लड़की क्यों चाहे सरकारी नौकरी वाला पति ?

हमार पापा बड़ा नीमन दामाद खोजेला, हमरा खातिर वो अकशवा के चांद खोजेला.

‘नहीं खींचे ठेलागाड़ी, न ढोवेला टोकरी, हमार पियवा करेला सरकारी नौकरी…’

भोजपुरी में ‘हमार पियवा करेला सरकारी नौकरी…’ गाना बहुत मशहूर हो रहा है. इस को गाने वाले कलाकार हैं प्रियंका सिंह, ओम झा और प्यारेलाल यादव. स्क्रीन पर दिखे हैं भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार और भारतीय जनता पार्टी के सांसद दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’.

इस पूरे गाने में यह बताया गया है कि सरकारी नौकरी वाला पति कितना अच्छा होता है. वह कैसे अपनी पत्नी का ध्यान रखता है. वह कितना स्मार्ट और असरदार होता है. इस बात पर लड़की घमंड करते हुए कहती है कि पापा ने उस के लिए बहुत अच्छा पति ढूंढ़ा है.

अब गानों की लाइनों को ले कर जवान लड़केलड़कियां सोशल मीडिया पर रील बनाने लगे हैं. उन में से बहुत सी रील तो मशहूर हो जाती हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार, जहां के लोग भोजपुरी समझते हैं, वे इस को खूब प्रचारित करते हैं.

भोजपुरी फिल्मों और म्यूजिक की जो दुनिया है, वहां ज्यादातर कलाकार एससी और ओबीसी जाति से आते हैं. वे अपने गानों में अपनी जाति को ले कर फर्क महसूस करते हूं. कई गायकों ने तो ‘यादवजी का बेटा हूं’ गाना गाया है. ‘चमार एक्सप्रैस’ नाम से म्यूजिक चैनल है यूट्यूब पर, जिस में कई गानों की तर्ज पर ‘चमार’ शब्द को ले कर गाना गाया जाता है. लिहाजा, लड़कियां भी चाहती हैं कि ‘हमार पियवा करेला सरकारी नौकरी…’

ऐसे पति की चाहत

हर दौर में लड़कियां अपने लिए बेहतर पति की चाहत रखती रही हैं. जिस दौर में समाज सुधार के आंदोलन चले थे, मतलब तकरीबन 80 और 90 के दशक में तो लड़कियां दहेज मांगने वाले लड़कों को नापसंद करती थीं. प्रगतिशील विचारों वाली बहुत सी लड़कियां अपने नाम के आगे जाति का इस्तेमाल भी नहीं करती थीं.

ऐसी लड़कियां पढ़नेलिखने और अपने विचारों को जाहिर करने में भी आगे रहती थीं. कहानियों और लेखों में भी उन के विचार झलकते थे. 1990 के बाद जब मंडल कमीशन लागू हुआ और दलित और पिछड़ी जाति के लड़कों को सरकारी नौकरी मिलने लगी, वहां से लड़कियों की सोच में भी बदलाव आने लगा.

साल 2000 के आतेआते सरकारी नौकरी करने वालों के वेतनमान बढ़ गए. समाज में पैसा आया तो रिश्वतखोरी बढ़ी. राजनीति में सरकारी नौकरों का दखल हुआ तो कामचोरी भी शुरू हो गई. समाज में दिखावा बढ़ गया.

इस का असर शादियों पर भी पड़ने लगा. अगड़ी जातियों में तो लड़कियों की कोई राय ली ही नहीं जाती थी, अब एससी और ओबीसी लड़कियों ने भी समाज सुधार वाली बातें करनी छोड़ दीं. वे भी अगड़ी जाति की तर्ज पर शादियां करने लगीं.

एससी और ओबीसी में भी सरकारी नौकरी करने वाले लड़के मिलने लगे. ऐसे में दहेज का चलन बढ़ गया, जिस की वजह से सरकारी नौकरी करने वाले लड़कों की डिमांड बढ़ने लगी.

जो मातापिता दहेज दे कर सरकारी नौकरी वाला दामाद खरीदने की हैसियत में हो गए, वे अपनी बेटी के सुरक्षित भविष्य के लिए सरकारी नौकरी वाला दामाद लाने लगे. यह लड़की और उस के घरपरिवार के लिए इज्जत का सवाल हो गया.

जब आप लड़की की शादी का निमंत्रणपत्र ले कर किसी को न्योता देने के लिए जाते हैं, तो सामने वाला कहता है, ‘बहुत अच्छा… कन्यादान से बड़ा कोई दान नहीं. अच्छा, दामादजी करते क्या हैं?’

अगर आप ने इस सवाल के जवाब में यह कहा कि दामादजी सरकारी नौकरी में हैं तो वह खुशी ही जाहिर करेगा, भले ही मन में कुछ सोच रहा हो.

अब ऐसी खबरें नहीं आतीं

कुछ समय पहले तक अखबारों में यह खबर खूब छपती थी कि किसी लड़की ने बरात बैंरग लौटाई. इस खबर में लड़की को महिला सशक्तीकरण का उदाहरण बना कर पेश किया जाता था. अब ऐसी खबरें पढ़ने को नहीं मिलती हैं.

अब एससी और ओबीसी लड़कियों की शादी भी पूरे धूमधाम से होती है. लड़का केवल दहेज ही नहीं लेता है, बल्कि वह यह भी तय करता है कि शादी होटल में होगी या मैरिज हाल में? घर या गांव से शादी हो तो सजावट इस तरह की हो कि लोग देखते रह जाएं. शादी में दिखावा बढ़ गया है.

दहेज के पैकेज में यह भी शामिल होने लगा है कि बरात का स्वागत, खानपान, वीडियो, फोटो, आरकैस्ट्रा सब कैसा होगा? बरातियों का लेनदेन, नेग में क्याक्या होगा? जयमाल होगा और खाना मेजकुरसी पर होगा. नकद और चढ़ावा तो दहेज का मुख्य हिस्सा होता ही है.

लखनऊ यूनिवर्सिटी से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाले मनोज पासवान कहते हैं, ‘‘नौजवानों के प्रगतिशील विचारों में ठहराव आने के चलते दहेज जैसी सामाजिक बुराइयां हावी होने लगी हैं. पहले एससी और ओबीसी समाज के नौजवान सामाजिक बदलाव के लिए पढ़ाई और नौकरी करते थे. आज के नौजवानों की प्राथमिकता नौकरी और अच्छी शादी हो गई है.’’

महंगी हो गई हैं शादियां

सरकारी नौकरी वाले युवाओं की तादाद कम होने के चलते उन की डिमांड ज्यादा है. इस से दहेज की रकम बढ़ जाती है, जिस से शादियां महंगी होने लगी हैं. ओबीसी जाति में तो शादियों में होने वाला खर्च अगड़ी जातियों के बराबर ही होने लगा है.

एससी तबके में अभी यह खर्च दूसरों के मुकाबले कम है, पर जिन के पिता सरकारी नौकरी, राजनीति, कारोबार में है, वह किसी से कम खर्च न कर के ज्यादा ही करते हैं. दहेज मांगने वाले तो कुसूरवार हैं ही, लेकिन सरकारी पति और दामाद की चाहत रखने वाले भी कम कुसूरवार नहीं हैं.

आज के समय में यह कहा जाने लगा है कि अगर अच्छी नौकरी नहीं हुई तो शादी नहीं होगी. इस की एक वजह यह भी है कि अब लड़कियां पढ़लिख कर ही शादी कर रही हैं.

एससी और ओबीसी में एकल परिवार होने लगे हैं. लड़कियों के शादीब्याह के फैसलों में उन की मां की भूमिका बढ़ गई है. ऐसे में कम उम्र में किसी के साथ शादी करने का रिवाज नहीं रह गया है.

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