देश के शिक्षा संस्थानों में बड़ेबड़े लैक्चर दिए जाते हैं कि युवाओं को शराफत से रहना चाहिए, सच बोलना चाहिए, कानून मानना चाहिए. पर हालत यह है कि खुद ये शिक्षा संस्थान बेईमानी, चोरी, झूठ, धोखेबाजी, अनाचार, अत्याचार, बलात्कार का पाठ पढ़ाने वाले बन कर रह गए हैं. इस के जिम्मेदार भटके युवा नहीं, उन के मातापिता नहीं, दिशाहीन समाज नहीं, बल्कि शिक्षक और अधिकारी हैं.
अभी हाल ही में बिहार के मोतिहारी के विश्वविद्यालय के एक वाइस चांसलर अरविंद कुमार अग्रवाल ने अपने पद से इस्तीफा दिया क्योंकि उन की डिगरियों पर शक था और वे सुबूत पेश नहीं कर पाए. राष्ट्रपति के पास इसे ऐक्सैप्ट करने के अलावा चारा न था. वर्षों पहले ली गई डिगरियां झूठी पाई गईं यानी इतने साल तक एक झूठा व्यक्ति युवाओं को सदाचार का पाठ पढ़ाता रहा.
शिक्षा का विश्वदूत मानने वाली सरकार को 2014 के बाद 9वें वाइस चांसलर को निकालना पड़ा क्योंकि उन पर आरोप लगे थे. विश्व भारती, हेमवती नंदन बहुगुणा, इलाहाबाद, दिल्ली, जामिया मिलिया जैसे नामी विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर झूठे पाए गए हैं.
हमारे यहां पढ़ाई के नाम पर जगहजगह धंधे चल रहे हैं. कुछ को छोड़ कर सारे छात्र सिर्फ जुगाड़बाजी में लगे रहते हैं. पढ़ने से ज्यादा गुंडई का राज है क्योंकि शिक्षक अपनी सहूलियतों को ले कर धरनेप्रदर्शन करते रहते हैं. कक्षाओं में कोचिंग की बात होती है तो कोचिंग क्लासों में पेपर लीक करने की. यूनिवर्सिटी सरकारी हो या प्राइवेट, वहां आधे से ज्यादा शिक्षक झूठी, आधीअधूरी डिगरियों के बल पर नौकरियां पाते हैं और ड्यूटी के दौरान उन का समय ज्ञान देनेलेने में नहीं, बेईमानी करने में व्यतीत होता है.
जिस देश में शिक्षा को विरासत मान लिया गया हो, उस का यही हाल होगा. यहां तो 10-20 पीढ़ी पहले किसी ने 4 वेद पढ़ लिए तो आने वाली सारी पीढि़यां चतुर्वेदी हो जाती हैं, कभी किसी ने कुछ पढ़ लिया तो उस की संतानें त्रिपाठी बन जाती हैं. यहां शिक्षा का व्यक्ति के चरित्र से कुछ लेनादेना नहीं.
अगर यहां कुछ तेज हैं तो सिर्फ इसलिए कि इस देश की जमीन इतनी उपजाऊ है कि यहां असली फसल जैसे अपनेआप हो जाती है, वैसे ही योग्य व्यक्ति भी खुदबखुद तैयार हो जाते हैं. यह देश का सुनहरा पक्ष है कि हम बड़े देश होने के कारण सिर को कुछ तो उठा कर चल लेते हैं.