पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर आतंकी हमले के बाद पूरा देश आक्रोशित है, 38 जवानो के शवों को देखकर हर आंख भीगी है. हर जुबान से बस यही निकल रहा है कि बस अब बहुत हुआ… अब इन्हे छोड़ना नहीं है. जिस वक़्त देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद जवान के ताबूत को कंधा दिया वो पल पूरे देश को रुला गया. पुलवामा की घटना और इससे पहले हुई कई घटनाएं ना घटतीं अगर हमने मसूद अज़हर जैसे खूंखार आतंकी को अपने चंगुल से ना निकलने दिया होता. बहुत बड़ी गलती हो गई जब कंधार विमान हाईजैक के दौरान आतंकी मसूद अजहर को छोड़ा गया. अगर उसको उस वक़्त शूट कर दिया जाता तो शायद संसद, उरी, पठानकोट और अब पुलवामा में आतंकी हमले न होते.
पुलवाम की साजिश रचने वाला जैश-ए-मुहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर वही आतंकी है, जिसे कंधार विमान हाईजैक के दौरान रिहा करना पड़ा था. मसूद अजहर की रिहाई के बाद पाकिस्तान चौड़ा हो गया और उसकी शह पाकर ही मसूद ने आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद को जन्म दिया. इसमें कोई शक नहीं कि मसूद के आतंकी संगठन को जहां पाकिस्तानी सेना का पूरा सपोर्ट है वहीं चीन भी उसको पूरा सपोर्ट करता है और उसका इस्तेमाल भारत को परेशान करने के लिए करता है.
मसूद अजहर को साल 1994 में पहली बार गिरफ्तार किया गया था. कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन का सदस्य होने के आरोप में उस वक्त उसकी श्रीनगर से गिरफ्तारी हुई. मौलाना मसूद अजहर की गिरफ्तारी के बाद, जो कुछ हुआ उसका शायद किसी को अंदाजा भी नहीं था. अज़हर को छुड़ाने के लिए आतंकियों ने 24 दिसंबर, 1999 को 180 यात्रियों से भरे एक भारतीय विमान को नेपाल से अगवा कर लिया और विमान को कंधार ले गए. भारतीय इतिहास में यह घटना ‘कंधार विमान कांड’ के नाम से दर्ज है. कंधार विमान कांड के बाद भारतीय जेलों में बंद आतंकी मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक जरगर और शेख अहमद उमर सईद की रिहाई की मांग की गई और यात्रियों की जान बचाने के लिए छह दिन बाद 31 दिसंबर को आतंकियों की शर्त मानते हुए भारत सरकार ने मसूद अजहर समेत तीनों आतंकियों को छोड़ दिया. इसके बदले में कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए विमान के बंधकों समेत सभी को छोड़ दिया गया.
यहीं से शुरू हुई जैश की कहानी
जेल से छूटने के बाद मसूद अजहर ने फरवरी 2000 में जैश-ए-मुहम्मद आतंकी संगठन की नींव रखी, जिसका मकसद था भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देना और कश्मीर को भारत से अलग करना. उस वक्त सक्रिय हरकत-उल-मुदाहिददीन और हरकत-उल-अंजाम जैसे कई आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद में शामिल हो गए. खुद मसूद अजहर भी हरकत-उल-अंसार का महासचिव रह चुका है. साथ ही हरकत-उल-मुजाहिदीन से भी उसके संपर्क थे.
संसद, पठानकोट, उरी से लेकर पुलवामा हमले में जैश का हाथ
यह कोई पहली बार नहीं है, जब जैश ने भारत को दहलाने की कोशिश की हो. साल 2001 में संसद हमले से लेकर उरी और पुलवामा हमले में जैश का हाथ रहा है. अपनी रिहाई और आतंकी संगठन की स्थापना के दो महीने के भीतर ही जैश ने श्रीनगर में बदामी बाग स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली थी.
बड़े आतंकी हमले में जैश का हाथ
28 जून, 2000:
जम्मू कश्मीर सचिवालय की इमारत पर हमला. जैश ने ली हमले की जिम्मेदारी.
14 मई, 2002:
जम्मू-कश्मीर के कालूचक में हुए हमले में 36 जवान शहीद हो गए, जबकि तीन आतंकी मारे गए.
1, अक्टूबर 2008:
जैश के तीन आत्मघाती आतंकी विस्फोटक पदार्थों से भरी कार लेकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा परिसर में घुस गए. इस घटना में 38 लोग मारे गए.
26/11 मुंबई हमला:
26/11 मुंबई आतंकी हमले को भी जैश ने अंजाम दिया था. 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में समुद्र के रास्ते आए 10 आतंकियों ने 72 घंटे तक खूनी तांडव किया था. इस हमले में 166 लोग मारे गए थे, जबकि कई घायल हो गए थे. इस हमले का मास्टर माइंड भी मसूद अजहर रहा है. मुंबई हमले में 9 आतंकी भी मारे गए थे. इस में एक जिंदा आतंकी आमिर अजमल कसाब को भी पकड़ा गया था, जिसे बाद में फांसी की सजा दी गई.
संसद हमला
13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले के पीछे भी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के आतंकियों का हाथ. इस हमले में 6 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, जबकि तीन संसद भवन कर्मी भी मारे गए. संसद हमले का दोषी अफजल गुरु भी जैश से जुड़ा था. उसे 10 फरवरी 2013 में फांसी दी गई थी.
पठानकोट हमला
जनवरी 2016 को पंजाब के पठानकोट स्थित वायु सेना ठिकाने पर हमले के लिए भी ज़िम्मेदार. इस हमले में वायुसेना और एनएसजी के कुल सात सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे. दो दिनों की मुठभेड़ के बाद सभी आतंकियों को मार गिराया गया था.
उरी हमला
18 सितंबर, 2016 में कश्मीर के उरी स्थित सैन्य ठिकाने पर हुए हमले में भी जैश का हाथ रहा है. उरी हमले में 18 सैनिक शहीद हो गए थे. इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी और पीओके में घुसकर कई आतंकी ठिकानों का खात्मा कर दिया था.
आतंकी संगठनों की सूची में शामिल ‘जैश’
जैश-ए-मुहम्मद को भारत ने ही नहीं बल्कि ब्रिटेन, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र भी आतंकी संगठनों की सूची में शामिल कर चुका है. हालांकि अमेरिका के दबाव के बाद पाकिस्तान ने भी साल 2002 में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था, मगर अंदर ही अंदर सेना का पूरा सपोर्ट जैश को मिलता रहा. भारत मसूद अज़हर के प्रत्यर्पण की पाकिस्तान से कई बार मांग कर चुका है, लेकिन पाकिस्तान हर बार सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए इस मांग को नामंजूर कर देता है. इसके लिए उसे चीन की मदद भी बराबर मिल रही है. चीन ने तो मसूद अज़हर को आतंकी मानने तक से इंकार कर दिया है.
भारत को अब अपने पड़ोसी देशों – पकिस्तान और चीन से टक्कर लेने और और उनको कड़ा सबक सिखाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए. सांप को दूध पिलाने से वो अपनी प्रवृत्ति नहीं छोड़ देगा, पुलवामा के बाद तो हमें ये बाद अच्छी तरह समझ में आ जानी चाहिए.