हमेशा की तरह चलतेचलते दोनों झोंपड़ियों की तरफ निकल आए. तभी अचानक मौसम खराब हो गया. तेज हवा के साथ बिजली कड़की और मूसलाधार बारिश होने लगी. उन्हें वापस आश्रम लौटने तक का वक्त नहीं मिला और वे भाग कर एक झोंपड़ी में घुस गए.
कुछ मौसम की साजिश और कुछ कुंआरे से इंद्रधनुष… मिताली 7 रंगों में नहा उठी. सुदीप उस के कान में धीरे से गुनगुनाया, ‘‘रूप तेरा मस्ताना… प्यार मेरा दीवाना… भूल कोई हम से न हो जाए…’’
मिताली लाज से सिकुड़ गई. इंद्रधनुष के रंग कुछ और गहरा गए.
भीगे बदन ने आग में घी का काम किया और फिर वह सब हो गया जो उन्होंने पुरानी हिंदी फिल्म ‘आराधना’ में देखा था. बारिश खत्म होने पर दोनों घर लौट गए. इस रोमानी शाम के यादगार लमहों के बोझ से मिताली की पलकें झुकी जा रही थीं.
परीक्षा खत्म हो गई. 2 दिन नींद पूरी करने और परीक्षा की थकान उतारने के बाद मिताली ने सुदीप को फोन किया. लेकिन यह क्या? उस का फोन तो स्विचऔफ आ रहा था.
‘लगता है जनाब की थकान अभी उतरी नहीं है,’ मिताली सोच कर मुसकराई. लेकिन यह सिर्फ उस का वहम ही था. अगले कई दिनों तक भी जब सुदीप का फोन बंद मिला तो उसे फिक्र हुई. उस ने सुदीप के 1-2 दोस्तों से उस के बारे में पता किया, लेकिन किसी ने भी उसे ऐग्जाम के बाद से नहीं देखा था. मिताली ने आश्रम जा कर सुमन से बात की, लेकिन उसे भी कुछ मालूम नहीं था.
सप्ताहभर बाद उसे सुमन से पता चला कि सुदीप अचानक कहीं गायब हो गया. उस के घर वालों ने भी उस की बहुत तलाश की, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. हार कर उन्होंने पुलिस को खबर कर दी और अब पुलिस उस की तलाश में जुटी है.
मिताली के सारे प्रयास विफल हो गए तो उस ने भी सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई की तैयारी करने लगी. तभी एक दिन दोपहर को उस के मोबाइल पर एक प्राइवेट नंबर से कौल आई, ‘‘मिताली, मैं बाबा का खास सहयोगी विद्यानंद बोल रहा हूं. बाबा तुम से भेंट करना चाहते हैं. कल दोपहर 3 बजे आश्रम आ जाना.’’
मिताली भीतर तक सिहर गई. बोली, ‘‘माफ कीजिएगा, मेरी आप के बाबा और आश्रम में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’
‘‘तुम्हें न सही बाबा को तो है… और हां, जरा बाहर आओ, बाबा ने एक खास तोहफा तुम्हारे लिए भिजवाया है…’’ और फिर फोन कट गया.
मिताली दौड़ कर बाहर गई. मुख्य दरवाजे पर एक छोटा सा लिफाफा रखा था. मिताली ने खोल कर देखा. उस में एक पैन ड्राइव था. उस ने कांपते हाथों से उसे अपने फोन से कनैक्ट किया. उस में एक वीडियो क्लिप थी, जिसे देखते ही मिताली भय से पीली पड़ गई. यह उस के और सुदीप के उन अंतरंग पलों का वीडियो था जो उन्होंने आश्रम वाली झोंपड़ी में बिताए थे.
मरता क्या नहीं करता. मिताली अगले दिन दोपहर 3 बजे बाबा के आश्रम में थी. आज उसे उस विशेषरूप से बनी गुफा में ले जाया गया. भीतर ले जाने से पहले निर्वस्त्र कर के उस की तलाशी ली गई और उस के कपड़े भी बदल दिए गए. मोबाइल स्विचऔफ कर के अलग रखवा दिया गया. इतना ही नहीं उस की घड़ी और कानों में पहने टौप्स तक खुलवा लिए गए.
बाहर से साधारण सी दिखने वाली यह गुफा भीतर से किसी महल से कम नहीं
थी. नीम अंधेरे में मिताली ने देखा कि उस के अंदर विलासिता का हर सामान मौजूद था. आज पहली बार वह बाबा से प्रत्यक्ष मिल रही थी. बाबा का व्यक्तित्व इतना रोबीला था कि वह आंख उठा कर उस की तरफ देख तक नहीं सकी. सम्मोहित सी मिताली 2 घंटे तक बाबा के हाथों की कठपुतली बनी उस के इशारों पर नाचती रही. शाम को जब घर लौटी तो लग रहा था जैसे पूरा शरीर वाशिंगमशीन में धोया गया हो.
2 साल तक यह सिलसिला चलता रहा. बाबा जब भी इस आश्रम में विश्राम के लिए आते, मिताली को उन की सेवा में हाजिर होना पड़ता. अपने प्रेम के राज को राज रखने की कीमत मिताली किश्तों में चुका रही थी.
सुदीप का अब तक भी कुछ पता नहीं चला था. आश्रम में कुछ दबे स्वरों से उसे सुनाई दिया था कि बाबा ने उसे अपने विदेश स्थित आश्रम में भेज दिया है. इसी बीच उस के लिए देवेश का रिश्ता आया. पहले तो मिताली ने इनकार करना चाहा, क्योंकि वह अपनी अपवित्र देह देवेश को नहीं सौंपना चाहती थी, पर फिर मन के किसी कोने से आवाज आई कि हो सकता है यह रिश्ता तुम्हें इस त्रासदी से आजादी दिला दे… हो सकता है कि तुम्हें आश्रम के नर्क से छुटकारा मिल जाए… और इस उम्मीद पर वह देवेश का हाथ थाम कर वह शहर छोड़ आई. शादी के बाद सरनेम के साथ उस ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया.
मगर कहते हैं कि दुख से पहले उस की परछाईं पहुंच जाती है… मिताली के साथ भी यही हुआ. शादी के बाद लगभग 6 महीने तो उस ने डर के साए में बिताए, लेकिन आश्रम से फोन नहीं आया तो धीरेधीरे पुराने दिनों को भूलने लगी थी कि इसी बीच एक दिन अचानक एक फोन आ गया, ‘‘हनीमून पीरियड खत्म हो गया होगा… कल दोपहर आश्रम आ जाना… बाबा ने याद किया है…’’
यह सुन कर मिताली डर के मारे सूखे पत्ते सी कांपने लगी. उस के मुंह से बोल नहीं फूटे.
‘‘तुम ने क्या सोचा था, शहर और फोन नंबर बदलने से तुम छिप जाओगी? अरे बाबा तो समुद्र में सूई खोजने की ताकत रखते हैं… तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम अपनी औकात न भूलो… समझी?’’ एक धमकी भरी चेतावनी के साथ फोन कट गया.
फिर से वही पुराना सिलसिला शुरू हो गया. मिताली अब बुरी तरह से कसमसाने लगी थी. वह इस दोहरी जिंदगी से आजादी चाहने लगी थी. पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो उस ने आरपार की लड़ाई की ठान ली.
‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? देवेश मुझे छोड़ देगा? ठीक ही करेगा… मैं भी कहां न्याय कर पा रही हूं उस के साथ… हर रात जैसे एक जूठी थाली परोसती हूं उसे… नहीं… अब और नहीं… अब मेरा चाहे जो भी हो… मैं अब आश्रम नहीं जाऊंगी… बाबा मेरे खिलाफ कोई कदम उठाए, उस से पहले ही मैं उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दूंगी,’ मिताली ने मन ही मन निश्चय कर लिया.
‘क्या तुम ऐसा कर पाओगी? है इतनी हिम्मत?’ उस के मन ने उसे ललकारा.
‘क्यों नहीं, बहुत सी महिलाएं ‘मीटू’ अभियान में शामिल हो कर ऐसे सफेदपोशों के नकाब उतार रही हैं… मैं भी यह हिम्मत जुटाऊंगी,’ मिताली ने अपनेआप से वादा किया.
अभी वह आगे की रणनीति तैयार करने की सोच ही रही थी कि किसी लड़की ने यह हिम्मत दिखा दी. बाबा और उस के आश्रम का काला सच समाज के सामने लाने का हौसला दिखा ही दिया.
‘‘अरे भई, आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’ देवेश ने कमरे में आ कर कहा तो मिताली पलकों के पीछे की दुनिया से वर्तमान में लौटी.
‘‘सिर्फ खाना नहीं जनाब. आज तो आप को विशेष ट्रीट दी जाएगी… एक ग्रैंड पार्टी… आखिर समाज को एक काले धब्बे से मुक्ति जो मिली है,’’ कह मिताली रहस्यमय ढंग से मुसकराई.
देवेश इस रहस्य को भेद नहीं पाया, लेकिन वह मिताली की खुशी में खुश था. मिताली मन ही मन उस अनजान लड़की को धन्यवाद देते हुए तैयार होने चल दी जिस ने उस में फिर से जीने की ललक जगा दी थी.