हमारे देश के शहरों के बाजारों में अगर बेहद भीड़ दिखती है तो वह ज्यादा ग्राहकों की वजह से तो है ही, असली वजह ज्यादा दुकानदार हैं. लगभग हर शहर और यहां तक कि बड़े गांवों में भी दुकानें तो अपना सामान दुकान के बाहर रखती हैं, उस के बाद पटरी दुकानदार अपनी रेहड़ी या कपड़ा या तख्त लगा कर सामान बेचने लगते हैं. बाजार में भीड़ ग्राहकों के साथ इन दुकानदारों और उन की पब्लिक की घेरी जगह होती है.
कोविड को फैलाने में जहां कुंभ जैसे धार्मिक और पश्चिम बंगाल व बिहार जैसे चुनाव जिम्मेदार हैं, ये बाजार भी जिम्मेदार हैं. इन बाजारों में यदि पटरी दुकानदार न हों और हर दुकानदार अपना सामान दुकान में अंदर रखे तो किसी भी बाजार में भीड़ नजर आएगी ही नहीं.
पटरी दुकानदारों को असल में लगता है कि पब्लिक की जमीन तो गरीब की जोरू है जो सब की साझी है. उन्हें और कुछ नहीं आता, कोई हुनर नहीं है, खेती की जगह बची नहीं हैं, कारखाने लग नहीं रहे, आटोमेशन बढ़ रहा है तो एक ही चीज को एक ही बाजार में बेचने वाले 10 पैदा हो जाते हैं जो पटरी पर दुकान जमा कर बैठ जाते हैं और ग्राहकों के लिए फुट भर की जगह नहीं छोड़ते.
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यह सीधासादा हिसाब भारत में लोगों को समझ नहीं आता क्योंकि यहां लोगों में हुनर की कमी है और भेड़चाल ज्यादा है. एक ने देखा कि किसी के जामुन बिक रहे हैं तो 4 दिन में 20-25 दुकानदार उसी जामुन को बेचने लगेंगे. उन्हें कुछ और आता ही नहीं. 20-25 बेचने वालों का पेट ग्राहक पालते हैं, 20-25 दुकानदारों ने जो रिश्वत पुलिस या कमेटी वालों को दी, वह ग्राहक देता है और जो माल 20-25 जगह सड़ा या बिखरा वह ग्राहक से वसूला जाता है.
हमारे दुकानदार न केवल बेवकूफ हैं अब कोरोना के शाही घुड़सवार बन रहे हैं. उन की वजह से चौड़े बाजारों में ग्राहकों के लिए संकरी सी जगह चलने के लिए बच रही है. दिल्ली में कई मार्केटें बंद कर दी गईं क्योंकि लौकडाउन हटते ही पटरी दुकानदार आ गए और ग्राहकों को सटसट कर चलने को मजबूर करने लगे.
अब बेचारगी के नाम पर ढील नहीं दी जा सकती. गरीब दुकानदारों को कोई और हुनर ही सीखना होगा. भाजपा ने धर्म की दुकानें खोल रखी हैं, वहीं जाओ पर कोरोना तो वहां से भी फैलेगा.
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इन पटरी दुकानदारों को चाहे कितना बेचारा और गरीब कह लो पर अब इन की मौजूदगी पूरी जनता के लिए खतरनाक है. ग्राहकों को अब पूरा स्पेस चाहिए ताकि डिस्टैंस बना रहे. ग्राहक और दुकानदार दोनों के लिए यह जरूरी है. इस तरह के बाजार हमेशा से दुनियाभर में बनते हैं और चलते हैं पर अब समय आ गया है जब दुकानें पक्की ही हों, बड़ी हों और उन में ग्राहकों को चलने की अच्छी जगह मिले.
पब्लिक की सड़कों और बाजारों को अब बेचारे गरीब दुकानदारों के नाम पर कुरबान नहीं किया जा सकता, यह खतरनाक है. वैसे भी पटरी दुकानदार सस्ते पड़ते हैं, यह गलतफहमी है. वे बेकार में अपना समय खर्च करते हैं और इस समय की कीमत उस ग्राहक से वसूलते हैं जो उस सामान को खरीदना चाहता है. यदि एक चीज को खरीदने के लिए दिन में 100 ग्राहक बाजार आते हैं और 1-2 दुकानदारों से खरीदते हैं तो उन्हें काफी मुनाफा होगा और वे दाम कम रख सकेंगे. जब वही चीज 30-40 दुकानदार बेचेंगे तो दाम घटेंगे नहीं बढ़ेंगे क्योंकि हर दुकानदार अपनी मेहनत का पैसा वसूलेगा.
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