सफेद परदे के पीछे: भाग 3

हमेशा की तरह चलतेचलते दोनों झोंपड़ियों की तरफ निकल आए. तभी अचानक मौसम खराब हो गया. तेज हवा के साथ बिजली कड़की और मूसलाधार बारिश होने लगी. उन्हें वापस आश्रम लौटने तक का वक्त नहीं मिला और वे भाग कर एक झोंपड़ी में घुस गए.

कुछ मौसम की साजिश और कुछ कुंआरे से इंद्रधनुष… मिताली 7 रंगों में नहा उठी. सुदीप उस के कान में धीरे से गुनगुनाया, ‘‘रूप तेरा मस्ताना… प्यार मेरा दीवाना… भूल कोई हम से न हो जाए…’’

मिताली लाज से सिकुड़ गई. इंद्रधनुष के रंग कुछ और गहरा गए.

भीगे बदन ने आग में घी का काम किया और फिर वह सब हो गया जो उन्होंने पुरानी हिंदी फिल्म ‘आराधना’ में देखा था. बारिश खत्म होने पर दोनों घर लौट गए. इस रोमानी शाम के यादगार लमहों के बोझ से मिताली की पलकें झुकी जा रही थीं.

परीक्षा खत्म हो गई. 2 दिन नींद पूरी करने और परीक्षा की थकान उतारने के बाद मिताली ने सुदीप को फोन किया. लेकिन यह क्या? उस का फोन तो स्विचऔफ आ रहा था.

‘लगता है जनाब की थकान अभी उतरी नहीं है,’ मिताली सोच कर मुसकराई. लेकिन यह सिर्फ उस का वहम ही था. अगले कई दिनों तक भी जब सुदीप का फोन बंद मिला तो उसे फिक्र हुई. उस ने सुदीप के 1-2 दोस्तों से उस के बारे में पता किया, लेकिन किसी ने भी उसे ऐग्जाम के बाद से नहीं देखा था. मिताली ने आश्रम जा कर सुमन से बात की, लेकिन उसे भी कुछ मालूम नहीं था.

सप्ताहभर बाद उसे सुमन से पता चला कि सुदीप अचानक कहीं गायब हो गया. उस के घर वालों ने भी उस की बहुत तलाश की, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. हार कर उन्होंने पुलिस को खबर कर दी और अब पुलिस उस की तलाश में जुटी है.

मिताली के सारे प्रयास विफल हो गए तो उस ने भी सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई की तैयारी करने लगी. तभी एक दिन दोपहर को उस के मोबाइल पर एक प्राइवेट नंबर से कौल आई, ‘‘मिताली, मैं बाबा का खास सहयोगी विद्यानंद बोल रहा हूं. बाबा तुम से भेंट करना चाहते हैं. कल दोपहर 3 बजे आश्रम आ जाना.’’

मिताली भीतर तक सिहर गई. बोली, ‘‘माफ कीजिएगा, मेरी आप के बाबा और आश्रम में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘तुम्हें न सही बाबा को तो है… और हां, जरा बाहर आओ, बाबा ने एक खास तोहफा तुम्हारे लिए भिजवाया है…’’ और फिर फोन कट गया.

मिताली दौड़ कर बाहर गई. मुख्य दरवाजे पर एक छोटा सा लिफाफा रखा था. मिताली ने खोल कर देखा. उस में एक पैन ड्राइव था. उस ने कांपते हाथों से उसे अपने फोन से कनैक्ट किया. उस में एक वीडियो क्लिप थी, जिसे देखते ही मिताली भय से पीली पड़ गई. यह उस के और सुदीप के उन अंतरंग पलों का वीडियो था जो उन्होंने आश्रम वाली झोंपड़ी में बिताए थे.

मरता क्या नहीं करता. मिताली अगले दिन दोपहर 3 बजे बाबा के आश्रम में थी. आज उसे उस विशेषरूप से बनी गुफा में ले जाया गया. भीतर ले जाने से पहले निर्वस्त्र कर के उस की तलाशी ली गई और उस के कपड़े भी बदल दिए गए. मोबाइल स्विचऔफ कर के अलग रखवा दिया गया. इतना ही नहीं उस की घड़ी और कानों में पहने टौप्स तक खुलवा लिए गए.

बाहर से साधारण सी दिखने वाली यह गुफा भीतर से किसी महल से कम नहीं

थी. नीम अंधेरे में मिताली ने देखा कि उस के अंदर विलासिता का हर सामान मौजूद था. आज पहली बार वह बाबा से प्रत्यक्ष मिल रही थी. बाबा का व्यक्तित्व इतना रोबीला था कि वह आंख उठा कर उस की तरफ देख तक नहीं सकी. सम्मोहित सी मिताली 2 घंटे तक बाबा के हाथों की कठपुतली बनी उस के इशारों पर नाचती रही. शाम को जब घर लौटी तो लग रहा था जैसे पूरा शरीर वाशिंगमशीन में धोया गया हो.

2 साल तक यह सिलसिला चलता रहा. बाबा जब भी इस आश्रम में विश्राम के लिए आते, मिताली को उन की सेवा में हाजिर होना पड़ता. अपने प्रेम के राज को राज रखने की कीमत मिताली किश्तों में चुका रही थी.

सुदीप का अब तक भी कुछ पता नहीं चला था. आश्रम में कुछ दबे स्वरों से उसे सुनाई दिया था कि बाबा ने उसे अपने विदेश स्थित आश्रम में भेज दिया है. इसी बीच उस के लिए देवेश का रिश्ता आया. पहले तो मिताली ने इनकार करना चाहा, क्योंकि वह अपनी अपवित्र देह देवेश को नहीं सौंपना चाहती थी, पर फिर मन के किसी कोने से आवाज आई कि हो सकता है यह रिश्ता तुम्हें इस त्रासदी से आजादी दिला दे… हो सकता है कि तुम्हें आश्रम के नर्क से छुटकारा मिल जाए… और इस उम्मीद पर वह देवेश का हाथ थाम कर वह शहर छोड़ आई. शादी के बाद सरनेम के साथ उस ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया.

मगर कहते हैं कि दुख से पहले उस की परछाईं पहुंच जाती है… मिताली के साथ भी यही हुआ. शादी के बाद लगभग 6 महीने तो उस ने डर के साए में बिताए, लेकिन आश्रम से फोन नहीं आया तो धीरेधीरे पुराने दिनों को भूलने लगी थी कि इसी बीच एक दिन अचानक एक फोन आ गया, ‘‘हनीमून पीरियड खत्म हो गया होगा… कल दोपहर आश्रम आ जाना… बाबा ने याद किया है…’’

यह सुन कर मिताली डर के मारे सूखे पत्ते सी कांपने लगी. उस के मुंह से बोल नहीं फूटे.

‘‘तुम ने क्या सोचा था, शहर और फोन नंबर बदलने से तुम छिप जाओगी? अरे बाबा तो समुद्र में सूई खोजने की ताकत रखते हैं… तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम अपनी औकात न भूलो… समझी?’’ एक धमकी भरी चेतावनी के साथ फोन कट गया.

फिर से वही पुराना सिलसिला शुरू हो गया. मिताली अब बुरी तरह से कसमसाने लगी थी. वह इस दोहरी जिंदगी से आजादी चाहने लगी थी. पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो उस ने आरपार की लड़ाई की ठान ली.

‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? देवेश मुझे छोड़ देगा? ठीक ही करेगा… मैं भी कहां न्याय कर पा रही हूं उस के साथ… हर रात जैसे एक जूठी थाली परोसती हूं उसे… नहीं… अब और नहीं… अब मेरा चाहे जो भी हो… मैं अब आश्रम नहीं जाऊंगी… बाबा मेरे खिलाफ कोई कदम उठाए, उस से पहले ही मैं उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दूंगी,’ मिताली ने मन ही मन निश्चय कर लिया.

‘क्या तुम ऐसा कर पाओगी? है इतनी हिम्मत?’ उस के मन ने उसे ललकारा.

‘क्यों नहीं, बहुत सी महिलाएं ‘मीटू’ अभियान में शामिल हो कर ऐसे सफेदपोशों के नकाब उतार रही हैं… मैं भी यह हिम्मत जुटाऊंगी,’ मिताली ने अपनेआप से वादा किया.

अभी वह आगे की रणनीति तैयार करने की सोच ही रही थी कि किसी लड़की ने यह हिम्मत दिखा दी. बाबा और उस के आश्रम का काला सच समाज के सामने लाने का हौसला दिखा ही दिया.

‘‘अरे भई, आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’ देवेश ने कमरे में आ कर कहा तो मिताली पलकों के पीछे की दुनिया से वर्तमान में लौटी.

‘‘सिर्फ खाना नहीं जनाब. आज तो आप को विशेष ट्रीट दी जाएगी… एक ग्रैंड पार्टी… आखिर समाज को एक काले धब्बे से मुक्ति जो मिली है,’’ कह मिताली रहस्यमय ढंग से मुसकराई.

देवेश इस रहस्य को भेद नहीं पाया, लेकिन वह मिताली की खुशी में खुश था. मिताली मन ही मन उस अनजान लड़की को धन्यवाद देते हुए तैयार होने चल दी जिस ने उस में फिर से जीने की ललक जगा दी थी.

 

सजा के बाद सजा : भाग 3

जज साहब ने विनय को अपनी बेटी की नाबालिग सहेली के साथ बलात्कार करने के लिए 10 साल की सजा सुना दी. वे खुद को बेगुनाह बताते रहे, पर किसी ने उन पर विश्वास नहीं किया. जेल में भी उन के साथ गलत बरताव हुआ. उन्होंने हवलदार के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करा दी, पर उस के हाथ जोड़ने पर वे पिघल गए. इसी बीच विनय ने अपने घर पर कई चिट्ठियां लिखीं, पर कोई जवाब नहीं आया.

‘विनय को जेल में 10 साल पूरे होने में कुछ समय ही रह गया था. कभीकभी वे सोचते रहते कि 50 साल के उस विनय में ऐसा क्या था कि उन की बेटी की सहेली, जो 17 साल की होगी, उन पर रीझ गई? प्यार था, खिंचाव था या बेहूदा फिल्में?

अगर विनय ‘हां’ कर देते, तो शायद यह नौबत नहीं आती. लेकिन उम्रदराज आदमी आगे की सोचता है और इसी सोच के चलते उन्होंने उसे अपनी बच्ची समझ कर समझाया, लेकिन वह बच्ची नहीं थी. उस में तो जवानी का उफान था. उन्होंने जो किया, ठीक किया. लेकिन उन के मना करते ही वह लड़की घायल नागिन की तरह बिफर गई थी.

उस लड़की ने जा कर सीधे थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. एक अच्छीखासी कहानी बना कर. उस लड़की ने रिपोर्ट में लिखवाया था कि हमेशा की तरह वह अपनी सहेली से मिलने उस के घर गई. सहेली और उस की मां व भाई अचानक अपने मामा के यहां गए थे. घर में अकेले अंकल थे. उन्होंने उसे बिठाया, बताया और जूस पिलाया. जूस में न जाने क्या मिलाया था कि वह बेहोश हो गई. जब होश आया, तो वह लुट चुकी थी.

यह तो ठीक है कि उस दिन विनय की पत्नी और बच्चे मामा के घर गए थे. वह लड़की आई भी थी. उसे जूस भी पिलाया था, लेकिन यह बलात्कार कहां से आ गया. फिर उस के घर वालों के मुताबिक वह रातभर घर नहीं आई थी, तो कहां गई होगी? क्या अपनी सैक्स की आग बुझाने के लिए अपने किसी यार के साथ रातभर रही और सुबह घर पहुंची? तभी तो मैडिकल रिपोर्ट में वीर्य होने की पुष्टि पाई गई थी. लेकिन वह वीर्य किस का था, यह तो साफ नहीं हुआ था.

जज ने भी माना कि एक नाबालिग लड़की क्यों झूठ बोलेगी? वह 50 साल के बूढ़े को क्यों फंसाना चाहेगी? उस लड़की के मातापिता ने कहा था कि उन की लड़की अपनी सहेली के घर हमेशा पढ़ने जाती थी. आसपड़ोस का मामला था. लड़की अकसर रात में सहेली के घर रुक भी जाती थी. वह उस दिन भी बोल कर गई थी कि सहेली के घर जा रही है, फिर अकेली लड़की और कहीं रात में कैसे जा सकती है और क्यों?

यह भी साबित हो गया था कि उस रात विनय का परिवार घर पर नहीं था. वे अकेले थे. साफ था कि बलात्कार करने वाले वही थे. विनय ने बताया कि लड़की सैक्स करना चाहती थी और उन्होंने मना कर दिया, तो गुस्से में लड़की यह आरोप लगा रही है. उन्होंने तो उसी समय उसे अपने घर से बाहर कर दिया था.

ये बातें सुन कर विपक्ष का वकील क्या, मजिस्ट्रेट, खुद विनय का वकील भी हंसने लगा था. उन का सच कितना खोखला साबित हुआ था. अच्छे चालचलन के चलते विनय की रिहाई समय से पहले ही आ गई. शायद साढ़े 9 साल के बाद विनय जब जेल के बड़े दरवाजे से बाहर निकलने लगे, तो वही हवलदार मिला, जो कभी उन्हें गालियां दे कर बेइज्जत करता था. वह अब सबइंस्पैक्टर की पोस्ट पर था.

उस ने हंस कर कहा, ‘‘रिहाई की बधाई हो भाई.’’ ‘‘जी सर, पर आप से एक बात कहूं. अब तो मैं ने पूरी सजा भी काट ली, लेकिन मैं ने कोई बलात्कार नहीं किया था. वह मेरी बेटी की सहेली थी. मैं ने उस से कभी उस की जाति भी नहीं पूछी थी,’’ यह बात विनय ने इतनी पीड़ा भरी आवाज में कही कि उस हवलदार बने इंस्पैक्टर की भी आंखें भर आईं.

उस ने कहा, ‘‘मुझे आप की बात पर पूरा भरोसा है. मैं ने आप की जो बेइज्जती की थी, वह गुस्से में आ कर की थी. बाकी कुछ भी न सोचा. जब मेरे साथ गुजरी, तो समझ आया कि धर्म और जाति से ऊपर सब से बड़ी जाति एक ही है, औरत जाति और मर्द जाति. मुझे माफ कर देना.’’ विनय बाहर आ कर अपनी ससुराल गए, तो पहला धक्का उन्हें तब लगा, जब पता चला कि उन की पत्नी को गुजरे काफी समय हो गया है. उन्होंने पूछा, ‘‘मुझे क्यों नहीं बताया गया? क्यों नहीं बुलाया गया?’’

उन के साले ने शांत लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें बुलाने के लिए कोर्ट की इजाजत लेनी पड़ती, फिर कोई सिपाही तुम्हें हथकड़ी में बांध कर लाता. फिर नए सिरे से बहस और बातें शुरू हो जातीं.’’ ‘‘मेरी बेटी कहां है?’’ विनय ने रो कर पूछा.

साले ने कहा, ‘‘उस का कहीं भी रिश्ता नहीं हो पा रहा था. हम जहां रिश्ता ले कर जाते, आप की बदनामी पहले पहुंच जाती. आखिर में हम ने यह कहना शुरू कर दिया कि इस का बाप मर गया है. दहेज देने को था नहीं. आखिरकार सब ने मिल कर तय किया और उस की शादी एक विधुर से करा दी, जिस का पहले से एक बच्चा था. ‘‘आप से निवेदन है कि अगर अपनी बेटी की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहते, तो उस से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

विनय की आंखों में आंसू आ गए. किस गुनाह की सजा मिल रही है उन्हें? क्या उन की सजा अभी खत्म नहीं हुई है? क्या वे 6 महीने पहले छूट जाने का हर्जाना भर रहे हैं? विनय ने अपने बेटे के बारे में पूछा, तो उन्हें बेटे का पता दे दिया गया. लेकिन कोई उन के साथ जाने को तैयार नहीं हुआ.

विनय पता ले कर बेटे के घर की तरफ निकल पड़े. उन्हें अपने साले से ही पता चला कि बेटा एक अच्छी सरकारी नौकरी में है. उस की शादी भी हो चुकी है. वह एक बेटी का पिता भी है. उन्होंने दरवाजे पर खड़े दरबान से कहा, ‘‘साहब से कहो कि उन के पिताजी आए हैं.’’

दरबान ने यह बात भीतर जा कर कही, तो बेटे ने दरबान से कहा, ‘‘उन्हें मेरे दफ्तर का पता दे कर वहीं मिलने को कहो.’’ जब दरबान ने विनय से यह बात कही, तो उन्हें तगड़ा झटका लगा. वे वहीं गश खा कर गिरतेगिरते बचे. वे समझ गए कि बेटा उन से बच रहा है.

विनय ने सोचा भी कि बेटा उन से नहीं मिलना चाहता, तो वे क्यों उस के दफ्तर जाएं. लेकिन उन के पास न रुपएपैसे थे और न कोई ठिकाना. फिर पिता का दिल था. वे चाहते थे कि एक बार अपने बेटे की शक्ल तो देख लें. विनय बेटे के दफ्तर पहुंचे. पिता को देख कर उस ने उन्हें अपने केबिन में बुलाया और बेमन से पैर छूने की कोशिश की.

यह देख कर विनय की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने बेटे को गले लगाने की सोची कि इतने में वह अपनी कुरसी पर बैठ गया. उस ने घंटी बजा कर चपरासी को चाय लाने के लिए कहा. पिताबेटे की आपस में आंखें मिलीं. बेटे ने पूछा, ‘‘आप कब छूटे?’’

‘‘कल ही.’’ ‘‘मेरा पता किस ने दिया?’’ बेटे के पूछने से साफ जाहिर हो रहा था कि वह नहीं चाहता था कि पिता को उस का पता भी लगे.

‘‘तुम्हारे मामा ने,’’ पिता ने कहा. ‘‘ओह, मामाजी भी…’’ कुछ बुदबुदाते हुए बेटे ने कहा.

‘‘क्या…?’’ विनय ने पूछा. ‘‘जी, कुछ नहीं,’’ बेटे ने कहा.

कुछ देर की चुप्पी के बाद बेटे ने कहा, ‘‘देखिए, मैं एक अच्छी नौकरी पर हूं. घर में एक बेटी है, मेरी पत्नी है. हम ने सब को यही बताया है कि मेरे पिता नहीं हैं. अब आप के बारे में पता चलेगा, तो मेरे ससुराल वाले क्या कहेंगे. लोग गड़े मुरदे उखाड़ेंगे, फिर तमाशा होगा. मैं किसी को मुंह दिखाने के लायक

नहीं रहूंगा.’’ ‘‘लेकिन बेटा, तुम तो जानते हो कि मैं बेकुसूर हूं,’’ विनय ने अपनी सफाई

में कहा. ‘‘मेरे जानने या मानने से क्या होता है? पुलिस ने आप को मुलजिम बनाया. अदालत ने आप को मुजरिम. आप सजा काट कर आए हैं. प्रैस, मीडिया, समाज, रिश्तेदार आप किसकिस को सफाई देंगे. फिर उस रात हम लोग घर पर नहीं थे. क्या हुआ था, हमें क्या पता?’’

बेटे के मुंह से आखिरी शब्द सुन कर विनय की आंखों में आंसू आ गए. विनय उठने लगे, तो बेटे ने कहा, ‘‘आप किसी वृद्धाश्रम में रह लें. मैं सारा बंदोबस्त कर दूंगा. लेकिन आप किसी को बताना नहीं कि आप से मेरा क्या रिश्ता है और न ही अपने गुनाह के बारे में बताना.’’

विनय कुरसी से उठने लगे और बोले, ‘‘कौन सा गुनाह? वह गुनाह, जो मैं ने किया ही नहीं. वृद्धाश्रम में ही रहना है, तो किसी भी शहर में रह लूंगा. जब अपना खून ही भरोसा नहीं कर रहा, तो फिर किसी को क्या सफाई देनी…’’ विनय ने जाते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम उस लड़की का पता बता सकते हो, जिस ने मुझे जेल भिजवाया था?’’

बेटे ने विनय के हाथ में कुछ रुपए थमा कर कहा, ‘‘उस लड़की ने अपने किसी प्रेमी को धोखा देने पर उसे फंसाने के लिए पूरे घर के सामने मिट्टी का तेल डाल कर खुद को जलाने का नाटक किया था, लेकिन वह जल कर अस्पताल में भरती हो गई.’’

‘‘मरतेमरते वह यह बयान दे कर मरी कि प्रेमी से तंग आ कर उस ने आत्महत्या की कोशिश की. पुलिस ने धारा 302 के आरोप में लड़के को जेल भिजवा दिया.’’ विनय बाहर आ कर सोच रहे थे, ‘मेरी तो जिंदगी बरबाद कर ही दी, मरतेमरते उस ने दूसरे को भी जेल भिजवा दिया.’

ऐसे लोगों का अंत ऐसा ही होता है. अदालतों को इस बात पर गौर करना चाहिए. मरने वाले के बयान भी झूठे हो सकते हैं, क्योंकि मरता हुआ शख्स, जिसे कानून मरने वाले का आखिरी बयान मानती है, झूठ बोल सकता है. क्योंकि जब वह बयान देता है, तो जिंदा होता है. तो फिर वह मरने वाले का सच्चा बयान कैसे हुआ? कानून को यह भी सोचना चाहिए कि अगर कोई नाबालिग लड़की बलात्कार की झूठी कहानी नहीं गढ़ सकती, तो घरपरिवार, नौकरी वाला

50 साल की उम्र का क्यों और कैसे बलात्कार कर सकता है, जबकि इस उम्र में न वह जोश होता है,

न जुनून. फिर विनय ने ऐसे केस भी तो देखे हैं कि लड़की ने अपनी मरजी से लड़के के साथ रात गुजारी, फिर शादी का दबाव बनाने लगी. शादी के लिए मना किया, तो लड़के को बलात्कारी बना दिया.

लड़की के अंग में लड़के का वीर्य पाए जाने का मतलब यह तो नहीं कि उस ने बलात्कार किया हो. अपनी मरजी से रात गुजारी, फिर बलात्कार का आरोप लगा दिया. ऐसे मामलों में न जाने कितने लड़के जेल में पड़े हैं. वही लड़की फिर बयान से मुकरने के लिए लाखों रुपए मांग रही है. समय बदल गया है. सोच बदल गई है. बालिग होने की उम्र भी बदलनी चाहिए. कानून के नुमाइंदों को हर पहलू पर सोच कर धाराएं लगानी चाहिए. एससी और एसटी ऐक्ट लगाने से, मीडिया की जातिगत टिप्पणी से समाज में गुस्सा फैलने लगता है. अगड़ेपिछड़ों में तनाव बढ़ता है.

विनय ने तो उस लड़की को कभी अपने घर पर आने से भी नहीं रोका. उसे केवल अपनी बेटी की सहेली माना और कानून ने उन पर एससी, एसटी ऐक्ट लगा दिया. विनय को लगा कि उन की असली सजा तो अब शुरू हुई है. समाज की सजा. अकेले भटकने की सजा. अपनों द्वारा मुंह मोड़ने की सजा और ये सजाएं तो उन की सब से बड़ी सजाएं थीं, जो तन से ज्यादा मन भोग रहा था. यह कभी न खत्म होने वाली सजा थी.

इतना सोचतेसोचते विनय को पता भी नहीं चला कि कब वे एक ट्रक की चपेट में आ गए. उन का बूढ़ा जिस्म अब लाश में बदल चुका था.

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