क्या आप जानते है इस 5 रुपए के पान के पत्ते के अनेकों फायदे

खाने के बाद कई लोगों का मन करता है कि वह कुछ मीठा खाएं तो भारत में ज्यादातर लोग पान, मीठा पान, सादा पान और मसालेदार पान खाना पसंद करते है लेकिन, हम इस एक पत्ते को चबाने की एक नियमित आदत डाल ले तो यह हमारे लिए फायदेमंद होगा. पान के हरे पत्ते में अनेकों गुण छिपे होते हैं. हमें बस इसे किसी चूने, कत्थे या स्वाद के बिना खाने की आदत डालनी होगी. पान में मौजूद तत्व पाचन तंत्र, दिल के स्वास्थ्य और तनाव से राहत देने में मदद करते हैं.  अगर आप पान के शौकीन हैं तो जानिए इसके फायदें.

1. पाचन में सुधार

पान में मौजूद गुण पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं और कब्ज दूर करने में मदद करते हैं. नियमित रूप से पान चबाने से पाचन संबंधी समस्याएं दूर हो सकती हैं.

2. दांतों के लिए फायदेमंद

पान खाने से दांतों और मसूड़ों को लाभ पहुंचता है और मुंह की बदबू दूर होती है. यह दांतों को मजबूत बनाता है और दांतों की सफाई में मदद करता है.

3. तनाव कम करता है

पान में मौजूद इंग्रेडिएंट्स तनाव कम करने में मदद करते हैं. पान चबाने से मानसिक शांति मिलती है.पान में मौजूद एरोमाथेरेपी गुण सकारात्मक भावनाएं पैदा करता है जो तनाव को कम करता है.

4. दिल के लिए फायदेमंद

पान खाने से ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है और हृदय रोगों का खतरा कम होता है. यह हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है.

5. वजन घटाने में मदद

पान में कैलोरी कम और पानी ज्यादा होता है जिससे वजन नियंत्रण में मदद मिलती है. पान चबाने से भूख कम लगती है जिससे वजन कम होने में सहायता मिलती है. पान में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और पॉलीफेनॉल चयापचय को बढ़ावा देते हैं जिससे वजन कम होता है.

 

कैंसर के खिलाफ रक्षा

कुछ अध्ययनों के अनुसार, पान के पत्तों में मौजूद एंटीकैंसर प्रॉपर्टीज भी हो सकती हैं, जो कैंसर के खिलाफ रक्षा कर सकती हैं. पान में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स फ्री रेडिकल्स को रोकते हैं जो कैंसर का कारण बनते हैं. पान में मौजूद पॉलीफेनॉल और फ्लेवोनॉयड्स ट्यूमर के विकास को रोकते हैं

Piles की बीमारी से इस तरह मिलेगा छुटकारा

गुदा के अंदर वौल्व की तरह गद्देनुमा कुशन होते हैं, जो मल को बाहर निकालने या रोकने में सहायक होते हैं. जब इन कुशनों में खराबी आ जाती है, तो इन में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और ये मोटे व कमजोर हो जाते हैं. फलस्वरूप, शौच के दौरान खून निकलता है या मलद्वार से ये कुशन फूल कर बाहर निकल आते हैं. इस व्याधि को ही बवासीर कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि कब्ज यानी सूखा मल आने के फलस्वरूप मलद्वार पर अधिक जोर पड़ता है तथा पाइल्स फूल कर बाहर आ जाते हैं. बवासीर की संभावना के कई कारण हो सकते हैं.

क्या हैं कारण

शौच के समय अधिक जोर लगाना, कम रेशेयुक्त भोज्य पदार्थ का सेवन करना, बहुत अधिक समय तक बैठे या खड़े रहना, बहुत अधिक समय तक शौच में बैठे रहना, मोटापा, पुरानी खांसी, अधिक समय तक पतले दस्त लगना, लिवर की खराबी, दस्तावर पदार्थों या एनिमा का अत्यधिक प्रयोग करना, कम पानी पीना और गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि.

1. आनुवंशिक :

एक ही परिवार के सदस्यों को आनुवंशिक गुणों के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आना.

2. बाह्य संरचना :

पाइल्स साधारणतया जानवरों में नहीं पाए जाते, चूंकि मनुष्य पैर के बल पर सीधा खड़ा रहता है, सो, गुरुत्वाकर्षण बल के कारण शरीर के निचले भाग में कमजोर नसों में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाता है, जिस से नसें फूल जाती हैं और पाइल्स का कारण बनती हैं.

3. शारीरिक संरचना :

गुदा में पाई जाने वाली नसों को मजबूत मांसपेशियों का सहारा नहीं मिलने के कारण ये नसें फूल जाती हैं और कब्ज के कारण जोर लगता है तो फटने के कारण खून निकलना शुरू हो जाता है.

4. लक्षण पहचानें:

शौच के दौरान बिना दर्द के खून आना, मस्सों का फूलना व शौच के दौरान बाहर आना. मल के साथ चिकने पदार्थ का रिसाव होना व बाहर खुजली होना, खून की लगातार कमी के कारण एनीमिया होना तथा कमजोरी आना व चक्कर आना और भूख नहीं लगना इस के प्रमुख लक्षण हैं.

5. उपाय भी हैं:

यदि हम खानपान में सावधानी बरतें तो बवासीर होने से बचने की संभावना होती है. कब्ज न होने दें, भोजन में अधिक रेशेयुक्त पदार्थों का प्रयोग करें, दोपहर के खाने में कच्ची सब्जियों का सलाद लें, अंकुरित मूंगमोठ का प्रयोग करें, गेहूं का हलका मोटा पिसा व बिना छना आटा खाएं, खाना चबाचबा कर खाएं, रात को गाय के दूध में 8-10 मुनक्का डाल कर उबाल कर खाएं. चाय व कौफी कम पीएं, वजन ज्यादा हो तो कम करें, प्रतिदिन व्यायाम करें और सकारात्मक सोच रखें.

6. इन बातों का रखें ध्यान:

जब भी शौच की जरूरत महसूस हो, तो उसे रोका न जाए. शौच के समय जरूरत से ज्यादा जोर न लगाएं. लंबे समय तक जुलाब न लें. बहुत अधिक समय तक एक ही जगह पर न बैठें. शौच जाने के बाद मलद्वार को पानी से अच्छी तरह साफ करें.

7. एमआईपीएच विधि से इलाज:

एमआईपीएच यानी मिनिमली इनवेजिव प्रौसीजर फौर हेमरोहिड्स. इस विधि में एक विशेष उपकरण, जिसे स्टेपलर कहते हैं, काम में लिया जाता है, जो कि सिर्फ एक ही बार काम में आता है. यह विधि ग्रेड-1, ग्रेड-2 तथा ग्रेड-3, जोकि दूसरी विधि के फेल हो जाने पर काम में ली जा सकती है.

इस विधि में पाइल्स को काट कर उस के ऊपर मलद्वार में 2-3 इंच की खाल कट जाती है, जिस से पाइल्स अपने सामान्य स्थान पर आ जाते हैं. इस विधि को करने में मात्र 20 मिनट लगते हैं, न के बराबर खून निकलता है, तथा दर्द भी कम ही होता है व मरीज को 24 घंटों से पहले छुट्टी दे दी जाती है. व्यक्ति 24-48 घंटों में काम पर जाने लायक हो जाता है. इस विधि द्वारा उपचार करने के बाद फिर से पाइल्स होने की संभावना 2 से 10 प्रतिशत ही रहती है, निर्भर करता है कि सर्जन कितना अनुभवी है.

(लेखक पाइल्स व गुदा रोग विशेषज्ञ हैं.)

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