हर दुकानदार अपनी मेहनत का पैसा वसूलेगा!

हमारे देश के शहरों के बाजारों में अगर बेहद भीड़ दिखती है तो वह ज्यादा ग्राहकों की वजह से तो है ही, असली वजह ज्यादा दुकानदार हैं. लगभग हर शहर और यहां तक कि बड़े गांवों में भी दुकानें तो अपना सामान दुकान के बाहर रखती हैं, उस के बाद पटरी दुकानदार अपनी रेहड़ी या कपड़ा या तख्त लगा कर सामान बेचने लगते हैं. बाजार में भीड़ ग्राहकों के साथ इन दुकानदारों और उन की पब्लिक की घेरी जगह होती है.

कोविड को फैलाने में जहां कुंभ जैसे धार्मिक और पश्चिम बंगाल व बिहार जैसे चुनाव जिम्मेदार हैं, ये बाजार भी जिम्मेदार हैं. इन बाजारों में यदि पटरी दुकानदार न हों और हर दुकानदार अपना सामान दुकान में अंदर रखे तो किसी भी बाजार में भीड़ नजर आएगी ही नहीं.

पटरी दुकानदारों को असल में लगता है कि पब्लिक की जमीन तो गरीब की जोरू है जो सब की साझी है. उन्हें और कुछ नहीं आता, कोई हुनर नहीं है, खेती की जगह बची नहीं हैं, कारखाने लग नहीं रहे, आटोमेशन बढ़ रहा है तो एक ही चीज को एक ही बाजार में बेचने वाले 10 पैदा हो जाते हैं जो पटरी पर दुकान जमा कर बैठ जाते हैं और ग्राहकों के लिए फुट भर की जगह नहीं छोड़ते.

ये भी पढ़ें- देश का शासक चाहे जैसा हो, देश तो चलेगा!

यह सीधासादा हिसाब भारत में लोगों को समझ नहीं आता क्योंकि यहां लोगों में हुनर की कमी है और भेड़चाल ज्यादा है. एक ने देखा कि किसी के जामुन बिक रहे हैं तो 4 दिन में 20-25 दुकानदार उसी जामुन को बेचने लगेंगे. उन्हें कुछ और आता ही नहीं. 20-25 बेचने वालों का पेट ग्राहक पालते हैं, 20-25 दुकानदारों ने जो रिश्वत पुलिस या कमेटी वालों को दी, वह ग्राहक देता है और जो माल 20-25 जगह सड़ा या बिखरा वह ग्राहक से वसूला जाता है.

हमारे दुकानदार न केवल बेवकूफ हैं अब कोरोना के शाही घुड़सवार बन रहे हैं. उन की वजह से चौड़े बाजारों में ग्राहकों के लिए संकरी सी जगह चलने के लिए बच रही है. दिल्ली में कई मार्केटें बंद कर दी गईं क्योंकि लौकडाउन हटते ही पटरी दुकानदार आ गए और ग्राहकों को सटसट कर चलने को मजबूर करने लगे.

अब बेचारगी के नाम पर ढील नहीं दी जा सकती. गरीब दुकानदारों को कोई और हुनर ही सीखना होगा. भाजपा ने धर्म की दुकानें खोल रखी हैं, वहीं जाओ पर कोरोना तो वहां से भी फैलेगा.

ये भी पढ़ें- खराब सिस्टम और बहकता युवा

इन पटरी दुकानदारों को चाहे कितना बेचारा और गरीब कह लो पर अब इन की मौजूदगी पूरी जनता के लिए खतरनाक है. ग्राहकों को अब पूरा स्पेस चाहिए ताकि डिस्टैंस बना रहे. ग्राहक और दुकानदार दोनों के लिए यह जरूरी है. इस तरह के बाजार हमेशा से दुनियाभर में बनते हैं और चलते हैं पर अब समय आ गया है जब दुकानें पक्की ही हों, बड़ी हों और उन में ग्राहकों को चलने की अच्छी जगह मिले.

पब्लिक की सड़कों और बाजारों को अब बेचारे गरीब दुकानदारों के नाम पर कुरबान नहीं किया जा सकता, यह खतरनाक है. वैसे भी पटरी दुकानदार सस्ते पड़ते हैं, यह गलतफहमी है. वे बेकार में अपना समय खर्च करते हैं और इस समय की कीमत उस ग्राहक से वसूलते हैं जो उस सामान को खरीदना चाहता है. यदि एक चीज को खरीदने के लिए दिन में 100 ग्राहक बाजार आते हैं और 1-2 दुकानदारों से खरीदते हैं तो उन्हें काफी मुनाफा होगा और वे दाम कम रख सकेंगे. जब वही चीज 30-40 दुकानदार बेचेंगे तो दाम घटेंगे नहीं बढ़ेंगे क्योंकि हर दुकानदार अपनी मेहनत का पैसा वसूलेगा.

ये भी पढ़ें- खुले रैस्तराओं का समय

जनता की जान बचाने के लिए डंडाधारी पुलिस होना जरूरी है?

इस देश की पुलिस पूरी तरह से कोरोना से लड़ने को तैयार है जैसे वह हर आपदा में तैयार रहती है. हर आपदा में पुलिस का पहला काम होता है कि निहत्थे, बेगुनाहों, बेचारों और गरीबों को कैसे मारापीटा जाए. चाहे नोटबंदी हो, चाहे जीएसटी हो, चाहे नागरिक कानून हों, हमारी पुलिस ने हमेशा सरकार का पूरा साथ दे कर बेगुनाह गरीबों पर जीभर के डंडे बरसाए हैं. किसान आंदोलन में भी लोगों ने देखा और उस से पहले लौकडाउन के समय सैकड़ों मील पैदल चल रहे गरीब मजदूरों की पिटाई भी देखी.

किसी भी बात पर पुलिस सरकार की हठधर्मी के लिए उस के साथ खड़ी होती है और जरूरत से ज्यादा बल दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती. पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, तमिलनाडु में केंद्र के साथ पार्टियों की पुलिस 5 नहीं 50,000 से 5 लाख तक लोगों के गृह मंत्री या प्रधानमंत्री की चुनावी भीड़ को कोरोना के खिलाफ नहीं मान रही थी पर अब जब चुनाव खत्म हो गए हैं, हर चौथे दिन एकदो घटनाएं सामने आ ही जाती हैं, जिन में लौकडाउन को लागू कराने के लिए धड़ाधड़ डंडे बरसाए जा रहे थे.

ये भी पढ़ें- भारतीय जनता पार्टी की हार: नहीं चला धार्मिक खेल

भारत की जनता अमेरिकी जनता की तरह नहीं जो पुलिस से 2-2 हाथ भी कर सकती है. यह तो वैसे ही डरीसहमी रहती है. बस भीड़ हो तो थोड़ी हिम्मत रहती है पर इस पर जो बेरहमी बरती जाती है वह अमेरिका के जार्ज फ्लायड की हत्या की याद दिलाती है. फर्क इतना है कि अमेरिका में दोषी पुलिसमैन को लंबी जेल की सजा दी गई. यहां 5-7 दिन लाइनहाजिर कर इज्जत से बुला लिया जाएगा.

अदालत में तो मामला चलाना ही बेकार है क्योंकि पुलिस वालों के अत्याचार, डंडों, मामलों में फंसा देने की धमकियों से गवाह आगे आते ही नहीं.  कोविड की तैयारी भी यहां पुलिस कर रही है, अस्पताल, डाक्टर, लैब या दवा कंपनियां नहीं. सरकार को मालूम है कि पुलिस हर मौके का पूरा नाजायज फायदा उठाएगी.  कोविड के लिए लौकडाउन में जो लोग सड़क पर चल रहे हैं या दुकान चला रहे हैं वे अपने लिए खुद जोखिम ले रहे हैं. वे नियम तोड़ रहे हैं पर दूसरों से ज्यादा नुकसान उन्हीं को है. सिर्फ इसलिए उन पर डंडे बरसाना कि आदेश को तोड़ा जा रहा है बेरहमी है. यह सिनेमाघर के आगे टिकट के लिए लगी लंबी लाइन पर आंसू गैस छोड़ने की तरह है क्योंकि इस से किसी और को नुकसान नहीं हो रहा है.

ये भी पढ़ें- क्या सरकार के खिलाफ बोलना गुनाह है ?

पुलिस असल में मौका ढूंढ़ती है कि अपनी ताकत आम जनता को दिखा सके ताकि हर समय दहशत का माहौल बना रहे. यहां आमतौर पर शिकायत करने वालों को भी शक की निगाह से देखा जाता है. सिर्फ खेलेखाए लोग ही पुलिस की मिलीभगत से शिकायतें करने की हिम्मत करते हैं. गरीब आदमी तो दूसरों की मार भी खा लेता है पुलिस की भी.  उम्मीद थी कि कोरोना में लोग बाहर न निकलें, इसे समझाने के लिए सत्ता में बैठी पार्टियों के पेशेवर ग्राहक आगे आएंगे. लेकिन उन्हें तो वोट चाहिए, मंदिर चाहिए, सत्ता चाहिए, ठेके चाहिए. जनता की जान बचानी है तो डंडाधारी पुलिस ही है उन के पास. बस, यही इस देश की हालत है.

2000 से अधिक बच्चे चिन्हित मिलेगा मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना का लाभ

लखनऊ. कोरोना काल में निराश्रित बच्चों के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ा कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की शुरुवात की है. महामारी से प्रभावित इन पात्र बच्चों की देखभाल, भरण पोषण, शिक्षा और आर्थिक सहायता की जिम्मा अब योगी सरकार उठाएगी. उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ महामारी के समय एक ओर प्रदेशवासियों को कोरोना के प्रकोप से बचा रहे हैं तो दूसरी कठिन समय में अपनों के दूर चले जाने से मायूस बच्चों के लिए भी संवेदनशील हैं. कई बार सीएम योगी आदित्यनाथ का वात्सल्य रूप सभी को देखने को मिला है. ऐसे में योगी सरकार द्वारा इस बड़ी योजना की शुरुवात किए जाने से सीधे तौर पर प्रदेश के जरूरतमंद प्रभावित बच्चों को राहत मिलेगी.

बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ विशेष गुप्ता ने बताया कि सीएम योगी आदित्यनाथ शुरू से ही बच्चों के लिए बेहद संवेदनशील रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के प्रभावित बच्चों के लिए बड़ी योजना की शुरुआत कर सीएम आदित्यनाथ बच्चों के लिए नाथ बन गए हैं. उन्होंने बताया कि प्रदेश में ऐसे लगभग 2000 बच्चों को अब तक चिन्हित किया जा चुका है अब इन सभी बच्चों में योजना के अनुसार पात्र बच्चों को चयनित कर योगी सरकार सीधा लाभ देगी.

मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की होगी मॉनिटरिंग

डॉ विशेष गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में पात्र बच्चों को लाभ मिल सके इसके लिए प्रदेश में इस योजना की मॉनिटरिंग का कार्य भी किया जाएगा. उन्होंने बताया कि जनपद स्तर पर जिला प्रोबेशन अधिकारी के नियंत्रण में बनी समितियां जैसे बाल कल्याण समिति, जिला बाल संरक्षण इकाई और ग्रामीण इलाकों में निगरानी समितियां इसकी मॉनिटरिंग करेंगी. इसके साथ ही प्रत्येक जनपद स्तर पर जिला अधिकारी और प्रदेश स्तर पर बाल संरक्षण आयोग भी इसकी निगरानी करेंगे.

प्रदेश में युद्धस्तर पर किया जा रहा योजना पर काम

महिला कल्याण विभाग के निदेशक मनोज कुमार राय ने बताया कि महिला कल्याण विभाग ने प्रदेश के सभी जनपदों के डीएम को ऐसे सभी बच्चों की सूची तैयार कर भेजने के आदेश दिए हैं. जिससे ऐसे सभी बच्चों के संबंध में सूचनायें संबंधित विभागों, जिला प्रशासन को पूर्व से प्राप्त सूचनाओं, चाइल्ड लाइन, विशेष किशोर पुलिस इकाई, गैर सरकारी संगठनों, ब्लाॅक तथा ग्राम बाल संरक्षण समितियों, कोविड रोकथाम के लिए विभिन्न स्तरों पर गठित निगरानी समितियों और अन्य बाल संरक्षण हितधारकों के सहयोग व समन्वय किया जा रहा है.

डरने की नहीं है बात योगी जी हैं साथ

योजना के जरिए उन बच्चों को लाभ मिलेगा जिन्होंने अपने माता पिता या दोनो में. से एक कमाऊ सदस्य को एक मार्च 2020 के बाद महामारी के दौरान को दिया है. माता पिता किसी एक को मौत के बाद दिसरे की वार्षिक आय दो लाख से कम है तो उसको योजना का लाभ मिलेगा. इसके साथ ही 10 साल से कम आयु के निराश्रित बच्चों की देखभाल प्रदेश व केंद्र सरकार के मथुरा, लखनऊ, प्रयागराज, आगरा, रामपुर के बालगृहों में की जाएगी. इसके साथ ही अवयस्क बच्चियों की देखभाल और पढ़ाई के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में रखा जाएगा. 18 अटल आवासीय विद्यालयों में भी उनकी देखभाल की जाएगी.

कोरोनल डिप्रेशन का बढ़ता खतरा

लेखक- धीरज कुमार   

जिस तरह से अपने देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर बढ़ रही है और पूरे देश में संक्रमित लोगों की तादाद रोजाना बढ़ती जा रही है, उस से डाक्टरों के साथसाथ आम लोग भी कोरोना वायरस के बदले हुए स्ट्रेन के चलते चिंतित और परेशान हैं. हर किसी के मन में यह लग रहा है कि कहीं वह कोरोना वायरस से ग्रसित न हो जाए.

कुछ पढ़ेलिखे और समझदार लोग मास्क लगा रहे हैं और दूरी का पालन कर रहे हैं, वहीं कुछ बेपरवाह लोग मौजमस्ती में हाटबाजार और सड़कों पर घूमते नजर आ रहे हैं. कुछ सम झदार लोग वायरस से बचाव के लिए काफी एहतियात बरत रहे हैं, ठंडी चीजों से परहेज कर रहे हैं, गरम पानी पी रहे हैं व भीड़भाड़ से अपनेआप को दूर रख रहे हैं.

कुछ लोग टीका लगवाने की भी कोशिश कर रहे हैं, ताकि इस बीमारी के जोखिम से बचा जा सके, वहीं कुछ लोग कोरोना वायरस के चलते जितने ज्यादा चिंतित हो गए हैं कि एक तरह से डिप्रैशन का शिकार हो गए हैं.

वैसे तो लोग बारबार हाथ धो रहे हैं, तरहतरह के सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं, यहां तक तो ठीक है, लेकिन कुछ लोग बारबार अपनी सांसें चैक कर के देख रहे हैं. कुछ लोग टैलीविजन और दूसरे मीडिया में खबरें देख कर जिनजिन लक्षणों के बारे में बताया जा रहा है, उन्हें खुद में ढूंढ़ कर अपनेआप को शक के घेरे में डाल रहे हैं. ऐसा करना सही नहीं है.

शक की इसी बीमारी को कोरोनल डिप्रैशन का नाम दिया जा रहा है. आज इस तरह के डिप्रैशन से सैकड़ों लोग पीडि़त हो चुके हैं. कई लोगों को इस डिप्रैशन की वजह से नींद नहीं आ रही है. कई लोग बारबार नींद खुलने की शिकायतें भी कर रहे हैं. मन में घुसे इस डर की वजह से सिरदर्द और चिंता होना लाजिमी है.

संजीव कुमार रोहतास, बिहार में एक कालेज में पढ़ाते हैं. उन्होंने बताया, ‘‘कई बार बुरे सपनों के चलते मेरी नींद टूट जा रही है. ऐसा लग रहा है कि मुझे कोरोना हो चुका है. खुद के तापमान को बारबार नापने की कोशिश करता हूं. अपनी सांसें रोक कर चैक कर रहा हूं.

‘‘कभी गुड़, तो कभी गोल मिर्च (गोलकी मसाला) खा कर अपनेआप को टैस्ट करने की कोशिश कर रहा हूं कि कहीं खाने का स्वाद तो नहीं चला गया है? कहीं मेरी सांसें तो नहीं अटक रही हैं? सीने में दर्द तो नहीं हो रहा है? ऐसा मन में डर के चलते हो रहा है.

‘‘पर, जब मैं डाक्टर के पास गया, तो उन्होंने मु झे पूरी तरह से ठीक बताया और जरूरत पड़ने पर नींद की गोली खाने को दे दी. अब मैं इस वहम से छुटकारा पा गया हूं.’’

वहीं डेहरी ओन सोन की रहने वाली मंजू देवी का कहना है, ‘‘घर पर कोई आ रहा है, तो मु झे इस बात का डर रहता है कि कहीं उन से मैं भी कोविड 19 से ग्रस्त न हो जाऊं. मैं काफी डरी हुई हूं. ऐसे माहौल में मैं क्या करूं, सम झ में नहीं आ रहा है. दिनरात चिंता के चलते सिर में दर्द और नींद नहीं आने की बीमारी हो गई है.

ये भी पढ़ें- प्यार सबकुछ नहीं जिंदगी के लिए 

‘‘कभीकभी तो शक के चलते जब तक खुद को साफसुथरा नहीं कर लेती हूं, तब तक अपने बच्चों के पास भी  नहीं जा पाती हूं. कभी बीच में उठ कर अपने बच्चों को चैक करती हूं, तो कभी खुद को.’’

इस तरह की बेवजह की चिंता और घबराहट बढ़ने की अहम वजह है कि टैलीविजन और दूसरे मीडिया में यह दिखाया जा रहा है कि श्मशान घाटों पर अनेक लाशें रोजाना जल रही हैं. वहां लंबीलंबी कतारें लगी हुई हैं. अस्पताल के बाहर उन के परिवार वालों को चीखतेचिल्लाते हुए दिखाया जा रहा है. देशभर में औक्सीजन सिलैंडर की काफी कमी हो गई है. उन के लिए जगहजगह मारामारी हो रही है.

इस तरह की खबरें सभी चैनलों पर कमोबेश दिखाई जा रही हैं. यह सब आम लोगों में डर पैदा कर रहा है. इस तरह की खबरों से लोगों में घबराहट बढ़ रही है और इस घबराहट से उन में डिप्रैशन बढ़ रहा है.

कुछ लोगों को तो यह लग रहा है कि इस महामारी के बाद वे अपनेआप को बचा पाएंगे या नहीं?

इतना ही नहीं, कुछ लोग मोबाइल पर और मीडिया में देख रहे वीडियो को एकदूसरे को भेज रहे हैं, जिस से डर का माहौल बनता जा रहा है. ऐसे में सम झ में नहीं आ रहा है कि कुछ लोग अपने परिवार वालों को जागरूक कर रहे हैं या उन्हें डरा रहे हैं? हालांकि यह डर लाजिमी है, लेकिन कुछ लोगों में डर इतना बढ़ गया है कि उन में डिप्रैशन बढ़ता ही जा रहा है.

सासाराम के अर्ष मल्टीस्पैशलिटी नर्सिंगहोम के डायरैक्टर डाक्टर आलोक तिवारी का कहना है, ‘‘कोरोना की वजह से लोगों में घबराहट ज्यादा बढ़ गई है. कोरोना से पीडि़त की मौत कोरोना वायरस से कम, बल्कि घबराहट के चलते हार्टअटैक से ज्यादा हो रही है. कुछ लोग एहतियात के तौर पर पहले से ही काढ़ा पी रहे हैं, अपने ऊपर तरहतरह के प्रयोग कर रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसी चीजें लिवर के लिए नुकसान देने वाली हो सकती हैं.

‘‘सरकार द्वारा जारी कोरोना गाइडलाइन का पालन करें. पर इस के लिए दहशत में पड़ने की जरूरत नहीं है. अगर किसी आदमी में कोरोना के लक्षण जैसे सर्दी, खांसी, बुखार, पेट खराब, शरीर में दर्द, आंखों का लाल हो जाना, थकावट जैसे लक्षण पाए जाते हैं, तो तुरंत अस्पताल में इस की जांच कराएं.

‘‘अगर जांच के बाद यह पता चलता है कि किसी को कोरोना हो गया है, तो घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि डाक्टर के निर्देशों का पूरी तरह से पालन करें.

‘‘वैसे, घर पर ही शरीर के तापमान को माप कर पता किया जा सकता है  कि बुखार है या नहीं. घर पर ही औक्सीमीटर से औक्सीजन लैवल को जांच सकते हैं. अगर औक्सीजन लैवल 94 से नीचे आ रहा है तो अस्पताल में जाने की जरूरत है, वरना घर पर भी इलाज किया जा सकता है.’’

घबराने से काम नहीं चलेगा. घर पर रह कर डाक्टर के निर्देशों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए. पौष्टिक आहार, जैसे फलसब्जियां वगैरह का सेवन करें. सांस लेने की कसरत करनी चाहिए. साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए. सब से जरूरी बात है कि खुद को घर के दूसरे लोगों से अलग कमरे में कर लेना चाहिए, ताकि घर के बाकी लोग कोरोना वायरस की चपेट में न आने पाएं.

ये भी पढ़ें- पहले मिलन को कुछ इस तरह से बनाएं यादगार

सोशल मीडिया पर डाले गए तरहतरह के काढ़ा वगैरह के सेवन के बारे में भरम फैलाया जा रहा है. उस के बहुत ज्यादा सेवन से बचना चाहिए. बेवजह की चिंता भी नहीं करनी चाहिए. सब से जरूरी है कि भरम फैलाती खबरों से दूर रहना चाहिए.

अपने आसपास क्या हो रहा है, इस पर नजर जरूर रखनी चाहिए. घर की छत पर या अपने गार्डन में कसरत  करनी चाहिए. खुद को अफवाहों से दूर रख कर कोरोनल डिप्रैशन से बचा जा सकता है.

ब्लैक फंगस से निपटने को योगी सरकार ने कसी कमर

लखनऊ . उत्तर प्रदेश में कोविड संक्रमण की धीमी होती रफ्तार के बीच पैर-पसारते ब्लैक फंगस नाम की बीमारी से बचाव की तैयारी सरकार ने शुरू कर दी है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर एसजीपीजीआई, लखनऊ में ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार की दिशा तय करने के लिए 12 सदस्यीय वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम गठित कर दी गई है. इस टीम से अन्य चिकित्सक मार्गदर्शन भी ले सकेंगे.

एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमन की अध्यक्षता में विशेष टीम ने प्रदेश के विभिन्न सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों के डॉक्टरों को इलाज के बारे में प्रशिक्षण दिया. ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यशाला में डॉक्टरों को ब्लैक फंगस के रोगियों की पहचान, इलाज, सावधानियों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई.

इंतजाम में देरी नहीं: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ब्लैक फंगस की स्थिति की जानकारी लेते हुए इस मामले में ‘प्रो-एक्टिव’ रहने के निर्देश दिए है. सीएम योगी ने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड से उपचारित मरीजों खासकर अनियंत्रित मधुमेह की समस्या से जूझ रहे लोगों में ब्लैक फंगस की समस्या देखने मे आई है. उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देश दिए कि विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार इसके उपचार में उपयोगी दवाओं की उपलब्धता तत्काल सुनिश्चित कराई जाए. उन्होंने कहा है कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए आवश्यक गाइडलाइन जारी कर दी जाएं. सभी जिलों के जिला अस्पतालों में इसके उपचार की सुविधा दी जाए.

प्लास्टिक सर्जन डॉ. सुबोध कुमार सिंह बताते हैं कि म्यूकर माइकोसिस अथवा ब्लैक फंगस, चेहरे, नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है. इससे आँख सहित चेहरे का बड़ा भाग नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है. इसके लक्षण दिखते ही तत्काल उचित चिकित्सकीय परामर्श लेना बेहतर है. लापरवाही भारी पड़ सकती है.

इन मरीजों को बरतनी होगी खास सावधानी:

1- कोविड इलाज के दौरान जिन मरीजों को स्टेरॉयड दवा जैसे, डेक्सामिथाजोन, मिथाइल प्रेड्निसोलोन इत्यादि दी गई हो.

2- कोविड मरीज को इलाज के दौरान ऑक्सीजन पर रखना पड़ा हो या आईसीयू में रखना पड़ा हो.

3.डायबिटीज का अच्छा नियंत्रण ना हो.

4.कैंसर, किडनी ट्रांसप्लांट इत्यादि के लिए दवा चल रही हो.

यह लक्षण दिखें तो तुरंत लें डॉक्टरी सलाह:-

1.बुखार आ रहा हो, सर दर्द हो रहा हो, खांसी हो, सांस फूल रही हो.

2. नाक बंद हो. नाक में म्यूकस के साथ खून आ रहा हो.

3. आँख में दर्द हो. आँख फूल जाए, एक वस्तु दो दिख रही हो या दिखना बंद हो जाए.

4. चेहरे में एक तरफ दर्द हो , सूजन हो या सुन्न हो (छूने पर छूने का अहसास ना हो)

5. दाँत में दर्द हो, दांत हिलने लगें, चबाने में दर्द हो.

6. उल्टी में या खांसने पर बलगम में खून आये.

क्या करें :-

कोई भी लक्षण होने पर तत्काल सरकारी अस्पताल में या किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर से तत्काल परामर्श करें. नाक, कान, गले, आँख, मेडिसिन, चेस्ट या प्लास्टिक सर्जरी विशेषज्ञ से संपर्क कर तुरंत इलाज शुरू करें.

बरतें यह सावधानियां :-

  1. स्वयं या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टर के, दोस्त मित्र या रिश्तेदार की सलाह पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू ना करें.

2. लक्षण के पहले 05 से 07 दिनों में स्टेरॉयड देने से दुष्परिणाम होते हैं. बीमारी शुरू होते ही स्टेरॉयड शुरू ना करें.

इससे बीमारी बढ़ जाती है.

3. स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 05-10 दिनों के लिए देते हैं, वह भी बीमारी शुरू होने के 05-07 दिनों बाद केवल गंभीर मरीजों को. इसके पहले बहुत सी जांच आवश्यक है.

4. इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें कि इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं है. अगर है, तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं?

5. स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें.

6. घर पर अगर ऑक्सीजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नार्मल सलाइन डालें. बेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें