अथ माफिया पुराण

लेखक- प्रभाशंकर उपाध्याय

गुरुदेव ने जब आंखें खोलीं, तो अपने चेले जीवराज को सामने खड़ा पाया. उस के चेहरे की बेचैनी से गुरुजी भांप गए कि आज फिर कोई सवाल चेले को बेचैन किए हुए है.

गुरुजी मुसकराए और पूछा, ‘‘कहो जीवराज, सब ठीक तो है न?’’

‘‘नहीं गुरुदेव, सुबह की घटना से मेरा मन बेचैन है. हुआ यों कि आज भीख मांगने के लिए मैं एक नामीगिरामी सुनार की दुकान पर गया. वहां मैं कुछ देर तक इंतजार करता रहा. दुकानदार मुझे कुछ देने के लिए अपने गल्ले में हाथ डाल ही रहा था कि 2 मोटेतगड़े आदमी वहां आए और बोले, ‘भाई ने सलाम बोला है.’

‘‘उन्हें देख कर वह सुनार कांपने लगा. उस ने फौरन तिजोरी खोली और नोटों की कुछ गड्डियां उन की तरफ बढ़ा दीं, जिन्हें उठा कर वे दोनों हंसते हुए चले गए.

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‘‘हे गुरुदेव, जब मैं ने उस सुनार से भीख देने के लिए दोबारा कहा, तो अपने चेहरे का पसीना पोंछना छोड़ कर उस ने मुझे दुत्कार दिया.

‘‘गुरुदेव, सुनार के इस रवैए से मैं बहुत दुखी हुआ और भीख मांगने के लिए आगे न जा सका. हम साधु लोग एकाध रुपए की भीख के लिए दसियों बार आशीर्वाद देते हैं और बदले में हमें कई बार बेइज्जती का सामना करना पड़ता है. अब तो मुझे इस काम से नफरत होने लगी है…’’ यह कह कर चेले जीवराज ने सवाल किया, ‘‘गुरुजी, कृपा कर के मुझे बताएं कि वे दोनों मोटेतगड़े आदमी कौन थे?’’

चेले जीवराज की बात सुन कर गुरुजी ने कुछ देर ध्यान लगाया, फिर आंखें खोल कर कहने लगे, ‘‘सुन बच्चा, वे दोनों आदमी एक माफिया गिरोह के सदस्य थे, जो हफ्तावसूली के लिए

आए थे. ‘भाई’ उन के सरगना का पद नाम है.’’

यह सुन जीवराज चौंक कर बोला, ‘‘माफिया… हां, यह शब्द मैं ने भी सुना है. क्या यह सच है कि अगर ऊपर वाला भी अपनी फौज ले कर आ जाए तो उस की भी माफिया के मुखिया और उस के गिरोह के सामने नहीं चलेगी?’’

गुरुजी मजाकिया लहजे में बोले, ‘‘पहले तू माफिया की कहानी सुन, उस के बाद ही किसी फैसले पर पहुंचना.

‘‘जीवराज, इटली के सिसली शहर में माफिया का जन्म हुआ. वहां शराबखानों, जुआघरों, कोठों, नशीली दवाओं व हथियारों की तस्करी के

धंधे से जुड़े गिराहों को ‘माफिया’

कह कर पुकारा जाने लगा.

‘‘धीरेधीरे ऐसे गिरोहों के मुखिया को ‘किंग’, ‘डौन’ या ‘गैंगस्टर’ नाम से पुकारा जाने लगा. इस के बाद माफिया ने नए इलाकों में भी पकड़ बढ़ा ली, जैसे जमीन माफिया, पानी माफिया, मकान माफिया, सैक्स माफिया, शिक्षा माफिया, फिल्म माफिया, पर्यटन माफिया, झोंपड़पट्टी माफिया वगैरह. हर बड़े शहर में कम से कम ऐसे 15-20 तरह के माफिया गिरोह होते हैं.

‘‘वत्स, अब आगे ध्यान से सुन. माफिया गिरोह का मुखिया हमेशा वेश बदल कर अपने गैंग को चलाता है. आमतौर पर वह सामाजसेवक, नेता या साधुसंत का रूप धरे रहता है. उस की प्रशासन, राजनीति, इंडस्ट्री, फिल्म और कारोबार जगत में गहरी पैठ होती है. वह इन की हर बात पर असर डालता रहता है. वह देशविदेश में बड़ी आसानी से आजा सकता है और कहीं भी रह कर अपने गिरोह को चलाते हुए जायदाद को संभालता है.

‘‘अब तो इस काम में ‘इंटरनैट’ भी कारगर साबित हुआ है. कुछ माफिया ने तो अपनी ‘वैबसाइट’ भी इंटरनैट पर डाल दी है. गलती से अगर कोई माफिया मुखिया जेल चला जाए, तो उस की बीवी भी गिरोह चलाने की कूवत रखती है.

‘‘हे वत्स, अब मैं माफिया के कामकाज के तरीकों के बारे में बताता हूं. ये गिरोह हमेशा डर का माहौल बना कर काम करते हैं. किसी भी देश की कानून व्यवस्था से अलग इन की अपनी दुनिया होती है, सो इंगलिश में इन्हें ‘अंडरवर्ल्ड’ पुकारा जाता है.

‘‘धौंस दे कर ये गिरोह समाज के अलगअलग तबके से अपनी ‘चौथवसूली’ करते हैं. हत्या की ‘सुपारी’ लेते हैं. इन गिरोहों के सदस्य, जिन्हें ‘शूटर’ कहा जाता है, एक इशारे पर किसी का भी खून कर देते हैं. माफिया की बोली में इस काम को ‘टपका देना’, ‘गेम बजा देना’ या ‘शूटआउट कर देना’ कहते हैं.

‘‘अब इंटरनैट पर भी हत्याओं के लिए सुपारी ली जाने लगी है. आम आदमी को टपका देने के लिए 8-10 लाख रुपए और खास लोगों के लिए

5 करोड़ रुपए तक की सुपारी ली जाती है. जख्मी कर देने की दरें वैबसाइट पर अलग से तय हैं.

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‘‘हे जीवराज, सोना, शराब, नशीली चीजें, हथियार वगैरह की तस्करी, सरकारी या गैरसरकारी जमीन पर कब्जे के अलावा किसी देश या राज्य में आतंक फैलाने, वहां की सरकार को हिला देने, चुनावों में अपनी मनमरजी चलाने, स्कूलकालेजों में दाखिले और डिगरी दिलाने, फिल्म बनाने के लिए फाइनैंस और हीरोहीरोइनों को चुनने का आर्डर देने जैसे काम माफिया गिरोहों द्वारा किए जाते हैं. मीडिया भी इन का गुणगान करने से पीछे नहीं रहता है.

‘‘इन लोगों के कारनामों पर ‘गौडफादर’ नाम का इंगलिश उपन्यास व हिंदी फिल्म ‘गौडमदर’ बन चुकी है.’’

माफिया के बारे में इतना सुन कर जीवराज ने पूछा, ‘‘हे गुरुदेव, सरकारें और पुलिस इन की ऐसी हरकतों पर लगाम क्यों नहीं लगा पातीं?’’

‘‘प्रशासन और पुलिस हमेशा सही समय का इंतजार करती है. मतलब, पाप का घड़ा भरेगा तो फूटेगा. घड़ा कभी भरता नहीं, सो सही समय कभी आता ही नहीं.’’

यह सुन कर चेला तेजी से उठ कर कहीं जाने लगा, तो गुरुदेव ने पूछा, ‘‘अरे वत्स, कहां चल दिए?’’

‘‘गुरुवर, अब मैं यहां एक पल

भी नहीं ठहरूंगा. मैं किसी ताकतवर माफिया गिरोह की तलाश में जा रहा हूं, ताकि उस में शामिल हो कर अपनी जिंदगी कामयाब कर सकूं.’’

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