दो प्रेमियों को मिली प्यार करने की सबसे खतरनाक सजा

मनीष के पिता और दादा दोनों ही रेलवे कर्मचारी थे. इसलिए उस का जन्म और परवरिश आगरा की रेलवे कालोनी में हुई थी. उस की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. पिता नत्थूलाल रेलवे कर्मचारी थे ही, साथ ही मां विमलेश ने भी घर बैठे कमाई का अपना जरिया बना रखा था. वह आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर आनेजाने वाले ट्रेन चालकों व गार्डों के लिए खाने के टिफिन पैक कर के उन तक पहुंचाती थी. इस से उन्हें भी ठीक आमदनी हो जाती थी.

मनीष समय के साथ बड़ा होता चला गया. इंटरमीडिएट करने के बाद वह रेलवे के ठेकेदारों के साथ कामकाज सीखने लगा. फिर रेलवे के एक अफसर की मदद से उसे मकानों की पुताई के छोटेमोटे ठेके मिलने लगे. देखते ही देखते उस ने रेलवे की पूरी कालोनी में रंगाई पुताई का ठेका लेना शुरू कर दिया. वह ईमानदार था इसलिए उस के काम से रेलवे अधिकारी भी खुश रहते थे.

मोटी कमाई होने लगी तो मनीष के हावभाव, रहनसहन, खानपान सब बदल गया. महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते, नईनई बाइक पर घूमना मनीष का जैसे शौक था. 2-3 सालों में उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

वह जिस तरह कमा रहा था, उसी तरह दान आदि भी करता. गांव में गरीब लड़कियों की शादी में वह अपनी हैसियत के अनुसार सहयोग करता था. मोहल्ले में भी वह अपने बड़ों को बहुत सम्मान करता था. इन सब बातों से वह गांव में सब का चहेता बना हुआ था.

करीब 4-5 साल पुरानी बात है. मनीष का कामकाज जोरों पर चल रहा था. उसे रंगाई पुताई के कारीगरों की जरूरत पड़ी तो वह पास की ही बस्ती सोहल्ला पहुंच गया. वहां पता चला कि बंडा और मुन्ना नाम के दोनों भाई यह काम करते हैं.

वह इन दोनों के पास पहुंचा और बातचीत कर के अपने काम पर ले गया. मनीष को दोनों भाइयों का काम पसंद आया तो उन से ही अपने ठेके का काम कराने लगा. वह उन्हें अच्छी मजदूरी देता था इसलिए वे भी मनीष से खुश थे.

धीरेधीरे मनीष का मुन्ना के घर पर भी आनाजाना शुरू हो गया. इसी दौरान मनीष की आंखें मुन्ना की 17-18 साल की बहन माधवी से लड़ गईं. माधवी उन दिनों कक्षा-9 में पढ़ती थी. यह ऐसी उम्र होती है जिस में युवत युवती विपरीतलिंगी को अपना दोस्त बनाने के लिए आतुर रहते हैं. माधवी और मनीष के बीच शुरू हुई बात दोस्ती तक और दोस्ती से प्यार तक पहुंच गई. फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

इस तरह करीब 4 सालों तक उन के बीच प्यार और रोमांस का खेल चलता रहा. माधवी भी अब इंटरमीडिएट में आ चुकी थी. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी, जिस से वह इंटरमीडिएट में एक बार फेल भी हो गई. उस के घर वालों को यह बात पता तक नहीं चली कि उस का मनीष के साथ चक्कर चल रहा है.

माधवी सुबह साइकिल से स्कूल के लिए निकलती लेकिन स्कूल जाने की बजाय वह एक नियत जगह पहुंच जाती. मनीष भी अपनी बाइक से वहां पहुंच जाता. मनीष किसी के यहां उस की साइकिल खड़ी करा देता था. इस के बाद वह मनीष की बाइक पर बैठ कर फुर्र हो जाती.

स्कूल का समय होने से पहले वह वापस साइकिल उठा कर अपने घर चली जाती. उधर मनीष भी अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाता. वहां माधवी के भाइयों को पता भी नहीं चल पाता कि उन का ठेकेदार उन की ही बहन के साथ मौजमस्ती कर के आ रहा है.

माधवी के पिता भूपाल सिंह गांव से दूध खरीद कर शहर में बेचते थे. वह बहुत गुस्सैल थे. आए दिन मोहल्ले में छोटीछोटी बातों पर लोगों से झगड़ना आम बात थी. झगड़े में उन के तीनों बेटे भी शरीक  हो जाते थे, जिस से मोहल्ले में एक तरह से भूपाल सिंह की धाक जम गई थी.

लेकिन इतना सब होने के बाद भी मनीष के साथ इस परिवार के संबंध मधुर थे. मुन्ना और बंडा भी मनीष के घर जाने लगे.

मनीष और माधवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि उन की जातियां अलगअलग थीं. दूसरे माधवी के पिता और भाई गुस्सैल स्वभाव के थे इसलिए वे डर रहे थे कि घर वालों के सामने शादी की बात कैसे करें. लेकिन बाद में उन्होंने तय कर लिया कि उन के प्यार के रास्ते में जो भी बाधा आएगी, उस का वह मिल कर मुकाबला करेंगे.

माधवी जब घर पर अकेली होती तो मनीष को फोन कर के घर बुला लेती थी. एक बार की बात है. उस के पिता ड्यूटी गए थे भाई भी अपने काम पर चले गए थे और मां ड्राइवरों के टिफिन पहुंचाने के बाद खेतों पर गई हुई थी. माधवी के लिए प्रेमी के साथ मौजमस्ती करने का अच्छा मौका था. उस ने उसी समय मनीष को फोन कर दिया तो वह माधवी के घर पहुंच गया.

मनीष माधवी के घर तक अपनी बाइक नहीं लाया था वह उसे रेलवे फाटक के पास खड़ी कर आया था. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था इसलिए वे अपनी हसरत पूरी करने लगे. इत्तफाक से उसी समय घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया. दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनते ही दोनों के होश उड़ गए. उन के जहन से मौजमस्ती का भूत उड़नछू हो गया. वे जल्दीजल्दी कपड़े पहनने लगे.

तभी माधवी का नाम लेते हुए दरवाजा खोलने की आवाज आई. यह आवाज सुनते ही माधवी डर से कांपने लगी क्योंकि वह आवाज उस के पिता की थी. वही उस का नाम ले कर दरवाजा खोलने की आवाज लगा रहे थे.

माधवी पिता के गुस्से से वाकिफ थी. इसलिए उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. कमरे में भी ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां मनीष को छिपाया जा सके. दरवाजे के पास जाने के लिए भी उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उधर उस के पिता दरवाजा खोलने के लिए बारबार आवाजें लगा रहे थे.

दरवाजा तो खोलना ही था इसलिए डरते डरते वह दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा खुलते ही मनीष वहां से भाग गया. मनीष के भागते ही भूपाल सिंह को माजरा समझते देर नहीं लगी. वह गुस्से से बौखला गया. घर में घुसते ही उस ने बेटी से पूछा कि मनीष यहां क्यों आया था.

डर से कांप रही माधवी उस के सामने मुंह नहीं खोल सकी. तब भूपाल सिंह ने उस की जम कर पिटाई की और सख्त हिदायत दी कि आइंदा वह उस से मिली तो वह दोनों को ही जमीन में जिंदा गाड़ देगा.

शाम को जब भूपाल के तीनों बेटे कुंवर सिंह, मुन्ना व बंडा घर आए तो उस ने उन्हें पूरा वाकया बताया. बेटों ने मनीष की करतूत सुनी तो वे उसी रात उसे जान से मारने उस के घर जाने के लिए तैयार हो गए. लेकिन भूपाल सिंह ने उन्हें गुस्से पर काबू कर ठंडे दिमाग से काम लेने की सलाह दी.

इस के बाद बंडा व मुन्नालाल ने मनीष के साथ काम करना बंद कर दिया था. 15 दिनों बाद माधवी की बोर्ड की परीक्षाएं थीं इसलिए उन्होंने माधवी पर भी पाबंदी लगाते हुए उस का स्कूल जाना बंद करा दिया.

4 महीने बीत गए. माधवी ने सोचा कि घर वाले इस बात को भूल गए होंगे. इसलिए उस ने मनीष से फिर से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह बड़ी सावधानी बरतती थी. लेकिन माधवी की यही सोच गलत निकली. उसे पता नहीं था कि उस के घर वाले मनीष को ठिकाने लगाने के लिए कितनी खौफनाक साजिश रच चुके हैं.

योजना के अनुसार 28 जून, 2014 को सुबह के समय बंडा ने मेज पर रखा माधवी का फोन फर्श पर गिरा कर तोड़ डाला. माधवी को यह पता न था कि वह फोन जानबूझ कर तोड़ा गया है. घंटे भर बाद बंडा उस के फोन को सही कराने की बात कह कर घर से निकला.

इधर भूपाल सिंह ने यह कह कर अपनी पत्नी को मायके भेज दिया कि उस के भाई का फोन आया था कि वहां पर उस की बेटी को देखने वाले आ रहे हैं. पिता के कहने पर मां के साथ माधवी भी अपने मामा के यहां चली गई. जाते समय भूपाल सिंह ने पत्नी से कह दिया था कि मायके में वह माधवी पर नजर रखे.

उन दोनों के घर से निकलते ही बंडा घर लौट आया. उस ने तब तक माधवी का सिम कार्ड निकाल कर अपने फोन में डाल लिया. उस ने माधवी के नंबर से मनीष को एक मैसेज भेज दिया. उस ने मैसेज में लिखा कि आज घर पर कोई नहीं है. रात 8 बजे वह घंटे भर के लिए घर आ जाए.

पे्रमिका का मैसेज पढ़ते ही मनीष का दिल बागबाग हो गया. उस ने माधवी को फोन करना भी चाहा लेकिन उस ने इसलिए फोन नहीं किया क्योंकि माधवी ने उसे मैसेज के अंत में मना कर रखा था कि वह फोन न करे. केवल रात में जरूर आ जाए, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.

रात 8 बजे मनीष दबेपांव माधवी से मिलने उस के घर पर पहुंच गया. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था. दरवाजा खोल जैसे ही वह सामने वाले कमरे में गया, उसे पीछे से माधवी के भाइयों ने दबोच लिया.

माधवी के भाइयों ने उस का मुंह दबा कर उस के सिर पर चारपाई के पाए से वार कर दिया. जोरदार वार से मनीष बेहोश हो कर गिर पड़ा. उस के गिरते ही उस पर उन्होंने लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. उन्होंने उस के गुप्तांग को पैरों से कुचल दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद लाश को ठिकाने भी लगाना था. आपस में सलाह करने के बाद उस के शव को तलवार से नाभि के पास से 2 हिस्सों में काट डाला. करीब 4 घंटे तक मनीष की लाश उसी कमरे में पड़ी रही.

लाश के टुकड़ों से खून निकलना बंद हो गया तो रात करीब 1 बजे जूट की बोरी में दोनों टुकड़े भर लिए. उन्हें रेलवे लाइन पर फेंकने के लिए मुन्ना और बंडा बाइक से निकल गए. हत्या करने के बाद उस की सभी जेबें खाली कर ली गई थीं ताकि पहचान न हो सके. उस के महंगे दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ कर के घर पर ही रख लिए.

मुन्ना और बंडा जब लाश ले कर घर से निकल गए तो घर पर मौजूद भूपाल और उस के बेटे कुंवरपाल ने कमरे से खून के निशान आदि साफ किए. इस के बाद उन्होंने हत्या में प्रयुक्त हथियार, मनीष के दोनों मोबाइल आदि को एक मालगाड़ी के डिब्बे में फेंक दिया. वह मालगाड़ी आगरा से कहीं जा रही थी. मनीष की जेब से मिले कागजों और पर्स को भी उन्होंने जला दिया.

मुन्ना और बंडा लाश को सोहल्ला रेलवे फाटक से करीब आधा किलोमीटर दूर आगरा-ग्वालियर रेलवे ट्रैक पर ले गए. बाइक रोक कर ये लोग मनीष के शव को बोरे से निकाल कर मुख्य लाइन पर फेंकना चाह रहे थे तभी उन्हें सड़क पर अपनी ओर कोई वाहन आता दिखाई दिया.

तब तक वे शव को बोरे से निकाल चुके थे. उन्होंने तुरंत लाश के दोनों टुकड़े लाइन पर डाल दिए और बोरी उठा कर वहां से भाग निकले.

दोनों भाइयों ने रास्ते में एक खेत में वह बोरी जला दी और घर आ गए. घर आ कर मुन्ना व बंडा ने खून के निशान वाले कपड़े नहाधो कर बदल लिए. जब उन्होंने शव को पास की ही रेलवे लाइन पर फेंकने की बात अपने पिता को बताई तो भूपाल ने माथा पीट लिया.

वह समझ गया कि लाश पास में ही डालने की वजह से उस की शिनाख्त हो जाएगी और पुलिस उन के घर पहुंच जाएगी. इसलिए सभी लोग घर का ताला लगा कर रात में ही 2 बाइकों पर सवार हो कर वहां से भाग निकले.

घर से भाग कर वे चारों माधवी व उस की मां के पास पहुंचे. वहां पर भूपाल सिंह ने पत्नी को सारा वाकया बताया तो वह भी डर गई. उसे पति व बेटों पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन अब होना भी क्या था अब तो बस पुलिस से बचना था.

वे चारों वहां से भाग कर आगरा के पास धौलपुर स्थित एक परिचित के यहां पहुंचे. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से बच नहीं सके. सर्विलांस टीम की मदद से वे पुलिस के जाल में फंस ही गए. हत्या में माधवी का कोई हाथ नहीं था इसलिए उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

पूछताछ के बाद सभी हत्यारोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी हत्यारोपी जेल की सलाखों के पीछे थे.

सुबह करीब साढ़े 5 बजे आगरा के पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना मिली कि आगरा-ग्वालियर की अपलाइन रेल पर शाहगंज और  सदर बाजार के बीच में एक युवक ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली है. सूचना शाहगंज और सदर बाजार के बीच होने की मिली थी. यह बात मौके पर जा कर ही पता चल सकती थी कि घटना किस थाने में आती है, इसलिए नियंत्रणकक्ष द्वारा इत्तला शाहगंज व सदर बाजार दोनों थानों को दे दी गई.

खबर मिलने के बाद दोनों थानों की पुलिस के साथसाथ थाना राजकीय रेलवे पुलिस आगरा छावनी की पुलिस टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस को रेलवे लाइनों के बीच एक युवक की लाश 2 टुकड़ों में पड़ी मिली. यह 25 जुलाई, 2014 की बात है.

सब से पहले पुलिस ने यह देखा कि जिस जगह पर लाश पड़ी है, वह क्षेत्र किस थाने में आता है. जांच के बाद यह पता चला कि वह क्षेत्र थाना सदर की सीमा में आता है.

रेलवे लाइनों में लाश पड़ी होने की सूचना पा कर आसपास के गांवों के तमाम लोग वहां पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त करते हुए कहा कि मरने वाला युवक शिवनगर के रहने वाले नत्थूलाल का बेटा मनीष है. लोगों ने जल्द ही मनीष के घर वालों को खबर कर दी तो वे भी रोते बिलखते वहां पहुंच गए. जवान बेटे की मौत पर वे फूटफूट कर रो रहे थे.

सदर बाजार के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एएसपी डा. रामसुरेश यादव, एसपी सिटी समीर सौरभ व एसएसपी शलभ माथुर को भी घटना की जानकारी दे दी तो वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस तरीके से वहां लाश पड़ी थी, देख कर पुलिस अधिकारियों को मामला आत्महत्या का नहीं लगा बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या कहीं और कर के लाश ट्रैक पर डाल दी हो ताकि उस की मौत को लोग हादसा या आत्महत्या समझें.

कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट और कमीज की जेबें खाली निकलीं. मनीष के घर वालों ने बताया कि उस के पास 2 मोबाइल फोनों के अलावा पर्स में पैसे व वोटर आईडी कार्ड व जेब में छोटी डायरी रहती थी जिस में वह लेबर का हिसाब किताब रखता था. इस से इस बात की पुष्टि हो रही थी कि किसी ने हत्या करने के बाद उस की ये सारी चीजें निकाल ली होंगी ताकि इस की शिनाख्त नहीं हो पाए.

पुलिस ने नत्थूलाल से प्रारंभिक पूछताछ  कर मनीष की लाश का पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी और नत्थूलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ने संभाल ली. एसएसपी शलभ माथुर ने जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मनीष के घर वालों से बात कर के यह जानने की कोशिश की कि उस का किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी तो नहीं थी. इस पर नत्थूलाल ने बताया कि मनीष पुताई के काम का ठेकेदार था. वह बहुत शरीफ था. मोहल्ले में वह सभी से हंसता बोलता था.

उन से बात करने के बाद पुलिस को यह लगा कि उस की हत्या के पीछे पुताई के काम से जुड़े किसी ठेकेदार का तो हाथ नहीं है या फिर प्रेमप्रसंग के मामले में किसी ने उस की हत्या कर दी. इसी तरह कई दृष्टिकोणों को ले कर पुलिस चल रही थी.

अगले दिन पुलिस को मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. पुलिस को शक हो रहा था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से वह सही साबित हुआ. यानी मनीष ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस की हत्या की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस की सभी पसलियां टूटी हुई थीं, उस के दोनों फेफड़े फट गए थे. गुप्तांगों पर भी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. इस के अलावा उस के शरीर पर घाव के अनेक निशान थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई कि मनीष की हत्या कहीं और की गई थी और हत्यारे उस से गहरी खुंदक रखते थे तभी तो उन्होंने उसे इतनी बेरहमी से मारा.

मनीष के पास 2 महंगे मोबाइल फोन थे जो गायब थे. पुलिस ने उस के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उन की की अंतिम लोकेशन सोहल्ला बस्ती की थी.

इस बारे में उस के पिता नत्थू सिंह से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सोहल्ला बस्ती में मनीष का कोई खास यारदोस्त तो नहीं रहता. उन्होंने यह जरूर बताया कि मनीष के 2 कारीगर मुन्ना और बंडा इस बस्ती में रहते हैं. वह उन के पास अकसर जाता रहता था.

मनीष की कालडिटेल्स पर नजर डाल रहे एएसपी डा. रामसुरेश यादव को एक ऐसा नंबर नजर आया था जिस से अकसर रात के 12 बजे से ले कर 2 बजे के बीच लगातार बातचीत की जाती थी. जिस नंबर से उस की बात होती थी, बाद में पता चला कि वह नंबर माधवी नाम की किसी लड़की की आईडी पर लिया गया था.

जांच में लड़की का नाम सामने आते ही पुलिस को केस सुलझता दिखाई दिया. क्योंकि मुन्ना और बंडा उस के भाई थे. एसएसपी को जब इस बात से अवगत कराया तो उन्होंने माधवी और उस के भाइयों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एक पुलिस टीम फौरन माधवी के घर दबिश देने निकल गई. लेकिन घर पहुंच कर देखा तो मुख्य दरवाजे पर ताला बंद था. यानी घर के सब लोग गायब थे.

माधवी के पिता भूपाल सिंह, भाई और अन्य लोग कहां गए, इस बारे में पुलिस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जता दी. पूरे परिवार के गायब होने से पुलिस का शक और गहरा गया.

किसी तरह पुलिस को भूपाल सिंह का मोबाइल नंबर मिल गया. उसे सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन आगरा के नजदीक धौलपुर गांव की मिली. पुलिस टीम वहां रवाना हो गई. फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने माधवी, उस के पिता भूपाल सिंह, 3 भाइयों कुंवरपाल सिंह, बंडा और मुन्ना को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन सब से मनीष की हत्या के बारे में पूछताछ की तो भूपाल सिंह ने स्वीकार कर लिया कि मनीष की हत्या उस ने ही कराई है. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

—कथा पुलिस सूत्रों व मनीष के घर वालों के बयानों पर आधारित. माधवी परिवर्तित नाम है.

– फोटो का घटना से कोई संबंध नहीं है.

जब एक बैनर ने पकड़वाया कातिल

पटना गया रेलवे लाइन के पास कई टुकड़ों में मिली लाश की गुत्थी को एक बैनर ने सुलझा दिया. 45 साला गीता की लाश के कुछ टुकड़े सरस्वती पूजा के लिए बने बैनर में लिपटे मिले थे. उस बैनर पर फ्रैंड्स क्लब, कुसुमपुर कालोनी, नत्थू रोड, परसा बाजार लिखा हुआ था. इस गुत्थी को सुलझाने के लिए सदर अनुमंडल पुलिस अधीक्षक प्रमोद कुमार मंडल की अगुआई में जक्कनपुर थाना इंचार्ज अमरेंद्र कुमार झा और परसा बाजार थाना इंचार्ज नंदजी प्रसाद व दारोगा रामशंकर की टीम बनाई गई. पूछताछ के बाद पता चला कि उस बैनर को रंजन और मेकैनिक राजेश अपने साथ ले कर गए थे. पुलिस ने तुरंत राजेश को दबोच लिया. राजेश से पूछताछ करने के बाद कत्ल की गुत्थी चुटकियों में हल हो गई.

गीता का कत्ल उस के अपनों ने ही कर डाला था. कत्ल से ज्यादा दिल दहलाने वाला मामला लाश को ठिकाने लगाने के लिए की गई हैवानियत थी. गीता के पति उमेश चौधरी, बेटी पूनम देवी और दामाद रंजन ने मिल कर गीता का कत्ल किया था. रंजन और उस के दोस्त राजेश ने मिल कर लाश को 15 छोटेछोटे टुकड़ों में काटा. उमेश, पूनम और राजेश को पुलिस ने दबोच लिया है, जबकि रंजन फरार है. हत्या में इस्तेमाल किए गए 3 धारदार हथियार भी पुलिस ने बरामद कर लिए हैं.

रंजन और राजेश ने गीता की लाश को चौकी पर रखा और हैक्सा ब्लेड से सब से पहले सिर को धड़ से अलग किया. सिर को काटने के बाद खून का फव्वारा बहने लगा, तो खून को एक प्लास्टिक के टब में जमा कर लिया और टौयलेट के बेसिन में डाल कर फ्लश चला दिया. उस के बाद लाश के दोनों हाथपैरों को काटा गया.

गीता की बोटीबोटी काट कर उसे कई पौलीथिनों में बांध कर दूरदूर अलगअलग जगहों पर फेंक दिया. धड़ को कुसुमपुर में ही पानी से भरे एक गड्ढे में फेंक दिया गया. सिर को जक्कनपुर थाने के पास गया फेंका गया. वहीं पर हत्या में इस्तेमाल किए गए गड़ांसे और हैक्सा ब्लेड वगैरह को फेंक दिया गया.

हाथपैरों के टुकड़ों को पटनागया पैसेंजर ट्रेन में रख कर रंजन और राजेश पुनपुन रेलवे स्टेशन पर उतर गए. पटना गया पैसेंजर ट्रेन जब गया स्टेशन पहुंची, तो रेलवे पुलिस ने एक डब्बे में लावारिस बैग बरामद किया. उस बैग में हाथपैर के टुकड़े मिलने से गया पुलिस ने 18 अप्रैल को पटना पुलिस को सूचित किया. पटना पुलिस को धड़ और सिर पहले ही मिल चुके थे. शरीर के सभी हिस्सों को जोड़ने के बाद पता चला कि वह एक ही औरत की लाश है.

हत्यारों द्वारा गीता के जिस्म के टुकड़ों को अलगअलग जगहों पर फेंकने की वजह से हत्या के मामले को 3 थानों में दर्ज कराना पड़ा. गया के जीआरपी थाने में हाथपैर मिलने का, परसा बाजार में सिर मिलने का और पटना के जक्कनपुर थाने में धड़ मिलने का मामला दर्ज किया गया.

पटना के एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि अपराधी चाहे कितनी भी चालाकी कर ले, कोई न कोई सुबूत पुलिस के लिए छोड़ ही जाता है. गीता की हत्या करने वालों ने भी कानून की पकड़ से बचने के लिए पूरा उपाय किया था, पर उस के दामाद ने ऐसा सुबूत छोड़ दिया कि पुलिस आसानी से उन तक पहुंच गई.

कत्ल के 40 घंटे के भीतर पटना सदर पुलिस की टीम ने पूरे मामले का खुलासा कर दिया. 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया. गीता का कत्ल कर उमेश अपनी बेटी पूनम के साथ मसौढ़ी चला गया था. उस के बाद रंजन ने अपने साथ काम करने वाले दोस्त राजेश को घर पर बुलाया और उस की मदद से लाश को टुकड़ों में काट डाला. इस के बदले में रंजन ने उसे 20 हजार रुपए देने का लालच दिया था.

17 अप्रैल की रात को पूनम ने अपनी मां गीता को चिकन खाने के लिए घर पर बुलाया था. वहां उमेश और रंजन पहले से मौजूद थे. पूनम ने चिकन में नींद की गोलियां मिला दी थीं. खाना खाने के बाद गीता बेहोश हो गई. तकरीबन 5 घंटे के बाद गीता को होश आया, तो उसे काफी कमजोरी महसूस हो रही थी.

गीता ने कमरे में इधरउधर देखा, तो कोई नजर नहीं आया. किसी तरह से उस ने अपने मोबाइल फोन से तुरंत अपने प्रेमी अरमान को फोन किया और बताया कि उस की तबीयत काफी खराब लग रही है. इसी बीच गीता का दामाद रंजन कमरे में पहुंच गया और उस ने गीता को मोबाइल फोन पर किसी से बात करते हुए सुन लिया. रंजन ने गुस्से में आ कर गीता का गला दबा कर उसे मार डाला.

पुलिस की छानबीन में पता चला है कि गीता का अरमान नाम के शख्स से नाजायज रिश्ता था. इस वजह से पति और बेटी ने मिल कर उस की हत्या कर डाली. गीता हर महीने अपने पति उमेश से रुपए लेने पहुंच जाती थी और उस से उस की तनख्वाह का बड़ा हिस्सा ले कर अपने प्रेमी अरमान को दे देती थी. पिछले 20 सालों से गीता और अरमान के बीच नाजायज रिश्ता था. गीता का पति उमेश सचिवालय के भवन निर्माण विभाग में ड्राफ्टमैन था.

55 साल के उमेश की शादी 30 साल पहले मसौढ़ी के तरेगाना डीह की रहने वाली गीता से हुई थी. शादी के बाद गीता ससुराल में रहने लगी और उन के 3 बच्चे भी हुए. कुछ सालों के बाद उमेश लकवे का शिकार हो गया. पति की बीमारी का फायदा उठाते हुए गीता ने अपने पड़ोसी अरमान से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी और उस के बाद जिस्मानी रिश्ते भी बने. वह ज्यादा से ज्यादा समय अरमान के साथ ही गुजारती थी.

गीता की इस हरकत से उमेश और उस की बेटियां गुस्से में रहती थीं. उन्होंने कई दफा गीता को समझाने और परिवार को संभालने की बात की, पर गीता पर उन की बातों का कोई असर नहीं होता था. यही वजह थी कि गीता का इतनी बेरहमी से कत्ल किया गया.

गांव वालों के ताने सुन कर उमेश परेशान रहने लगा था और उस ने अपना पुश्तैनी घर भी छोड़ दिया था. उस के बाद उमेश ने कुसुमपुर वाला घर भी छोड़ दिया. कभीकभी वह मसौढ़ी में अपनी ससुराल वाले घर में रहता था, तो कभी पटना में रहता था.

एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि हत्यारों ने हत्या में इस्तेमाल किए गए गंड़ासे और हैक्सा ब्लेड को फ्लैक्स में लपेट कर फेंका था. बैनर पर कुसुमपुर फ्रैंड्स क्लब का पता लिखा हुआ था. उसी पते के सहारे पुलिस कुसुमपुर पहुंची और फ्रैंड्स क्लब का पता कर के हत्यारों तक आसानी से पहुंच गई.

बदला लेने की ये थी अजीब सनक

20 दिसंबर, 2016 को पूरे 3 साल बाद हरप्रीत कौर तेजाब कांड के नाम से मशहूर मामले का फैसला सुनाया जाना था, इसलिए लुधियाना के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री संदीप कुमार सिंगला की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी. इस की वजह यह थी कि अपने समय का यह काफी चर्चित मामला था. इस की वजह यह थी कि यह तेजाब कांड उस समय घटित हुआ था, जिस दिन हरप्रीत कौर की शादी होने वाली थी. दुख की बात यह थी कि इस मामले में दोष किसी और का था, दुश्मनी किसी और से थी और सजा भुगतनी पड़ी थी निर्दोष हरप्रीत कौर को. तमाम पीड़ा सहने के बाद उस की असमय मौत भी हो गई थी. इस मामले में क्या सजा सुनाई गई, उस से पहले आइए इस पूरे मामले के बारे में जान लें.

पंजाब के जिला बरनाला के ढनोला रोड पर स्थित है बस्ती फत्तहनगर. जसवंत सिंह यहीं के रहने वाले थे. उन्होंने अपने घर के एक हिस्से में सैलून खोल रखा था. उसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में पत्नी दविंदर कौर के अलावा 2 बेटे और एक बेटी हरप्रीत कौर थी.

बेटी पढ़लिख कर शादी लायक हुई तो जसवंत सिंह ने उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. लुधियाना में उन की बहन रहती थी भोली. उसी के माध्यम से हरप्रीत कौर की शादी की बात कोलकाता के रहने वाले रंजीत  सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह उर्फ हनी से चली.

रंजीत सिंह मूलरूप से दोराहा लुधियाना के रहने वाले थे. लेकिन अपनी जवानी में वह कोलकाता जा कर बस गए थे. वहां उन का होटल एंड रेस्टोरैंट का बहुत बड़ा कारोबार था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी.

वह बहू के रूप में गरीब और शरीफ परिवार की प्रतिभाशाली लड़की चाहते थे. इसीलिए उन्होंने ही नहीं, उन के बेटे हरप्रीत सिंह ने भी हरप्रीत कौर को देख कर पसंद कर लिया था. यह मार्च, 2013 की बात थी. बातचीत के बाद शादी की तारीख 7 दिसंबर, 2013 रख दी गई थी.

जसवंत सिंह और रंजीत सिंह की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था. शादी तय होने के कुछ दिनों बाद ही जसवंत सिंह को फोन कर के धमकी दी जाने लगी कि वह यह रिश्ता तोड़ दें अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहें. जसवंत सिंह ने यह बात रंजीत सिंह को बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोगों से हमारी रंजिश हैं, शायद वही फोन कर के आप को धमका रहे हैं. लेकिन आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमारी तरफ से कोई बात नहीं है. आप शादी की तैयारी करें.’’

इस के बाद भी जसवंत सिंह के पास धमकी भरे फोन आते रहे. कुछ अंजान युवकों ने बरनाला स्थित उन के घर आ कर भी शादी तोड़ने को कहा, लेकिन जसवंत सिंह परवाह किए बिना बेटी की शादी की तैयारी करते रहे.

शादी की तारीख नजदीक आ गई तो जसवंत सिंह परिवार सहित लुधियाना के जनता  नगर की गली नंबर 16 में रहने वाले अपने रिश्तेदार रजिंदर सिंह बगा के घर आ गए. दूसरी ओर रंजीत सिंह का परिवार भी बेटे की शादी के लिए कोलकाता से लुधियाना आ गया था. विवाह के लिए उन्होंने परवोवाल रोड स्थित शहर का सब से महंगा स्टर्लिंग रिजौर्ट बुक करा रखा था.

7 दिसंबर, 2013 को शादी वाले दिन हरप्रीत कौर अपनी मां, पिता और 2 सहेलियों के साथ सजने के लिए सुबह 7 बजे कार से सराभानगर स्थित लैक्मे ब्यूटी सैलून॒पहुंची. मातापिता बाहर कार में ही बैठे रहे, जबकि हरप्रीत कौर सहेलियों के साथ सैलून में चली गई. चूंकि सैलून पहले से ही बुक कराया गया था, इसलिए उस के पहुंचते ही उस का मेकअप करना शुरू कर दिया गया.

ठीक साढ़े 7 बजे एक युवक हाथ में प्लास्टिक का डिब्बा लिए सैलून में दाखिल हुआ. उस ने अपना चेहरा ढक रखा था. सैलून में दाखिल होते ही उस ने हरप्रीत कौर को इस तरह पुकारा, जैसे वह उस का परिचित हो. हरप्रीत कौर के बोलते ही वह वहां गया, जहां हरप्रीत कौर का मेकअप हो रहा था. सैलून में काम करने वाले कर्मचारियों ने उसे अंदर आते देखा जरूर था, पर किसी ने उसे रोका नहीं. क्योंकि युवक जिस आत्मविश्वास के साथ अंदर आया था, सब ने यही समझा कि वह दुलहन का मेकअप करा रही हरप्रीत कौर का कोई रिश्तेदार है.

हरप्रीत कौर के पास पहुंच कर युवक ने थोड़ा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुझ से ही नहीं, तेरे घर वालों से भी कितनी बार कहा था न कि मैं यह शादी नहीं होने दूंगा.’’

इस के बाद उस ने प्लास्टिक का डिब्बा खोला, जिस में वह तेजाब ले कर आया था. उस ने डिब्बे का सारा तेजाब हरप्रीत कौर के ऊपर उडे़ल दिया. इसी के साथ वह एक कागज फेंक कर जिस तरह तेजी से आया था उस से भी ज्यादा तेजी से बाहर निकल गया. तेजाब ऊपर पड़ते ही हरप्रीत चीखनेचिल्लाने लगी. उस के चीखनेचिल्लाने से वहां काम करने वाले कर्मचारियों को जब घटना का भान हुआ तो सभी डर के मारे चीखनेचिल्लाने लगे. शोरशराबा सुन कर सैलून के मैनेजर संजीव गोयल तुरंत आ गए. वह उस युवक के पीछे दौड़े भी, पर उन के बाहर आने तक वह बाहर खड़ी कार में सवार हो भाग गया था.

कार में शायद कुछ और लोग भी बैठे थे. हरप्रीत कौर के अलावा उस के बगल वाली सीट पर मेकअप करवा रही अमृतपाल कौर तथा 2 ब्यूटीशियनों पर भी तेजाब पड़ गया था. हरप्रीत कौर की हालत सब से ज्यादा खराब थी. मैनेजर संजीव गोयल ने थाना सराभानगर पुलिस को घटना की सूचना देने के साथ हरप्रीत कौर सहित सभी घायलों को डीएमसी अस्पताल पहुंचाया.

प्राथमिक उपचार के बाद अन्य सभी घायलों को तो छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन हरप्रीत कौर का पूरा चेहरा एवं छाती बुरी तरह जल गई थी, इसलिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया गया था.

मैनेजर संजीव गोयल, मेकअप करवाने वाली अमृतपाल कौर, 2 ब्यूटीशियनों के अलावा हरप्रीत कौर के मातापिता इस घटना के चश्मदीद थे. हरप्रीत कौर के पिता जसवंत सिंह की ओर से थाना सराभानगर में इस तेजाब कांड का मुकदमा दर्ज हुआ. घटनास्थल के निरीक्षण में इंसपेक्टर हरपाल सिंह ग्रेवाल को सैलून से युवक द्वारा फेंका गया कागज मिला तो पता चला कि वह प्रेमपत्र था.

उन्होंने सैलून के अंदर और बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज कब्जे में ले ली थी. बाद में जांच में पता चला कि युवक ने सैलून में जो प्रेमपत्र फेंका था, वह पुलिस की जांच को गुमराह करने के लिए फेंका था. हरप्रीत कौर का किसी से कोई प्रेमसंबंध नहीं था.

जब स्पष्ट हो गया कि मामला प्रेमसंबंधों का या एकतरफा प्रेम का नहीं था तो पुलिस सोच में पड़ गई कि आखिर दुलहन पर तेजाब क्यों फेंका गया, वह भी फेरों से मात्र एक घंटे पहले? यह बात मामले की जांच कर रहे हरपाल सिंह ग्रेवाल की समझ में नहीं आ रही थी. हरप्रीत कौर बयान देने की स्थिति में नहीं थी. तेजाब पड़ने के बाद वह बेहोश हुई तो फिर होश में नहीं आई. उस की हालत दिनोंदिन नाजुक ही होती जा रही थी.

जब डीएमसी अस्पताल के डाक्टरों ने हरप्रीत कौर के इलाज से हाथ खड़े कर दिए तो लुधियाना के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निर्मल सिंह ढिल्लो और इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने खुद और कुछ पुलिस फंड से मदद कर के इलाज के लिए दिसंबर, 2013 को विशेष विमान द्वारा उसे मुंबई भिजवाया.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने रंजीत सिंह और उन के बेटे हरप्रीत सिंह, जिस से हरप्रीत कौर की शादी हो रही थी, दोनों लोगों से विस्तार से पूछताछ करते हुए उन की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में गहराई से छानबीन की तो आखिर पूरा मामला उन की समझ में आ गया.

इस के बाद अपने अधिकारियों से रायमशविरा कर के उन्होंने सबइंसपेक्टर मनजीत सिंह को साथ ले कर एक पुलिस टीम बनाई और पटियाला के रंजीतनगर स्थित एक कोठी पर छापा मारा. उन के छापा मारने पर भागने के लिए एक युवक कोठी की छत से कूदा, जिस से उस की एक टांग टूट गई और वह पकड़ा गया. उस का नाम पलविंदर सिंह उर्फ पवन था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के अलावा 30-32 साल की एक महिला को गिरफ्तार किया गया, जिस का नाम अमृतपाल कौर था.

दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ला कर पूछताछ की गई तो पता चला कि इस तेजाब कांड की मुख्य अभियुक्ता अमृतपाल कौर थी, जो हरप्रीत सिंह की भाभी थी.

उस का हरप्रीत सिंह के भाई से तलाक हो चुका था. उसी ने अपने ससुर रंजीत सिंह और उन के घर वालों से बदला लेने के लिए हरप्रीत कौर पर तेजाब डलवाया  था. अमृतपाल कौर से पूछताछ में इस तेजाब कांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह बेहद चौंकाने वाली थी.

अमृतपाल कौर उर्फ डिंपी उर्फ हनी उर्फ परी, लुधियाना के दुगड़ी के रहने वाले सोहन सिंह की बेटी थी. आधुनिक विचारों वाली अमृतपाल कौर अपनी मरजी से जिंदगी जीने में विश्वास करती थी, जिस से उस की तमाम लड़कों से दोस्ती हो गई थी. जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव की होने की वजह से मांबाप भी उसे नहीं रोक पाए.

सन 2003 में रंजीत सिंह के बड़े बेटे तरनजीत सिंह से अमृतपाल कौर का विवाह हो गया तो वह कोलकाता आ गई थी. ससुराल आ कर जब उसे पता चला कि तरनजीत सिंह नपुंसक है तो वह सन्न रह गई. पति का साथ न मिलने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई.

इस के बाद घर में क्लेश शुरू हो गया. बातबात पर अमृतपाल कौर ससुर और पति को ताने देने लगी. धीरेधीरे वह परिवार पर हावी होती गई. शारीरिक कमजोरी और समाज में बदनामी के डर से तरनजीत सिंह ही नहीं, घर का कोई भी सदस्य उस के सामने कुछ नहीं कह पाता था.

इस क्लेश से बचने के लिए तरनजीत सिंह अमृतपाल कौर को ले कर विदेश चला गया, जहां उस ने जुड़वा बेटों अनंत और मिरर को जन्म दिया. बच्चों के जन्म के बाद दोनों कोलकाता आ गए. विदेश से लौटने के बाद घर में क्लेश कम होने के बजाए इतना बढ़ गया कि अमृतपाल कौर ने दोनों बेटों को पति को सौंप कर उस से तलाक ले लिया. इस तलाक में अमृतपाल कौर ने 70 लाख रुपए नकद और लुधियाना के दोहरा में एक प्लौट लिया था.

तलाक के बाद अमृतपाल कौर  पूरी तरह से आजाद हो गई. पैसों की उस के पास कमी नहीं थी. वह अपनी मरजी की मालिक थी. सन 2013 में उस ने एक एनआरआई अमेंदर सिंह के शादी कर ली. वह वेस्ट लंदन में रहता था. शादी के कुछ दिनों बाद वह लंदन चला गया तो अमृतपाल कौर मायके में रहने लगी. पति के विदेश जाने के बाद उस की मुलाकात पलविंदर सिंह उर्फ पवन से हुई. वह आपराधिक प्रवृति का था, जिस की वजह से उस के पिता अजीत सिंह ने उसे घर से बेदखल कर दिया था.

अमृतपाल कौर को सहारे की जरूरत थी, इसलिए उस ने उस से नजदीकियां बढ़ाईं. पलविंदर से उस के संबंध बन गए तो वह उस के इशारे पर नाचने लगा. अमृतपाल कौर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रही थी. लेकिन तलाक के बाद उस की ससुराल वालों ने चैन की सांस ली थी.

अमृतपाल कौर को पता चला कि उस के पति तरनजीत सिंह के छोटे भाई हरप्रीत सिंह की शादी बरनाला की एक खूबसूरत लड़की हरप्रीत कौर से हो रही है तो उसे जैसे सनक सी चढ़ गई कि कुछ भी हो, वह उस परिवार के किसी भी लड़के की शादी नहीं होने देगी. उस ने तुरंत अपने ससुर रंजीत सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘रंजीत सिंह, तुम कान खोल कर सुन लो, मैं तुम्हारे घर में अब कभी शहनाई नहीं बजने दूंगी.’’

रंजीत सिंह ने उस की इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया और वह बेटे की शादी की तैयारी करते रहे. अमृतपाल कौर के पास ना तो शैतानी दिमाग की कभी थी और ना ही दौलत की. उस ने अपने मन की बात पलविंदर को बता कर उस के साथ योजना बनाई गई कि कोलकाता जा कर रंजीत सिंह के परिवार का कुछ ऐसा अनिष्ट किया जाए कि शादी करने की हिम्मत न कर सके.

पर उन के लिए यह काम इतना आसान नहीं था. इसलिए अमृतपाल कौर ने विचार किया कि जिस लड़की के साथ हरप्रीत सिंह की शादी होने वाली है, अगर उस लड़की की सुंदरता खराब कर दी जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी. पलविंदर को भी उस का यह विचार उचित लगा. उस ने कहा कि अगर हरप्रीत कौर के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी.

इस योजना पर सहमति बन गई तो अमृतपाल कौर ने यह काम करने के लिए पलविंदर को 10 लाख रुपए दिए. पलविंदर ने अपनी इस योजना में अपने चचेरे भाई सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी को भी शामिल कर लिया. यह काम सिर्फ 2 लोगों से नहीं हो सकता था, इसलिए सन्नी ने अपने दोस्तों, राकेश कुमार प्रेमी, जसप्रीत सिंह और गुरसेवक को शामिल कर लिया. पलविंदर और सन्नी हरप्रीत कौर पर तेजाब डालने के लिए 3 बार बरनाला स्थित उस के घर गए, पर वहां मौका नहीं मिला.

इस के बाद अमृतपाल कौर ने पलविंदर को लुधियाना बुला लिया. क्योंकि उसे पता चल गया था कि 5 दिसंबर को हरप्रीत कौर का परिवार लुधियाना आ गया है. 6 दिसंबर, 2013 को पलविंदर भी अपने साथियों के साथ लुधियाना आ गया था. उस ने अपने फूफा की मारुति जेन कार यह कह कर मांग ली थी कि उसे अपने दोस्त की शादी में जाना है. इसी कार में पलविंदर ने फरजी नंबर पीबी11जेड-9090 की प्लेट लगा कर घटना को अंजाम दिया था.

पलविंदर सिंह ने तेजाब पटियाला के एक मोटर मैकेनिक अश्विनी कुमार से लिया था. अमृतपाल कौर ने अपने सूत्रों से पता कर लिया था कि हरप्रीत कौर सजने के लिए लैक्मे ब्यूटी सैलून जाएगी. इसलिए पलविंदर ने एक दिन पहले रेकी कर के हरप्रीत कौर पर तेजाब फेंक कर भागने का रास्ता देख लिया था.

अमृतपाल कौर से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने तेजाब कांड से जुड़े अन्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के 9 दिसंबर, 2013 को ड्यूटी मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर के सबूत जुटाने के लिए 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में सारे सबूत जुटा कर सभी अभियुक्तों को पुन: अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

मुंबई के नैशनल बर्न अस्पताल में भरती हरप्रीत कौर ने 27 दिसंबर की सुबह 5 बजे दम तोड़ दिया था. तमाम पुलिस काररवाई पूरी कर के हरपाल सिंह उस की लाश विमान द्वारा मुंबई से दिल्ली और वहां से सड़क मार्ग से बरनाला ले आए थे.

पुलिस ने इस मामले में अमृतपाल कौर उर्फ परी, परविंदर सिंह उर्फ पवन, सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार प्रेमी, गुरुसेवक सिंह, अश्विनी कुमार और जसप्रीत सिंह को अभियुक्त बनाया था. इस मामले में लैक्मे ब्यूटी सैलून की ब्यूटीशियनों एवं मैनेजर संजीव गोयल सहित 38 गवाह थे. घटनास्थल से बरामद सीसीटीवी फुटेज भी अदालत में पेश की गई थी.

अभियोजन पक्ष की ओर से सीनियर पब्लिक प्रौसीक्यूटर एस.एम. हैदर ने जबरदस्त तरीके से दलीलें देते हुए माननीय जज से सभी दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की गुजारिश की थी. जबकि बचाव पक्ष के वकील ने सजा में नरमी बरतने का आग्रह किया था. लंबी सुनवाई और बहस के बाद अदालत ने 6 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए 20 दिसंबर, 2016 को सजा की तारीख तय कर दी थी.

तय तारीख पर अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश संदीप कुमार सिंगला ने अपना फैसला सुनाया. माननीय न्यायाधीश ने अमृतपाल कौर और पलविंदर सिंह उर्फ पवन के इस कृत्य को अमानवीय मानते हुए दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

लेकिन उन्होंने इस सजा में एक शर्त यह रख दी थी कि दोनों दोषी पूरे 25 साल तक जेल में रहेंगे. इस के अलावा उन पर 9 लाख 60 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया था.

जुरमाने की इस राशि से 6 लाख रुपए मृतका हरप्रीत कौर के घर वालों को दिए जाएंगे. 1 लाख रुपया ब्यूटीपार्लर में घायल अमृतपाल कौर को तथा 50-50 हजार रुपए ब्यूटीपार्लर की घायल दोनों ब्यूटीशियनों को दिए जाएंगे.

इस तेजाब कांड में शामिल अन्य अभियुक्तों सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार, गुरुसेवक सिंह और जसप्रीत सिंह को भी दोषी करार देते हुए अदालत ने इन्हें उम्रकैद की सजा के साथ सवासवा लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. अभियुक्त अश्विनी कुमार को सबूतों के अभाव में दोष मुक्त कर दिया गया था.

इन अभियुक्तों की वजह से एक बेकसूर को उस समय मौत के मुंह में जाना पड़ा, जब वह अपने जीवन के हसीन पल जीने जा रही थी. इसलिए इन्हें जो सजा मिली, शायद वह कम ही कही जाएगी.

इस लड़के ने रेलवे को लगाया करोड़ों का चूना

12वीं जमात में पढ़ने वाले हामिद अशरफ नाम के एक 19 साला लड़के ने 2 सालों में भारतीय रेल को करोड़ों रुपए का चूना लगाया और रेलवे अफसरों को इस की भनक तक नहीं लगी. मामले का खुलासा तब हुआ, जब रेलवे विजिलैंस टीम ने इस की शिकायत बेंगलुरु व लखनऊ की सीबीआई टीम से की. पता चला कि रेल का टिकट बुक करने वाली आईआरसीटीसी वैबसाइट का क्लोन तैयार कर देशभर की कई जगहों से फर्जी तरीके से तत्काल टिकट की बुकिंग की जा रही थी.

इस मामले के खुलासे के लिए रेलवे विजिलैंस व सीबीआई टीम द्वारा पिछले 2 सालों से कोशिश की जा रही थी कि अचानक सीबीआई के हाथ एक क्लू लगा कि देशभर में तकरीबन 5 हजार एजेंटों के जरीए आईआरसीटीसी की वैबसाइट को हैक कर तत्काल टिकटों के कोटे में सेंध लगा दी गई थी और इस का संचालन उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से किया जा रहा था.

इस के बाद बेंगलुरु की सीबीआई टीम के इंस्पैक्टर टी. राजशेखर और लखनऊ सीबीआई टीम के इंस्पैक्टर रमेश पांडेय की टीम रेलवे विजिलैंस के साथ बस्ती पहुंची और पुरानी बस्ती के थाना प्रभारी रणधीर मिश्र के साथ मिल कर 3 दिनों तक इस मामले के खुलासे की कोशिश करती रही.

आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 27-28 अप्रैल, 2016 की रात सीबीआई टीम ने पुरानी बस्ती थाने के थाना प्रभारी रणधीर मिश्र व एसआई अरविंद कुमार व रामवृक्ष यादव, एचसीपी रामकरन और महिला सिपाही प्रीति पांडेय के साथ मिल कर दरवाजा नाम की जगह पर बनी एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान पर छापा मारा, तो गुफानुमा संकरे गलियारों से होते हुए जब पुलिस के लोग एक कमरे में पहुंचे, तो वहां तकरीबन 19 साला एक किशोर को 10 लैपटौप के बीच काम करता हुआ पाया गया.

उस लड़के ने पुलिस को देखते ही भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस की मुस्तैदी से वह धर दबोचा गया.

हामिद अशरफ ने बताया कि वह पिछले 2 साल से आईआरसीटीसी का क्लोन तैयार कर वैबसाइट को हैक कर चुका था, जिस के जरीए उस ने नकली सौफ्टवेयर बना कर पूरे देश में तकरीबन 5 हजार एजेंट तैयार किए थे. इन एजेंटों से उसे अच्छीखासी रकम मिलती थी.

जहां रेल महकमा एक टिकट को बुक करने में एक मिनट का समय लगाता था, वहीं हामिद अशरफ द्वारा तैयार किए गए सौफ्टवेयर से 30 सैकंड में ही टिकट की बुकिंग हो जाती थी.

  1. हामिद की चाहत

 हामिद अशरफ ने पुलिस को बताया कि वह बस्ती जिले के कप्तानगंज थाने के वायरलैस चौराहे का रहने वाला है. उस के पिता जमीरुलहसन उर्फ लल्ला बिल्डिंग मैटीरियल का कारोबार करते हैं. लेकिन घर का खर्च मुश्किल से ही चल पाता था. ऐसे में उसे इंजीनियर बनने का सपना पूरा होता नहीं दिखा.

माली तंगी से परेशान हो कर वह अपने मामा के घर आ कर रहने लगा. बस्ती रेलवे स्टेशन के पास ही एक दुकान पर वह रेलवे टिकट निकालने का हुनर सीखने लगा.

चूंकि हामिद अशरफ का झुकाव इंजीनियरिंग की ओर था. ऐसे में रेलवे टिकट की बुकिंग के दौरान उस के दिमाग में एक ऐसी योजना आई, जिस से न केवल उस ने आईआरसीटीसी का सौफ्टवेयर तैयार किया, बल्कि रुपयों की बौछार भी होने लगी.

2. बेचता था सौफ्टवेयर

 हामिद अशरफ ने आईआरसीटीसी की डुप्लीकेट वैबसाइट को बेचने के लिए तमाम सोशल साइटों का सहारा लिया. देखते ही देखते पूरे देश में तकरीबन 5 हजार एजेंटों की फौज तैयार कर ली. इस सौफ्टवेयर को वह 60 हजार से 80  हजार रुपए में एजेंटों को बेचता था.

2 साल में हामिद अशरफ ने नकली सौफ्टवेयर के जरीए इतना पैसा कमा लिया था कि उस के एक ही खाते में तकरीबन 50 लाख रुपए जमा होने की जानकारी पुलिस को हुई.

हामिद अशरफ लोगों की नजर में तब आया, जब उस ने औडी जैसी महंगी गाड़ी की बुकिंग कराई. साथ ही, उस ने अपने पिता के लिए नकद रुपए दे कर एक बोलैरो गाड़ी खरीदी थी.

इंटरनैट पर सर्च कर के हामिद अशरफ ने जानकारी इकट्ठा की थी कि किस तरह से किसी भी साइट को हैक कर इस की सिक्योरिटी में सेंध लगाई जा सकती है.

हामिद अशरफ ने यह कबूला कि उस ने 2 सालों में रेलवे को तकरीबन 16 करोड़ रुपए का चूना लगाया है, लेकिन सीबीआई व पुलिस का मानना है कि यह रकम कई करोड़ रुपए हो सकती है.

3. टूटेगा गिरोह का नैटवर्क

 पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र से पकड़े गए हामिद अशरफ की कारगुजारी को ले कर हर कोई हैरान है. यहां के लोगों को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा कि हामिद इतना बड़ा शातिर निकलेगा.

गिरफ्तारी के बाद उसे सीबीआई की लखनऊ कोर्ट में पेश किया गया, जहां से बेंगलुरु की सीबीआई टीम उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले कर बेंगलुरु चली गई.

सूत्रों की मानें, तो सीबीआई बस्ती के अलावा गोरखपुर, संत कबीरनगर, फैजाबाद, गोंडा समेत देश के अलगअलग इलाकों से जुड़े लोगों के बारे में जानकरी इकट्ठा करने की कोशिश कर रही है.

4. रेलवे पर उठे सवाल

भारतीय रेल सेवा के नैटवर्क में 19 साला एक लड़के ने इस तरह से सेंध लगाई कि देखते ही देखते 2 साल में उस ने रेलवे को 16 करोड़ रुपए का चूना लगा दिया. इस के अलावा देशभर में तैयार किए गए तकरीबन 5 हजार एजेंटों ने पता नहीं कितने रुपए का चूना लगाया होगा.

इस मामले की जांच सीबीआई के हवाले है. बस्ती पुलिस ने बताया कि उस की भूमिका सीबीआई और रेलवे विजिलैंस टीम के साथ हामिद अशरफ की गिरफ्तारी तक थी. इस के बाद क्या हुआ, पुलिस को नहीं पता.

इस मामले के मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी हो चुकी है. अब देखना यह है कि सीबीआई और रेलवे विजिलैंस टीम हामिद अशरफ द्वारा तैयार किए गए देशभर के नैटवर्क को किस तरह से खत्म करती है.

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