Long Hindi Story: सौदा – पहला भाग

Long Hindi Story, लेखक – हरे राम मिश्र

उस दिन बड़े विधवा दुलारी मनोहर लाल, जिन्हें उन की जाति के लोग ‘भैया’ और गांवमहल्ले के लोग ‘नेताजी कहते थे, की हवेली के गेट पर आंखों में आंसू भरे खड़ी थी. उस के गोरे बेदाग चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी. वह बहुत बेचैन थी. उस के चेहरे से यह साफ दिखता था कि कुछ ऐसा जरूर हुआ है, जिस के लिए वह कतई तैयार नहीं थी.

और सचमुच, यह बड़ी चिंता की ही बात थी कि दुलारी की 17 साल की एकलौती बेटी रुपाली, जिसे वह प्यार से ‘रूपा’ बुलाती थी, जो घर की बकरियों के लिए हर रोज बिना नागा घास काटने गांव के बाहर खेतों की तरफ जाती थी, कल दोपहर घर से जाने के बाद वापस नहीं लौटी थी.

दुलारी की चिंता का एक ही केंद्र था कि आखिर उस की बेटी रुपाली कहां चली गई? वह घर क्यों नहीं लौटी? क्या गलत हो गया उस के साथ? आखिर वह कहां होगी अभी? किस हालत में होगी? ऐसे सवाल उस के जेहन में लगातार उभर रहे थे, उसे बहुत ज्यादा परेशान किए हुए थे.

एकलौती बेटी रूपा के साथ किसी अनहोनी से उपजी इस घबराहट में दुलारी को बीती शाम से ही कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. ज्योंज्यों समय बढ़ता जा रहा था, उस की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. आखिर एक विधवा, जिस के पति ने उसे सिर्फ इसलिए छोड़ दिया हो कि उसे पहली औलाद बेटी हो गई, अपनी एकमात्र धरोहर के पास नहीं रहने पर परेशान क्यों नहीं हो?

हालांकि, छोड़ने के कुछ ही महीने बाद पति रामलाल जहरीली शराब पीने से मर गया. इस के बाद दुलारी अपनी बेटी को ले कर मायके आ गई, क्योंकि इस विधवा को ससुराल में कोई भी रहने देने के लिए तैयार नहीं था.

आम दलित की तरह रामलाल के पास भी एक ?ाग्गी से ज्यादा कोई जायदाद नहीं थी, जो जंगल महकमे की जमीन पर कब्जा कर के बनाई गई थी. इस के बाद दुलारी फिर कभी ससुराल वापस नहीं गई. इस घटना को 17 साल हो गए थे.

दुलारी धीरे बोलने वाली 35 साल की औरत थी. वह एक ऐसी विधवा थी जो भले ही मायके में रहती थी, लेकिन गांव में भी किसी से कोई खास मतलब नहीं था. अपने मांबाप की एकलौती औलाद उन के मरने के बाद उन्ही के घर में रहने लगी. उसी झोपड़ीनुमा घर में, जहां घर में कुछ बकरियां पाली गई थीं और जिन की वह देखभाल करती थी. यही उस की धरोहर थी.

हालांकि, अब दुलारी के पास सिर्फ एक कमरे का सरकार का दिया हुआ पक्का मकान था. यह भी पाने के लिए उसे अपनी जाति के सरपंच कल्लू, कई मालाएं पहनने वाले पंचायत सैक्रेटरी त्रिभुवन, पंचायत मित्र नोखे और उस के 2 मुंहबोले समर्थकों का 4 महीने तक बिस्तर गरम करना पड़ा, क्योंकि वह मकान पाने के लिए तयशुदा 20,000 रुपए की घूस देने में नाकाम थी.

लेकिन इस सब की भनक दुलारी ने अपनी बेटी को कभी नहीं लगने दी.

बेटी के आलावा घर में पाली गईं यही 4 बकरियां उस की पूंजी थीं. मांबेटी दोनों इन्हीं 4 बकरियों से अपना गुजारा करती थीं. इन से ही सुबहशाम इन का चूल्हा जलता था.

दुलारी भले ही 35 साल की थी, लेकिन उस की सादगी भरी खूबसूरती किसी को भी उस का दीवाना बना सकती थी. गांव के दलितों में यह सोच थी कि दुलारी जरूर किसी ऊंची जाति का बीज है, क्योंकि उन की जाति में औरतें इतनी खूबसूरत हो ही नहीं सकतीं.

दुलारी के कपड़े भले ही बहुत साफ नहीं होते थे, लेकिन उन में लिपटी हुई छरहरे बदन वाली दुलारी किसी का भी मन मोह लेने के काबिल थी. गोरा बदन और गोल चेहरे पर कंटीली उभरी आंखें उसे अप्सरा जैसी बना देती थीं.

दुलारी की बेटी रुपाली, जो अभी जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी, बस एकदम दुलारी ही लगती थी.

हवेली के मालिक मनोहर लाल दुलारी की जाति के बड़े नेता थे. वे भले ही 50 साल पार हो गए थे, लेकिन खिजाब से बाल रंगते थे और चेहरे की मालिश भी किसी विदेशी लिक्विड से बिना नागा करवाते थे. हर वक्त खद्दर का काफी भड़कीला कुरता पहनते थे. चप्पल भी ब्रिटेन की बनी पहनते थे और कौम की गरीबी पर रोज आंसू बहाते थे.

इस के साथ मनोहर लाल सफेद गमछा अपने गले में लपेटे रहते थे. मूंछें भी तावदार थीं, लेकिन दाढ़ी क्लीन शेव थी. किसी राजनीतिक सवाल पर कभी कुछ खुल कर नहीं बोलते थे. हर बात में गहरा राज छिपा रहता था, जिसे सिर्फ उन के कुछ खास शागिर्द ही समझ पाते थे.

मनोहर लाल की हवेली थोड़ी बड़ी थी, जिस के एक हिस्से को उन की जाति के ही लोगों ने कभी चंदा इकट्ठा कर के इसलिए बनवाया था, ताकि इलाके में उन के विपक्ष में सियासत कर रहा ऊंची जात का ‘ठाकुर’ ऐंठ कर नहीं चल सके और उस के सामने चुनाव में मनोहर लाल को किसी हीनभावना का शिकार नहीं होना पड़े.

जवानी के दिनों में मनोहर लाल जमींदार ठाकुरों को सबक सिखाने से ले कर, ऊंची जाति की लड़कियों को केंद्रित कर के ब्राह्मणों को गालियां देते थे, गंदे और उकसावे भरे नारे लगाते थे, जिस से इलाके के पीडि़त दलित नौजवान उन की तरफ आकर्षित हों.

इसी के बलबूते वे 2 बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ गए और इतने वोट हासिल कर लिए कि विपक्षी राजनीति में उन्हें ‘सीरियसली’ लिया जाने लगा था. कुलमिला कर वे विधानसभा में अपनी जाति का एक बड़ा चेहरा हो चुके थे.

यही नहीं, मनोहर लाल पिछली बार ही सदन पहुंचतेपहुंचते रह गए थे. क्षेत्र में उन का दबदबा था. इस चुनाव में उन के हारने के पीछे यह दलील थी कि विधानसभा के पिछड़ों ने दलित उम्मीदवार की जगह क्षत्रिय जाति के नेता को इसलिए वोट दे दिए, ताकि ये दलित लोग मजबूत न होने पाएं, वरना खेतों में काम को मजदूर ही नहीं मिलेंगे. दलित ऐक्ट में जेल अंदर जाओगे, वह अलग समस्या आएगी, इसलिए मनोहर लाल चुनाव हार गए.

हालांकि, इस हार ने मनोहर लाल को यह सीख दी कि किसी जाति से खुला विरोध वोट का नुकसान करता है, इसलिए अब वे क्षेत्र के क्षत्रियों, ब्राह्मणों, दबंग पिछड़ों के खिलाफ ज्यादा आक्रामक नहीं रहते थे और हर कदम संभल कर उठाते थे, ताकि सामाजिक दूरी को वह पाट सकें और बाकी जातियों के वोट भी पा सकें.

जब मनोहर लाल का काम कौम से मिलने वाले चंदे से नहीं चला तो वे बालू खनन में ठेकेदारी भी करने लगे. अब यह कारोबार बड़ा हो गया था. वे खुद को एक ‘इलीट क्लास दलित’ मानते थे. उन्होंने अपनी हवेली के एक हाल में सभी दलित नेताओं की मढ़ी हुई तसवीरें लगवा रखी थीं. लेकिन उस में सिर्फ इलाके के छोटे फिगर वाले दलित नेताओं के साथ मीटिंग की जाती थी. बाकी के लिए एक बैठका रिजर्व्ड था जिस में बुद्ध, कृष्ण और राम, महावीर और नानक देव के बड़े फोटो लगे हुए थे.

यहीं नहीं, मनोहर लाल खुद को पुराने समय के किसी जमींदार के वंश से जोड़ते थे. हालांकि इतिहास उन के किसी दावे की कभी तसदीक नहीं करता था. लेकिन इस बात से वे क्षेत्र के दलितों में काफी मजबूती से खुद की पैठ बना चुके थे. इस पैठ के पीछे एक ही लौजिक था कि उन के पास दलितों के सियासी नेतृत्व की ‘दैवीय’ प्रेरणा है और दलितों को भी उन्हें ही अपना नेता मानना चाहिए.

खैर, दुलारी हवेली के गेट पर 10 मिनट से खड़ी हुई आंसू बहा रहा थी. हवेली के मुख्य गेट पर बंदूकधारी सिक्योरिटी गार्ड, जो कुरसी पर बैठा हुआ ऊंघ रहा था, सहसा दुलारी को गेट पर देख कर संभला और जोर से टोका.

‘‘क्या है? कहां से आई हो? क्या काम है?’’ सिक्योरिटी गार्ड ने एकसाथ कई सवाल दागे.

घबराहट और आंसू भरी आंखों से दुलारी ने गार्ड को देखा, लेकिन कुछ खास बोल नहीं पाई.

सिक्योरिटी गार्ड ने फिर से पूछा कि कौन है और किस से मिलना है?

दुलारी ने रोते हुए कुछ बोलना शुरू किया कि उस ?ाबरीली मूंछ वाले सिक्योरिटी गार्ड ने कहा, ‘‘10 बजे आओ, अभी नेताजी सो रहे हैं.’’

दुलारी के पास तब तक के लिए समय नहीं था. वह बहुत परेशान थी. लेकिन, वह कुछ नहीं बोली, क्योंकि सिक्योरिटी गार्ड की बड़ी मूंछें देख कर ही वह सहम गई. हवेली के गेट के बाहर ही पास में रखे गए एक सीमेंट के बैंच पर बैठ गई और 10 बजने का इंतजार करने लगी.

तकरीबन 2 घंटे बाद जब सूरज कुछ चढ़ आया तो कुछ लोग हवेली के भीतर मनोहर लाल से मिलने आए. उन की चारपहिया गाड़ी सीधे गेट के अंदर खड़ी हुई. आधे घंटे बाद गाड़ी वापस निकली, फिर कुछ दूसरे मुलाकाती भी आनेजाने लगे.

हवेली पर मिलने वालों की कुछ भीड़ हुई और दुलारी ने फिर हिम्मत बटोर कर सिक्योरिटी गार्ड से कहा कि नेताजी से मिलवा दो.

सिक्योरिटी गार्ड ने भी काफी अनमने भाव से इंटरकौम पर किसी से बात की और थोड़ी देर में दुलारी के लिए अंदर जाने का बुलावा आ गया.

दुलारी हवेली के अहाते से होते हुए बरामदे में पहुंची और रोते हुए जमीन पर बैठ गई.

पास खड़े एक लड़के ने दुलारी से कुछ पूछना शुरू किया और पौकेट डायरी में सब नोट किया.

थोड़ी देर में दुलारी को मनोहर लाल के कमरे में भेजा गया, जहां वे एक महंगे सोफे पर पाजामा और बनियान पहने बैठे हुए थे.

‘‘हां, बोलो… क्या हुआ?’’ मनोहर लाल ने पूछा.

दुलारी ने रोते हुए अपनी बेटी के वापस नहीं लौटने का दर्द मनोहर लाल से बयां किया.

‘‘थाने गई? दारोगा से मिली? बताया उस को?’’ मनोहर लाल ने पूछा.

‘‘हम किसी को नहीं जानते. हम तो आप को ही जानते हैं…’’ और दुलारी फिर जोरजोर से रोने लगी.

‘‘रुको… चुप हो जाओ… देखता हूं…’’ मनोहर लाल ने समझाते हुए कहा.

मनोहर लाल ने तुरंत अपने एक शागिर्द को इशारा किया कि दारोगा को फोन करो और इन की मदद के
लिए कहो.

इस के बाद मनोहर लाल ने दुलारी से कहा कि थाने में जा कर रिपोर्ट लिखवा दो. एक फोटो लेती जाना.

रिपोर्ट लिख जाएगी. इस के बाद मनोहर लाल के उस शागिर्द ने थाने में फोन पर थानेदार से बात की.

दुलारी को यह पता ही नहीं था कि उस का थाना कौन सा है, क्योंकि उस का थाने से कोई वास्ता कभी पड़ा ही नहीं था. मनोहर लाल के शागिर्द ने दुलारी को उस के थाने के बारे में बताया और तुरंत जा कर थानेदार से मिलने को कहा.

थकीहारी दुलारी कांपते पैरों के साथ तेजी से घर लौट आई और बेटी की एक फोटो खोज कर एक पौलीथिन में लपेट कर ब्लाउज के भीतर रख लिया. घर में उस के पास चांदी की एक अंगूठी थी, जिसे उस ने पास रख लिया, ताकि इसे गिरवी रख कर कुछ पैसा उधार ले पाए. घर में कुछ पैसे थे, जल्दी से उन्हें भी उठाया और बाजार के रास्ते थाने जाने वाले टैंपो पर सवार हो गई.

दुलारी सबकुछ बहुत जल्दीजल्दी करना चाहती थी, लेकिन जैसे उस की देह में कोई ताकत ही नहीं बची थी. यह सब करते हुए दोपहर का समय हो गया.

दुलारी को पहली बार पुलिस थाने में घुसते हुए बड़ी घबराहट हो रही थी, क्योंकि उस का वास्ता इस सब से कभी पड़ा नहीं था. वह सीधीसादी औरत थी जो किसी तरह अपनी जिंदगी बसर कर रही थी. लेकिन, फिर दुलारी किसी तरह थाने के भीतर हिम्मत कर के दाखिल हुई.

अंदर घुसते ही गेट पर मिले एक सिपाही से बेटी की गुमशुदगी के बारे में जैसे ही रोते हुए बोलना शुरू किया, तो सिपाही ने थानेदार के कमरे की तरफ इशारा कर के वहां जाने को कहा.

दुलारी ने हिम्मत कर के थानेदार के कमरे के दरवाजे पर लगा परदा उठाया. कुरसी पर बैठा थानेदार फोन पर किसी ठेकेदार को तय रकम से कम भेजने के लिए गंदीगंदी गालियां दे रहा था.

खैर, थोड़ी देर के इंतजार के बाद किसी तरह से दुलारी ने हिम्मत बटोरी और रोते हुए दरवाजे से ही कहा, ‘‘साहब, बिटिया कल से घर नहीं आई है. बिटिया तो गायब हो गई साहब…’’

‘‘क्यों? कौन हो तुम? क्या नाम है?’’ थानेदार ने कड़क कर पूछा.

दुलारी सहम गई.

‘‘कहां गई बिटिया तुम्हारी? क्या नाम है? कहां से आई हो?’’ थानेदार ने कई सवाल एकसाथ कर डाले.

‘‘रूपा…’’ दुलारी ने रोते हुए बताया, साथ ही नेताजी के बारे में भी बोला कि मनोहर नेताजी.

‘‘उफ… ठीक है… फोटो लाओ,’’ थानेदार ने अंदर बुलाया.

थानेदार ने फोटो के पीछे ही नाम, पता और उम्र सब पूछ कर लिखा. फिर थाने के मुंशी को बुलाया और फोटो दे कर गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखने के लिए कहा.

इस के बाद थानेदार ने दुलारी से कहा, ‘‘बाहर बैठो… अभी ये एक कागज देंगे’’

एक घंटे के बाद थाने के मुंशी किशोरी लाल ने, जो जाति से पिछड़े थे, खुद को कृष्ण भक्त बताते थे, ने दुलारी को अपने कमरे में बुलाया और लड़की की गुमशुदगी बाबत पूछताछ कर के एक रजिस्टर में नोट किया, फिर एक कागज में ब्योरा लिख कर एक सिपाही को, जो शायद उसी के गांव का था, दे दिया.

मुंशी किशोरी लाल बारबार रूपा के किसी लड़के के साथ जाने, प्रेम प्रसंग में भाग जाने के बाबत जानकारी चाहते थे. उन का कहना था कि आजकल की लड़कियां टीवी देख कर उड़ने लगती हैं और मांबाप थाने में आ कर ‘ड्रामा’ करते हैं.

मुंशी ने आगे कहा कि लड़की को खोजने में जो खर्च आएगा, उस का खर्चापानी दो. फिर उस ने दुलारी के पास जो चांदी की एक अंगूठी थी, ले कर अपनी जेब में रख लिया. इस समय दुलारी को सिर्फ बेटी चाहिए, इस के अलावा वह कुछ नहीं सोच रही थी.

थाने से बाहर निकल कर दुलारी तेज कदमों से चल कर घर पहुंची. शाम के 5 बज चुके थे. अनहोनी के डर में उस के हाथपैर अब भी बुरी तरह से कांप रहे थे, जैसे देह में खून ही नहीं हो.

घर में बंधी बकरियां कल से काफी भूखी थीं, जिन्हें दानापानी देना था. चिंता और हताशा में उस की भूखप्यास सब खत्म हो चुकी थी, लेकिन बकरियों को तो दानापानी देना ही होगा, क्योंकि उन्हें जिंदा रखना है.

किसी तरह घर पहुंच कर दुलारी ने एक लोटा पानी अपनी हलक में उतारा. इस के बाद उस ने बकरियों को दानापानी दिया और फिर गांव के नए बने सरपंच से मिलने उस के घर गई, जिसे वह एकदम पसंद नहीं करती थी, क्योंकि उस की निगाह में वह सिर्फ औरतों का भूखा ऐसा ऐयाश था, जिस ने दुलारी को ‘धंधे वाली’ के हालात में पहुंचाने की पूरी कोशिश की थी, क्योंकि उस ने कभी उस से 3,000 रुपए का उधार लिया था और नहीं दे पाने की हालत में वह उस के 2 जवान बकरे घर से ही जबरदस्ती खोल कर ले गया था.

हालांकि, सरपंच से दुलारी की मुलाकात नहीं हुई और वह फिर से घर लौट आई. काफी शाम हो चुकी थी. उस ने पतीले में थोड़ा चावल डाला और नमकप्याज के साथ पका कर किसी तरह उसे हलक से नीचे डाला. दालसब्जी कुछ नहीं था.

दुलारी की रात किसी तरह कटी. पूरी रात वह जागती रही. लेकिन, बिटिया का अभी कोई सुराग नहीं मिला था.

दूसरे दिन अलसुबह ही दुलारी फिर से मनोहर लाल के घर पहुंच गई थी. इस बार वह अपने साथ गांव के एक लड़के को ले कर गई थी. हालांकि, बदनामी के डर से उस ने रास्ते में बिटिया के गायब होने के बारे में कोई चर्चा नहीं की, लेकिन गांव में यह बात रायते की तरह फैनल चुकी थी, क्योंकि थाने से सरपंच को फोन पर मामले की जानकारी दी गई थी, ताकि लापता रूपा को खोजने में मदद मिल सके.

मनोहर लाल के यहां दुलारी की जाति के ही एक और आदमी, जो बगल के गांव का छुटभैया नेता था, से उस की मुलाकात हुई. वह मनोहर लाल से अपने गांव के वोट उन के लिए फिक्स करवाने के एवज में सौदा करने आया था और मछली बाजार के ग्राहक की तरह उन से ‘मोलतोल’ कर रहा था. उस नेता के बारे में दुलारी अच्छे से जानती थी कि उस का धंधापानी क्या है और कैसे वह नकली दारू का सप्लायर है, क्योंकि उसी की दी हुई दारू पीने से उस के गांव में कुछ लोगों की मौत हुई थी.

‘‘क्या हुआ…’’ देखते ही मनोहर लाल ने पूछा, ‘‘मिली बेटी आप की…’’

‘‘नहीं मिली…’’ और दुलारी रोने लगी.

‘‘थाने गई थी…’’ पूछने पर दुलारी ने हां में सिर हिलाया.

फिर मनोहर लाल ने थानेदार को अपने एक शागिर्द से फोन करवाया और दुलारी को बताया गया कि बेटी को पुलिस खोज रही है. मिलने पर सूचित करेगी. परेशान नहीं हो.

थकहार कर दुलारी फिर घर लौट आई. अब तक दोपहर का सूरज चढ़ आया था.

2 दिन बीत गए. रोतेरोते दुलारी के आंसू खत्म हो गए. दुलारी ने इन दिनों ठीक से खानापीना भी नहीं किया था और भागदौड़ में उसे तेज बुखार अलग से हो गया.

तीसरे दिन, दोपहर का समय था. दुलारी घर के भीतर अपनी खटिया पर चिंतित बैठी थी. गांव के चौकीदार लुल्लन ने आ कर दुलारी को बताया कि उस की बेटी पड़ोस के जिले के एक अस्पताल में भरती है. पुलिस जा रही है बयान लेने. तुम भी अस्पताल पहुंचो. दारोगाजी ने बोला है.

चौकीदार ने आगे कहा कि तुम्हारी बेटी नशे की हालत में तहसील के बसस्टैंड पर लावारिस मिली है, जिसे कुछ लोगों ने स्थानीय चौकी के सुपुर्द कर दिया था. पुलिस वालों ने उसे अस्पताल में भरती करवा दिया है. जाओ मिल लो.

दुलारी की आंखों में चमक आ गई. उस ने किसी तरह गांव के एक आदमी से कुछ पैसे उधार लिए और अस्पताल साथ चलने की चिरौरी की. वह अस्पताल पहुंची, तो बेटी उसे अकेले एक बिस्तर पर पड़ी मिली, जिसे कुछ पुलिस वाले और डाक्टर घेरे हुए थे और कुछ लिखापढ़ी कर रहे थे. काफी देर बाद दुलारी को अपनी बेटी रूपा से बात करने का मौका मिल पाया.

दुलारी ने देखते ही अपनी बेटी को प्यार से भींच लिया, माथा चूमा, गले लगाया. उस का हीरा उसे मिल गया था. उस ने बेतहाशा उसे चूमा, दुलारा और प्यार किया. बेटी भी मां को देख कर रोने लगी. आखिर वही तो उस का सबकुछ थी.

रूपा ने देर शाम को अपनी मां से अपने साथ रेप और मारपीट की दर्दनाक घटना बताई, जिसे गांव के बगल के यादव टोला के लड़कों ने अंजाम दिया था. दोनों लड़के गांव की ताकतवर और बहुसंख्यक पिछड़ी बिरादरी से थे, लेकिन उन की जातियां अलगअलग थीं. खैर, पुलिस ने रूपा का बयान दर्ज किया और नियमानुसार मैडिकल भी हुआ. एफआईआर भी दर्ज हुई.

दुलारी अगले 2 दिन रूपा के साथ अस्पताल और थानेअदालत के चक्कर लगाती रही.

चूंकि मनोहर लाल इस मामले में थोड़ा लगे हुए थे, इसलिए पुलिस ने जांच शुरू की. पहले आरोपी सुमेश के नाई समुदाय के लोग सामने आ गए और आरोपी के घर वाले रूपा को ही सैक्स की भूखी लड़की साबित करने लगे. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह आरोपी लड़का टोले के पूर्व पंचायत सदस्य का बेटा और वर्तमान विधायक ‘मुंशीजी’ का खास आदमी था. दूसरा आरोपी युवक क्षत्रिय समुदाय का रितेश था, जिस के यहां यह सब करना ‘मर्दानगी’ की पहचान थी. इस समुदाय में अपराध पर बहस न हो कर कौन उस लड़की की मदद कर रहा है, उस पर चर्चा हो रही थी. सब जल्द ही पता चल गया. नाम मनोहर लाल का आया. बात मनोहर लाल तक, जो कुछ समय पहले ही में दिल्ली से एक बिजनेस डील कर के लौटे थे, इस धमकी के साथ पहुंचाई गई कि क्षत्रियों की इज्जत से एक ‘धंधे वाली’ की आड़ में मत खेलो. निबटना है तो निबट लो. देखते हैं चुनाव कैसे जीतते हो.

मनोहर लाल ने इस मामले को ध्यान से सुना. फिर कुछ दिन चुप रहे. उन्हें लगा कि मामला खत्म हो जाएगा. लेकिन, इधर नाई समुदाय जहां लड़के के पक्ष में जुलूस निकाल रहा था, वहीं क्षत्रिय समुदाय मनोहर लाल पर मामले को खत्म करवाने वरना सबक सीखने के लिए तैयार रहने का अल्टीमेटम दे कर पंचायत कर रहा था.

इधर दुलारी की जाति और गांव के कई छुटभैया लोग उस के पास सम?ाते के लिए दबाव बनाने के लिए रोज उस के घर पहुंच रहे थे. पुलिस आरोपियों से पैसा खाने के लिए दबाव बना कर रख रही थी. हालांकि, थानेदार की भी आरोपियों को पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह दबाव बना कर सिर्फ वसूली कर रहा था.

परेशान थी तो बस दुलारी. उस के गांव और जाति के ताकतवर लोग भी उस के साथ खड़े होने को तैयार नहीं थे. जो भी उस से मिलता, एक ही ‘डील’ करने की फिराक में रहता. जातबिरादरी के किसी नेता, कार्यकर्ता की कोई दिलचस्पी नहीं थी कि पीडि़त परिवार को ‘इंसाफ’ मिले.

इधर, आरोपी लड़कों के परिवार वालों के साथ यह मामला जातबिरादरी का सवाल दिन ब दिन बनता जा रहा था. इस मामले को सत्ताधारी विधायकों ने भी अपने हित में मोड़ना शुरू कर दिया. नया तर्क गढ़ा गया कि मनोहर लाल को वोट नहीं देने के कारण क्षत्रिय और नाई बिरादरी को बदनाम करने का खेल खेला जा रहा है. एक दलित लौंडिया कैसे रेप का आरोप लगा सकती है…? उस की हैसियत क्या है…? इसी बात पर आरोपियों ने जात की 2 सम्मिलित पंचायत भी करवाईं, जिन में कई स्थानीय नेता शामिल हुए. इस से पुलिस के साथ मनोहर लाल भी बैकफुट आ गए. वे मामले में शामिल नहीं होने की कसमें खाने लगे, क्योंकि उन्हें इस से दलित बिरादरी के वोट खिसकने का कोई डर नहीं था. डर तो बाकी जातियों के बिदकने का था. इन सब से रूपा और दुलारी तो इतने ज्यादा घबरा गईं कि उन्हें अपने ही घर में अब बहुत डर लगने लगा.

इधर, खुलेआम माइक लगा कर मनोहर लाल को ललकारा जाने लगा. मनोहर लाल को बड़े चुनावी नुकसान का डर लग गया, क्योंकि विधानसभा की 2 ताकतवर जातियों की गोलबंदी से उन का चुनाव हारना तय था. उन्हें कुछ लोगों ने सम?ाया कि एक अदद ‘लौंडिया’ के लिए अपनी सियासी पारी को कमजोर मत करो. केस में सम?ाता करवाइए और मामला निबटा दीजिए. रूपा की जाति और गांव के कई छुटभैए नेता भी यही चाहते थे, ताकि मनोहर लाल को दोनों जातियों का सपोर्ट मिल सके और वे चुनाव जीत सकें.

अब मनोहर लाल को लगा कि चुप्पी से काम नहीं चलेगा, क्योंकि मामला बिगड़ चुका है. मनोहर लाल अब अपने ‘सियासी’ नुकसान के डर से इस मामले को मैनेज कराने में लग गए. उन्होंने अपने शार्गिंदो से लड़की को सैक्स की भूखी होने का प्रचार भी करवाया. उस की मां का भी दामन दागदार बताने की पूरी कोशिश करवाई गई, ताकि यह लगे कि उन्हें इस मामले से कोई दिलचस्पी नहीं है. इस तरह पूरा एक महीना निकल गया.

लेकिन, इन सब से बहुत दूर विधवा दुलारी को बस इसी बात का संतोष था कि उस की बेटी उस के पास आ गई है. एक गरीब को और क्या चाहिए. पुलिस, थाना, वकील, कचहरी उस के बस का नहीं है. अब उसे और किसी चीज में कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि वह रोज थानेकचहरी और वकील के पास जाने का खर्च ही नहीं उठा सकती थी. उसे तकरीबन रोज थाने बुलाया जाता और दिनभर बयान लेने के नाम पर बैठाए रखा जाता.

इस मामले का विवेचक भी दलित जाति का था, जिस के लिए एकमात्र मकसद पैसा कमाना था, क्योंकि वह एक खेत खरीदने के लिए 30 लाख की रकम किसी भी कीमत पर जल्द इकट्ठा करना चाहता था. इस केस में आरोपी, पुलिस, जाति के छोटे नेता, कार्यकर्ता सब अपने हिसाब से फायदा लेने के लिए खेल रहे थे.

लेकिन, दुलारी और रूपा इन सब से बेपरवाह और अनजान थीं. वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को फिर से पटरी पर लाना चाहती थीं, जो रूपा के साथ हुई घटना के बाद उतर गई थी.

दुलारी को अपनी बेटी मिल गई थी, बाकी उसे किसी ‘इज्जत’ की कोई फिक्र नहीं थी. भूखे, नंगे और गरीब लोग इंसाफ के बारे में नहीं सोचते.

तकरीबन एक हफ्ता और बीता होगा. एक दिन सुबह अचानक दुलारी को मनोहर लाल के एक शागिर्द ने हवेली पर पहुंचने का संदेश दिया. दुलारी हवेली पर गई भी. बेटी के भविष्य को ले कर लंबी भूमिका बनाने के बाद, जिस में उसे रूपा के बदनाम होने से ले कर, शादी, सुरक्षा का डर सबकुछ दिखाया गया, धमकी वाली भाषा में भी समझाया गया. बोला गया कि समझौता कर लो.

डरीसहमी दुलारी से कुछ कागजों पर अंगूठा लगवाया गया, जो बाद में अदालत में समझौते के प्रपत्र के बतौर पुलिस द्वारा जमा किया गया. हवेली से चलते वक्त उसे एक लिफाफा दिया गया, जिसे उस ने घर में खोल कर देखा. उस मे 500 के 10 नोट थे. उस के इंसाफ का ‘सौदा’ हो चुका था, जिस में, जाति के नेता, पुलिस, सरपंच सब शामिल थे. लेकिन, इस सौदे में शामिल नहीं थी तो सिर्फ दुलारी की ‘इच्छा’, जिसे पैसे और ताकत के दम पर मनोहर लाल ने हम जाति होने के बावजूद रौंदवा दिया था.

हालांकि, इस के बाद भी मनोहर लाल इस बार फिर विधायक नहीं बन पाए, क्योंकि पिछड़ों ने दलितों को इसलिए वोट नहीं दिए, ताकि वे सियासीतौर पर मजबूत न हों. शायद एक विधवा की आह ने उन के सियासी कैरियर को भस्म कर दिया था. Long Hindi Story

Story In Hindi: सफर

Story In Hindi, लेखक – सुमित सेनगुप्ता

मैं यानी अनिल दादर रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में आ कर बैठ गया हूं. स्टेशन के पास ही शापुर रैस्टोरैंट है. उन की बनाई ग्रिल्ड पौम्फ्रैट फ्राई, दाल फ्राई और रुमाली रोटी का कौम्बिनेशन मेरा हौट फेवरेट है. दादर आते ही मैं उन की दुकान में जरूर झांकता हूं. इस के लिए एक बार भारी कीमत चुकातेचुकाते बच गया था.

दरअसल, जो ट्रेन कभी 10 मिनट लेट से कुर्लाटीटी स्टेशन से नहीं छूटती थी, वह ट्रेन उस दिन 45 मिनट लेट हुई और मु झे बचाया. वह समय दुर्गापूजा की पूर्वसंध्या का था. मैं मुंबई से पटना लौट रहा था. उस समय पटना के लिए सिर्फ एक ही ट्रेन थी, वह भी हफ्ते में 2 दिन, इसलिए ज्यादातर लोग कोलकाता हो कर ही आतेजाते थे.

उस दिन कुर्ला स्टेशन तक आतेआते मैं ने मन ही मन प्रतिज्ञा कर ली थी कि आज ट्रेन मिल जाए, तो ऐसे लालच में कभी नहीं पड़ूंगा. लालच में पाप, पाप में मौत. मगर 3 महीने बाद ही वह प्रतिज्ञा तोड़ दी.

भीष्म अपनी प्रतिज्ञा निभा कर अमर हो गए और मैं हर बार अपनी प्रतिज्ञा तोड़ कर ‘हक्काबक्का’ हो रहा हूं. सिगरेट नहीं पीऊंगा कह कर कितनी बार छोड़ी है, उस का याद नहीं. ‘घर के फ्रिज की मिठाई चुराऊंगा नहीं’ कह कर पत्नी ने माफीनामा लिखवाया था. हर बार पकड़ा गया. इतनी सारी निराशाओं के बीच एक चीज नहीं बदली, वह है मेरा अडि़यल किरदार.

पेटभर खाने के बाद दोपहर 4 बजे वेटिंग रूम की कुरसी पर शरीर लटका दिया. पुणे वापसी की ट्रेन साढ़े 6 बजे आएगी. तभी वेटिंग रूम इंचार्ज आ कर मेरा टिकट देखना चाहते हैं. मैं मोबाइल की स्क्रीन खोल कर दिखाता हूं.

वे देखते ही चौंक जाते हैं और बोलते हैं, ‘‘अरे, यह ट्रेन तो सुबह साढ़े 5 बजे निकल गई है.’’

उन की बात सुन कर मेरी नींद भरी आंखों से नींद गायब. उन के हाथ से अपना मोबाइल ले कर देखता हूं…

आज खुद ही अपने लिए बेवजह की मुसीबत खड़ी कर बैठा हूं. लैपटौप पर टिकट बुक करते समय सुबह को शाम सम झ बैठा. पूरी तरह शर्मिंदा और बेइज्जत हो कर उठ खड़ा हुआ. अभी बस पकड़नी होगी, नहीं तो घर पहुंच कर और शर्मिंदा होना पड़ेगा.

कुछ दूर खड़ी पुणे जाने वाली बस. मुंबई से पुणे शहर पहुंचने के 3 पते… शिवाजीनगर, स्टेशन और स्वारगेट. स्टेशन मेरे लिए सुविधाजनक है. अच्छा है बस स्टेशन ही जाएगी. बस को 4 एजेंट घेरे हुए हैं. जहां से जो मुमकिन हो ग्राहक पकड़ कर ला रहे हैं. मेरे जाते ही वे टूट पड़ते हैं, मुमकिन हो तो मु झे गोदी में उठा कर बैठा देते.

बस काफी खाली है. खिड़की के पास सीट ले कर बैठ गया. अरे, बाप रे… 5-6 सवारियों को ले कर बस तुरंत छोड़ देती है. राहत की सांस आती है कि चलो 8 बजे तक पुणे पहुंच जाएंगे.

बस आगे बढ़ती है, दाएं मुड़ती है, फिर दाएं, उस के बाद फिर दाएं और थोड़ा आगे जा कर रुक जाती है.

यानी जहां से बस निकली थी, वहीं अब खड़ी है. फिर डेढ़ घंटे तक ऐसे ही 5 बार चक्कर काटती है.

आखिर में तंग आ कर मैं पूछता हूं, ‘‘यह सब करने का मतलब?’’

जवाब आता है, ‘‘आरटीओ औफिस के लोग खड़े हैं. ज्यादा देर खड़ी रही तो फाइन देना पड़ेगा.’’

जिंदगी में कितनी तरह के अनुभव होते हैं. आखिरकार शाम साढ़े 7 बजे बस दादर से निकलती है. तब तक सभी सीटें भर चुकी हैं. दिन शुक्रवार है, इसलिए पुणे में तैनात मुंबई के नौजवान लड़केलड़कियां वीकैंड पर घर लौट रहे हैं. बस में उन्हीं की भरमार है.

मेरे पास एक कम उम्र की लड़की बैठ गई है. उम्र न सिर्फ कम है, बल्कि ध्यान से देखा तो कद भी छोटा है. पैर पूरी तरह फुटरैस्ट तक नहीं पहुंच रहे.

तभी मेरा फोन बज उठा. फोन के दूसरी तरफ मेरी पत्नी श्रावंती. खतरा… फोन उठाते ही रास्ते के हौर्न की आवाज सुनाई देगी. मेरी नाकामी का भेद खुल जाएगा. पर फोन न उठाना भी ठीक नहीं. वह छोड़ेगी नहीं, लगातार बजाती रहेगी. फोन बंद कर दूं तो भी मुसीबत, बात न करने पर श्रावंती टैंशन लेगी. हाई ब्लडप्रैशर की पेशेंट है. अकेली घर पर है, यह भी समस्या है.

मजबूरन रिसीवर को ढकते हुए जोर से बोला, ‘‘चढ़ गया हूं, बाद में फोन करता हूं.’’

मकसद था मुंबई शहर छोड़ कर बस जब सुनसान इलाके में पहुंचेगी, तो बात कर लूंगा.

पश्चिम भारत में बेवजह हौर्न बजाने की आदत कम है. यह बात मु झे मेरे पुरानी कंपनी के डायरैक्टर मिस्टर बाफना ने कोलकाता के कैमाक स्ट्रीट औफिस में बैठ कर सम झाई थी. उस दिन लंबे समय तक लोडशैडिंग के चलते सड़क किनारे बने कौंफ्रैंस रूम की खिड़कियां खोलनी पड़ी थीं. फिर कारों के हौर्न के शोर से कान पक गए थे.

कुछ देर बाद बस एक पैट्रोल पंप पर रुकती है. जल्दी से उतर कर एक सुनसान जगह ढूंढ़ कर श्रावंती को रिपोर्ट कर देता हूं. बस की रफ्तार देख कर अंदाजा लगा लिया है कि रात 11 बजे से पहले पुणे नहीं पहुंचेगी. ट्रेन होती तो साढ़े 9 बजे ही पहुंच जाता, इसलिए पहले ही ट्रेन लेट होने की कहानी गढ़ ली है.

बस मुंबई शहर छोड़ कर मुंबईपुणे ऐक्सप्रेसवे पर चल पड़ती है. महसूस करता हूं कि पास वाली लड़की सीट पर सो गई है. बीचबीच में झुक कर मेरे कंधे से टकरा रही है. बेचारी पूरे दिन औफिस में काम कर के अब सफर कर रही है. वह मेरी छोटी बेटी जितनी है. तोरसा भी बस में मेरे कंधे पर सिर रख कर सोती थी.

कभी गोद में सिर दे कर लेट जाती थी. छोटी उम्र से ही वह मेरी बगलगीर थी.

एक बार औफिस के काम से कुछ दिनों के लिए कोलकाता जाना हुआ. तोरसा तब 3 साल की थी. जिद करने लगी कि मेरे साथ कोलकाता जाएगी. यह सुन कर कोलकाता से भाई की पत्नी दोला ने कहा, ‘‘दादा, ले आइए. मैं संभाल लूंगी.’’

चेयरकार से दोनों गए थे. वह मंजर आज भी आंखों में तैरता है. एक कोल्डड्रिंक की बोतल, चिप्स का पैकेट सामने रख कर 3 साल की बच्ची खिड़की के पास बैठी बाहर का नजारा देखतेदेखते पटना से कोलकाता पहुंच गई. हावड़ा स्टेशन पर उतर कर उस ने मेरा हाथ नहीं पकड़ा. ‘ठकठक’ कर चलने लगी.

औफिस के एक साथी गोपाल ने देख कर कहा था, ‘‘तेरी बेटी बहुत स्मार्ट है.’’

मन ही मन आज सोचता हूं, ‘जरूरत से ज्यादा सम झदार…’

22 साल पूरे होतेहोते एमबीए कर के दूल्हे के हाथ ससुराल चली गई और उस की बड़ी बहन को शादी के लिए मनाने में तो नाकों चने चबवा लिए. आखिर धमकी दे कर शादी के पीढ़े पर बैठाना पड़ा.

बस अचानक तेज ब्रेक मारती है. झटके से लड़की जाग जाती है और शर्मिंदा होती है.

वह शरमाते हुए कहती है, ‘‘सौरी अंकल, मैं सो गई थी.’’

मैं प्यार से कहता हूं, ‘‘कोई बात नहीं, तुम थक गई होगी. मेरी छोटी बेटी भी ऐसे ही सो जाती थी.’’

अब लड़की ने पूछा, ‘‘आप कहां उतरोगे?’’

मैं ने कहा, ‘‘पुणे स्टेशन.’’

सुन कर उसे राहत मिली. उस का अगला सवाल, ‘‘आप बंगाली हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘जी, कैसे पता चला?’’

लड़की बोली, ‘‘आप के बोलने के लहजे से. हमारे डिपार्टमैंट में बंगाली बहुत हैं.’’

अब मैं ने पूछा, ‘‘आप मराठी हो?’’

उस लड़की ने कहा, ‘‘आप को कैसे पता?’’

मैं ने जवाब दिया, ‘‘मेरे साथ वाले पड़ोसी भी मराठी हैं. आप ने अपनी ‘आई’ से बात की है न?’’

इतना सुन कर वह जोर से हंसी.

2 घंटे चलने के बाद बस एक रोड साइड ढाबे के पास रुकती है. यहां सभी उतरेंगे. कोई चाय पीएगा, कोई खाना खाएगा, कोई वाशरूम जाएगा.

मैं भी उतरा. समय देखा, तकरीबन 10 बजे हैं यानी पुणे स्टेशन पहुंचतेपहुंचते रात के 12 बज ही जाएंगे. आज पकड़ा जाऊंगा. मेरा झूठ टिकेगा नहीं, क्योंकि रात जितनी बढ़ेगी, देरी होगी, श्रावंती के फोन उतने ही बार आएंगे और किसी न किसी समय आसपास का शोर पकड़ में आ जाएगा और मैं फंस जाऊंगा.

फिर सुनसान जगह ढूंढ़ कर फोन लगाता हूं. यहां के लोग ट्रेन में ज्यादा बात नहीं करते. हौकर्स भी वैसे नहीं चलते, यह श्रावंती जानती है, इसलिए सुनसानी के आंचल में बच सकता हूं.

सब ठीक चल रहा था, श्रावंती से बात शांति से हो रही थी. अचानक हमारी बस के पास खड़ी बस भयानक आवाज में गरज उठी. श्रावंती के कान में वह आवाज जरूर पहुंची और ऐसा ही हुआ.

वह बोली, ‘‘बस की आवाज आ रही है. तुम कहां हो?’’

मैं धीरे से बोला, ‘‘अरे, खंडाला घाट के ऊपर ट्रेन खड़ी है. पास ही ऐक्सप्रैसवे है.’’

श्रावंती मान जाती है या मन ही मन सम झ जाती है. मैं बच गया. जल्दी से बात खत्म की. बोला, ‘‘बात ठीक से सुनाई नहीं दे रही. टावर नहीं मिल रहा.’’

पास वाली लड़की बस में लौट आई. एक जीरो शुगर कोक की बोतल मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘अंकल, यह लीजिए.’’

उस ने नोटिस किया था कि मेरी पानी की बोतल खाली हो गई है. टैंशन में मैं भूल गया था पानी खरीदना.

हमारी बस लोनावला घाट में जाम में फंस गई. पुणे शहर के नजदीक पहुंचते ही रात का 1 बज गया. रेल स्टेशन पहुंचतेपहुंचते रात के 2 बज गए थे.

लड़की से पूछा, ‘‘आप कहां जाओगी?’’

जवाब आया, ‘‘शिवाजीनगर.’’

फिर मैं ने पूछा, ‘‘कोई आप को लेने आ रहा है?’’

कुछ देर चुप रह कर मेरी तरफ देखती हुई वह बोली, ‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

थोड़ा अधिकार दिखाते हुए मैं बोला, ‘‘मु झे ‘खड़की’ जाना है. चलो, तुम्हें छोड़ देता हूं. इतनी रात अकेली कैसे जाओगी.’’

लड़की ने एक आटोरिकशा बुलाया और आटोरिकशा वाले को मराठी में सम झाया कि उसे ‘शिवाजीनगर’ छोड़ कर मु झे ‘खड़की’ पहुंचाना है. मेरा फोन चार्ज खत्म हो चुका था. पहले ही श्रावंती से कह दिया था, ‘‘ट्रेन बहुत लेट है. फोन का चार्ज भी खत्म हो रहा है. तुम चिंता मत करो.’’

लड़की को उस के अपार्टमैंट के दरवाजे तक छोड़ कर विदा किया. आटोरिकशा वाला ‘खड़की’ की ओर चल पड़ा.

मैं ड्राइवर से कहा, ‘‘गाड़ी वापस मोड़ो. मु झे ‘एनआईबीएम’ जाना है.’’

आटोरिकशा वाला बोला, ‘‘लेकिन, उस ने तो ‘खड़की’ कहा था.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्या करूं… इतनी रात अकेली कैसे छोड़ दूं? मुंबई से साथ चले थे. सच बोलने पर वह पहुंचाने को राजी नहीं थी.’’

आटोरिकशा वाला बोला, ‘‘चलिए सर, जहां बोलोगे पहुंचा दूंगा.’’ Story In Hindi

Hindi Story: रबड़ का आदमी

Hindi Story, लेखक – प्रभात गौतम

इत्तिफाक से उस दिन हमारा आमनासामना हो गया. नरेश कालेज के दिनों में मेरा सहपाठी रह चुका था. हमारी आपस में कभी भी गहरी दोस्ती नहीं रही थी, पर आज वह इतना अपनापन दिखा रहा था, जैसे हम जन्मजन्मांतर के साथी हों. बिना मेरी बोरियत को समझे वह लगातार अपने कालेज के दिनों की घटनाएं दोहराए जा रहा था.

मैं कभी सड़क पर गुजरती कारों को देख रहा था, तो कभी आसमान पर छाए हलके बादलों को. किसी भी तरह जल्दी से जल्दी उस से छुटकारा पाने के लिए मैं ‘हां या न’ में उस का समर्थन जता देता था, जिस से वह और भी खुश हो रहा था.

‘‘अच्छा अभी तो मैं चलता हूं. फिर कभी घर आना. यहीं गांधीनगर में,’’ जैसे ही नरेश ने अपनी बात को खत्म किया, मैं ने अपने घर जाने का उतावलापन जाहिर कर दिया.

‘‘फिर कभी क्यों राजन… चलो, अभी चलते हैं. इसी बहाने भाभीजी के हाथों की चाय भी पी लेंगे,’’ नरेश तुरंत बोल पड़ा.

मुझे लगा कि मेरे द्वारा आसमान में उछाला गया कोई पत्थर मेरे ही सिर पर आ गिरा है. मुझे अपनी गलती का पछतावा होने लगा. कितना अच्छा होता मैं यहीं रुक कर कुछ देर और उस की बातें सुन लेता, जिस से मेरा रविवार का मजा खराब होने से तो बच जाता.

घर पर पहुंचने पर जो मेरा बुरा हाल होने वाला था, उस का मुझे आभास होने लगा था. मैं उस की बातों में सारे सामान की लिस्ट भूल चुका था, जो मुझे घर के लिए ले जाना था.

‘‘यार, थोड़ी मिठाई और नमकीन भी ले चल. भूख लगी है,’’ नरेश जैसे फिर बेशर्मी पर उतर आया.

मैं अंदर ही अंदर गुस्से से भर गया था और जेब में पड़े एकलौते नोट के जाने का शोक मनाते हुए मिठाई की दुकान की तरफ बढ़ रहा था.

घर के भीतर आते ही नरेश ‘धम्म’ से सोफे पर बैठ गया और दीवारों पर लगी पेंटिंग्स पर अपनी राय जाहिर करने लगा, जबकि मुझे सीधे लग रहा था कि वह इन के बारे में कुछ नहीं जानता.

कमरे में सजे गुलदस्ते, मूर्तियां नरेश ऐसे देख रहा था जैसे वह इसे पहली बार देख रहा हो. बातचीत को कुछ देर भी रोकना उसे गंवारा नहीं था. कोई न कोई बात खोज कर वह लगातार बोलता जा रहा था और नहीं तो वह कालेज के दिनों की क्लास के दोस्तों की बात ही छेड़ देता, जिसे वह कुछ ही देर पहले बता चुका था. यहां तक कि मुझे ही मेरी आदतों से अवगत कराने लगता था. मुझे उस के मुंह से शराब की हलकीहलकी बदबू भी आ रही थी.

‘‘अरे राजन, तुम तो आज बड़े उदास नजर आ रहे हो. कहीं भाभीजी से झगड़ा तो नहीं हो गया,’’ नरेश मेरी उदासी भांप कर बोल पड़ा.

मुझे अपने एकमात्र नोट के जाने का दुख सता रहा था जिसे बचाने के लिए मुझे अपनी औफिस की पार्टी छोड़नी पड़ी थी और औफिस से घर के लिए कभी किसी से, कभी किसी से लिफ्ट लेनी पड़ी थी.

‘‘नहीं… तो. मैं उदास कहां हूं. वह तो थोड़ी सी थकावट है,’’ मैं ने चेहरे पर बनावटी मुसकराहट लाने की कोशिश की.

‘‘तुम बैठो, मैं अभी तुम्हारे लिए चाय बनवा देता हूं,’’ मैं ने बात पलटने के अंदाज में कहा, जिस से मुझे उठ कर श्रीमतीजी को हालात समझाने का मौका भी मिल सके.

‘‘चाय आए तब तक तुम मिठाई ही ले आओ,’’ अब नरेश एकदम अनौपचारिकता पर उतर आया था, जो मुझे बेशर्मी लग रही थी. मन चाहा कि उसे इसी समय धक्का मार कर बाहर निकाल दूं, पर किसी तरह अपनेआप को रोका और कमरे से बाहर आ गया. हालांकि, मैं मन ही मन उसे ढेर सारी गालियां दे चुका था.

अपनी पत्नी को थोड़े में सारी बात समझा कर मैं दोबारा नरेश के सामने वाले सोफे पर बैठ गया. अब उसे हमारी बातचीत के विषय याद नहीं आ रहे थे. आसपास नजरें दौड़ा कर वह किसी अखबार या पत्रिका की तलाश में था, जिसे जानते हुए भी मैं अनजान बना हुआ था, क्योंकि मैं अखबार वगैरह मंगवाता ही नहीं था.

कुछ देर के लिए हमारे बीच चुप्पी बनी रही, जिसे तोड़ने के लिए नरेश अपने जूते हिला कर ‘खटखट’ की आवाज कर लेता था. कभी हम घूमते पंखे को देखते थे, कभी दीवारों पर टंगे कलैंडर में तारीखें पढ़ने लगते थे. जैसे ही वह मेरी तरफ देखता था, मैं अपने चेहरे पर बनावटी मुसकराहट तैरा लेता.

कुछ ही देर में चाय, मिठाई और नमकीन से सजी ट्रे के साथ मेरी पत्नी हमारे सामने थी, जिस को देखते ही नरेश ने फिर से अपनी बकबक शुरू कर दी. वह लगातार चाय, नमकीन की तारीफ कर प्लेट साफ किए जा रहा था. मेरे साथ होने वाली बातें बड़े यकीन से वह मेरी पत्नी को बताए जा रहा था, जो कभी मेरे साथ घटित ही नहीं हुई थीं. फिर भी हम दोनों चुपचाप उसे सुने जा रहे थे.

मुझे नरेश के द्वारा सुनाए जा रहे किसी भी चुटकुले पर हंस नहीं आ रही थी. कई बार तो मुझे वह एक डाकू या लुटेरा जैसा लगने लगा था, जो हमारे घर को लूटने पर आमदा है और हम उसे चुपचाप बैठे देख रहे हैं. पत्नी भी उस की बातों का औपचारिक जवाब दे कर चुप हो जाती थी.

आखिरकार सबकुछ खा पीने के बाद जब नरेश जाने के लिए उठा, तो मुझे कुछ संतोष हुआ. कदम बढ़ाते हुए मैं उसे बाहरी दरवाजे तक ले आया था, पर वह था कि कोई न कोई विषय पर नई बात शुरू कर देता था.

‘‘कितने बरसों बाद तो हम मिले हैं,’’ कह कर नरेश फिर से पत्नी की तरफ मुखातिब हो गया.

‘‘भाभीजी, आप क्या करती हैं? आप तो अच्छी पढ़ीलिखी हैं कहीं सर्विस क्यों नहीं कर लेतीं?’’ उस ने पत्नी से पूछा.

‘‘करना तो चाहती हूं, पर मिले भी तो,’’ पत्नी ने टालने के अंदाज में जवाब दिया.

‘‘तुम दिला दो इन्हें सर्विस,’’ मैं ने कुछ गुस्से से कहा.

‘‘आप की तो इंगलिश भी बहुत अच्छी लग रही है. आप बता रही थीं आप ने बीएड भी कर रखा है… कोई स्कूल जौईन करना चाहें तो आप कल ही आ जाओ. आप की नौकरी पक्की. अभी 20,000 से स्टार्ट करवा दूंगा, फिर आगे देख लेंगे. स्कूल का मालिक मेरा अच्छा जानकार है. एकदम जिगरी यार. समझो, अपना ही स्कूल है.’’

नरेश ने किसी नामी स्कूल का नाम बताया. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह इतने बड़े स्कूल के मालिक का जानकार होगा.

इस एक वाक्य से एकदम नरेश अच्छे और भले आदमी में तबदील हो गया. जैसे मेरे सामने पैंटशर्ट पहने कोई दूत खड़ा था. मैं उस के कपड़ों में लगे परफ्यूम की भीनीभीनी महक महसूस कर रहा था. उस की बातें अब हमें बड़ी अच्छी लग रही थी.

‘‘आप खाना खा कर जाते,’’ पत्नी ने भी अब उस की मेहमाननवाजी शुरू कर दी थी.

‘‘नहीं, आप ने इतना कुछ तो खिला दिया. खाना खाऊंगा आप की पहली तनख्वाह मिलने पर,’’ कह कर नरेश आगे बढ़ने लगा.

‘‘मैं तुम्हें स्कूटर पर छोड़ देता हूं,’’ मैं भी पूरी तरह नरेश की खातिरदारी पर उतर आया था. वह मना करते हुए चुपचाप आगे बढ़ गया.

…और कमरे में वापस जाते हुए मैं नरेश की तारीफ के पुल बांधे जा रहा था. Hindi Story

News Story In Hindi: भाषा की आड़ में सियासी जंग

News Story In Hindi: बारिश का मौसम आ गया था. पहाड़ों पर रोजाना पहाड़ खिसकने और लोगों के जाम में फंसने की खबरें आ रही थीं. दिल्ली में हुई जरा सी बारिश से सड़कों पर पानी भरा, तो दिल्ली सरकार की पोलपट्टी खुल गई.

इन सब परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए विजय ने एक शाम अनामिका को कनाट प्लेस के एक कैफे में बुलाया. शाम के 5 बज रहे थे. विजय कैफे में था, जबकि अनामिका को 6 बजे तक आना था. वह बारिश के चलते जाम में फंस गई थी.

विजय ने कहा भी था कि ओला बाइक ले लेना, पर अनामिका ने कार से आना मुनासिब सम झा, तो अब जाम की भेंट चढ़ गई थी.

कैफे बड़ा खूबसूरत था. चूंकि बारिश हो रही थी, तो वहां भीड़ भी अच्छीखासी थी. विजय के सामने की सीट पर एक साउथ इंडियन नौजवान बैठा था. उम्र होगी तकरीबन 26 साल और वह किसी अच्छी कंपनी का मुलाजिम लग रहा था. वह बैरा से टूटीफूटी हिंदी में बात कर रहा था.

विजय चूंकि हरियाणा से था, पर दिल्ली में पलाबढ़ा था, तो उस ने हरियाणवी में उस साउथ इंडियन नौजवान के मजे लेने की नीयत से पूछा, ‘‘छोरे, केरल का सै के?’’

उस साउथ इंडियन को सिर्फ केरल सम झ में आया, तो वह तिलमिला कर बोला, ‘‘मैं केरल नहीं, तमिलनाडु से आई.’’

‘आई’ सुनते ही विजय की हंसी निकल गई और वह बोला, ‘‘आ रै, तू तो छोरी लिकड़ा…’’

उस साउथ इंडियन के कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा, पर वह बोला, ‘‘मैं मलयाली नहीं, तमिल है.’’

‘‘फेर आड़े के धार लेण आया सै…’’ विजय अपनी हंसी रोकते हुए बोला.

‘‘मुझे आप की भाषा नहीं सम झ आती. मेरी हिंदी बड़ी पूअर है. वैरी लिटिल हिंदी जानती,’’ उस नौजवान ने जवाब दिया.

‘‘या हिंदी ना सै झकोई, हरियाणवी सै,’’ विजय ने फिर मजे लिए.

‘‘सर, मेरी सम झ में कुछ नहीं आती… आप क्या बोलती…’’ वह नौजवान परेशान हो कर बोला.

‘‘मैं बोलती कि तू भैंस की पूंछ सै. खाग्गड़ का खाग्गड़ हो ग्या, पर ‘बोलता’ को ‘बोलती’ बोल्लण तै बाज नी आंदा,’’ विजय ने फिर चुटकी ली.

‘‘फ्रैंड, मैं यहां कौफी पीने आई. क्या आप भी कौफी लेंगी?’’ उस नौजवान ने खी झ कर पूछा.

‘‘अरे, नहीं फ्रैंड, मैं बस मजाक कर रहा था. मेरी गर्लफ्रैंड आने वाली है. हमारी कौफी डेट है. आप भी हमें जौइन करें. मु झे बड़ी खुशी होगी,’’ विजय अब मजाक के मूड में नहीं था.

उस नौजवान को काफीकुछ सम झ में आया और वह लंबी सांस लेते हुए बोला, ‘‘आप ने तो मुझे डरा दिया था. मैं जरूर आप के साथ कौफी लेगी.’’

‘‘मेरे भाई, ‘लेगी’ नहीं ‘लूंगा’ बोलो…’’ विजय ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम विजय है और आप का क्या नाम है?’’

‘‘आप मु झे सुंदरम कह सकते हैं,’’ वह नौजवान हाथ मिलाते हुए बोला.

‘‘और मेरा नाम अनामिका है…’’ तभी पीछे खड़ी अनामिका ने अपना परिचय दिया, ‘‘और विजय, तुम क्यों इन भाई साहब के मजे ले रहे थे. बड़ी हरियाणवी निकल रही थी आज. तुम्हें किसी को उस की भाषा या बोलने के अंदाज पर जज कर के उस का मजाक नहीं बनाना चाहिए.’’

‘‘पर यार, मु झे टाइमपास करना था. सोचा कि इस की ही क्लास ले लूं,’’ विजय ने अनामिका को सफाई दी.

‘‘पर तुम यह देखो न कि हम तीनों यहां एक टेबल पर बैठे हैं, फिर भी 3 अलगअलग भाषाओं तमिल, हरियाणवी और भोजपुरी को जानते हुए कितने अपनेपन से बात या संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘यह तो सच है. अच्छा, यह बताओ कि कौन सी कौफी लोगी? और आप तमिल भाई साहब… माफ करना सुंदरम भाई साहब, कौन सी कौफी लेना पसंद करेंगे?’’ विजय बोला.

‘‘मैं फिल्टर कौफी लेगी. मु झे वही पसंद है,’’ सुंदरम ने धीरे से कहा.

‘‘पर यहां तो कौफी की कई वैराइटी हैं. आज आप कुछ नया ट्राई करो,’’ अनामिका बोली.

‘‘नया क्या?’’ सुंदरम ने पूछा, ‘‘हम तो फिल्टर कौफी ही पीते हैं.’’

‘‘ऐस्प्रैसो, कैप्पुचीनो, लैटे, अमेरिकनो, फ्लैट ह्वाइट, मोचा, फ्रैपुचीनो, मैकियाटो, कौफी क्रेमा, लुंगो…’’ अभी अनामिका ने इतना ही कहा था कि सुंदरम ने बीच में ही रोकते हुए कहा, ‘‘बस, मैं सम झ गई. जो आप को पसंद, वही मैं लेती.’’

‘‘मैं भी वही लेती,’’ विजय ने इतना कहा, तो अनामिका ने भी ठहाका लगाया. सुंदरम सम झ गया कि उस ने फिर गलत हिंदी बोली है.

अनामिका ने बैरा को बुला कर 3 कैप्पुचीनो का और्डर दिया और साथ में 3 वैज सैंडविच भी मंगाए.

‘‘जब तुम ने तमिल, हरियाणवी और भोजपुरी वाली बात कही, तो मेरे दिमाग में ‘त्रिभाषा फार्मूला’ वाला मामला याद आ गया. आजकल यह मुद्दा बहुत ज्यादा गरम है. इस पर सरकार और विपक्ष आमनेसामने है,’’ विजय ने अनामिका से कहा.

‘‘यह बड़ा पेचीदा मामला है. जब हम किसी भाषा की बात करते हैं, तो यह सोचना चाहिए कि उस के बोलने और सम झने वालों की तादाद कितनी है. अब संस्कृतनिष्ठ हिंदी की ही बात करें, तो यह आज के जमाने में किस काम की है, यह मेरी सम झ से परे है’’ अनामिका बोली.

‘‘मैं तुम्हारा मतलब नहीं सम झा?’’ विजय ने कौफी का सिप लेते हुए कहा.

‘‘राष्ट्र के उत्थान के पश्चात हम विश्वव्यापी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर लेंगे एवं समग्र मनुष्य जाति से निवेदन करेंगे कि सन्मार्ग पर चलना ही एकमेव उद्देश्य रहे,’’ जब अनामिका ने इतनी भारीभरकम हिंदी पेश की, तो विजय के साथसाथ सुंदरम की भी आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘अनामिका, मु झे नहीं पता था कि हिंदी का यह रूप भी है. लेकिन ऐसे मुश्किल शब्दों का क्या फायदा, जो सम झ में ही न आएं. और वैसे भी भाषा को ले कर जो झगड़ा महाराष्ट्र में चल रहा है, वह तो और भी डरा देने वाला है. सारे सियासी दल इसे भुना रहे हैं और पिस रही है बेचारी आम जनता,’’ विजय ने कहा.

‘‘तुम सही कह रहे हो. वहां तो मराठी और हिंदी वालों में इतनी ज्यादा ठन गई है कि लोग एकदूसरे से मारपीट करने लगे हैं.

‘‘बीते दिनों मराठी में बात नहीं करने पर एक फूड स्टौल मालिक को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के एक नेता अविनाश जाधव ने थप्पड़ मारा था. इस घटना के विरोध में व्यापारियों के प्रदर्शन के जवाब में ठाणे में आयोजित की जाने वाली रैली से पहले मनसे के नेता आविनाश जाधव को पुलिस ने हिरासत में ले लिया,’’ अनामिका ने बताया.

‘‘महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी भाषा विवाद पर एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने साफ किया है कि भाषा के नाम पर किसी भी तरह की गुंडागर्दी बरदाश्त नहीं की जाएगी. भाषा के आधार पर मारपीट करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी ऐक्शन लिया जाएगा,’’ विजय ने बात को आगे बढ़ाया.

‘‘मुझे ऐसा लगता है कि ‘त्रिभाषा फार्मूला’ के नाम पर भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में हिंदी के साथसाथ संस्कृत भाषा को भी थोपना चाहती है. साथ ही यह बात भी बड़ी अहम है कि जो भी लोग नई शिक्षा नीति बना रहे हैं, वे खुद अंगरेजी बोलने वाले हैं और इसी भाषा में पढ़ेलिखे हैं.

‘‘ऐसे लोग हिंदी या दूसरी तमाम भारतीय भाषाएं बोलने वालों को अपने से कमतर सम झते हैं. उन्हें तो हर उस गरीब और वंचित से दिक्कत है, जो सरकारी स्कूल में पढ़ कर आगे बढ़ने की सोच रहा है. आसान शब्दों में कहूं, तो यह दलितों को पढ़ाई से दूर रखने की साजिश है.

‘‘ऐसा ही कुछ अमेरिका में भी हो रहा है. वहां के गोरे लोग नस्ल के आधार पर दूसरों को सरकार द्वारा चलने वाले स्कूलों में पढ़ते देख ज्यादा खुश नहीं हैं. वे अपने बच्चों को उन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने भेज रहे हैं, जहां की फीस बहुत ज्यादा है. डोनाल्ड ट्रंप की सरकार आने के बाद यह नस्लीय भेद खुल कर सामने आ रहा है,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘तुम सही कह रही हो. हमारे यहां भी कुछकुछ वैसा ही माहौल बनाया जा रहा है. यहां जो भाषा का विवाद है, वहां हिंदी को प्रमोट करने की राजनीतिक चाल लगती है. जब हर जगह हिंदी पढ़ना जरूरी हो जाएगा, तब हिंदी भाषा से जुड़े रोजगार भी बढ़ेंगे और सरकारी नौकरियां भी निकालनी पड़ेंगी.

‘‘सरकारी दफ्तरों में ही देख लो. जब से अंगरेजी सरकारी दस्तावेजों का हिंदी में अनुवाद का काम शुरू हुआ है, तब से राजभाषा विभाग भी बना दिए हैं, पर वहां जो शब्दश: अनुवाद होता है, वह हिंदी किसी काम की नहीं है. लोग अंगरेजी में ही ज्यादा सहज महसूस करते हैं,’’ विजय ने अपनी बात रखी.

सुंदरम को ज्यादा तो कुछ सम झ नहीं आ रहा था, पर उस ने महाराष्ट्र वाली खबरें पढ़ी थीं और तमिलनाडु में भी इसी विवाद पर सुना था. उसे इस बात की खुशी थी कि विजय और अनामिका इस मुद्दे पर बहुत अच्छी बहस कर रहे थे.

हुआ यह है कि केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को समग्र शिक्षा योजना के तहत मिलने वाला पैसा देने से मना कर दिया है. केंद्र का कहना है कि तमिलनाडु ने नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लागू करने से इनकार कर दिया है. इसी वजह से राज्य को समग्र शिक्षा योजना का फंड नहीं दिया जा रहा है.

इस मसले पर तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर कहा था कि केंद्र सरकार ने अब तक 2,152 करोड़ रुपए जारी नहीं किए हैं. शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए इस फंड की जरूरत है.

एमके स्टालिन ने यह भी कहा था कि हिंदी सिर्फ मुखौटा है और केंद्र सरकार की असली मंशा संस्कृत थोपने की है. उन्होंने कहा कि हिंदी के चलते उत्तर भारत में अवधी, बृज जैसी कई बोलियां खत्म हो गईं.

राजस्थान का उदाहरण देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार वहां उर्दू को हटा कर संस्कृत थोपने की कोशिश कर रही है. दूसरे राज्यों में भी ऐसा होगा, इसलिए तमिलनाडु इस का विरोध कर रहा है.

‘‘किस सोच में पड़ गए सुंदरम? लगता है तुम्हें हमारी बहस सम झ नहीं आई, जो इतने चुप हो?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मुझे अच्छा लगा. भले ही मेरी टूटीफूटी हिंदी है, पर आज इसी से मु झे आप जैसे फ्रैंड मिले हैं,’’ सुंदरम ने कहा.

‘‘अरे, एक ही मीटिंग में तुम्हारी हिंदी सुधर गई. हमारे साथ रहोगे तो हरियाणवी और भोजपुरी भी सीख जाओगे,’’ विजय ने कहा, तो वे तीनों हंसने लगे. News Story In Hindi

Story In Hindi: नाच

Story In Hindi: रोमिला को बैंक में काउंटर के पीछे बैठे और मुस्तैदी से अपना काम करते हुए जवान क्लर्क लड़केलड़कियां बड़े अच्छे लगते थे, इसलिए वह भी इन लोगों की तरह बैंक की सरकारी नौकरी ही पाना चाहती थी, पर बैंक पीओ के इम्तिहान में 2 बार नाकाम रहने के बाद से रोमिला का मनोबल बुरी तरह से टूट गया था और वह डिप्रैशन में रहने लगी.

रोमिला 25 साल की युवती थी. उस ने बीकौम करने के बाद बैंकिंग इम्तिहानों की तैयारी शुरू कर दी थी, क्योंकि आगे चल कर वह बैंकिंग में ही अपना कैरियर बनाना चाहती थी.

रोमिला को लग रहा था कि अब उसे कभी भी बैंक की सरकारी नौकरी नहीं मिल पाएगी, क्योंकि प्रतियोगी परीक्षाओं में कंपीटिशन हद से ज्यादा बढ़ गया था.

रोमिला एक ठाकुर परिवार से थी और उस के पापा निरंजन सिंह भी चाहते थे कि रोमिला जल्द से जल्द बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर ले, पर बेटी के बारबार नाकाम होने के चलते वे सरकारी नौकरी में जातिगत रिजर्वेशन के सख्त खिलाफ थे. उन्हें लगता था कि अगर पिछड़ी जाति के लड़केलड़कियों को नौकरी में रिजर्वेशन नहीं दिया जाता, तो रोमिला का चयन कब का हो जाता.

समयसमय पर निरंजन सिंह अपनी बेटी रोमिला का हौसला भी बढ़ाते रहते थे, पर इस बार रोमिला के नाकाम रहने पर उस का दुख उन से देखा नहीं गया, तो वे अपने सब से करीबी दोस्त और शहर के बड़े नामी वकील अनिल सिसौदिया के पास गए और उन से रोमिला की हालत को बताया और उपाय पूछा कि रोमिला का सरकारी नौकरी में सैलेक्शन कैसे हो? इस के लिए वे कितने भी पैसे खर्च कर सकते हैं.

अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को बताया कि सरकारी नौकरी पाना जितना मुश्किल है, उतना ही आसान भी.

अनिल सिसौदिया की इस बात पर निरंजन सिंह खी झ गए और बोले, ‘‘इतना ही आसान होता तो मेरी काबिल लड़की नौकरी पा गई होती.’’

वकील अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को बताया कि उन की बेटी अगर सवर्ण होने के नाते नौकरी नहीं पा रही है, तो उपाय बहुत आसान भी है.

‘‘क्या उपाय है?’’ निरंजन सिंह सरकारी नौकरी पाने का उपाय सुनने को बेताब हो रहे थे.

अनिल सिसौदिया ने बताया कि वे अपनी लड़की की शादी किसी दलित जाति के सीधेसादे और गरीब लड़के से कर दें, जिस से उन की बेटी का दलित जाति का सर्टिफिकेट बन जाएगा. उस सर्टिफिकेट के चलते जब बेटी को नौकरी मिल जाएगी, तो कुछ दिनों बाद उस की बेटी अपने पति पर जोरजुल्म करने का आरोप लगा कर तलाक ले ले और चुपचाप सरकारी नौकरी का मजा लेती रहे.

वकील अनिल सिसौदिया की बात सुनकर निरंजन सिंह का खून उबाल मारने लगा. उन की कनपटी लाल
हो गई.

‘‘अनिल, तुम पगला गए हो क्या… तुम मेरी बेटी को किसी निचली जाति के लड़के से ब्याहने की बात सोच भी कैसे सकते हो? यह कह कर तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो. इन दलित लोगों के घर में हम भला अपनी बेटी कैसे दे सकते हैं…’’ निरंजन सिंह चीख रहे थे.

वकील अनिल सिसौदिया ने निरंजन सिंह को पानी पीने को दिया और उन्हें सम झाया कि वे सिर्फ सरकारी नौकरी पाने के लिए किसी गएगुजरे, बेरोजगार और गरीब दलित जाति के लड़के से ब्याह के नाम पर कोर्टमैरिज करने को कह रहे हैं. शादी यहां से कहीं दूर जा कर होगी और आप उस बेरोजगार दलित लड़के को कोई रोजगार दिला देना या अपने पैसों के कर्ज तले दबे देना. हां, थोड़ा आत्मसमान को ठेस तो पहुंचेगी, पर फिर कुछ पाने के लिए थोड़ाबहुत सम झौता तो करना ही पड़ेगा.

निरंजन सिंह का मूड थोड़ा उखड़ा हुआ तो था, पर काफी हद तक बात उन की सम झ में आ गई थी और फिर घर जा कर उन्होंने यह बात रोमिला को बताई.

पहले तो रोमिला ने भी थोड़ी नाराजगी जताई, पर वह हर हाल में सरकारी नौकरी पाना चाहती थी, इसलिए फिर उसे यह प्रस्ताव सही लगने लगा था. एक बार वह बैंक की सरकारी नौकरी पा ले, फिर तो अपने उस दलित पति को तलाक देने में देर नहीं करेगी. इस तरह सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.

‘पर ऐसा लड़का मिलेगा कहां? और फिर हर लड़का शादी के बाद अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहेगा. ऐसे में अपनी इज्जत को बचाना एक बड़ी चुनौती होगी,’ रोमिला सोच रही थी.

‘हमारे आसपास देखने पर या फिर पिछड़ी बस्तियों में मरियल, लाचार और बेरोजगार दलित लड़का बड़ी आसानी से मिल ही जाता है,’ यह सोच कर निरंजन सिंह को भी बड़ी आसानी से एक लड़का मिल भी गया.

वह 35 साल का मनोज नाम का एक दलित विधुर था. उस के अंदर लड़कियों जैसी हरकतें ज्यादा थीं और वह गांव की नौटंकी में औरत बन कर नाचगाना करता था. मनोज की पत्नी मर चुकी थी.

निरंजन सिंह को लड़कियों जैसी हरकत वाले मनोज से शादी कर देना थोड़ा सुरक्षित महसूस हुआ था और उन्हें यह दलित इतना लाचार लगा कि वह हमेशा उन की बेटी से दब कर ही रहेगा, इसलिए निरंजन सिंह ने मनोज से उस की दोबारा शादी की बात चलाई, तो वह थोड़ा हैरत में पड़ गया.

मनोज अपनी पत्नी के मर जाने के बाद सदमे जैसी हालत में था और शराब की लत लगा बैठा था. वैसे, उस के पास खुद का पेट भरने के लिए भी पैसे तक नहीं थे. ऐसे में भला वह शादी की बात कैसे सोचता?

पर निरंजन सिंह ने गांव के प्रधान को अपनी तरफ कर लिया और अपनी बेटी को अनाथ दिखाते हुए झूठ
बोला कि वे अनाथ लड़कियों की शादी मनोज जैसे विधुर से कराते हैं, ताकि दोनों लोगों का भला हो सके.

प्रधान को निरंजन सिंह की बात में सचाई लगी और वे मनोज को दूसरी शादी के लिए राजी करने लगे. उन्होंने मनोज को भरोसा भी दिलाया कि कोर्ट में शादी करने पर उसे 50,000 रुपए भी मिलेंगे.

रुपयों की बात सुन कर मनोज को ठीक लगा और उस ने दोबारा शादी करने के लिए हां कर दी.

मनोज को शादी से कोई सरोकार नहीं था. उसे तो 50,000 रुपए का लालच था, जो शादी के बाद मिलने वाले थे और वह उन से जम कर शराब पी सकता था.

शहर में कोर्ट में मनोज और रोमिला की शादी करा दी गई. निरंजन सिंह के परिवार को इस तरह बेटी की शादी बड़ी अजीब सी लग रही थी, पर वे लोग जानते थे कि यह सब एक ड्रामा है और कुछ दिनों के बाद नौकरी मिलते ही रोमिला मनोज को लात मार कर वापस आ जाएगी.

रोमिला शादी कर के मनोज के साथ जाते समय थोड़ा घबरा रही थी कि जब मनोज उस के साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहेगा, तो वह क्या करेगी? किसी दलित के साथ रहना या फिर संबंध बनाने की बात तो उस ने सोची तक नहीं थी, पर सरकारी नौकरी के लालच में वह यह सब कर रही थी.

रोमिला को डर सता रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि मनोज उसे दबोच कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगे. अपनी सुरक्षा के लिए उस ने एक चाकू अपनी कमर में छिपा लिया था और मनोज के टूटेफूटे घर जा कर कमरे में एक ओर खड़ी हो गई, पर मनोज ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, बल्कि कमरे में जाते ही शराब के 2 पैग मार कर नींद के आगोश में चला गया.

मनोज के घर पर खाना बनाने के लिए गैस और दूसरा सामान नहीं था. एक गैस कनैक्शन और दूसरे सामान का इंतजाम रोमिला के पापा ने कर दिया था. आखिर कुछ महीने तो रोमिला को यहां काटने थे और अपना शहरी स्टाइल भी छिपा कर रखना था, ताकि लोगों को किसी तरह का शक न हो और जाति प्रमाणपत्र बनने में कोई परेशानी न हो.

कुछ और समय बीता तो रोमिला ने अपना नया जाति प्रमाणपत्र बनवा लिया और बैंक की नौकरी के लिए दलित बन कर आवेदन कर दिया, जहां पर उसे जातिगत रिजर्वेशन मिलना था.

बैंक पीओ का इंतजाम पास था, इसलिए रोमिला जीजान से पढ़ाई करने लगी. कभीकभी तो उसे खाने की सुध भी नहीं रहती थी और वैसे भी उसे इस बार तो अपनी कामयाबी की पूरी उम्मीद थी, क्योंकि उस के पास पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र भी था, पर यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था.

इम्तिहान वाले दिन रोमिला बहुत आशावादी थी, पर प्रश्नपत्र देख कर उस के होश उड़ गए थे. सभी सवाल बेहद मुश्किल थे.

रोमिला सवालों के जवाब नहीं दे पाई और उसे तुरंत आभास हो गया कि यह प्रतियोगिता वह पास नहीं कर पाएगी. और हुआ भी यही. नतीजा आने पर रोमिला का सैलेक्शन नहीं हुआ था और वह रैंकिंग में भी बहुत पीछे रह गई थी.

यह साफ हो गया था कि प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के लिए जातिगत रिजर्वेशन से कुछ नहीं होता, बल्कि कामयाबी तो उन्हीं को मिलती है, जो इस के सही हकदार होते हैं.

उस रात अचानक मनोज को तेज बुखार आ गया. जब मनोज से रहा नहीं गया तो उस ने रोमिला को पुकारा और दवा मांगी.

जब रोमिला बुखार की गोली ले कर गई तो मनोज आंखें बंद किए लेटा हुआ था और बड़बड़ा रहा था, ‘‘रमिया… रमिया… छोड़ दो उसे. छोड़ दो रमिया को…’’

रोमिला ने मनोज को उठा कर दवा खिलाई और रमिया के बारे में पूछने लगी.

उस दिन मनोज ने अपने दिल में छिपी हुई बातों का राज उजागर किया, ‘‘रमिया मेरी पत्नी थी. हम दोनों बहुत खुश थे. रमिया लंबी, पतली देह वाली औरत थी उस की साड़ी और चोली के बीच की कमर और गहरी नाभि मु झे बहुत पसंद थी.

‘‘रमिया खाना भी बहुत अच्छा बनाती थी, पर शायद दलित जाति का होना रमिया और मेरे लिए शाप बन
गया था.

‘‘एक दिन की बात है. गांव के ठाकुर और पंडित हमारे घर आए और रमिया पर भरपूर नजर डालते हुए ठाकुर बोले, ‘सुना है तेरी घरवाली मीट बहुत अच्छा बनाती है. चल, आज हम तेरे घर में बैठ कर तेरी पत्नी के हाथ का मीट खाएंगे.’

‘‘बड़ी जाति के लोग एक दलित के घर खाना खाएंगे, यह बात बड़ी अजीब लगी थी, पर हम दोनों को भरोसा हो गया था कि हो सकता है कि बदलते समय के साथ ऊंचनीच का भेदभाव खत्म हो गया हो.

‘‘ठाकुर और पंडित ने अपने साथ लाया हुआ बकरे का मीट रमिया को दे दिया और खुद जा कर खटिया पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाने लगे, जबकि रमिया खुशीखुशी अपनी साड़ी को अपनी सांवली कमर में खोंस कर मीट बनाने की तैयारी करने लगी थी.

‘‘तभी ठाकुर ने हम से कहा, ‘तुम नौटंकी में नाचने वाली का रोल बड़ा अच्छा निभाए थे. जरा हम भी तो देखें कि मनोज भैया कैसे नाचे थे…’

‘‘ठाकुर के मुंह से अपने हुनर की तारीफ सुन कर हम खुश हो गए और जल्दी से कमरे में जा कर औरतों का सिंगार कर के और घाघरा और चोली ओढ़ कर आ गए और दोनों के सामने नाच दिखाने लगे और खुद गाना भी गा रहे थे.

‘‘गाते समय हमारी आवाज किसी औरत की तरह ही पतली और सुरीली लग रही थी… गाने के बोल थे, ‘हमार नाम आपन मुंह से बोलो राजाजी, चोली तंग है हमारे जरा हुक तो खोलो राजाजी…’

‘‘रसोई के अंदर रमिया को यह नौटंकी अच्छी नहीं लग रही थी, पर वह चुपचाप मीट बना रही थी. ठाकुर और पंडित की नजर तो रमिया पर थी. वे दोनों रमिया का नाच देखना चाहते थे, इसलिए हमारा नाच रुकवा कर उन्होंने रमिया से नाच दिखाने को कहा.

रमिया ने थोड़ा नानुकुर तो किया पर कुछ देर बाद सामने आ कर कमर हिला कर नाच दिखाने लगी, लेकिन उन दोनों की नीयत खराब थी और उन्होंने जबरदस्ती रमिया के साथ बारीबारी गलत काम किया.

‘‘अपने साथ हुए गलत काम के चलते ही रमिया ने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी…’’ यह कहता हुआ मनोज रो रहा था.

रोमिला भी थोड़ा दुखी थी, पर वह कर क्या भी सकती थी. वह तो पहले ही बैंक के इम्तिहान में फेल होने से दुखी थी, क्योंकि उस के सारे प्लान और किएकराए पर पानी फिर गया था. एक दलित से शादी कर के भी उसे कामयाबी नहीं मिल पाई थी.

अगले दिन की बात है. रोमिला नहाने जा रही थी कि तभी दरवाजे पर कुंडी बजने की आवाज हुई.

मनोज ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने गांव के कुछ नई उम्र के बिगड़ैल लड़के खड़े थे. वे गिनती में 5 थे. उन लोगों ने मनोज को धक्का दिया और अंदर आ गए.

रोमिला पर भरपूर नजर डालते हुए एक लड़का बोला, ‘‘तनिक कमर लचका कर हम सब लोगों को नाच तो दिखा दे.’’

उस लड़के की बात का रोमिला ने डरते हुए विरोध किया, तो वे सब उस पर दबाव बनाने लगे और कहने लगे कि यहां तो यही रिवाज है कि दलित औरतें नाचती हैं और लोग मजा लेते हैं और तुम ने तो दलित से शादी कर ली है, इसलिए तुम हमारे सामने नाचोगी. अगर नहीं नाची तो हम सब तुम्हारा रेप करेंगे.

रेप का नाम सुन कर रोमिला सहम गई थी. उस ने सोचा कि रेप होने से अच्छा है कि वह कमर हिला कर नाच ही दे.

तभी एक लड़के ने मोबाइल पर गाना बजा दिया, ‘लहंगा तोहार बड़ा महंगा, बड़ी गरमी बा इस लहंगे मा…’

रोमिला ने अपनी भलाई सम झते हुए नाचना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने महसूस किया कि वे शोहदे उसे हवस भरी नजरों से घूर रहे हैं और उस का नाच देखने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है.

रोमिला सोच रही थी कि काश वह जाति प्रमाणपत्र लगा कर नौकरी पाने के चक्कर में न पड़ी होती तो यह सब नहीं करना पड़ता, क्योंकि सरकारी नौकरी मेहनत करने से मिलती है, केवल पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र से कुछ नहीं होता. Story In Hindi

Funny Story In Hindi: अंगूठे से सोचने का जमाना

Funny Story In Hindi: अब तो कैमरे के सामने रोना भी कंटैंट है और हंसना भी रील. अब यूट्यूबर सोचता है कि थंबनेल में अधनंगी लड़की का फोटो डालूं या लाल घेरे में चुडै़ल दिखाऊं? इस नए जमाने का नारा है ‘अंगूठा ही दिमाग’ है. पहले अखबार की हैडलाइन का खौफ हुआ करता था, पर अब तो थंबनेल ऐसे चीखते हैं मानो न्यूक्लियर बटन दब गया हो.

सोशल मीडिया ज्ञान का सागर नहीं, बल्कि गलतफहमियों और धोखेबाजी का महासागर बनता जा रहा है. थंबनेल व क्लिकबेट की दुनिया में ईमानदारी पुराने जमाने का रिकौर्ड प्लेयर है, जिसे अब कोई नहीं चलाता.

थंबनेल गुरुओं के यूट्यूब चैनल अब बेईमानी व झूठ के कोचिंग चैनल जैसे हो गए हैं. बस, थोड़ा चेहरा खींचिए, लाल तीर लगाइए, मुफ्त में झूठ की गुगली फेंकिए. थंबनेल अब नए दौर की ठग कला है. थंबनेल यानी किसी वीडियो या लेख की एक झलक ध्यान खींचने के लिए, जबकि क्लिकबेट एक धोखा देने वाला टाइटिल या थंबनेल, जो आप से वीडियो क्लिक करवा लेता है.

‘मोदीजी का संसद में जोरदार भाषण’ एक थंबनेल. ‘मोदीजी फफकफफक कर रो पडे़’ एक क्लिकबेट. कैसे कंटैंटवीर लोगों को लुभा व झूठ परोस कर उन के समय व डाटा को खा रहे हैं.

बेक्रिंग ‘अभीअभी परमाणु युद्ध शुरू हो गया’ पर वीडियो खोलने पर एक महाशय अपने कुत्ते को नहलाते दिख रहे हैं. इन के कंटैंट में किसी को मूव करने का दम नहीं, तो कैमरा मूव कर कर लोगों को दिखाते हैं.

थंबनेल आज का वह सिक्सर है जो जीरो रन पर आउट होने जैसा है. वहीं क्लिकबेट वह चाय है, जिस में पत्ती नहीं पर उबाल जरूर दिखता है. इस में रसगुल्ला दिखाया जाता है, पर निकलती सूखी मठरी है. खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली हालत.

थंबनेल अब दरवाजे पर रखी एक खूबसूरत जूती की तरह है, पर अंदर जाओ तो असलियत नंगे पांव मिलती है. ये लोग कैमरे से नहीं कनपटी पर क्लिकबेट रख कर वीडियो बनाने में माहिर हैं. इस में कुछ नहीं को सबकुछ की तरह बेचा जाता है.

‘देखिए, मोदीजी की आंखों में आंसू’ और पता चला कि जिस सभा में वे भाषण दे रहे थे, उस इलाके में धूलभरी आंधी चल गई थी. क्लिकबेट यानी जितना बड़ा दावा उतनी छोटी बात. दर्शक गालियां भी देते हैं, पर वीडियो देखना नहीं छोड़ते.

आजकल मुद्दे नहीं मुंह के भाव बिकते हैं. जितना टेढ़ा मुंह उतना वायरल. थंबनेल का दिमागी दीवालियापन देखिए कि फोटो भगत सिंह का लगा है और प्रचवन कोई बाबाजी दे रहे हैं. दोनों हाथों से केला खाने वाली लड़की के वीडियो का टाइटिल होगा ‘इस ने वह कर दिया जो आज तक कोई नहीं, जी हां, कोई नहीं कर पाया’.

ये आज के टैलेंटेड लोग हैं, जो बिना कंटैंट के 20 मिनट का वीडियो थंबनेल व क्लिकबेट के दम पर पेल कर लोगों के समय व चैन से खेल रहे हैं. थंबनेल और पान में कैचअप डालना एकजैसे अपराध हैं.

दूल्हे की महज फोटो देख कर रिश्ता तय करने जैसा ही है अब थंबनेल खोल कर वीडियो को देखना. अब हर वीडियो ब्रेकिंग होता है. ये ब्रेक असल में वीडियो देखने वाले को इस के सडि़यल कैंटेंट के कारण ब्रेक ही कर देते हैं. आज जो सब को पता है उसे गला फाड़फाड़ कर ऐक्सक्लूसिव कहने का चलन है.

ऐक्सपायर्ड चीजें अनूठी बना दी जाती हैं.

अब ज्यादा मेहनत पहले चेहरा बिगाड़ के डर फैलाने के काम में होती है. कंटैंट बनाने का काम बाद में बिना मेहनत के चुटकियों में कर लिया जाता है. अब लोग वीडियो से ज्यादा रिऐक्शन पर रिऐक्शन करते हैं.

जहां बिना शादी के सासबहू के बीच झगडे़ जैसी हालत है.

‘वीडियो को आखिर तक देखिए… आखिरी में होगा बड़ा खुलासा…’ खुलासे तो वह बीचबीच में किसी ब्रांड के प्रमोशन का करता ही रहता है कि यह एक अनूठा औफर आज महज एक पिज्जा की कीमत पर 2 पिज्जा… केवल पहले 50 सब्सक्राइबर्स के लिए.

आखिरी तक पहुंचने तक तो आप का डाटा भी हांफने हुए दम तोड़ देता है. ये नए जमाने के डाटा खाऊ कंटैंट भाऊ हैं. इन वीडियोज रूपी चाय में कंटैंट की चीनी खोजते रह जाओगे.

असली सक्सैस मंत्र ‘जितना झूठ उतने व्यूज’. महंगाई, बेरोजगारी, जीडीपी पर कोई बात नहीं. बात तो सैलेब्रिटी के कुत्ते ने आज क्या खाया या फलां हीरो के बेटे आज कितने साल के हो गए या इन मोहतरमा ने आज 10 लाख की ड्रैस पहनी जैसी बातें ज्यादा होती हैं. झोंपड़ी की आग की वीडियो को संसद की आग कह कर देखने का लालच दिया जाता है.

सोशल मीडिया की यह यात्रा ‘फौलो फोर फैक्ट’ से ‘फौलो फोर फाल्सहुड’ तक ले आई है. कंटैंटमेकर सम झदारी से वैसे ही दूर होता जा रहा जैसे महंगाई के सरपट भागते घोडे़ की लगाम सरकार की पकड़ से, बेरोजगारी की समस्या और उस के समाधान से दूर होती जा रही है.

थंबनेल व क्लिकबेट की दुनिया में सब से तेज भाग रहा भी पहुंचता कहीं नहीं है. अब पुराने हाथ की सफाई मुहावरे की जगह अंगूठे की सफाई कहना चाहिए .

तो दोस्तो, अगली बार जब कोई कहे कि देखिए इस वीडियो ने सब को हिला दिया, तो मान कर चलिए कि आप का पूरा डाटा हिलने वाला है. अब तो अगला वीडियो नहीं, बल्कि अगला थंबनेल देखिए, ऐसा कहना चाहिए. Funny Story In Hindi

Crime Story In Hindi: एक मौत ऐसी भी

Crime Story In Hindi: रेशमा एक गरीब परिवार की खूबसूरत लड़की थी, पर उस की चाहत हमेशा अमीरों वाली थी. महंगे मोबइल, महंगी ड्रैस और बड़ी गाडि़यों में घूमने के सपने के चक्कर में वह इतनी अंधी हो गई कि उस ने अपने इस खूबसूरत बदन को ही अमीर बनने का रास्ता बनाने का इरादा कर लिया.

रेशमा मुंबई के गोवंडी इलाके में अपने अम्मीअब्बा के साथ रहती थी. उस का बाप आटोरिकशा चला कर अपने परिवार का पेट पालता था. उस ने कड़ी मेहनत कर के रेशमा को खूब पढ़ाने का सपना संजो रखा था, इसलिए उस ने अपनी बेटी को एक अच्छे इंगलिश स्कूल में दाखिला दिलवा दिया था.

रेशमा पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. यही वजह थी कि वह हर क्लास में अव्वल आती थी.

पढ़ाईलिखाई के साथसाथ रेशमा के सपने भी बड़े ऊंचे थे. वह किसी भी कीमत पर अमीर होना चाहती थी, क्योंकि उस के स्कूल में ज्यादातर अमीर मांबाप के बच्चे पढ़ते थे, जिन्हें देख कर रेशमा के मन में भी अमीर बनने का सपना जन्म लेने लगा. वह रातदिन सोचती रहती कि आखिर पैसा कैसे कमाया जाए.

एक दिन रेशमा जब बाथरूम से नहा कर बाहर निकली और उस की नजर अपने उठे हुए उभारों पर पड़ी, तो उसे अपनेआप पर हंसी आ गई. वह यह सोचने लगी कि अमीरजादों को फंसाने वाली उस की ये ऊंची छातियां आखिर कब काम आएंगी. यही तो वह चीज है, जिस के हमेशा से सब दीवाने हैं.

रेशमा के दिमाग में फौरन एक प्लान ने जन्म लिया. उस ने टाइट टीशर्ट पहनी और स्कूल गई. स्कूल छूटने के बाद उस ने कुछ अमीर लड़को के सामने ऐसी अंगड़ाई भरी कि वे उस की तरफ देखने को मजबूर हो गए.

उन अमीर लड़कों में रिजवान भी शामिल था, जो एक बिल्डर का बेटा था.

रेशमा थी भी कमाल की. अच्छी कदकाठी और खूबसूरत गदराए बदन की मलिका होने के साथसाथ सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ और ऊंची उठी हुई छातियां किसी को भी अपना दीवाना बनाने के लिए काफी थीं.

जब रिजवान से रहा न गया तो वह छूटते ही बोला, ‘‘क्या बात… आप तो आज कयामत ढा रही हो.’’

रेशमा ने रिजवान की इस बात का हंस कर जवाब दिया, ‘‘आप को कोई एतराज…’’

रिजवान बोला, ‘‘हमें क्या एतराज… हम तो आप के साथ एक कौफी पीने के तलबगार हैं. अगर आप की इजाजत हो तो चलें?’’

रेशमा ने कहा, ‘‘सोच लो… मेरे साथ कौफी पीने में कहीं आप की शान कम न हो जाए.’’

‘‘हमारी शान कम नहीं होगी, बल्कि बढ़ जाएगी,’’ रिजवान ने रेशमा की तारीफ करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, तो चलो फिर कहीं चलते हैं,’’ रेशमा ने कार में बैठते हुए कहा.

रिजवान रेशमा को एक महंगे कैफे में ले गया, जहां दोनों ने प्यारभरी बातें कीं और कौफी पी कर वापस आ गए. बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

अब वे दोनों मोबाइल पर एकदूसरे से खूब देर तक बातें करते, मिलने का वादा करते, शौपिंग करते और होटलों में खातेपीते.

रेशमा अपने हुस्न की अदाओं के बल पर रिजवान को लूट रही थी, उसे क्या मालूम था कि एक दिन वह उस के प्यार में खुद पागल हो जाएगी.

2 दिन बाद रेशमा का बर्थडे था. वह रिजवान से पूछ रही थी, ‘‘तुम मेरे बर्थडे पर क्या गिफ्ट देने वाले हो?’’

रिजवान बोला, ‘‘तुम्हें जो चाहिए मैं वह गिफ्ट दूंगा, लेकिन तुम्हें मेरी एक बात माननी पड़ेगी.’’

रेशमा बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारी हर बात मानने को तैयार हूं, बोलो तो सही.’’

‘‘मैं तुम्हारा बर्थडे तुम्हारे साथ अकेले किसी तनहा जगह पर मनाना चाहता हूं,’’ रिजवान ने मन की बात कही.

‘‘तो इस में इतना घबराने की क्या बात है. आप मु झे जहां ले चलोगे, मैं तैयार रहूंगी,’’ रेशमा ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

रेशमा के बर्थडे पर रिजवान ने एक आलीशान होटल में कमरा बुक किया और उसे अच्छी तरह सजवा दिया. इस के बाद रिजवान ने रेशमा को फोन किया और उसे बताए हुए पते पर आने को कहा.

कुछ ही देर में रेशमा वहां आ गई. रिजवान ने उसे अपनी गाड़ी में बैठाया और कुछ ही देर में वे दोनों उस होटल के कमरे में पहुंच गए, जो रिजवान ने पहले ही बुक किया हुआ था.

रेशमा जब उस कमरे में पहुंची तो वहां की सजावट देख कर वह दंग रह गई. रिजवान ने एक खूबसूरत और कीमती केक का इंतजाम पहले ही कर रखा था, जिसे देख कर रेशमा खुशी के मारे पागल हो गई.

तभी रेशमा बोली, ‘‘चलो, केक काटते हैं, मु झे घर भी जाना है.’’

‘‘केक काटने से पहले तुम्हें मेरी एक हसरत पूरी करनी पड़ेगी,’’ रिजवान ने कहा.

‘‘कैसी हसरत, मैं सम झी नहीं? और हां, मेरा गिफ्ट कहां है?’’ रेशमा ने पूछा.

रिजवान ने एक महंगा मोबाइल रेशमा को दिखाते हुए कहा, ‘‘यह है गिफ्ट, लेकिन केक काटने के बाद ही तुम्हें मिलेगा.’’

रेशमा बोली, ‘‘तो ठीक है, मैं जल्दी से केक काट देती हूं.’’

‘‘लेकिन केक काटने से पहले तुम्हें मेरी हसरत पूरी करनी पड़ेगी,’’ रिजवान ने दोबारा कहा.

‘‘अच्छा, बताओ कि तुम क्या चाहते हो?’’ रेशमा ने पूछा.

रिजवान ने एक गिफ्ट रेशमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पहले तुम इसे पहन कर दिखाओ.’’

रेशमा बोली, ‘‘अरे, इस में ऐसा क्या है, जो तुम इतने उतावले हो रहे हो?’’

रेशमा ने जैसे ही वह गिफ्ट खोला, तो उस में एक गुलाबी रंग की खूबसूरत नाइटी देख कर वह खुशी से झूम उठी और बोली, ‘‘इसे देते हुए तुम इतना घबरा क्यों रहे थे… मैं अभी इसे पहन कर आती हूं.’’

रिजवान बोला, ‘‘तुम्हें यह मेरे सामने ही पहननी पड़ेगी.’’

‘‘अरे बाबा नहीं, मु झे शर्म आती है. भला मैं अभी तुम्हारे सामने अपने कपड़े कैसे उतार सकती हूं,’’ रेशमा बोली.

रिजवान ने रूठते हुए कहा, ‘‘बस, यही प्यार है तुम्हारा… तुम मेरे सामने इसे नहीं पहन सकती…’’

रेशमा बोली, ‘‘ठीक है, नाराज मत होना. बस, तुम लाइट बंद कर दो.’’

रिजवान ने फौरन लाइट बंद कर दी.

लाइट बंद होते ही रेशमा ने अपने कपड़े उतारे. जैसे ही उस के बदन से कपड़े हटे, उस का गोरा
बदन उस अंधेरे में रोशनी की तरह चमक उठा.

रिजवान रेशमा के गोरे बदन की झलक देख कर रोमांटिक हो उठा. तभी रेशमा बोली, ‘‘लाइट जला दो, पर नाइट बल्ब.’’

लाल रंग की धीमी लाइट में भी रेशमा का गदराया बदन कयामत ढा रहा था.

उस की ऊंची उठी छातियां नाइटी से बाहर निकलने के लिए बेताब हो रही थीं.

तभी रेशमा बोली, ‘‘जल्दी से केक काटते हैं, वरना देर हो जाएगी.’’ रिजवान बोला, ‘‘ठीक है.’’

रेशमा ने केक काटा. रिजवान ने उसे बर्थडे विश किया और अपने हाथ से केक खिलाने लगा.

रेशमा ने जैसे ही रिजवान को अपने हाथ से केक खिलाया, उस ने उस की नाजुक उंगलियां प्यार से चूम लीं.

रेशमा शरमाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो.’’

रिजवान ने रेशमा को अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘मैं कितना खुशनसीब हूं, जो तुम्हारे इस गदराए बदन को छू पा रहा हूं.’’

रेशमा रिजवान की कैद से आजाद होने की झूठी कोशिश करते हुए बोली, ‘‘बस करो, मु झे छोड़ो.’’

पर रिजवान ने फौरन अपने होंठ रेशमा की गरदन पर रख दिए और चूमने लगा.

रेशमा कसमसाने लगी. तभी रिजवान उस की उठी हुई छातियों को बेतहाशा चूमने लगा.

कुछ ही देर में रेशमा पूरी तरह कामुक हो उठी और रिजवान को अपने ऊपर खींचने लगी.

रिजवान सम झ गया कि लोहा गरम है, बस अब चोट करने की जरूरत है. वह उसे बिस्तर पर ले गया और फिर दोनों की गरम सांसें और कामुक आवाजें कमरे में गूंजने लगीं. फिर वे निढाल हो कर बिस्तर पर ही पड़े रहे.

कुछ देर बाद वे दोनों उठे और अपनेअपने कपड़े पहन कर घर की ओर चल दिए.

रेशमा जैसे ही घर पहुंची, उस के अब्बा ने पूछा, ‘‘कहां थी इतनी रात तक?’’

रेशमा बोली, ‘‘अब्बा, 2 दिन बाद इम्तिहान हैं. उसी की तैयारी के लिए अपनी एक दोस्त के घर पढ़ाई कर
रही थी.’’

इधर रेशमा के अब्बा ने सब सच मान लिया, उधर रिजवान और रेशमा के बीच एक बार जिस्मानी रिश्ते बने तो फिर बनते ही चले गए. उन दोनों को जब भी मौका मिलता, तब वे अपनी जिस्मानी ख्वाहिश किसी होटल में जा कर पूरी कर लेते.

एक दिन रेशमा को पता चला कि उस की कोख में रिजवान का बच्चा पल रहा है. फिर क्या था, रेशमा ने रिजवान से शादी करने की जिद शुरू कर दी.

रिजवान एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था, भला वह रेशमा से शादी कैसे कर सकता था. वह तो बस उस के बदन के मजे लूटने के इरादे से उस पर पैसा खर्च कर रहा था और प्यार का नाटक कर के उसे अपने जाल में फंसाए रखना चाहता था.

वैसे तो रेशमा भी पहले अपने खूबसूरत जिस्म और ऊंची उठी छातियों से रिजवान से पैसा लूटना चाहती थी, पर जब वे दोनों मिलने लगे, तो रेशमा रिजवान से प्यार भी करने लगी.

कई महीनों तक रेशमा के जिस्म के मजे लूटने के बाद अब रिजवान का मन उस से ऊब गया था और उस ने उस से मिलनाजुलना भी कम कर दिया था. रेशमा के पेट से होने की खबर सुन कर वह हमेशा के लिए उस से छुटकारा पा लेना चाहता था.

इस के लिए रिजवान ने एक ऐसा प्लान बना डाला, जिस ने रेशमा की जिंदगी तबाह कर दी.

हुआ यों था कि एक रात रिजवान ने रेशमा से बहुत प्यारीप्यारी बातें कीं और उसे कुर्ला में कोहिनूर बिल्डिंग के सामने बन रही नई बिल्डिंग में मिलने के लिए बुलाया.

उस नई बनने वाली बिल्डिंग की छत पर रिजवान ने रेशमा को देखते ही अपने गले से लगाया और उसके होंठों को चूमते हुए एकएक कर के उस के कपड़े उतारने लगा.

जब रेशमा बिना कपड़ों के हो गई, तो वहां पहले से ही मौजूद रिजवान के 2 दोस्त उस्मान और फरमान भी अचानक रेशमा के सामने आ गए.

रेशमा उन्हें देखते हुए अपने बदन को छिपाने की कोशिश करने लगी.

लेकिन तभी फरमान बोला, ‘‘क्या बात भाभी, रिजवान को ही मजे देती रहोगी या फिर कुछ मजा अपने इन देवरों के लिए भी बचा कर रखोगी.’’

रेशमा घबराते हुए बोली, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो… तुम्हे शर्म नहीं आती…’’

‘‘भाभी, आप को कौन सी शर्म आती है… देर रात इस सुनसान बिल्डिंग की छत पर आप बेशर्मी का ही काम कर रही हो न. कुछ मजे हमें भी लूटने दो,’’ कहते हुए उन दोनों ने रेशमा को अपनी बांहों में भर लिया.

रिजवान चुपचाप खड़ा यह तमाशा देख रहा था, तो रेशमा उस से बोली, ‘‘मु झे अपने इन बेशर्म दोस्तों
से बचाओ.’’

लेकिन रिजवान ने कहा, ‘‘रेशमा डार्लिंग, कुछ मजे इन्हें भी लेने दो. ये बेचारे भी तुम्हारे इस मखमली जिस्म के दीवाने हैं.’’

रेशमा चिल्लाई, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती… मैं तुम्हारी होने वाली बीवी हूं और मेरे पेट में तुम्हारा होने वाला बच्चा पल रहा है.’’

रिजवान ने कहा, ‘‘यह सब तुम्हारी उसी धमकी का तो नतीजा है कि आज मेरे दोस्त तुम्हारे इस खूबसूरत बदन को नोंचने वाले हैं.’’

कुछ ही देर में उस्मान और फरमान रेशमा पर टूट पड़े. वह चीखतीचिल्लाती रही, पर उस सुनसान बिल्डिंग में उस की चीखें सुनने वाला कोई मौजूद न था.

उन दोनों ने रेशमा के गदराए बदन को भूखे कुत्ते की तरह नोंचना शुरू कर दिया और उस का रेप करने के बाद मार डाला. फिर उस के मोबाइल से सिमकार्ड निकाल कर अपनेअपने रास्ते चले गए.

उधर रेशमा जब देर रात बाद भी घर न पहुंची, तो उस के अब्बा को उस की चिंता सताने लगी. सुबह होते ही उन्होंने गोवंडी पुलिस स्टेशन में रेशमा की गुमशुदगी की जानकारी दी.

पुलिस ने कई जगह नाकाबंदी कर के रेशमा की तलाश जारी रखी, पर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

रेशमा के अब्बा का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

कुछ दिन बाद पुलिस को खबर लगी कि कोहिनूर सिटी में नई बन रही एक बिल्डिंग में एक लड़की की लाश मिली है. लाश की हालत इस तरह खराब हो चुकी थी कि किसी के लिए उसे पहचानना आसान नहीं था.

पुलिस ने लाश को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम की लिए भेज दिया और कातिल का सुराग ढूंढ़ने में वहां का अच्छी तरह मुआयना करने लगी. काफी मशक्कत के बाद वहां एक टूटा हुआ सिमकार्ड मिल गया.

उस सिमकार्ड से पुलिस को यह पता चल गया कि यह सिमकार्ड रेशमा नाम की एक लड़की का है, जो गोवंडी में रहती है. यह भी पता चल गया कि 8 दिन पहले रेशमा नाम की एक लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई गई थी.

पुलिस को अब यह सम झते देर न लगी कि यह लाश रेशमा की है. पुलिस ने अपनी जांच तेज कर दी और सिमकार्ड से पता चल गया कि आखिरी फोन रिजवान को किया गया था.

पुलिस सम झ गई कि अब इस जांच को आगे बढ़ाने में रिजवान ही काम आएगा.

तब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई, जिस से यह पता चल गया कि हत्या से पहले रेशमा के साथ कई लोगों ने रेप किया था और बाद में गला घोंट कर उस की हत्या कर दी गई.

पुलिस को हैरानी तब हुई जब उसे यह पता चला कि रेशमा के पेट में 3 महीना का बच्चा भी पल रहा था.

यह बात पुलिस को हजम नहीं हो रही थी कि रेशमा के साथ रेप कर के उसे मार दिया गया तो वह 3 महीने के पेट से कैसे हो गई, जबकि अभी तक उस की शादी भी नहीं हुई थी.

अब पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाते हुए रिजवान के फोन की डिटेल निकाली और जब रेशमा की हत्या हुई उस समय की उस की लोकेशन का पता किया. पुलिस को रिजवान की लोकेशन उसी बिल्डिंग की मिली, जहां रेशमा की हत्या की गई थी. यह भी पता चल गया कि रेशमा अकसर रिजवान से फोन पर बात करती रहती थी.

पुलिस को अब यह सम झते देर न लगी कि रेशमा के पेट में रिजवान का ही बच्चा था और उस की हत्या को भी इसी ने अंजाम दिया है.

अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वे और कौन लोग थे, जिन्होंने इस हत्या को रिजवान के साथ मिल
कर अंजाम दिया और उस के साथ रेप किया.

पुलिस ने रिजवान को अपनी हिरासत में ले लिया और उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी, तो पहले यह पता चल गया कि इस हत्या में उस्मान और फरमान उस के भागीदार थे, जिन्होंने रेशमा की हत्या करने से पहले उस के साथ रेप किया था.

पुलिस की एक टीम ने कुर्ला के भारतीय नगर इलाके से उस्मान को गिरफ्तार कर लिया, पर फरमान अभी तक उन की गिरफ्त में नहीं आ पाया.

पुलिस ने जब रिजवान से हत्या की सख्ती से पूछताछ की तो रिजवान ने जो कहानी उन्हें सुनाई, उस ने सब के रोंगटे खड़े कर दिए.

रिजवान ने पुलिस को बताया कि रेशमा ने अपने हुस्न की वजह से जल्द अमीर बनने का जो सपना देख कर उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया था, वह खुद उसी जाल में फंस गई.

रिजवान ने अपने पैसे के बलबूते पर रेशमा को महंगेमहंगे गिफ्ट दे कर उस से नाजायज रिश्ता बना लिया और उस के जिस्म के मजे लेने लगा. धीरेधीरे रेशमा उस से हकीकत में प्यार कर बैठी और अपने शरीर को रिजवान के हवाले करने लगी.

इसी बीच वह पेट से हो गई और शादी की धमकी देने लगी.

रिजवान केवल रेशमा के जिस्म को भोगना चाहता था, पर जब उस ने शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया, तो मजबूर हो कर रिजवान को अपने दोस्तों की साथ मिल कर उस की हत्या की साजिश रचनी पड़ी.

इस तरह यह एक ऐसा अनोखा कत्ल हुआ, जिस ने रेशमा की जान ले ली.

फरमान अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर था.

रेशमा के अब्बा का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें क्या मालूम था कि उन की एकलौती बेटी की इस तरह हत्या की जाएगी.

रिजवान और उस्मान पर हत्या और रेप जैसे अपराध का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया और फरमान की तलाश जारी थी. Crime Story In Hindi

Family Story In Hindi: बदला जमाना

Family Story In Hindi: गांव में एक पेड़ के नीचे बैठे हरिया, गोपाल, सोमनाथ और बदरी ताश खेल रहे थे. उन के बीच दारू की खाली बोतल लुढ़की पड़ी थी.

बदरी पत्ता फेंकते हुए बोला, ‘‘हरिया, इस बार तो मैं बाजी जीतूंगा.’’

इस से पहले कि हरिया कुछ बोलता, गोपाल ने कहा, ‘‘उस्ताद, वह देख तेरी मंगेतर, सामने सिर पर पानी का घड़ा उठाए…’’

नशे की हालत में सब की नजरें उधर उठीं. रमिया सिर पर पानी का घड़ा उठाए बढ़ी चली आ रही थी.

हरिया का जवान जिस्म एक मीठी आग से जलने लगा था. अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराते हुए वह रमिया के सांचे में ढले जिस्म को इस तरह देख रहा था, जैसे कोई बच्चा मिठाई को देखता है.

हरिया ने अचानक एक पत्थर का टुकड़ा उठाया. फिर… ‘धड़ाक’ की आवाज के साथ रमिया के सिर पर रखा घड़ा फूट गया और उस के कपड़े गीले हो गए.

गुस्से से बेकाबू होते हुए रमिया हरिया और उस के दोस्तों के पास पहुंची, जो उस की हालत पर ठहाके लगा रहे थे.

अचानक रमिया का दायां हाथ घूमा और ‘चटाक’ की आवाज के साथ हरिया का बायां गाल झनझना गया.

‘‘तेरी यह हिम्मत. तू… तू… मुझ पर हाथ उठाती है, अपने होने वाले पति पर… तू…’’ कहते हुए हरिया ने रमिया की बांह मरोड़ दी.

रमिया दर्द के मारे कराह उठी. आंखों में आंसू छलछला आए. अपनी बांह छुड़ाने की कोशिश में वह नाकाम रही. उस की मजबूरी पर हंसते हुए हरिया बोला, ‘‘हाथ थामा है तेरा… इतनी आसानी से यह नहीं छूटने वाला.’’

‘‘मैं तुझे अपना पति बनाऊंगी? कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है तू ने. तुझ जैसे शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मैं मरना पसंद करूंगी,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘शादी तो तेरी मुझ से ही होगी. लड़कपन में ही तेरी शादी मुझ से करा दी गई थी. बस, अब तो बरात ले कर आने की बात है. तू मेरी होगी. तेरी यह जवानी मेरी बांहों में…’’ नशे में बड़बड़ा उठा हरिया.

‘‘तुझ से शादी कर के मैं अपनी जिंदगी खराब नहीं करूंगी. मेरी जूती भी तुझ से शादी नहीं करेगी.’’

बेइज्जती की आग में हरिया झुलस उठा था. अपने साथियों के बीच उस की मंगेतर कोरा जवाब दे, इस बात ने उस के गुस्से को और भड़का दिया था, ‘‘देख लेना रमिया, तेरी शादी तो मुझ से ही होगी. आज ही बापू को तेरे घर भेजता हूं. देखता हूं, कब तक बचेगी मुझ से. तेरे सारे कसबल न निकाले तो मेरा नाम हरिया नहीं… समझी?’’

‘‘हुं…’’ रमिया पैर पटकते हुए वहां से चली गई.

रमिया बनवारी लाल की एकलौती बेटी थी. पिता ने रमिया का रिश्ता बचपन में ही अपने दोस्त किशन लाल के बेटे हरिया से कर दिया था. बनवारी ने रमिया को हायर सैकेंडरी पास करवा दी थी.

उधर हरिया पढ़लिख न सका था. बुरे दोस्तों की सोहबत और बाप के लाड़दुलार ने उसे जिद्दी, आवारा व शराबी, जुआरी बना दिया था. गांव की बहूबेटियों को छेड़ना उस के लिए मामूली सी बात थी, गांव वाले कभीकभार किशन लाल को टोकते, शिकायतें करते तो वह कहता, ‘‘जवानी का जोश है न बस, शादी हो जाएगी तो वह खुद ही सुधर जाएगा.’’

पर क्या कुत्ते की दुम कभी सीधी हुई है? सभी सोचते, हरिया नहीं सुधर सकता. पर कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. सभी हरिया और उस की चांडाल चौकड़ी से डरते थे. वे सोचते कि इस से जो ब्याह करेगी, उस की तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.

इस बात को बनवारी भी जानता था, पर अपने पैरों पर वह खुद ही कुल्हाड़ी मार चुका था. वह रमिया का बाल विवाह कर चुका था, वह भी अपने दोस्त के बेटे से. चाह कर भी वह इस रिश्ते को तोड़ नहीं सकता था.

शाम का वक्त था. किशन लाल बनवारी के पास आया. बनवारी चेहरे पर खुशामदी मुसकान लिए बोला, ‘‘कैसे आना हुआ किशन लाल?’’

‘‘बताता हूं… बताता हूं… पहले लस्सी तो पिला.’’

बनवारी समझ गया कि आज कुछ खास बात है. उस ने रमिया को लस्सी और मिठाई लाने को कहा.

‘‘यार, तुम्हारे लिए खुशखबरी है. अब तुम्हारी सारी चिंता दूर हो जाएगी,’’ पहेली सी बुझाते हुए किशन लाल के चेहरे पर एक खास चमक थी.

‘‘कैसी चिंता? मैं समझा नहीं… जरा खुल कर बताओ कि क्या बात है?’’ बनवारी जल्दीजल्दी बोला, जबकि वह समझ गया था कि किशन लाल क्या कहना चाहता है.

‘‘अरे, बुद्धू है यार तू भी… हरिया शादी के लिए मान गया है. मैं तारीख ले कर आया हूं. बेटी की जिम्मेदारियों से अब तू बेफिक्र हो जाएगा.’’

बनवारी का चेहरा बुझ गया. हरिया की हरकतों से वह अनजान नहीं था. क्या कहे, समझ ही नहीं पा रहा था. उस के बुझे चेहरे को देख कर किशन लाल बोला, ‘‘क्या बात है, तुम्हें खुशी नहीं हुई?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ बनवारी लाल धीरे से बोला, ‘‘सोच रहा था कि रमिया इस रिश्ते के लिए…’’

किशन लाल के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘रमिया की आड़ में कहीं तुम अपनी राय तो नहीं बता रहे?’’

बनवारी लाल किशन लाल की नाराजगी को भांप गया था. वह संभलते हुए बोला, ‘‘नहींनहीं, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. मैं…’’ इस से आगे वह कुछ बोलता कि रमिया एक हाथ में लस्सी का बड़ा गिलास और एक हाथ में मिठाई की प्लेट ले कर आ गई.

‘‘नमस्ते चाचाजी,’’ रमिया ने कहा.

‘‘जीती रहो बेटी, कैसी हो?’’ आवाज को मुलायम रखते हुए किशन लाल बोला.

‘‘ठीक हूं चाचाजी.’’

‘‘लो बनवारी, बिटिया भी यहीं है… अब इसी से पूछ लेते हैं कि…?’’

बनवारी लाल अचानक घबरा गया और बोला, ‘‘क्या बेटी से यह सब पूछना अच्छा लगेगा?’’

‘‘क्यों, तुम्हीं तो कह रहे थे कि पता नहीं रमिया को यह रिश्ता पसंद है या नहीं?’’ किशन लाल ने चालाकी से बनवारी लाल की बात कह दी थी.

रमिया पलभर में ही सबकुछ समझ गई. वह अपने पिता के झुके चेहरे को देखती रह गई. फिर सोचते हुए बोली, ‘‘चाचाजी, मैं जानती हूं कि मुझे बड़ों के बीच नहीं बोलना चाहिए… पर जहां मेरी जिंदगी का फैसला होने जा रहा हो, तो मेरी राय को भी जानना चाहिए.’’

किशन लाल बोला, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘चाचाजी, शादी गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं हैं और बाल विवाह तो एकदम बेवकूफी है, ढकोसला है. आप मेरी शादी अपने बेटे से करना चाहते हैं, बाल विवाह की आड़ ले कर. मैं उस शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मर जाना या कुंआरी रहना ज्यादा पसंद करूंगी.’’

‘‘अरे, तू चार जमात क्या पढ़ गई, खुद को अफलातून समझने लगी है. मानता हूं कि मेरा बेटा शराबी है, जुआरी है, पर बेटी, शादी के बाद वह सुधर भी तो सकता है.’’

‘‘और अगर वह न सुधरा तो?’’ रमिया उलट कर बोली.

‘‘तो… तो…?’’ किशन लाल को कुछ न सूझा. वह बगलें झांकने लगा.

‘‘तो आप के बेटे के साथसाथ मेरी जिंदगी भी खराब हो जाएगी,’’ रमिया बोली.

‘‘पर तुम्हारा बाल विवाह हुआ है, तुम अपने बाप के घर मेरे बेटे की अमानत हो,’’ किशन लाल ने आखिरी तीर चलाया.

‘‘बाल विवाह… हुं… एक घिसापिटा रिवाज. मैं ऐसे रिवाजों को नहीं मानती,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘देख बनवारी, अपनी बेटी को समझा, वरना बहुत बुरा होगा,’’ किशन लाल ने नीचता पर उतरते हुए धमकी दे डाली.

‘‘किशन लाल, हम वादे को निभाने के लिए पुराने रीतिरिवाजों की खातिर रमिया की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करेंगे,’’ बनवारी लाल बोला.

‘‘बनवारी,’’ किशन लाल चीख उठा, ‘‘देख लूंगा तुम दोनों को. अगर बिरादरी से मैं ने तुम्हारा हुक्कापानी बंद न करवा दिया, तो मेरा नाम किशन लाल नहीं. देख लेना, कल पंचायत बुलाऊंगा मैं. तुम ने मेरी दोस्ती देखी है, अब दुश्मनी देखना,’’ किसी भी तरह अपनी दाल न गलते देख किशन लाल नीचता पर उतर आया था.

फिर वही हुआ, जिस का बनवारी लाल को डर था. किशन लाल ने पंचायत बुलाई.

पंचायत ने अपना फैसला किशन लाल के हक में देते हुए कहा, ‘‘बनवारी लाल को अपनी बेटी रमिया की शादी हरिया से करनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं करता तो उस का गांव में हुक्कापानी बंद. उसे अपना फैसला 24 घंटों में पंचायत को सुनाना होगा.’’

पंचायत उठ गई थी. पर बनवारी लाल का दिल बैठ गया. ठगा सा सोचता रह गया कि क्या करे और क्या न करे?

रमिया जानती थी, पंचायत का फैसला. लेकिन अभी पंचायत को उस के फैसले का पता नहीं था. पूरा गांव नींद की आगोश में डूबा था. बाहर घना अंधेरा फैला था. ऐसे में रमिया एक छोटी सी अटैची उठाए गांव से हमेशाहमेशा के लिए दूर जा रही थी. वह अपने पिता को घुटघुट कर मरते नहीं देख सकती थी. वह यह भी जानती थी कि उस के पिता कभी यह गांव नहीं?छोड़ेंगे, इसलिए उस ने गांव छोड़ कर खुद शहर जाने का फैसला कर लिया था.

जैसतैसे रमिया स्टेशन पहुंच गई. पर कहां जाए? कुछ सूझा नहीं. जैसे ही गाड़ी आई, वह सामने वाले डब्बे में चढ़ गई. वह पहले दर्जे का डब्बा था.

एक केबिन में घुस कर रमिया एक खाली सीट पर बैठ गई. अटैची उस ने एक तरफ रखी. खुली खिड़की से बाहर फैले अंधेरे को देखने लगी. गाड़ी चल पड़ी थी. गांव पीछे छूटता जा रहा था और वह अनजानी मंजिल की ओर चल पड़ी थी. पिता के बारे में सोच कर उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.

रमिया को याद आया कि जब मां मरी थी तो पिताजी बहुत रोए थे. नन्ही रमिया को सीने से लगाए वह अकसर मां की बातें करते थे. बेटी की खातिर ही उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. आज उन्हीं पिता को वह गांव में छोड़ आई थी, अकेला और बेसहारा.

सरला देवी उसी डब्बे में सफर कर रहीं थीं. जब से रमिया गाड़ी में चढ़ी थी, वह एकटक उस की हरकतें देख रही थीं. उन की आंखों से यह छिपा नहीं था कि लड़की घर से भागी है. काफी देर सोचने के बाद उन्होंने रमिया से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटी, तुम रो क्यों रही हो?’’

भीगी पलकें ऊपर उठीं थीं. रमिया ने सरला देवी को पहली बार देखा. चेहरे पर तेज व चमक लिए एक अधेड़ औरत उस से अपनेपन से पूछ रही थी, ‘‘घर से भागी हो क्या?’’

रमिया चुप रही. सिर झुकाए, कुछ सोचती रही.

‘‘देखो बेटी, मुझे गलत मत समझना. मेरा नाम सरला है. ‘नारी मुक्ति संगठन,’ दिल्ली की मुखिया हूं. अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो मुझे बताओ. कहीं तुम हीरोइन बनने के चक्कर में…?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो… मैं…’’ और फिर अंदर की दुखभरी कहानी आंसुओं के संग बहती चली गई. अपनी हर बात उस ने बताई.

‘‘तुम ने ठीक किया बेटी, औरत को अपनी मरजी से फैसले लेने का हक मिलना ही चाहिए. मैं तुम्हारी मदद करूंगी. क्या तुम बालिग हो?’’ सरला देवी ने पूछा.

‘‘जी हां, मैं 19वें साल में हूं.’’

‘‘देखो बेटी, तुम्हारी अभी कोई मंजिल नहीं है. तुम हायर सैकेंडरी पास हो… तुम मेरे पास रह कर कंप्यूटर वगैरह सीख सकती हो. नर्स का कोर्स भी कर सकती हो… आगे अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकती हो.’’

सरला देवी के शब्दों ने रमिया को राहत पहुंचाई. उसे लगा कि घर से भाग कर उस ने कोई गलती नहीं की.
सरला देवी की छत्रछाया में 5 साल पंख लगा कर कब उड़ गए, पता ही नहीं चला. इस दौरान रमिया, ‘रमा’ बन चुकी थी. उस ने बीए पास कर लिया था और नर्स का कोर्स भी कर लिया था.

इस दौरान वह अपने पिता को खो चुकी थी. बनवारी लाल ने खुदकुशी कर ली थी. यह सुन कर वह बेहद दुखी हुई थी. पर समय ने उस के इन घावों पर मरहम लगा दिया था.

अब रमा सरकारी अस्पताल में नर्स का काम करती थी. उस के साथ डाक्टर थे, प्रभाकर, बेहद सुलझे हुए, सुंदर और लायक आदमी. वह रमा को चाहने लगे थे. पर अपने प्यार की बात वह होंठों तक न ला पाए थे. इस बात को रमा भी जानती थी.

एक दिन प्रभाकर ने अपनी दिल की बात रमा को कह देने का फैसला कर लिया था. वह बोले, ‘‘रमा, शाम को क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘ठीक है, आज घूमने चलेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रमा ने हौले से कहा.

शाम को डाक्टर प्रभाकर अपनी कार में रमा के साथ घूमने निकल पड़े. एक बाग में वे काफी देर तक चहलकदमी करते रहे कि अचानक प्रभाकर बोले, ‘‘रमा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रमा एकदम चौंक उठी, ‘‘डाक्टर साहब, आप… आप क्या कह रहे हैं? कहां आप और कहां मैं… एक मामूली सी नर्स.’’

‘‘मैं किसी नर्स से नहीं, तुम से शादी की बात कर रहा हूं,’’ मुसकरा कर प्रभाकर बोले.

‘‘लेकिन… आप मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानते. मैं कौन हूं… किस जात की हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानना चाहता. तुम एक सुंदर और सुशील लड़की हो. मेरे लिए इतना ही बहुत है. हां, यह बात और है कि शायद तुम मुझे पसंद न करती हो?’’

‘‘नहीं डाक्टर साहब, आप से जो भी लड़की शादी करेगी, उस की जिंदगी तो खुशहाल हो जाएगी.’’

‘‘तो वह लड़की तुम क्यों नहीं बन जाती?’’ प्रभाकर बोले.

‘‘एक शर्त पर… आप को मेरे बारे में जानना होगा?’’ रमा ने कहा.

‘‘ठीक है आओ, होटल में चलते हैं. तुम जो बताना चाहो, वहां बता देना. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ प्रभाकर हंस कर बोले, मानो उन्हें मंजिल मिल गई हो.

होटल में रमा ने अपनी जिंदगी की किताब प्रभाकर के सामने खोल कर रख दी.

प्रभाकर चुपचाप सुनते रहे, फिर वे बोले, ‘‘बस, तुम ने बहुत अच्छा किया. लड़कपन में की गई शादी तो एक बेहूदा रिवाज है. तुम ने जो कदम उठाया, मैं उस की कद्र करता हूं.

‘‘आज जमाना बदल चुका है. पता नहीं लोग अब भी क्यों उन्हीं घिसेपिटे, मरे, सड़े सांपों को रीतिरिवाजों का नाम दे कर गले से लिपटाए हैं… तुम ने बहुत अच्छा किया रमा. अपने लिए खुद रास्ता तलाश किया.

अब तो दुनिया की कोई ताकत मुझे तुम से शादी करने से नहीं रोक सकती, क्योंकि अब तो तुम ही मेरी दुनिया हो, मेरी जिंदगी हो.’’

जब वे होटल से बाहर निकल रहे थे, तो दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथों में थे. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: मिजाज

Family Story In Hindi: तेजतर्रार माधवी बचपन से ही बड़ी उत्साही थी. पढ़ाई के अलावा वह दूसरी तमाम गतिविधियों में भी अव्वल रहती थी. उस की बड़ी बहन मनीषा थी. मनीषा उस से 5 साल बड़ी थी, जो पढ़ाई के साथसाथ बरताव में भी बेहद संजीदा थी.

घर का छोटा बच्चा अकसर चंचल स्वभाव का होता है और लापरवाह भी, सो माधवी भी वैसी ही थी. खूब शरारती और झगड़ालू, पर अपने तेज दिमाग और मनीषा की छोटी बहन होने के चलते वह सजा पाने से बची रहती थी. इस वजह से उस के भीतर एक अलग ही तरह का अहंकार जन्म ले कर फलताफूलता जा रहा था.

यह सब माधवी के शुभचिंतक देख तो रहे थे, पर उस को थाम पाने में नाकाम थे. कालेज में दाखिला लेते समय तक वह एक बिंदास और बेखौफ लड़की बन चुकी थी.

माधवी की बड़ी बहन मनीषा मैडिकल की पढ़ाई करने दूसरे शहर चली गई थी और माधवी प्रशासनिक सेवा में जाने की मंशा से एक नामी कालेज की आर्ट्स फैकल्टी में दाखिला ले चुकी थी.

पहले साल से ही कालेज के खुले माहौल ने माधवी को कालेज की राजनीति की तरफ खींच लिया था. कालेज के गुंडा टाइप छात्र भी उस के खतरनाक बरताव का सामना करने से डरते थे.

दूसरे साल में ही माधवी अपने कालेज छात्र संघ की अध्यक्ष बन गई. उस को अपने इस काम में इतना मजा आने लगा कि वह अपने दूसरे मकसद को तो बिलकुल भुला ही बैठी. अहंकार उस के दिमाग में इस कदर जम कर बैठ गया कि जो उसे सही सलाह देने की कोशिश करता, वह उस के गुस्से का सामना करता.

ग्रेजुएशन की डिगरी हाथ में आने तक माधवी का पढ़ाई से पूरी तरह मोह भंग हो चुका था. पर पूरे कालेज में वह एक जानापहचाना नाम बन चुकी थी. उस से डरने वाले लोग काफी थे, पर चाहने वाले भी इतने तो थे ही जो उस के अहंकार को सींच कर उस का पोषण बराबर करने में कमी न रखते.

ऐसे में माधवी के ब्याह के लिए प्रस्ताव घर पर आने लगे और एक बड़े नेता के बेटे मोहन के साथ बड़ी जद्दोजेहद के बाद उस के मातापिता ने उसे शादी करने के लिए राजी कर लिया था.

माधवी की बड़ी बहन मनीषा पिछले साल ही ब्याह की डोर में बंध चुकी थी और उस के समझाने पर ही माधवी ने भी शादी के बंधन में बंधने की बात मान ली.

माधवी समेत घर वालों ने यह बात स्वीकार कर ली थी कि प्रशासनिक सेवा में चयन होने का रास्ता अब बहुत दूर जा चुका है. शादी होने के बाद मायके से 500 किलोमीटर दूर ससुराल में माहौल पूरी तरह अलग था.

यह एक संयुक्त परिवार था, जहां माधवी से उम्र और रिश्ते में बड़े लोग काफी थे. मोहन नाम की वकालत करता था, पर कारोबार व राजनीति में रसूख रखने वाले परिवार से संबंधित होने से सभी लोग अमीर थे.

गांठ के पूरे थे, मगर आदत से वही पुरातनपंथी.

इस परिवार को रूढि़वाद ने अभी तक अपने शिकंजे से छुटकारा नहीं दिया था खासकर माधवी की सास की बहू से उम्मीदें उस की ज्यादातर इच्छाओं के उलट थीं.

थोड़े महीनों में ही परिवारिक खटपट ने कलह का रूप लेना शुरू कर दिया. बोलने में तेजी और खुले विचारों वाली माधवी को एक खराब और बेहया बहू का खिताब दिलवा दिया.

एक साल जैसेतैसे कटा, पर उस के बाद अलग घर में रहना मजबूरी हो गई. तब तक माधवी पेट से भी हो चुकी थी. मोहन उस का ध्यान तो रखता था, पर उस के दूसरी औरतों से भी नाजायज रिश्ते थे.

तेज नजर रखने वाली माधवी से यह बात कब तक छिपती. अपने हक से समझौता करना उस ने कभी सीखा ही नहीं था. लिहाजा, मोहन से ?ागड़े विकराल रूप लेने लगे.

जैसेतैसे 2 साल बीत गए और माधवी मां की जिम्मेदारी निभाती कुछ बिजी हो गई और मोहन घर के बजाय बाहर ज्यादा वक्त बिताने लगा.

मोहन का एक कुंआरा दोस्त सागर अकसर घर आया करता था, जिस से माधवी भी बेझिझक काम करवा लेती थी. भरोसे का होने से मोहन ने भी कभी रोकटोक नहीं की, पर सास जो पहले से ही उस की बदजबानी से गुस्सा थी, उस ने इस बात पर तूफान मचाना शुरू कर दिया.

माधवी ने भी जम कर खिलाफत की और बिना बात का लांछन अपने ऊपर लगाने से सास को खूब खरीखोटी सुना दी.

सास के अहम को इतनी ठेस पहुंची कि उस ने माधवी को उस के ही घर से जबरन बेदखल करवा दिया. बीचबचाव में मोहन की कोशिश धरी रह गई.

9 महीने का बच्चा गोद में और एक महीने का गर्भ पेट लिए गुस्साई माधवी मायके जाने के लिए बसस्टैंड आ गई, पर वह बस में चढ़ने के बजाय मोहन के उसी दोस्त सागर के घर चली गई.

सागर अकेला ही रहता था. उस के धर्मसंकट में आखिर एक आसरे की इच्छा रखने वाली औरत की पुकार की जीत हुई. उस ने माधवी को शरण दी.

माधवी को भरोसा था कि आज नहीं तो कल मोहन उसे समझ जाएगा और लेने आएगा, पर हफ्ता गुजर गया और मोहन को खबर भिजवाने के बावजूद वह माधवी से मिलने तक नहीं आया.

सागर ने भी मोहन को सम?ाने की पूरी कोशिश की, पर उलटा उस को भी लांछन के तीरों से बुरी तरह घायल होना पड़ा.

माधवी के मातापिता को भी पता चलते ही वे दौड़े आए. बेटी, दामाद और समधन से बातचीत कर समझाने की भरपूर कोशिश की, पर टूटी डोर को जोड़ने में कामयाबी न मिल सकी.

गुस्से ने अब बदले का रूप ले लिया था. माधवी ने सागर के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. पहले तो वह कुछ अटका, मगर फिर हालात और माहौल को देख कर उस ने स्वीकार कर लिया.

कुछ महीनों पहले ही मोहन से तलाक और सागर से माधवी की कोर्टमैरिज हो गई. बेटे की कस्टडी भी पहले पति को मिल गई. जिंदगी में पहली बार माधवी अपनेआप को लाचार महसूस कर रही थी. एक बेटे को खोने का गम और दूसरे बच्चे का कुछ महीने में इस दुनिया में आने का संघर्ष उस के मन को तोड़ रहे थे, पर नए पति ने उस को बेहतर ढंग से समझाते हुए पूरा हौसला दिया और उस ने एक और बेटे को जन्म दिया.

राजसी ठाटबाट अब नहीं थे. एक स्कूल में टीचर पति अपने सीमित साधनों से माधवी की पूरी देखरेख कर रहा था. माधवी भी अब नौकरी तलाशने लगी और एक प्राइवेट स्कूल में उस ने पढ़ाना शुरू कर दिया. साथ ही, उस ने अपने आसपास के लोगों से मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया.

आसपास ज्यादातर लोग गरीब थे. माधवी सब की मदद करने लगी. उस का तेज दिमाग लोगों की समस्याओं को सुलझाता और बेबाक बोली अपना असर छोड़ती.

दरअसल, वह सच का ही पक्ष लेती. समाज भी सच की फुसफुसाहट को जान और पहचान तो लेता ही है. वह एक मुहावरा बनती गई. कोई ‘शेरनी’ कहता था, कोई ‘झांसी की रानी’.

कुछ सालों में ही माधवी पूरे महल्ले में मशहूर हो गई. अपने स्कूल की भी वह अहम किरदार बन गई. उसे स्कूल का वाइस प्रिंसिपल बना दिया गया था.

अब नगरनिगम के चुनाव होने वाले थे और माधवी के महल्ले के कई लोग उसे अपने वार्ड में निर्दलीय पार्षद खड़ा होने के लिए कह रहे थे.

माधवी ने राजनीति में कदम रखने का फैसला कर लिया. लोगों से खूब समर्थन मिला और वह जीत गई.
अब माधवी अपने बच्चे के साथ अपने क्षेत्र के लोगों का भी ध्यान रखने लगी. अगले चुनाव में एक राष्ट्रीय पार्टी से उसे मेयर का टिकट औफर हुआ, जिसे उस ने स्वीकार कर लिया.

विरोधी पार्टी ने भी माधवी के पहले पति मोहन को मेयर का टिकट दिया था. चुनाव प्रचार में एक बार फिर उस पर लांछन लगा और बदनाम कर हराने के हथकंडे अपनाए गए. पर वह अपने किए गए कामों से लोगों के दिलों में जगह बना चुकी थी. उस की टीम ने दिल लगा कर पूरे जोश से प्रचार किया और अब वह शहर की मेयर थी.

शायद समय ने माधवी की जीवनधारा को इसी तरह बहाने का तय किया था. Family Story In Hindi

News Story In Hindi: जहाज बना आग का गोला

News Story In Hindi: 20 जून, 2025 की शाम. विजय और अनामिका आज 2 नाइट के लिए द्वारका के रैडिसन ब्लू होटल में रुके हुए थे. अनामिका के जन्मदिन पर तो विजय के साथ खतरनाक प्रैंक खेला गया था, जिस में अनामिका के दोस्तों ने उस की धुलाई कर दी थी. तब भी विजय अनामिका के साथ होटल में रात बिताना चाहता था, पर ऐसा हो नहीं पाया था.

फिलहाल तो विजय और अनामिका अपने रूम में थे. अनामिका अभीअभी नहा कर बाहर आई थी. गीले खुले बाल उस की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे. सफेद रंग की शौर्ट ढीली टीशर्ट के अंदर उस ने कुछ नहीं पहना था. नीचे हलके गुलाबी रंग का पाजामा था.

विजय बालकनी में खड़ा था.

उसे बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई, तो वह कमरे में आ गया. अनामिका को इस सैक्सी रूप में देख कर उस का मन मचल गया.

अनामिका समझ गई कि अब विजय के दिल में खुराफात ने जन्म ले लिया है, तो वह वहीं से बोली, ‘‘कोई भी फालतू की हरकत मत करना. मैं दोबारा नहाने के मूड में नहीं हूं. मुझ से दूर ही रहना.’’

‘‘पर यह तो सरासर चीटिंग है. तुम अकेलेअकेले नहा ली और अब मुझे करीब आने से मना कर रही हो. अब कहीं कली खिल रही हो तो भंवरा तो उस का रस चूसने के लिए आएगा ही न,’’ विजय ने इतना कहा और अनामिका को अपनी बांहों में जकड़ लिया.

अनामिका कुछ देर के लिए छटपटाई, पर विजय की मजबूत गिरफ्त से छूट न सकी.

विजय ने अनामिका को अपनी गोद में उठा लिया और बिस्तर पर पटक दिया. अनामिका समझ गई कि अब विजय नहीं मानेगा, तो उस ने भी ज्यादा नानुकर नहीं की.

थोड़ी देर में ही वे दोनों बिस्तर में थे और एकदूसरे के जिस्म से खेल रहे थे. रात के 9 बजे तक उन्होंने एकदूसरे का 2 बार बिस्तर पर साथ दिया और निढाल हो कर पड़ गए.

विजय की आंखों में शरारत थी, तो अनामिका बारबार उसे घड़ी दिखा रही थी कि डिनर का टाइम होने वाला है.

विजय ने कहा, ‘‘हम दोनों शानदार डिनर करेंगे, पर उस से पहले एकसाथ शावर लेंगे.’’

अनामिका समझ गई कि अभी भी विजय उस के जिस्म से खेलना चाहता है. वह जल्दी से उठ कर वाशरूम की तरफ भागी, पर दरवाजा बंद करने से पहले ही विजय भी उस के साथ वाशरूम में जा घुसा.

वे दोनों आधा घंटे के बाद वाशरूम से निकले. फिर 15 मिनट के बाद दोनों रैस्टोरैंट में बैठे थे. अभी डिनर सर्व नहीं हुआ था कि अनामिका का मोबाइल फोन बज उठा.

उधर से किसी लड़की की आवाज आई, ‘नमस्ते दीदी.’

अनामिका वह आवाज नहीं पहचान पाई. उस ने कहा, ‘‘नमस्ते. पर आप हैं कौन? मैं ने आप को पहचाना नहीं?’’

‘अरे दीदी, मैं डाक बाबू की बेटी देविका बोल रही हूं,’ उधर से दोबारा आवाज आई.

‘‘अरे देविका. अब पहचान लिया. कैसी हो? अपनी दीदी को कैसे याद कर लिया?’’ अनामिका ने कहा.

‘दीदी, मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से बोल रही हूं. अभी उतरी हूं. आप मुझे अपना पता बता दो. मुझे आप के पास आना है,’ देविका ने कहा.

‘‘पर देविका, अभी तो मैं अपने दोस्त के साथ होटल में हूं…’’ अनामिका ने इतना कहा, तो तभी विजय ने धीरे से कहा कि देविका को यहीं बुला लो. इतनी रात को कहां जाएगी. मैं होटल के मैनेजर से बात कर लूंगा. वह मेरे दोस्त का खास दोस्त है. वह कुछ न कुछ इंतजाम कर देगा.

अनामिका देविका से बोली, ‘‘तुम ऐसा करो कि मैट्रो ट्रेन से द्वारका सैक्टर 13 आ जाओ. यहां से हम तुम्हें ले लेंगे.’’

‘पर दीदी, मैं अकेली कैसे आऊंगी?’ देविका ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बड़ा आसान है. किसी भी पुलिस वाले से पूछ लेना. वे लोग सही तरीका बता देंगे द्वारका आने का. वैसे, तुम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से पहले राजीव चौक की मैट्रो लेना और वहां से द्वारका सैक्टर 21 वाली मैट्रो में बैठ जाना. वहां तुम्हें हम मिल जाएंगे,’’ अनामिका ने समझाया.

‘ठीक है दीदी, मैं कोशिश करती हूं,’ देविका ने कहा.

‘‘कहीं भी किसी तरह की कोई दिक्कत हो, तो तुम फोन कर लेना. और हां, जब तुम उत्तम नगर पहुंच जाओ, तो मुझे फोन कर लेना. हम द्वारका सैक्टर 13 के मैट्रो स्टेशन पर तुम्हें लेने आ जाएंगे,’’ अनामिका ने देविका का हौसला बढ़ाया.

फोन काटने पर विजय ने अनामिका से पूछा, ‘‘यह देविका है कौन? पहले तो कभी तुम्हारे मुंह से इस का जिक्र नहीं सुना.’’

‘‘यह हमारे पड़ोस के डाक बाबू की बेटी है. अब यह अचानक दिल्ली क्यों आई है, यह तो मुझे भी नहीं पता,’’ अनामिका ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा.

रात के 11 बजे विजय, अनामिका और देविका होटल के कमरे में थे. दरमियाने कद की सांवले रंग की देविका फ्रैश हो चुकी थी. डिनर वह ट्रेन में ही कर चुकी थी, तो उस ने कहा, ‘‘दीदी, मुझे तो बड़ी तेज नींद आ रही है. कहां सोना है?’’

अनामिका बोली, ‘‘तुम सोफे पर सो जाओ.’’

‘‘आप कहां सोएंगी?’’ देविका ने पूरे कमरे पर नजर दौड़ाते हुए कहा. वहां डबल बैड के अलावा और कुछ नहीं था.

‘‘मैं और विजय इस डबल बैड पर सोएंगे,’’ अनामिका ने कहा.

यह सुन कर देविका हैरान रह गई. उसे पता था कि अनामिका दीदी ने अभी शादी नहीं की है, फिर शादी से पहले वे किसी लड़के के साथ एक ही बिस्तर पर सोएंगी…

पर फिलहाल देविका को गहरी नींद आ रही थी, तो वह सोफे पर सो गई.

देर रात हो गई थी, तो विजय और अनामिका भी सो गए.

अगली सुबह विजय, अनामिका और देविका रैस्टोरैंट में नाश्ता करने बैठे थे. वहां कई विदेशी भी बैठे हुए थे. देविका बड़े होटल का माहौल देख कर हैरान थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि विजय और अनामिका शादी से पहले ही शादीशुदा जोड़े की तरह क्यों रह रहे हैं.

‘‘दीदी, मुझे तो दिल्ली का माहौल बिलकुल भी समझ नहीं आया. आप का और इन साहब का रिश्ता क्या है, जो शादी से पहले ही…’’ देविका ने अपने मन की बात रखी.

यह सुन कर अनामिका हंस दी और बोली, ‘‘इन साहब का नाम विजय है और ये मेरे बौयफ्रैंड हैं. हम दोनों यहां होटल में मेरा जन्मदिन मनाने आए हैं.’’

‘‘लेकिन तुम यहां अचानक दिल्ली में कैसे?’’ विजय ने सवाल किया.

‘‘विजय साहब, मुझे मुंबई से एक सिंगिंग कंपीटिशन में गाने के लिए बुलाया है. मेरा सिलैक्शन हो गया है. मेरे साथ कोई एक और जना वहां जा सकता है, तो मैं ने दीदी का नाम लिखवा दिया. ये पढ़ीलिखी हैं और मुंबई में मेरा साथ देंगी,’’ देविका ने कहा.

‘‘अरे, तुम ने पहले क्यों नहीं बताया… बधाई हो. कब जाना है वहां?’’ अनामिका खुश हो कर बोली.

‘‘दीदी, परसों चलेंगे. आप हवाईजहाज की टिकट करवा देना. वे लोग हम दोनों का हवाईजहाज से आनेजाने और वहां रहनेखाने का पूरा इंतजाम करेंगे,’’ देविका ने बताया.

‘‘ठीक है. मैं तुम्हारे साथ चलूंगी,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘हवाईजहाज से… दिमाग तो नहीं खराब हो गया है. 12 जून का हादसा भूल गई. ट्रेन की टिकट करा लो,’’ विजय ने कहा.

‘‘12 जून को क्या हुआ था?’’ देविका ने पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें पता ही नहीं…’’ विजय हैरान था.

‘‘गांव में रहने की वजह से ज्यादा तो नहीं पता. आप ही बता दो कि ऐसा क्या हुआ था, जो आप इतना बौखला गए,’’ देविका बोली.

विजय ने बताया, ‘‘गुजरात के अहमदाबाद में गुरुवार, 12 जून को एयर इंडिया का एक हवाईजहाज क्रैश हो गया. यह बोइंग हवाईजहाज अहमदाबाद से लंदन जा रहा था और उड़ान भरने के 2 मिनट बाद ही एयरपोर्ट से सटे मेघानीनगर इलाके में हादसे का शिकार हुआ.

‘‘इस हवाईजहाज में 12 क्रू मैंबरों (2 पायलट भी) और 230 सवारियों समेत कुल 242 लोग सवार थे. इस हवाईजहाज में गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके विजय रुपाणी भी सवार थे.’’

‘‘ओह, यह तो बहुत बड़ी अनहोनी हो गई,’’ देविका के मुंह से निकला.

‘‘खबरों के मुताबिक, हवाईजहाज में उस समय 169 भारतीय, 53 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली और एक कनाडाई नागरिक सवार थे. हवाईजहाज का एक हिस्सा मेघानीनगर में बने रैजिडैंट डाक्टर्स के होस्टल पर जा कर गिरा और वहीं अटक गया. इस के बाद होस्टल में अफरातफरी मच गई.

‘‘हवाईजहाज का हिस्सा टकराने से बिल्डिंग में आग लग गई और पूरी इमारत खंडहर में बदल चुकी है. इमारत में मौजूद कई लोग घायल हुए, जिन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. कुछ की तो जान भी चली गई,’’ विजय ने आगे बताया.

‘‘इस के बाद सरकार ने क्या कदम उठाए?’’ देविका ने पूछा.

‘‘इस हादसे के तुरंत बाद इमरजैंसी रिस्पौंस टीम की तैनाती मौके पर कर दी गई थी. दमकल, बीएसएफ और एनडीआरएफ की टीमों ने पहले दुर्घटनास्थल पर आग बुझाने का काम किया और हवाईजहाज के मलबे को हटाया गया. क्रैश प्लेन बोइंग का 787-8 ड्रीमलाइनर था, जो तकरीबन 11 साल पुराना बताया गया.’’

‘‘फिर तो बहुत सारे लोग मर गए होंगे,’’ देविका ने चिंता जताई.

विजय ने कहा, ‘‘इस हादसे के बाद अहमदाबाद पहुंचे गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘सवा लाख लिटर ईंधन होने के चलते तापमान इतना ज्यादा था कि किसी को बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं थी.’’

‘‘क्या कोई भी जिंदा नहीं बचा?’’ देविका ने पूछा.

‘‘बस एक आदमी ही जिंदा बच पाया. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर जीएस मलिक ने फोन पर बताया कि एक शख्स विश्वास कुमार रमेश जिंदा बचा है, जो बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर हवाईजहाज की सीट 11ए पर था.’’

‘‘जिस होस्टल पर वह हवाईजहाज गिरा था, क्या वहां भी लोग मरे?’’ देविका ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘जो पहली सूचना मिली थी, उस के मुताबिक, बीजे मैडिकल कालेज और सिविल अस्पताल की डीन मीनाक्षी पारिख ने बताया कि इस हादसे में 4 छात्रों और छात्रों के 4 परिजनों की मौत हुई थी,’’ विजय बोला.
‘‘वहां तो बड़ा ही भयावह मंजर रहा होगा,’’ देविका ने कहा.

‘‘मैं ने बीबीसी पर खबर पढ़ी थी. उस के मुताबिक, सब से पहले छत को हवाईजहाज के पंख ने चीर दिया, उस के बाद फ्यूसलेज (हवाईजहाज का मुख्य हिस्सा) गिरा. जब मुख्य हिस्सा गिरा, तो उस से सब से ज्यादा नुकसान हुआ.

‘‘इस अफरातफरी में छात्र जान बचाने के लिए इमारत से कूदने लगे. यहां तक कि इमारत के दूसरे और तीसरे माले से भी. बाद में छात्रों ने बताया कि होस्टल की एकमात्र सीढ़ी का रास्ता मलबे की वजह से बंद हो गया था.’’

‘‘उफ, बड़ा ही भयावह मंजर रहा होगा,’’ देविका अपने दिल पर हाथ रख कर बोली.

‘‘अरे, सोचो न कि लोग इतनी बुरी तरह से जल गए कि उन के शवों की पहचान डीएनए टैस्ट के जरीए शुरू की गई. हवाईजहाज के हादसों में कोई नहीं बचता है. मैं इसलिए तो बोल रहा हूं कि तुम दोनों रेल से मुंबई चली जाओ,’’ विजय ने अपनी बात रखी.

‘‘यह क्या बात हुई… एक हादसे के बाद क्या लोग हवाईजहाज में बैठना छोड़ तो नहीं देंगे,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘लेकिन रेल से जाने में क्या बुराई है?’’ विजय ने अपनी बात रखी.

‘‘बात रेल या बस से जाने की नहीं है. हादसा तो घर से बाहर निकलते ही हो सकता है. इस हादसे में उन होस्टल वालों का क्या कुसूर था, जो कैंटीन में बैठे खाना खा रहे थे? वे तो हवाईजहाज से सफर भी नहीं कर रहे थे,’’ अनामिका बोली.

थोड़ा रुक कर अनामिका ने दोबारा कहा, ‘‘तुम जानते हो कि रेल हादसों में भी लोग अपनी जान गंवा देते हैं. एक खबर के मुताबिक, 2023-24 में 40 रेल हादसों में कम से कम 313 लोगों की मौत हुई थी. ऐसा ही कुछ सड़क हादसों में भी होता है. देशभर में हर घंटे 53 सड़क हादसे हो रहे हैं और हर 4 मिनट में एक मौत होती है.’’

‘‘अरे, विजय साहब… इतना भी मत डरिए. मुझे और दीदी को हवाईजहाज से मुंबई जाने दीजिए. मेरी जैसी गांवदेहात की लड़की को दोबारा हवाईजहाज में बैठने का मौका कब मिलेगा, कोई नहीं जानता. फिर कौन सा हम अपने खर्च पर जा रही हैं. इतना भी अनहोनी से मत डरिए. चलो, अब नाश्ता करते हैं, मुजे बहुत तेज भूख लगी है,’’ देविका ने कहा. यह बात सुन कर उन तीनों के चेहरों पर मुसकान खिल उठी. News Story In Hindi

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