दलितों की बदहाली

सुप्रीम कोर्ट भी किस तरह दलितों को जलील करता है इस के उदाहरण उस के फैसलों में मिल जाएंगे. देशभर में दलितों को बारबार एहसास दिलाया जाता है कि संविधान में उन्हें बहुत सी छूट दी हैं पर यह कृपा है और उस के लिए उन्हें हर समय नाक रगड़ते रहनी पड़ेगी. महाराष्ट्र म्यूनिसिपल टाउनशिप ऐक्ट में यह हुक्म दिया गया है कि अगर दलित या पिछड़ा चुनाव लड़ेगा तो उस को अपनी जाति का सर्टिफिकेट नौमिनेशन के समय या चुने जाने के 6 महीने में देना होगा.

यह अपनेआप में उसी तरह का कानून है जैसा एक जमाने में दलितों को घंटी बांध कर घूमने के लिए बना था ताकि वे ऊंची जातियों को दूर से बता सकें कि वे आ रहे हैं. यह वैसा ही है जैसा केरल की नीची जाति की नाडार औरतों के लिए था कि वे अपने स्तन ढक नहीं सकतीं ताकि पता चल सके कि वे दलित अछूत हैं. दोनों मामलों में इन लोगों से जी भर के काम लिया जा सकता था पर दूरदूर रख कर.

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कानून यह भी कहता है कि हर समय अपना जाति प्रमाणपत्र रखो. क्यों? ब्राह्मणों को तो हर समय या कभी भी अपना जाति सर्टिफिकेट नहीं चाहिए होता तो पिछड़े दलित ही क्यों लगाएं? क्यों वे कलेक्टर, तहसीलदार से अपना सर्टिफिकेट बनवाएं? उन्होंने किसी आरक्षित सीट के लिए कह दिया कि वे पिछड़े या दलित हैं तो मान लिया जाए. आज 150 साल की अंगरेजी पढ़ाई, बराबरी के नारों के बावजूद भी क्यों जाति का सवाल उठ रहा है? क्या पढ़ेलिखे विद्वानों के लिए 150 साल का समय कम था कि वे जाति का सवाल ही नहीं मिटा सकते थे? जब हम मुगलों और ब्रिटिशों के राज से छुटकारा पा सकते थे तो क्या दलित पिछड़े के तमगों से नहीं निकल सकते थे?

यहां तो उलट हो रहा है. शंकर देवरे पाटिल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उस कानून को सही ठहराया है जिस ने यह जबरन कानून थोप रखा है कि आरक्षित सीट पर खड़े होना है तो सर्टिफिकेट लाओ. यह अपमानजनक है. यह दलितों, पिछड़ों को एहसास दिलाने के लिए है कि वे निचले, गंदे, पैरों की धूल हैं. यह बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ है.

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दलितों और पिछड़ों को जो भी छूट मिले उन्हें बिना किसी प्रमाणपत्र लटकाए मिलनी चाहिए. अगर ऊंची जाति का कोई उस का गलत फायदा उठाए तो उस के लिए सजा हो, दलित पिछड़े के लिए नहीं. वैसे भी ऊंची जाति का कोई दलित पिछड़े को दोस्त तक नहीं बनाता, वह उन की जगह कैसे लेगा? ऊंची जातियों का आतंक इतना है कि नीची जाति वाले तो हर समय चेहरे पर ही वैसे ही अपने सर्टिफिकेट गले में लटकाए फिरते हैं. नरेंद्र मोदी कहते रहें कि हिंदू आतंकवादी नहीं हैं पर लठैतों के सहारे दलितों और पिछड़ों पर जो हिंदू आतंक 150 साल में नई हवा के बावजूद भी बंद नहीं हुआ, वह सुप्रीम कोर्ट की भी मोहर इसी आतंकवाद की वजह से पा जाता है.

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