तमाम लोग हैरान रह गए. चंद घंटों में ही पिंकी के भागने की खबर आग की तरह देहव्यापार के राष्ट्रीय बाजार में फैल गई. फिर तो परवीन के गुर्गों ने उसे शिकारी कुत्तों की तरह ढूंढना शुरू कर दिया.
2 दिलों में प्यार का जज्बा एक बार पैदा हो जाए तो उसे रोका नहीं जा सकता. यही पिंकी और विपिन के साथ हुआ था. दोनों ज्यादा दूर नहीं भागे. उन्होंने नागपुर से 100 किलोमीटर दूर मुलताई के कोर्ट में शादी कर ली. मुलताई बैतूल जिले की तहसील है, आदिवासी बाहुल्य यह शहर ताप्ती नदी के किनारे बसा है.
मुद्दत बाद पिंकी को नरक से छुटकारा मिला था. वह तो हार मार चुकी थी, लेकिन विपिन की मर्दानगी और मोहब्बत ने उसे नई जिंदगी दी, इसलिए वह उसे दिल ही दिल में देवता का दरजा दे चुकी थी. किसी तवायफ को जीवनसंगिनी बनाने का फैसला भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता.
दूसरी ओर परवीन घायल शेरनी की तरह अपनी शिकस्त और लापरवाही पर तिलमिला रही थी. उस ने ग्वालियर में बैठे पान सिंह की भी खिंचाई की और देश भर के नएपुराने अड्डों पर खबर पहुंचा दी कि पिंकी कहीं दिखाई दे तो तुरंत इस की सूचना नागपुर दी जाए. परवीन की टीम ढूंढती भी रही और हाथ भी मलती रही कि आखिरकार दोनों को जमीन निगल गई या आसमान खा गया.
मुलताई में शादी करने के बाद विपिन पिंकी को भोपाल ले आया. भोपाल के पौश इलाके शिवाजीनगर में उस के मौसा प्रकाश शर्मा रहते हैं, जो सीआईडी के एडीजी कैलाश मकवान के स्टाफ में दारोगा हैं.
विपिन जब पिंकी को ले कर उन के घर पहुंचा तो वह चौंके कि यह कैसी शादी है. इस पर विपिन ने उन्हें बताया कि उस ने नागपुर की रहने वाली पिंकी से लवमैरिज की है. चूंकि मातापिता पिंकी को सहज स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए वह उन दोनों को पनाह दे दें. कुछ दिनों बाद हालात ठीक हो जाएंगे तो वह खुद छिंदवाड़ा जा कर मांबाप को सच बता देगा.
विपिन ने प्रकाश को यह नहीं बताया था कि पिंकी कौन है. प्रकाश शर्मा को पत्नी के भांजे पर दया आ गई और कुछ सोच कर उन्होंने दोनों को अपने घर रहने की इजाजत दे दी. मौसा के इस फैसले से दोनों खुशी से झूम उठे कि उन की अभी तक की कवायद बेकार नहीं गई. चूंकि इन का प्यार सच्चा है, इसलिए मौसाजी भी आसानी से मान गए. जल्द ही विपिन ने खुद के लिए किराए का मकान ढूंढ लिया.
प्रकाश शर्मा के घर उन की पत्नी कविता और बेटा गौरव रहते थे. उन की बेटी रूपाली की शादी हो चुकी है. गौरव भोपाल के कैरियर कालेज से ग्रैजुएशन कर रहा था. जब ठिकाना मिल गया तो जुगाड़ू विपिन ने खुद के लिए एक ट्रैवल एजेंसी में नौकरी भी ढूंढ ली. शिवाजीनगर में सरकारी क्वार्टरों और बंगलों की भरमार है, लिहाजा वहां का माहौल आमतौर पर शांत ही रहता है. पिंकी यह सब देख कर हैरान थी कि दुनिया इतनी अच्छी है, जिस में इतने अच्छे लोग भी रहते हैं.
2 हफ्ते में ही पिंकी ने अपने मौसेरे सासससुर का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सिर पर पल्लू रखे वह आदर्श बहू की तरह रहती थी और कोशिश करती थी कि घर के सारे कामकाज खुद निपटा डाले. यह वह जिंदगी थी, जो पिंकी का सपना थी.
घरगृहस्थी पिंकी ने पहली बार देखी थी. देवर गौरव भाभी के इर्दगिर्द मंडराता रहता था. हालांकि पिंकी को परवीन का खौफ सताता रहता था, पर प्रकाश शर्मा के पुलिस में होने की वजह से वह खुद को महफूज समझ रही थी. इस के अलावा यहां मिल रहे लाड़प्यार के चलते वह अपनी पुरानी जिंदगी को भी भूलने लगी थी.
23 मार्च की सुबह रोजाना की तरह प्रकाश शर्मा अपने औफिस चले गए. विपिन भी अपनी ड्यूटी पर जा चुका था. जिस ट्रैवल एजेंसी में उसे नौकरी मिली थी, उस ने उस की ड्यूटी प्रदेश के रसूखदार मंत्री रामपाल सिंह के बंगले पर लगा रखी थी. वह भी शिवाजीनगर में ही रहते थे.
कालेज जाने को तैयार बैठे गौरव का टिफिन किचन में तैयार कर रही पिंकी उस समय चौंकी, जब उसे बाहर गाडि़यों के रुकने की आवाज सुनाई दी. वह कुछ सोचसमझ पाती, उस के पहले ही ड्राइंगरूम से मौसिया सास कविता और देवर गौरव के चीखने की आवाजें उसे सुनाई दीं.
पिंकी को समझते देर नहीं लगी कि परवीन के गुर्गे उसे सूंघते हुए यहां तक आ पहुंचे हैं. लिहाजा वह दूसरे दरवाजे से भाग निकली. उस घर में जहां वह 20 दिनों तक एक आदर्श बहू की तरह रही, में क्या हो रहा है यह उसे कुंछ घंटों बाद पता चला.
वहां एक भयानक हादसा अंजाम ले चुका था. पिंकी का यह अंदाजा गलत साबित हुआ कि देहव्यापार की दुनिया के दलाल और खतरनाक गुंडे उसे ढूंढ नहीं पाएंगे. अगर जैसेतैसे ढूंढ भी लिया तो मौसा ससुर प्रकाश शर्मा के पुलिसकर्मी होने के चलते कुछ नहीं कर पाएंगे.
उस दिन एक टवेरा और एक स्कौर्पियो प्रकाश शर्मा के घर के बाहर आ कर रुकी. एकदम फिल्मी स्टाइल में धड़ाधड़ 14 लोग उन में से निकले, जिन में 4 महिलाएं भी थीं. सभी सीधे उन के घर में दाखिल हो गए. वे लोग विपिन और पिंकी को ढूंढ रहे थे. एकाएक कुछ लोगों को आया देख कविता और गौरव हकबका गए कि ये लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं.
पिंकी के बारे में उन से पूछा गया, जिस का मतलब दोनों समझ नहीं पाए. आगंतुकों ने पूरा घर छान मारा, पर पिंकी नहीं मिली. वे गौरव और कविता को मारने लगे. दोनों चिल्लाए तो आसपड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए. माजरा क्या है, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था. आखिर इतनी सुबहसुबह शिवाजीनगर जैसे शांत इलाके में कुछ गुंडेबदमाश एक पुलिस वाले के घर घुस कर गदर क्यों मचा रहे हैं.
बदमाशों ने गौरव को काबू कर के गाड़ी में बिठाया और जातेजाते कविता को धमकी दे गए कि विपिन को भेज कर अपने बेटे को ले आना. उन के जाते ही न केवल शिवाजीनगर, बल्कि पूरे भोपाल में कोहराम मच गया कि दिनदहाड़े एक पुलिस वाले का बेटा अगवा कर लिया गया.
मामला खुद के विभाग के मुलाजिम का था, इसलिए पुलिस तुरंत हरकत में आ गई. गाडि़यों के नंबर चूंकि एक किशोर ने नोट कर लिए थे, इसलिए उस का काम एक हद तक आसान हो गया था. भोपाल के चारों तरफ नाकाबंदी कर दी गई. जल्दबाजी में बदमाश गौरव के मोबाइल से बेखबर थे, इसलिए उस के जरिए पुलिस को उन की लोकेशन मिल रही थी.
घर पर हुए इस हादसे की खबर मिलते ही प्रकाश और विपिन अपनी ड्यूटी छोड़ कर आ गए. इस के बाद विपिन के सच बताने पर सारी कहानी सामने आई कि उन बदमाशों का मकसद क्या था. मामला वाकई गंभीर था, जिस में बदमाश गौरव को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा सकते थे. इसलिए पुलिस के सामने यह चुनौती पेश आ गई कि कैसे भी गौरव को सकुशल उन के चंगुल से छुड़ाया जाए.
गौरव के मोबाइल की लोकेशन से पता चला कि बदमाशों की गाडि़यां नरसिंहगढ़ और कुरावरमंडी की ओर जा रही हैं. यह रास्ता राजगढ़ होते हुए राजस्थान की तरफ जाता है. पुलिस वालों ने फुरती दिखाते हुए कुछ ही घंटों में नरसिंहगढ़ और कुरावर के बीच मलावर थाने के पास बदमाशों की गाडि़यों को घेर लिया, जो बदमाशों के लिए अप्रत्याशित था.
खुद को घिरा देख कर बदमाशों ने गौरव को गाड़ी से धकेल कर भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. गौरव को पुलिस ने अपनी गाड़ी में बिठाया और कुछ दूर जा कर बदमाशों को समर्पण करने पर मजबूर कर दिया.
गिरफ्तार हुए अपराधियों में पिंकी के मौसा पान सिंह के अलावा रामसिंह, हर्ष, राहुल, चेन सिंह, मंगल सिंह और हरीश ग्वालियर के थे. जबकि आशा, मौसमी और विचाराम राजस्थान के थे. नागपुर के जो लोग पकड़े गए थे, उन के नाम मोहम्मद सादिक, जगन, कविता और प्रवीण थे.
जाहिर है देहव्यापार से जुड़े 3 राज्यों के दलाल एकजुट हो कर पिंकी और विपिन को पागल कुत्तों की तरह ढूंढ रहे थे. आखिर उन्होंने देश भर में फैले नेटवर्क के जरिए विपिन के बारे में सारी जानकारियां जुटा ही ली थीं.
पकड़े गए लोगों को भोपाल ला कर पुलिस ने इन की मेहमाननवाजी की तो पूरा सच सामने आ गया. गौरव पर उन्होंने अपना गुस्सा गाड़ी में बैठाते ही निकालना शुरू कर दिया था. उसे खूब मारा गया था. जब उस ने विरोध करने की कोशिश की तो उसे जान से मारने की धमकी दी गई.
गौरव की समझ में सिर्फ इतना ही आया कि वे विपिन भैया और पिंकी भाभी के बारे में बातें कर रहे थे. गौरव को कोई गंभीर चोट नहीं आई थी, फिर भी ऐहतियातन उस का मैडिकल कराया गया, जो कानूनन भी जरूरी था.
जब सब कुछ साफ हो गया तो सुनने वाले हैरत में पड़ गए. यह एक अलग तरह की प्रेमकथा थी, जिस के चलते प्रकाश शर्मा के परिवार पर खतरे के बादल मंडराए थे. लेकिन अंत भला तो सब भला की तर्ज पर बात आईगई हो गई. आखिर बदमाशों को जेल में ठूंस दिया गया. इस के बाद पुलिस टीमें नागपुर, ग्वालियर और राजस्थान गईं.
विपिन के बयान और मंशा से सामने आया कि उस ने एक मजबूर लड़की को गंदगी के दलदल से निकाल कर अपनाया था. वह उस से प्यार करता है और करता रहेगा. समाज के कुछ कहनेसुनने की परवाह उसे नहीं है. विपिन ने माना कि वे लोग बहुत खतरनाक हैं और उस की व पिंकी की जान भी ले सकते हैं. पर अब वह किसी से नहीं डरेगा.
विपिन की मंशा पिंकी को समाज में सम्मान दिलाने की है. इस में वह कितना कामयाब होगा, कह पाना मुश्किल है, क्योंकि कोई भी समाज तवायफ को नहीं अपनाता. उस के प्रति नजरिया कैसा होता है, यह हर कोई जानता है. फिर भी कई लोग विपिन की पहल का स्वागत कर रहे हैं, इसलिए वह अभी भी पिंकी का हाथ मजबूती से थामे हुए है.
निश्चित रूप से विपिन सच्चा मर्द है और शाबाशी का हकदार भी, जिस ने पिंकी को गृहिणी बना कर जीने का सपना पूरा किया और अभी भी आने वाली दिक्कतों से दृढ़ता से जूझ रहा है.