Society News in Hindi: भीड़ आमतौर पर तमाशा देखने और बातें बनाने के लिए ही जमा होती है, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ. किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि बच्चे को जा कर उठा ले, मानो वह किसी इनसान की औलाद नहीं, बल्कि कोई खतरनाक बम हो. भीड़ में मौजूद हर शख्स देख पा रहा था कि उस नवजात के जिस्म पर चींटियां रेंग रही थीं और हर कोई यह समझ भी रहा था कि अगर जल्द ही बच्चे को इलाज नहीं मिला तो उस की मौत भी हो सकती है. आखिरकार हिम्मत करते हुए एक आदमी डालचंद कुशवाहा ने बच्चे को उठा कर कपड़े से साफ किया और उसे काट रही चींटियों को उस के बदन से हटाया. इसी बीच वहां मौजूद दूसरे लोगों ने एंबुलैंस और पुलिस को फोन कर दिया था. एंबुलैंस और पुलिस वाले आए और बच्चे को अस्पताल ले गए. पुलिस वालों ने नामालूम मांबाप के खिलाफ पैदाइश छुपाने की धारा के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.
छंटती हुई भीड़ में यही बातें हो रही थीं कि न जाने किस के पाप की निशानी है… घोर कलियुग आ गया है जो कुंआरी लड़कियां हमबिस्तरी तो मजे से करती हैं, लेकिन जब पेट से हो जाती हैं तो बच्चा गिराने के बजाय उसे घूरे या कचरे में फेंक देती हैं. ऐसा होना तो अब आएदिन की बात हो गई है… कितनी पत्थरदिल होगी वह मां, जो अपने कलेजे के टुकड़े को यों फेंक गई.
हकीकत से सरोकार नहीं
भीड़ अपनी भड़ास निकालते हुए छंट गई, लेकिन कई सवाल जरूर अपने पीछे छोड़ गई कि क्यों लाखों नवजात हर साल देशभर के घूरों पर जिंदा या फिर मरे मिलते हैं? इन के लिए मां का दूध और प्यार क्यों नहीं होता और घूरे या कचरे के ढेर पर मिले बच्चे पाप की निशानी ही क्यों माने और कहे जाते हैं?
हर कोई यह जरूर मानता और जानता है कि ऐसे बच्चे अकसर कुंआरी लड़कियां ही पैदा करती हैं जो प्यारमुहब्बत में पड़ कर पेट से हो आती हैं और वक्त रहते, वजह कुछ भी हो, बच्चा नहीं गिरा पातीं. पेट में पल रहा बच्चा कभीकभार जोरजबरदस्ती यानी बलात्कार की देन भी हो सकता है, लेकिन लड़की का कुसूर यही रहता है कि वह समय रहते बच्चा गिरा नहीं पाती है.
कोई यह नहीं सोच पाता कि क्यों एक लड़की नाजायज करार दिए जाने वाले बच्चे को 9 महीने तक पेट में रख कर ढोने और छुपाने को मजबूर होती है और अकसर क्यों इस में उस का साथ घर वाले भी देते हैं?
जाहिर है, समाज में इज्जत बचाए रखने और लड़की के भविष्य की खातिर वे यह फैसला लेते हैं कि अगर बच्चा गिराया जाना मुमकिन न हो तो पैदा होने के बाद उसे किसी घूरे पर फेंक देना ही बेहतर है, क्योंकि समाज किसी भी हालत में उसे मंजूरी नहीं देगा और बात उजागर हो गई तो लड़की की शादी तो दूर की बात है, लोग उसे चैन से जीने भी नहीं देंगे, क्योंकि उस ने कुंआरी मां बनने का संगीन जुर्म जो किया है.
इस जुर्म में लड़की का भागीदार कौन था, उस की चर्चा न के बराबर होती है और चूंकि वह मर्द होता है इसलिए लोग उसे गुनाहगार नहीं मानते यानी लड़की या औरत होने का खमियाजा इस तरह भी भुगतना पड़ता है.
लड़कियां ये एहतियात बरतें
प्यारमुहब्बत में धोखा खा कर या धमका कर या फिर बहलाफुसला कर किसी ने कोख में बच्चा रूपी बीज बो दिया है, इसलिए लड़कियों को होशियार रहने की जरूरत है, क्योंकि पूरा खमियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है. इन परेशानियों से बचने के लिए उन्हें ये एहतियात बरतनी चाहिए:
* अगर किसी से हमबिस्तरी की है और तयशुदा वक्त पर पीरियड न आए तो समझ लेना चाहिए कि पेट में बच्चा ठहर गया है.
* आशिक से हमबिस्तरी करते वक्त उसे कंडोम लगाने को मजबूर करना चाहिए, पर कई बार जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में कंडोम का इस्तेमाल नहीं हो पाता है, इसलिए भी यह नौबत आ जाती है.
* वक्त पर पीरियड न आए तो तुरंत पेशाब की जांच करानी चाहिए कि कहीं आप पेट से नहीं हो गई हैं. आजकल यह जांच हर कोई खुद भी आसानी से सस्ते में कर सकती है.
* कई नामी कंपनियों की प्रैगनैंसी किट या स्ट्रिप यानी पट्टियां बाजार में मिलती हैं जिन से मिनटों में पता चल जाता है कि पेट में बच्चा है या नहीं.
* अगर ये स्ट्रिप जिन पर हिदायतें और इस्तेमाल का तरीका लिखा होता है, पेट से होने की तसदीक करें तो बिना वक्त गंवाए बच्चा गिराने के लिए भागादौड़ी करनी चाहिए.
* बच्चा गिराने के लिए सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में जाना चाहिए. पहचान उजागर होने का डर अपने गांवकसबे या शहर के अस्पताल में बना रहता है, इसलिए दूर के शहर जाना ही ठीक रहता है.
* चूंकि लड़कियां अकेली यह काम नहीं कर सकतीं इसलिए पेट से होने की बात घर वालों को बता देनी चाहिए. तय है कि वे गुस्सा होंगे और मारेंगेपीटेंगे भी, लेकिन इस के अलावा कोई चारा भी नहीं रह जाता है. वैसे भी बहुत जल्द पेट से होने की बात उन पर जाहिर हो जाती है, इसलिए डर और शर्म छोड़ देनी चाहिए, नहीं तो 5 महीने के बाद तो बच्चा गिराना आसान नहीं रह जाता है.
* सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों में बच्चा गिराने वाली लड़कियों की पहचान उजागर नहीं की जाती, इसलिए बेवजह डरना नहीं चाहिए लेकिन अस्पताल वाले पहचानपत्र मांगते हैं जो उन्हें दे देना चाहिए, क्योंकि यह कानूनन जरूरी होता है.
* ज्यादा सोचविचार में वक्त नहीं गंवाना चाहिए और न ही बच्चा गिराने के लिए देशी नुसखे या टोटके का इस्तेमाल करना चाहिए. नीमहकीमी से कई दफा लेने के देने पड़ जाते हैं.
* शुरुआत के 3 महीने तक गर्भनिरोधक गोलियों से भी बच्चा आसानी से गिराया जा सकता है, पर इस बाबत नजदीक या दूर के अस्पताल जा कर डाक्टर या स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से जानकारी लेनी चाहिए. बच्चा गिराने की गोलियां सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में मिलती हैं, लेकिन इन्हें अपने मन से नहीं खाना चाहिए.
तो मंजिल यही है
इस के बाद भी बच्चा न गिरे तो लड़कियों के पास इस के सिवा कोई और रास्ता नहीं रह जाता कि वे दुनिया और समाज से छिप कर बच्चे को जन्म दें और फिर बाद की परेशानियों से बचने के लिए उसे यों ही किसी घूरे या कचरे के ढेर में फेंक दें. यह कोई पाप नहीं है, बल्कि एक अनचाही मुसीबत से छुटकारा पाने का आसान तरीका है.
* भोपाल के शाहपुरा के लक्ष्मण नगर के कचरे के ढेर में मिले बच्चे के मामले में इस से ज्यादा कुछ हुआ लगता नहीं कि लड़की मजबूर थी और उस के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था.
एक रास्ता अकसर पेट से हो आई लड़कियों के पास खुदकुशी का रह जाता है, लेकिन यह समस्या का हल नहीं है, क्योंकि राज तो इस के बाद भी खुल ही जाता है, इसलिए बेहतर यही है कि जो भी सहूलियत वाला रास्ता मिले, उसे अपना लिया जाए.
* घर वालों को भी चाहिए कि वे लड़की की मदद करें, क्योंकि इस में उस की खास गलती नहीं होती है. जो थोड़ीबहुत होती भी है वह उस की नादानी ही मानी जाएगी जिसे माफ करते हुए उसे भी एक बेहतर जिंदगी जीने का मौका दिया जाना कोई गुनाह नहीं है.
समाज तो ऐसे बच्चों को नाजायज या लावारिस कहने से कभी चूकेगा नहीं, लेकिन कानून को जरूर अपना नजरिया बदलना चाहिए कि घूरे के ढेर में मिले बच्चों की पैदाइश छिपाने को संगीन गुनाह न माने, बल्कि एक लड़की की मजबूरी मानते हुए उसे नजरअंदाज करे, क्योंकि बाद की जांच से किसी को कुछ हासिल नहीं होता है. हां, लड़की की जिंदगी जरूर बरबाद हो जाती है, क्योंकि उस की पहचान कानूनी तौर पर उजागर हो जाती है.