जब करियर के बीच आया लवर तो क्या हुआ अंजाम

महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी नागपुर के ग्रामीण इलाके के सावली गांव की पुलिस पाटिल (चौकीदार) ज्योति कोसरकर अपने घर पर बैठी थी, तभी उस के पास गांव का एक आदमी आया और उस ने घबराई आवाज में उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चौंक उठी.

वह बिना देर किए उस आदमी को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर स्तब्ध रह गई. पाटुर्णा-नागपुर एक्सप्रैस हाइवे से करीब 25 फीट की दूरी पर गड्ढे में एक युवती का शव पड़ा हुआ था, जिस की उम्र करीब 19-20 साल के आसपास थी. युवती के ब्रांडेड कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी अच्छे घर की रही होगी.

उस की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस का चेहरा एसिड से जला कर विकृत कर दिया गया था. उस का एक हाथ गायब था, जिसे देख कर लग रहा था कि संभवत: उस का हाथ रात में किसी जंगली जानवर ने खा लिया होगा. घटनास्थल को देख कर यह बात साफ हो गई थी कि उस युवती की हत्या कहीं और की गई थी.

पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर लाश को देख ही रही थी कि वहां आसपास के गांवों के काफी लोग एकत्र हो गए.

ज्योति कोसरकर ने वहां मौजूद लोगों से उस युवती के बारे में पूछा तो कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. आखिर ज्योति कोसरकर ने लाश मिलने की खबर स्थानीय ग्रामीण पुलिस थाने को दे दी.

सूचना मिलने पर ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मद्दामी, एएसआई अनिल दरेकर, कांस्टेबल राजू खेतकर, रवींद्र चपट आदि को साथ ले कर तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर से लाश की जानकारी ली और शव के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

वह युवती कौन और कहां की रहने वाली थी, यह बात वहां मौजूद लोगों से पता नहीं लग सकी. टीआई सुरेश मद्दामी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि एसपी (देहात) राकेश ओला, डीसीपी मोनिका राऊत, एसीपी संजय जोगंदड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए.

फोरैंसिक टीम भी आ गई थी. कुछ देर बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी वहां पहुंच गई. जांच टीमों ने मौके से सबूत जुटाए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद टीआई सुरेश मद्दामी और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे ने अपनी और उस युवती की शिनाख्त छिपाने की पूरीपूरी कोशिश की है.

जिस तरह उस युवती की हत्या हुई थी, उस में प्यार का ऐंगल नजर आ रहा था. हत्यारा युवती से काफी नाराज था. शव देख कर यह बात साफ हो गई थी कि युवती शहर की रहने वाली थी.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. इस के साथ ही थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच इस केस की जांच में जुट गईं.

पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह अपनी जांच कहां से शुरू करे. क्योंकि जांच के नाम पर उस के पास कुछ नहीं था. केवल युवती के बाएं हाथ पर लव बर्ड (प्यार के पंछी) और सीने पर क्वीन (दिल की रानी) के टैटू के अलावा कोई पहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने हार नहीं मानी.

पुलिस ने मृतक युवती की शिनाख्त के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो बहुत जल्द सफलता मिल गई. इस से न सिर्फ मृतका की शिनाख्त हुई बल्कि 10 घंटों के अंदर ही क्राइम ब्रांच ने अपने अथक प्रयासों के बाद मामले को सुलझा भी लिया.

पुलिस ने जब मृतका की फोटो सोशल मीडिया पर डाली तो जल्द ही वायरल हो गई. एक से 2, 2 से 3 ग्रुपों से होते हुए मृत युवती का फोटो जब फुटला तालाब परिसर में स्थित एक पान की दुकान पर पहुंचा तो दुकानदार ने फोटो पहचान लिया.

फोटो उभरती हुई मौडल खुशी का था. पान वाले ने खुशी को कई बार एक स्मार्ट युवक के साथ घूमते और धरेरा होटल में आतेजाते देखा था.

यह जानकारी जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार को मिली तो वह और ज्यादा सक्रिय हो गए. उन्होंने उस युवती की सारी जानकारी कुछ ही समय में इकट्ठा कर ली. उन्होंने खुशी के इंस्टाग्राम को खंगाला तो ठीक वैसा ही टैटू खुशी के हाथ और सीने पर मिल गया, जैसा कि मृत युवती के शरीर पर था. इस से यह साबित हो गया कि वह शव खुशी का ही था.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को खुशी के इंस्टाग्राम प्रोफाइल में उस का पूरा नाम और उस के बारे में जानकारी मिल गई. उस का पूरा नाम खुशी परिहार था. वह अपनी मौसी के साथ रहती थी और राय इंगलिश स्कूल और जूनियर कालेज में बी.कौम. अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह पार्टटाइम मुंबई और नागपुर में मौडलिंग करती थी.

खुशी की शिनाख्त से पुलिस और क्राइम ब्रांच का सिरदर्द तो खत्म हो गया था. अब जांच अधिकारियों के आगे खुशी परिहार के हत्यारों तक पहुंचना था. पुलिस ने जब खुशी की मौसी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि खुशी कई महीनों से उन के साथ नहीं है. वह अपने दोस्त अशरफ शेख के साथ लिवइन रिलेशन में वेलकम हाउसिंग सोसायटी, हजारीबाग पहाड़गंज गिट्टी खदान के पास रही थी.

पुलिस ने जब मौसी को खुशी की हत्या की खबर दी तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं और उन्होंने अपना संदेह अशरफ शेख पर जाहिर किया. उन का कहना था कि घटना की रात अशरफ शेख ने उन्हें फोन कर बताया था कि खुशी और उस के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. वह उस से नाराज हो कर अपने गांव चली गई है.

क्राइम ब्रांच टीम को खुशी की मौसी की बातों से यह पता चल गया कि मामले में किसी न किसी रूप में अशरफ शेख की भूमिका जरूर है. अत: क्राइम ब्रांच ने अशरफ शेख का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

इस के अलावा शहर के सभी पुलिस थानों को अशरफ शेख के बारे में जानकारी दे दी गई. इस का नतीजा यह हुआ कि अशरफ शेख को गिट्टी खदान पुलिस की सहायता से कुछ घंटों में दबोच लिया गया.

अशरफ शेख को जब क्राइम ब्रांच औफिस में ला कर उस से पूछताछ की गई तो वह जांच अधिकारियों को भी गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन क्राइम ब्रांच ने जब सख्ती की तो वह फूटफूट कर रोने लगा और अपना गुनाह स्वीकार कर के मौडल खुशी परिहार की हत्या करने की बात मान ली. उस ने मर्डर मिस्ट्री की जो कहानी बताई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी.

21 वर्षीय अशरफ शेख नागपुर के आईबीएम रोड गिट्टी खदान इलाके का रहने वाला था. उस का पिता अफसर शेख ड्रग तस्कर था. अभी हाल ही में उसे नागपुर पुलिस ने करीब 400 किलोग्राम गांजे के साथ गिरफ्तार किया था. अशरफ शेख उस का सब से छोटा बेटा था.

बेटा नशे के धंधे में न पड़े, इसलिए अफसर ने उसे गिट्टी खदान में एक बड़ा सा हेयर कटिंग सैलून खुलवा दिया था. लेकिन उस हेयर कटिंग सैलून में अशरफ शेख का मन नहीं लगता था. वह शानोशौकत के साथ आवारागर्दी करता था. खूबसूरत लड़कियां उस की कमजोरी थीं.

अपने सभी भाइयों में सुंदर अशरफ रंगीनमिजाज युवक था. यही कारण था कि अपने दोस्तों की मार्फत वह शहर की महंगी पार्टियों और फैशन शो वगैरह में जाने लगा था.

इसी के चलते उस की कई मौडल लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. एक फैशन शो में उस ने जब खुशी को देखा तो वह उस का दीवाना हो गया. खुशी से और ज्यादा नजदीकियां बनाने के लिए वह उस की हर पार्टी और फैशन शो में जाने लगा था.

19 वर्षीय खुशी परिहार मध्य प्रदेश के जिला सतना के एक गांव की रहने वाली थी. उस के पिता जगदीश परिहार सर्विस करते थे. वह खुशी को एक अच्छी शिक्षिका बनाना चाहते थे लेकिन खुशी तो कुछ और ही बनना चाहती थी.

खुशी जितनी खूबसूरत और चंचल थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह बचपन से ही टीवी सीरियल्स, फिल्म और मौडलिंग की दीवानी थी. वह जब भी किसी मैगजीन और टीवी पर किसी मौडल, अभिनेत्री को देखती तो उस की आंखों में भी वैसे ही सतरंगी सपने नाचने लगते थे.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण परिवार खुशी को प्यार तो करता था, लेकिन उस के अरमानों को देखसुन कर घर वाले डर जाते थे. क्योंकि उन में बेटी को वहां तक पहुंचाने की ताकत नहीं थी.

यह बड़े शहर में रह कर ही संभव हो सकता था. गांव के स्कूल से खुशी ने कई बार ब्यूटी क्वीन का अवार्ड अपने नाम किए थे लेकिन उस की चमक गांव तक ही सीमित थी.

खुशी बचपन से ही अपनी मौसी के काफी करीब थी. उस की मौसी नागपुर में रहती थीं. वह भी खुशी के शौक से अनजान नहीं थीं. उन्होंने खुशी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और 10वीं पास करने के बाद उसे अपने पास नागपुर बुला लिया.

नागपुर आ कर जब उस ने अपना पोर्टफोलियो विज्ञापन एजेंसियों को भेजा तो उसे इवन फैशन शो कंपनी में जौब मिल गई. जौब मिलने के बाद खुशी ने अपनी आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी. उस ने नागपुर के जानेमाने स्कूल में एडमिशन ले लिया. अब खुशी अपनी पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम विज्ञापन कंपनियों और फैशन शो के लिए काम करने लगी.

धीरेधीरे खुशी की पहचान बननी शुरू हुई तो उस के परिचय का दायरा भी बढ़ने लगा. फैशन और मौडलिंग जगत में उस के चर्चे होने लगे. धीरेधीरे सोशल मीडिया पर उस के हजारों फैंस बन गए थे. खुशी भी उन का दिल रखने के लिए उन का मैसेज पढ़ती थी और अपने हिसाब से जवाब भी देती थी. वह अपने नएनए पोजों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी.

इस तरह नागपुर आए उसे 3 साल गुजर गए. अब उस का बी.कौम. का अंतिम वर्ष था. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूरी तरह मौडलिंग और टीवी की दुनिया में उतरती, इस के पहले ही उस की जिंदगी में मनचले अशरफ शेख की एंट्री हो गई.

अपने प्रति अशरफ शेख की दीवानगी देख कर खुशी भी धीरेधीरे उस के करीब आ गई. कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अशरफ शेख दिल खोल कर खुशी पर पैसा बहा रहा था. वह उस की हर जरूरत पूरी करता था.

अशरफ शेख और खुशी की दोस्ती की खबर जब खुशी के परिवार वालों और मौसी तक पहुंची तो उन्होंने उसे आड़े हाथों लिया. उन्होंने उसे समझाया भी. चूंकि अशरफ दूसरे धर्म का था, इसलिए उसे समाज और रिश्तों के विषय में भी बताया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. खुशी अशरफ शेख के प्यार में गले तक डूब चुकी थी.

मौसी और परिवार वालों की बातों पर ध्यान न दे कर वह अशरफ शेख के लिए मौसी का घर छोड़ कर उस के साथ गिट्टी खदान में किराए का मकान ले कर लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

अब खुशी पूरी तरह से आजाद थी. कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. अशरफ शेख उस का बराबर ध्यान रखता था. उसे उस के कालेज और फैशन शो में ले कर जाता था.

बाद में खुशी ने तो अपना नाम भी बदल कर जास शेख रख लिया था. प्यार का एहसास दिलाने के लिए उस ने हाथ और दिल पर टैटू भी बनवा लिए थे.

खुशी अशरफ शेख के साथ खुश थी. वह मौडलिंग के क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाने में लगी  थी. उस का सपना था कि वह सुपरमौडल बने, जिस से देश भर में उस का नाम हो. लेकिन अशरफ शेख ने जब से खुशी के साथ निकाह करने का फैसला किया था, दोनों के बीच तकरार बढ़ गई थी.

इस की वजह यह थी कि अशरफ नहीं चाहता था कि खुशी बाहरी लोगों से मिले और देर रात तक घर से बाहर रहे. वह अब खुशी के हर फैसले में अपनी टांग अड़ाने लगा था. वह चाहता था कि खुशी अब मौडलिंग वगैरह का चक्कर छोड़े और सारा दिन उस के साथ रहे और मौजमस्ती करे.

लेकिन खुशी को यह सब मंजूर नहीं था. उस का कहना था कि उस ने जो सपना बचपन से देखा है, उसे हर हाल में पूरा करना है. मौडलिंग की दुनिया में वह अपने आप को आकाश में देखना चाहती थी, जो अशरफ को गवारा नहीं था. इसी सब को ले कर अब खुशी और अशरफ के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों में अकसर तकरार और छोटेमोटे झगड़े भी होने लगे थे.

अशरफ को यकीन हो गया था कि खुशी अपने इरादों से पीछे हटने वाली नहीं है. अब तक वह खुशी पर बहुत रुपए खर्च कर चुका था और खुशी उस का अहसान मानने को तैयार नहीं थी. खुशी का मानना था कि प्यार में पैसों का कोई मूल्य नहीं होता.

यह बात अशरफ को चुभ गई थी. उस ने अपने 5 महीनों के प्यार और दोस्ती को ताख पर रख दिया और घटना के 2 दिन पहले 12 जुलाई, 2019 को अपनी कार नंबर एमएच03ए एम4769 से खुशी को ले कर एक लंबी ड्राइव पर निकल गया.

दोनों नागपुर शहर से काफी दूर ग्रामीण इलाके में आ गए थे. कुछ समय वह पाटुर्णानागपुर रोड पर यूं ही कार को दौड़ाता रहा फिर दोनों ने सावली गांव के करीब स्थित कलमेश्वर इलाके के शर्मा ढाबे पर  खाना खाया और जम कर शराब पी.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इलाका सुनसान हो गया था. कार में बैठने के बाद अशरफ शेख ने अपना वही पुराना राग छेड़ दिया, जिस से खुशी नाराज हो गई. खुशी पर भी नशा चढ़ गया था. उस का कहना था कि वह आजाद थी और आजाद रहेगी. वह जिस पेशे में है, उस में उसे हजारों लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है. उन का कहना मानना पड़ता है. अगर तुम्हें मुझ से कोई तकलीफ है तो तुम मुझ से बे्रकअप कर सकते हो.

‘‘मुझे लगता है कि अब तुम्हारा मन मुझ से भर गया है और तुम किसी और की तलाश में हो.’’ अशरफ बोला.

‘‘यह तुम्हारा सिरदर्द है मेरा नहीं. मैं जैसी पहले थी अब भी वैसी ही रहूंगी.’’ खुशी ने कहा तो दोनों की कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई. उसी समय अशरफ अपना आपा खो बैठा और कार के अंदर ही खुशी के सिर पर मार कर उसे बेहोश कर दिया.

खुशी के बेहोश होने के बाद अशरफ इतना डर गया कि वह अपनी कार सावली गांव के इलाके में एक सुनसान जगह पर ले गया और उस ने खुशी को हाइवे किनारे जला दिया.

इस के बाद अपनी और खुशी की पहचान छिपाने के लिए उस ने कार के अंदर से टायर बदलने का जैक निकाल कर उस का चेहरा विकृत किया और उस के ऊपर बैटरी का एसिड डाल दिया.

खुशी का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने खुशी का मोबाइल अपने पास रख लिया, जिसे क्राइम टीम ने बरामद कर लिया था. इस के बाद वह आराम से अपने घर चला गया और खुशी की मौसी को फोन पर बताया कि उस का और खुशी का झगड़ा हो गया है. वह अपने गांव चली गई है.

उस का मानना था कि 2-4 दिनों में खुशी के शव को जानवर खा जाएंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. लेकिन यह उस की भूल थी. वह क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार के हत्थे चढ़ गया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने अशरफ से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे केलवद ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मट्टामी को सौंप दिया. आगे की जांच टीआई सुरेश मट्टामी कर रहे थे. 

पहले की छेड़छाड़, फिर जिंदा जलाया

बांग्लादेश की राजधानी से तकरीबन 160 किलोमीटर दूर एक छोटे से कस्बे फेनी में रहने वाली 19 साल की नुसरत जहां रफी को उस के ही स्कूल में जिंदा जला कर मार दिया गया.  मामला कुछ यों था कि नुसरत जहां ने इस वारदात से तकरीबन 2 हफ्ते पहले ही अपने मदरसे के हैडमास्टर के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी. नुसरत की शिकायत के मुताबिक, 27 मार्च 2019 को उस के हैडमास्टर ने उसे अपने केबिन में बुलाया और गलत ढंग से यहां-वहां छुआ. इस बेहयाई से घबराई नुसरत वहां से भाग गई.

लेकिन बाद में नुसरत जहां ने अपने साथ हुए इस अपराध के खिलाफ आवाज उठाने की ठानी और परिवार के साथ जा कर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

वीडियो हुआ लीक

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब नुसरत जहां पुलिस को अपना बयान दे रही थी तो वहां का औफिसर इंचार्ज यह सब अपने मोबाइल फोन में रिकौर्ड कर रहा था. यह देख कर घबराई नुसरत ने अपने हाथ से चेहरा ढकने की कोशिश पर पुलिस वाला उसे हाथ हटाने को कहता रहा. बाद में यह वीडियो लोकल मीडिया में लीक हो गया.

नुसरत जहां रफी की शिकायत पर पुलिस ने मदरसे के उस हैडमास्टर को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन जब कुछ लोग इकट्ठा हो कर हैडमास्टर की रिहाई की मांग करने लगे तो नुसरत के लिए काफी मुश्किलें खड़ी हो गईं. इतना ही नहीं, उन्होंने नुसरत को ही बुराभला कहना शुरू कर दिया. तब लगा कि धीरेधीरे बात आईगई हो जाएगी, पर 6 अप्रैल 2019 को जब नुसरत जहां अपने फाइनल इम्तिहान देने के लिए स्कूल गई तो मामला बिगड़ गया.

नुसरत जहां के भाई महमुदुल हसन नोमान ने बताया, ‘मैं अपनी बहन को स्कूल ले कर गया और जब मैं ने स्कूल के भीतर जाने की कोशिश की तो मुझे रोक लिया गया. अगर मुझे रोका न गया होता तो मेरी बहन के साथ ऐसा न हुआ होता.’

ऐसा क्या हुआ था नुसरत जहां के साथ? नुसरत के बयान के मुताबिक, उस के साथ पढ़ने वाली एक छात्रा यह कह कर उसे अपने साथ छत पर ले गई कि उस की एक दोस्त की पिटाई की गई है. जब नुसरत छत पर पहुंची तो 4-5 बुरका पहने हुए लोगों ने उसे घेर लिया और हैडमास्टर के खिलाफ शिकायत वापस लेने को कहा. जब नुसरत ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उन्होंने उसे आग के हवाले कर दिया.

पुलिस ब्यूरो औफ इन्वेस्टिगेशन के प्रमुख बनाज कुमार मजूमदार ने कहा कि हत्यारे चाहते थे कि यह सब-कुछ एक खुदकुशी जैसा लगे पर उन की योजना उस समय फेल हो गई, जब आग लगने के बाद नुसरत को अस्पताल लाया गया और मरने से पहले उस ने हत्यारों के खिलाफ बयान दे दिया.

10 अप्रैल को नुसरत जहां की मौत हो गई. पुलिस ने उस की हत्या के आरोप में 15 लोगों को गिरफ्तार किया. बाद में हैडमास्टर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. थाने में नुसरत जहां की शिकायत की रेकौर्डिंग करने वाले पुलिस वाले को उस के पद से हटा कर दूसरे महकमे में भेज दिया गया.

एक सिरफिरे ने ली मासूम की जान

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में एक सिरफिरे शख्स ने अपने 4 साल के मासूम बेटे की बेरहमी से गला रेत कर हत्या कर दी. इस वारदात की वजह अंधविश्वास बताया गया है. शख्स की दिमागी हालत कुछ दिनों से ठीक नहीं थी. एक रात उस ने परिवार वालों से कहा भी था, “सुनोसुनो, मैं किसी की बलि दे दूंगा.”

उस शख्स की बात पर तब किसी ने तवज्जुह नहीं दी थी. सब को लगा था कि यह कुछ का कुछ बोल रहा है. पर एक रात उस शख्स ने चाकू से पहले एक मुरगे को काटा, फिर अपने मासूम बेटे का भी गला काट दिया.

यह दिल दहला देने वाला मामला शंकरगढ़ थाना क्षेत्र का है. पुलिस ने इस सिलसिले में बताया कि शंकरगढ़ थाना क्षेत्र के तहत आने वाले गांव महुआडीह का रहने वाला 26 साल का कमलेश नगेशिया पिछले 2 दिनों से पागलों की तरह हरकत कर रहा था. उस ने परिवार वालों से कहा था कि उस के कानों में अजीब सी आवाजें सुनाई दे रही हैं, कोई उसे किसी की बलि चढ़ाने के लिए बोल रहा है.

एक दिन कमलेश नगेशिया चाकू ले कर घूम रहा था और उस ने अपने परिवार वालों से कहा था कि आज वह किसी की बलि लेगा, पर उस की दिमागी हालत को देखते हुए परिवार वालों ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया था.

रात को खाना खाने के बाद कमलेश नगेशिया की पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर कमरे में सोने चली गई. कमलेश के भाइयों के परिवार बगल के घर में रहते हैं. वे भी रात को सोने चले गए.

देर रात कमलेश नगेशिया ने घर के आंगन में एक मुरगे का गला काट दिया, फिर कमरे में जा कर वह 4 साल के अपने बड़े बेटे अविनाश को उठा कर आंगन में ले आया. उस ने बेरहमी से अपने बेटे अविनाश का चाकू से गला काट दिया. अविनाश की मौके पर ही मौत हो गई.

सुबह के तकरीबन 4 बजे जब कमलेश की पत्नी की नींद खुली तो उसे अविनाश बगल में नहीं मिला. उस ने कमलेश से बेटे अविनाश के बारे में पूछा तो उस ने पत्नी को बताया कि उस ने अविनाश की बलि चढ़ा दी है.

इस वारदात की जानकारी मिलने पर घर में कुहराम मच गया. सूचना मिलने पर शंकरगढ़ थाना प्रभारी जितेंद्र सोनी की अगुआई में पुलिस टीम मौके पर पहुंची. पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया. बच्चे के शव को पंचनामा करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

थाना प्रभारी जितेंद्र सोनी ने बताया कि परिवार से पूछताछ कर उन लोगों का बयान दर्ज किया गया है. आरोपी 2 दिनों से ही अजीब हरकत कर रहा था. पहले वह ठीक था, फिर एक शाम उस ने परिवार के सामने किसी की बलि चढ़ाने की बात कही थी, लेकिन उन लोगों ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. इस मामले में पुलिस ने धारा 302, और धारा 201 का अपराध दर्ज किया है.

इस मामले में परिवार वालों ने समझदारी से काम लिया होता और इस की शिकायत पहले ही पुलिस में की होती या फिर कमलेश को डाक्टरी सलाह के लिए भेज दिया गया होता, तो मासूम अविनाश की जिंदगी बच सकती थी.

एक पुलिस अफसर के मुताबिक, गांवदेहात में इस तरह की वारदातें हो जाती हैं, जिन का कुसूरवार जहां एक तरफ परिवार होता है, वहीं दूसरी तरफ आसपास के रहने वाले भी कुसूरवार समझे जाते हैं, मगर पुलिस सिर्फ एक हत्यारे पर कार्यवाही कर के मामले को बंद कर देती है.

कुलमिला कर ऐसे मामले सिर्फ एक खबर के रूप में समाज के सामने आते हैं और फिर लोग उन्हें भूल जाते हैं. इस दिशा में अब सरकार के पीछेपीछे दौड़ने या यह सोचने से कि सरकार कुछ करेगी, ऐसी उम्मीद छोड़ कर हमें खुद आगे आना होगा, ताकि फिर आगे ऐसी कोई वारदात न हो.

500 टुकड़ो में बंटा दोस्त

मुंबई के विरार (पश्चिम) में स्थित है ग्लोबल सिटी. यहीं पर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट बने हुए हैं. जिन में सैकड़ों लोग रहते हैं. 20 जनवरी, 2019

को इस सोसाइटी में रहने वाले लोग जब नीचे आ जा रहे थे, तभी उन्हें तेज बदबू आती महसूस हुई. वैसे तो यह बदबू पिछले 2 दिनों से महसूस हो रही लेकिन उस दिन बदबू असहनीय थी.

कई दिन से बदबू की वजह से लोग नाक बंद कर चले जाते थे. उन्हें यह पता नहीं लग रहा था कि आखिर दुर्गंध आ कहां से रही है. सोसाइटी के गार्डों ने भी इधरउधर देखा कि कहीं कोई बिल्ली या कुत्ता तो नहीं मर गया, पर ऐसा कुछ नहीं मिला.

20 जनवरी को अपराह्न 11 बजे के करीब सोसाइटी के लोग इकट्ठा हुए और यह पता लगाने में जुट गए कि आखिर बदबू आ कहां से रही है. थोड़ी देर की कोशिश के बाद उन्हें पता चल गया कि बदबू और कहीं से नहीं बल्कि सेप्टिक टैंक के चैंबर से आ रही है. किस फ्लैट की टायलेट का पाइप बंद है, यह पता लगाने और उसे खुलवाने के लिए सोसाइटी के लोगों ने 2 सफाईकर्मियों को बुलवाया.

सफाई कर्मचारियों ने चैक करने के बाद पता लगा लिया कि सोसाइटी की सी विंग के फ्लैटों का जो पाइप सैप्टिक टैंक में आ रहा था, वह बंद है. सी विंग में 7 फ्लैट थे, उन्हीं का पाइप नीचे से बंद हो गया था. पाइप बंद होना आम बात होती है जो आए दिन फ्लैटों में देखने को मिलती रहती है.

सफाई कर्मियों ने जब वह पाइप खोलना शुरू किया तो उस में मांस के टुकड़े मिले. पाइप में मांस के टुकड़े फंसे हुए थे, जिन की सड़ांध वहां फैल रही थी.

सोसाइटी के लोगों को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि किसी ने मांस डस्टबिन में फेंकने के बजाए फ्लैट में क्यों डाला. जब पाइप में मांस ज्यादा मात्रा में निकलने लगा तो सफाईकर्मियों के अलावा सोसाइटी के लोगों को भी आश्चर्य हुआ. शक होने पर सोसाइटी के एक पदाधिकारी ने पुलिस को फोन कर इस की जानकारी दे दी.

सूचना मिलने पर अर्नाला थाने के इंसपेक्टर सुनील माने पैराडाइज सोसाइटी पहुंच गए. पाइप में फंसा मांस देख कर उन्हें भी आश्चर्य हुआ. उसी दौरान उन्हें उस मांस में इंसान के हाथ की 3 उंगलियां दिखीं.

उंगलियां देखते ही उन्हें माजरा समझते देर नहीं लगी. वह समझ गए कि किसी ने कत्ल कर के, लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के इस तरह ठिकाने लगाने की कोशिश की है. जल्दी ही यह बात पूरी सोसाइटी में फैल गई, जिस के चलते आदमियों के अलावा तमाम महिलाएं भी वहां जुटने लगीं.

मामला सनसनीखेज था इसलिए इंसपेक्टर माने ने फोन द्वारा इस की सूचना पालघर के एसपी गौरव सिंह और डीवाईएसपी जयंत बजबले के अलावा अपने थाने के सीनियर इंसपेक्टर घनश्याम आढाव को दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम में यह सूचना प्रसारित होने के बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मांस के समस्त टुकड़े अपने कब्जे में लिए. पुलिस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जिस की हत्या की गई है, वह इसी सोसाइटी का रहने वाला था या फिर कहीं बाहर का.

जिस पाइप में मांस के टुकड़े फंसे मिले थे वह पाइप सी विंग के फ्लैटों का था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि कत्ल इस विंग के ही किसी फ्लैट में किया गया है. सी विंग में 7 फ्लैट थे. पुलिस ने उन फ्लैटों को चारों ओर से घेर लिया ताकि कोई भी वहां से पुलिस की मरजी के बिना कहीं न जा सके. फोरेंसिक एक्सपर्ट की टीम भी बुला ली गई थी.

ये भी पढ़ें- भाई ने ही छीन लिया बहन का सुहाग…

रहस्य फ्लैट नंबर 602 का

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने उन सभी फ्लैटों की तलाशी शुरू कर दी. तलाशी के लिए पुलिस फ्लैट नंबर 602 में पहुंची. वह फ्लैट बाहर से बंद था. लोगों ने बताया कि वैसे तो इस फ्लैट की मालिक पूनम टपरिया हैं लेकिन कुछ दिनों पहले उन्होंने यह फ्लैट किशन शर्मा उर्फ पिंटू नाम के एक आदमी को किराए पर दे दिया था. वही इस में रहता है.

किशन शर्मा उस समय वहां नहीं था इसलिए सोसाइटी के लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने उस फ्लैट का ताला तोड़ कर तलाशी ली तो वहां इंसान की कुछ हड्डियां मिलीं. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि कत्ल इसी फ्लैट में किया गया था. कत्ल किस का किया गया था यह जानकारी किशन शर्मा से पूछताछ के बाद ही मिल सकती थी. बहरहाल, पुलिस ने मांस के टुकड़े, हड्डियां आदि अपने कब्जे में ली.

थोड़ी कोशिश कर के पुलिस को किशन शर्मा उर्फ पिंटू का फोन नंबर भी मिल गया था. वह कहीं फरार न हो जाए इसलिए पुलिस ने बड़े रेलवे स्टेशनों, बस अड्डे व हवाई अड्डे पर भी पुलिस टीमें भेज दीं.

इस के अलावा सीनियर पुलिस इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने किशन शर्मा का मोबाइल नंबर मिलाया. इत्तेफाक से उस का नंबर मिल गया. उन्होंने अपनी पहचान छिपाते हुए किसी बहाने से उसे एक जगह मिलने के लिए बुलाया. उस ने आने के लिए हां कर दी तो वहां पुलिस टीम भेज दी गई. वह आया तो सादा लिबास में मौजूद पुलिस कर्मियों ने उसे दबोच लिया.

40 वर्षीय किशन शर्मा को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई. एसपी गौरव सिंह की मौजूदगी में जब उस से उस के फ्लैट नंबर- 602 में मिली मानव हड्डियों और मांस के बारे में पूछताछ की गई तो थोड़ी सी सख्ती के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने 58 वर्षीय लंगोटिया यार गणेश विट्ठल कोलटकर की हत्या की थी.

पुलिस ने मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों के बारे में पूछा तो किशन ने बताया कि उस ने गणेश की लाश के करीब 500 टुकड़े किए थे. कुछ टुकड़े टायलेट में फ्लश कर दिए और कुछ टुकड़े टे्रन से सफर के दौरान फेंक दिए थे. किशन के अनुसार, उस ने सिर तथा हड्डियां भायंदर की खाड़ी में फेंकी थीं.

गणेश विट्ठल किशन शर्मा का घनिष्ठ दोस्त था तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों के बीच दुश्मनी हो गई. दुश्मनी भी ऐसी कि किशन शर्मा ने उस की हत्या कर लाश का कीमा बना डाला. इस बारे में पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ की तो इस हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई—

किशन शर्मा मुंबई के सांताक्रुज इलाके की राजपूत चाल के कमरा नंबर 4/13 में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था. उस ने मुंबई विश्वविद्यालय से मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान में सर्टिफिकेट कोर्स किया था.

लेकिन अपने कोर्स के मुताबिक उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो वह शेयर मार्केट में काम करने लगा. करीब 8 महीने पहले उस की मुलाकात थाणे जिले के मीरा रोड की आविष्कार सोसाइटी में रहने वाले गणेश विट्ठल कोलटकर से हुई जो बाद में गहरी दोस्ती में तब्दील हो गई थी. गणेश की अपनी छोटी सी प्रिंटिंग प्रैस थी.

एक दिन गणेश ने किशन शर्मा से कहा कि अगर वह प्रिंटिंग प्रैस के काम में एक लाख रुपए लगा दे तो पार्टनरशिप में प्रिंटिंग प्रैस का धंधा किया जा सकता है. किशन इस बात पर राजी हो गया और उस ने एक लाख रुपए अपने दोस्त गणेश को दे दिए. इस के बाद दोनों दोस्त मिल कर धंधा करने लगे. किशन मार्केट का काम देखता था.

कुछ दिनों तक तो दोनों की साझेदारी ईमानदारी से चलती रही पर जल्द ही गणेश के मन में लालच आ गया. वह हिसाब में हेराफेरी करने लगा. किशन को इस बात का आभास हुआ तो उस ने साझेदारी में काम करने से मना करते हुए गणेश से अपने एक लाख रुपए वापस मांगे. काफी कहने के बाद गणेश ने उस के 40 हजार रुपए तो वापस दे दिए लेकिन 60 हजार रुपए वह लौटाने का नाम नहीं ले रहा था.

किशन जब भी बाकी पैसे मांगता तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. वह उसे लगातार टालता रहा. इसी दौरान किशन को सूचना मिली कि गणेश 56 साल की उम्र में शादी करने वाला है. इस बारे में किशन ने उस से बात की तो गणेश ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. पहले वह शादी करेगा. इस के बाद पैसों की व्यवस्था हो जाएगी तो दे देगा.

गणेश की यह बात किशन को बहुत बुरी लगी. वह समझ गया कि गणेश के पास पैसे तो हैं लेकिन वह देना नहीं चाहता. लिहाजा उस ने दोस्त को सबक सिखाने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह गणेश को ठिकाने लगाएगा.

योजना बनाने के बाद उस ने विरार क्षेत्र की पैराडाइज सोसाइटी में फ्लैट नंबर 602 किराए पर ले लिया. वह फ्लैट पूनम टपरिया नाम की महिला का था. किशन कभीकभी अकेला ही उस फ्लैट में सोने के लिए चला आता था.

योजना के अनुसार 16 जनवरी, 2019 को किशन शर्मा अपने दोस्त गणेश विट्ठल कोलटकर को ले कर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट में गया. फ्लैट में घुसते ही किशन ने उस से अपने 60 हजार रुपए मांगे. इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया. झगड़े के दौरान किशन ने कमरे में रखा डंडा गणेश के सिर पर मारा. एक ही प्रहार में गणेश फर्श पर गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

गणेश की मौत हो जाने के बाद किशन के सामने सब से बड़ी समस्या उस की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर अश्वनि बिदरे गोरे की हत्या से संबंधित जानकारियां इकट्ठा कीं, ताकि पुलिस को आसानी से गुमराह किया जा सके. उस ने यूट्यूब पर भी डैड बौडी को ठिकाने लगाने के वीडियो देखे. उन में से उसे एक वीडियो पसंद आया जिस में लाश को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर उन्हें ठिकाने लगाने का तरीका बताया गया था.

यह तरीका उसे आसान भी लगा. क्योंकि वह मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान की पढ़ाई कर चुका था. इस के लिए तेजधार के चाकू की जरूरत थी. किशन शर्मा सांताकु्रज इलाके की एक दुकान से बड़ा सा चाकू और चाकू को तेज करने वाला पत्थर खरीद लाया.

ये भी पढ़ें- ग्लैमरस लाइफ बनी मौत का कारण…

खरीद लाया मौत का सामान

फ्लैट पर पहुंच कर किशन शर्मा ने सब से पहले गणेश विट्ठल कोलटकर की लाश का सिर धड़ से अलग कर उसे एक पालीथीन में रख लिया. इस के बाद उस ने लाश के 500 से अधिक टुकड़े कर दिए. शरीर की हड्डियों और पसलियों को उस ने तोड़ कर अलग कर लिया था.

वह मांस के टुकड़ों को टायलेट की फ्लश में डालता रहा. सिर और हड्डियां उस ने भायंदर की खाड़ी में फेंक दीं. कुछ हड्डियां उस ने पालीथिन की थैली में भर कर ट्रेन से सफर के दौरान रास्ते में फेंक दी थी. उस का फोन भी उस ने तोड़ कर फेंक दिया था.

उधर गणेश विट्ठल कई दिनों से घर नहीं पहुंचा तो उस की बहन अनधा गोखले परेशान हो गई. उस ने भाई को फोन कर के बात करने की कोशिश की लेकिन उस का फोन बंद मिला. फिर वह 20 जनवरी को मीरा रोड के नया नगर थाने पहुंची और पिछले 4 दिनों से लापता चल रहे भाई गणेश विट्ठल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ के बाद गणेश विट्ठल का सिर बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला. अंतत: जरूरी सबूत जुटाने के बाद हत्यारोपी किशन शर्मा को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

लालची मामा का शिकार हुई एक भांजी

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की सोहागपुर तहसील में जमीनों के दाम उम्मीद से कहीं ज्यादा बढ़े हैं, क्योंकि यह सैरसपाटे की मशहूर जगह पचमढ़ी के नजदीक है. इस के अलावा सोहागपुर से चंद किलोमीटर की दूरी पर एक और जगह मढ़ई तेजी से सैलानियों की पसंद बनती जा रही है. इस की वजह वाइल्ड लाइफ का रोमांच और यहां की कुदरती खूबसूरती है. सैलानियों की आवाजाही के चलते सोहागपुर में धड़ल्ले से होटल, रिसोर्ट और ढाबे खुलते जा रहे हैं.

दिल्ली के पौश इलाके वसंत विहार की रहने वाली 40 साला लीना शर्मा का सोहागपुर अकसर आनाजाना होता रहता था, क्योंकि यहां उस की 22 एकड़ जमीन थी, जो उस के नाना और मौसी मुन्नीबाई ने उस के नाम कर दी थी.

लीना शर्मा की इस जमीन की कीमत करोड़ों रुपए में थी, लेकिन इस में से 10 एकड़ जमीन उस के रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने दबा रखी थी. 21 अप्रैल, 2016 को लीना शर्मा खासतौर से अपनी जमीन की नपत के लिए भोपाल होते हुए सोहागपुर आई थी.

23 अप्रैल, 2016 को पटवारी और आरआई ने लीना शर्मा के हिस्से की जमीन नाप कर उसे मालिकाना हक सौंपा, तो उस ने तुरंत जमीन पर बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया.

दरअसल, लीना शर्मा 2 करोड़ रुपए में इस जमीन का सौदा कर चुकी थी और इस पैसे से दिल्ली में ही जायदाद खरीदने का मन बना चुकी थी. 29 अप्रैल, 2016 को बाड़ लगाने के दौरान प्रदीप शर्मा अपने 2 नौकरों राजेंद्र कुमरे और गोरे लाल के साथ आया और जमीन को ले कर उस से झगड़ना शुरू कर दिया.

प्रदीप सोहागपुर का रसूखदार शख्स था और सोहागपुर ब्लौक कांग्रेस का अध्यक्ष भी. झगड़ा इतना बढ़ा कि प्रदीप शर्मा और उस के नौकरों ने मिल कर लीना शर्मा की हत्या कर दी.

हत्या चूंकि सोचीसमझी साजिश के तहत नहीं की गई थी, इसलिए इन तीनों ने पहले तो लीना शर्मा को बेरहमी से लाठियों और पत्थरों से मारा और गुनाह छिपाने की गरज से उस की लाश को ट्रैक्टरट्रौली में डाल कर नया कूकरा गांव ले जा कर जंगल में गाड़ दिया.

लाश जल्दी गले, इसलिए इन दरिंदों ने उस के साथ नमक और यूरिया भी मिला दिया था. हत्या करने के बाद प्रदीप शर्मा सामान्य रहते हुए कसबे में ऐसे घूमता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो. जाहिर है, वह यह मान कर चल रहा था कि लीना शर्मा के कत्ल की खबर किसी को नहीं लगेगी और जब उस की लाश सड़गल जाएगी, तब वह पुलिस में जा कर लीना शर्मा की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा देगा. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया.

लीना शर्मा की जिंदगी किसी अफसाने से कम नहीं कही जा सकती. जब वह बहुत छोटी थी, तभी उस के मांबाप चल बसे थे, इसलिए उस की व उस की बड़ी बहन हेमा की परवरिश मौसी ने की थी.

मरने से पहले ही मौसी ने अपनी जमीन इन दोनों बहनों के नाम कर दी थी. बाद में लीना शर्मा अपनी बहन हेमा के साथ भोपाल आ कर परी बाजार में रहने लगी थी.

लीना शर्मा खूबसूरत थी और होनहार भी. लिहाजा, उस ने फौरेन ट्रेड से स्नातक की डिगरी हासिल की और जल्द ही उस की नौकरी अमेरिकी अंबैसी में बतौर कंसलटैंट लग गई. लेकिन अपने पति से उस की पटरी नहीं बैठी, तो तलाक भी हो गया. जल्द ही अपना दुखद अतीत भुला कर वह दिल्ली में ही बस गई और अपनी खुद की कंसलटैंसी कंपनी चलाने लगी.

40 साल की हुई तो लीना शर्मा ने दोबारा शादी करने का फैसला कर लिया, लेकिन शादी के पहले वह सोहागपुर की जमीन के झंझट को निबटा लेना चाहती थी, पर रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने उस के मनसूबों पर पानी फेर दिया.

लीना शर्मा की हत्या एक राज ही बन कर रह जाती, अगर उस के दोस्त उसे नहीं ढूंढ़ते. जब लीना शर्मा तयशुदा वक्त पर नहीं लौटी और उस का मोबाइल फोन बंद रहने लगा, तो भोपाल में रह रही उस की सहेली रितु शुक्ला ने उस की गुमशुदगी की खबर पुलिस कंट्रोल रूम में दी.

पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदीप शर्मा से संपर्क किया, तो वह घबरा गया और भांजी के गुम होने की रिपोर्ट सोहागपुर थाने में लिखाई, जबकि वही बेहतर जानता था कि लीना शर्मा अब इस दुनिया में नहीं है. देर से रिपोर्ट लिखाए जाने से प्रदीप शर्मा शक के दायरे में आया और जमीन के झगड़े की बात सामने आई, तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

मामूली सी पूछताछ में प्रदीप शर्मा ने अपना जुर्म कबूल कर लिया, लेकिन शक अब लीना शर्मा की बहन हेमा पर भी गहरा रहा है कि वह क्यों लीना शर्मा के गायब होने पर खामोश रही थी? कहीं उस की इस कलयुगी मामा से किसी तरह की मिलीभगत तो नहीं थी? इस तरफ भी पुलिस पड़ताल कर रही है, क्योंकि अब उस पर सच सामने लाने का दबाव बढ़ता जा रहा है.

लीना शर्मा के दिल्ली के दोस्त भी भोपाल आ कर पुलिस के आला अफसरों से मिले और सोहागपुर भी गए. हेमा के बारे में सोहागपुर के लोगों का कहना है कि वह एक निहायत ही झक्की औरत है, जिस की पागलों जैसी हरकतें किसी सुबूत की मुहताज नहीं. खुद उस का पति भी स्वीकार कर चुका है कि वह एक मानसिक रोगी है.

अब जबकि आरोपी प्रदीप शर्मा अपना जुर्म कबूल कर चुका है, तब कुछ और सवाल भी मुंहबाए खड़े हैं कि क्या लीना शर्मा का बलात्कार भी किया गया था, क्योंकि उस की लाश बिना कपड़ों में मिली थी और उस के जेवर अभी तक बरामद नहीं हुए हैं?

आरोपियों ने यह जरूर माना कि लीना शर्मा का मोबाइल फोन उन में से एक ने चलती ट्रेन से फेका था. लाश चूंकि 15 दिन पुरानी हो गई थी, इसलिए पोस्टमार्टम से भी बहुत सी बातें साफ नहीं हो पा रही थीं. दूसरे सवाल का ताल्लुक पुश्तैनी जायदाद के लालच का है कि कहीं इस वजह से तो लीना शर्मा की हत्या नहीं की गई है?

प्रदीप शर्मा ने अपनी भांजी के बारे में कुछ नहीं सोचा कि उस ने अपनी जिंदगी में कितने दुख उठाए हैं और परेशानियां भी बरदाश्त की हैं. लीना शर्मा अगर दूसरी शादी कर के अपना घर बसाना चाह रही थी तो यह उस का हक था, लेकिन उस की दुखभरी जिंदगी का खात्मा भी दुखद ही हुआ.

फेसबुक फ्रैंड की घर में घुस कर की बेरहमी से हत्या

रोज की तरह 27 सितंबर, 2016 की सुबह भी किरण रावत उठ कर अपने कामकाज में लग गई थीं. कोई 6 बजे उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उन्हें हैरानी हुई कि इतने सवेरे किस ने फोन कर दिया. लेकिन जब स्क्रीन पर नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुईं कि कैसा कम्बख्त और बेशर्म लड़का है, जो हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन रिसीव न करना और काट देना उन्हें ठीक नहीं लगा, क्योंकि वह जानती थीं कि लड़का दोबारा ही नहीं, न उठाने तक फोन करता रहेगा. लिहाजा मन मार कर उन्होंने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘आंटी, मैं अमित बोल रहा हूं और अभीअभी गूजरखेड़ा से आया हूं. प्लीज एक बार आप मुझे प्रिया से 5 मिनट बातें कर लेने दें, उस के बाद मैं कभी उसे या आप को फोन नहीं करूंगा.’’ किरण पसोपेश में पड़ गईं कि क्या करें? अमित के फोन सुन कर वह खुद भी तंग आ चुकी थीं. हर बार घिसे हुए रिकार्ड की तरह गिड़गिड़ा कर वह एक ही बात की रट लगाए रहता था. अमित के बारे में वह उतना ही जानती थीं, जितना उन की बेटी प्रिया ने उन्हें बताया था.

17 साल की प्रिया होनहार छात्रा थी. इन दिनों वह आईआईटी की तैयारी कर रही थी. उस ने अमित के बारे में मां से कुछ भी नहीं छिपाया था. वह उस का फेसबुक फ्रैंड जरूर था, लेकिन फ्रौड था. उस ने प्रियांशी के नाम से अपना फेसबुक एकाउंट बना कर उसे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. उस ने अमित को प्रियांशी नाम की लड़की समझ कर उस की फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली थी. प्रिया अमित को लड़की समझ कर उस से कुछ महीनों तक चैटिंग भी करती रही. उसी बीच उस ने खुद का और मां का मोबाइल नंबर उसे दे दिया था. लेकिन जब उसे प्रियांशी यानी अमित की हकीकत पता चली तो उस ने उसे ब्लौक कर दिया. ब्लौक किए जाने के बाद अमित उसे मोबाइल पर फोन ही नहीं करने लगा, बल्कि प्यार का इजहार भी कर दिया.

प्रिया के लिए यह परेशानी वाली बात थी. वह इस बात पर खार खाए बैठी थी कि पहले तो अमित ने फेक एकाउंट के माध्यम से उस से दोस्ती गांठी और जब वास्तविकता सामने आई तो फोन पर प्यार का इजहार करने लगा. अमित के इस दुस्साहस से नाराज प्रिया ने उसे जम कर लताड़ा और आइंदा कभी फोन न करने की हिदायत दी. अमित नहीं माना और फोन न उठाने पर मैसेज करने लगा. इस से प्रिया को लगा कि यह सिरफिरा मानने वाला नहीं है, इसलिए उस ने उस पर ध्यान देना बंद कर दिया और पढ़ाई में मन लगाने लगी. जब प्रिया अनदेखी करने लगी तो अमित उस की मां किरण को फोन करने लगा.

उन से उस ने अपनी मनोस्थिति बताई कि जब से प्रिया ने उस से फोन पर बात करना बंद कर दिया है, तब से वह काफी तनाव में रहता है. उस तनाव में उस का सिर फटने लगता है. अगर वह एक बार आमनेसामने बैठा कर प्रिया से बात करा दें तो शायद उस की परेशानी दूर हो जाए. शुरूशुरू में तो सख्ती दिखाते हुए किरण ने बात कराने से मना कर दिया था, पर जब अमित के फोन बारबार आने लगे तो उन्हें लगा कि यह लड़का एकतरफा प्यार और गलतफहमी का शिकार हो गया है. ऐसे में अगर उस की इच्छा या जिद पूरी नहीं की गई तो वह इसी तरह प्रिया को ही नहीं, उन्हें भी परेशान करता रहेगा. 27 सितंबर, 2016 की सुबह जब अमित का फोन आया तो किरण ने सोचा कि आखिर इस अमित नाम की गले पड़ी मुसीबत से एक बार बात करने में हर्ज ही क्या है? लिहाजा उन्होंने उसे घर आने की इजाजत इस शर्त के साथ दे दी कि उसे जो भी बात करनी है, वह खिड़की से होगी. अमित इस पर भी तैयार हो गया और ठीक साढ़े 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं और उन के पति श्यामबिहारी एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं. प्रिया इन दोनों की एकलौती बेटी थी. वह काफी होशियार और समझदार थी. उस का पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई और कैरियर पर रहता था. इंजीनियर बनने की अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए वह एलेन कोचिंग इंस्टीट्यूट से कोचिंग भी ले रही थी. गीतानगर इंदौर का रिहायशी इलाका है. इस के कृष्णानगर अपार्टमेंट के थर्ड फ्लोर पर 3 सदस्यों वाला यह रावत परिवार सुकून से रह रहा था. हंसमुख और सुंदर प्रिया का ज्यादातर समय पढ़ाई में बीतता था. दिन में कुछ वक्त वह सोशल मीडिया, उस में भी फेसबुक पर बिता लेती थी.

फेसबुक इस्तेमाल करते समय क्याक्या सावधानियां रखी जानी चाहिए, उन्हें वह जानती थी. इसलिए अंजान लोगों और लड़कों से वह दोस्ती नहीं करती थी. पर वह अमित को प्रियांशी समझने की भूल कर बैठी, जिसे समय रहते उस ने अपने हिसाब से सुधार भी लिया था. लेकिन अमित से चैटिंग के दौरान प्रिया ने कुछ अंतरंग बातें कर ली थीं, जो स्वाभाविक भी थीं, क्योंकि वह तो उसे प्रियांशी नाम की लड़की और सहेली समझ रही थी. साढ़े 10 बजे कालबैल बजी तो किरण को समझते देर नहीं लगी कि अमित आ गया है. उन्होंने दरवाजा खोला और उसे देख कर रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है, बाहर से और जल्दी करो.’’ पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर 24 साल के अमित को इतना तो पता था कि जिस विनम्रता से वह अपनी प्रेमिका के घर के दरवाजे तक आ पहुंचा है, उसी का सहारा ले कर वह अंदर भी जा सकता है और ऐसा हुआ भी. उस ने गिड़गिड़ाते हुए गुजारिश की कि ज्यादा नहीं, वह सिर्फ 5 मिनट लेगा, इसलिए उसे अंदर आ कर इत्मीनान से बात कर लेने दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा.

किरण चूंकि अपने घर में थीं, इसलिए उन्हें किसी तरह का खतरा अमित से महसूस नहीं हुआ. क्योंकि वह देखने में ठीकठाक यानी शरीफ लग रहा था. उन का सोचना था कि एक बार यह प्रिया से बात कर लेगा तो इस की गलतफहमी या जिज्ञासा, जो भी है, खत्म हो जाएगी, इस के बाद हमेशा के लिए उस का इस बला से पिंड छूट जाएगा. यही सोच कर उन्होंने अमित को अंदर आने दिया. तब उन्हें कतई इस बात का अहसास नहीं था कि इस मासूम से चेहरे के पीछे हैवानियत और वहशीपन छिपा है. वह उन का घर उजाड़ने की मंशा से आया है. उस की मंशा कुछ और है. अंदर आ कर खुद को बेचैन दिखाते हुए अमित ने बाथरूम जाने की बात कही तो भी किरण को उस के खतरनाक मंसूबे का पता नहीं चला कि उन्होंने महज शिष्टाचार निभाते हुए कितनी बड़ी आफत मोल ले ली. इजाजत पा कर अमित बाथरूम की तरफ लगभग भागा तो वह ड्राइंगरूम में उस के वापस आने का इंतजार करने लगीं कि वह आए और अपनी बात कह कर जाए.

फ्लैट के भूगोल से अंजान अमित जाने कैसे प्रिया के कमरे तक पहुंच गया. उस समय वह स्कूल जाने के लिए अपना बैग तैयार कर रही थी. वह दबे पांव प्रिया के पीछे पहुंचा और साथ लाया चाकू निकाल कर उस के ऊपर हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से प्रिया चीखी तो उस की चीख सुन कर किसी अनहोनी की आशंका से घबराईं किरण उस के कमरे की तरफ भागीं. अंदर अमित प्रिया पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर रहा था. उस हालत में यह सोचने का समय नहीं था कि क्या किया जाए, इसलिए बगैर समय गंवाए किरण ने बेटी को बचाने की कोशिश की तो अमित ने उन पर भी हमला कर दिया. मां के आने पर मौका मिला तो प्रिया खुद को बचाने के लिए बाथरूम में घुस गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

किरण और प्रिया की चीखें सुन कर अपार्टमेंट के लोग उन के फ्लैट की तरफ भागे तो उन्होंने देखा कि एक लड़का हाथ में चाकू लिए भाग रहा है. अमित अभी सैकेंड फ्लोर तक ही आ पाया था कि उसे नीचे से भी लोग आते दिखे. उसे लगा कि लोगों ने उसे देख लिया है. अगर वह भीड़ के हत्थे चढ़ गया तो खासी धुनाई होगी. लिहाजा बचने की गरज से उस ने दूसरी मंजिल से छलांग लगा दी. पड़ोसी जब किरण के फ्लैट पर पहुंचे तो जल्द ही वहां की स्थिति उन की समझ में आ गई. किरण के इशारे पर वे बाथरूम की तरफ भागे और दरवाजा तोड़ा तो प्रिया मरणासन्न हालत में पड़ी थी. उस के शरीर का काफी खून बह गया था. लोग उसे कार में डाल कर अस्पताल के लिए भागे. इसी बीच किसी ने फोन से इस घटना की खबर पुलिस को कर दी थी. इंदौर के सुयश अस्पताल में प्रिया का इलाज शुरू हुआ. लेकिन इलाज के दौरान ही उस ने दम तोड़ दिया. अमित ने उस की पीठ, पेट, आंख, कान, गले और सीने पर लगभग दर्जन भर वार किए थे. श्यामबिहारी को जब एकलौती बेटी की हत्या की सूचना मिली तो वह बेहोश हो गए.

अमित दूसरी मंजिल से कूदा तो फिर उठ नहीं सका. उस के हाथपैर में फ्रैक्चर हो गया. उसे गिरफ्तार कर के एम.वाय. अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया. वह पूरे होश में था. उस के चेहरे पर डर या पछतावा जैसी कोई चीज नहीं थी. लगता था, वह यही करना चाहता था. प्रिया की हत्या ही उस का मकसद था. गूजरखेड़ा गांव के रहने वाले अमित की फ्रैंडसर्किल कोई बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन सोशल मीडिया की उस की दुनिया काफी बड़ी थी. वह दिनरात स्मार्टफोन से चिपके हुए चैटिंग करता रहता था. लड़कियों से दोस्ती करने की गरज से उस ने प्रियांशी के नाम से एकाउंट बना कर तमाम लड़कियों से दोस्ती कर ली थी. प्रिया से दोस्ती की जगह प्यार हो गया तो उस ने उस से दिल की बात कह डाली. लेकिन प्रिया ने उस धोखेबाज को झिड़क दिया तो एकतरफा प्यार की गिरफ्त में आए इस सिरफिरे ने उसे दुनिया से ही विदा कर दिया.

पूछताछ में अपने बचाव के मकसद से अमित गोलमोल जवाब देता रहा. वह अपने पिता सुनील यादव से झूठ बोल कर निकला था कि इंटरव्यू देने जा रहा है. वह पुलिस से यह कह कर उसे भ्रमित करने की कोशिश कर रहा था कि जब वह प्रिया के कमरे में पहुंचा तो वह उस पर ज्यादती का आरोप लगाने लगी. जबकि फोरैंसिक रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि प्रिया ने खुद पर कोई वार नहीं किया था. अमित का कहना था कि प्रिया ने उस का चाकू छीन कर खुद पर वार किए थे. एक दूसरा बयान उस ने यह भी दिया था कि उसे आशंका थी कि प्रिया के घर जाने पर उस के साथ कोई भी अनहोनी हो सकती है, इसलिए उस ने ही खुद पुलिस को 100 नंबर पर फोन कर के बुलाया था.

किरण पर हमले की बात से मुकरते हुए उस ने कहा कि भागते हुए जब वह बीच में आ गईं तो हाथ में पकड़े चाकू से उन्हें जख्म हो गया. जबकि हकीकत यह थी कि अमित प्रिया से एकतरफा प्यार करने लगा था और उस के मना करने पर जलभुन गया था. फेसबुक की दोस्ती पर ऐसे अपराध अब आम हो चले हैं, जिन का शिकार प्रिया जैसी लड़कियां हो रही हैं. ऐसे में उन्हें और संभल कर रहने की जरूरत है. प्रिया उस का पहला प्यार था और उस के ठुकरा देने से वह उस से नफरत करने लगा था, जिस की वजह से उस ने एक हंसताखेलता घर उजाड़ दिया.

Crime: गुमनामी में मरा अरबपति

ऐसा कर के अपने धन, एकाउंट या महत्त्वपूर्ण चीजों को सुरक्षित तो किया जा सकता है, लेकिन फिजिकली एक्सेस करने वाले के न रहने पर लौक खोलना आसान नहीं होता. इसी चक्कर में कनाडा के अरबपति जेराल्ड की 1359 करोड़ रुपए की करेंसी फंस गई…  शक नाडा की सब से बड़ी क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंज कंपनी क्वाड्रिगा सीएक्स के सीईओ जेराल्ड कौटेन की जयपुर के एक निजी अस्पताल में गुमनाम मौत हो गई. इस कंपनी के संस्थापक जेराल्ड 30 साल के थे. बीते 9 दिसंबर को हुई जेराल्ड की मौत का कारण आंत की गंभीर बीमारी बताया जा रहा है. वे भारत में अनाथालय खोलने आए थे और जयपुर में जगह तलाश रहे थे. जेराल्ड की मौत के बाद उन की कंपनी क्वाड्रिगा सीएक्स की 19 करोड़ डौलर यानी करीब 1359 करोड़ रुपए कीमत की करेंसी फंस गई है.

यह क्रिप्टो करेंसी जेराल्ड के लैपटौप में बंद है और उस का पासवर्ड किसी को पता नहीं है. इतने अमीर आदमी की मौत का किसी को पता नहीं चल सका तो इस की वजह यह थी कि जयपुर में उन्हें कोई नहीं जानता था. 31 जनवरी को जेराल्ड की पत्नी जेनिफर रौबर्टसन और कंपनी ने कनाडा की अदालत में क्रेडिट अपील दायर की कि वे जेराल्ड के एनक्रिप्टेड एकाउंट को अनलौक नहीं कर पा रहे हैं. इस के बाद ही दुनिया को जेराल्ड की मौत का पता चला.

जयपुर प्रवास के दौरान जेराल्ड की एक होटल में अचानक तबीयत बिगड़ गई थी. इस के बाद उन्हें मालवीय नगर स्थित निजी अस्पताल ले जाया गया. जहां 2 घंटे बाद ही उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. वह गंभीर स्थिति में अस्पताल पहुंचे थे. यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में चल रहा है. इसलिए अस्पताल के अधिकारी आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कह रहे हैं. दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने जेराल्ड का मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किया है.

इस मामले में जवाहर सर्किल थानाप्रभारी अनूप सिंह का कहना है कि विदेशी जेराल्ड की मौत की जानकारी निजी अस्पताल से आई थी. मौत बीमारी के कारण हुई थी, इसलिए केस दर्ज नहीं किया गया.

जेराल्ड की पत्नी जेनिफर की ओर से अदालत में दिए गए हलफनामे के अनुसार, क्वाड्रिगा सीएक्स कंपनी के दुनिया भर में 3 लाख 63 हजार यूजर्स हैं. जेराल्ड के मुख्य कंप्यूटर में क्रिप्टो करेंसी का एक कोल्ड वौलेट था, जिसे केवल फिजिकली एक्सेस किया जा सकता है. यह औनलाइन नहीं है. जेराल्ड ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन के पास इस कंपनी के वौलेट के पासवर्ड थे. जेराल्ड के निधन के कारण क्रिप्टो करेंसी लौक हो गई है.

इस बीच कुछ लोग सोशल मीडिया पर जेराल्ड की मौत पर संदेह जता रहे हैं. यह धोखाधड़ी का मामला होने की भी आशंका जताई जा रही है. सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर बीमारी थी तो जेराल्ड भारत क्यों आए? उन्होंने अपना इलाज कनाडा में क्यों नहीं कराया?

हालांकि जेराल्ड की पत्नी जेनिफर ने कहा कि जेराल्ड की मौत स्वाभाविक है. दूसरी ओर कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि जेराड की मौत के कारण हम कंपनी के पास जमा बिटकौइन व अन्य डिजिटल करेंसी को एक्सेस नहीं कर पा रहे हैं.

जेराल्ड का लैपटाप, ईमेल एड्रैस व मैसेजिंग सिस्टम सब कुछ एनक्रिप्टेड है. इसलिए पासवर्ड हासिल कर पाना लगभग असंभव हो रहा है. कंपनी इस वित्तीय संकट से निकलने का रास्ता तलाश रही है. कंपनी ने कहा कि उसे ब्रिटिश कोलंबिया स्थित नोवा स्कोटिया सुप्रीम कोर्ट में क्रेडिटर प्रोटेक्शन मिल गया है. यानी उस के खिलाफ फिलहाल कानूनी काररवाई नहीं की जा सकती.

क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंज कंपनी क्वाड्रिगा के पास करीब 7 करोड़ कैनेडियन डौलर यानी करीब 380 करोड़ रुपए का कैश है, लेकिन बैंकिंग मुश्किलों के कारण क्रिप्टो करेंसी के एवज में इसे नहीं दिया जा सकता. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक क्वाड्रिगा के 3 लाख 63 हजार रजिस्टर्ड यूजर में से 92 हजार के एकाउंट में या तो क्रिप्टो करेंसी या फिर कैश के रूप में बैलेंस है.

वैसे जेराल्ड ने 27 नवंबर, 2018 को ही अपनी वसीयत पर दस्तखत किए थे, जिस में उन्होंने अपनी 96 लाख डौलर की कुल संपत्ति का वारिस पत्नी को ही बनाया था. वसीयत होने के 2 सप्ताह बाद ही जेराल्ड की मृत्यु होने पर संदेह पैदा होना स्वाभाविक है.

जेराल्ड की पत्नी जेनिफर ने कहा कि भारत स्थित कनाडाई उच्चायोग ने जेराल्ड की मौत की पुष्टि की है. मैं पासवर्ड या रिकवरी-की नहीं जानती हूं. घर में भी कई बार तलाशी ली लेकिन पासवर्ड कहीं पर भी लिखा नहीं मिला.

एक्सचेंज ने कई टेक एक्सपर्ट्स को जेराल्ड का लैपटाप हैक करने के लिए हायर किया है. लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली. कंपनी दूसरे एक्सचेंज की मदद से अपने यूजर्स की क्रिप्टो करेंसी को अनलौक करने की कोशिश भी कर रही है.

दरअसल, हैकिंग से बचने के लिए कोल्ड वौलेट में बिटकौइन जैसी मुद्रा को औफलाइन नेटवर्क पर रखा जाता है. इसे क्यूआर कोड से सुरक्षित करते हैं. हाल ही में एक जापानी कंपनी के बिटकौइन चोरी होने के बाद इस का प्रयोग बढ़ गया है. इस का एक्सेस सीमित होता है. कोल्ड वौलेट को यूएसपी ड्राइव में भी सिक्योर किया जा सकता है.

क्रिप्टो करेंसी के जानकारों का कहना है कि यह अपनी तरह का पहला मामला है, जहां कोल्ड वौलेट में इतने यूजर्स की करेंसी को लौक किया गया. वैसे कंपनियां यूजर्स के खाते में ही करेंसी अपलोड करती हैं.

ये भी पढ़ें- कातिल बहन की आशिकी

रोक के बावजूद क्रिप्टो करेंसी में भारतीयों ने करीब 13 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर रखा है. रिजर्व बैंक के अनुसार क्रिप्टो करेंसी के लेनदेन को भारत में मान्यता नहीं दी गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना करीब ढाई हजार लोग इस में निवेश करते हैं.

क्रिप्टो करेंसी एक तरह की डिजिटल या आभासी मुद्रा होती है, जिस का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता. इस मुद्रा को कई देशों ने मान्यता दे रखी है.

इस तरह की करेंसी को बेहद जटिल कोड से तैयार किया जाता है और इसे बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. जैसे रुपए, डौलर या पौंड मीडियम औफ ट्रांजैक्शन की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं, वैसे ही क्रिप्टो करेंसी को भी इस्तेमाल किया जा सकता है.द्य

 

Crime: सोशल मीडिया : महिलाएं और झूठ के धंधे का फंदा

Crime in Hindi: आज देश में शहर से गांव गलियों तक विस्तारित सोशल मीडिया के चंगुल में महिलाएं किस तरह फंस रही हैं. यह एक सोचनीय विषय बनकर हमारे सामने आ रहा है, देश में जाने कितनी ऐसी घटनाएं घटित हो चुकी हैं जिसमें पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सोशल मीडिया के संजाल में फंस कर अपनी अस्मत, अपने गाढ़ी कमाई के लाखों रूपए दोनों हाथों से लूटा चुकी हैं. आज प्रश्न यही है कि आमतौर पर महिलाएं सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म फेसबुक, व्हाट्सएप आदि पर अपेक्षाकृत अधिक क्यों फंसकर अपना सर्वस्व लुटा रही है. ऐसे क्या कारण है कि महिला फेसबुक में मित्रता करती है और आने वाले समय में बर्बाद हो जाती है. आखिर इस लूट का मनोविज्ञान क्या है?

क्या महिलाएं इसके लिए दोषी हैं… क्या महिलाएं इतनी भोली भाली एवं सहज हैं कि फेसबुक की सामान्य सी मित्रता में अपना सब कुछ दांव पर लगा देती हैं. आज सोचने वाला मसला यही है कि यह भयंकर दानव सदृश्य सोशल मीडिया क्यों और कैसे महिलाओं को अपना ग्रास बना रहा है. इसके लिए महिलाएं कैसे अपनी सुरक्षा करें. जैसा की सर्वविदित है फेसबुक एवं सोशल मीडिया का प्लेटफार्म सभी को अपनी और आकर्षित कर रहा है.

जहां यह मंच अपने आप में एक आकर्षण का विषय है, जहां यह हमें एक नई ऊर्जा प्रदान करता है. वहीं यह भी सच है कि छोटी सी चूक आप को बर्बाद कर सकती है इसी का उदाहरण है महिलाओं का सतत सोशल मीडिया के मंच पर शोषण एवं ठगी का शिकार बनना. आइए, आज इस गंभीर मसले पर एक विमर्श को समझे.

विदेशी ठगों की शिकार महिलाएं

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फेसबुक के जरिए महिलाओं को फंसाकर ठगी करने वाले विदेशी को पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है. आरोपी ने पार्सल से रकम के साथ जूते, बैग भेजने की बात कहते हुए प्रार्थियों से कुल 5 लाख 10 हजार रुपए की ठगी की थी.प्रार्थिया महिला ने थाना सिविल लाइन में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि अगस्त 2019 में प्रार्थिया की दोस्ती फेसबुक के जरिए एलेक्स एंटोनी नामक व्यक्ति से हुई थी.

इसके बाद से दोनों के बीच बातचीत होती रहती थी. इसी दौरान एलेक्स एंटोनी ने प्रार्थिया को फोन पर कुछ आयटम जैसे- जूते, बैग और कुछ पैसे पार्सल करने की बात कही. इसके बाद पार्सल के क्लियरेंस के नाम पर, एंटी टेरेरिस्ट सर्टिफिकेट के नाम पर और फाइनेंस मिनिस्ट्री में टैक्स देने के नाम पर प्रार्थिया से कुल 5,10,000 की ठगी कर ली थी. इसके बाद भी रकम मांगे जाने पर प्रार्थिया को ठगी का अहसास हुआ. उसने आरोपियों के विरूद्ध थाना सिविल लाइन में अपराध पंजीबद्ध कराया.पुलिस ने धारा 420, 34 भादवि. का अपराध पंजीबद्ध मामले की जांच शुरू की.

जांच के लिए गठित पुलिस की विशेष टीम ने पूर्व में इसी तरह के घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए नाइजीरियन गिरोह पर फोकस किया. आरोपियों एवं प्रार्थिया के मध्य फेसबुक के जिस आईडी व मैसेज तथा मोबाइल नंबरों के माध्यम से बातचीत हुई थी, उसका तकनीकी विश्लेषण करने के बाद आरोपी के लोकेशन का पता लगाया और थाना डाबरी क्षेत्र में निवास करने वाले नाइजीरियन नागरिक आरोपी क्रिस्टोफर को पकड़कर कड़ाई से पूछताछ की, जिसमें उसने प्रार्थिया को अपने झांसे में लेकर प्रलोभन देकर पैसे लेने की बात स्वीकार की. पुलिस ने आरोपियों को जेल भेज दिया है. वहीं यह भी तथ्य है कि छत्तीसगढ़ में ही ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं. हाल ही में राजनांदगांव में में भी एक पुलिस अधिकारी की पत्नी से लगभग 45 लाख रुपए की ठगी की घटना घटित हुई है.

महिला वर्ग: सावधान

फेसबुक सोशल मीडिया के मंच पर महिलाएं जिस कदर ठगी जा रही हैं. यह एक दुश्चिंता का विषय बना हुआ है.अक्सर यह खबरें आ रही हैं कि महिलाओं को फेसबुक पर लुभावने वादे करके ठगा जा रहा है दूसरी तरफ सोशल मीडिया में मित्रता करके महिलाओं के साथ उनके दैहिक शोषण की घटनाओं में भी अचानक वृद्धि हो गई है.

इस संदर्भ में पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह कहते हैं -इसका सहज सरल कारण है महिलाओं का भोलापन, वे मीठी- मीठी बातों में पुरुषों की अपेक्षा जल्दी आ फंसती हैं. उन्होंने इस संदर्भ में सुझाव देते हुए उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया में मित्रता चैटिंग सिर्फ और सिर्फ चिर परिचित लोगों से ही किए जाने पर महिलाएं सुरक्षित रह सकती हैं. अनजान व्यक्तियों से मित्रता उन्हें धोखा देने का पूरा सबब बन सकता है.

झूठ का कारोबार ज्यादा….

राजधानी रायपुर में पदस्थ पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा ने इस मसले पर बातचीत करने पर बताया- सोशल मीडिया एक आकर्षक स्थान है जहां महिलाएं युवतियां निरंतर ठगी जा रही है और पुलिस के पास इसकी अनेक शिकायतें आती रहती हैं. अगर महिलाएं इससे बचना चाहें तो इसका सीधा सा सरल तरीका है ऐसे किसी भी मसले पर जब उन्हें आर्थिक प्रलोभन दिया जाता है वह अपने परिजनों से अवश्य चर्चा करें. इस हेतु शासन द्वारा बनाए गए परामर्श केंद्रों से भी महिलाएं परामर्श ले सकती हैं.

सबसे अहम मसला यह है कि फेसबुक को महिलाएं अंतिम सत्य मान लेती है,जबकि यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां झूठ का कारोबार ज्यादा होता है. महिला थोड़ी भी बुद्धिमानी विवेक से काम ले तो वह इस ठगी से बच सकती है हम आज इस लेख के माध्यम से महिलाओं को आगाह करते हुए कहना चाहते हैं कि किसी भी आर्थिक मसले पर एक बार अवश्य सोचें और अपने आंख कान खुले रखें ऐसी स्थिति में वे कदापि ठगी नहीं जाएंगी.

भाई ने ही छीन लिया बहन का सुहाग

मध्य महाराष्ट्र की कृष्णा नदी की सहायक नदियों के किनारे निचली पहाड़ियों की लंबी शृंखला है. इन की घाटियों में बसे बीड शहर की अपनी एक अलग पहचान है. पहले यह शहर चंपावती के नाम से जाना जाता था. बीड में अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतें हैं. इस के अलावा यहां शैक्षणिक संस्थान और कालेज भी हैं, जहां आसपास के शहरों से हजारों लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते हैं.

घटना 19 दिसंबर, 2018 की है. उस समय शाम के यही कोई पौने 6 बजे का समय था. बीड के जानेमाने आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में सेमेस्टर परीक्षा का अंतिम पेपर चल रहा था, हजारों की संख्या में युवकयुवतियां परीक्षा दे रहे थे. इन्हीं में भाग्यश्री और सुमित वाघमारे भी थे. ये दोनों पतिपत्नी थे.

निर्धारित समय पर जब पेपर खत्म हुआ तो अन्य छात्रछात्राओं के साथ ये दोनों भी कालेज से बाहर आ गए. इन दोनों के चेहरों पर खुशी की चमक थी. मतलब उन का पेपर काफी अच्छा हुआ था, जिस की खुशी वह अपने सहपाठियों में बांट रहे थे.

लेकिन कौन जानता था कि उन के खिले चेहरों की खुशी सिर्फ कुछ देर की मेहमान है. परीक्षा के परिणाम आने के पहले ही उन की जिंदगी में जो परिणाम आने वाला था. वह काफी भयानक था. 15-20 मिनट अपने सहपाठियों से मिलनेजुलने के बाद दोनों पार्किंग में पहुंचे, जहां उन की स्कूटी खड़ी थी.

सुमित वाघमारे ने पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाली और दोनों उस पर बैठ कर घर जाने के लिए निकल गए. 10 मिनट में वह नालवाड़ी रोड गांधीनगर चौक पर पहुंच गए. तभी उन की स्कूटी के सामने अचानक एक मारुति कार आ कर रुकी. उस वक्त सड़क कालेज के सैकड़ों छात्रों और भीड़भाड़ से भरी थी. मारुति कार उन की स्कूटी के सामने कुछ इस तरह आ कर रुकी थी कि वे दोनों रोड पर गिरतेगिरते बचे थे. इस के पहले कि वे संभल कर कुछ कहते, कार से 2 युवक निकल कर बाहर आ गए.

उन्हें देख कर भाग्यश्री और सुमित वाघमारे के होश उड़ गए. क्योंकि उन में से एकभाग्यश्री का भाई बालाजी लांडगे और दूसरा उस का दोस्त संकेत था. उन के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

बालाजी लांडगे सुमित को खा जाने वाली नजरों से घूरे जा रहा था. भाग्यश्री अपने भाई के गुस्से को समझ रही थी. संभावना को देखते हुए भाग्यश्री अपने पति की रक्षा के लिए झट से पति के सामने आ खड़ी हुई. इस के बावजूद भी बालाजी लांडगे ने बहन को धक्का दे कर सुमित के सामने से हटाया और अपने दोस्त संकेत वाघ की तरफ इशारा कर के सुमित को पकड़ने के लिए कहा.

संकेत ने सुमित का कौलर पकड़ लिया. यह देख बालाजी बोला, ‘‘क्यों बे, मैं ने कहा था न कि मेरी बहन से दूर रहना, नहीं तो नतीजा बुरा होगा. लेकिन मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं हुआ. इस की सजा तुझे जरूर मिलेगी.’’

गुस्से में चाकू बना तलवार

इस के पहले कि सुमित कुछ कहता या संभल पाता, बालाजी लांडगे ने अपनी जेब से चाकू निकाला और सुमित पर हमला कर दिया. पति पर हमला होता देख भाग्यश्री चीखते हुए बोली, ‘‘भैया, सुमित को छोड़ दो. उस की कोई गलती नहीं है. सजा देनी है तो मुझे दो. मैं ने उसे प्यार और शादी के लिए मजबूर किया था. तुम्हें मेरी कसम है भैया. दया करो, बहन पर.’’

‘‘कैसी बहन, मेरी बहन तो उसी दिन मर गई थी, जब घर से भाग कर तूने इस से शादी की थी. जानती है तेरी इस करतूत से समाज और बिरादरी में हमारी कितनी बदनामी हुई. तूने परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा. लेकिन मैं भी इसे नहीं छोड़ूंगा.’’ वह बोला.

अगले ही पल बालाजी लांडगे ने चाकू सुमित वाघमारे के पेट में उतार दिया. इस हमले से सुमित वाघमारे की मार्मिक चीख निकली और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. इस के बाद भी बालाजी लांडगे का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह सुमित वाघमारे पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.

इस दौरान भाग्यश्री रहम की भीख मांगती रही. पति की जान बचाने के लिए वह मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही. लेकिन उस की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया. सुमित वाघमारे की हत्या करने के बाद बालाजी और उस का दोस्त संकेत दोनों वहां से चले गए.

अचानक घटी इस घटना को जिस ने भी देखा, स्तब्ध रह गया. शहर के बीचोबीच भीड़भाड़ भरे इलाके में घटी इस घटना से पूरे बीड शहर में सनसनी फैल गई. भाग्यश्री पति के शरीर से लिपट कर बुरी तरह चीखचिल्ला कर लोगों से सहायता मांग रही थी कि उस के पति को अस्पताल ले जाने में मदद करें. लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया.

काफी हाथपैर जोड़ने के बाद आखिरकार एक आटो वाले को दया आई और वह सुमित वाघमारे को अपने आटो से जिला अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने सुमित को मृत घोषित कर दिया.

यह सुन कर भाग्यश्री अस्पताल में ही फिर से रोने लगी. अस्पताल स्टाफ ने उसे सांत्वना दी. पुलिस केस था, लिहाजा अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. भाग्यश्री ने अस्पताल से ही सुमित के घर वालों को फोन कर के उस की हत्या की खबर दे दी थी.

अस्पताल पहुंचे थाना विलपेठ के पीआई ने भाग्यश्री से बात की तो उस ने बता दिया कि उस के पति की हत्या उस के सगे भाई बालाजी लांडगे और उस के दोस्त संकेत ने की है. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

कुछ ही देर में बीड शहर के एसपी जी. श्रीधर, एडीशनल एसपी वैभव कलुबर्मे, डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर, पीआई घनश्याम पालवदे, एपीआई दिलीप तेजनकर, अमोल धंस, पंकज उदावत के साथ अस्पताल आ गए. उन्होंने मृतक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर तेज धार वाले हथियार के कई वार थे.

अस्पताल से पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई फिर से अस्पताल गए. उन्होंने सुमित की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

औनरकिलिंग के चक्कर में हुई हत्या

भाग्यश्री ने अपने भाई बालाजी लांडगे और संकेत वाघ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाने के बाद पुलिस को बताया कि जब से उस ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज की थी, तब से उस के परिवार वाले अकसर सुमित को धमकियां देते आ रहे थे, जिस की उन्होंने करीब एक महीने पहले शिवाजी नगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो बालाजी के हौसले बुलंद हो गए.

पुलिस को मामला औनरकिलिंग का लग रहा था. दिनदहाड़े हत्या होने की खबर जब शहर में फैली तो एसपी जी. श्रीधर ने लोगों को भरोसा दिया कि हत्यारों को जल्द पकड़ लिया जाएगा. उन्होंने उसी समय इस केस की जांच पुलिस डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर को सौंप दी.

खिरडकर ने जांच का जिम्मा लेते ही स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की कई टीमें बना कर तेजी से जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सब से पहले शहर की नाकेबंदी कर के अभियुक्तों के बारे में अलर्ट जारी कर दिया.

घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो इस बात की पुष्टि हो गई कि वारदात को बालाजी लांडगे और संकेत वाघ ने ही अंजाम दिया था. लिहाजा पुलिस ने दोनों के फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही मुखबिरों को भी सजग कर दिया. लेकिन 3 दिनों तक पुलिस और क्राइम ब्रांच को कोई सफलता नहीं मिली.

जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि सुमित वाघमारे की हत्या में बालाजी लांडगे के दोस्त कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बालाजी और उस का दोस्त संकेत फरार हो चुके थे. लिहाजा पुलिस टीम ने दबिश दे कर कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर को गिरफ्तार कर लिया.

कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर ने क्राइम ब्रांच को बताया कि बालाजी लांडगे और संकेत वाघ पुणे होते हुए औरंगाबाद में एक मंत्री के घर गए हैं. यह सूचना मिलते ही क्राइम ब्रांच की टीम पुणे में उस मंत्री के घर पहुंच गई. पता चला कि टीम के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से अमरावती के लिए निकल गए थे.

आरोपी अमरावती शहर से बाहर न जा सकें, इस के लिए एसपी जी. श्रीधर ने अमरावती के पुलिस कमिश्नर से अभियुक्तों की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा. तब पुलिस कमिश्नर ने अमरावती शहर की पुलिस के साथ जीआरपी को भी सतर्क कर दिया. जीआरपी ने बालाजी लांडगे और संकेत वाघ को अमरावती के बडनेरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उन्होंने दोनों अभियुक्त क्राइम ब्रांच की जांच टीम को सौंप दिए.

क्राइम ब्रांच औफिस में बालाजी लांडगे से पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना गुनाह स्वीकार करते हुए अपनी बहन के सुहाग की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

25 वर्षीय सुमित वाघमारे महत्त्वाकांक्षी युवक था. मूलरूप से बीड तालखेड़ा, तालुका मांजल, गांव हमुनगोवा का रहने वाला था. उस के पिता शिवाजी वाघमारे गांव के जानेमाने किसान थे. गांव में उन की काफी प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटी और बेटा सुमित वाघमारे थे.

शिवाजी वाघमारे उसे उच्चशिक्षा दिला कर कामयाब इंसान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुमित का एडमिशन बीड शहर के आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में करवाया. उस के रहने की व्यवस्था उन्होंने बीड शहर में ही रहने वाली अपनी साली के यहां कर दी थी. अपनी मौसी के घर रह कर सुमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा.

इसी कालेज से भाग्यश्री लांडगे भी इंजीनियरिंग कर रही थी. दोनों एक ही कक्षा में थे, जिस से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. उन की दोस्ती प्यार तक कब पहुंच गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों.

पहले दोस्ती, फिर प्यार, बाद में शादी समय धीरधीरे सरक रहा था. कालेज की पढ़ाई और परीक्षा में सिर्फ 6 महीने रह गए थे. दोनों ने फाइनल परीक्षा के बाद शादी करने का फैसला किया था, लेकिन इस के पहले ही भाग्यश्री के परिवार वालों को उस के और सुमित के बीच चल रहे प्यार की जानकारी हो गई, जिसे जान कर वे सन्न रह गए. उन्होंने भाग्यश्री के लिए जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरते हुए नजर आया.

मामला काफी नाजुक था. भाग्यश्री का फैसला उन की मानमर्यादा के खिलाफ था. लेकिन भाग्यश्री सुमित वाघमारे के प्यार में अंधी हो चुकी थी. फिर भी उन्होंने मौका देख कर भाग्यश्री को समझाने की काफी कोशिश की. उस के भाई बालाजी लांडगे को तो सुमित जरा भी पसंद नहीं था.

वह न तो उन की बराबरी का था और न ही उन की बिरादरी का. उस ने भाग्यश्री को न केवल डांटाफटकारा बल्कि बुरे अंजाम की चेतावनी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि अगर उस ने अपनी राह और रवैया नहीं बदला तो उस का कालेज जाना बंद करा देगा.

घर और परिवार का माहौल बिगड़ते देख भाग्यश्री समझ गई कि घर वाले उस की शादी में जरूर व्यवधान डालेंगे. इसलिए किसी भी नतीजे की परवाह किए बगैर कालेज की परीक्षा के 3 महीने पहले उस ने अपने प्रेमी सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज कर ली. इतना ही नहीं, कुछ दिनों के लिए वह पति सुमित के साथ भूमिगत हो गई.

भाग्यश्री के अचानक गायब हो जाने के बाद उस के घर वालों की काफी बदनामी हुई. इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि उस ने सुमित से शादी कर ली है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. जब वे नहीं मिले तो सुमित वाघमारे को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने शिवाजी नगर थाने में सुमित के खिलाफ भाग्यश्री के अपहरण की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी काररवाई शुरू कर दी. इसी बीच भाग्यश्री को पता चल गया कि पुलिस उन्हें तलाश रही है. लिहाजा अपनी शादी के एक महीने बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे दोनों पुलिस के सामने हाजिर हो गए. दोनों ने अपने बालिग होने और शादी करने का प्रमाणपत्र पुलिस को दे दिया. साथ ही अपनी सुरक्षा की भी गुहार लगाई.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने भाग्यश्री के परिवार वालों को समझा दिया कि दोनों बालिग हैं, इसलिए उन की शादी कानूनन वैध है. इसलिए उन्हें किसी भी तरह तंग न किया जाए. अगर भाग्यश्री या उस के पति ने थाने में अपनी सुरक्षा आदि को ले कर कोई शिकायत की तो पुलिस को काररवाई करनी पड़ेगी.

लेकिन पुलिस की चेतावनी के बाद भी भाग्यश्री के परिवार वालों का रवैया नहीं बदला. उन के अंदर प्रतिशोध की चिंगारी सुलगती रही. भाग्यश्री के भाई बालाजी लांडगे ने भाग्यश्री और सुमित वाघमारे को घटना के एक महीने पहले सबक सिखाने की धमकी दी थी, जिस की शिकायत उन्होंने थाने में भी की थी.

प्रेमी युगल की शिकायतके बावजूद कुछ नहीं हुआ

पुलिस में की गई इस शिकायत का भी बालाजी पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपने परिवार की बेइज्जती पर भाग्यश्री को सबक सिखाना चाहता था. इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार की, जिस में उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ, कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर की मदद ली. उन्हें उन का काम समझा कर वह मौके की तलाश में रहने लगा था.

19 दिसंबर, 2018 को कृष्णा क्षीरसागर ने बालाजी लांडगे को बताया कि भाग्यश्री और सुमित वाघमारे अपनी परीक्षा देने के लिए कालेज आएंगे. खबर पाते ही बालाजी लांडगे अपनी योजना की तैयारी में लग गया. उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ को उस की कार के साथ लिया और कालेज के पास आ कर परीक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगा.

परीक्षा खत्म होने के बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे जब अपनी स्कूटी से कालेज से घर के लिए निकले तो बालाजी लांडगे ने उन का रास्ता रोक लिया और देखते ही देखते बहन के सिंदूर को रक्त के कफन में लपेट दिया.

सुमित वाघमारे की हत्या के बाद संकेत वाघ और बालाजी लांडगे ने कार ले जा कर मित्रनगर छोड़ दी. वहां से वह गजानंद क्षीरसागर की स्कूटी से वाडा रेलवे स्टेशन गए, वहां से वे पुणे, औरंगाबाद और अमरावती पहुंचे, जहां वे रेलवे पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.

चारों गिरफ्तार अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद बीड क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उन्हें विलपेठ पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

एक क्राइम ऐसा भी, क्यों निकले मजबूर डोर के कच्चे रिश्ते

Crime News in Hindi: उत्तर प्रदेश (Uttarpradesh) के गोरखपुर (Gorakhpur) जिले का एक गांव है उमरपुर. यह गांव थाना चिलुआताल के अंतर्गत आता है. गांव के बाहर आम का एक बड़ा बाग स्थित है. 21 नवंबर, 2018 को करीब 10 बजे गांव के ही विकास, राजन और अमन नाम के लड़के इस बाग में खेलने के लिए गए थे. वहां पहुंच कर वे अपने खेल की दुनिया में रम गए थे. खेल के दौरान ही राजन चिल्लाता दौड़ता हुआ विकास और अमन के पास जा पहुंचा. उसे चिल्लाता देख दोनों परेशान हो गए. तभी विकास ने उस से पूछा, ‘‘अबे तू चिल्ला क्यों रहा है? वहां झाड़ी में क्या कोई भूत देख लिया जो चीख रहा है और तेरे माथे पर पसीना आ गया.’’

‘‘भूत नहीं, वहां झाड़ियों में एक लड़की की लाश पड़ी है.’’ लंबी सांसें भरता हुआ राजन बोला, ‘‘तुम्हें मेरी बातों पर यकीन न हो रहा हो तो आओ मेरे साथ, तुम्हें भी दिखाता हूं.’’ कह कर राजन झाड़ी की ओर बढ़ा तो उत्सुकतावश उस के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल दिए.

जब वह झाडि़यों के पास पहुंचे तो वास्तव में वहां एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाश देख कर वे अपना खेल खेलना भूल गए और सभी सिर पर पैर रखे चिल्लाते हुए गांव की ओर भागे.

गांव पहुंच कर उन्होंने इस की सूचना गांव वालों को दी. बच्चों की सूचना पर गांव के कई लोग लाश देखने के लिए आम के बाग में पहुंच गए. थोड़ी देर में वहां तमाशबीनों का मजमा जमा हो गया. सूचना पा कर गांव का चौकीदार आफताब आलम भी मौके पर पहुंच गया था.

लड़की की लाश देख कर चौकीदार आफताब आलम ने सूचना चिलुआताल के थानाप्रभारी अरुण पवार को फोन द्वारा दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण पवार मय फोर्स उमरपुर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश की दशा देख कर वह दंग रह गए. हत्यारों ने मृतका को 5 गोलियां मारी थीं. कनपटी और सीने में एकएक और पेट में 3 गोलियां मार कर उस की हत्या की थी. शरीर पर कई जगह नुकीले हथियार से गोदे जाने के निशान भी थे. खून भी सूख कर पपड़ी के रूप में जम गया था.

लाश से थोड़ी दूर पर कारतूस के 2 खोखे भी पड़े मिले. पुलिस ने वह कब्जे में ले लिए. मौके से कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से शव की पहचान हो सके. शव की शिनाख्त के लिए थानाप्रभारी पवार ने मौके पर जुटे ग्रामीणों से पूछताछ की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

इस का मतलब साफ था कि मृतका चिलुआताल की रहने वाली नहीं थी. यानी वह कहीं और की रहने वाली थी. थानाप्रभारी ने घटना की सूचना सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे, एसपी (उत्तरी) अरविंद कुमार पांडेय और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता को भी दे दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद सभी अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल की छानबीन कर वहां मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछताछ की लेकिन मौजूद लोगों ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेज दी. थाने लौट कर उन्होंने चौकीदार आफताब आलम की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और विवेचना शुरू कर दी.

थानाप्रभारी इस बात पर गौर कर रहे थे कि मासूम सी दिखने वाली युवती की भला किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे 5 गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया.

हत्यारे का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उस ने किसी नुकीली चीज से उस पर अनगिनत वार कर के अपनी भड़ास निकाली. इस से साफ पता चल रहा था कि हत्यारा मृतका से काफी खुन्नस खाया हुआ था. पुलिस को मामला प्रेम संबंधों का लग रहा था.

अगले दिन एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानाप्रभारी अरुण पवार को अपने औफिस बुला कर हत्या के इस केस के बारे में चर्चा की और जल्द से जल्द केस का खुलासा करने के निर्देश दिए.

घटना को एक सप्ताह बीत गया लेकिन न तो मृतका की शिनाख्त हो पाई थी और न ही किसी थाने में इस उम्र की किसी लड़की की गुमशुदगी दर्ज होने की सूचना मिली. जबकि मृतका की शिनाख्त के लिए जिले के सभी 26 थानों को मृतका का फोटो भेज दिया गया था. जांच टीम के लिए यह मामला काफी पेचीदा होता जा रहा था. तब थानाप्रभारी ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

7 दिनों बाद यानी 4 दिसंबर, 2018 को प्रमिला और सरिता नाम की 2 सगी बहनें थानाप्रभारी अरुण पवार से मिलीं. उन्होंने बताया कि उन की छोटी बहन 15 वर्षीय रागिनी जो गुलरिहा थाने के शिवपुर सहबाजगंज में रहती है. 20 नवंबर, 2018 की शाम को घर से साइकिल ले कर निकली थी, वह अभी तक घर नहीं लौटी है. मांबाप ने कई दिनों तक रागिनी को इधरउधर तलाशा. लेकिन जब कहीं पता नहीं चला तो वह चुप हो कर बैठ गए. उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह कहां चली गई और किस हाल में है. भाई सिकंदर पाल भी रागिनी को तलाशने में कोई रुचि नहीं ले रहा. वह भी चुपी साधे बैठा है.

यह बात दोनों बहनों प्रमिला और सरिता को बड़ी अजीब लगी कि जिस की सयानी बेटी घर से लापता हो जाए, वह बाप हाथ पर हाथ धरे भला कैसे बैठा रह सकता है. कहीं न कहीं कोई पेंच जरूर है. तब से दोनों बहनों ने अपने स्तर से रागिनी की तलाश शुरू कर दी. उन्हें जब पता लगा कि उमरपुर गांव के आम के एक बाग में एक सप्ताह पहले पुलिस ने एक लड़की की लाश बरामद की थी, तो वे यहां चली आईं.

थानाप्रभारी ने अपने फोन में मौजूद उस लाश की फोटो और कपड़े दिखाए तो दोनों बहनों ने वह पहचानते हुए बताया कि यह फोटो और कपड़े उन की बहन रागिनी के हैं. लाश की शिनाख्त होने के बाद प्रमिला और सरिता ने बताया कि रागिनी की हत्या के पीछे उसे अपने घर वालों पर शक है. उन्होंने कहा कि उस के मांबाप और भाई सिकंदर पाल से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

प्रमिला और सरिता के बयानों को आधार बना कर पुलिस टीम ने 5 दिसंबर, 2018 को शिवपुर सहबाजगंज गांव में स्थित पारसनाथ पाल के घर पर सुबहसुबह दबिश दी. संयोग से उस समय घर पर पारसनाथ पाल, उस की पत्नी और बेटा सिकंदर पाल तीनों मिल गए. पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की तो पारसनाथ पाल ने कहा, ‘‘हां साहब, रागिनी मेरी ही बेटी थी. लेकिन उस ने हमें समाजबिरादरी में कहीं जीने लायक नहीं छोड़ा था. उस के कारण लोग हम पर थूथू कर रहे थे. लेकिन उस की हत्या मैं ने नहीं की है. उसे मेरे बेटे सिकंदर पाल ने अपने किसी दोस्त के साथ मिल कर मार डाला है.’’

इस के बाद एसओ अरुण पवार ने सिकंदर पाल से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि रागिनी की हत्या में उस के मांबाप की कोई भूमिका नहीं थी.

उस ने अपने दोस्त कामदेव सिंह निवासी व्यासनगर जंगल के साथ मिल कर उसे ठिकाने लगाया था. उस के बाद पुलिस ने व्यासनगर जंगल स्थित कामदेव के घर दबिश दी. कामदेव घर पर नहीं मिला. वह घटना के बाद से ही फरार चल रहा था. 2 दिनों के अथक प्रयास के बाद पुलिस ने उसे शाहपुर से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. सिकंदर पाल और कामदेव से की गई पूछताछ के बाद रागिनी पाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

रागिनी पाल मूलरूप से गोरखपुर के गुलरिहा इलाके की शिवपुर सहबाजगंज की रहने वाली थी. उस के पिता पारसनाथ पाल एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. पारसनाथ के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा सिकंदर था. अपनी सामर्थ्य के अनुसार उस ने सभी बच्चों को पढ़ाया. समय बीतने के साथ जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. बड़ी बेटियों प्रमिला और सरिता के उस ने हाथ पीले कर दिए थे. सब से छोटी बेटी रागिनी अभी पढ़ रही थी.

उसी दौरान उस के पांव बहक गए. गांव के ही राकेश नाम के युवक के साथ उस के अवैध संबंध हो गए थे, जिस की चर्चा पूरे गांव में थी. किसी तरह यह खबर रागिनी की मां निर्मला के कानों में पड़ी तो उस ने इस की जानकारी अपने पति पारसनाथ को दी.

इतना सुनते ही पारसनाथ बोला, ‘‘क्या बक रही हो, तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है न?’’
‘‘मैं बिलकुल ठीक कह रही हूं.’’ निर्मला ने कहा.

‘‘तो तुम ने इस बारे में रागिनी से पूछा या नहीं?’’

‘‘नहीं, अभी तो नहीं. सयानी बेटी है, पूछने पर कहीं कुछ कर न बैठे, इसलिए चुप थी.’’

‘‘ऐसे चुप्पी साधे ही बैठे रहना, कहीं ऐसा न हो कि बेटी मुंह पर कालिख पोत कर फुर्र हो जाए.’’ पारसनाथ पत्नी निर्मला पर गुस्से से चिल्लाया, ‘‘क्या अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा?’’

‘‘नहीं, तुम अभी उस से कुछ नहीं कहना. मैं उस से बात कर के समझाती हूं.’’ निर्मला ने कहा.

इत्तफाक से अगले दिन रागिनी स्कूल नहीं गई थी. पति भी अपनी ड्यूटी जा चुके थे. तभी निर्मला ने अप्रत्यक्ष रूप से रागिनी से बात शुरू की, ‘‘पढ़ाई कैसी चल रही है बेटा?’’

‘‘ठीक, एकदम फर्स्ट क्लास. क्यों मां, क्या बात है जो आज मेरी पढ़ाई के बारे में पूछ रही हो.’’ रागिनी ने मां से पूछा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही पूछ रही थी. अच्छा बेटा, मैं तुम से एक बात पूछती हूं क्या सच बताओगी?’’ निर्मला ने कहा.

‘‘हां मां, पूछो, क्या पूछना चाहती हो?’’ रागिनी ने उत्तर दिया.

‘‘तुम कल किस लड़के के साथ घूम रही थी?’’ निर्मला ने पूछा तो रागिनी के चेहरे का रंग उड़ गया. वह एकदम से सकपका गई.

‘‘किसी भी लड़के के साथ नहीं. यह तुम क्या कह रही हो?’’ रागिनी हकलाते हुए बोली, ‘‘लगता है किसी ने तुम्हें गलत जानकारी दी है. यह बात सरासर झूठी है.’’ रागिनी नजरें चुराते हुए बोली, ‘‘क्या मां, तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘मुझे तुम पर पूरा भरोसा है बेटा. तुम ऐसीवैसी हरकत नहीं कर सकती, जिस से तुम्हारे मांबाप की जगहंसाई हो.’’ निर्मला ने समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, इज्जतआबरू और मानमर्यादा एक औरत के कीमती गहने हैं. बेटा, यदि कोई बात हो तो मुझे खुल कर बता दो. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ रागिनी विश्वास दिलाते हुए बोली. बेटी के इतना कहने पर मां निर्मला उस के कमरे से चली गई.

मां के कमरे से जाने के बाद रागिनी इस बात से हैरान थी कि मां को सच्चाई का पता कैसे चल गया. उसे किस ने बताया होगा? वह इस बात से भी डर रही थी कि पापा और भाई को जब इस बारे में पता चलेगा तो घर में कयामत ही आ जाएगी.

जब से पत्नी ने पारसनाथ को बेटी के बारे में बताया था, वह परेशान हो गया था. अत: वह भी बेटी के बारे में उड़ रही खबर की सच्चाई पता लगाने में जुट गया. उसे पता चला कि पड़ोस के राकेश से रागिनी का काफी दिनों से चक्कर चल रहा है. यह जानकारी रागिनी के भाई सिकंदर को भी हो चुकी थी.

बहन के बारे में सुन कर उस का तो खून खौल उठा. उस ने रागिनी को समझाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आ जाए, समाज बिरादरी में बहुत बदनामी हो रही है. नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है. रागिनी ने किसी तरह भाई सिकंदर को विश्वास दिलाया कि कोई उसे बदनाम करने के लिए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहा है.

बात घटना से एक साल पहले की है. एक दिन अचानक रागिनी घर से गायब हो गई. जवान बेटी के अचानक गायब होने से घर वाले परेशान हो गए. बेटी को तलाशते हुए वह उस के प्रेमी राकेश के घर पहुंच गए तो पता चला कि राकेश भी उसी दिन से घर से गायब है.

फिर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रागिनी राकेश के साथ ही भाग गई है. चूंकि मामला नाबालिग बेटी का था, इसलिए बदनामी को देखते हुए पारसनाथ ने पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई.

पारसनाथ अपने बेटे सिकंदर के साथ मिल कर बेटी को अपने स्तर से तलाशते रहा. आखिर अपने स्रोतों से उन दोनों ने रागिनी को ढूंढ ही लिया. वह राकेश के साथ ही थी. घर ला कर सिकंदर ने रागिनी पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया था. कमरे में बंद कर के उस ने उस की डंडे से पिटाई शुरू कर दी. लेकिन पिता ने उसे बचा लिया था. तब सिकंदर ने बहन को हिदायत दी कि अगर आइंदा राकेश से मिलने की कोशिश की या उस के बारे में सोचा भी तो जान से हाथ धो बैठेगी. इस के बाद से घर वालों की उस पर नजरें जमी रहतीं.

कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा. घर वालों का रागिनी से धीरेधीरे ध्यान हटने लगा था. फिर मौका देख कर रागिनी अपने प्रेमी राकेश से मिलने लगी. उस ने राकेश से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वह उसे यहां से कहीं दूर ले चले, जहां हमारे सिवाय कोई और न हो. राकेश ने उसे भरोसा दिया कि वह परेशान न हो, जल्द ही वह कोई बीच का रास्ता निकाल लेगा.

रागिनी इस बात से पूरी तरह मुतमईन थी कि अब तो घर वाले भी उस की ओर से बेपरवाह हो चुके हैं. लिहाजा वह पहले की तरह ही चोरीछिपे प्रेमी राकेश से मिलने लगी. यह रागिनी की सब से बड़ी भूल थी. उसे यह पता नहीं था कि घर वाले केवल दिखावे के तौर पर उस की तरफ से बेपरवाह हुए थे. लेकिन उन की नजरें हर घड़ी उसी पर जमी रहती थीं.

सिकंदर को पता चल गया था रागिनी फिर से राकेश से मिलने लगी है. इस बार सिकंदर ने रागिनी को राकेश के साथ बतियाते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया था. फिर क्या था, वह उसे वहीं से पकड़ कर घर ले आया और उस की खूब पिटाई की. इस बार पारसनाथ ने बेटे को पिटाई करने से नहीं रोका, बल्कि उस ने बेटी को सुधारने के लिए बेटे को पूरी आजादी दे दी थी.

पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. डांट या मार का रागिनी पर अब कोई असर नहीं होता. रागिनी की करतूतों से घर वालों की इज्जत तारतार हो रही थी. बहन के चलते परिवार की हो रही बदनामी को देख सिकंदर भी ऊब गया, इसलिए उस ने रागिनी की हत्या करने की ठान ली. इस बाबत उस के मांबाप में से किसी को कुछ भी नहीं बताया.

सिकंदर का एक जिगरी दोस्त था कामदेव सिंह. वह शाहपुर थानाक्षेत्र के व्यासनगर जंगल में रहता था. उस पर कई आपराधिक केस भी चल रहे थे. सिकंदर जानता था यह काम कामदेव आसानी से कर सकता है. दोस्त होने के नाते वह उस की बात कभी नहीं टालेगा. वैसे सिकंदर खुद भी इस काम को अकेला कर सकता था लेकिन वह खून के मजबूत रिश्तों की डोर से बंधा हुआ था. ऐसा करते हुए उस के हाथ कांप सकते थे.

सिकंदर ने कामदेव को रागिनी की करतूतें बता कर उसे रास्ते से हटाने की बात कही तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. दोनों ने दीपावली के दिन रागिनी की हत्या करने की योजना बना ली ताकि पटाखों के शोर में रागिनी की मौत की आवाज दब कर रह जाए.

लेकिन दोनों को दीपावली के दिन किसी वजह से यह मौका नहीं मिला. तब कामदेव ने सिकंदर को भरोसा दिया कि वह अकेला ही इस काम को अंजाम दे देगा. 20 नवंबर, 2018 की शाम रागिनी घर से साइकिल से कहीं जा रही थी. घर से थोड़ी दूर पर रास्ते में उसे कामदेव मिल गया.

कामदेव ने रागिनी को अपनी बातों में उलझा लिया और उसे प्रेमी राकेश से मिलाने की बात कह कर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. घंटों तक वह उसे इधरउधर घुमाता रहा. रागिनी के कुछ भी पूछने पर वह गोलमोल उत्तर दे कर उसे बहलाता रहा. रात करीब 10 बजे वह उसे चिलुआताल थाने से कुछ दूर उमरपुर गांव के बाग की ओर ले गया. तब तक चारों ओर गहरा सन्नाटा पसर गया था.

उस ने मोटरसाइकिल बाग में रोक दी और वे दोनों बाइक से नीचे उतर गए. रागिनी ने उस से फिर पूछा कि राकेश कहां है? तो कामदेव ने कहा, ‘‘बस कुछ देर और ठहर जाओ. वह आता ही होगा.’’ इतना कहते ही कामदेव ने कमर में खोंसा हुआ पिस्टल निकाला. पिस्टल देख कर रागिनी के होश उड़ गए.

अब वह समझ गई कि कामदेव ने उस के साथ बड़ा धोखा किया है. वह कुछ कह पाती, उस से पहले ही कामदेव ने उस के शरीर में पिस्टल से 5 गोलियां उतार दीं. गोलियां लगते ही रागिनी ने मौके पर दम तोड़ दिया. कहीं वह जीवित न रह जाए, इसलिए कामदेव ने साथ लाए पेचकस से उस के शरीर को गोद डाला.
उसे ठिकाने लगा कर वह वहां से इत्मीनान से घर चला गया. फिर सिकंदर को फोन कर के काम हो जाने की जानकारी दे दी. जिस पिस्टल से उस ने रागिनी की हत्या की थी, वह उस ने अपने कमरे की अलमारी में छिपा दी.

अगले दिन सिकंदर ने अफवाह फैला दी कि रागिनी फिर से अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई. 2 दिनों बाद पारसनाथ को सच्चाई का पता चल गया था. सच जान कर उस ने चुप्पी साध ली थी लेकिन उस की दोनों बेटियों ने राज से परदा उठा कर उन्हें बेनकाब कर दिया. नहीं तो सिकंदर और कामदेव ने मिल कर जो खतरनाक योजना बनाई थी, शायद पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाती.

मामले का खुलासा हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने पारसनाथ और उस की पत्नी को बेकसूर मानते हुए घर भेज दिया. पुलिस ने अभियुक्त सिकंदर और उस के दोस्त कामदेव को गिरफ्तार कर लिया. 7 दिसंबर, 2018 को एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को केस के खुलासे की जानकारी दी. दोनों हत्याभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित॒॒

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें